"...सबसे सहज विधि वरदाता को राजी करने की जानते हो?
उनको सबसे प्रिय कौन लगता है?
उनको ‘एक' शब्द सबसे प्रिय लगता, जो बच्चे ‘एकव्रता' आदि से अब तक हैं वही वरदाता को अति प्रिय हैं।
एकव्रता अर्थात् सिर्फ पतिव्रता नहीं, सर्व सम्बन्ध से ‘एकव्रता'।
संकल्प में भी, स्वप्न में भी दूजा-व्रता न हो।
एक-व्रता अर्थात् सदा वृत्ति में एक हो।
दूसरा - सदा मेरा तो एक दूसरा न कोई - यह पक्का व्रत लिया हुआ हो।
कई बच्चे एकव्रता बनने में बड़ी चतुराई करते हैं।
कौन-सी चतुराई?
बाप को ही मीठी बातें सुनाते कि बाप, शिक्षक, सत्गुरू का मुख्य सम्बन्ध तो आपके साथ है लेकिन साकार शरीरधारी होने के कारण, साकारी दुनिया में चलने के कारण कोई साकारी सखा वा सखी सहयोग के लिए, सेवा के लिए, राय-सलाह के लिए साकार में जरूर चाहिए, क्योंकि बाप तो निराकार और आकार है, इसलिए सेवा साथी है।
और तो कुछ नहीं है।
क्योंकि निराकारी, आकारी मिलन मनाने के लिए स्वयं को भी आकारी, निराकारी स्थिति में स्थित होना पड़ता है।
वह कभी-कभी मुश्किल लगता है।
इसलिए समय के लिए साकार साथी चाहिए।
जब दिमाग में बहुत बातें भर जायेंगी तो क्या करेंगे?
सुनने वाला तो चाहिए ना!
एकव्रता आत्मा के पास ऐसी बोझ की बातें इकटठी नहीं होतीं जो सुनानी पड़ें।
एक तरफ बाप को बहुत खुश करते हो - बस, आप ही सदैव मेरे साथ रहते हो, सदा बाप मेरे साथ है, साथी है।
फिर उस समय कहाँ चला जाता है?
बाप चला जाता या आप किनारे हो जाते हो?
हर समय साथ है वा 6-8 घण्टा साथ है।
वायदा क्या है?
साथ है, साथ रहेंगे, साथ चलेंगे, यह वायदा पक्का है ना!
ब्रह्मा बाप से तो इतना वायदा है कि सारे चक्र में साथ पार्ट बजायेंगे!
जब ऐसा वायदा है, फिर भी साकार में कोई विशेष साथी चाहिए?
बापदादा के पास सबकी जन्मपत्री रहती है।
बाप के आगे तो कहेंगे आप ही साथी हो।
जब परिस्थिति आती है फिर बाप को ही समझाने लगते कि यह तो होगा ही, इतना तो चाहिए ही.....।
इसको एकव्रता कहेंगे? साथी हैं तो सब साथी हैं, कोई विशेष नहीं।
इसको कहते हैं - एकव्रता।
तो वरदाता को ऐसे बच्चे अति प्रिय है।
ऐसे बच्चों की हर समय की सर्व जिम्मेवारियाँ वरदाता बाप स्वयं अपने ऊपर उठाते हैं।
ऐसी वरदानी आत्मायें हर समय, हर परिस्थिति में वरदानों के प्राप्ति सम्पन्न स्थिति अनुभव करती हैं और सदा सहज पार करती हैं और पास विद् ऑनर बनती हैं।
जब वरदाता सर्व जिम्मेवारियाँ उठाने के लिए एवररेडी है फिर अपने ऊपर जिम्मेवारी का बोझ क्यों उठाते हो?
अपनी जिम्मेवारी समझते हो तब परिस्थिति में पास विद् ऑनर नहीं बनते लेकिन धक्के से पास होते हो।
‘किसी के साथ' का धक्का चाहिए।
अगर बैटरी फुल चार्ज नहीं होती तो कार को धक्के से चलाते हैं ना।
तो धक्का अकेला तो नहीं देंगे, साथ चाहिए।
इसलिए वरदानी नम्बरवार बन जाते हैं।
तो वरदाता को एक शब्द प्यारा है - ‘एकव्रता'।
एक बल एक भरोसा।
एक का भरोसा दूजे का बल - ऐसा नहीं कहा जाता।
‘एक बल एक भरोसा' ही गाया हुआ है।
साथ-साथ एकमत, न मनमत न परमत, एकरस - न और कोई व्यक्ति, न वैभव का रस।
ऐसे ही एकता, एकान्तप्रिय।
तो ‘एक' शब्द ही प्रिय हुआ ना। "