eye drishti dirishti

आप दृष्टि यूँ ही देते रहें बाबा...


17.11.2020
तुम भाई-भाई हो

तो तुम्हारी दृष्टि

बहुत शुद्ध होनी चाहिए

 


बहन-भाई हैं तो

कभी क्रिमिनल दृष्टि

नहीं होनी चाहिए।


...21 जन्म दृष्टि सुधर जाती है।

 

 


18.01.1969
जैसे ही मैं पहुँची तो

जैसे साकार रूप में

दृष्टि से याद लेते थे

वैसे ही अनुभव

हुआ लेकिन

आज की दृष्टि में

विशेष प्रेम के सागर का रूप इमर्ज था।

 

 


बाबा ने सभी को

स्नेह और शक्ति भरी

दृष्टि देते गिट्टी खिलाई।

 

 

आपकी दृष्टि में बाप समान जब प्रेम और शक्ति दोनों ही पावर होगी तब

आत्मायें नजदीक आयेंगी।

 

 

 

वतन में बाबा ने

सभी बच्चों को इमर्ज कर

अपने हस्तों से

जल्दी-जल्दी एक एक

दृष्टि भी दे रहे थे,

हाथों से गिट्टी भी खिला रहे थे।

 

 

 

लेकिन एक एक को एक

सेकेण्ड भी जो दृष्टि दे रहे थे,

उस दृष्टि में

बहुत कुछ भरा हुआ था।

 

 


02.02.1969
"...दिव्य- बुद्धि के आधार पर

जो अब अलौकिक अनुभव

कर सकते हो वह

दिव्य दृष्टि द्वारा करने से भी

बहुत लाभदायक, अलौकिक और

अनोखा है।..."

 

 

 


15.02.1969
"...अभी बच्चों की सर्विस पूरी की।

वतन से अभी सबकी करनी है।

बच्चे सगे भी

हैं तो लगे भी हैं।

सर्विस तो सबकी करनी है।

 

 

 

 

सवेरे भी आकर दृष्टि से

परिचय दे दिया।

दृष्टि द्वारा सर्चलाइट दे

सभी को सुख देना

बाप का कर्तव्य है। ..."

 

 

 


04.03.1969
"...बुद्धि का विमान तो

दिव्य दृष्टि से भी अच्छा है।..."

 

 

 

 

08.05.1969
"...निशान-बाज की स्थिति

नशे वाली होती है

तो निश्चय बुद्धि की परख है

निशाना और उनकी स्थिति

नशे वाली होगी।

यह प्रैक्टिस अभी करो।

 

 

 

फिर जज करो हमारी परख

ठीक है वा नहीं।

फिर प्रैक्टिस करते-करते

परख यथार्थ हो जावेगी।

 

 

 

दृष्टि में सृष्टि कहा जाता है ना।

तो आप उनकी दृष्टि से

पूरी सृष्टि को जान सकते हो। ..."

 

 

 

 

18.05.1969
"...कोई भी व्यक्ति सामने आए तो

आप लोगों को तो

एक सेकेण्ड में उनके तीनों

कालों को परख लेना चाहिए।

एक तो पास्ट में

उनकी लाइफ क्या थी और

वर्तमान समय उनकी

वृत्ति, दृष्टि और भविष्य में

कहाँ तक यह अपनी प्रालब्ध

बना सकते हैं।

यह जानने की प्रैक्टिस चाहिए। ..."

 

 

 

 

09.06.1969
"...बेहद में दृष्टि होनी चाहिए

न कि हद में।..."

 

 


16.06.1969
"...गायन है दृष्टि से

सृष्टि बनती है।

कौन सी सृष्टि बनती है

और कब बनती है?

दृष्टि और सृष्टि का ही

गायन क्यों है,

मुख का गायन क्यों नहीं हैं?

 

 

 

काम पर पहले-पहले

क्या बदली करते हैं?

पहला पाठ क्या पढ़ाते हैं?

भाई-भाई की दृष्टि से देखो।

 

 

 

भाई-भाई की दृष्टि अर्थात्

पहले दृष्टि को बदलने से

सब बातें बदल जाती हैं।

इसलिए गायन है कि

दृष्टि से सृष्टि बनती है।

 

 

 

जब आत्मा को देखते हैं तब

यह सृष्टि

पुरानी देखने में आती है।

पुरुषार्थ भी मुख्य

इस चीज का ही है

दृष्टि बदलने का।

जब यह दृष्टि बदल जाती है तो

स्थिति और परिस्थिति

भी बदल जाती है।

 

 

 

 

दृष्टि बदलने से

गुण और कर्म

आप ही बदल जाते हैं।

यह आत्मिक दृष्टि नैचुरल हो जाये। ..."

 

 

 


"...आजकल तक बापदादा ने

सुनाया है कि

मन की वृत्ति और अव्यक्त दृष्टि से

सर्विस कर सकते हो।

 

 

 

अपनी वृत्ति-दृष्टि से

सर्विस करने में कोई बन्धन नहीं हैं।

जिस बात में स्वतन्त्र हो

वह सर्विस करनी चाहिए।..."

 

 


06.07.1969
"... इतना पुरुषार्थ कर

प्रवीण टीचर सबको बनना है।

फिर जब अपना सेन्टर

जाकर सम्भालेंगे तो

आने वाले को दृष्टि से

सतयुगी सृष्टि दिखा सकेंगे।

 

 

 

वह तब होगा जब गहने

अच्छी रीति पहनेगे।

अगर लापरवाही से

कोई गहना गिर गया तो

नुकसान भी होगा और

सजावट की शोभा भी

चली जायेगी।

इसलिए न शोभा को हटाना है,

न गहनों को उतारना है। ..."

 

 

 


17.07.1969
"...आप सभी के

एक सेकेण्ड की दृष्टि के,

अमूल्य बोल के

भी प्यासे रहेंगे।

ऐसा

अन्तिम दृश्य अपने

सामने रख पुरुषार्थ करो।..."

 

 

 


19.07.1969
"...जो भी सभी धारणायें सुनी है

उन सभी को जीवन में

लाने लिये यही पहला

पाठ पक्का करना पड़ेगा।

यह आत्मिक दृष्टि की अवस्था

प्रैक्टिकल में कम रहती है।

 

 

 

 

सर्विस की सफलता ज्यादा निकले,

उसका भी मुख्य साधन यह है कि

आत्म-स्थिति में रह सर्विस करनी है।..."

 

 


"...कब नोट किया है सारे दिन में

यह आत्मिक दृष्टि,

स्मृति कितनी रहती है? ..."

 

 

 


16.10.1969
"...अगर आप सभी भी

मस्तिष्क के मणी को

ही देखते रहो तो

फिर यह दृष्टि और वृत्ति

शुद्ध सतोप्रधान बन जायेगी।

 

 

 

 

दृष्टि जो चचल होती है

उसका मूल कारण यह है।

मस्तिष्क के मणी को न देख

शारीरिक रूप को देखते हो।

रूप को न देखो लेकिन

मस्तिष्क के मणी को देखो। ..."

 

 

 


09.11.1969
"...बापदादा एक-एक दीपक को

एक काल (समय) की

दृष्टि से देख रहे है

या

तीनों की?

बाप तो त्रिकालदर्शी है

वा दादा भी त्रिकालदर्शी है?

आप भी त्रिकालदर्शी

हो या बन रहे हो?

 

 

 

 

अगर त्रिकालदर्शी हो तो

अपने भविष्य को देखते

वा जानते हो?

जानते हो मैं क्या बनूँगा?..."

 

 


28.11.1969
"...सम्पूर्ण समर्पण जो हो जाता है

उसकी दृष्टि क्या होती है?

(शुद्ध दृष्टि, शुद्ध वृत्ति हो जाती है)

लेकिन किस युक्ति से

वह वृत्ति-दृष्टि शुद्ध हो जाती है?

एक ही शब्द में यह कहेंगे कि

दृष्टि और वृत्ति में

रूहानियत आ जाती है।

अर्थात्

दृष्टि वृत्ति रुहानी हो जाती हैं।

 

 

 

 

जिस्म को नहीं देखते हैं तो

शुद्ध, पवित्र दृष्टि हो जाती है।

जड़ चीज़ को

आँखों से देखेंगे ही नहीं तो

उस तरफ वृत्ति भी नहीं जायेगी।

दृष्टि नहीं जायेगी तो

वृत्ति भी नहीं जायेगी।

दृष्टि देखती है तब वृत्ति

भी जाती है।

 

 

 

 

रूहानी दृष्टि अर्थात्

अपने को और दूसरों को भी

रूह देखना चाहिए।

 

 


जिस्म तरफ देखते हुए भी

नहीं देखना है,

ऐसी प्रैक्टिस होनी चाहिए। ..."

 

 


"...अपनी दृष्टि, वृत्ति,

स्मृति को, सम्पत्ति को,समय को

परिवर्तन में लाओ तब

दुनिया को प्रिय लगेंगे। ..."

 

 

 

 

 

06.12.1969
"...आप के इस चैतन्य म्यूज़ियम में

तीन मुख्य चित्र हैं।

भृकुटी, नयन और मुख।

इन द्वारा ही

आपकी स्मृति, वृत्ति दृष्टि

और वाणी का मालूम पड़ता है।

 

 

जैसे

त्रिमूर्ति, लक्ष्मी नारायण

और सीढ़ी यह तीन मुख्य चित्र हैं ना।

इसमें सारा ज्ञान आ जाता है।

वैसे ही इस चेहरे के अन्दर

यह चित्र अनादि फिट हैं।

इनकी ऐसी डेकोरेशन हो जो

दूर से यह चित्र

अपने तरफ आकर्षण करे।

आकर्षण होने के बिना रह नहीं सकेंगे। ..."

 


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