Brahma Bhojan
18.01.1969 - Trans Message
"...जो आत्मायें एडवांस में शरीर छोड़कर गई हैं उन सभी को इमर्ज कर बाबा क्लास करा रहे थे। फिर सभी को मधुबन का ब्रह्मा भोजन स्वीकार कराया। उस संगठन में सभी गई हुई आत्मायें थी। ..."


22.01.1969 - Trans Message
"...बाबा ने कहा बच्चों के भोजन के समय के अनुसार लेट आई हो। मैंने कहा - बाबा आपका तो एक डेढ बजे भोजन पान करने का समय था। बाबा ने कहा बाबा जब बच्चों के साथ भोजन खाता था तो बच्चों के टाइम भोजन खाता था। ..."

"... बाबा ने कहा हमने अपने समय पर पत्र भी लिखा फिर भोजन के लिए इंतजार कर रहे थे। फिर तो भोजन खिलाया। कहा - भल वतन में चीज़ें खाते हैं लेकिन यज्ञ के भोजन की रसना बहुत अच्छी है। फिर बाबा ने भोजन स्वीकार किया। ..."


13.11.1969
"... जब भोजन महीन रूप से खाओ, तो उस भोजन की शक्ति बनती है। भोजन का महीन रूप क्या बनता है? खून। जब खून बन जाता है तब शक्ति आ जाती है। तो अब सिर्फ बाहर के, ऊपर के रूप को न देखते हुए अन्दर जाने की कोशिश करो।

जितना हर बात में अन्दर जायेंगे, तब रत्न देखने में आयेंगे। और हर एक बात की वैल्यूका पता पड़ेगा। ..."


28.11.1969
"...इसी शरीर के कार्य के लिए चल रहे हो तो साथ-साथ समझो इन शारीरिक पाँव द्वारा लौकिक कार्य तरफ जा रहा हूँ लेकिन बुद्धि द्वारा अपने अलौकिक देश, कल्याण के कार्य के लिए जा रहा हूँ। पाँव यहाँ चल रहे हैं लेकिन बुद्धि याद की यात्रा में। शरीर को भोजन दे रहे हैं लेकिन आत्मा को फिर याद का भोजन देते जाओ। यह याद भी आत्मा का भोजन है। जिस समय शरीर को भोजन देते हो ऐसे ही शरीर के साथ में आत्मा को भी शक्ति का, याद का बल देना है।..."


24.01.1970
"...भोजन खाना और चीज़ है हज़म करना और चीज़ है। खाने से शक्ति नहीं आएगी। हज़म करने से शक्ति कहाँ से आ जाती है, खाए हुए भोजन को हज़म करने से ही शक्ति रूप बनता है। ..."


18.04.1971
"...जैसे महान् आत्माओं का भोजन, खान-पान आदि महान होता है, वैसे देखना है आज हमारी बुद्धि का भोजन महान रहा? शुद्ध भोजन स्वीकार किया? जैसे देखो, महान आत्मा कहलाने वाले अशुद्ध भोजन स्वीकार करते हैं तो उनको देखकर के सभी क्या कहते हैं? कहेंगे यह महान् आत्मा है? तो अपने को आप ही चेक करो कि आज हमने बुद्धि द्वारा कोई भी अशुद्ध संकल्प का भोजन तो नहीं पान किया? महान आत्माओं का आहार-विहार यही तो देखा जाता है। तो आज सारे दिन में बुद्धि का आहार कौनसा रहा? अगर कोई अशुद्ध संकल्प वा विकल्प वा व्यर्थ संकल्प भी बुद्धि ने ग्रहण किया तो समझना चाहिए कि आज मेरे आहार में अशुद्धि रही। जो महान आत्मा होते हैं उनके हर व्यवहार अर्थात् चलन से सर्व आत्माओं को सुख का दान देने का लक्ष्य होता है। वह सुख देता और सुख लेता है। तो ऐसे अपने आप को चेक करो कि महान आत्मा के हिसाब से आज के दिन कोई को भी दु:ख दिया वा लिया तो नहीं? पुण्य का कार्य क्या होता है? पुण्य अर्थात् किसको ऐसी चीज देना जिससे उस आत्मा से आशीर्वाद निकले। इसको कहते हैं पुण्य का कर्त्तव्य। ..."

 

30.05.1971
"...भले भोजन बनाते हो, वह है तो स्थूल कार्य लेकिन भोजन में ईश्वरीय संस्कार भरना, भोजन को पावरफुल बनाना, वह तो ईश्वरीय सर्विस हुई ना। ‘जैसा अन्न वैसा’ मन कहा जाता है। तो भोजन बनाते समय ईश्वरीय स्वरूप होगा तब उस अन्न का असर मन पर होगा। तो भोजन बनाने का स्थूल कार्य करते भी ईश्वरीय सर्विस पर हो ना! आप लिखते भी हो - आन गॉडली सर्विस ओनली। तो उसका भावार्थ क्या हुआ? हम ईश्वरीय सन्तान सिर्फ और सदैव इसी सर्विस के लिए ही हैं। भल उसका स्वरूप स्थूल सर्विस का है लेकिन उसमें भी सदैव ईश्वरीय सर्विस में हूँ। ..."


22.06.1971
"...संकल्प में भी अगर पुराने अशुद्ध संस्कारों का टच होता है तो भी सम्पूर्ण प्योरिटी तो नहीं कहेंगे ना। जैसे स्थूल भोजन भले कोई स्वीकार नहीं करते हैं, लेकिन हाथ भी लगाते हैं तो भी अपने को सच्चे वैष्णव नहीं समझते हैं। अगर बुद्धि द्वारा भी अशुद्ध संकल्प वा पुराने संस्कार संकल्प रूप में टच होते हैं तो भी सम्पूर्ण वैष्णव कहेंगे? कहा जाता है - अगर कोई देखता भी है अकर्त्तव्य कार्य, तो देखने का असर हो जाता है, उसका भी हिसाब बन जाता है। इस हिसाब से सोचो तो पुराने संस्कार व अशुद्ध संकल्प बुद्धि में भी टच होते हैं, तो भी सम्पूर्ण वैष्णव वा सम्पूर्ण प्योरिटी नहीं कहेंगे।..."


28.07.1971
"...आकार में निराकार को देखना - यह प्रैक्टिकल और नेचरल स्वरूप हो ही जाना चाहिए। अब तक शरीर को देखेंगे क्या? सर्विस तो आत्मा की करते हो ना। जिस समय भोजन स्वीकार करते हो, तो क्या आत्मा को खिलाते हैं वा शारीरिक भान में करते हैं? ..."

 

15.03.1972
"...जो श्वॉस अर्थात् हर श्वॉस में बाप की स्मृति रहे, अगर एक भी श्वॉस में बाप की याद नहीं तो समझो व्यर्थ गया। तो श्वॉस को भी व्यर्थ नहीं गंवाना। ऐसे ही ज्ञान का खज़ाना जो है उसमें भी अगर खज़ाने को सम्भालने नहीं आता, मिला और खत्म कर दिया तो व्यर्थ चला गया। मनन नहीं किया ना। मनन के बाद उस खज़ाने से जो खुशी प्राप्त होती है, उस खुशी में स्थित रहने का अभ्यास नहीं किया तो व्यर्थ चला गया ना। जैसे भोजन किया, हजम करने की शक्ति नहीं तो व्यर्थ जाता है ना। इसी प्रकार यह ज्ञान के खज़ाने आपके प्रति वा दूसरी आत्माओं को दान देने के प्रति न लगाया तो व्यर्थ गया ना। ..."

 

03.05.1972
"...आजकल शक्तियों और देवियों का भोजन होता है तो उसमें भी शुद्धिपूर्वक भोग चढ़ाते हैं। अगर उसमें कोई अशुद्धि होती है तो देवी भी स्वीकार नहीं करती है, फिर वह भक्तों को महसूसता आती है कि देवी ने हमारी भेंट स्वीकार नहीं की। तो आप भी श्रेष्ठ आत्मायें हो। शुद्धि पूर्वक भेंट नहीं है तो आप भी स्वीकार नहीं करते हो। ऊंच ते ऊंचे बाप के आगे क्या भेंट चढ़ानी है वह तो समझ सकते हो। हर संकल्प में श्रेष्ठता भरते जाओ, हर संकल्प बाप और बाप के कर्त्तव्य में भेंट चढ़ाते जाओ। फिर कब भी हार नहीं खा सकेंगे। ..."


18.06.1974
"...जैसे किसको पानी की प्यास हो और आप उसे छत्तीस प्रकार के भोजन दे दो, लेकिन पानी का प्यासा क्या छत्तीस प्रकार के भोजन से सन्तुष्ट होगा वा आपके प्रति शुक्रिया मानेगा? पानी के बदले चाहे आप उसे हीरा दे दो, परन्तु उस समय उस आत्मा के लिए पानी की एक बूंद की कीमत अनेक हीरों से ज्यादा है, ऐसे ही अगर अपने पास सर्वशक्तियों का स्टॉक जमा नहीं होगा तो, सर्व-आत्माओं को सन्तुष्ट करने वाली सन्तुष्टमणियाँ नहीं बन सकेंगे, वा सर्व-आत्मायें आपको जी-दाता, सर्व-शक्ति दाता नहीं मानेंगी। ..."

 

04.07.1974
"...जैसे यज्ञ की स्थूल वस्तु, भोजन व अन्न अगर व्यर्थ गँवाते हो तो बोझ चढ़ता है ना? ऐसे ही जब यह मरजीवा जीवन का समय बाप ने विश्व की सेवा-अर्थ दिया है, तो सर्वशक्तियाँ स्वयं के व विश्व के कल्याण अर्थ दी है, मन शुद्ध संकल्प करने के लिए दिया है और यह तन विश्व-कल्याण की सेवा के लिए दिया है। आप सबने तन, मन और धन जो दे दिया है तो वह आपका है क्या? जो अर्पण किया वह बाप का हो गया ना? बाप ने फिर वह विश्व सेवा के लिये दिया है। श्रेष्ठ संकल्प से वायुमण्डल और वातावरण को शुद्ध करने के लिये मन दिया है, ऐसे ईश्वरीय देन को अर्थात् ईश्वर द्वारा दी गई वस्तु को यदि व्यर्थ में लगाते हो तो बोझा नहीं चढ़ेगा?..."

 

13.09.1974
"...जैसे स्थूल भोजन का लंगर लगता है ना, ऐसे ही आपके पास शक्ति लेने का दृश्य बहुत जल्दी सामने आयेगा अर्थात् आप लोगों को भी शक्ति देने का लंगर लगाना पड़ेगा। उसके लिये आप को अपने में पहले से ही स्टॉक जमा करना पड़ेगा। जो गायन है-द्रोपदी के देगड़े का। द्रोपदियाँ तो आप सब हो न? द्रोपदी अर्थात् यज्ञमाता का देगड़ा दोनों बातों में प्रसिद्ध है। एक तो स्थूल साधनों की कोई कमी नहीं और दूसरे सर्वशक्तियों की कोई कमी नहीं। सर्व-शक्तियों से सम्पन्न देगड़ा कब खाली नहीं होता। भल कितने भी आ जाएं। कितना बड़ा लंगर लग जावे कोई भूखा नहीं जा सकता।..."


18.01.1975
"...नॉलेज को प्रैक्टिकल में लाना और समाना नहीं आता है। भोजन है, खाते भी हैं। परन्तु खाना अलग बात है, खा कर हजम करना अलग बात है। समाते नहीं हो, हजम नहीं होता, रस नहीं बनता और शक्ति नहीं मिलती। जीभ तक खा लिया तो रस नहीं बनेगा, शक्ति नहीं मिलती। समाने के बाद ही शक्ति का स्वरूप बनता है। समाया नहीं तो जीभ-रस है। समाया तो शक्ति है। सुनने का रस आया, समझ में आया, समझा किन्तु समाया नहीं, प्रैक्टिकल में नहीं लाया। जितना धारणा में आता है, संस्कार बन जाता है तब ही प्रैक्टिकल सफलता का स्वरूप दिखाई पड़ता है। नॉलेजफुल का अर्थ क्या है? नॉलेजफुल का अर्थ है हरेक कर्मेन्द्रियों में नॉलेज समा जाए। क्या करना है और क्या नहीं? तो धोखा खाने की बात रहेगी? ऑखे और वृत्ति धोखा नहीं खायेंगी जब आत्मा में नॉलेज आ जाती है तो सर्व इन्द्रियों में नॉलेज समा जाती है। जैसे भोजन से शक्ति भर जाती है तो शक्ति के आधार से काम होता है। अभी नॉलेज को समाना है। हरेक कर्मेन्द्रियों को नॉलेजफुल बनाओ।..."


19.09.1975
"...अगर अपने शुद्ध संकल्प रूपी आधार अर्थात् भोजन को छोड़ अशुद्ध आहार स्वीकार करते हो अर्थात् संकल्प के वशीभूत हो जाते हैं तो ऐसे मलेच्छ भोजन वाले मलेच्छ आत्मा कहलायेंगे अर्थात् महापापी, आत्मघाती कहलायेंगे। इसलिए इस महापाप के संकल्प से भी स्वयं को सदा बचाने का प्रयत्न करो। नहीं तो इस महापाप का दण्ड बहुत कड़े रूप में भोगना पड़ेगा। इसलिए दिव्य बुद्धि और सदा शुद्ध आहारी बनो। ..."


01.10.1975
"...जैसे प्रेज़ीडेन्ट है या कोई भी विशेष व्यक्ति या बड़े-बड़े राजा होते हैं, तो उनका हर भोजन पहले चेक होता है, फिर वे स्वीकार करते हैं। उन्हें कोई भी वस्तु देंगे तो पहले उनकी चैकिंग होती है कि कहीं उसमें कुछ अशुद्धि या मिक्स तो नहीं है? वह बड़े आदमी आपके आगे क्या हैं? आपके राज्य में ये बड़े आदमी पाँव भी नहीं रख सकते। अब भी आपके पाँव पर पड़ने वाले हैं। जब राजाओं के भी राजा बनते हो और सृष्टि के बीच श्रेष्ठ आत्मा कहलाते हो, तो आप विशेष आत्माओं का यह संकल्प रूपी बुद्धि का जो भोजन है, उसके लिये भी चैकिंग होनी चाहिए। जब बिना चैकिंग के स्वीकार करते हो, इसलिए धोखा खाते हो। तो हर संकल्प को पहले चेक करो। जैसे सोने को यन्त्र द्वारा चेक करते हैं कि सच्चा है या मिक्स है, रीयल है अथवा रोल्ड गोल्ड है? ऐसे ही यह चेक करो कि संकल्प बापदादा समान है या नहीं है? इस आधार से चेक करो, फिर वाणी और कर्म में लाओ। आधार को भूल जाते हो, तब संस्कार शूद्र-पने के और विष के मिक्स हो जाते हैं। जैसे भोजन में विष मिक्स हो जाय तो वह मूर्छित कर देता है, ऐसे ही संकल्प रूपी आहार व भोजन में पुराने शुद्रपन का विष मिक्स हो जाता है, तो बाप की स्मृति और समर्थी स्वरूप से मूर्छित हो जाते हो। ..."

 

23.01.1977
"...बुद्धि द्वारा बार-बार अशरीरीपन की एक्सरसाइज करो और बुद्धि का भोजन संकल्प है उनकी परहेज रखो। जिस समय जो संकल्प रूपी भोजन स्वीकार करना हो उस समय वही स्वीकार करो। व्यर्थ संकल्प रूपी एक्सट्रा (Extra) भोजन न हो। तो व्यर्थ संकल्पों के भोजन की परहेज हो। परहेज के लिए सेल्फ कन्ट्रोल (Self Control;स्वयं पर नियन्त्रण) चाहिए। नहीं तो परहेज पूर्ण रीति नहीं कर सकते। तो सेल्फ कन्ट्रोल अर्थात् जिस समय जैसे चाहे, वहाँ बुद्धि लगा सके तब ही महीन बुद्धि बन जायेंगे। ‘महीनता ही महानता है।’ जैसे शरीर की रीति से हल्कापन परसनैलिटी (Personality) है; वैसे बुद्धि की महीनता व आत्माओं का हल्कापन ब्राह्मण जीवन की परसनैलिटी है।..."


26.01.1977
"...जैसे भक्त लोग स्थूल भोजन का व्रत रखते हैं, तो सार्विसेबल ज्ञानी तू आत्माओं को व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म की हलचल से परे एकाग्रता अर्थात् रूहानियत में रहने का व्रत लेना पड़े। तब आत्माओं को ज्ञान सूर्य का चमत्कार दिखा सकेंगे।..."


09.05.1977
"...सदा शुद्ध संकल्प का भोजन बुद्धि द्वारा ग्रहण करने वाला, सदा की सर्व आत्माओं द्वारा वा रचना द्वारा गुण धारण करने वाला, उसी को मोती चुगने वाला दिखाया है।..."


14.05.1977
"...प्रश्नः- कौन सा भोजन आत्मा को सदा शक्तिशाली बना देगा?

उत्तरः- खुशी का। कहते हैं ना खुशी जैसी खुराक नहीं। खुशी में रहने वाला शक्तिशाली होगा।..."


05.06.1977
"...जैसे शरीर की क्रियाएं - खाना-पीना-चलना स्वत: ही सहज रीति करते रहते हो, तो शरीर की क्रियाओं के साथ-साथ आत्मा का मार्ग, आत्मा का भोजन, आत्मा का पुरूषार्थ अर्थात् चलना, आत्मा का सैर, आत्मा रूप का देखना वा आत्मा रूप का सोचना क्या है - यह साथ-साथ करते चलो तो ‘लौकिक से अलौकिक’ जीवन सहज अनुभव करेंगे।..."


13.01.1978
"...तपस्वी की तपस्या सिर्फ बैठने के समय नहीं, तपस्या अर्थात् लगन, चलते-फिरते भोजन करते भी लगन है ना। एक की याद में, एक के साथ में भोजन स्वीकार करना यह तपस्या हुई ना। ..."

 

12.01.1979
"...भोजन बनाते हो, भोजन बनाने के समय पहले भोग लगाना है अर्थात् प्यारे ते प्यारे बाप को स्वीकार कराना है - इस स्मृति से भोजन बनाओ कि किसको खिलाना है! आजकल की दुनिया में अगर कोई प्राईम मिनिस्टर वा प्रेजीडेन्ट आपके पास खाने आते हैं कितनी खुशी होती है लेकिन बाप के आगे यह सब क्या हैं! तो सदा बाप आपके साथ भोजन खाते हैं - भक्त बिचारे बार-बार घण्टियाँ बजा-बजा कर थक जाते हैं, बुलाते-बुलाते भूल भी जाते हैं - लेकिन बच्चों के साथ बाप का वायदा है सदा साथ रहेंगे। तुम्हीं से खावें, तुम्हीं से बैठें, तो इससे बड़ी खुशी और क्या चाहिए - तो भोजन के समय भी तुम्हीं से खाऊं यह सलोगन याद रखो - ऐसे खुशी के खजाने को यूज़ करो। और आगे चलो।..."


19.11.1979
"... पहले कच्चे भोजन का भोग लगाते फिर पक्का कर देते हो। और फिर उन पॉइन्टस को अर्थात् भोग को अकेले नहीं खाते, अपने साथ-साथ पण्डे, कुटुम्ब भी बिठाते हो अर्थात् और भी परिवार के साथी बनाते हो, उन की बुद्धि को भी यह भोजन स्वीकार कराते हो। लेकिन अन्त में क्या करना पड़ता हैं, ज्ञान-सागर बाप की याद में बीती-सो-बीती के ज्ञान-सागर की लहर में, स्व उन्नति की लहर में, हाई जम्प लगाने की लहर में, स्मृति स्वरूप की स्मृति की लहर में, मास्टर नालेज़फुल स्वरूप की लहर में, इन अनेक लहरों के बीच इन गुड़ियों को अथवा मूर्तियों को डुबोना ही पड़ता है। लेकिन इतने सारे समय को क्या कहेंगे? इस सारे गुड़ियों के खेल को,जैसे भक्ति वालों को कहते हो वेस्ट आफ टाइम और मनी, वैसे ही संगम का सर्वश्रेष्ठ समय और ज्ञान वा शक्तियों के खज़ाने को इतना व्यर्थ कर देते हो। तो यह छोटी-छोटी बातें क्या हुई? गुड़ियों का खेल। इस खेल में कभी भी अपने को व्यस्त मत करो। सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य को देखो।..."

 

30.11.1979
"...कुमार तो डबल निर्बन्धन हैं कोई पूँछ नहीं है। सदा लकी रहना, घबराना नहीं, अपने हाथ से भोजन बनाना बहुत अच्छा है। अपने लिए और बाप के लिए प्यार से बनाओ। पहले बाप को खिलाओ। अपने को अकेला समझते हो तो थक जाते हो। सदा यह समझो कि हम दो हैं, दूसरे के लिए बनाना है तो विधिपूर्वक प्यार से बनाओ तो बहुत अच्छा लगेगा।..."


03.12.1979
"...टीचर्स का महत्व तब है जब सदा मन, वाणी, कर्म, सम्पर्क में महानता दिखायें क्योंकि टीचर्स को महान बनने के साधन मिले हुए हैं। वातावरण, संग शुद्ध भोजन, सेवा, सम्पर्क और सम्बन्ध, सब महान बनने के साधन हैं। ..."


10.12.1979
"...अगर कर्मणा में मार्क्स कम होंगी तो भी पास विद ऑनर नहीं बन सकेंगी। बैलेन्स होना चाहिए। इसको सेवा न समझना यह भी राँग हैं। इन्टरनल सेवा का यह भी एक भाग है। अगर प्यार से योगयुक्त होकर भोजन न बनाओ तो अन्न का मन पर प्रभाव कैसे होगा। स्थूल कार्य नहीं करेंगे तो कर्मणा की मार्क्स कैसे जमा होगी। तो टीचर्स अर्थात् स्पीकर नहीं, क्लास कराने वाली, कोर्स कराने वाली नहीं, जैसा समय जैसी सबजेक्ट उसमें ऐसे ही रूचि पूर्वक सेवा में सफलता प्राप्त करें, इसको कहा जाता है - ऑलराउन्डर। ऐसे हो ना कि इन्टरनल वाली और हैं, एक्सटर्नल वालीं और हैं। दोनों का ही आपस में सम्बन्ध है।..."

"...जैसे भोजन खाना एक निजी कार्य है न, वह कभी भूलते हो क्या? आराम करना, यह निजी कार्य है ना, अगर एक दिन भी 2-4 घन्टे आराम कम करेंगे तो चिन्तन चलेगा नींद कम की। जैसे उसको इतना आवश्यक समझते हो वैसे स्वचिन्तन और स्व की चैकिंग, इसको आवश्यक कार्य न समझने के कारण अलबेलापन आता है। पहले वह आवश्यक समझते हो यह नहीं। अमृतबेले रोज़ इस आवश्यक कार्य को री-रीफ्रेश करो तभी सारा दिन उसका बल मिलेगा। ..."


17.12.1979
"...हँसों का भोजन अमूल्य मोती होते हैं। ऐसे ही आप सब होली हँसों के बुद्धि का भोजन ज्ञान रतन है। अमृतबेले से बापदादा के साथ रूह-रूहान द्वारा, रूहानी मिलन द्वारा ज्ञान रतनों को धारण व्रते हो। शक्तियों को धारण करते हो। ऐसे ही सारा दिन मनन शक्ति द्वारा धारण किये हुए रत्नों को व शक्तियों को अपने जीवन में धारण कर और औरों को कराते हो।

अमृतबेले मिलन मनाने की शक्ति, ग्रहण करने अर्थात् धारण करने की शक्ति, बाप द्वारा हर रोज के विशेष शुद्ध संकल्प रूपी प्रेरणा को केच करने की शक्ति सबसे ज्यादा आवश्यक है। अमृतबेले के समय हरेक धारण करने की शक्ति द्वारा धारणामूर्त बन जाते हैं। ..."


19.12.1979
"...बुद्धि का भोजन है - शुद्ध संकल्प। जो खिलाएं वही खायेंगे - यह वायदा है तो फिर व्यर्थ संकल्प का भोजन क्यों करते हो? जैसे मुख द्वारा तमोगुणी भोजन, अशुद्ध भोजन नहीं खा सकते हो, ऐसे ही बुद्धि द्वारा व्यर्थ संकल्प वा विकल्प का अशुद्ध भोजन कैसे खा सकते हो? जो खिलायेंगे, वह खायेंगे फिर तो यह राँग हो जाता है। कहना और करना समान करने वाले हो ना? तो मन बुद्धि के लिए सदा यह भी वायदा याद रखो तो सहज योगी बन जावेंगे। ..."

"...जैसे कोई घर में आता है तो उसे पानी तो पूछा जाता है ना! अगर ऐसे ही चला जाए तो बुरा समझते हैं ना! ऐसे ही सम्पर्क में जो आये तो उसे बाप के परिचय का पानी जरूर पूछो। थोड़ा सुनाया तो पानी पूछा - सप्ताह कोर्स कराया तो ब्रह्मा भोजन कराया। कुछ-न-कुछ देना जरूर। क्योंकि दाता के बच्चे हो।..."


07.01.1980
"...वहाँ वैराइटी प्रकार का भोजन खायेंगे और यहाँ ब्रह्मा भोजन खाते जिसकी महिमा देवताओं के भोजन से भी अति श्रेष्ठ है। तो सदा सतयुगी प्रालब्ध और वर्तमान समय के महत्व और प्राप्ति को साथ साथ रखो। तो वर्तमान समय को जानते हुए हर सेकेण्ड और संकल्प को श्रेष्ठ बना सकेंगे। ..."


15.03.1981
"...बापदादा द्वारा बुद्धि के लिए जो रोज शक्तिशाली भोजन मिलता है, उसे हजम करते रहो तो कभी भी कमजोरी आ नहीं सकती। माया का वार हो नहीं सकता।..."


18.03.1981
"...जैसे भोजन हजम करने से खून बनता है, फिर वही शक्ति का काम करता, ऐसे मनन करने से आत्मा की शक्ति बढ़ती है।..."


25.03.1981
"... द्वापर के राजे आपके आगे क्या लगते हैं! आप लोग तो फिर भी अच्छे राजे बने होंगे। लेकिन गिरे हुए राजाओं की भी इतनी खातिरी होती तो आप सबका संकल्प भी बुद्धि का भोजन है। बोल भी मुख का भोजन ही है। कर्म - हाथों का, पाँव का भोजन है। तो सब चेक करना चाहिए ना।..."

"...36 प्रकार के भोजन भी मधुबन वालों को बार-बार मिलते हैं। तो 36 गुण भी तो धारण करने पड़ेंगे। हरेक मधुबन निवासी को पवित्रता की लाइट के ताजधारी तो होना ही है। लेकिन डबल ताज। एक गुणों का ताज, दूसरा - पवित्रता का ताज जिस ताज में कम से कम 36 हीरे तो होने ही चाहिए।..."


07.04.1981
"...जैसे पाचन शक्ति द्वारा भोजन शरीर की शक्ति, खून के रूप में समा जाता है। भोजन की शक्ति अपने शरीर की शक्ति बन जाती है। अलग नहीं रहती। ऐसे ज्ञान की हर पाइंट मनन शक्ति द्वारा स्व की शक्ति बन जाती है। ..."


11.04.1981
"...कर्त्तव्य का यादगार भागवत बना दिया है। चरित्रों की अनेक कहानियाँ बना दी हैं। यह सब सत्य हो गये। किस कारण? सत्यता की शक्ति कारण। आपकी दिनचर्या भी सत् हो गई है। भोजन खाना, अमृत पीना सब सत् हो गया है। आपके चित्रों को भी उठाते हैं, बिठाते हैं, परिक्रमा लगवाते हैं, भोग लगाते हैं, अमृत रखते और पीते हैं। हर कर्त्तव्य वा हर कर्म का यादगार बन गया है।..."


14.10.1981
"...जैसे बड़े आदमी पहले भोजन को चेक कराते हैं फिर खाते हैं। तो यह संकल्प भी बुद्धि का भोजन है, इसलिए आप बच्चों को संकल्प की भी चेकिंग कर फिर स्वीकार करना है अर्थात् कर्म में लाना है। संकल्प ही चेक हो गया तो वाणी और कर्म स्वत: ही चेक हो जायेंगे। बीज तो संकल्प है ना! आप जैसे बड़े और कल्प में हुए ही नहीं हैं।..."

"...मुरली ही ताजा भोजन है, शक्तिशाली भोजन है। जो भी शक्तियाँ चाहिए, उन सबसे सम्पन्न रोज का भोजन मिलता है। जो रोज शक्तिशाली भोजन ग्रहण करता है वह कमजोर हो नहीं सकता। रोज यह भोजन तो खाते हो न, उस भोजन का व्रत रखने की जरूरत नहीं। रोज ऐसे शक्तिशाली भोजन मिलने से मास्टर सर्वशक्तिवान रहेंगे। भोजन के साथ-साथ भोजन को हजम करने की भी शक्ति चाहिए। अगर सिर्फ सुनने की शक्ति है, मनन करने की शक्ति नहीं, तो भी शक्तिशाली नहीं बन सकते। सुनने की शक्ति अर्थात् भोजन खाया और मनन शक्ति अर्थात् भोजन को हजम किया। दोनों शक्ति वाले कमजोर नहीं हो सकते।..."


06.01.1982
"...पवित्रता ब्राह्मण जीवन के विशेष जन्म की विशेषता है। पवित्र संकल्प ब्राह्मणों की बुद्धि का भोजन है। पवित्र दृष्टि ब्राह्मणों के आँखों की रोशनी है। पवित्र कर्म ब्राह्मण जीवन का विशेष धन्धा है। पवित्र सम्बन्ध और सम्पर्क ब्राह्मण जीवन की मर्यादा है।..."


08.01.1982
"...भोजन बनाते हो तो रूहानियत का बल भोजन में भर देते हो, इसलिए भोजन ‘ब्रह्मा भोजन' बन जाता है। शुद्ध अन्न बन जाता है। प्रसाद के समान बन जाता है। तो स्थूल सेवा में भी रूहानी सेवा भरी है। ऐसे निरन्तर सेवाधारी, निरन्तर मायाजीत हो जाते हैं। विघ्न विनाशक बन जाते हैं। ..."


22.01.1982
"...36 प्रकार के भोजन भी अच्छे तो सूखी रोटी और गुड़ भी अच्छा। हर वस्तु अच्छी, हर व्यक्ति अच्छा। ऐसे नहीं - यह ज्यादा अच्छा लगता है! यह वस्तु ज्यादा अच्छी लगती है ऐसा समझकर कार्य में नहीं लगाओ। दवाई है, दवाई करके भले खाओ। लेकिन अच्छा लगता है इसलिए खाओ, यह नहीं। अच्छा अर्थात् अट्रैक्शन जायेगी। तो यह है मोह का अंश। खाओ, पियो, मौज करो लेकिन अंश को विदाई दे करके न्यारे बन प्रयोग करने में प्यारे बनो।..."


29.03.1982
"...अवगुण को देखना, अवगुण को धारण करना ऐसी ही भूल है जैसे स्थूल में अशुद्ध भोजन पान करना। स्थूल भोजन में अगर कोई अशुद्ध भोजन स्वीकार करता है तो भूल महसूस करते हो ना! लिखते हो ना कि खान-पान की धारणा में कमजोर हूँ। तो भूल समझते हो ना! ऐसे अगर किसी का अवगुण अथवा कमज़ोरी स्वयं में धारण करते हो तो समझो अशुद्ध भोजन खाने वाले हो। सच्चे वैष्णव नहीं, विष्णु वंशी नहीं। लेकिन राम सेना हो जायेंगे। इसलिए सदा गुण ग्रहण करने वाले - ‘गुण मूर्त' बनो।..."


13.06.1982
"...ऐसी परेशान आत्माओं को अगर जरा भी अंचली मिल जाती तो वही उन्हों के लिए एक जीवन का वरदान हो जाता। जिसको भी चांस मिले वह बोलते-बोलते शान्ति में ले जाएँ। एक सेकण्ड भी अनुभूति में उन्हों को ले जाएँ तो वह बहुत-बहुत थैंक्स मानेंगे। वातावरण ऐसा बना दो जो सभी ऐसे अनुभव करें जैसे कोई शान्ति की किरण आ गई है। चाहे एक, आधा सेकण्ड ही अनुभव हो क्योंकि यह तो वायुमण्डल द्वारा होगा ना! ज्यादा समय नहीं रह सकेंगे। एक आधा सेकण्ड भी वायुमण्डल ऐसा हल्का बन जाए तो अन्दर से बहुत शुक्रिया मानेंगे। क्योंकि विचारे बहुत हलचल में हैं। उन्हों को देख बापदादा को तो रहम आता है। ना रात की नींद, न दिन की, भोजन भी खाने की रीति से नहीं खाते। जैसे कि ऊपर में बोझ पड़ा हुआ है। क्या होगा, कैसे होगा! तो ऐसी आत्माओं को एक झलक भी मिल जाए तो क्या मानेंगे! उन्हों के लिए तो समझो सूर्य नीचे उतर आया। एक झलक ही चाहिए। ज्यादा समय तो वह शक्ति को धारण भी नहीं कर सकेंगे। ..."


06.01.1983
"...बापदादा भी वतन में हर बच्चे को फरिश्ते आकारी रूप में आह्वान कर सम्मुख बुलाते हैं और आकारी रूप में अपने संकल्प द्वारा सूक्ष्म सर्व शक्तियों की विशेष बल भरने की खातिरी करते हैं। एक है अपने पुरूषार्थ द्वारा शक्ति की प्राप्ति करना। यह है मात-पिता के स्नेह की पालना के रूप में विशेष खातिरी करना। जैसे यहाँ भी किस-किस की खातिरी करते हो। नियम प्रमाण रोज के भोजन से विशेष वस्तुओं से खातिरी करते हो ना। एक्स्ट्रा देते हो। ऐसे ब्रह्मा माँ का भी बच्चों में विशेष स्नेह है। ब्रह्मा माँ वतन में भी बच्चों की रिमझिम बिना रह नहीं सकते। रूहानी ममता है। ..."

 

14.04.1983
"...जैसे भोजन पहले अलग होता है, खाने वाला अलग होता है। लेकिन जब हजम कर लेते तो वही भोजन खून बन शक्ति के रूप में अपना बन जाता है। ऐसे ज्ञान भी मनन करने से अपना बन जाता, अपना खज़ाना है यह महसूसता आयेगी।..."


17.04.1983
"...संकल्प भी बुद्धि का भोजन है। अगर अशुद्ध वा व्यर्थ भोजन खाया तो सदा तन्दुरूस्त नहीं रह सकते। व्यर्थ चीज़ को फेंका जाता, इकट्ठा नहीं किया जाता इसलिए व्यर्थ संकल्प को भी समाप्त करो, इसी को ही होलीहंस कहा जाता है।’’ ..."


09.05.1983
"...बापदादा मधुबन वरदान भूमि में सम्मुख देखते हुए याद प्यार दे रहे हैं। और सभी से गुडमोर्निंग कर रहे हैं। गुडमोर्निंग अर्थात् सारा दिन ऐसा ही शुभ और श्रेष्ठ रहे। सारा दिन इसी याद प्यार की पालना में रहें। यह याद प्यार ही श्रेष्ठ पालना है।...‘गुडमोर्निंग’ को शक्तिशाली अमृत कहो, वा औषधि कहो, वा श्रेष्ठ भोजन कहो, जो भी कहो। ऐसे शक्तिशाली बनाने की गुडमोर्निंग है ..."


17.05.1983
"...कभी खाने पीने की तरफ कहाँ आकर्षण तो नहीं जाती। थोड़ा बिस्कुट या आइस्क्रीम खा लें, ऐसी इच्छा तो नहीं होती! सदैव याद में रहकर बनाया हुआ भोजन - ‘ब्रह्मा भोजन’ खाने वाली - ऐसे पक्के!..."


14.12.1983
"...पहला-पहला ताजा माल तो मधुबन वाले खाते हैं। दूसरे तो एक टर्न में एक बारी विशेष ब्रह्मा भोजन खाते। आप तो रोज खाते। सूक्ष्म भोजन, स्थूल भोजन सब गर्म, ताजा मिलता है। ..."


24.12.1983
"...ब्राह्मण परिवार संगम के बड़े दिन पर मिलकर आत्मा का भोजन - ‘ब्रह्मा भोजन’ प्यार से खाते हैं। इसलिए यादगार रूप में भी सपरिवार मिलकर खाते-पीते मौज मनाते हैं। सारे कल्प में मौज मनाने का दिन वा मौजों का युग - ‘संगमयुग’ है।..."

"...ब्रह्मा भोजन खाओ और खुशी के गीत गाओ। और कोई िफकर है क्या! बेफिकर बादशाह सारा दिन क्या करते हैं! मौज मनाते हैं ना। मन की मौज मनाओ। हद के दिन की मौज नहीं मनाना। बेहद के दिन की, बेहद के बेगम की मौज मनाओ। समझा! ब्राह्मण संसार में आये हो, किसलिए? मौज मनाने के लिए। ..."


26.02.1984
"...किसी भी कमज़ोरी वा अवगुण रूपी अपवित्रता का संकल्प भी धारण नहीं किया हो, संकल्प में जन्म से वैष्णव संकल्प बुद्धि का भोजन है। जन्म से वैष्णव अर्थात् अशुद्धि वा अवगुण, व्यर्थ संकल्प को बुद्धि द्वारा, मंसा द्वारा ग्रहण न किया हो। इसी को ही सच्चा वैष्णव वा बाल ब्रह्मचारी कहा जाता है। ..."


28.02.1984
"...आप सभी बाप के सहयोगी बनने में व्यर्थ संकल्प के भोजन का व्रत लेते हो कि कभी भी बुद्धि में अशुद्ध व्यर्थ संकल्प स्वीकार नहीं करेंगे। यह व्रत अर्थात् दृढ़ संकल्प लेते हो और भक्त लोग अशुद्ध भोजन का व्रत रखते हैं। और साथ-साथ आप सदा के लिए जागती ज्योति बन जाते हो और वह उसके याद स्वरूप में जागरण करते हैं। आप बच्चों के अविनाशी रूहानी अन्तर्मुखी विधियों को भक्तों ने स्थूल बाहरमुखी विधियाँ बना दी हैं। ..."


15.04.1984
"...वह तो प्रसाद का एक कणा मिलने के प्यासे हैं और आपको तो ब्रह्मा भोजन पेट भरकर मिलेगा। तो कितने भाग्यवान हो! इस महत्व से ब्रह्मा भोजन खाना तो सदा के लिए मन भी महान बन जायेगा।..."

 

24.04.1984
"...36 प्रकार का भोजन भी इस ब्रह्मा भोजन के आगे कुछ नहीं है। क्योंकि डायरेक्ट बापदादा को भोग लगाकर इस भोजन को परमात्म प्रसाद बना देते हो। प्रसाद की वैल्यु आज अन्तिम जन्म में भी भक्त आत्माओं के पास कितनी हैं? आप साधारण भोजन नहीं खाते। प्रभु प्रसाद खा रहे हो। जो एक-एक दाना पद्मों से भी श्रेष्ठ है। ..."


03.05.1984
"...संगमयुग, ब्राह्मण जीवन दिलाराम की दिल पर आराम करने का समय है। दिल पर आराम से रहो। ब्रह्मा भोजन खाओ। ज्ञान-अमृत पियो। शक्तिशाली सेवा करो और आराम मौज से दिलतख्त पर रहो। हैरान क्यों होते हो। हे राम नहीं कहते। हे बाबा या हे दादी-दीदी तो कहते हो ना! हे बाबा, हे दादी-दीदी कुछ सुना। कुछ करो। यह हैरान होना है। आराम से रहने का युग है। रूहानी मौज करो। रूहानी मौजों में यह सुहावने दिन बिताओ। विनाशी मौज नहीं करना। गाओ, नाचो, मुरझाओं नहीं। परमात्म मौजों का समय अब नहीं मनाया तो कब मनायेंगे! रूहानी शान में बैठो।..."


19.11.1984
"...अगर किसी को पानी की प्यास हो और आप बढ़िया भोजन दे दो तो वह सन्तुष्ट होगा? ऐसे वर्तमान समय शान्ति और शक्ति की आवश्यकता है। मंसा की शान्ति द्वारा आत्माओं को मन की शान्ति अनुभव करा सकते हो! वाणी द्वारा कानों तक आवाज़ पहुँचा सकते हो लेकिन वाणी के साथ मंसा शक्ति द्वारा मन तक पहुँचा सकते हो! मन का आवाज़ मन तक पहुँचता है। सिर्फ मुख का आवाज़ कानों और मुख तक रह जाता। सिर्फ वाणी से वर्णन शक्ति और मन से मनन शक्ति, मगन स्वरूप की शक्ति दोनों की प्राप्ति होती है। ..."


30.01.1985
"...सतयुग में यह 5 तत्व देवताओं के सुख के साधन बन जाते हैं। यह सूर्य आपका भोजन तैयार करेगा तो भण्डारी बन जायेगा ना! यह वायु आपका नैचरल पंखा बन जायेगी। आपके मनोरंजन का साधान बन जायेगी। वायु लगेगी वृक्ष हिलेंगे और वह टाल टालियाँ ऐसे झूलेंगी जो उन्हों के हिलने से भिन्न-भिन्न साज़ स्वत: ही बजते रहेंगे। तो मनोरंजन का साधन बन गया ना! यह आकाश आप सबके लिए राज्य पथ बन जायेगा। विमान कहाँ चलायेंगे? यह आकाश ही आपका पथ बन जायेगा।..."


15.03.1985
"...जब मधुबन में सम्पर्क वाली आत्मायें आती हैं और देखती हैं इतनी संख्या की आत्माओं का भोजन बनता है और सब कार्य होता है तो देख-देख कर समझती हैं यह इतना हार्डवर्क कैसे करते हैं! उन्हों को बड़ा आश्चर्य लगता है। इतना बड़ा कार्य कैसे हो रहा है! लेकिन करने वाले ऐसे बड़े कार्य को भी क्या समझते हैं? सेवा के महत्व के कारण यह तो खेल लगता है। मेहनत नहीं लगती। ऐसे महत्व के कारण बाप से मुहब्बत होने के कारण मेहनत का रूप बदल जाता है। ..."


27.03.1985
"...कोई भी चीज़ अथवा भोजन जब तैयार हो जाता है तो किनारा छोड़ देता है ना! तो सम्पूर्ण होना अर्थात् किनारा छोड़ना। किनारा छोड़ना माना किनारे हो गये। सहारा एक ही अविनाशी सहारा है। न व्यक्ति को, न वैभव वा वस्तु को सहारा बनाओ। इसको ही कहते हैं - ‘‘कर्मातीत’’।..."


25.11.1985
"...यह जो कहावत है - ‘अपना घर दाता का दर’। यह कौन से स्थान के लिए है? वास्तविक दाता का दर अपना घर तो ‘मधुबन’ है ना। अपने घर में अर्थात् दाता के घर में आये हो। घर अथवा दर कहो बात एक ही है। आने घर में अपने से आराम मिलता है ना। मन का आराम। तन का भी आराम, धन का भी आराम। कमाने के लिए जाना थोड़े ही पड़ता। खाना बनाओ तब खाओ इससे भी आराम मिल जाता, थाली में बना बनाया भोजन मिलता है। यहाँ तो ठाकुर बन जाते हो। जैसे ठाकुरों के मंदिर में घण्टी बजाते है ना। ठाकुर को उठाना होगा, सुलाना होगा तो घण्टी बजाते। भोग लगायेंगे तो भी घण्टी बजायेंगे। आपकी भी घण्टी बजती है ना। आजकल फैशनेबल हैं तो रिकार्ड बजता है। रिकार्ड से सोते हो, फिर रिकार्ड से उठते हो तो ठाकुर हो गये ना। यहाँ का ही फिर भक्तिमार्ग में कापी करते हैं। यहाँ भी 3, 4 बार भोग लगता है। चैतन्य ठाकुरों को 4 बजे से भोग लगाना शुरू हो जाता है। अमृतवेले से भोग शुरू होता। चैतन्य स्वरूप में भगवान सेवा कर रहा है बच्चों की। भगवान की सेवा तो सब करते हैं, यहाँ भगवान सेवा करता। ..."


30.12.1985
"...ड्यूटी बजाना यह आज्ञाकारी बनने की निशानी तो है लेकिन बेहद की विशाल बुद्धि, विशाल उमंग-उत्साह सिर्फ इसको नहीं कहा जाता। विशालता की निशानी यह है - हर समय अपनी मिली हुई ड्यूटी में, सेवा में नवीनता लाना। चाहे भोजन खिलाने की, चाहे भाषण करने की ड्यूटी हो लेकिन हर सेवा में हर समय नवीनता भरना - इसको कहा जाता है विशालता। ..."


07.03.1986
"...अवतार अवतरित होते ही हैं - श्रेष्ठ कर्म करने के लिए। उनको जन्म नहीं कहते हैं, अवतरण कहते हैं। ऊपर की स्थिति से नीचे आते हैं - यह है अवतरण। तो ऐसी स्थिति में रहकर कर्म करने से साधारण कर्म भी अलौकिक कर्म में बदल जाते हैं। जैसे दूसरे लोग भी भोजन खाते और आप कहते हो ‘ब्रह्मा भोजन’ खाते हैं। फर्क हो गया न। चलते हो लेकिन आप फरिश्ते की चाल चलते, डबल लाइट स्थिति में चलते। तो अलौकिक चाल अलौकिक कर्म हो गया। तो सिर्फ आज का दिन अवतरण का दिन नहीं लेकिन संगमयुग ही अवतरण दिवस है।..."


10.03.1986
"...सभी चमकते हुए सर्व के स्नेही आत्मायें हो ना! यहाँ स्नेह के बिना और कुछ है ही नहीं। उठो तो भी स्नेह से गुडमार्निंग करते, खाते हो तो भी स्नेह से ‘ब्रह्मा भोजन’ खाते हो। चलते हो तो भी स्नेह से बाप के साथ, हाथ मे हाथ मिलाकर चलते हो।..."


19.03.1986
"...हर कार्य में, हर कदम में मधुबन अर्थात् बाप की याद है या बाप की पढ़ाई है या बाप का ब्रह्मा भोजन है या बाप से मिलन है। मधुबन स्वत: ही बाप की याद दिलाने वाला है। कहाँ भी रहते मधुबन की याद आना अर्थात् विशेष स्नेह, लिफ्ट बन जाता है। ..."


18.03.1987
"...जैसे शरीर के भोजन की भूख है, वैसे मन की भूख है - शान, मान, सैलवेशन, साधन। यह मन की भूख है। तो जैसे शरीर की तृप्ति वाले सदा सन्तुष्ट होंगे, वैसे मन की तृप्ति वाले सदा सन्तुष्ट होंगे। सन्तुष्टता तृप्ति की निशानी है। अगर तृप्त आत्मा नहीं होंगे, चाहे शरीर की भूख, चाहे मन की भूख होगी तो जितना भी मिलेगा, मिलेगा भी ज्यादा लेकिन तृप्त आत्मा न होने कारण सदा ही अतृप्त रहेंगे। असन्तुष्टता रहती है। जो रॉयल होते हैं, वह थोड़े में तृप्त होते हैं। रॉयल आत्माओं की निशानी - सदा ही भरपूर होंगे, एक रोटी में भी तृप्त तो 36 प्रकार के भोजन में भी तृप्त होंगे। और जो अतृप्त होंगे, वह 36 प्रकार के भोजन मिलते भी तृप्त नहीं होंगे क्योंकि मन की भूख है। सच्चे आशिक की निशानी - सदा तृप्त आत्मा होंगे। तो तीनों ही निशानीयां चेक करो। सदैव यह सोचो - ‘हम किसके आशिक हैं! जो सदा सम्पन्न है, ऐसे माशूक के आशिक हैं!' तो सन्तुष्टता कभी नहीं छोड़ो। सेवा छोड़ दो लेकिन सन्तुष्टता नहीं छोड़ो। जो सेवा असन्तुष्ट बनावे वो सेवा, सेवा नहीं। सेवा का अर्थ ही है - मेवा देने वाली सेवा। तो सच्चे आशिक सर्व हद की चाहना से परे, सदा ही सम्पन्न और समान होंगे।..."


20.03.1987
"... इस भूमि पर सहज याद का जो अनुभव होता है - यह भी महान प्रसाद है। तो आप अब प्रसाद ही खाते हो, भोजन नहीं खाते। जो सदा प्रसाद खाये, वह क्या हुआ? इतनी पुण्य आत्मायें हुए ना। महान आत्मायें हुए ना। और जो भी यहाँ आते हैं, सब महान आत्माओं की नजर से देखते हैं। तो महान हो, महान सेवा के निमित्त हो क्योंकि महायज्ञ है ना। महायज्ञ की सेवा, वह भी महान सेवा हो गई। स्वयं भी महान, सेवा भी महान, प्राप्ति्ा भी महान। ..."


01.10.1987
"...भाषण करने वालों ने भाषण अच्छे किये, स्टेज सजाने वालों ने स्टेज अच्छी सजाई और विशेष योगयुक्त भोजन बनाने वाले, खिलाने वाले, सब्जी काटने वाले रहे। पहले फाउन्डेशन तो सब्जी कटती है। सब्जी नहीं कटे तो भोजन क्या बनेगा? सब डिपार्टमेन्ट वाले आलराउण्ड (सर्व प्रकार की) सेवा के निमित्त रहे। सुनाया ना - अगर सफाई वाले सफाई नहीं करते तो भी प्रभाव नहीं पड़ता। हर एक का चेहरा ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न नहीं होता तो सेवा की सफलता कैसी होती। सभी ने जो भी कार्य किया, स्नेह भरकर के किया। इसलिए, उन्हों में भी स्नेह का बीज पड़ा। उमंग-उत्साह से किया, इसलिए उन्हों में भी उमंग-उत्साह रहा। अनेकता होते भी स्नेह के सूत्र के कारण एकता की ही बातें करते रहे। यह वायुमण्डल के छत्रछाया की विशेषता रही। वायुमण्डल छत्रछाया बन जाता है। ..."


05.10.1987
"...साइंस की इन्वेन्शन विदेश में ज्यादा होती है। तो साइलेन्स के पावर का आवाज भी वहाँ से सहज फैलेगा। सेवा का लक्ष्य तो है ही, सभी को उमंग-उत्साह भी है। सेवा के बिना रह नहीं सकते। जैसे भोजन के बिना रह नहीं सकते, ऐसे सेवा के बिना भी रह नहीं सकते। इसलिए बापदादा खुश है।..."


17.10.1987
"...ईश्वरीय याद में दाल-रोटी भी कितनी श्रेष्ठ लगती है! दुनिया के 36 प्रकार हों और आप की दाल-रोटी हो तो श्रेष्ठ क्या लगेगा? दाल-रोटी अच्छी है ना। क्योंकि प्रसाद है ना। जब भोजन बनाते हो तो याद में बनाते हो, याद में खाते हो तो प्रसाद हो गया। प्रसाद का महत्त्व होता है। आप सभी रोज प्रसाद खाते हो। प्रसाद में कितनी शक्ति होती है! तो तन-मन-धन सभी में शक्ति आ गई। ..."


25.10.1987
"...जैसे स्थापना के आरम्भ में आसक्ति है वा नहीं, उसकी ट्रायल के लिए बीच-बीच में जानबूझकर प्रोग्राम रखते रहे। जैसे, 15 दिन सिर्फ डोढ़ा और छाछ खिलाई, गेहूँ होते भी यह ट्रायल कराई गई। कैसे भी बीमार 15 दिन इसी भोजन पर चले। कोई भी बीमार नहीं हुआ। दमा की तकलीफ वाले भी ठीक हो गये ना। नशा था कि बापदादा ने प्रोग्राम दिया है! जब भक्ति में कहते हैं ‘विष भी अमृत हो गया', यह तो छाछ थी! निश्चय और नशा हर परिस्थिति में विजयी बना देता है। तो ऐसे पेपर भी आयेंगे - सूखी रोटी भी खानी पड़ेगी। अभी तो साधन हैं। कहेंगे - दांत नहीं चलते, हजम नहीं होता। लेकिन उस समय क्या करेंगे? जब निश्चय, नशा, योग की सिद्धि की शक्ति होती है तो सूखी रोटी भी नर्म रोटी का काम करेगी, परेशान नहीं करेगी। आप सिद्धि-स्वरूप की शान में हो तो कोई भी परेशान नहीं कर सकता है।..."


02.11.1987
"...जैसे भोजन खाने के लिए फुर्सत निकालते हो क्योंकि आवश्यक है, ऐसे यह पुण्य का कार्य करना भी आवश्यक है। तो सदा की पुण्य आत्मा हो, कभी-कभी की नहीं। चांस मिले तो करें, नहीं। चांस लेना है। समय मिलेगा नहीं, समय निकालना है। तब जमा कर सकेंगे। इस समय जितना भी भाग्य की लकीर खींचने चाहो, उतना खींच सकते हो क्योंकि बाप भाग्य-विधाता और वरदाता है। ..."


23.12.1987
"...मनन करना अर्थात् बुद्धि द्वारा ज्ञान के भोजन को हजम करना है। जैसे स्थूल भोजन अगर हजम नहीं होता है तो शक्ति नहीं बनती है, सिर्फ मुख से स्वाद तक रह जाता है। ऐसे वर्णन करने वालों को भी सिर्फ मुख के वर्णन तक रह जाता। लेकिन वह बुद्धि द्वारा मनन शक्ति द्वारा धारण कर शक्तिशाली बन जाते हैं। मनन शक्ति वाले सर्व बातों के शक्तिशाली आत्मायें बनते हैं।..."


10.01.1988
"...मनन शक्ति बाप के खज़ाने को अपना खज़ाना अनुभव कराने का आधार है। जैसे स्थूल भोजन हजम होने से खून बन जाता है। क्योंकि भोजन अलग है, उसको जब हजम कर लेते हो तो वह खून के रूप में अपना बन जाता है। ऐसे मनन शक्ति से बाप का खज़ाना सो मेरा खज़ाना - यह अपना अधिकार, अपना खज़ाना अनुभव होता है। बापदादा पहले भी सुनाते रहे हैं - ‘अपनी घोट तो नशा चढ़े' अर्थात् बाप के खज़ाने को मनन शक्ति से कार्य में लगाकर प्राप्तियों की अनुभूति करो तो नशा चढ़े। सुनने के समय नशा रहता है लेकिन सदा क्यों नहीं रहता? इसका कारण है कि सदा मनन शक्ति से अपना नहीं बनाया है। मनन शक्ति अर्थात् सागर के तले में जाकर अन्तर्मुखी बन हर ज्ञान - रत्न की गुह्यता में जाना। सिर्फ रिपीट नहीं करना है लेकिन हर एक पॉइन्ट का राज़ क्या है और हर पॉइन्ट को किस समय, किस विधि से कार्य में लगाना है और हर पॉइन्ट को अन्य आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लगाना है - यह चारों ही बातें हर एक पॉइन्ट को सुनकर मनन करो। साथ - साथ मनन करते प्रैक्टिकल में उस राज़ के रस में चले जाओ, नशे की अनुभूति में आओ।..."


16.02.1988
"...यही स्मृति रखो कि ब्राह्मण जीवन की हर घड़ी उत्सव है, उत्साह है। उसी के बीच ये खेल भी देख रहे हैं, खुशी में नाच भी रहे हैं और बाप के ब्राह्मण परिवार के विशेषताओं के, गुणों के गीत भी गा रहे हैं और ब्रह्मा भोजन भी मजे से खा रहे हैं।
आप जैसा शुद्ध भोजन, याद का भोजन विश्व में किसको भी प्राप्त नहीं है! इस भोजन को ही कहा जाता है - दु:ख भंजन भोजन। याद का भोजन सब दु:ख दूर कर देता है। क्योंकि शुद्ध अन्न से मन और तन दोनों शुद्ध हो जाता हैं। अगर धन भी अशुद्ध आता है तो अशुद्ध धन खुशी को गायब कर देता है, चिंता को लाता है। जितना अशुद्ध धन आता, माना धन आयेगा एक लाख लेकिन चिंता आयेगी पद्मगुणा और चिंता को सदैव चिता कहा जाता है। तो चिता पर बैठने वाले को कभी खुशी कैसी होगी! और अशुद्ध धन भी अशुद्ध मन से आता है, पहले मन में अशुद्ध संकल्प आता है। लेकिन शुद्ध अन्न मन को शुद्ध बना देता है इसलिए धन भी शुद्ध हो जाता है। याद के अन्न का महत्त्व है, इसलिए ब्रह्मा भोजन की महिमा है। अगर याद में नहीं बनाते और खाते तो यह अन्न स्थिति को ऊपर नीचे कर सकता है। याद में बनाया हुआ और याद में स्वीकार करने वाला अन्न दवाई का भी काम करता और दुवा का भी काम करता। याद का अन्न कभी नुकसान नहीं कर सकता।..."


07.03.1988
"...ब्रह्मा - भोजन खिलाता कौन है? नाम ही है - ‘ब्रह्मा - भोजन'। ब्रह्मभोजन नहीं, ब्रह्मा भोजन। तो ब्रह्मा यज्ञ का सदा रक्षक है। हर एक यज्ञ - वत्स वा ब्रह्मा - वत्स के लिए ब्रह्मा बाप द्वारा ब्रह्मा - भोजन मिलना ही है। लोग तो वैसे ही कहते कि हमको भगवान खिला रहा है। मालूम है नहीं भगवान क्या, लेकिन खिलाता भगवान है। लेकिन ब्राह्मण बच्चों को तो बाप ही खिलाता है। चाहे लौकिक कमाई भी करके पैसे जमा करते, उसी से भोजन मंगाते भी हो लेकिन पहले अपनी कमाई भी बाप की भण्डारी में डालते हो। बाप की भण्डारी भोलानाथ का भण्डारा बन जाता है। कभी भी इस विधि को भूलना नहीं। नहीं तो, सोचेंगे - हम खुद कमाते, खुद खाते हैं। वैसे तो ट्रस्टी हो, ट्रस्टी का कुछ नहीं होता है। हम अपनी कमाई से खाते हैं - यह संकल्प भी नहीं उठ सकता। जब ट्रस्टी हैं तो सब बाप के हवाले कर दिया। तेरा हो गया, मेरा नहीं। ट्रस्टी अर्थात् तेरा और गृहस्थी अर्थात् मेरा। आप कौन हो? गृहस्थी तो नहीं हो ना? भगवान खिला रहा है, ब्रह्मा - भोजन मिल रहा है - ब्राह्मण आत्माओं को यह नशा स्वत: ही रहता है और बाप की गैरन्टी है - 21 जन्म ब्राह्मण आत्मा कभी भूखी नहीं रह सकती, बड़े प्यार से दाल - रोटी, सब्जी खिलायेंगे। यह जन्म भी दाल - रोटी प्यार की खायेंगे, मेहनत की नहीं। इसलिए सदा यह स्मृति रखो कि अमृतवेले से लेकर क्या - क्या भाग्य प्राप्त हैं! सारी दिनचर्या सोचो।..."


11.11.1989
"...सभी को आराम से रहना-खाना मिल रहा है ना। खाना और सोना - दो चीज़ें ही चाहिए। माताओं को तो बहुत खुशी होती है क्योंकि बना बनाया भोजन यहाँ मिलता है। वहाँ तो बनाओ, भोग लगाओ - फिर खाओ। यहाँ बना हुआ, भोग लगा हुआ भोजन मिलता है। इसलिए माताओं को तो अच्छा आराम है। कुमारों को भी आराम मिलता है। क्योंकि उन्हों के लिए भी बड़ी प्राब्लम खाना बनाने की ही है। यहाँ तो आराम से बना हुआ भोजन खाया ना। सदैव ऐसे इजी रहो। जिसके संस्कार इजी रहने के होते हैं, उनको हर कार्य सहज अनुभव होने के कारण इजी रहते हैं। संस्कार टाइट हैं तो सरकमस्टांस भी टाइट हो जाते हैं, सम्बन्ध-सम्पर्क वाले भी टाइट व्यवहार करते हैं। टाइट अर्थात् खींचातान में रहने वाले। ..."

 

19.11.1989
"...सदा खुशहाल रहना और औरों को भी खुशहाल बनाना। कभी भी मुरझाना नहीं। तन भी खुश, मन भी खुश और धन भी खुशी से कमाने वाले और खुशी से कार्य में लगाने वाले। जहाँ खुशी है वहां एक सौ भी हजारों के समान होता है, खुशहाली आ जाती है। और जहाँ खुशी नहीं वहाँ एक लाख भी एक रूपया है। तो तन-मन-धन से खुशहाल रहने वाले हैं। दाल-रोटी भी - 36 प्रकार का भोजन अनुभव हो। तो यही वरदान याद रखना कि हम सदा खुशहाल रहने वाले हैं। मुरझाना काम माया के साथियों का है और खुशहाल रहना काम बाप के बच्चों का है।..."


05.12.1989
"...सर्व सम्बन्ध बाप से नहीं जोड़ा है तब बोझ है। वायदा है सर्व सम्बन्ध एक बाप से। तो कोई बोझ नहीं। आराम से दाल-रोटी खाओ और उड़ती कला में उड़ो। कहाँ भी रहते बाप को भोग लगा कर खाते हो तो ब्रह्मा भोजन खाते हो। ब्रह्मा भोजन खाओ, खूब नाचो और मौज मनाओ। अभी मौज में नहीं रहेंगे तो कब रहेंगे! ..."


13.12.1989
"...अपने हाथ से खाना बनाते हो तो भी समझते हो ना - ब्रह्मा भोजन खा रहे हैं। पहले भोग किसको लगाते हो? बाप को अर्पण करते हो ना? अर्पण करना अर्थात् बाप का खाना। ब्रह्मा भोजन खाते हो। चाहे बच्चों के अर्थ भी लगाते हो वह भी डायरेक्शन अनुसार लगाते हो।..."


25.12.1989
"...नाचो और गाओ, ब्रह्मा-भोजन खाओ। जब भोग लगाया तो ब्रह्मा-भोजन हो गया ना। अगर भोग लगाकर, याद करके नहीं खाया तो साधारण खाना हो गया, उससे ताकत नहीं आयेगी, उससे सिर्फ पेट भरेगा लेकिन आत्मा में शक्ति नहीं आयेगी। तो क्या करना है? खाओ, नाचो और गाओ।..."


02.01.1990
"...जहां फखुर होता है वहाँ विघ्न नहीं हो सकता। या तो है फिक्र या है फखुर। दोनों साथ नहीं होते। दाल-रोटी अच्छे ते अच्छी देने के लिए बापदादा बंधा हुआ है। रोज़ 36 प्रकार के भोजन नहीं देंगे लेकिन दाल-रोटी प्यार की जरूर मिलेगी । निश्चित है, इसको कोई टाल नहीं सकता। तो फिक्र किस बात का! दुनिया में फिक्र रहता है कि हम भी खायें , पीछे वाले भी खायें । तो आप भी भूखे नहीं रहेंगे, आपके पीछे वाले भी भूखे नहीं रहेंगे। बाकी क्या चाहिए? डनलप के तकिये चाहिए क्या! अगर डनलप के तकिये वा बिस्तर में फिक्र की नींद हो तो नींद आयेगी? बेफिक्र होंगे तो धरनी पर भी सोयेंगे तो नींद आ जायेंगी। बॉहो को अपना तकिया बना लो तो भी नींद आ जायेंगी। जहाँ प्यार है वहां सूखी रोटी भी ३६ प्रकार का भोजन लगेगी।..."

 

20.01.1990
"...जैसे बापदादा ने श्रीमत दी है कि भोजन करने के पहले भोग लगाओ, पीछे खाओ। भोग लगाने का कर्म अगर नहीं करते और जल्दी-जल्दी में खा लिया तो परिणाम क्या होगा? याद भूलने से जो ब्रह्मा-भोजन का, अन्न का मन पर प्रभाव पड़ना चाहिए वह नहीं होगा। एक तो प्रभाव नहीं पड़ेगा और दूसरा बाप की श्रीमत न मानने का नुकसान होगा। क्योंकि अवज्ञा हो गई ना। उसका भी उल्टा फल मिलना है। ..."

 

30.12.1991
"...हर सेकेण्ड नाचते और गाते रहते हो और हर रोज ब्रह्मा भोजन खाते रहते हो। लोग तो खास पार्टाज़ अरेंज करते हैं और आपकी सदा ही संगठन की पार्टाज़ होती रहती हैं। पार्टाज़ में मिलन होता है ना। आप ब्राह्मणों की अमृतवेले से पार्टा शुरू हो जाती है। पहले बापदादा से मनाते हो, एक में अनेक सम्बन्ध और स्वरूपों से मनाते हो। ..."


18.01.1992
"...ब्रह्मा बाप के भण्ड़ारे से खाते हो इसलिए सदा ब्रह्मा भोजन खाते हो। कोई प्रवृत्ति वाले अपने कमाई से नहीं खाते हैं, सेन्टर वाले सेन्टर के भण्ड़ारी से नहीं खाते हैं लेकिन ब्रह्मा बाप के भण्डारे से, शिव बाप की भण्ड़ारी से खाते हैं। न मेरी प्रवृत्ति है, न मेरा सेन्टर है। प्रवृत्ति में हो तो भी ट्रस्टी हो, बाप की श्रीमत प्रमाण निमित्त बने हुए हो, और सेन्टर पर हो तो भी बाप के सेन्टर हैं न कि मेरे। इसलिए सदा शिव बाप की भण्ड़ारी है, ब्रह्मा बाप का भण्ड़ारा है - इस स्मृति से भण्डारी भी भरपूर रहेगी, तो भण्डारा भी भरपूर रहेगा। मेरापन लाया तो भण्डारा व भण्डारी में बरक्कत नहीं होगी।..."


30.11.1992
"...जो सदा याद में रहते हैं, सदा श्रीमत पर चलते हैं उनकी पूजा भी सदा होती है। जो हर कर्म में कर्मयोगी बनता है, उसकी पूजा भी हर कर्म की होती है। बड़े-बड़े मन्दिरों में हर कर्म की पूजा होती है-भोजन की भी होगी, झूले की भी होगी, सोने की भी होगी तो उठने की भी होगी। तो जितनी याद उतना राज्य, उतनी पूजा। अभी अपने आपसे पूछो कि मैं कितना याद में रहता हूँ?..."


10.12.1992
"...पालना करना अर्थात् किसी को भी शक्तिशाली बनाना। किसी भी विधि से, साधन से पालना द्वारा शक्तिशाली बनाते-चाहे भोजन द्वारा, चाहे पढ़ाई द्वारा। लेकिन पालना का प्रत्यक्षस्वरूप आत्मा में शक्ति, शरीर में शक्ति आती है। तो पालना का प्रत्यक्षस्वरूप हुआ शक्तिशाली बनाना।..."


26.03.1993
"...कमजोरी, दिलशि-कस्तपन बाप के हवाले कर दो, अपने पास नहीं रखो। अपने पास सिर्फ उमंग-उत्साह रखो। जो काम की चीज नहीं है वो क्यों रखते हो! इसलिए सदा उमंग-उत्साह में नाचते रहो, गाते रहो और ब्रह्मा भोजन करते रहो। सदा फरिश्ता अर्थात् देह-भान से न्यारा, निरहंकारी, देह-अहंकार के रिश्ते से न्यारा और बाप का प्यारा।..."

 

16.12.1993
"...सबसे श्रेष्ठ पालना मुरली है। और दूसरी पालना ब्रह्मा भोजन है। वो आत्मा की पालना, वो शरीर की पालना। तो दोनों मधुबन में होती हैं ना। अगर कोई घर में भी खाते हो तो क्या याद करके खाते हो? मधुबन में बैठे हैं ना और हॉस्पिटल वाले तो खाते ही मधुबन में हैं ना। तो कितने लक्की हो! सदा ब्रह्मा भोजन मिलता रहे-यह कम भाग्य नहीं है! सदा आत्मा की पालना विशेष आत्माओं द्वारा होती रहे-यह भी कम पालना नहीं है! सदा वायुमण्डल श्रेष्ठ मिलता रहे, संग श्रेष्ठ मिलता रहे-कितने भाग्य हैं! अमृतवेले से लेकर रात तक अपने भिन्न-भिन्न भाग्य को स्मृति में लाओ। ..."


31.12.1993
"...गाओ और नाचो और क्या करना है? ब्रह्मा भोजन खाओ और नाचो और गाओ। कहाँ भी हो लेकिन याद में बनाते हो, याद में खाते हो तो ब्रह्मा भोजन है। तो ठीक है? सब अच्छे से अच्छा है।..."


18.01.1994
"...मानो खाना बना रहे हो तो ये तो साधारण कर्म है ना, सब करते हैं लेकिन आपका खाना बनाना और दूसरों के खाना बनाने में फर्क होगा ना। आपके याद का भोजन और साधारण भोजन में अन्तर है। वो प्रसाद है, वो खाना है। तो विशेषता आ गई ना। याद में जो खाना खाते हो या बनाते हो तो उसको ब्रह्मा भोजन कहते हैं। ..."

 

09.03.1994
"...आप सबने भी शुद्ध भोजन का व्रत लिया। इसलिए भक्त लोग भी, कुछ भी हो जाये, चाहे बीमार भी हो जाते हैं तो भी अन्न के व्रत को तोड़ेंगे नहीं। तो आप सब भी कोई भी मन के आगे, तन के आगे, परिस्थितियाँ आ जायें तो व्रत तोड़ते हो क्या? कभी कुछ मिक्स खा लिया-ऐसे करते हो क्या? कोई देखता तो है नहीं, चलो खा लिया, अपना नियम पक्का रखते हो ना कि कच्चे हो? कभी-कभी देखकरके थोड़ी दिल होती है? एक ही जैसा खाना खाते-खाते कभी दूसरा भी खाने की दिल होती है? अच्छा, इसमें अमेरिका, आस्ट्रेलिया, यूरोप, एशिया वा रशिया सभी पक्के हो ना या थोड़ा-थोड़ा कच्चे हो?

तो डबल विदेशी सभी पास हो गये और भारत वाले तो पास हैं ही ना!भारत वालों को फिर भी सहज है। डबल विदेशियों को इसमें डबल मेहनत भी है। लेकिन पास हो इसकी मुबारक।..."


26.11.1994
"...ये मेला आराम देने वाला है ना? नींद तो आराम से करते हो ना? फिर भी नीचे (पट में) सोने के लिये, बैठने के लिये फोम तो मिला है ना। और नदी के किनारे के मेले में तो भोजन भी खाओ तो मिट्टी भी खाओ। मेले में अपना भी प्रोग्राम रखते हो तो कितनी मिट्टी होती है! यहाँ तो आराम से अच्छा ब्रह्मा भोजन मिलता है। ...बस, नाचो, गाओ और ब्रह्मा भोजन खाओ।..."


14.12.1994
"...मेले में ऐसी पालना और कोई की हो ही नहीं सकती। मेले देखे हैं ना? ऐसा ब्रह्मा भोजन, ऐसा परमात्म परिवार कहाँ मिलता है? सर्दी लगती है? मौसम की भी मिठाई होती है। तो ये सर्दी भी मौसम की मिठाई है, मिठाई तो खानी चाहिये ना?..."


23.12.1994
"...ज्ञान अमृत पीना और ब्रह्मा भोजन खाना। सभी को बना­बनाया भोजन मिलता है। सभी खुश हैं। खुशनसीब भी हैं और खुशमिजाज भी हैं।..."


26.01.1995
"...आप स्वयं भी सोचो कि बड़े संगठन में थोड़ा­बहुत तो होता ही है। फिर भी कुम्भ के मेले से तो हजार गुणा अच्छा है। बढ़िया ब्रह्मा भोजन तो मिलता है ना! भोजन में तो कोई मुश्किलात नहीं हुई? नाश्ता नहीं मिला तो किसको भूख तो नहीं लगी? अच्छा।..."

 

16.03.1995
"...डबल विदेशियों का ब्रह्मा भोजन भी बहुत इजी है। इण्डिया का ब्रह्मा भोजन और डबल विदेश में ब्रह्मा भोजन-कितना फर्क होता है! जो इण्डियन बहनें हैं वो तो करते होंगे। लेकिन जहाँ सिर्फ डबल विदेशी हैं उन्हों का ब्रह्मा भोजन तो रोज हो सकता है।..."


15.11.2003
"...बापदादा जब देखते हैं ना एक-एक को, तो सोचते हैं इनको बुलाके बात करें लेकिन साकार शरीर माना बंधन। साकार शरीर के बंधन में आ गये ना, साकार शरीर के बंधन में इतना कर नहीं सकते लेकिन वतन में कर सकते हैं इसीलिए तो बंधनमुक्त हो गये ना। वहाँ जगह का सवाल नहीं, समय का सवाल नहीं लेकिन आपको पता है, एक गुप्त बात बताते हैं, बापदादा वतन में ग्रुप-ग्रुप को बुलाते हैं और उनसे रूहरिहान भी करते हैं। जैसे साकार में याद है - ब्रह्मा बाप ने एक एक ग्रुप को अपने पास भोजन पर बुलाया था, याद है? (क्लिफ्टन पर) ऐसे बापदादा वतन में बुलाते जरूर हैं लेकिन साकार में नहीं कर सकते।..."


02.02.2004
"... पूर्वज का कार्य क्या होता है? पूर्वजों का कार्य है सर्व की पालना करना। लौकिक में भी देखो पूर्वजों द्वारा ही चाहे शारीरिक शक्ति की पालना, स्थूल भोजन द्वारा वा पढ़ाई द्वारा शक्ति भरने की पालना होती है। तो आप पूर्वज आत्माओं की पालना, बापद्वारा मिली हुई शक्तियों से सर्व आत्माओं की पालना करना है।..."


15.12.2004
"...भक्ति में तो 8 - 10 ब्राह्मणों को भोजन खिलाया, कुछ किया तो समझते हैं बडा पुण्य हो गया लाकन यहाँ दस हजार, 12 हजार, 8 हजार ब्राह्मणों की सेवा का चांस मिलता है। यज्ञ पिता के यज्ञ की सेवा है। ब्रह्मा भोजन का, यज्ञ का कणा-कणा बहुत वैल्यूबुल है और आप ब्राह्मणों को वह ब्रह्मा भोजन कितना प्यार से प्राप्त होता है। यह ब्रह्मा भोजन कम नहीं है। जिसके भी भाग्य में ब्रह्मा भोजन होता है उनको पता नहीं होता है कि इसका फल क्या मिलना है लेकिन मिलता जरूर है। इसलिए भक्ति में भी कहते हैं शिव के भण्डारे भरपूर काल कटक सब दूर। तो खाने वाले को कितना फल होगा।..."


31.12.2004
"...बापदादा तो देखते हैं जो भी अपने स्व-इच्छा से अपने को सेवा में जीवन सहित समर्पण करते हैं, उन सभी समर्पित बच्चों को शरीर निर्वाह का साधन अवश्य सहज प्राप्त होता है। खाओ, पिओ प्रभु के गुण गाओ। सेवा करते हैं, भाषण करते हैं, कोर्स कराते हैं, यह क्या है? प्रभु के गुण ही तो गाते हैं। और दाल रोटी देने के लिए तो बापदादा बँधा हुआ है। 36 प्रकार का भोजन नहीं खिलायेगा, वह कभी-कभी खिला देगा। तो बहुत अच्छा - चाहे ट्रस्टी बनके भी सेवा कर रहे हैं, अगर ट्रस्टी है, सच्चे ट्रस्टी, मतलब के ट्रस्टी नहीं, सच्चे ट्रस्टी हैं तो बापदादा कभी भूखा नहीं रख सकता। दाल रोटी जरूर खिलायेगा क्योकि बापदादा भूखा रहता है क्या? जब बापदादा भूखा नहीं रहता, सभी भोग लगाते हैं। आप सभी भोग लगाते हैं ना, चतुराई तो नहीं करते, एक गिट्टी खिलाओ, बाकी भूल जाओ, नहीं।..."


07.03.2005
"...बापदादा को आज के दिन सच्चे भगत भी बहुत याद आ रहे हैं। वह व्रत रखते हैं एक दिन का और आपने व्रत रखा है सारे जीवन में सम्पूर्ण पवित्र बनने का। वह खाने का व्रत रखते हैं. आपने भी मन के भोजन व्यर्थ संकल्प, निगेटिव संकल्प, अपवित्र संकल्पो का व्रत रखा है। ..."


15.12.2005
"...आजकल विश्व में दो बातें विशेष चलती हैं - एक एक्सरसाइज और दूसरा भोजन के ऊपर अटेन्शन। तो आप भी यह दोनों बातें करते हो? आपकी एक्सरसाइज कौन सी है? शारीरिक एक्सरसाइज तो सब करते हैं लेकिन मन की एक्सरसाइज अभी-अभी ब्राह्मण, ब्राह्मण सो फरिश्ता और फरिश्ता सो देवता। यह मन्सा ड्रिल का अभ्यास सदा करते रहो। और शुद्ध भोजन, मन का शुद्ध संकल्प। अगर व्यर्थ संकल्प, निगेटिव संकल्प चलता है तो यह मन का अशुद्ध भोजन है। तो मन में सदा शुद्ध संकल्प रहे, दोनों करना आता है ना! जितना समय चाहो उतना समय शुद्धसंकल्प स्वरूप बन जाओ। ..."


22.02.2009
"...एक व्रत सदा के लिए पवित्रता मर्यादा पुरूषोत्तम का आपने सदा के लिए धारण किया वह एक दिन के लिए करते हैं कापी तो की है लेकिन आटे में नमक समान की है। फिर भी की तो है। बुद्धिवान तो हैं ना! और दूसरा व्रत रखते हैं खानपान का। तो आप सबने भी शुद्ध भोजन का व्रत रखा है ना। कापी तो की है ना। आपने भी पूरा किया है या कभी थक जाते तो कहते अच्छा कुछ खा लो। ऐसे तो नहीं? थक जाओ या तंग हो यूथ वाले क्या करते हैं? जो कुमार हैं वह हाथ उठाओ। कुमार। अच्छा। बहुत अच्छा। कुमारियां हाथ उठाओ। फारेनर्स में कुमारियां लाइट वाली कुमारियां हैं (सिर पर छोटा बल्ब लगाया है) कुमारों ने पूरा व्रत निभाया है कि कभी थक जाते हैं? कुमार जो आते ही अभी भी विधि पूर्वक खानपान का व्रत निभाते हैं वह हाथ उठाओ। पास हैं अच्छा मुबारक हैं। आपको पदमगुणा मुबारक हैं। ..."


22.02.2009
"...खुशी जैसा कोई भोजन नहीं खुशी जैसी कोई खुराक ही नहीं है चाहे 36 प्रकार की भोजन हो लेकिन खुशी नहीं तो सूखा। और खुशी है तो सूखी रोटी 36 प्रकार का सुख देगी और बाप का वायदा भी है जो सच्ची दिल साफ दिल बड़ी दिल। तीन बातें याद रखो सच्ची दिल साफ दिल बड़ी दिल यह तीनों बातें अगर याद रहें तो कोई भी समय दुनिया की हालतें कैसी भी हों लेकिन तीन ही बातें याद हैं तो आप सबको दाल रोटी बाप खिलायेगा। दो चार सब्जी नहीं खिलायेगा। दाल रोटी खिलायेगा। दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ। अनुभव किया है ना! पुराने जो पहले पहले आये हैं उन्होंने अनुभव कर लिया है। कभी भूखे रहे? और ही जो गुड़ है ना उसको बोर्नवीटा बनाके बापदादा हाथ से खिलाता था। और बापदादा के हाथ से रोटी खाते सबका पेट भर गया। बोर्नवीटा बनाने आता है नहीं आता?कैसी भी हालत हो यह गुड़ सब्जी नहीं हो दाल नहीं हो यह बोर्नवीटा बहुत सुख देता है बनाने सीख जाओ। सभी यहाँ सीख के जाना। आईवेल में यह बोर्नवीटा बहुत काम में आयेगा। लेकिन चार बातें याद करना। ऐसे नहीं एक भी बात कम होगी तो ढूंढना पड़ेगा सहज नहीं मिलेगा। इसलिए चेक करो चार ही बातें हैं - सच्चाई तन की मन की धन की सम्बन्ध सम्पर्क की दिल की सच्चाई दिल बड़ी। दिल बड़ी होती है तो जो भी इच्छा होती है जरूरत होती है वह पूर्ण हो ही जाती है। करके देखो। जहाँ दिल बड़ी है ना वहाँ सब इच्छायें हो जाती हैं। दिल छोटी करेंगे तो सब क्रियेशन छोटी हो जाती। बाप राजी तो क्या कमी है। तो पुरूषार्थ करो। ..."


02.02.2011
"...किसी भी कारण से मुरली मिस नहीं करनी है। जैसे खाना नहीं मिस करते हो तो यह भी भोजन है ना। वह शरीर का भोजन यह आत्मा का भोजन। अच्छा लगा।..."

 

31.12.2011
"...जैसे ब्राह्मण बनने के साथ-साथ यह प्रतिज्ञा की कि कोई भी अशुद्ध भोजन स्वीकार नहीं करना है। तो बापदादा ने देखा इसमें दृढ़ संकल्प द्वारा मैजारिटी पास हैं। जैसे तन के लिए अशुद्ध भोजन का संकल्प किया और प्रैक्टिकल कर रहे हो, ऐसे ही मन के लिए यह दृढ़ संकल्प करना है कि कभी भी किसी के प्रति भी किसी भी सरकमस्टांश प्रमाण कोई भी व्यर्थ संकल्प न कर सदा हर आत्मा के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना रखनी ही है। मन का भोजन है संकल्प, तो जैसे तन के लिए दृढ़ संकल्प मैजारिटी ने किया है, ऐसे ही क्या मन के लिए व्यर्थ संकल्प, अशुद्ध भावना मिटा नहीं सकते? हर आत्मा के प्रति दिल का स्नेह और सहयोग अपने मन में नहीं रख सकते हैं?
तो आज बापदादा इस पुराने वर्ष के साथ इस वृत्ति वा दृष्टि को हर बच्चे से विदाई चाहते हैं।..."


19.02.2012
"...बापदादा देखते हैं, चक्र लगाते हैं, उनको टोली दिलाना। (ब्रह्मा भोजन बनाने वाले बड़ी मेहनत करते हैं) ब्रह्मा भोजन की वैसे ही महिमा है तो जो ब्रह्मा भोजन बनाने के निमित्त हैं वह तो विशेष आत्मायें हैं।..."


30.11.2013
"...जो आज मुरली में बाबा ने सेवा के प्रकार बताये, सभी सेवायें करने का बाबा ने भाग्य दिया है जो आज यह नहीं लगता कि इस आत्मा से बाबा ने यह सेवा नहीं कराई है। जो भी बाबा डायरेक्शन देता है, समझाता है, वह जाकर किसको नहीं समझाया तो बाबा नाश्ता करने नहीं देगा। ज्ञान का भोजन कानों से सुना है, मुख में ब्रह्मा भोजन खाया है, उसकी शक्ति हम सबको चला रहा है। हमारा साथी, सहारा, सहयोगी बाबा है, बाबा का साथ न होता तो हम अकेली आत्मा परमधाम में कैसे जाती।..."