30.06.1977 | Read Full Murli

प्रत्यक्षता का नगाड़ा...

"... अब ड्रामा की भावी सुना रही है कि - आवाज़ से परे जाना है।

यह शरीर की खिटखिट भी निमित्त सुना रही है कि शिक्षा बहुत हो गई है।

अभी सुनने के बाद समाना अर्थात् स्वरूप बनना - उसकी सीजन है।

सुनने की सीजन कितने वर्ष चली!

चाहे साकार द्वारा, चाहे रिवाईज कोर्स द्वारा, सुनने का सीजन बहुत चला है।

तो अभी स्वरूप द्वारा सर्विस करना।

अभी लास्ट यही सीजन रह गया है ना, जिसमें ही प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजेगा।

आवाज़ बन्द होगा, साइलेन्स होगा।

लेकिन साइलेन्स द्वारा ही नगाड़ा बजेगा।

जब तक मुख से नगाड़े ज्यादा हैं, तब तक प्रत्यक्षता का नहीं।

जब प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजेगा तब मुख के नगाड़े बन्द हो जाएंगे।

गाया हुआ भी है ‘साइंस के ऊपर साइलेन्स की जीत’, न कि वाणी की।

समय की समाप्ति की निशानी क्या होगी?

ऑटोमेटीकली आवाज़ में आने की दिल नहीं होगी - प्रोग्राम प्रामाण नहीं, लेकिन नैचुरल स्थिति।

जैसे साकार बाप को देखा, तो सम्पूर्णता की निशानी क्या दिखाई दी?

दो मिनट हैं या एक मिनट है, उसकी पहचान इस स्थिति से होती जा रही है।

ऑटोमेटिक वैराग आएगा ज्यादा आवाज़ में आने से।

जैसे अभी चाहते हुए भी आदत आवाज़ में ले आती, वैसे चाहते हुए भी आवाज़ से परे हो जाएंगे।

प्रोग्राम बनाकर आवाज में आएंगे।

जब यह चेन्ज दिखाई दे, तब समझो अभी विजय का नगाड़ा बजने वाला है।

आजकल चारों ओर मैजारिटी से पूछेंगे तो सबको सुख से भी शान्ति आधिक चाहिए।

वह एक घड़ी भी शान्ति का अनुभव इतना श्रेष्ठ मानते हैं जैसे भगवान की प्राप्ति हो गई।

तो एक सेकेण्ड में शान्ति का अनुभव कराने वाले स्वयं शान्त स्वरूप में स्थित होंगे ना।

विनाश कब होगा?

उसके लिए कौन निमित्त बनेगा?

घड़ी की सुइयां कौन सी होगी?

घंटे बजने के निमित्त सुई होती है ना?

तो विनाश के घंटे बजने के लिए सुई कौन है?

सर्व शक्तियों का स्टॉक जमा किया है?

क्योंकि अगर स्टॉक जमा नहीं होगा तो अनेक जन्म की प्रालब्ध को भी पा न सकेंगे।

इसी एक जन्म में अनेक जन्मों का जमा करते हो।

इतना जमा किया है जो 21 जन्म वह प्रालब्ध भोगते रहो?

इतनी जमा किया है, जो भिखारी आत्माओं को महादानी बन दान कर सको?

सदा स्टॉक को चेक करो।

स्टॉक में सर्वशक्तियां चाहिए।

ऐसे नहीं समाने की शक्ति है, सहन शक्ति नहीं तो हर्जा नहीं।

लेकिन फाइनल पेपर में क्वेश्चन वही आएगा जिस शक्ति की कमी है।

ऐसे कभी नहीं सोचना - छ: नहीं दो तो हैं, धारण नहीं है, सर्विस तो है ही।

सर्विस नहीं है, योग तो है ही।

लेकिन सब चाहिए।

जैसे बाप में सब है ना ज्ञान, शक्ति, गुण.... तो फालो फादर करना है।

सदा स्वचिन्तन में अपने स्टॉक को जमा करने में लगो।

इसी समय को आगे चल करके बहुत याद करना पड़ेगा।

तो पीछे यह न सोचना पड़े, पश्चात्ताप नहीं करना पड़े, उसके लिए अभी से ‘स्वचिन्तन’ में लगो। ..."

 

 

 

 


09.11.1969


"...ऐसे विजयी रत्न जो अनेकों को विजयी बना सके वही माला के मुख्य मणके हैं।

तो विजयी की निशानी है आप समान विजयी बनाना।

अभी यह सर्विस रही हुई है।

अनेकों को विजयी बनाना है सिर्फ खुद को नहीं बनाना है।

दीपमाला में पूरी दीपमाला जगी हुई होती है।

जब दीपमाला कहा जाता है तो अनेक जगे हुए दीपकों की माला हरेक ने गले में डाली है?

ऐसे जगे हुए दीपकों की माला हरेक रत्न और गले में जब डालेंगे तब विजय का नगाड़ा बजेगा।

जैसे दिव्य गुणों की माला अपने में डाली है वैसे अनेक जगे हुए दीपकों की माला अपने गले में डालना है।

जितनी यहाँ दीपकों की माला अपने गले में डालोगे उतनी वहाँ प्रजा बनेगी।

कोई-कोई माला बहुत लम्बी-चौडी होती है।

कोई सिर्फ गले में पहनने तक होती है।

तो माला कौन सी पहननी है?

बहुत बड़ी।

ऐसी माला से अपने आपको श्रृंगार करना है।

कितने दीपकों की माला अब तक डाली है?

गिनती कर सकते हो वा अनगिनत है?

दीपक भी अच्छे वह लगते हैं जो तेज जगे हुए होते हैं।

टिम-टिम करने वाले अच्छे नहीं लगते।..."

 

 

 

 

 

26.03.1970

"...नयी दुनिया का प्लैन प्रैक्टिकल में आना अर्थात् पुराणी दुनिया की कोई भी बात फिर से प्रैक्टिकल में न आये।

सब लोग कहते हैं।

फिर कोई मन में कहते हैं, कोई मुख से कहते हैं कि प्लैन्स तो बहुत बनते हैं, अब प्रैक्टिकल में देखें।

लेकिन यह संकल्प भी सदा के लिए मिटाना यह महारथी का काम है।

सभी की नज़र अभी भी मधुबन में विशेष मुख्य रत्नों पर है।

तो उस नज़र में ऐसे दिखाना है जो उनको नज़र आप लोगों की बदली हुयी नज़रों को ही देखें।

तो अब वह पुरानी नज़र नहीं, पुरानी वृत्ति नहीं।

यह संगठन कॉमन नहीं है, यह संगठन कमाल का है।

इस संगठन से ऐसा स्वरुप बनकर निकलना है जो सभी को साक्षात् बापदादा के ही बोल महसूस हों।

बापदादा के संस्कार सभी के संस्कारों में देखने में आयें।

अपने संस्कार नहीं।

सभी संस्कारों को मिटाकर कौन से संस्कार भरने हैं?

बापदादा के।

तो सभी को साक्षात्कार हो कि यह साक्षात् बापदादा बनकर ही निकले हैं।

ऐसा सभी को कराना है।

कोई भी पुराना संकल्प वा संस्कार सामने आये ही नहीं।

पहले यह भेंट करो, यह बापदादा के संस्कार हैं?

अगर बापदादा के संस्कार नहीं तो उन संस्कारों को टच भी नहीं करो।

बुद्धि में संकल्प रूप से ही टच न हो।

जैसे क्रिमिनल चीज़ को टच नहीं करते हो वैसे ही अगर बापदादा के समान संस्कार नहीं है तो उन संस्कारों को भी टच नहीं करना है।

जैसे नियम रखते हो ना कि यह नहीं करना है तो फिर भल क्या भी परिस्थिति आती है लेकिन वह आप नहीं करते हो।

परिस्थिति का सामना करते हो, क्योंकि लक्ष्य है यह करना है।

वैसे ही जो अपने संस्कार बापदादा के समान नहीं है उनको बिलकुल टच करना नहीं है।..."

 

 

 

 

 

28.05.1970

"..सदैव एकरस स्थिति रहे और विघ्नों को भी हटा सकें इसके लिए सदैव दो बातें अपने सामने रखनी है।

जैसे एक आँख में मुक्ति टूसरी आँख में जीवनमुक्ति रखते हैं।

वैसे एक तरफ़ विनाश के नगाड़े सामने रखो और दूसरे तरफ़ अपने राज्य के नज़ारे सामने रखो, दोनों ही साथ में बुद्धि में रखो।

विनाश भी, स्थापना भी।

नगाड़े भी नज़ारे भी।

तब कोई भी विघ्न को सहज पार कर सकेंगी।..."

 

 

 

 


23.01.1973

"... याद की यात्रा में रहने से कोई नये प्लान्स प्रैक्टिकल में लाने के लिए इमर्ज हुए?

जैसे चारों ओर संगठन के रूप में याद का बल अपने में भरने का पुरूषार्थ किया वैसे अब फिर आने वाले यह दो मास विशेष बुलन्द आवाज़ से चारों ओर बाप को प्रत्यक्ष करने के नगारे बजाने हैं।

जिन नगारों की आवाज़ को सुनकर सोई हुई आत्मायें जाग जायें।

चारों ओर यह आवाज़ कौन-सा है और इस समय कैसा श्रेष्ठ कर्त्तव्य चल रहा है?

हरेक आत्मा अपना श्रेष्ठ भाग्य अब ही बना सकती है।

ऐसे ही चारों ओर भिन्न-भिन्न युक्तियों से भिन्न-भिन्न प्रोग्राम से बाप की पहचान का नगाड़ा बजाओ।

इन दो मास में सभी को इस विशेष कार्य में अपनी विशेषता दिखानी है।

जैसे याद की यात्रा में हरेक ने अपने पुरूषार्थ प्रमाण रेस में आगे बढ़ते रहने का पुरूषार्थ किया, वैसे अब इस दो मास के अन्दर बाप को प्रत्यक्ष करने के नये-नये प्लान्स प्रैक्टिकल में लाने की रेस करो।..."

 

 

 

 

 

14.04.1973

"... जैसे स्थूल सैनिक जब युद्ध के मैदान में जाते हैं तो एक ही ऑर्डर से एक ही समय वे चारों ओर अपनी गोली चलाना शुरू कर देते हैं।

अगर एक ही समय, एक ही ऑर्डर से वे चारों ओर घेराव न डालें तो विजयी नहीं बन सकते।

ऐसे ही रूहानी सेना, संगठित रूप में, एक ही इशारे से और एक ही सेकेण्ड में, सभी एक-रस स्थिति में स्थित हो जायेंगे, तब ही विजय का नगाड़ा बजेगा।

अब देखो कि संगठित रूप में क्या सभी को एक ही संकल्प और एक ही पॉवरफुल स्टेज (Powerful Stage) के अनुभव होते हैं या कोई अपने को ही स्थित करने में मस्त होते हैं, कोई स्थिति में स्थित होते हैं और कोई विघ्न विनाश् करने में ही व्यस्त होते हैं?

ऐसे संगठन की रिजल्ट में क्या विजय का नगाड़ा बजेगा?

विजय का नगाड़ा तब बजेगा जब सभी के सर्व-संकल्प, एक संकल्प में समा जायेंगे, क्या ऐसी स्थिति है?

क्या सिर्फ थोड़ी सी विशेष आत्माओं की ही एक-रस स्थिति की अंगुली से कलियुगी पर्वत उठना है या सभी के अंगुली से उठेगा?

यह जो चित्र में सभी की एक ही अंगुली दिखाते हैं उसका अर्थ भी संगठन रूप में एक संकल्प, एक मत और एक-रस स्थिति की निशानी है।

तो आज बापदादा बच्चों से पूछते हैं कि यह कलियुगी पहाड़ कब उठायेंगे और कैसे उठायेंगे?

वह तो सुना दिया, लेकिन कब उठाना है?

(जब आप ऑर्डर करेंगे) क्या एक-रस स्थिति में एवर-रेडी हो?

ऑर्डर क्या करेंगे?

ऑर्डर यही करेंगे कि एक सेकेण्ड में सभी एक-रस स्थिति में स्थित हो जाओ।

तो ऐसे ऑर्डर को प्रैक्टिकल में लाने के लिए एवर-रेडी हो?

वह एक सेकेण्ड सदा काल का सेकेण्ड होता है।

ऐसे नहीं कि एक सेकेण्ड स्थिर हो फिर नीचे आ जाओ। ..."

 

 

 

 

 

13.09.1975

"...अपने कम्बाइन्ड रूप शिव-शक्ति के रूप की स्मृति में रहना चाहिए।

सिर्फ शक्ति भी नहीं-शिव शक्ति।

कम्बाइन्ड रूप की स्थिति से जैसे स्थूल में दो को देखते हुए वार करने के लिए संकोच होता है - वैसे ही कम्बाइन्ड स्थिति का प्रभाव उस समय के प्रकृति और व्यक्ति के ऊपर पड़ेगा अर्थात् किसी भी प्रकार के वार करने में संकोच होगा।

न सिर्फ व्यक्ति लेकिन प्रकृति का तत्व भी संकोच करेगा अर्थात् वह भी वार नहीं कर सकेगा।

एक कदम की दूरी पर भी सेफ (सुरक्षित) हो जायेंगे।

शस्त्र होते हुए भी, शस्त्र शक्तिवान् होते हुए भी निर्बल हो जायेंगे।

लेकिन उस सेकेण्ड परिवर्तन करने की शक्ति यूज़ (प्रयोग) करो कि मैं अकेली नहीं, मैं फीमेल नहीं, शिव-शक्ति हूँ और कम्बाइन्ड हूँ।

इसमें भी परिवर्तन शक्ति चाहिए ना?

जो स्वयं की पॉवरफुल स्मृति और वृत्ति से व्यक्ति को व प्रकृति को परिवर्तन कर लें।

अब तो यह दूसरी-तीसरी चौपड़ी या दूसरी-तीसरी क्लास के पेपर्स है।

फाइनल (अन्तिम) पेपर की रूप-रेखा तो इससे कई गुना भयानक रूप की होगी।

फिर क्या करेंगे।

कइयों का संकल्प चलता है - कौन-सा ?

कई स्नेह और हुज्जत में कहते हैं कि इस दृश्य के पहले ही हमको बुलाना, हम भी वतन से देखेंगे।

लेकिन शक्ति स्वरूप का प्रैक्टिकल पार्ट व शक्ति अवतार की प्रत्यक्षता का पार्ट, स्वयं द्वारा सर्वशक्तिवान् बाप को प्रत्यक्ष करने का पार्ट ऐसी ही परिस्थिति में होना है।

इसलिये ऐसे नजायें को, अकाले मृत्यु के नगाड़ों को देखने और सुनने के लिये परिवर्तन की शक्ति को बढ़ाओ।

एक सेकेण्ड में परिवर्तन करो, क्योंकि खेल ही एक सेकेण्ड के आधार पर है।..."

 

 

 

 


07.01.1977

"... जब साईन्स के साधन धरती पर बैठे हुए स्पेस (Space;अंतरिक्ष) में गए हुए यन्त्र को कन्ट्रोल कर सकते हैं, जैसे चाहे जहाँ चाहे वहाँ मोड़ सकते हैं, तो साईलेन्स के शक्ति-स्वरूप, इस साकार सृष्टि में श्रेष्ठ संकल्प के आधार से जो सेवा चाहे, जिस आत्मा की सेवा करना चाहे वो नहीं कर सकते?

लेकिन अपनी-अपनी प्रवृत्ति से परे अर्थात् उपराम रहो।

जो सभी खज़ाने सुनाए वह स्वयं के प्रति नहीं, विश्व-कल्याण के प्रति युज़ (USE;प्रयोग) करो।

समझा, अब क्या करना है?

आवाज़ द्वारा सर्विस, स्थूल साधनों द्वारा सर्विस और आवाज़ से परे ‘सूक्ष्म साधन संकल्प’ की श्रेष्ठता, संकल्प शक्ति द्वारा सर्विस का बैलेन्स प्रत्यक्ष रूप में दिखाओ तब विनाश का नगाड़ा बजेगा।

समझा? ..."

 

 

 

 

 


01.04.1978

"... हर सेकेण्ड, हर संकल्प में बाबा-बाबा याद रहे मैं-पन समाप्त हो जाए-जब मैं नहीं तो मेरा भी नहीं।

मेरा स्वभाव, मेरे संस्कार हैं, मेरी नेचर है, मेरा काम या ड्यूटी, मेरा नाम, मेरी शान, मैं-पन में यह मेरा-मेरा भी समाप्त हो जाता है।

मैं-पन और मेरा-पन समाप्त हुआ यही समानता और सम्पूर्णता है।

स्वप्न में भी मैं-पन न हो, इसको कहा जाता है, अश्वमेध यज्ञ में मैंपन के अश्व को स्वाहा करना।

यही अन्तिम आहुति है।

और इसी के आधार पर ही अन्तिम विजय के नगाड़े बजेंगे।..."

 

 

 

 

 

 

12.12.1979

"... अंगद का जो अब तक गायन हो रहा है, वह किन का गायन है?

अपना ही गायन फिर से सुन रहे हो।

जो कल्प पहले विजय प्राप्त की है उस विजय का नगाड़ा अब भी सुन रहे हो।

वह नक्शा अभी आपके सामने है कल्प-कल्प विजयी हो। ..."

 

 

 

 


26.01.1983

"...सभी की जिम्मेवारी होते हुए भी विशेष मधुबन निवासियों की जिम्मेवारी है।

डबल जिम्मेवारी ली है ना।

जेसे हाल का उद्घाटन कराया तो चाल का भी उद्घाटन हो गया है?

वह भी रिर्हसल हुई वा नहीं।

दोनों का मेल हो जायेगा तब ही सफलता का नगाड़ा चारों ओर तक पहुँचेगा।

जितना ऊंचा स्थान होता है उतनी लाइट चारों ओर ज्यादा फैलती है।

यह तो सबसे ऊंचा स्थान है तो यहाँ से निकला हुआ आवाज़ चारों ओर तक पहुंचे उसके लिए लाइट माइट हाउस बनना है।..."

 

 

 

 


11.04.1983

"...विघ्न आया फिर मिटाया तो अखण्ड अटल तो नहीं कहेंगे।

इसलिए ‘सदा’ शब्द पर और अटेन्शन।

सदा याद में रहने वाले सदा निर्विघ्न होंगे।

संगमयुग विघ्नों को विदाई देने का युग है।

जिसको आधा कल्प के लिए विदाई दे चुके उसको फिर आने न दो।

सदा याद रखो कि हम विजयी रत्न हैं।

विजय का नगाड़ा बजता रहे।

विजय की शहनाईयाँ बजती रहती हैं, ऐसे याद द्वारा बाप से कनेक्शन जोड़ा और सदा यह शहनाईयाँ बजती रहें।

जितना-जितना बाप के प्यार में, बाप के गुण गाते रहेंगे तो मेहनत से छूट जायेंगे।..."

 

 

 

 


30.04.1983

"...पूजन का आधार है - चारों सबजेक्ट में पवित्रता, स्वच्छता, सच्चाई, सफाई।

ऐसे पर बापदादा भी सदा स्नेह के फूलों से पूजन अर्थात् श्रेष्ठ मानते हैं।

परिवार भी श्रेष्ठ मानते हैं और पूजन अर्थात् श्रेष्ठ मानते हैं।

परिवार भी श्रेष्ठ मानते हैं और विश्व भी वाह-वाह के नगाड़े बजाए उन्हों की मन से पूजा करेगा।

और भक्त तो अपना ईष्ट समझ दिल में समायेंगे।

तो ऐसे पूज्य बने हो?

जब है ही परमपिता।

सिर्फ पिता नहीं है लेकिन परम है तो बनायेंगे भी परम ना!

पूज्य बनना बड़ी बात नहीं है लेकिन परम पूज्य बनना है।..."

 

 

 

 

 

04.05.1983

"...विश्व-कल्याण के ठेकेदार इतने बड़े आक्यूपेशन वाले और यह बच्चों के खेल खेलते, यह कब तक?

विश्व आपका इन्तजार कर रहा है कि शान्ति के दूत आये की आये।

हमारे देव हमारे ऊपर शान्ति की आशीर्वाद वा कृपा करने के लिए आये कि आये।

जोर-जोर से चिल्ला के घण्टियाँ बजाते।

कभी तो चिमटे भी बजाते हैं, नगाड़े बजाते हैं।

आओ, आओ करके पुकारते हैं।

ऐसी देव आत्मायें अगर अपने बचपन के खेल में रहेंगी तो उन्हों की पुकार सुनेंगी कैसे!

इसलिए पुकार सुनो और उपकार करो।

समझा, क्या करना है।

अच्छा बाप भी समय का ख्याल रखता, आप लोग नहीं रखते।..."

 

 

 

 

 

01.06.1983

"...ऐसा आवाज़ निकले जो चारों ओर पेपर्स में यह धूम मच जाए कि यह ब्र.कु. दुनिया से नया ज्ञान देती हैं।

ज्ञान क्या देती हैं, उसका आधार क्या मानती हैं, उनको सिद्ध कैसे करती हैं यह जब अखबारों में आये तब समझो ज्ञान दाता का नगाड़ा बजा।.."

 

 

"...‘‘पहले आप’’ - यह महामन्त्र मन से पक्का रहे।

सिर्फ मुख के बोल हों कि पहले आप और अन्दर में रहे कि पहले मैं, ऐसे नहीं।

ऐसे भी कई चतुर होते हैं मुख से कहते पहले आप, लेकिन अन्दर भावना पहले मैं की रहती है।

यथार्थ रूप से, पहले मैं को मिटाकर दूसरे को आगे बढ़ाना सो अपना बढ़ना समझते हुए इस महामन्त्र को आगे बढ़ाते सफलता को पाते रहेंगे।

समझा।

यह मन्त्र और तावीज सदा साथ रहा तो प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजेगा।..."

 

 

 

 

 

21.12.1983

"...विदेश से भी विशेष प्रत्यक्षता के नगाड़े देश तक आयेंगे।

विदेश नहीं होता तो देश में प्रत्यक्षता कैसे होती।

इसलिए विदेश का भी महत्व है।

विदेश की आवाज़ को सुन भारत वाले जगेंगे।

प्रत्यक्षता का आवाज़ निकलने का स्थान तो विदेश ही हुआ ना।..."

 

 

 

 


31.12.1983

"...गीता का भगवान तो देश में प्रत्यक्ष करेंगे।

विदेश में क्या करेंगे?

जो रही हुई बातें हैं उन बातों को प्रैक्टिकल में लाना, यह तो बहुत अच्छी बात है।

समय प्रमाण सब बातें प्रैक्टिकल होती जा रही है।

इस बात से भारत में तो नगाड़ा बजायेंगे ही।

धर्म नेताओं को जगायेंगे, हलचल भी मचायेंगे।

जो थोड़ा-सा जागकर बहुत अच्छा कह फिर सो जाते हैं उन्हों के लिए जैसे कोई नींद से नहीं उठता है तो उस पर ठण्डा-ठण्डा पानी डालते हैं।

तो भारत वालों पर भी विशेष ठण्डा पानी डालने से जागेंगे। ..."