17.01.2020 - Sakar Murli

"एक राम को याद करें।

सच्चे पिताव्रता बने ना।

बाप कहते हैं मुझे याद करते रहो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे।

पिताव्रता अथवा भगवान व्रता बनना चाहिए।

उठते-बैठते बाप को याद करने का पुरुषार्थ करना है।"

 

Avyakt BaapDada 23.11.1989

"...सबसे सहज विधि वरदाता को राजी करने की जानते हो?

 उनको सबसे प्रिय कौन लगता है?

 उनको एकशब्द सबसे प्रिय लगताजो बच्चे एकव्रताआदि से अब तक हैं वही वरदाता को अति प्रिय हैं।

एकव्रता अर्थात् सिर्फ पतिव्रता नहींसर्व सम्बन्ध से एकव्रता'

संकल्प में भीस्वप्न में भी दूजा-व्रता न हो।

एक-व्रता अर्थात् सदा वृत्ति में एक हो।

दूसरा - सदा मेरा तो एक दूसरा न कोई - यह पक्का व्रत लिया हुआ हो।

कई बच्चे एकव्रता बनने में बड़ी चतुराई करते हैं।

कौन-सी चतुराई?

 बाप को ही मीठी बातें सुनाते कि बापशिक्षकसत्गुरू का मुख्य सम्बन्ध तो आपके साथ है लेकिन साकार शरीरधारी होने के कारणसाकारी दुनिया में चलने के कारण कोई साकारी सखा वा सखी सहयोग के लिएसेवा के लिएराय-सलाह के लिए साकार में जरूर चाहिएक्योंकि बाप तो निराकार और आकार हैइसलिए सेवा साथी है।

और तो कुछ नहीं है।

क्योंकि निराकारीआकारी मिलन मनाने के लिए स्वयं को भी आकारीनिराकारी स्थिति में स्थित होना पड़ता है।

वह कभी-कभी मुश्किल लगता है।

इसलिए समय के लिए साकार साथी चाहिए।

जब दिमाग में बहुत बातें भर जायेंगी तो क्या करेंगे?

 सुनने वाला तो चाहिए ना!

एकव्रता आत्मा के पास ऐसी बोझ की बातें इकटठी नहीं होतीं जो सुनानी पड़ें।

एक तरफ बाप को बहुत खुश करते हो - बसआप ही सदैव मेरे साथ रहते होसदा बाप मेरे साथ हैसाथी है।

फिर उस समय कहाँ चला जाता है?

 बाप चला जाता या आप किनारे हो जाते हो?

 हर समय साथ है वा 6-8 घण्टा साथ है।

वायदा क्या है

साथ हैसाथ रहेंगेसाथ चलेंगेयह वायदा पक्का है ना!

ब्रह्मा बाप से तो इतना वायदा है कि सारे चक्र में साथ पार्ट बजायेंगे!

जब ऐसा वायदा है, फिर भी साकार में कोई विशेष साथी चाहिए?

बापदादा के पास सबकी जन्मपत्री रहती है।

बाप के आगे तो कहेंगे आप ही साथी हो।

जब परिस्थिति आती है फिर बाप को ही समझाने लगते कि यह तो होगा हीइतना तो चाहिए ही.....।

इसको एकव्रता कहेंगेसाथी हैं तो सब साथी हैंकोई विशेष नहीं।

इसको कहते हैं - एकव्रता।

तो वरदाता को ऐसे बच्चे अति प्रिय है।

ऐसे बच्चों की हर समय की सर्व जिम्मेवारियाँ वरदाता बाप स्वयं अपने ऊपर उठाते हैं।

ऐसी वरदानी आत्मायें हर समयहर परिस्थिति में वरदानों के प्राप्ति सम्पन्न स्थिति अनुभव करती हैं और सदा सहज पार करती हैं और पास विद् ऑनर बनती हैं।

जब वरदाता सर्व जिम्मेवारियाँ उठाने के लिए एवररेडी है फिर अपने ऊपर जिम्मेवारी का बोझ क्यों उठाते हो

अपनी जिम्मेवारी समझते हो तब परिस्थिति में पास विद् ऑनर नहीं बनते लेकिन धक्के से पास होते हो। 

किसी के साथका धक्का चाहिए।

अगर बैटरी फुल चार्ज नहीं होती तो कार को धक्के से चलाते हैं ना।

तो धक्का अकेला तो नहीं देंगेसाथ चाहिए।

इसलिए वरदानी नम्बरवार बन जाते हैं।

तो वरदाता को एक शब्द प्यारा है - एकव्रता'

एक बल एक भरोसा।

एक का भरोसा दूजे का बल - ऐसा नहीं कहा जाता।

 एक बल एक भरोसाही गाया हुआ है।

साथ-साथ एकमतन मनमत न परमतएकरस - न और कोई व्यक्तिन वैभव का रस।

ऐसे ही एकताएकान्तप्रिय।

तो एकशब्द ही प्रिय हुआ ना। "

 

 

 

...on this topic study from Avyakt Vaanis Quotes are included upto Dec.1989