BaapDada Ki Muskarahat

शिवबाबा से मिलने निकली ब्रह्मा की सन्तान...


18.01.1969

"...तो मुस्कराते हुए बाबा बोले -

भल तुम बच्चे साकार शरीर में साकारी सृष्टि में हो

फिर भी साकार में रहते ऐसे ही लाइट माइट रूप होकर रहना है

जो कोई भी देखे तो महसूस करे कि

यह कोई फरिश्ते घूम रहे हैं।

लेकिन वह अवस्था तब होगी

जब एकान्त में बैठे अन्तर्मुख अवस्था में रह अपनी चेकिंग करेंगे।

ऐसी अवस्था से ही आत्माओं को आप बच्चों से साक्षात्कार होगा। ..."


 

"...मैंने कहा बाबा मैं आई हूँ।

कहा ईशू बच्ची को भी साथ लाई हो ना!

देखना ईशू बच्ची, मैं दो मिनट में इतने सारे पत्र पूरा कर देता हूँ।

शिव बाबा तो साक्षी होकर मुस्करा रहे थे।

इतने में देखा कि ईशू बहन भी वहाँ इमर्ज हो गई।

ईशू का चेहरा बिल्कुल ही शान्त था।

बाबा ने कहा बच्ची क्या सोच रही हो?

आज तो पत्र का जवाब देना है।

उसी समय जैसे साकार वतन का संस्कार पूर्ण रीति इमर्ज था।

मम्मा खड़ी होकर देख रही थी।

इतने में ही शिव बाबा ने ब्रह्मा बाबा को कहा आप कहाँ हो?

वतन में बैठे हो?

फिर एक सेकेण्ड में ही रूप बदल गया।

बाबा ने कुछ कहा नहीं, एकदम डेड साइलेन्स हो गये।

इतने में बाबा ने मुझे कहा कि बच्ची यह पत्र खोलकर देखो।

मैंने कहा बाबा पत्र तो ढेर हैं।

बाबा ने कहा बच्ची इसमें तो एक सेकेण्ड लगेगा।

क्योंकि सभी में एक ही बात है।

इसके बाद बाबा ने सुनाया कि सभी पत्रों में बच्चों के उल्हने ही हैं।

पत्रों में सभी उल्हने ही थे।

अब देखना बाबा बच्चों को रेस्पाण्ड करते हैं।

देखना एक सेकेण्ड में मैं सभी को जवाब दे देता हूँ।

फिर बाबा ने सभी पत्रों का लाल अक्षरों में यहाँ माफिक ही पत्र लिखा।

पत्र में क्या था - "ब्राह्मण कुल भूषण, स्वदर्शनचक्रधारी, ये रत्नों बच्चों प्रति, समाचार यह है कि

सभी बच्चों के उल्हनों के पत्र सूक्ष्मवतन में पाये।

रेस्पान्ड में बापदादा बच्चों को कह रहे हैं कि

ड्रामा की भावी के बन्धन में सर्व आत्मायें बंधी हुई हैं।

सभी पार्ट बजा रही हैं।

उसी ड्रामा के मीठे-मीठे बन्धन अनुसार

आज अव्यक्त वतन में पार्ट बजा रहा हूँ।

सभी बच्चों को दिल व जान सिक व प्रेम से

अव्यक्त रूप से याद प्यार बहुत-बहुत-बहुत स्वीकार हो।

जैसे बाप की स्थिति है वैसे बच्चों को स्थिति रखनी है"।

यह है बापदादा का पत्र। ..."


 

"...जैसे गुलदस्ते में फूल भी डाले जाते और पत्ते भी डाले जाते।

फूल दो तीन प्रकार के अलग-अलग थे,

उनको देख रहे थे और छांट रहे थे।

तो बाप-दादा दोनों उसी ही कार्य में बिजी थे।

मुझे देखा भी नहीं।

जब मैं नजदीक गई तो मुझे देख मुस्कराया - और कहा कि

मैं सारा दिन बिजी रहता हूँ।

देखो बच्ची कितनी बड़ी कारोबार चल रही है।

यह फूल पत्ते तीन क्वालिटी के अलग-अलग करके रखे हैं।

पहले बाबा ने मुझे फूल दिखाये जिनकी संख्या बहुत कम थी

फिर बीच की क्वालिटी दिखाई जिसमें फूल बहुत थे

लेकिन साथ में थोड़े पत्ते भी लगे थे।

फूल अच्छे थे लेकिन जो पत्ते लगे हुए थे वह कुछ डिफेक्टेड थे।

तीसरी क्वालिटी में फिर पत्ते जास्ती थे और फूल बहुत ही कम थे।

इस पर बाबा ने मुझे समझाया कि

यह पहली क्वालिटी जिसमें थोड़े फूल हैं - यह वह बच्चे हैं जो

बिल्कुल दिल पर चढ़े हुए हैं

और ऐसे दिल वाले अनन्य बच्चे बहुत ही थोड़े हैं।

दूसरे नम्बर वाले बच्चे हैं बहुत अच्छे, परन्तु थोड़ा कुछ कमी है।

फूल बने हैं लेकिन थोड़ी कमी है।

बाकी तीसरी क्वालिटी के हैं प्रजा।

उनमें कोई फूल निकलता है जो पीछे जाने वाला है।

बाकी सब हैं प्रजा।

तो दो ऊपर की क्वालिटी बच्चों की है।

बापदादा अब गुलदस्ता सजाते हैं।

जब गुलदस्ता सजाया जाता है तो सिर्फ फूल डालने से गुलदस्ता नहीं शोभता।

उसमें कुछ पत्ते भी चाहिए।

तुम फूल हो लेकिन तुम्हारे साथ पत्ते भी चाहिए।

तुम राजा बनेंगे तो प्रजा भी चाहिए ना।

तो प्रजा रूपी पत्तों के बीच में फूल शोभता है।

तो यहाँ बैठे तुम बच्चों का गुलदस्ता बनाता हूँ।

और देखता हूँ कि एक फूल ने कितनी प्रजा बनाई है।

जिसने जास्ती प्रजा बनाई है उनका गुलदस्ता भी शोभता है। ..."

 

 


 

21.01.1969

"...जैसे दो मित्र मिलते हैं, ऐसे ही बाप-दादा दोनों की आपस में

रूहरूहान की सीन दिखाई दे रही थी।

ब्रह्मा बाबा कहे जो आज्ञा और शिवबाबा कहे जो बच्चे की राय।

दोनों ही मुस्करा रहे थे।

हमने कहा एक सेकेण्ड के लिए बच्चों से मुलाकात करके आइये।

उस समय दोनों की तरफ देखा तो आँखों से ऐसा लगा कि

जो शिवबाबा ने कहा वह ब्रह्मा बाबा को मंजूर था। ..."

 


 

"...ड्रामा में पहले भी देखा कि जो भी गये छुट्टी लेकर नहीं गये।

इसलिए यह समझो कि ब्राह्मण कुल की ड्रामा में यह रसम है।

जो ड्रामा में नूंधी हुई है वह रसम चली।

यूँ तो समझते हैं कि आप सभी का बहुत प्यार साकार के साथ था।

था नहीं है भी।

प्यार नहीं होता तो इस सभा में कैसे होते।

साकार में फॉलो करने के लिए इनका ही तन था तो प्यार क्यों नहीं होगा।

स्नेह था और है भी।

यह बाप बच्चों की निशानी है।

इससे साकार भी वतन में मुस्करा रहे हैं।

बच्चों का स्नेह है तो क्यों मेरा नहीं।

लेकिन वह जानते हैं कि ड्रामा में जो भी पार्ट होता है वह कल्याण- कारी है।

वह विचलित नहीं होते।

वह तो सम्पूर्ण अचल, अडोल, स्थिर था और है भी।

लेकिन आप बच्चों से हजार गुणा स्नेह उनमें जास्ती है।

अब स्नेह का सबूत देना है। यह भी एक छिपने का खेल है।

तो विचार सागर मंथन करो, हलचल का मंथन न करो।

जो शक्ति ली है उनको प्रत्यक्ष में लाओ। ..."

 


 

 

25.12.1969

"...आज एक भक्तिमार्ग का चित्र याद आ रहा है।

आज देख भी रहे थे तो मुस्करा भी रहे थे।

देख रहे थे अंगुली देने वाले तो हैं ना।

अंगुली दी भी है वा देनी है?

कहाँ तक अंगुली पहुँची है?

अगर अंगुली देनी है तो इसका मतलब है

जहाँ तक अंगुली पहुँची है वहाँ तक नहीं दी है।

पहाड उठा नहीं है।

क्यों, इतना भारी है क्या?

इतनों की अंगुली भी मिल गई है फिर भी

पहाड क्यों नहीं उठता?

कल्प पहले का जो यादगार है वह सफल तब हुआ है

जब सभी का संगठित रूप में बल मिला है,

इसलिये थोड़ा उठता है फिर बैठ जाता है।

हरेक अपनी-अपनी अंगुली लगा रहे हैं परन्तु

अब आवश्यकता है संगठित रुप में।

स्वयं की अंगुली दी है लेकिन अब

संगठन में शक्ति तब भरेगी जब वह बल आयेगा।

अब शक्ति दल की प्रत्यक्षता होनी है। ..."

Dadi Ki Muskarahat


03.10.1969

"...बापदादा बच्चों को हल्का बनाते हैं और बच्चे

जानबूझकर अपने पर बोझ ले लेते हैं।

क्योंकि 63 जन्मों से विकर्मों का बोझ,

लोक मर्यादा का बोझ उठाने के आदि बन गये हैं।

इसलिए बोझ उतार कर भी फिर रख लेते हैं।

जिनकी जो आदत होती है वो

आदत से मजबूर हो जाते हैं ना।

इसलिए अपनी आदतें होने कारण

अपनी जिम्मेदारी फिर अपने पर ही रख देते हैं।

एक-एक पाण्डव

अगर सम्पूर्ण समर्पण बनकर ही निकले

तो बताओ क्या होगा?

जब पाण्डव तैयार हो जायेंगे तो

कौरव और यादव मैदान में आ जायेंगे

और फिर क्या होगा?

आपका राज्य आपको प्राप्त हो जायेगा। ..."