27.02.1972
"...जो सदा होली रहते हैं -- उन्हों के लिए सदा होली ही है।..."

 


"...सदा होली मनाने वाले सदा बाप के साथ मिलन मनाते रहते हैं। सदा अतीन्द्रिय सुख में वा अविनाशी खुशी में झूमते और झूलते रहते हैं। ऐसे ही स्थिति में स्थित रहने वाले होली हंस हो? ..."

 


"...होली बनकर होलीएस्ट व स्वीटेस्ट बाप से मिलन मनाने आये हो..."

 

"...जब होली अर्थात् पवित्रता की स्टेज पर ठहरते हो वा बाप के संग के रंग में रंगे हुए होते हो तो इस ईश्वरीय मस्ती में यह देह का भान वा भिन्न-भिन्न सम्बन्ध का भान, छोटे-बड़े का भान विस्मृत हो एक ही आत्म-स्वरूप का भान रहता है ना।..."

 

 

"...सारे विश्व में सर्वश्रेष्ठ आत्मायें हो ना। श्रेष्ठ आत्माओं का श्रृंगार भी श्रेष्ठ होता है। आपके जड़ चित्र सदा श्रृंगारे हुए रहते हैं। शक्तियों वा देवियों के चित्र में श्रृंगारमूर्त और संहारीमूर्त दोनों हैं। तो रोज अमृतवेले साक्षी बन आत्मा का श्रृंगार करो। करने वाले भी आप हो, करना भी अपने आप को ही है। फिर कोई भी प्रकार की परिस्थितियों में डगमग नहीं होंगे, अडोल रहेंगे। ऐसे को होली हंस कहा जाता है। लोग होली मनाते हैं लेकिन आप स्वयं होली हंस हो। अच्छा! ऐसे होली हंसों को होलीएस्ट बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।..."

 


09.05.1972
"...अपने को सदा हाइएस्ट और होलीएस्ट समझकर चलते हो? जो हाइएस्ट समझकर चलते हैं उन्हों का एक-एक कर्म, एक-एक बोल इतना ही हाइएस्ट होता है जितना बाप हाइएस्ट अर्थात् ऊंच ते ऊंच है। बाप की महिमा गाते हैं ना -- ऊंचा उनका नाम, ऊंचा उनका धाम, ऊंचा काम। तो जो हाइएस्ट है वह भी सदैव अपने ऊंच नाम, ऊंचे धाम और ऊंचे काम में तत्पर हों। कोई भी निचाई का कार्य कर ही नहीं सकते हैं। ..."

 

 

"...जब तक हाइएस्ट नहीं बने हो तब तक होलीएस्ट भी नहीं बन सकते हो। जैसे आपके भविष्य यादगारों का गायन है सम्पूर्ण निर्विकारी। तो इसको ही होलीएस्ट कहा जाता है। सम्पूर्ण निर्विकारी अर्थात् किसी भी परसेन्टेज में कोई भी विकार तरफ आकर्षण न जाए वा उनके वशीभूत न हो। अगर स्वप्न में भी किसी भी प्रकार विकार के वश किसी भी परसेन्टेज में होते हो तो सम्पूर्ण निर्विकारी कहेंगे? अगर स्वप्नदोष भी है वा संकल्प में भी विकार के वशीभूत हैं तो कहेंगे विकारों से परे नहीं हुए हैं। ऐसे सम्पूर्ण पवित्र वा निर्विकारी अपने को बना रहे हो वा बन गये हो? जिस समय लास्ट बिगुल बजेगा उस समय बनेंगे? अगर कोई बहुत समय से ऐसी स्थिति में स्थित नहीं रहता है तो ऐसी आत्माओं का फिर गायन भी अल्पकाल का ही होता है। ऐसे नहीं समझना कि लास्ट में फास्ट जाकर इसी स्थिति को पा लेंगे। लेकिन नहीं। बहुत समय जो गायन है - उसको भी स्मृति में रखते हुए अपनी स्थिति को होलीएस्ट और हाइएस्ट बनाओ। ..."

 

 

होली बनो और बनाओ...
"...अगर नाम ऊंचा और काम नीचा तो क्या होगा? अपने नाम को बदनाम करते हो? तो ऐसे कोई भी काम नहीं हो - यह लक्ष्य रखकर ऐसे लक्षण अपने में धारण करो। जैसे दूसरे लोगों को समझाते हो कि अगर ज्ञान के विरूद्ध कोई भी चीज़ स्वीकार करते हो तो ज्ञानी नहीं अज्ञानी कहलाये जायेंगे। अगर एक बार भी कोई नियम को पूरी रीति से पालन नहीं करते हैं तो कहते हो ज्ञान के विरूद्ध किया। तो अपने आप से भी ऐसे ही पूछो कि अगर कोई भी साधारण संकल्प करते हैं तो क्या हाइएस्ट कहा जायेगा? तो संकल्प भी साधारण न हो। जब संकल्प श्रेष्ठ हो जायेंगे तो बोल और कर्म आटोमेटिकली श्रेष्ठ हो जायेंगे। ऐसे अपने को होलीएस्ट और हाइएस्ट, सम्पूर्ण निर्विकारी बनाओ। विकार का नाम-निशान न हो। जब नाम- निशान ही नहीं तो फिर काम कैसे होगा? जैसे भविष्य में विकार का नाम- निशान नहीं होता है ऐसे ही हाइएस्ट और होलीएस्ट अभी से बनाओ तब अनेक जन्म चलते रहेंगे। ..."

 

 

14.06.1972
"...सदा सुख वा शान्तिमय जीवन तब बन सकती है जब जीवन में चार बातें हों। वह चार बातें हैं - हैल्थ, वैल्थ, हैपी और होली। अगर यह चार बातें सदा कायम रहें तो दु:ख और अशान्ति कभी भी जीवन में अनुभव न करें। ...इन चार बातों की कमी होने कारण स्व-स्थिति में सदा नहीं रह सकते हो। यह चार बातें चैक करो - हेल्दी, वेल्दी कहां तक बने हैं? हेल्दी, वेल्दी और होली - यह तीनों ही बातें हैं तो हैपी आटोमेटिकली होंगे। तो इन चार बातों को सदा ध्यान में रखो।...निराकार आत्मा और साकार शरीर दोनों के सम्बन्ध से हर कार्य कर सकते हो। अगर दोनों का सम्बन्ध ना हो तो कोई भी कार्य नहीं कर सकते। ऐसे ही निराकार और साकार बाप दोनों का साथ वा सामने रखते हुए हर कर्म वा हर संकल्प करो तो यह चारों बातें आटोमेटिकली आ जाएगी।...चेक करो कि - इन चारों में से आज किस बात की कमी रही, आज हैल्थ ठीक है, वैल्थ है, हैपी है, होली है? न है तो क्यों? उस रोग को जानकर फौरन ही उसकी दवाई करो ..."

 


19.07.1972
होली हंसों की चाल...
"...होली हंसों की चाल कौनसी होती है? हरेक की विशेषता को ग्रहण करना और कमजोरियों को मिटाने का प्रयत्न करना। ..."

 


इसको कहा जाता है होली हंस। ...
"...कोई आपके विघ्न रूप बने लेकिन आपका भाव ऐसे के ऊपर भी शुभाचिंतकपन का हो - इसको कहा जाता है तीव्र पुरुषार्थी वा होली हंस। ..."

 


 

 

01.10.1975
होली-हंस स्वरूप...
"... अपने को विशेष आत्मायें समझते हुए अपने आप का स्वयं ही चेकर बनो। समझा? विशेष आत्मा की अपनी शान में रहो तो परेशान नहीं होंगे। अच्छा यह हुई संस्कारों को मिटाने की युक्ति। अगर इस कार्य में सदा बिज़ी रहेगे व सदा होली-हंस स्वरूप में स्थित होंगे तो शुद्ध व अशुद्ध, शूद्रपन और ब्राह्मणपन को सहज ही चेक कर सकेंगे और बुद्धि इसी कार्य में बिजी होने के कारण व्यर्थ संकल्पों की कम्पलेन्ट से फ्री हो जायेगी।..."

 

 

23.01.1976
होलीएस्ट का यादगार...
"...ब्राह्मण ही ऊँचे-से-ऊँचे अथवा श्रेष्ठ कर्त्तव्य में सहयोगी बनने का श्रेष्ठ भाग्य प्राप्त करते हैं। इतना अपना ऊँचा पार्ट, श्रेष्ठ बाप, श्रेष्ठ स्थान और श्रेष्ठ शान स्मृति में रहते हैं? इतना श्रेष्ठ भाग्य सारे कल्प के अन्दर फिर प्राप्त नहीं कर सकोगे। ऐसे हाईएस्ट और साथ-साथ होलीएस्ट का यादगार अब तक भी सुनते हो। लोग ब्राह्मणों की बजाय आपके देवता रूप का गायन करते हैं।..."

 

 

23.01.1976
होलीएस्ट से भूत बन जाना...
"...कोई भी कर्म-इन्द्रिय का रस - देखने का, सुनने का, बोलने का अपने वशीभूत तो नहीं बनाता है? वशीभूत होने का अर्थ है होलीएस्ट से भूत बन जाना। जब भूत बन जाते हैं तो भूतों का कर्त्तव्य है - दु:खी होना और दु:खी करना। हाईएस्ट ब्राह्मण से शूद्र बन जाते हैं।..."

 


23.01.1976
सदैव यह स्मृति में रखो कि ‘मैं हाईएस्ट और होलीएस्ट हूँ।’...
"...सदैव यह स्मृति में रखो कि ‘मैं हाईएस्ट और होलीएस्ट हूँ।’ जब यह प्रत्यक्ष रूप में अर्थात् संकल्प और स्वरूप में स्मृति रहेगी तब ही प्रत्यक्षता वर्ष मना सकेंगे। ऊँचे से ऊँचे बाप को प्रत्यक्ष करने के लिए जब तक स्वयं स्वरूप में होलीएस्ट और हाईएस्ट नहीं बने हैं तो बाप को प्रत्यक्ष कैसे करेंगे? स्वयं में बाप-समान गुण और कर्त्तव्य को प्रख्यात करना ही बाप को प्रत्यक्ष करना है। ऊँचे काम से ऊँचे बाप का नाम होगा। ..."

 


23.01.1976
बाप को प्रत्यक्ष करने की मेरी स्टेज...
"...संकल्प, वाणी और स्वरूप - तीनों ही होलीएस्ट और हाईएस्ट हों। ऐसी स्टेज से ही बाप को प्रत्यक्ष कर सकोगे। ..."

 

 


25.06.1977
प्यूरिटी अर्थात् रीयल्टी अर्थात् सच्चाई - सच्ची दिल वाले दिलवाला बाप के दिलतख्त नशीन हैं...
"...जितना ऑनेस्ट होगा उतना ही होलीएस्ट होगा। होलीएस्ट बनने की मुख्य बात है - ‘बाप से सच्चा बनना।’ सिर्फ ब्रह्मचर्य धारण करना यह प्यूरिटी की हाइएस्ट स्टेज (Highest Stage;सर्वोच्च स्थिति) नहीं है; लेकिन प्यूरिटी अर्थात् रीयल्टी अर्थात् सच्चाई। ऐसे सच्ची दिल वाले दिलवाला बाप के दिलतख्त नशीन हैं और दिलतख्त नशीन बच्चे ही राज्य राज्यतख्त नशीन होते हैं।..."

 


25.06.1977
सदा काल के लिए पवित्रता सुख-शान्ति का वर्सा...
"...बाप से सदा काल के लिए पवित्रता सुख-शान्ति का वर्सा लो। समय के आधार पर पवित्र रहना, इसको कौन-सी पवित्रता की स्टेज कहेंगे? इससे सिद्ध है कि स्वयं का अनुभव और प्राप्ति के आधार पर फाउन्डेशन नहीं हैं। तो ऑनेस्ट बच्चों के यह लक्षण नहीं हैं। ‘ऑनेस्ट अर्थात् सदा होलीएस्ट।’..."

 


23.01.1979
संगमयुगी जीवन में सम्पर्क भी सदा होली हंसों से है...
"...सर्व सम्बन्ध निभाने वाले परम आत्मा को अपना बना लिया, जब चाहो, जैसा सम्बन्ध चाहो वैसा ही सम्बन्ध का रस एक द्वारा सदा निभा सकते हो, और सम्बन्ध भी ऐसे जो देने वाले होंगे लेने वाले नहीं। कभी धोखा भी नहीं देने वाले - सदा प्रीति की रीति निभाने वाले - ऐसे अमर सम्बन्ध अनुभव करते हो ना? और बात सम्पर्क - संगमयुगी जीवन में सम्पर्क भी सदा होली हंसों से है। बाप के सम्पर्क के आधार पर ब्राह्मण परिवार का सम्पर्क है - हंस और बगुलों का सम्पर्क नहीं लेकिन ब्राह्मण आत्माओं का सम्पर्क है बगुलों का सम्पर्क सिर्फ सेवा अर्थ है।..."

 


25.01.1979
होली हंस अर्थात् जो सदा व्यर्थ को छोड़ समर्थ को अपनायें...
"...होली हंस अर्थात् जो सदा व्यर्थ को छोड़ समर्थ को अपनाने वाले हों। वह हंस क्षीर और नीर को अलग-अलग करता है लेकिन होलीहंस व्यर्थ और समर्थ को अलग कर व्यर्थ को छोड़ देंगे, समर्थ को अपनायेंगे। जैसे हंस कभी भी कंकड़ नहीं चुगेंगे - रतन को धारण करेंगे, ऐसे होलीहंस जो सदा बाप के गुणें को धारण करें किसी के भी अवगुण अर्थात् कंकड़ को धारण न करें उसको कहा जाता है होलीहंस अर्थात् पवित्र आत्मायें, शुद्ध आत्मायें।..."

 


25.01.1979
अब होलीहंस बनते... भविष्य में हिज़ होलीनेस...
"...अब होलीहंस बनते हो तब ही भविष्य में भी हिज़ होलीनेस कहलाते हो। कभी गलती से भी किसका अवगुण धारण न करने वाले, सदा गले में गुण माला हो। ..."

 


17.12.1979
"...होली हंस सदा ज्ञान रतन ग्रहण करते और कराते हैं। हँसों का भोजन अमूल्य मोती होते हैं। ऐसे ही आप सब होली हँसों के बुद्धि का भोजन ज्ञान रतन है। ..."

 

 

07.01.1980
अपने होलीलैण्ड की स्मृति में...
"...सदा अपने होलीलैण्ड की स्मृति में रहते हो? होलीलैण्ड में रहने वाले सदा अपनी होली स्टेज में स्थित रहेंगे। ..."

 


07.02.1980
होली हँस...
"...व्यर्थ बातें सुनते हुए, देखते हुए, होली हँस बन, व्यर्थ छोड़ समर्थ धारण करो।..."

 

 

21.03.1981

"...बापदादा ऐसे मालिकों को देख, मालिकों को आज के होली की मुबारक देते हैं। रंग के होली की मुबारक नहीं। लेकिन ‘हो-लिए' की मुबारक है। सब बाप के हो लिए अर्थात् हो गये। ..."

 


21.03.1981
"...गोपी-वल्लभ, गोप गोपियों से एक दिन होली नहीं खेलते लेकिन संगमयुग का हर दिन होली डे है। संगम पर होली और सतयुग मे होगी हाली डे। ..."

 


21.03.1981
"...पहले जलाना है फिर मनाना है। एक दिन जलाते हैं दूसरे दिन मनाते हैं। आप भी एक दिन होली अर्थात् ‘पास्ट इज पास्ट' करते हो। अर्थात् पिछला सब जलाते हो। तब ही फिर गीत गाते हो - हम तो बापदादा के हो लिए। यह है खुशी में मनाना।..."

 


23.03.1981
"...जैसे सहज योगी वैसे सहज पवित्र आत्मा। बी होली नहीं, वह हैं ही होली। उन्हों के लिए यह स्लोगन नहीं है कि ‘‘बी होली''। वह बने बनाये हैं। फर्स्ट प्राइज में भी नम्बरवन। ..."

 


28.11.1981
"...सदा मुख मीठा रहना और सदा सर्व का मुख मीठा करने वाले। सागर के कण्ठे पर रहने वाले होलीहंस हो। ..."

 


04.01.1982
"...आज ज्ञान सागर बाप, सागर के कण्ठे पर ज्ञान रत्न चुगने वाले होली हंसों से मिलने आये हैं। हरेक होली हंस कितना ज्ञान रत्नों को चुनकर खुशी में नाच रहे हैं, वह हंसों के खुशी का डांस देख रहे हैं। यह अलौकिक खुशी की रूहानी डांस कितनी प्यारी है और सारे कल्प से न्यारी है!..."

 


09.03.1982
"...हरेक होलीहंस की बुद्धि में सदा ज्ञान के मोती माणिक रतन भरे हुए हैं। ऐसे होलीहंस बापदादा को भी सारे कल्प में एक ही बार मिलते हैं। ऐसे विशेष होलीहंस से बापदादा सारा ही संगमयुग होली मनाते रहते हैं। ..."

 

 

09.03.1982
"... ऐसी होली सिवाए बाप और बच्चों के कोई मना नहीं सकते हैं। जन्म लेते ही बाप ने होली मनाए होली बना दिया। तो वह है मनाने वाले और आप हो सदा ‘होली' बनने वाले। सदा हर गुण का रंग, हर शक्ति का रंग, स्नेह का रंग लगा हुआ ही है। ऐसे होली हंस हो ना! ..."

 


09.03.1982
"...संकल्प की तीली से, जो भी कुछ स्व प्रति वा सेवा प्रति व्यर्थ संकल्प अर्थात् कमज़ोरी के संकल्प संस्कार हैं, सबको इकट्ठे करके तीली लगा दो, इसी को ही सूखी लकड़ियाँ कहते हैं। तो सबको इकट्ठे करके दृढ़ संकल्प की तीली लगा दो। तो जलाना भी हो जायेगा। जलाना ही मनाना और बनना है। तीली लगाने आती है ना? तो जलाओ और मनाओ। अर्थात् स्व को सदा ‘होली' बनाओ। ..."

 

 

09.03.1982
"... मेहनत के संस्कार, युद्ध के संस्कार वा संकल्प की पुरानी लकड़ियों को आग लगा दो। यही होली जलाओ। ..."

 


09.03.1982
"... मन भी सदा मीठा, मुख भी सदा मीठा। तो होली हो गई ना! है ही कल्प कल्प की होली।..."

 

 

16.04.1982
"...सदा सागर के कण्ठे पर रहते हैं और सदा सागर की लहरों से खेलते रहते हैं। अपने को ऐसे होलीहंस अनुभव करते हो? सदा ज्ञान रतन चुगने वाले अर्थात् धारण करने वाले, सदा बुद्धि में ज्ञान रतन भरपूर। बाकी जो भी व्यर्थ बात, व्यर्थ दृश्य... यह सब कंकड़ हो गये। हंस कभी कंकड़ नहीं लेते - सदा रत्नों को धारण करते। तो कभी भी किसी भी व्यर्थ बात का प्रभाव न हो। ..."

 


28.04.1982
"...गुण मूर्त का अर्थ है गुणवान बनना और सर्व में गुण देखना। अगर स्वयं गुण मूर्त है तो उसकी दृष्टि और वृत्ति ऐसी गुण सम्पन्न हो जायेगी जो उसकी दृष्टि वृत्ति द्वारा सर्व में जो गुण होगा वही दिखाई देगा। अवगुण देखते, समझते भी किसी का भी अवगुण बुद्धि द्वारा ग्रहण नहीं करेगा। अर्थात् बुद्धि में धारण नहीं करेगा। ऐसा ‘होलीहंस' होगा। कंकड़ को जानते भी ग्रहण नहीं करेगा। और ही उस आत्मा के अवगुण को मिटाने के लिए स्वयं में प्राप्त हुए गुण की शक्ति द्वारा उस आत्मा को भी गुणगान बनाने में सहयोगी होगा। ..."

 

 

27.03.1983
"...होलीएस्ट बाप होली बच्चों से रूहानी होली मना रहे हैं। ऐसी होली जिससे सदा होली बन जाए। होली मनाना क्या लेकिन होली बन गये। मनाना थोड़े समय का होता, बनना सदाकाल का होता। वह होली मनाते, आप बनते हो। ऐसी रूहानी होली मनाने वाले सभी होली बच्चों को मुबारक हो। हो गई होली, रंग पड़ गया ना। लाल हो गये ना! बाप के लाल बन गये तो लाल हो गये।..."

 

 

17.04.1983
"...आप बन गये हो हंस, ज्ञान के मोती चुगने वाले ‘होली हंस’ हो। वह हैं गन्द खाने वाले बगुले। वे गन्द ही खाते, गन्द ही बोलते...तो बगुलों के बीच में रहते हुए अपना होलीहंस जीवन कभी भूल तो नहीं जाते! कभी उसका प्रभाव तो नहीं पड़ जाता? वैसे तो उसका प्रभाव है मायावी और आप हो मायाजीत तो आपका प्रभाव उन पर पड़ना चाहिए, उनका आप पर नहीं। तो सदा अपने को होलीहंस समझते हो? होलीहंस कभी भी बुद्धि द्वारा सिवाए ज्ञान के मोती के और कुछ स्वीकार नहीं कर सकते। ब्राह्मण आत्मायें जो ऊँच हैं, चोटी हैं वह कभी भी नीचे की बातें स्वीकार नहीं कर सकते। बगुले से होलीहंस बन गये। तो होलीहंस सदा स्वच्छ, सदा पवित्र। पवित्रता ही स्वच्छता है। हंस सदा स्वच्छ है, सदा सफेद-सफेद। सफेद भी स्वच्छता वा पवित्रता की निशानी है। आपकी ड्रेस भी सफेद है। यह प्यूरिटी की निशानी है। किसी भी प्रकार की अपवित्रता है तो होलीहंस नहीं। होलीहंस संकल्प भी अशुद्ध नहीं कर सकते। संकल्प भी बुद्धि का भोजन है। अगर अशुद्ध वा व्यर्थ भोजन खाया तो सदा तन्दुरूस्त नहीं रह सकते। व्यर्थ चीज़ को फेंका जाता, इकट्ठा नहीं किया जाता इसलिए व्यर्थ संकल्प को भी समाप्त करो, इसी को ही होलीहंस कहा जाता है।’’ ..."

 

 

11.05.1983
"...हर एक श्रेष्ठ आत्मा होली हंस सदा एक बाप दूसरा न कोई इसी लगन में मगन आत्मायें - यही स्थिति हंस-आसन है। ऐसे होली हंसों को देख बापदादा भी हर्षित होते हैं। हर होली हंस ज्ञानी तू आत्मा, योगी तू आत्मा, विश्व-कल्याणकारी है। हर एक के दिल में दिलाराम बाप की याद समाई हुई है।..."

 


11.05.1983
"...आप एक-एक होलीहंस की पवित्रता की झलक चलन से दिखाई दे। आप सबकी श्रेष्ठ स्मृति की समर्थी, ना उम्मीद आत्माओं में उम्मीदों की समर्थी पैदा करे।..."

 

 

15.03.1984
"...दुनिया की होली एक-दो दिन की है और आप होली हंस संगमयुग ही होली मनाते हो। वो रंग लगाते हैं और आप बाप के संग के रंग में बाप समान सदा के लिए होली बन जाते हो! हद से बेहद के हो जाने से सदाकाल के लिए होली अर्थात् पवित्र बन जाते हो।..."

 

 


15.03.1984
"...यह होली का उत्सव होली अर्थात् पवित्र बनाने का, बनने का उत्साह दिलाने वाला है। जो भी यादगार विधि मनाते हैं उन सब विधियों में पवित्र बनने का सार समाया हुआ है। पहले होली बनने वा होली मनाने के लिए अपवित्रता, बुराई को भस्म करना है, जलाना है। जब तक अपवित्रता को सम्पूर्ण समाप्त नहीं किया है तब तक पवित्रता का रंग चढ़ नहीं सकता। पवित्रता की दृष्टि से एक-दो में रंग रंगने का उत्सव मना नहीं सकते। भिन्न-भिन्न भाव भूलकर एक ही परिवार के हैं, एक ही समान हैं अर्थात् भाई-भाई के एक समान वृत्ति से मनाने का यादगार है। वे तो लौकिक रूप में मनाने लिए छोटा बड़ा, नर-नारी समान भाव में मनावें इस भाव से मनाते हैं। वास्तव में भाई-भाई के समान स्वरूप की स्मृति अविनाशी रंग का अनुभव कराती है।..."

 

 


15.03.1984
"...आपके दिव्य बुद्धि रूपी पिचकारी में अविनाशी रंग भरा हुआ है ना। संग के रंग से अनुभव करते हो, उन भिन्न-भिन्न अनुभवों के रंग से पिचकारी भरी हुई है ना। भरी हुई बुद्धि की पिचकारी से किसी भी आत्मा को दृष्टि द्वारा, वृत्ति द्वारा मुख द्वारा इस रंग में रंग सकते हो जो वह सदा के लिए होली बन जाए। वो होली मनाते हैं, आप होली बनाते हो।..."

 

 


15.03.1984
"...वो अल्पकाल के लिए अपनी खुशी की मूड बनाते हैं मनाने के लिए लेकिन आप सभी सदा मनाने के लिए होली और हैपी मूड में रहते हो। मूड बनानी नहीं पड़ती है। सदा रहते हो होली मूड में और किसी प्रकार की मूड नहीं। होली मूड सदा हल्की, सदा निश्चिन्त, सदा सर्व खज़ानों से सम्पन्न, बेहद के स्वराज्य अधिकारी। यह जो भिन्न-भिन्न मूड बदलते हैं, कब खुशी की, कब ज्यादा सोचने की, कभी हल्की, कभी भारी - यह सब मूड बदल कर सदा हैपी और होली मूड वाले बन जाते हो। ऐसा अविनाशी उत्सव बाप के साथ मनाते हो। मिटाना, मनाना और फिर मिलन मनाना।..."

 

 

 

15.03.1984
"...आप सभी भी जब बाप के रंग में रंग जाते हो, ज्ञान के रंग में, खुशी के रंग में, कितने रंगों की होली खेलते हो। जब इन सब रंग से रंग जाते हो तो बाप समान बन जाते हो। ..."

 

 

 

15.03.1984
"...यहाँ भारत में तो अनेक कहानियाँ बना दी हैं क्योंकि कहानियाँ सुनने की रूचि रखते हैं। तो हर उत्सव की कहानियाँ बना दी हैं। आपकी जीवन कहानी से भिन्न-भिन्न छोटी-छोटी कहानियाँ बना दी हैं। कोई राखी की कहानी बना दी कोई होली की कहानी, कोई जन्म की कहानी बना दी। कोई राज्य दिवस की बना दी। लेकिन यह हैं सब आपके जीवन कहानियों की कहानियाँ। ..."

 


15.03.1984
"...होली का यादगार क्या है! सदा खुश रहो, हल्के रहो - यही मनाना है।...सदा होली मूड, लाइट मूड! हैपी मूड। "

 


12.04.1984
"...बापदादा सभी होलीहंसों को देख रहे हैं। हर एक होलीहंस कहाँ तक होली बने हैं, कहाँ तक हंस बने हैं! पवित्रता अर्थात् होली बनने की शक्ति कहाँ तक जीवन में अर्थात् संकल्प, बोल और कर्म में, सम्बन्ध में, सम्पर्क में लाई है। हर संकल्प, होली अर्थात् पवित्रता की शक्ति सम्पन्न है!..."