(on base of BaapDada's Avyakt Vani dated 19-07-72)


  • "... फल की इच्छाएं भी भिन्न-भिन्न प्रकार की हैं,
    • जैसे अपार दु:खों की लिस्ट है।
    • वैसे फल की इच्छाएं वा जो उसका रेस्पान्स लेने का सूक्ष्म संकल्प ज़रूर रहता है।
  • कुछ-ना-कुछ एक-दो परसेन्ट भी होता ज़रूर है।
    • बिल्कुल निष्काम वृति रहे - ऐसा नहीं होता।
    • पुरूषार्थ के प्रारब्ध की नॉलेज होते हुए भी उसमें अटैचमैंट ना हो,
      • वह अवस्था बहुत कम है।
      • मिसाल - आप लोगों ने किन्हों की सेवा की, आठ को समझाया, उसकी रिजल्ट में एक-दो आप की महिमा करते हैं और दूसरे ना महिमा, ना ग्लानि करते हैं, गम्भीरता से चलते हैं।
      • तो फिर भी देखेंगे - आठ में से आपका अटेन्शन एक-दो परसेन्टेज में उन दो तीन तरफ ज्यादा जावेगा जिन्होंने महिमा की; उसकी गम्भीरता की परख कम होगी, बाहर से जो उसने महिमा की उनको स्वीकार करने के संस्कार प्रत्यक्ष हो जावेंगे।
      • दूसरे शब्दों में कहते हैं - इनके संस्कार, इनका स्वभाव मिलता है।
      • फलाने के संस्कार मिलते नहीं हैं, इसलिये दूर रहते हैं।
      • लेकिन वास्तव में है यह सूक्ष्म फल को स्वीकार करना। ..."