चलते-चलते मेरे ये गीत याद रखना...

 

24.04.1984

"...चलते-चलते

अपनी श्रेष्ठता को

भूल तो नहीं जाते हो?

अपने को साधारण तो नहीं समझते हो?

 

 

सिर्फ सुनने वाले या

सुनाने वाले तो नहीं!

स्वमान वाले बने हो?

 

 

सुनने-सुनाने वाले तो

अनेकानेक हैं।

स्वमान वाले कोटों में कोई हैं।

आप कौन हो?

 

 

अनेकों में हो वा

कोटों में कोई वालों में हो?

 

 

प्राप्ति के समय पर

अलबेला बनना

उन्हों को बापदादा

कौन-सी समझ वाले

बच्चे कहें?

 

 

पाये हुए भाग्य को,

मिले हुए भाग्य को

अनुभव नहीं किया

अर्थात् अभी

महान भाग्यवान

नहीं बने तो कब बनेंगे?

 

 

इस श्रेष्ठ प्राप्ति के

संगमयुग पर

हर कदम

यह स्लोगन सदा याद रखो कि

‘‘अभी नहीं तो कभी नहीं’’ समझा। ..."

 

07.05.1984

"...पुरूषार्थ में चलते-चलते

पुरूषार्थ से जो प्राप्ति होती

उसका अनुभव करते करते

बहुत प्राप्ति के नशे

और खुशी में आ जाते।

 

 

बस हमने पा लिया,

अनुभव कर लिया।

महावीर, महारथी बन गये,

ज्ञानी बन गये,

योगी भी बन गये।

सेवाधारी भी बन गये।

 

 

यह प्राप्ति बहुत अच्छी है

लेकिन इस प्राप्ति के नशें में

अलबेलापन भी आ जाता है।

इसका कारण?

ज्ञानी बने, योगी बने,

सेवाधारी बने लेकिन

 

 

हर कदम में उड़ती कला का

अनुभव करते हो?

जब तक जीना है

तब तक हर कदम में

उड़ती कला में उड़ना है। ..."

 

 

21.11.1984

"...चलते-चलते

कोई भी सरकमस्टांस होते,

पेपर आते तो

फिकर तो नहीं होता?

 

 

क्योंकि जब सब कुछ

बाप के हवाले कर दिया

तो फिकर किस बात का।

 

 

जब मेरा-पन होता है

तब फिकर होता।

 

 

जब बाप के हवाले कर दिया

तो बाप जाने और

बाप का काम जाने!

स्वयं बेफिकर बादशाह।..."

 

23.05.1983

"...चलते-चलते

साधारण जीवन में चलने वाले

अपने को अनुभव करते हो,

लेकिन साधारण नहीं हो।

सदा श्रेष्ठ हो।

 

 

व्यवहार किया,

पढ़ाई की,

प्रवृत्ति सम्भाली,

यह कोई विशेषता नहीं है।

यह भी साधारणता है।

 

 

यह तो लास्ट नम्बर वाले

भी करते हैं।

तो जो लास्ट नम्बर वाले

भी करते वह आदि रत्न भी करें

तो क्या विशेषता हुई!

 

 

आदि रत्न अर्थात्

हर संकल्प और कर्म में

औरों से विशेष हो।

दुनिया वालों की भेंट में तो

सब न्यारे हो गये,

लेकिन

अलौकिक परिवार में भी

जो साधारण पुरुषार्थी हैं

उनसे विशेष हो। ..."

 

 

15.03.1981

"...यहाँ भी बच्चे अगर

चलते-चलते ठोकर खा लेते हैं

तो बाप कहते

ठोकर से अनुभवी बन

ठाकुर बन गया।

 

 

बाप ठोकर को नहीं देखते।

ठोकर से ठाकुरपन कितना आया,

बाप वह देखते हैं। ..."

 

 

 

07.04.1981

"...सुना भी बहुत है,

वर्णन भी बहुत करते हो

फिर भी चलते-चलते

कभी-कभी अपने को

निर्बल क्यों अनुभव करते हो,

मेहनत अनुभव क्यों करते हो?

 

 

मुश्किल है -

यह संकल्प क्यों आता है?

इसका कारण?

सुनने बाद मनन नहीं करते।

 

 

 

जैसे शरीर की शक्ति आवश्यक है,

वैसे आत्मा को

शक्तिशाली बनाने के लिए

‘मनन शक्ति' इतनी ही

आवश्यक है। ..."

 

 

 

11.04.1981

"...आगे चलते-चलते

अपना राज्य हो जायेगा।

अभी तो दूसरे के राज्य में

अपना कार्य करना पड़ता है,

फिर अपना राज्य हो जायेगा।

 

 

प्रकृति भी आपको आफर करेगी।

प्रकृति जब आफर करेगी तो

आत्मायें क्या करेंगी?

आत्मायें तो सिर झुकायेंगी। ..."

 


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