POINTS OF YAAD FROM MURLI - 15.06.2018
1.
आत्मा को ही ज्ञान इन्जेक्शन लगता है, न कि शरीर को। कोई सुई वा दवाई आदि नहीं है। यह एक ही इन्जेक्शन काफी है। कौन सा इन्जेक्शन? मन्मनाभव, अशरीरी भव - यह इन्जेक्शन है। देही-अभिमानी हो रहने से पवित्रता-सुख-शान्ति का वर्सा जमा होता है। जितना-जितना देही-अभिमानी बन बाप को याद करते रहेंगे, उतना वर्सा जमा होता रहेगा। बच्चे जानते हैं आधा-कल्प के दु:ख दूर करने वाला आया हुआ है।
2.
श्रीमत से हम श्रेष्ठ बनेंगे और हमारा आधा-कल्प के लिए जमा हो जाता है। यह एक ही बार खाता जमा होता है। बाप कहते हैं अच्छी रीति खाता जमा करना है। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ पद पाना है तो देही-अभिमानी भव। बाप को याद करो। आत्मा ही पतित बनती है इसलिए पाप-आत्मा, पुण्य-आत्मा कहा जाता है। पाप शरीर नहीं कहा जाता है। पाप-आत्मा बनाती है माया रावण। बाप को याद ही नहीं करते तो पुण्य-आत्मा कैसे बनें।
3.
भगवान एक होता है जो आकर राजयोग सिखलाते हैं। यह योग बहुत फायदे का है। मनुष्य को चढ़ा देता है। सिर्फ एक बात में निश्चय रहे और एक बाप को याद करते रहो, बस।
4.
तुम बच्चे भी जानते हो - बाबा हमको कितना सहज कलियुगी किनारे से सतयुगी किनारे में ले जा रहे हैं, बुद्धियोग अथवा याद द्वारा। यह आत्माओं से बात कर रहे हैं। बाप ही आकर आत्माओं की ज्योति जगाते हैं। उनको शमा भी कहा जाता है। ज्योति स्वरूप भी कहा जाता है।
5.
अब फिर सूर्यवंशी बनते हैं अर्थात् फायदे में जाते हैं, इसलिए बाप को याद करना है और पढ़ना है। यह बड़ी वन्डरफुल बातें हैं। गाते भी हैं जनक को सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिली।
6.
तुम बच्चों से ही आदि शुरू होती है। फिर नीचे आते हो। यह स्वदर्शन हुआ। तीसरा नेत्र भी तुमको मिला है। जितना-जितना बाप को याद करेंगे, उतना ऊंच पद पायेंगे।
7.
हर एक को अपना पुरुषार्थ करना है कि हम चिरन्जीवी कैसे बनें। बाप को याद करने से ही तुम चिरन्जीवी बन रहे हो। यह आशीर्वाद बाप करते हैं। ब्राह्मण लोग भी कहते हैं आयुषवान भव।
8.
तुम जानते हो हम बाबा को याद करते-करते बस शरीर छोड़ देंगे। कोई कहते हैं - बाबा, हम जल्दी जावें। कब विनाश होगा? हम कब जायेंगे? तुम ऐसे मत कहो - हम कब जायेंगे! यह कहना माना बाबा आप वापिस कब जायेंगे!
9.
बहुत बड़ी राजधानी स्थापन होनी है। यह तुम ही जानते हो कि हम बाप को याद करने से राजधानी स्थापन करते हैं। बाप और खजाना याद रहता है। याद से ही हम अपना स्वराज्य स्थापन करते हैं।
10.
तकदीर पर लकीर लगाता है - देह-अभिमान। मूल बात है देही-अभिमानी बनो। बाप को याद करो। अपने को आत्मा समझो। कितनी सहज बात है।
11.
मूल बात बाबा समझाते हैं - देही-अभिमानी बनते रहो। समझाना है भगवान तो एक है ना, जिसको भक्त याद करते हैं। भक्त ही भगवान होते तो फिर याद किसको करते।
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