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1969
09.06.1969
"...शक्तियों का काम है तीर लगाना लेकिन हर प्रकार की परीक्षा और लोगों को परखना और शक्तियों की रखवाली करना पाण्डवों का काम है। इतनी जिम्मेवारी उठा सकते हो? कि शक्तियों के रखवाली की आप को आवश्यकता है? कहाँ-कहाँ देखने में आता है पाण्डव अपनी रखवाली की औरों से उम्मीद रखते हैं लेकिन पाण्डवों को अपनी रखवाली के साथ चारों ओर की रखवाली करनी है। बेहद में दृष्टि होनी चाहिए न कि हद में। अगर अपनी ही रखवाली नहीं करेंगे तो फिर औरों की मुश्किल हो जायेगी।..."
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28.09.1969
"...अब तो बेहद की सर्विस करनी है। मन्सा-वाचा-कर्मणा तीनों रूपों से बेहद की सर्विस हो - उसको कहा जाता है सर्विसएबुल। अब अपने को देखो कि हम सर्विसएबुल बने हैं? ऐसा सर्विसएबुल फिर स्नेही भी बहुत होगा।..."
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09.11.1969
"...मधुरता का विशेष गुण होना चाहिए। मधुरता से ही मधुसूदन का नाम बाला करेंगे। यह मधुबन नाम है। मधु अर्थात् मधुरता और बन में क्या विशेषता होती है? बन में वैराग्य वृत्ति वाले जाते है। तो बेहद की वैराग्य बुद्धि भी चाहिए। फिर इससे सारी बातें आ जायेगी। और आप सभी को कॉपी करने के लिए यहाँ आयेंगे। सभी साचेंगे यह कैसे ऐसे बने हैं। सभी के मुख से निकलेगा कि मधुबन तो मधुबन ही है। तो यह दो विशेषतायें धारण करनी हैं - मधुरता और बेहद की वैराग्य वृत्ति। दूसरे शब्दों में कहते हैं स्नेह और शक्ति। आप सभी का सभी से जास्ती स्नेह है ना! बापदादा से।..."
"...सभी के दिलों पर विजय किन गुणों से प्राप्त कर सकते हो? सभी को सन्तुष्ट करना। बाप में यह विशेष गुण था। वही फालो करना है। सभी मधुबन की लिस्ट में हो या आलराउन्डर की लिस्ट में हो? एक है हद की लिस्ट, दूसरी है बेहद की लिस्ट। आलराउन्डर और एवररेडी। इसी लिस्ट में मालूम है क्या करना होता है? एक सेकेण्ड में तैयार। सकल्पों को भी एक सेकेण्ड में बन्द करना है। मिलिट्री वालों का हर समय बिस्तरा तैयार रहता है। यह सकल्पों का बिस्तरा भी बन्द करना है। बिस्तरा भी एवररेडी रहना चाहिए। एवररेडी बनने वालों का सकल्पों का बिस्तरा तैयार रहना चाहिए। कोई भी परिस्थिति हो उसका सामना करने के लिए पेटी बिस्तरा तैयार हो।..."
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28.11.1969
"...एक संगठन के रूप में, एक दो को समझ, सहयोगी बन बेहद की सर्विस में बेहद का रूप लाना है।..."
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1970
25.01.1970
"...ऐसे बेहद की दृष्टि में रहते हो ना। मुख्य केंद्र से ही सभी का कनेक्शन है। सभी आत्माओं का उनसे कनेक्शन है, सम्बन्ध है। एक से सम्बन्ध रहता है तो अवस्था भी एकरस रहती है। अगर और कहाँ सम्बन्ध की राग जाती है तो एकरस अवस्था नहीं रहेगी। तो एकरस अवस्था बनाने के लिए सिवाए एक के और कुछ भी देखते हुए न देखो।..."
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26.01.1970
"...जितना स्नेही होंगे उतना बेहद का वैराग्य होगा। यह है मधुबन का अर्थ। अति स्नेही और इतना ही बेहद की वैराग्य वृत्ति। ..."
"...एक स्नेह से दूसरा बेहद की वैराग्य वृत्ति से कोई भी परिस्थितियों को सहज ही सामना करेंगे। सफलता के सितारे बन्ने के लिए यह दो गुण मुख्य मधुबन की सौगात ले जाना है। जैसे कहाँ भी जाना होता है तो वहां जाते ही पूछा जाता है कि यहाँ की विशेष चीज़ क्या हैं? जो प्रसिद्द विशेष चीज़ होती है, वह ज़रूर साथ में ले जाते हैं। तो यहाँ मधुबन के दो विशेष गुण अपने साथ ले जाना।..."
"...समय भी बेहद की वैराग्य वृत्ति को उत्पन्न करता है। लेकिन समय के पहले जो अपनी म्हणत से करेंगे तो उनका फल ज्यादा मिलेगा। जो खुद नहीं कर सकेंगे उन्हों के लिए समय हेल्प करेगा। लेकिन वह समय की बलिहारी होगी। अपनी नहीं।..."
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26.03.1970
"...बेहद की स्थिति में होने से ही बेहद के रूप में स्थित हो जायेंगे। अब जो कुछ खाद है उनको मिटाना है। खाद को मिटाने लिए यह भट्ठी है। ..."
"...अभी से ही बेहद की सर्विस पर बेहद की आत्माओं को आकर्षित करना है। जिस सर्विस को आप सर्विस समझते हो प्रजा बनाने की, वह तो आप की प्रजा के भी प्रजा खुद बनने हैं, वह तो प्रदर्शनियों में बन रहे हैं। अभी तो आप लोगों को बेहद में अपना सुख देना है तब सारा विश्व आपको सुखदाता मानेगा। विश्व महाराजन को विश्व का डाटा कहते हैं ना। तो अब आप भी सभी को सुख देंगे तब सभी तुमको सुखदाता मानेंगे।..."
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02.07.1970
"... अभी पावरफुल भी नहीं लेकिन विलपावर वाला बनना है। विलपावर और वाइडपावर अर्थात् बेहद की तरफ दृष्टि वृत्ति। तो अब एडिशन क्या करेंगे? पावर तो है लेकिन अब विलपावर और वाइडपावर चाहिए। ..."
"...अभी मैदान पर प्रत्यक्ष होना है, अब गुप्त रहने का समय नहीं है। जितना प्रत्यक्ष होंगे उतना बापदादा को प्रख्यात करेंगे। बेहद में चक्कर लगाकर चक्रवर्ती बन रहे हो? जो एक स्थान पर बैठा रहता है उसको क्या कहा जाता है? जो एक ही स्थान पर स्थित हो सर्विस भी कर रहे हैं लेकिन बेहद में चक्र नहीं लगाते हैं तो भविष्य में भी उन्हों को एक इंडिविजुअल राजाई मिल जाएगी। ..."
"...इस पुरानी दुनिया से बहुत सहज बेहद का वैराग लाने का साधन क्या है? (कोई-कोई ने बताया) जिन्हों ने जो बात सुनाई वह सहज समझ सुनाई ना। अगर सहज ही है तो बेहद के वैरागी तो सहज बन गए। अगर अपने से ही न लगाया तो दूसरों से कैसे लगायेंगे। बेहद का वैराग्य कहते हैं। जो वैरागी होते हैं वह कहाँ निवास करते हैं? बहुत सरल युक्ति बताते हैं कि बेहद का वैरागी बनना है तो सदैव अपने को मधुबन निवासी समझो। लेकिन मधुबन को खाली नहीं देखना। मधुबन है ही मधुसूदन के साथ। तो मधुबन याद आने से बापदादा, दैवी परिवार, त्याग-तपस्या और सेवा भी याद आ जाते हैं। मधुबन तपस्या भूमि भी है। मधुबन एक सेकंड में सभी से त्याग कराता है। यहाँ बेहद के वैरागी बन गए हो ना। तो मधुबन है ही त्यागी वैरागी बनाने वाला। जब बेहद के वैरागी बनेंगे तब बेहद की सर्विस कर सकेंगे। कहाँ भी लगाव न हो। अपने आप से भी लगाव नहीं लगाना है तो औरों की तो बात ही छोड़ो।..."
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11.07.1970
"...जितना बड़ा जिम्मेवारी का ताज उतना ही सतयुग में भी बड़ा ताज मिलेगा। इसको कहते हैं बेहद की जिम्मेवारी। बाप भी मधुबन में रहते बेहद की सर्विस करते थे ना। तो एक-एक को बेहद की जिम्मेवारी है। बेहद की बुद्धि कैसे होती है? बेहद की बात सोचना, बेहद परिवार से सम्बन्ध और स्नेह, सर्व स्थान अपने। .... ऐसे को कहते हैं बेहद का सर्विसएबुल। हद की सर्विस वाले को सर्विसएबुल नहीं कहेंगे।..."
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27.07.1970
"...मधुबन में रहते मधुरता और बेहद की वैराग्यवृत्ति को धारण करना है। यह है मधुबन का मुख्य लक्षण। इसको ही मधुबन कहा जाता है। बाहर रहते भी अगर यह लक्ष्य है तो गोया मधुबन निवासी हैं। जितना यहाँ रेस्पान्सिबिल्टी लेते हैं उतना वहाँ प्रजा द्वारा रेस्पेक्ट मिलेगा। सहयोग लेने के लिए स्नेही बनना है। सर्व के स्नेही, सर्व के सहयोगी।..."
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06.08.1970
"...समानता आ जाएगी। जैसे बेहद का बाप है वैसे दादा भी बेहद का बाप है। बापदादा के समीप, समानता होनी चाहिए। जितनी-जितनी समीपता उतनी समानता। अन्त में अब बच्चे भी अपनी रचना के रचयिता बनकर प्रैक्टिकल में अनुभव करेंगे। जैसे बाप को रचना को देख रचयिता के स्वरुप की स्मृति स्वतः रहती है ऐसी स्टेज नम्बरवार बच्चों की भी आनी है।..."
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05.11.1970
"...ऐसे ही समझो बेहद की स्टेज के बीच पार्ट बजा रही हूँ वा बजा रहा हूँ। सारे विश्व की आत्माओं की नज़र मेरी तरफ है। ऐसे समझने से सम्पूर्णता को जल्दी धारण कर सकेंगे। ..."
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