1970/23.01.1970

" सेवा में सफलता पाने की युक्तियाँ "

1.

"...जितना योगबल और ज्ञानबल दोनों समानता में लायेंगे उतनी-उतनी सफ़लता होगी।

सारे दिन में चेक करो कि योगबल कितना रहा,ज्ञानबल कितना रहा? 

फिर मालूम पड़ जायेगा कि अंतर कितना है।

सर्विस में बिजी हो जायेंगे तो फिर विघ्न आदि भी टल जायेंगे।

दृढ़ निश्चय के आगे कोई रुकावट नहीं आ सकती। "

1970/24.01.1970

" ब्राह्मणों का मुख्य धंधा – समर्पण करना और कराना "

2.

"...सदैव चेक करो कि संकल्प रूपी फाउंडेशन मज़बूत है।

तीव्र पुरुषार्थी की चलन में यह विशेषता होगी जो उनके संकल्प, वाणी, कर्म तीनों ही एक समान होंगे।

संकल्प उंच हों और कर्म कमज़ोर हों तो उनको तीव्र पुरुषार्थी नहीं कहेंगे।

तीनों की समानता चाहिए। "

 

 

1970/25.01.1970

" यादगार कायम करने की विधि "

3.

"...यही लक्ष्य रखना है कि सर्व गुण संपन्न बनें।

बाप के गुण सामने रख अपने को चेक करो कि कहाँ तक हैं।

कम परसेंटेज भी न हो।

परसेंटेज भी सम्पूर्ण हो तब वहां भी सम्बन्ध में नजदीक आ सकेंगे। "

 

 

4.

"...अगर याद भूल जाते हैं तो बुद्धि कहाँ रहती है? 

सिर्फ एक तरफ से भूलते हैं तो दुसरे तरफ लगेगी ना।

यह अपने को चेक करो कि अव्यक्त स्थिति से निचे आते हैं तो किस व्यक्त तरफ बुद्धि जाती है?

ज़रूर कुछ रहा हुआ है तब बुद्धि वहाँ जाती है। "

 

 

1970/26.01.1970

"याद के यात्रा की सम्पूर्ण स्टेज"

5.

"...संकल्प जो उठता है वह चेक करो कि यह हमारा संकल्प यथार्थ है वा नहीं?

इतना अटेंशन जब संकल्प पर हो तब वाणी भी ठीक और कर्म भी ठीक रहे।

संकल्प और समय दोनों ही संगम युग के विशेष खजाने हैं।

जिससे बहुत कमाई कर सकते हो। "

 

6.

"...सारे दिन में यह चेक करो कि कितने रहम दिल बने।

कितनी आत्माओं पर रहम करना है।

इस रहम की भावना से कैसी भी आत्माएं बदल सकती है।

सारे दिन में यह चेक करो कि कितने रहम दिल बने? 

कितनी आत्माओं पर रहम किया।

दूसरों को सुख देने में भी अपने में सुख भरता है।

देना अर्थात् लेना।

दूसरों को सुख देने से खुद भी सुख स्वरुप बनेंगे।

कोई विघ्न नहीं आयेंगे।

दान करने से शक्ति मिलती है।"

 

 

1970/05.04.1970

"सर्व पॉइंट का सार पॉइंट (बिन्दी) बनो"

7.

"...बीज में कौन सी शक्ति है?

 वृक्ष के विस्तार को अपने में समाने की।

तो अब क्या पुरुषार्थ करना है?

 बीज स्वरुप स्थिति में स्थित होने का अर्थात् अपने विस्तार को समाने का।

तो यह चेक करो।

विस्तार करना तो सहज है लेकिन विस्तार को समाना सरल हुआ है? "

 

 

1970/07.06.1970

दिव्य मूर्त बनने की विधि” 

8.

"...जो भी कार्य करते होहर कार्य में तीन बातें चेक करो।

सभी प्रकार से सरलता भी हो

सहनशीलता भी हो

और श्रेष्ठता भी हो।

साधारणपन भी न हो।

अभी कहाँ श्रेष्ठता के बजाय साधारण दिखाई पड़ती है।

साधारणपन को श्रेष्ठता में बदली करो और हर कार्य में सहनशीलता को सामने रखो।

और अपने चेहरे परवाणी पर सरलता को धारण करो।

फिर देखो सर्विस वा कर्तव्य की सफलता कितनी श्रेष्ठ होती है।"

 

1970/18.06.1970

वृद्धि के लिए टाइमटेबुल की विधि”  

9.

"...ब्राह्मणियों को काम करना चाहिए।

हर सप्ताह की डायरी हरेक की चेक करो।

क्या टाइम टेबुल बनाया।

उसमें कहाँ तक सफल हुए।

फिर शार्ट में एक मास की रिजल्ट मधुबन भेजनी है।

अभी अलबेलेपन का समय नहीं है।

बहुत समय अलबेला पुरुषार्थ किया।

अब जो किया सो किया।

फिर यह स्लोगन याद दिलाएंगे।

जो आप लोग औरों को सुनाते हो – अब नहीं तो कब नहीं।

अगर अब न करेंगे तो फिर कब करेंगे।

फिर कब हो नहीं सकेगा।

इसलिए स्लोगन भी याद रखना हर दिन का अलग-अलग अपने प्रति स्लोगन भी सामने रख सकते हो।

जैसे यह स्लोगन है कि जो कर्म में करूँगा मुझे देख और करेंगे।

इस रीति दूसरे दिन फिर दूसरा स्लोगन सामने रखो।

जैसे बापदादा ने सुनाया कि सफलता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।

यह भी सुनाया था कि मिटेंगे लेकिन हटेंगे नहीं।

इसी प्रकार हर रोज़ का कोई न कोई स्लोगन सामने रखो और उस स्लोगन को प्रैक्टिकल में लाओ।

फिर देखो अव्यक्त स्थिति कितनी जल्दी हो जाती है।"

 

1970/11.07.1970

संगमयुग की डिग्री और भविष्य की प्रालब्ध”  

10.

"...पुरुषार्थ कर डिग्री लेनी है।

डिक्री नहीं निकालनी है।

जिन्हों पर डिक्री निकलती है वह शर्मसार हो जाते हैं।

इसलिए सदैव चेक करो कि कहाँ तक क्वालिफाइड बने हैं?

 यह तो मुख्य क्वालिफिकेशन बताई।

लेकिन लिस्ट तो बड़ी लम्बी है।

हर क्वालिटीज़ के पीछे फुल शब्द भी है।

फैथफुलपावरफुल।.... तो इस रीति से सभी गुणों में फुल हैं तब डिग्री मिलेगी।

सभी सक्सेस तो होते हैं लेकिन सक्सेसफुल हैंपावरफुल हैं या कम हैं यह देखना है।

जो इन सर्व गुणों में फुल होगा उनको ही सम्पूर्ण अव्यक्त फ़रिश्ता की डिग्री मिलती है।"

 

1970/06.08.1970

दृष्टि से सृष्टि की रचना”  

11.

"...साक्षात्कार दृष्टि से ही करेंगे और एक एक की दृष्टि में अपने यथार्थ रूप और यथार्थ घर तथा यथार्थ राज़धानी देखेंगे।

इतनी दृष्टि में पावर हैअगर यथार्थ दृष्टि है तो।

तो सदैव अपने को चेक करो कि अभी कोई भी सामने आये तो मेरी दृष्टि द्वारा क्या साक्षात्कार करेंगे।

जो आपकी वृत्ति में होगा वैसा अन्य आप की दृष्टि से देखेंगे।

अगर वृत्ति देह अभिमान की हैचंचल है तो आपकी दृष्टि से साक्षात्कार भी ऐसे ही होगा।

औरों की भी दृष्टि वृत्ति चंचल होगी।

यथार्थ साक्षात्कार कर नहीं सकेंगे।

यह समझते हो?

 इन्हों की ट्रेनिंग है ना।

इस ग्रुप के लिए मुख्य विषय है अपनी वृत्ति के सुधार से अपनी दृष्टि को दिव्य बनाना।

कहाँ तक बनी हैं?

नहीं बनी तो क्यों नहीं बनी है?

इस पर इन्हों को स्पष्ट समझाना।

सृष्टि न बदलने का कारण है दृष्टि का न बदलना।"