01 “...दिन प्रतिदिन कदम आगे समझते हो? 

ऐसे भी नहीं सोचना कि अभी समय पड़ा है, पुरुषार्थ कर लेंगे।

लेकिन समय के पहले समाप्ति करके और इस स्थिति का अनुभव प्राप्त करना है।

अगर समय आने पर इस स्थिति का अनुभव करेंगे तो समय के साथ स्थिति भी बदल जाएगी।

समय समाप्त तो फिर अव्यक्त स्थिति का अनुभव भी समाप्त हो, दूसरा पार्ट आ जायेगा।

इसलिए पहले से ही अव्यक्त स्थिति का अनुभव करना है। ...

तो इस ईश्वरीय दौड़ में भी तेज़ जाना है।

फर्स्ट आने वाले ही फर्स्ट के नजदीक आयेंगे।

जैसे साकार फर्स्ट गया ना।

लक्ष्य तो ऊँचा रखना है।

लक्ष्य सम्पूर्ण है तो पुरुषार्थ भी सम्पूर्ण करना है, 

तब ही सम्पूर्ण पद मिल सकता।

सम्पूर्ण पुरुषार्थ अर्थात् सभी बातों में अपने को संपन्न बनाना।

बड़ी बात तो है नहीं।

जानने के बाद याद करना मुश्किल होता है क्या? 

जानने को ही नॉलेज कहा जाता है।

अगर नॉलेज, लाइट और माईट नहीं है तो वह नॉलेज ही किस काम की?

 उनको जानना नहीं कहा जायेगा?

... नॉलेज वह चीज़ है जो वह रूप बना देती है।

ईश्वरीय नॉलेज क्या रूप बनाएगी?

 ईश्वरीय स्थिति।

तो ईश्वरीय नॉलेज लेनेवाले ईश्वरीय रूप में क्यों नहीं आएंगे।

थ्योरी और चीज़ है।

जानना अर्थात् बुद्धि में धारणा करना और चीज़ है।

धारणा से कर्म ऑटोमेटिकली हो जाता है।

धारणा का अर्थ ही है उस बात को बुद्धि में समाना।

जब बुद्धि में समां जाते हैं तो फिर बुद्धि के डायरेक्शन अनुसार कर्मेन्द्रियाँ भी वह करती हैं।

नॉलेजफुल बाप के हम बच्चे हैं और ईश्वरीय नॉलेज की लाइट माईट हमारे साथ है।

ऐसे समझ कर चलना है।

नॉलेज को सिर्फ सुनना नहीं लेकिन समाना है।

भोजन खाना और चीज़ है हज़म करना और चीज़ है।

खाने से शक्ति नहीं आएगी।

हज़म करने से शक्ति कहाँ से आ जाती है, खाए हुए भोजन को हज़म करने से ही शक्ति रूप बनता है।

शक्तिवान बाप के बच्चे और कुछ कर न सकें, यह हो सकता है? 

नहीं तो बाप के नाम को भी शरमाते(बदनाम करते) हैं।

सदैव यही एम रखनी चाहिए हम ऐसा कर्म करें जो मिसाल बन दिखाएं।

इंतज़ार में नहीं रहना है लेकिन एग्जाम्पल बनना है।

बाप एग्जाम्पल बना ना।...”

Ref:- AV - 24.01.1970