09.06.1969

"..जितना-जितना आगे बढ़ेंगे

तो न चाहते हुए भी

सतयुगी नजारे स्वयं ही सामने आयेंगे।

लाने की भी जरूरत नहीं।

जितना-जितना नजदीक होते जायेंगे,

उतना-उतना नजारे भी नजदीक होते जायेंगे।

 

सतयुग में चलना है और खेल-पाल करना है।

यह तो निश्चित है ही

आज जो भी सभी बैठे हैं

उनमें से कौन समझता है कि

हम श्रीकृष्ण के साथ पहले जन्म में आयेंगे?

 

उनके फैमिली में आयेंगे वा

सखी सखा बनेंगे वा

तो स्कूल के साथी बनेंगे?

 

जो समझते हैं

तीनों में से कोई न कोई जरूर बनेंगे

ऐसे निश्चय बुद्धि कौन है?

 

(सभी ने हाथ उठाया)

नजदीक आने वालों की

संगमयुग में निशानी क्या होगी?

 

यहाँ कौन अपने को नजदीक समझते हैं?

यज्ञ सर्विस वा जो बापदादा का कार्य है

उसमें जो नजदीक होगा

वही वहाँ खेल-पाल आदि में नजदीक होंगे।

यज्ञ की जिम्मेवारी वा

बापदादा के कार्य की जिम्मेवारी के

नजदीक जितना-जितना होंगे

उतना वहाँ भी नजदीक होंगे। ..."


 

OmShanti

कमाल तो प्यारे बाबा की है

जो अनगिनत बार इस पुरानी दुनिया में

अवतरित होकर

इसको स्वर्ग बनाकर

हम बच्चों को परमधाम से

खेलपाल करने भेजा है।