अव्यक्त बापदादा 04.03.1969

"...अगर किसके कहने से (Sewa) करते हैं तो...

उस कार्य में भाईवारी हो जाती है।

और स्वयं ही मालिक बन करके करते हैं तो सारी मिलकियत के अधिकारी बन जाते हैं।

इसलिए हरेक को मालिक बनकर करना है लेकिन मालिकपने के साथ-साथ बालकपन भी पूरा होना चाहिए। ..."

 

 

 


अव्यक्त बापदादा 07.05.1969

"...पुरुषार्थ करते-करते जो माया के विघ्न आते हैं उन पर विजय प्राप्त करने के लिए कौन-सा सलोगन है?

"स्वर्ग का स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है"।

और संगम के समय बाप का खजाना जन्म सिद्ध अधिकार है।

यह सलोगन भूल गये हो।

अधिकार भूल गये हो तो क्या होगा?

हम किस -किस चीजों के अधिकारी हैं।

वह तो जानते हो।

लेकिन हमारे यह सभी चीज़ें जन्म सिद्ध अधिकार हैं।

जब अपने को अधिकारी समझेंगे तो माया के अधीन नहीं होंगे।

अधीन होने से बचने लिये अपने को अधिकारी समझना है।

पहले संगमयुग के सुख के अधिकारी हैं और फिर भविष्य में स्वर्ग के सुखों के अधिकारी हैं।

तो अपना अधिकार भूलो नहीं।

जब अपना अधिकार भूल जाते हो

तब कोई न कोई बात के अधीन होते हो और जो पर-अधीन होते हैं वह कभी भी सुखी नहीं रह सकते।

पर-अधीन हर बात में मन्सा, वाचा, कर्मणा दु :ख की प्राप्ति में रहते और जो अधिकारी हैं वह अधिकार के नशे और खुशी में रहते हैं। ..."

 

 

 

 

अव्यक्त बापदादा 09.06.1969

"...अभी बच्चे रूप का मीठा-मीठा पुरुषार्थ तो कर रहे हो।

राज्य के अधिकारी तो बन गये।

तिलक भी आ गया लेकिन यह ढीला और मीठा पुरुषार्थ अभी नहीं चल सकेगा।

जितना शक्तिरूप में स्थित होंगे तो पुरुषार्थ भी शक्तिशाली होगा।

अभी पुरुषार्थ शक्तिशाली नहीं है।

ढीला-ढीला है।

पुरुषार्थी तो सभी हैं लेकिन पुरुषार्थ शक्तिशाली जो होना चाहिए वह शक्ति पुरुषार्थ में नहीं भरी है।

सवेरे उठते ही पुरुषार्थ में शक्ति भरने की कोई न कोई प्याइन्ट सामने रखो।

अमृतवेले जैसे रूह-रूहान करते हो वैसे ही अपने पुरुषार्थ को शक्तिशाली बनाने के लिए भी कोई न कोई Point विशेष रूप से बुद्धि में याद रखो।

अभी विशेष पुरुषार्थ करने की आवश्यकता है।

साधारण पुरुषार्थ करने के दिन अभी बीत रहे हैं। ..."

 

 

 

 

अव्यक्त बापदादा 16.06.1969

"...यहाँ अपना राजा बनने से क्या होगा?

अपने को अधिकारी समझेंगे।

अधिकारी बनने के लिए उदारचित का विशेष गुण चाहिए।

जितना उदारचित्त होंगे उतना अधिकारी बनेंगे। ..."

 

 

 

 

अव्यक्त बापदादा 17.07.1969

"...जितना यहाँ मेहमान बनेंगे उतना ही फिर वहाँ विश्व का मालिक बनेंगे।

इस दुनिया के मालिक नहीं हैं।

इस दुनिया में हम मेहमान हैं।

नई दुनिया के मालिक हैं।

यह जो व्यक्त भाव में आ जाते हैं तो उसका कारण यही है जो अपने को मेहमान नहीं समझते हैं।

वस्तुओं पर भी अपना अधिकार समझते हैं।

इसलिए उसमें अटैचमेंट हो जाती है।

अपने को अगर मेहमान समझो तो फिर यह सभी बातें खत्म हो जायें।..."

 

 

 

 

अव्यक्त बापदादा 15.09.1969

"...वर्से के अधिकारी बन चुकी हो कि बनना है?

वारिस बन चुकी हो कि बनने आए हो?

वारिस से वर्सा तो है ही कि वारिस बनी हो मगर वर्सा नहीं मिला है?

वर्से के हकदार तो बन ही चुके हो।

अब किस कार्य के लिए आई हो?

बापदादा ने जरूर किसी विशेष कार्य के लिए बुलाया होगा?

स्टडी तो अपने सेवाकेन्द्रों पर भी करते रहते हो।

कोर्स भी पूरा कर चुके हो।

मुख्य ज्ञान की पढ़ाई का भी पता पड़ गया है।

बाकी क्या रह गया है?

अब नष्टोमोहा बनना है।

नष्टोमाहा तब बनेंगी जबकि सच्ची स्नेही होंगी।

जैसे कोई भी चीज को आग में डालने के बाद उसका रूप-रंग सब बदली हो जाता है।

तो जो भी थोड़े आसुरी गुण, लोक-मर्यादायें हैं, कर्मबन्धन की रस्सियां, ममता के धागे जो बंधें हुए हैं उन सबको जलाना है।

इस स्नेह की अग्नि में पड़ने से यह सब छूट जायेगा।

तो अपना रंग-रूप सब बदलना है। ..."

 

 

 


अव्यक्त बापदादा 17.11.1969

"...प्रकृति और माया के अधीन न होकर दोनों को अधीन करना चाहिए।

अधीन हो जाने के कारण अपना अधिकार खो लेते है।

तो अधीन नहीं होना है, अधीन करना है तब अपना अधिकार प्राप्त करेंगे और जितना अधिकार प्राप्त करेंगे उतना प्रकृति और लोगों द्वारा सत्कार होगा तो सत्कार कराने लिये क्या करना पड़ेगा?

अधीनपन छोड़कर अपना अधिकार रखो।

अधिकार रखने से अधिकारी बनेंगे।

लेकिन अधिकार छोड़ कर के अधीन बन जाते हो।

छोटी-छोटी बातों के अधीन बन जाते हो।

अपनी ही रचना के अधीन बन जाते हैं।

लौकिक बच्चे तो भल हैं लेकिन अपनी ही रचना अर्थात् संकल्पों के अधीन हो जाते है।

जैसे लौकिक रचना से अधीन बनते हो वैसे ही अब भी अपनी रचना संकल्पों के भी अधीन बन जाते हो।

अपनी रचना कर्मेन्द्रियों के भी अधीन बन जाते हो।

अधीन बनने से ही अपना जन्म सिद्ध अधिकार खो लेते हो ना।

तो बच्चे बने और अधिकार हुआ।

सर्वदा सुख, शान्ति और पवित्रता का जन्म सिद्ध अधिकार कहते हो ना।

अपने आप से पूछो कि बच्चा बना और पवित्रता, सुख, शान्ति का अधिकार प्राप्त किया।

अगर अधिकार छूट जाता है तो कोई बात के अधीन बन जाते हो।

तो अब अधीनता को छोडो, अपने जन्म सिद्ध अधिकार को प्राप्त करो। ..."

 

 

 


अव्यक्त बापदादा 28.11.1969

"...आधा कल्प माँगते रहे, भक्त रूप में।

अभी बच्चा बनकर भी माँगते रहे तो बाकी फर्क क्या रहा भक्त और बच्चों में?

लेकिन कारण क्या है कि अज्ञानी होकर सहयोग माँगते हो अधिकारी समझो तो फिर माँगने की आवश्यकता नहीं।

बीती सो बीती। ..."