POINTS OF YAAD FROM MURLI - 23.08.2018


1.

"मीठे बच्चे - याद की लम्बी सीढ़ी पर तब चढ़ सकेंगे जब कि बाप से सच्ची प्रीत होगी, याद की दौड़ी से ही विजय माला में आयेंगे"

 

 

2.

बाप के सिवाए किसी से भी प्यार न हो। बुद्धि में रहे अब घर जाना है, यह हमारा अन्तिम जन्म है। बाबा कहते - बच्चे, तुमने 84 जन्मों का खेल पूरा किया, अब सब कुछ भूल मुझे याद करो तो मैं तुम्हें साथ ले जाऊंगा।

 

3.

अभी तुम बच्चों की एक बाप के साथ ही प्रीत बुद्धि है। बाप कहते हैं कि गृहस्थ व्यवहार में भल रहो, बाप को याद करो। अभी सब एक्टर्स का पार्ट पूरा होता है। सबके शरीर छूटने हैं।

 

4.

अब हम फिर ब्राह्मण बने हैं यह चक्र पूरा याद रखना है। आत्मा कहती है कि बरोबर पुनर्जन्म लेते-लेते अभी यह अन्तिम जन्म है। बाप आया है लेने लिए।

 

 

5.

तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार हैं जिनकी पूरी प्रीत है। सजनी की एक साजन से, बच्चों की एक बाप से प्रीत होनी चाहिए। और सबसे प्रीत तोड़नी पड़े। नष्टोमोहा बनना है।

 

6.

तो तुम्हारी अब सर्व-शक्तिमान बाप से प्रीत है नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। बहुत विपरीत बुद्धि भी हैं क्योंकि याद नहीं करते हैं। बहुत प्रीत उन्हों की है जो बहुत याद करते हैं। थोड़ी प्रीत है तो समझो याद नहीं करते। कहते हैं - क्या करें...., घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं....। अरे, साजन को तुम याद नहीं कर सकते हो? बाप, जिससे स्वर्ग का वर्सा मिलता है, ऐसे बाप को याद नहीं कर सकते हो? कारण बताओ? बच्चा कहे बाप को याद नहीं कर सकता हूँ! अरे, फिर वर्सा कैसे मिलेगा? जितना बाप को याद करते हो उतनी शक्ति मिलती है। ऐसे नहीं कि शिवबाबा को भी याद करो और साथ-साथ काला मुँह भी करते रहो फिर राज्य-भाग्य मिल न सके।

 

7.

बाबा कहे - अरे, तुम ईश्वर की सन्तान बने हो, तुमको तो बहुत नशा चढ़ना चाहिए। ऐसे बाप को तो निरन्तर याद करना चाहिए। प्रीत बुद्धि बनना चाहिए। शिवबाबा से प्रीत नहीं तो ब्रह्मा से भी नहीं होगी। वह ऐसे ही सबसे लड़ते-झगड़ते रहेंगे। योग ही नहीं तो वर्सा कैसे ले सकते?

 

8.

क्या हम श्री नारायण को वा श्री लक्ष्मी को वर सकता हूँ? ऐसा अपने से पूछना है कि मैं कितना बाप को याद करता हूँ? कितनी सेवा करता हूँ? बाप से तो जरूर वर्सा मिलना है।

 

9.

सेकेण्ड में जीवनमुक्ति 21 जन्म के लिए मिलती है। बाप को और चक्र को याद करना है। बाप को याद करने से ही पावन बनेंगे।

 

10.

पाण्डवों की प्रीत बुद्धि थी, जिनकी ही विजय हुई। अभी वही समय है। बाप समझाते हैं - सिर्फ यह याद करो कि अब वापिस जाना है। बाकी थोड़ा समय है, नाटक पूरा होता है। गृहस्थ व्यवहार में रहते सिर्फ बाबा को याद करना है। याद की ही लम्बी सीढ़ी है।

 

 

11.

यह है बुद्धि-योग की यात्रा। बाप के पास दौड़ना है। देखना है कि सारे दिन में बाप को कितना याद किया? कितने को कांटों से फूल बनाया।

 

12.

बुद्धि में यह पक्का याद रखो - अभी हमको घर जाना है। इस पुरानी दुनिया में दु:ख बहुत हैं। बस, एक बाप को याद करते रहो। बड़ी लम्बी यात्रा है। पिछाड़ी में आने वाले इतना ऊंच पद पा न सकें। कितनी मेहनत करनी पड़ती है!

 

 

13.

विश्व का मालिक तुम बनते हो एक शिवबाबा की याद से। बाप को याद ही नहीं करेंगे तो वर्सा कैसे मिलेगा? यह तो तुम्हारा काम है - पुरुषार्थ कर निरन्तर याद करना। निरन्तर याद रहे, वह अवस्था अन्त में होगी। अभी नहीं है। पिछाड़ी में 8 ही विन करते हैं, याद करते-करते सबसे पहले जाते हैं।