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मैं खुशनसीब हूँ बाबा... |
हम खुशनसीब कितने... |
06.07.1969 "...जितना जो पुरुषार्थ करेंगे उतना नम्बर मिलेगा। नसीब को बनाना खुद के हाथ में है। ..."
06.07.1969 "...जीवन मुक्ति की प्राप्ति होती है तो लाटरी लेने सब आयेंगे। लाटरी सब डाल देते हैं, फिर लाटरी में किसको कुछ मिल जाता है तो नसीब मानते हैं।..."
20.05.1974 "...आज खुशनसीब, पद्मापद्म भाग्यशाली बच्चों की माला देख रहे हैं। माला के हर मणके की विशेषता को देखते हुए हर्षित हो रहे हैं।
जैसे बाप बच्चों के श्रेष्ठ भाग्य को देख हर्षित होते हैं क्या वैसे ही आप अपने सौभाग्य को देख सदा हर्षित रहते हो?
क्या भाग्य का सितारा सदा सामने चमकता हुआ दिखाई देता है या कभी कभी भाग्य सितारा आपके सामने से छिप जाता है?
जैसे स्थूल सितारे कभी-कभी जगह बदली करते हैं, तो ऐसे भाग्य का सितारा बदलता तो नहीं है? एक ही सितारा है, जो अपनी जगह बदली नहीं करता, क्या ऐसे सितारे हो?
वह है दृढ़ संकल्प वाला सितारा, जिसको अपनी इस दुनिया में ‘ध्रुव’ सितारा कहा जाता है।
तो ऐसे दृढ़ निश्चय बुद्धि, और एक-रस स्थिति में सदा स्थित पद्मापद्म भाग्यशाली बने हो, या बन रहे हो?
क्या अपनी खुशनसीबी का विस्तार अपनी स्मृति में लाते हो?
खुशनसीबी की निशानियाँ व सर्व-प्राप्तियाँ क्या हैं, उनको जानते हो? जिसे सर्व प्राप्ति हो, उसको ही खुशनसीब कहा जाता है। सर्व-प्राप्ति में क्या कोई कमी है? जीवन में मुख्य प्राप्ति श्रेष्ठ सम्बन्ध, श्रेष्ठ सम्पर्क, सच्चा स्नेह और सर्व प्रकार की सम्पत्ति और सफलता इन पांचों ही मुख्य बातों को अपने में देखो।
अब सम्बन्ध किससे जोड़ा है? सारे कल्प में इससे श्रेष्ठ सम्बन्ध कभी प्राप्त हो सकता है क्या? सम्बन्ध में मुख्य बात अविनाशी सम्बन्ध की ही होती है। अविनाशी बाप के सर्व-सम्बन्ध ही अविनाशी है।
एक द्वारा सर्व- सम्बन्धों की प्राप्ति हो, क्या ऐसा सम्बन्धी कभी मिला हुआ देखा है?
तो क्या सर्व- सम्बन्ध सम्पन्न हो।
दूसरी बात सम्पर्क अर्थात् साथ अथवा साथी। साथी क्यों बनाया जाता है? सम्पर्क क्यों और किससे रखा जाता है?
आवश्यकता के समय, मुश्किल के समय सहारा अथवा सहयोग के लिए उदास स्थिति में मन को खुशी में लाने के लिए व दु:ख के समय दु:ख को बांट लेने के लिए साथी बनाया जाता है।
ऐसा सच्चा साथी अथवा ऐसा श्रेष्ठ सम्पर्क जो लक्ष्य रखकर बनाते हो क्या ऐसा साथी मिला? ऐसा साथी जो निष्काम हो, निष्पक्ष हो, अविनाशी हो व समर्थ हो। ऐसा सम्पर्क कभी मिला अथवा मिल सकता है क्या? अविनाशी और सच्चा श्रेष्ठ साथ व संग कौन-सा गाया हुआ है? पारसनाथ जो लोहे को सच्चा सोना बनावे ऐसा सत्संग अथवा सम्पर्क मिला है या कुछ अप्राप्ति है?
ऐसा मिला है अथवा मिलना है? मिला है अथवा अभी परख रहे हो?
जब साथ मिल गया तो साथ लेने के बाद कभी-कभी साथी से किनारा क्यों कर लेते हो? साथ निभाने में नटखट क्यों होते हो? कभी-कभी रूसने का भी खेल करते हैं।
क्या मज़ा आता है कि साथी स्वयं मनावे इसलिए यह खेल करते हो अथवा बच्चों में खेल के संस्कार होते ही हैं। ऐसा समझ इस संस्कार-वश क्या ऐसे- ऐसे खेल करते हो? यह खेल अच्छा लगता है? बोलो, अच्छा लगता है, तब तो करते हैं? लेकिन, इस खेल में गंवाते क्या हो, क्या यह भी जानते हो?
जब तक यह खेल है तो सच्चे साथी का मेल नहीं हो सकता। तो खेल-खेल में मिलन को गंवा देते हो। इतने समय की पुकार व शुभ इच्छा-बच्चे और बाप से मिलने की करते आये हो और यह भी जानते हो,
कि यह मेल कितने दिन का है कितने थोड़े समय का है फिर भी इतने थोड़े समय के मेल को खेल में गंवाते हो।
तो क्या फिर समय मिलेगा? तो अब यह खेल समाप्त करो। आप अब तो वानप्रस्थी हो।
वानप्रस्थी को इस प्रकार का खेल करना शोभता है क्या? साक्षी हो देखो, क्या सच्चा साथी, श्रेष्ठ सम्पर्क व संग सदा प्राप्त है? तीसरी बात है -- स्नेह। क्या सर्व सम्बन्धों का स्नेह प्राप्त नहीं किया है व अनुभवी नहीं बने हो? क्या सर्व-सम्बन्ध में, स्नेह में कोई अप्राप्ति है? इसके निभाने के लिये एक ही बात की आवश्यकता है,
अगर वह नहीं है, तो स्नेह मिलते हुए भी, अनुभव नहीं कर पाते। सच्चा स्नेह व एक द्वारा सर्व-सम्बन्धों का स्नेह प्राप्त करने के लिए,
मुख्य कौन-सा साधन व अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए, कौन-सी मुख्य बात आवश्यक है? एक बाप दूसरा न कोई, क्या यह बात जीवन में, संकल्प में और साकार में है? सिर्फ संकल्प में नहीं, लेकिन साकार में भी एक बाप, दूसरा न कोई है, तब ही सच्चा स्नेह और सर्व-स्नेह का अनुभव कर सकते हो।
ऐसे ही सम्पत्ति व जो भी सुनाया उन सब बातों में सहज ही सर्व-प्राप्ति होती है? ऐसे खुशनसीब जिसमें अप्राप्त कोई वस्तु नहीं। ऐसे जानते हुए भी, मानते हुए भी और चलते हुए भी कभी-कभी अपने भाग्य के सितारे को भूल क्यों जाते हो?
बाप-दादा आपके भाग्य के सितारे को देख हर्षित होते हैं, और गुणगान करते हैं। ऐसे खुशनसीब बच्चों की रोज़ माला सिमरते हैं।
ऐसे बाप के सिमरने के मणके बने हो? विजयमाला के मणके बनना बड़ी बात नहीं है, लेकिन बाप के सिमरने के मणके बनना, यही खुशनसीबी है। ऐसे खुशनसीबी के व बाप-दादा के दिल तख्त नशीन, फिर तख्त छोड़ देते हो!
बाप ने अपने श्रेष्ठ कार्य की ज़िम्मेवारी व ताज बच्चों को पहनाया है। ऐसा ताजधारी बनने के बाद ताज उतार और ताज के बजाय अपने सिर के ऊपर क्या रख लेते हो?
अगर वह अपना चित्र भी देखो और ताजतख्तधारी का चित्र भी रखो तो क्या होगा? कौन-सा चित्र पसन्द आयेगा?
पसन्द वह ताज-तख्तधारी वाला आता है और करते वह हो? ताज उतार कर व्यर्थ संकल्पों का, व्यर्थ बोलचाल का भरा हुआ बोझ का टोकरा व बोरी सिर पर रख लेते हो। बेताज बन जाते हो! जबकि ऐसा चित्र देखना भी पसन्द नहीं करते हो, उनको देखते हुए रहमदिल बनते हो लेकिन अपने ऊपर फिर क्यों रख लेते हो?
तो ऐसे अपने को खुशनसीब बन व समझ कर चलो। समझा!..."
20.09.1975 "...इन ईश्वरीय प्राप्तियों को अनुभव में लाने से प्राप्ति कम नहीं होगी, बल्कि और ही प्राप्ति स्वरूप का अनुभव करोगे।
बार-बार युज़ करने से, जैसा समय वैसा स्वरूप अपना बना सकेंगे व जिस समय जो शक्ति यूज़ करनी चाहिये वह शक्ति उस रीति यूज़ कर सकेंगे। समय पर धोखा खाने से बच जायेंगे। धोखा खाने से बचना अर्थात् दु:ख से बचना। तो क्या बन जायेंगे?
सदा हर्षित अर्थात् सदा सुखी, खुशनसीब बन जायेंगे। ..."
11.01.1977
"...खुशनसीब हो जो प्राप्ति से पहले वर्सा लेने का अधिकार प्राप्त हुआ। जब खुशियों के सागर बाप के बने, तो कितनी खुशी होनी चाहिए!
अप्राप्ति क्या है, जो खुशी गायब होती है? जहाँ प्राप्ति होती है, वहाँ खुशी होती है।
अल्पकाल की प्राप्ति वाले भी खुश होते हैं। तो सदाकाल की प्राप्ति वालों को सदा खुश रहना चाहिए। कभी-कभी खुशी में रहेंगे तो अन्तर क्या हुआ? ‘ज्ञानी अर्थात् सदा खुश।’ अज्ञानी अर्थात् कभी-कभी खुश।
तो सदा खुश रहने का दृढ़ संकल्प करके जाना। ..."
30.04.1977
"...खुशनसीब हो जो प्राप्ति से पहले वर्सा लेने का अधिकार प्राप्त हुआ। जब खुशियों के सागर बाप के बने,
तो कितनी खुशी होनी चाहिए! अप्राप्ति क्या है, जो खुशी गायब होती है? जहाँ प्राप्ति होती है, वहाँ खुशी होती है। अल्पकाल की प्राप्ति वाले भी खुश होते हैं। तो सदाकाल की प्राप्ति वालों को सदा खुश रहना चाहिए।
कभी-कभी खुशी में रहेंगे तो अन्तर क्या हुआ? ‘ज्ञानी अर्थात् सदा खुश।’ अज्ञानी अर्थात् कभी-कभी खुश। तो सदा खुश रहने का दृढ़ संकल्प करके जाना। ..."
30.06.1977
"... सर्व खुशनसीब, सर्व श्रेष्ठ आत्माओं के कल्याण अर्थ निमित्त बने हुए बाप-दादा के साथ सदा सहयोगी रहने के पार्ट बजाने वाली सर्व आत्माओं को देख बापदादा भी हर्षित होते हैं।
बाप के स्नेह वा लगन में रहने वाली स्नेही आत्माओं को मिलन के उमंग, उत्साह में देख बाप भी बच्चों को स्नेह और उमंग का रिटर्न दे रहे हैं।
बापदादा जानते हैं कि सभी बच्चों के अन्दर स्नेह, सहयोग की भावना और बाप समान बनने का श्रेष्ठ संकल्प भी है। इन सबको देख बाप-दादा बच्चों को स्वयं से भी सर्व श्रेष्ठ ताज, तख्त नशीन परमधाम के चमकते हुए सितारे और विश्व के सर्व आत्माओं के दिल के सहारे, विश्व की आत्माओं के आगे सदा पूर्वज और पूज्य - ऐसे श्रेष्ठ देखने चाहते हैं।
बच्चों को श्रेष्ठ देखते बाप को ज्यादा खुशी होती है। हरेक ब्राह्मण आत्मा सदा ऊँचे ते ऊँचे बाप के साथ ऊँची स्थिति में स्थित रहे। जैसा ऊँचा नाम, वैसा ऊँचा काम।
जैसा विश्व के आगे ऊँचा मान है, ऐसा ही स्वमान वा शान सदा कायम रहे - यही बाप-दादा की हर ब्राह्मण आत्मा में श्रेष्ठ कामना है। ..."
13.01.1978
"...सदा अपने को खुशनसीब समझते हो? सारे विश्व के अन्दर सबसे श्रेष्ठ नसीब अर्थात् तकदीर हमारी है, ऐसा निश्चय रहता है। हमारे जैसा खुशनसीब और कोई हो नहीं सकता।
बाप ने स्वयं आकर अपना बनाया। इस भाग्य का वर्णन करते सदा खुशी में नाचते रहो। उन्हीं का नसीब क्या है?
अभी-अभी सुख होगा, अभी-अभी दु:ख होगा, लेकिन आपका नसीब अविनाशी है। सदा ऐसे आनन्द स्वरूप नसीब वाले हो।
जो स्वप्न में भी नहीं था वह प्राप्ति हो गई, बाप मिला सब-कुछ मिला। इसी खुशी में रहो तो सदा समर्थी स्वरूप रहेंगे। ..."
16.02.1978
"एवर हैल्दी, वैल्दी और हैप्पी (Ever Healthy, Wealthy & Happy) यह तीनों ही प्राप्ति वर्तमान समय की प्राप्ति के हिसाब से 21 जन्म करते हो।
...दु:खी अशान्त आत्मायें, रोगी आत्मायें, शक्तिहीन आत्मायें एक सेकेण्ड की प्राप्ति की अंचली के लिए वा एक बूँद के लिए बहुत प्यासी हैं।
आपका खुश नसीब सदा खुश अर्थात् हर्षित मुख चेहरा देख उन्हीं में मानव जीवन का जीना क्या होता है, उसकी हिम्मत, उमंग उत्साह आयेगा।
अब तो जिन्दा होते भी नाउम्मीदी की चिता पर बैठे हुए हैं।
ऐसी आत्माओं को मरजीवा बनाओ। नये जीवन का दान दो। अर्थात् तीनों प्राप्तियों से सम्पन्न बनाओ। सदा स्मृति में रहे यह तीनों प्राप्तियाँ हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार हैं।..."
03.12.1978
"... जो सन्तुष्ट मणियाँ हैं वही बाप का श्रेष्ठ श्रृंगार हैं। जो सदा सन्तुष्ट रहते हैं उन्हें सन्तुष्टमणि कहा जाता है। सदा सन्तुष्टता की झलक मस्तक से चमकती रहे, ऐसे ही साक्षात्-मूर्त्त बन सकते हैं।
बापदादा हर रत्न को अपना श्रृंगार समझते हैं। अपने को ऐसे श्रेष्ठ श्रृंगार समझकर सदा खुशनसीब रहते हो? ऐसा नसीब या ऐसी तकदीर सारे कल्प में भी किसी की नहीं हो सकती।
नसीबवान तो सदा खुशी में नाचते रहेंगे। बाप-दादा को जितनी खुशी होती है उससे ज्यादा बच्चों का होनी चाहिए, भटकते हुए को ठिकाना मिल जाए या प्यासे की प्यास बुझ जाये तो वह खुशी में नाचेगा ना।
ऐसी खुशी में रहो जो कोई उदास आपको देखे तो वह भी खुश हो जाए, उसकी उदासी मिट जाए। ..."
12.01.1979
"...आपके नाम से भी जब अनेक भक्त अल्पकाल की खुशी में आ जाते हैं। आपके जड़ चित्रों को देख खुशी में नाचने लगते हैं।
ऐसे खुशनसीब आप सब को खज़ाने बहुत मिले हैं, अब सिर्फ यूज़ करो अर्थात् चाबी लगाओ। चाबी होते हुए भी समय पर नहीं मिलती है
- समय पर खो जाती है इसलिए सदा सामने रखो अर्थात् सदा स्मृति में रखो। बार-बार स्वरूप स्मृति को रिफ्रेश करो। खज़ाना क्या और चाबी क्या!
हर कर्म में जैसे सुनाया वैसे प्रैकिकल में लाओ - अर्थात् स्मृति को स्वरूप में लाओ। ..."
06.01.1982
"...बापदादा खुशनसीब बच्चों को देख अति हर्षित होते हैं। हरेक रूहे गुलाब हैं। रूहे गुलाब ग्रुप अर्थात् रूहानी बाप की याद में लवलीन रहने वाला ग्रुप।
सभी के चेहरे पर खुशी की झलक चमक रही है। बापदादा एक-एक रत्न की वैल्यु को जानते हैं। एक-एक रत्न विश्व में अमूल्य रत्न है इसलिए बापदादा उसी विशेषता को देखते हुए हर रत्न की वैल्यु को देखते हैं।
एक-एक रत्न अनेकों की सेवा के निमित्त बनने वाला है।
सदा अपने को विजयी रत्न अनुभव करो। सदा अपने मस्तक पर विजय का तिलक लगा हुआ हो क्योंकि जब बाप के बन गये तो विजय तो आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। ..."
07.04.1983
"...जो माया को विदाई देने वाले हैं उन्हों को बापदादा द्वारा हर कदम में बधाई मिलती है। अगर अभी तक विदाई नहीं दी तो बार-बार चिल्लाना पड़ेगा - क्या करें, कैसे करें?
इसलिए सदा विदाई देने वाले और बधाई पाने वाले।
ऐसी खुशनसीब आत्मा हो। हर कदम बाप साथ है तो बधाई भी साथ है। सदा इसी स्मृति में रहो कि स्वयं भगवान हम आत्माओं को बधाई देते हैं। जो सोचा नहीं था वह पा लिया!
बाप को पाया सब कुछ पाया। सर्व प्राप्ति स्वरूप हो गये। सदा इसी भाग्य को याद करो।..."
29.12.1983
"...जैसे बापदादा सदा बड़ी दिल वाले बेहद की दिल वाले हैं, इसलिए सर्व की दिल लेने वाले ‘दिलाराम’ हैं।
ऐसे बच्चे भी बेहद की दिल फराखदिल दातापन की दिल रखने वाले सदा दिल खुश से जहान को खुश करते हैं। ऐसे खुशनसीब आत्माएँ हो।
आप श्रेष्ठ आत्माएँ ही जहान के आधार हो। आप सभी जगते, जागती ज्योत बनते तो जहान वाले भी जगते।
आप सोते हैं तो जहान सोता है। आप सब की चढ़ती कला होती तो सर्व आत्माओं का कल्याण हो जाता।
सर्व यथाशक्ति समय प्रमाण मुक्ति और जीवन-मुक्ति को प्राप्त होते हैं। आप विश्व पर राज्य करते हो तो सर्व आत्माएं मुक्ति की स्थिति में रहती हैं।
तीनों लोकों में आपके राज्य समय दु:ख अशान्ति का नाम निशान नहीं।
ऐसी सर्व आत्माओं को बाप द्वारा सुख-शान्ति की अंचली दिलाते जो उसी अंचली द्वारा बहुत समय की मुक्ति की आशा सर्व की पूर्ण हो जाती है।
ऐसे सर्व आत्माओं को, विश्व को यथाशक्ति प्राप्ति कराने वाले स्व-प्राप्ति स्वरूप हो ना!
क्योंकि डायरेक्ट सर्व प्राप्तियों के दाता, सर्व शक्तियों के विधाता, सेकण्ड में सर्व अधिकार देने वाले वरदाता, श्रेष्ठ भाग्य-विधाता, अविनाशी बाप के बच्चे बने।
ऐसी अधिकारी आत्माओं को सदा अधिकार को याद करते रूहानी श्रेष्ठ नशा और सदा की खुशी रहती है? ..."
16.02.1985
"...अभी विश्व रचयिता के बालक सो मालिक हो, भविष्य में विश्व के मालिक हो। बापदादा अपने ऐसे मालिक बच्चों को देख हर्षित होते हैं। यह बालक सो मालिकपन का अलौकिक नशा, अलौकिक खुशी है।
ऐसे सदा खुशनसीब सदा सम्पन्न श्रेष्ठ आत्मायें हो ना। ..." |