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"...बाबा ने कहा चलो मैं तुमको वतन का म्युजियम दिखलाऊँ तुम तो म्युजियम बनाने के पहले प्लैन बनाते हो बाबा का म्युजियम तो एक सेकेण्ड में तैयार हो जाता है। फिर क्या देखा? एक बहुत बड़ा हाल था। एक ही हाल में हम बच्चे ढेर की ढेर माडल के रूप में खड़े थे। हमने कहा बाबा यह तो हम ही म्यूजियम में खड़े हैं। बाबा ने कहा - बच्ची बाबा का म्युजियम यही है। अभी तुम जाओ जाकर एक माडल को देखो कि बापदादा ने क्या-क्या सजाया है? जैसे आर्टिस्ट मूर्ति को सजाते हैं तो बाबा ने कहा देखो, बापदादा ने क्या-क्या सजाया है?
हम जब माडल के पास गई तो हमको कुछ खास दिखाई नहीं पड़ा। पूरी सजी हुई मूर्ति दिखाई पड़ रही थी।
बाबा ने कहा जो मोटा श्रृंगार है वह तो साकार में ही बच्चों का करके आये हैं। परन्तु अब अव्यक्त रूप में क्या सजा रहे हैं? सभी श्रृंगार तो है, जेवर भी है परन्तु जेवर में बीच में नग लगा रहे हैं।
बाबा के कहने के बाद कोई-कोई में जैसे एकस्ट्रा नग दिखाई पड़े। बाबा ने कहा बच्चों के प्रति मुख्य शिक्षा यही है कि
अव्यक्त स्थिति में स्थित रहकर व्यक्त भाव में आओ। जब एकान्त में बैठते हैं तो अव्यक्त स्थिति रहती है लेकिन व्यक्त में रहकर अव्यक्त भाव में स्थित रहें वह मिस कर लेते हैं इसलिए एकरस कर्मातीत स्थिति का जो नग है, वह कम है।
तो जिसके जीवन में जो कमी देखता हूँ वह सजा रहा हूँ। जैसे साकार रूप में यह कार्य करता था वही फिर अव्यक्त रूप में करता हूँ।
तो बच्चों से जाकर पूछना कि सारे दिन में जैसे बाप बच्चों को सजाते हैं, ऐसे बच्चों को भासना आती है? उस टाइम जो योंगयुक्त बच्चे होंगे उनको भासना आयेगी कि बाबा अब मेरे से बात कर रहे हैं, सजा रहे हैं। जैसे मैं अव्यक्त वतन में बच्चों से मिलता, बहलता रहता हूँ। अव्यक्त रूप वाले बच्चे यह अनुभव कर सकते हैं। मैं भी खास समय पर खास बच्चों को याद करता हूँ। ऐसी टचिंग बच्चों को होती ही होगी। ..."
"...बाबा ने कहा बच्ची इसमें तो एक सेकेण्ड लगेगा। क्योंकि सभी में एक ही बात है। इसके बाद बाबा ने सुनाया कि सभी पत्रों में बच्चों के उल्हने ही हैं।
पत्रों में सभी उल्हने ही थे। अब देखना बाबा बच्चों को रेस्पाण्ड करते हैं। देखना एक सेकेण्ड में मैं सभी को जवाब दे देता हूँ।
फिर बाबा ने सभी पत्रों का लाल अक्षरों में यहाँ माफिक ही पत्र लिखा।
पत्र में क्या था - "ब्राह्मण कुल भूषण, स्वदर्शनचक्रधारी, ये रत्नों बच्चों प्रति, समाचार यह है कि सभी बच्चों के उल्हनों के पत्र सूक्ष्मवतन में पाये।
रेस्पान्ड में बापदादा बच्चों को कह रहे हैं कि ड्रामा की भावी के बन्धन में सर्व आत्मायें बंधी हुई हैं। सभी पार्ट बजा रही हैं।
उसी ड्रामा के मीठे-मीठे बन्धन अनुसार आज अव्यक्त वतन में पार्ट बजा रहा हूँ। सभी बच्चों को दिल व जान सिक व प्रेम से अव्यक्त रूप से याद प्यार बहुत-बहुत-बहुत स्वीकार हो।
जैसे बाप की स्थिति है वैसे बच्चों को स्थिति रखनी है। यह है बापदादा का पत्र। ..."
02.02.1969 "...अब अव्यक्त होने के कारण एक और क्वालिटी बढ़ गई है। कौन सी? मालूम है? वह यह है - पहले तो बाहरयामी था, अभी अन्तर्यामी हो गया हूँ। अव्यक्त स्थिति में जानने की आवश्यकता नहीं रहती। स्वत: ही एक सेकेण्ड में सभी का नक्शा देखने में आ रहा है।
इसलिए कहते हैं कि पहले से एक और गुण बढ़ गया है। अव्यक्त स्थिति में तो खुशबू से ही पेट भर जाता है।..."
07.05.1969 "...अपने मूर्त को देखने लिये क्या अपने पास रखना चाहिए? दर्पण। दर्पण हरेक पास है? अगर दर्पण होगा तो अपना मुखड़ा देखते रहेंगे और देखने से जो भी कमी होगी उनको भरते रहेंगे।
अगर दर्पण ही नहीं होगा तो कमी को भर नहीं सकेंगे। इसलिये हर वक्त अपने पास दर्पण रखना।
लेकिन यह दर्पण ऐसा है जो आप समझेंगे हमारे पास है परन्तु बीच-बीच में गायब भी हो जाता है। जादू मंत्र का दर्पण है।
एक सेकेण्ड में गायब हो जाता है। दर्पण कैसे अविनाशी कायम रह सकता है? उसके लिये मुख्य क्वालीफिकेशन कौन-सी होनी चाहिए?
जो अर्पणमय होगा उनके पास दर्पण रहेगा। अर्पण नहीं तो दर्पण भी अविनाशी नहीं रह सकता। दर्पण रखने लिये पहले अपने को पूरा अर्पण करना पड़ेगा। जिसको दूसरे शब्दों में सर्वस्व त्यागी कहते हैं। सर्वस्व त्यागी के पास दर्पण होता है। ..."
18.05.1969 "...कोई भी व्यक्ति सामने आए तो आप लोगों को तो एक सेकेण्ड में उनके तीनों कालों को परख लेना चाहिए।
एक तो पास्ट में उनकी लाइफ क्या थी और वर्तमान समय उनकी वृत्ति, दृष्टि और भविष्य में कहाँ तक यह अपनी प्रालब्ध बना सकते हैं। यह जानने की प्रैक्टिस चाहिए।
यह परखने की जो नालेज है वह बहुत कम है।
यह कमी अभी भरनी चाहिए।
वर्तमान समय जो आने वाला है उसमें अगर यह गुण नहीं होगा, कमी होगी तो धोखे में आ जायेंगे। कई ऐसी आत्माएं आप के सामने आयेंगी जो अन्दर एक और बाहर से दूसरी होगी। परीक्षा के लिए आयेंगी। क्योंकि कई समझते हैं कि यह सिर्फ रटे हुए हैं।
तो कई रंग रूप से आर्टिफीसियल रूप में भी परखने लिए आयेंगे, भिन्न-भिन्न रूप से।
इसलिये यह ध्यान रखना है कि यह किसलिये आया है? उनकी वृत्ति क्या है? और अशुद्ध आत्माओं की भी बड़ी सम्भाल करनी है।
ऐसे-ऐसे केस भी बहुत होंगे दिन प्रतिदिन पाप आत्मायें तो बहुत होते हैं। आपदायें, अकाले मृत्यु, पाप कर्म बढ़ते जाते हैं तो उन्हों की वासनायें जो रह जाती हैं वह फिर अशुद्ध आत्माओं के रूप में भटकती हैं।
इसलिये यह भी बहुत बड़ी सम्भाल रखनी है। कोई में अशुद्ध आत्मा की प्रवेशता होती है तो उनको भगाने लिए एक तो धूप जलाते हैं और आग में चीज को तपाकर लगाते हैं और लाल मिर्ची भी खिलाते हैं।
तो आप सभी को फिर योग की अग्नि से काम लेना है। हर कर्मेन्द्रियों को योगाग्नि में तपाना है तो फिर कोई वार नहीं कर सकेंगे।
थोड़ा भी कहाँ ढीलापन हुआ, कोई भी कर्मेन्द्रियाँ ढीली हुई तो फिर प्रवेशता हो सकती है।
वह अशुद्ध आत्माएं भी बड़ी पावरफुल होती हैं। वह माया की पावर भी कम नहीं होती। यह बहुत ध्यान रखना है।
और कई प्राकृतिक आपदायें भी अपना कर्त्तव्य करेगी। उसका सामना करने लिये अपने में ईश्वरीय शक्ति धारण करनी है। उस समय स्नेह नहीं रखना है। उस समय शक्ति- रूप की आवश्यकता है।..."
16.06.1969 "...जो तीव्र पुरुषार्थी होंगे वह तीव्र पुरुषार्थ का सबूत क्या दिखावेंगे? कोई भी सामने आये तो एक सेकेण्ड में उनको मरजीवा बनाना। कहते हैं ना एक धक से मरजीवा बनना।
जिसको झाटकू कहते हैं। अधूरा नहीं छोड़ना। श्रेष्ठ सेवा यह है जो उनको झट झाटकू बना देना। अभी तो आप तीर मारते हो, बाहर फिर जिन्दा हो जाते हैं। लेकिन ऐसा समय आना है जो एक सेकेण्ड में नजर से निहाल कर देंगे तब सर्विस की सफलता और प्रभाव निकलेगा। अभी मरजीवा भल बनाते हो - झाटकू नहीं बनाते हो।..."
26.06.1969 "...जिस तन द्वारा पढ़ाने का पार्ट था वह पढ़ाई का कोर्स तो पूरा हुआ, अब फिर पढ़ाई-पढ़ाने लिये नहीं आते। वह कोर्स था उसी तन द्वारा पार्ट पूरा हो चुका है। अभी तो आते हैं मिलने के लिये, बहलाने के लिये। और मुख्य बातें कौन सी हैं?
जैसे अशरीरी, कर्मातीत बन कर के क्या किया? एक सेकेण्ड में पंछी बन उड़ गया। साकार शरीर से एक सेकेण्ड में उड़े ना। तो अब पढ़ाई पूरी हुई। बाकी एक कार्य रहा हुआ है। साथ ले जाने का।
इसलिए अब सिर्फ मिलने, अव्यक्त शिक्षाओं से बहलाने और उड़ाने लिये आते हैं।
पढ़ाई के पॉइंट्स पढ़ाई का रूप अब नहीं चल सकता है। अभी कोर्स रिवाइज हो रहा है। लेकिन कितने समय में रिवाइज करेंगे? कितने तक कोर्स पूरा हुआ है? अभी यह सभी को निर्णय करना है कि कहाँ तक रिवाइज कोर्स हुआ है। कितना समय अब चाहिए? ..."
23.07.1969 "...एक सेकेण्ड में मालिक और एक सेकेण्ड में बालकपने की आवश्यकता है। जहाँ पर बालक बनना चाहिए वहाँ पर फिर मालिकपन भी कुछ देखने में आता है। जैसा समय वैसा ही स्वरूप कैसे बनाना चाहिए।..."
"...क्या एक सेकेण्ड में अपने को बिन्दु रूप में स्थित नहीं कर सकते हो? अगर अभी सबको कहें कि यह ड्रिल करो तो कर सकते हो? बिन्दु रूप में स्थित होने से एक तो न्यारेपन का अनुभव होगा।
और जो आत्मा का वास्तविक गुण है उसका भी अनुभव होगा। यह भी प्रैक्टिस करो क्योंकि अब समय कम है। कार्य ज्यादा करना है। अभी समय जास्ती और काम कम करते हो। आगे चल करके तो समय ऐसा आने वाला है। जो कि आप सभी की जीवन तो बहुत बिजी हो जायेगी। और समय कम देखने में आयेगा।
यह दिन और रात दो घण्टे के समान महसूस करोगे। अब से ही यह प्रैक्टिस करो कि कम समय में काम बहुत करो। समय को सफल करना भी बहुत बड़ी शक्ति है। जैसे अपनी इनर्जी वेस्ट करना ठीक नहीं है। वैसे ही समय को भी वेस्ट करना ठीक नहीं है। ..."
"...अगर आवाज से परे निराकार रूप में स्थित हो फिर साकार में आयेंगे तो फिर औरों को भी उस अवस्था में ला सकेंगे। एक सेकेण्ड में निराकार-एक सेकेण्ड में साकार। ऐसी ड्रिल सीखनी है। अभी-अभी निराकारी, अभी- अभी साकारी। जब ऐसी अवस्था हो जायेगी तब साकार रूप में हर एक को निराकार रूप का आपसे साक्षात्कार हो।..."
28.09.1969 "...बाप रूप से तो मुलाकात कर ही रहे हो। लेकिन स्नेहरूप में वा शक्तिरूप में वा अव्यक्त रूप में? वर्तमान कौनसा विशेष रूप है?
सारे दिन में इन तीनों रूपों में से ज्यादा कौनसा रूप रहता है? इन तीनों से श्रेष्ठ कौनसा है? (हर एक ने अपना समाचार सुनाया)
अब सिर्फ प्रश्र पूछते हैं फिर स्पष्ट करेंगे। अब सबने जो एक्स्ट्रा ट्रेनिंग कोर्स लिया है, इनमें सबसे पावरफुल पॉइंट कौन सी ली है? जो पॉइंट आगे विघ्नों को एक सेकेण्ड में खत्म कर दे।
हर एक ने भिन्न-भिन्न पॉइंट तो सुनाई अब जिन्होंने भी पॉइंट सुनाई है - वो फिर भी अपना अनुभव लिख भेजे कि इस पॉइंट को यूज करने से कितने समय में विघ्न दूर हुआ है?
जैसे कोई दवाई एक यूज करके देखता है फिर अनेकों को उसका लाभ लेने में सहज होता है। तो यह सब भिन्न-भिन्न पॉइंट जो निकली हैं उन सब का सार दो शब्दों में याद रखो जिसमें आपकी सब बातें आ जाये। यह जो अब कोर्स किया है उसका मुख्य सार दो अक्षरों में याद रखना है कि जो कहते हैं वो करना है। कहते हैं हम ब्रह्माकुमारी हैं। हम बापदादा के बच्चे आज्ञाकारी हैं। मददगार हैं। जो भी बातें कहते हो वो प्रैक्टिकल करना है। कहना अर्थात् करना। कहने और करने में अन्तर नहीं हो। यही आपके कोर्स का सार है। ..."
16.10.1969 "...जब जैसे चाहे वैसी स्थिति बना सके। यह मन को ड्रिल करानी है। यह जरूर प्रैक्टिस करो। एक सेकेण्ड में आवाज में, एक सेकेण्ड में फिर आवाज से परे। एक सेकेण्ड में सर्विस के संकल्प में आये और एक सेकेण्ड में संकल्प से परे स्वरूप में स्थित हो जाये। इस ड्रिल की बहुत आवश्यकता है।
ऐसे नहीं कि शारीरिक भान से निकल ही न सके। एक सेकेण्ड में कार्य प्रति शारीरिक भान में आये फिर एक सेकेण्ड में अशरीरी हो जाये, जिसकी यह ड्रिल पक्की होगी वह सभी परिस्थितियों का सामना कर सकते है। ..."
"...एक सेकेण्ड में अशरीरी हो जाये, जिसकी यह ड्रिल पक्की होगी वह सभी परिस्थितियों का सामना कर सकते है। जैसे शारीरिक ड्रिल सुबह को कराई जाती है वैसे यह अव्यक्त ड्रिल भी अमृतवेले विशेष रूप से करना है।
करना तो सारा दिन है लेकिन विशेष प्रैक्टिस करने का समय अमृतवेले है।
जब देखो बुद्धि बहुत बिजी है तो उसी समय यह प्रैक्टिस करो। परिस्थिति में होते हुए भी हम अपनी बुद्धि को न्यारा कर सकते है। लेकिन न्यारे तब हो सकेंगे जब जो भी कार्य करते हो वह न्यारी अवस्था में होकर करेंगे।
अगर उस कार्य में अटैचमेंट होगी तो फिर एक सेकेण्ड में डिटैच नहीं होंगे। इसलिए यह प्रैक्टिस करो।
कैसी भी परिस्थिति हो। क्योंकि फाइनल पेपर अनेक प्रकार के भयानक और न चाहते हुए भी अपने तरफ आकर्षित करने वाली परिस्थितियों के बीच होंगे। ..."
20.10.1969 "...यहाँ भी अगर सभी को कहा जाये एक सेकेण्ड में साकारी से निराकारी बन जाओ तो बन सकेंगे? जैसे स्थूल शरीर के हाथ-पाँव झट डायरेक्शन प्रमाण ड्रिल में चलाते रहते है,
वैसे एक सेकेण्ड में साकारी से निराकारी बनने की प्रैक्टिस है? साकारी से निराकारी बनने में कितना समय लगता है? जबकि अपना ही असली स्वरूप है फिर भी सेकेण्ड में क्यों नहीं स्थित हो सकते?..."
09.11.1969 "...सभी के दिलों पर विजय किन गुणों से प्राप्त कर सकते हो? सभी को सन्तुष्ट करना। बाप में यह विशेष गुण था। वही फालो करना है।
सभी मधुबन की लिस्ट में हो या आलराउन्डर की लिस्ट में हो? एक है हद की लिस्ट, दूसरी है बेहद की लिस्ट। आलराउन्डर और एवररेडी।
इसी लिस्ट में मालूम है क्या करना होता है? एक सेकेण्ड में तैयार। सकल्पों को भी एक सेकेण्ड में बन्द करना है।
मिलिट्री वालों का हर समय बिस्तरा तैयार रहता है। यह सकल्पों का बिस्तरा भी बन्द करना है। बिस्तरा भी एवररेडी रहना चाहिए। एवररेडी बनने वालों का सकल्पों का बिस्तरा तैयार रहना चाहिए। ..."
06.12.1969 "...एवररेडी जो होते हैं वह सदैव तैयार ही होते हैं। बुलावा हुआ और एक सेकेण्ड में अपना रहा हुआ सभी कुछ समेट भी सकते और जम्प भी दे सकते।
प्रैक्टिकल में देखा भी ना कि ड्रामा के बुलावे पर कितना टाइम लगा? एक तरफ समेटना दूसरे तरफ हाई जम्प देना। यह दोनों सीन देखी - यह ड्रामा में किसलिए हुआ? सिखलाने के लिए।
तो ऐसे एवररेडी बनना पड़ेगा। अभी एवररेडी की लाइन चालू हो गई है। इस लाईन के अन्दर किसका भी नम्बर आ सकता है। जो सभी के संकल्प में है वह कभी नहीं होना है। होगा फिर भी अनायास ही। यह ब्राह्मण कुल की रीति-रस्म चालू हो चुकी है। यह रीति-रस्म भी ड्रामा में क्यों बनी हुई है, उसका भी बहुत गुप्त रहस्य है। तो ऐसा पुरुषार्थ पहले से ही कर लो जो फौरन समेट भी सको और जम्प भी के सको।
समेटने की शक्ति किसमें हो सकती है? जो सरल स्वभाव वाले होंगे उसमें समेटने की शक्ति सहज आ सकती है।..."
20.12.1969 "...कोई भी डायरेक्शन कभी भी किसी रूप से, कहाँ के लिये भी निकले और कितने समय में भी निकल सकता, एक सेकेण्ड में तैयार होने का डायरेक्शन भी निकल सकता है।
तो ऐसे एवररेडी सभी बने हैं? जैसे अशुद्ध प्रवृत्ति को छोड़ने के लिये कोई बात सोची क्या? जेवर, कपड़े, बाल-बच्चे आदि कुछ भी नहीं देखा ना। तो यह जैसे पवित्र प्रवृत्ति है इसमें फिर यह बातें देखने की क्या आवश्यकता है।
आगे सिर्फ स्नेह में थे। स्नेह से यह सभी किया। ज्ञान से नहीं। सिर्फ स्नेह ने ऐसा एवररेडी बनाया। अब स्नेह के साथ शक्ति भी है। स्नेह और शक्ति होते हुए भी फिर इसमें एवररेडी बनने में देरी क्यों।
जैसे शुरू में एलान निकला कि सभी को इस घड़ी मैदान में आना है वैसे अब भी रिपीट जरूर होना है लेकिन भिन्न-भिन्न रूप में। ऐसे नहीं कि बापदादा भविष्य को जानकर के आप सभी को एलान देवे और आप इस सर्विस के बन्धन में भी अपने को बांधे हुए रखो। बन्धन होते हुए भी बन्धन में नहीं रहना है।
कोई भी आत्मा के बन्धन में आना यह निर्बन्धन की निशानी नहीं है। इसलिए सभी को एक बात पास विद आनर्स की पास करनी है, जो बातें आपके ध्यान में भी नहीं होंगी, स्वप्न में भी नहीं होंगी उन बातों का एलान निकलना है। और ऐसे पेपर में जो पास होंगे वही पास विद आनर्स होंगे। ..."
"...अब यही सिर्फ एक बात चेक करो - ऐसा लूज़ चोला हुआ है जो एक सेकेण्ड में इस चोले को छोड़ सके। अगर कहाँ भी अटका हुआ होगा तो निकलने में भी अटक होगी। इसी को ही एवररेडी कहा जाता है। ऐसे एवररेडी वही होंगे जो हर बात में एवररेडी होंगे। प्रैक्टिकल में देखा ना एक सेकेण्ड के बुलावे पर एवररेडी रह दिखाया। यह सोचा क्या कि बच्चे क्या कहेंगे? बच्चों से बिगर मिले कैसे जावे - यह सोचा?
एलान निकला और एवररेडी। चोले से इज़ी होने से चोला छोड़ना भी इज़ी होता है, इसलिए यह कोशिश हर वक्त करनी चाहिए। यही संगमयुग का गायन होगा कि कैसे रहते हुए भी न्यारे थे।
तब ही एक सेकेण्ड में न्यारे हो गये। बहुत समय से न्यारे रहने वाले एक सेकेण्ड में न्यारे हो जायेंगे।
बहुत समय से न्यारापन नहीं होगा तो यही शरीर का प्यार पश्चाताप में लायेगा इसलिए इनसे भी प्यारा नहीं बनना है। इससे जितना न्यारा होंगे उतना ही विश्व का प्यारा बनेंगे।..."
"...अन्त घड़ी भी बाप का शो होता रहेगा। ऐसी आत्मायें जरूर कोई पावरफुल होगी जिनका बहुत समय से अशरीरी रहने का अभ्यास होगा। वह एक सेकेण्ड में अशरीरी हो जायेंगे। मानो अभी आप याद में बैठते हो कैसे भी विघ्नों की अवस्था में बैठते हो, कैसी भी परिस्थितियाँ सामने होते हुए भी बैठते हो लेकिन एक सेकेण्ड में सोचा और अशरीरी हो जाये। वैसे तो एक सेकेण्ड में अशरीरी होना बहुत सहज है लेकिन जिस समय कोई बात सामने हो, कोई सर्विस के बहुत झंझट सामने हो परन्तु प्रैक्टिस ऐसी होनी चाहिए जो एक सेकेण्ड, सेकेण्ड भी बहुत है, सोचना और करना साथ-साथ चले। सोचने के बाद पुरुषार्थ न करना पड़े। अभी तो आप सोचते हो तब उस अवस्था में स्थित होते हो लेकिन ऐसा जो होगा उनका सोचना और स्थित होना साथ में होगा। ..."
"...ईश्वरीय स्नेह और शक्ति से वारिस बनते हैं, तो वारिस बनाने है। यह फर्स्ट स्टेज का पुरुषार्थ है। वाणी से किसी को पानी नहीं कर सकते लेकिन स्नेह और शक्ति से एक सेकेण्ड में स्वाहा करा सकते है। यह भी अन्त में मार्क्स मिलते हैं। वारिस कितने बनाये प्रजा कितनी बनाई। वारिस भी किस वैराइटी और प्रजा भी किस वैराइटी की और कितने समय में बने। ..."
25.12.1969 "...जो हल्के होंगे वे एक सेकेण्ड में कोई भी आत्मा के संस्कारों को परख सकेंगे। और जो भी परिस्थिति सामने आयेगी उनको एक सेकेण्ड में निर्णय कर सकेंगे। यह है फरिश्तेपन की परख। ..."
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