तो अनेक तरफ जाने की आवश्यकता ही क्या?
लेकिन जो एक द्वारा सर्व रसनाओं को लेने के अभ्यासी
नहीं होते वह अनेक तरफ रस लेने की कोशिश करते।
तो फिर एक भी प्राप्ति नहीं होती।
और एक बाप के साथ लगाने से अनेक प्राप्तियाँ होती है।
सिर्फ “एक” शब्द भी याद रखो तो
उसमें सारा ज्ञान आ जाता,
स्मृति भी आ जाती,
सम्बन्ध भी आ जाता,
स्थिति भी आ जाती और
साथ-साथ जो प्राप्ति होती है वह भी उस एक शब्द से स्पष्ट हो जाती।
एक की याद, स्थिति एकरस और ज्ञान भी सारा एक की याद का ही मिलता है।
प्राप्ति भी जो होती है वह भी एकरस रहती है।
आज बहुत खुशी कल गुम हो जाती इसमें प्राप्ति नहीं होती।
जो अतीन्द्रिय सुख है वह भी एकरस नहीं रहता।
कभी बहुत तो कभी कम।
अब तो एकरस अवस्था में स्थित होने का पेपर देने लिये जा रहे हो।
देखेंगे पेपर में कितने मार्क्स लेते है।
हमेशा यह कोशिश करो हम औरों को कर के दिखाये।
हमारे कर्म और हमारी चलन औरों की पढ़ाई
कराये।...”