"...बन्धन वाला अपने को आन्तरिक खुशी वा सुख में सदा अनुभव नहीं करेगा।..."
"...ऐसे सूक्ष्म बन्धन में बंधी हुई आत्मा इस ब्राह्मण जीवन में भी थोड़े समय के लिए सेवा का साधन, संगठन की शक्ति का साधन, कोई न कोई प्राप्ति के साधन, श्रेष्ठ संग का साधन इन साधनों के आधार से चलते हैं, जब तक साधन हैं तब तक खुशी और सुख की अनुभूति करते हैं।
लेकिन साधन समाप्त हुआ तो खुशी भी समाप्त।
सदा एकरस नहीं रहते।
कभी खुशी में ऐसा नाचता रहेगा, उस समय जैसेकि उन जैसा कोई है ही नहीं।
लेकिन रूकेगा फिर ऐसा जो छोटा-सा पत्थर भी पहाड़ समान अनुभव करेगा क्योंकि ओरीज्नल शक्ति न होने के कारण साधन के आधार पर खुशी में नाचते।..."
"...मन्सा बन्धन की विशेष निशानी है, महसूसता शक्ति समाप्त हो जाती है इसलिए इस सूक्ष्म बन्धन को समाप्त करने के बिना कभी भी आन्तरिक खुशी, सदा के लिए अतीन्द्रिय सुख अनुभव नहीं कर सकेंगे।..."
"...संगमयुग की विशेषता ही है - अतीन्द्रिय सुख में झूलना, सदा खुशी में नाचना।..."
"...खुशी-खुशी से अपने को सेवा में आगे बढ़ाते चलो।..."
"...याद की खुशी से अनेक आत्माओं को खुशी देने वाले सेवाधारी हो ना।..."
"...हर स्थान की सेवा अपनी-अपनी है।
फिर भी अगर स्वयं लक्ष्य रख आगे बढ़ते हैं तो यह आगे बढ़ना सबसे खुशी की बात है।..."
"...गोल्डन चांस सभी को नहीं मिलता है।
कोटों में कोई को ही मिलता है।
आपको तो मिल गया।
इतनी खुशी रहती है?
दुनिया में जो किसी के पास नहीं वह हमारे पास है।
ऐसे खुशी में सदा स्वयं भी रहो और दूसरों को भी लाओ।..."