सृष्टि के पालनहार पिता परमात्मा द्वारा पालना का युग

1971

अव्यक्त बापदादा 22.01.1971

"...कोई में स्नेहीपन की विशेषता है, कोई में सहयोगीपन की, लेकिन शक्ति रूप की धारणा कम है।

इसकी निशानी फिर क्या दिखाई देती है, मालूम है?

शक्तिपन के कमी की निशानी क्या है?

परखने की शक्ति कम की निशानी क्या है?

एक बात तो सुनाई - सर्विस की सफलता नहीं।

उनकी स्पष्ट निशानी दो शब्दों में यह दिखाई देगी - उनका हर बात ‘क्यों’, ‘क्या’, ‘कैसे’ ....?

क्वेश्चन मार्क बहुत होगा।

ड्रामा का फुल-स्टॉप देना उनके लिए बड़ा मुश्किल होगा।

इसलिए स्वयं ही ‘क्यों, क्या कैसे’ की उलझन में होगा।

दूसरी बात -- वह कभी भी समीप आत्मा नहीं बना सकेगा।

सम्बन्ध में लायेंगे लेकिन समीप सम्बन्ध में नहीं लायेंगे।

समझा?

ब्राह्मण कुल की जो मर्यादाएं हैं उन सर्व मर्यादाओं स्वरूप नहीं बना सकेंगे।

क्योंकि स्वयं में शक्ति कम होने के कारण

औरों में भी इतनी शक्ति नहीं ला सकते जो सर्व मर्यादाओं को पालन कर सकें।

कोई न कोई मर्यादा की लकीर उल्लंघन कर देते हैं।

समझते सभी होंगे, समझने में कमी नहीं होगी।

मर्यादाओं की समझ पूरी होगी।

परन्तु मर्यादाओं में चलना यह शक्ति कम होगी।

इस कारण जिन्हों की वह सेवा करते हैं उन्हों में भी शक्ति कम होने कारण हाई जम्प नहीं दे सकते।

संस्कारों को मिटाने में समय बहुत वेस्ट करते हैं।..."

 

 

 

अव्यक्त बापदादा 01.03.1971

"...संकल्पों की सिद्धि प्राप्त करने के लिए मुख्य पुरूषार्थ यह है - व्यर्थ संकल्प न रच समर्थ संकल्पों की रचना करो।

समझा?

रचना ज्यादा रचते हो, इसलिए पूरी पालना कर उन्हों को काम में लगाना यह कर नहीं सकते हो।

जैसे लौकिक रचना भी अगर अधिक रची जाती है तो उनको लायक नहीं बना सकते हैं।

इसी रीति से संकल्पों की जो स्थापना करते हो वह बहुत अधिक करते हो।

संकल्पों की रचना जितनी कम उतनी पावरफुल होगी।

जितनी रचना ज्यादा उतनी ही शक्तिहीन रचना होती है।

तो संकल्पों की सिद्धि प्राप्त करने के लिए पुरूषार्थ करना पड़े।

व्यर्थ रचना बन्द करो।

नहीं तो आजकल व्यर्थ रचना कर उसकी पालना में समय बहुत वेस्ट करते हैं।

तो संकल्पों की सिद्धि और कर्मों की सफलता कम होती है।

कर्मों में सफलता की युक्ति है - मास्टर त्रिकालदर्शी बनना।

कर्म करने से पहले आदि,मध्य और अन्त को जानकर कर्म करो, ना कि कर्म करने के बाद अन्त में परिणाम को देखकर फिर सोचो। ..."

 

 

अव्यक्त बापदादा 15.04.1971

"...अगर नई रचना करते हो, उनकी पालना न करेंगे तो प्रैक्टिकल कैसे दिखाई देंगे।

तो त्रिमूर्ति बाप के त्रिमूर्ति बच्चे तीनों ही कर्त्तव्य साथ-साथ कर रहे हो।

विनाश करते हो विकर्मों अथवा व्यर्थ संकल्पों का।

यह तो और भी अब तेजी से करना पड़े।

सिर्फ अपने व्यर्थ संकल्प वा विकर्म भस्म नहीं करने हैं लेकिन तुम तो विश्व-कल्याणकारी हो।

इसलिए सारे विश्व के विकर्मों का बोझ हल्का करना वा अनेक आत्माओं के व्यर्थ संकल्पों को मिटाना-यह शक्तियों का कर्त्तव्य है। ..."

 

 

 

 

"...जो मन्सा के महादानी होंगे उनके संकल्प में इतनी शक्ति होती है जो संकल्प किया उसकी सिद्धि मिली।

तो मन्सा-महादानी संकल्पों की सिद्धि को प्राप्त करने वाला बन जाता है।

जहाँ संकल्प को चाहे वहाँ संकल्पों को टिका सकते हैं।

संकल्प के वश नहीं होंगे लेकिन संकल्प उनके वश होता है।

जो संकल्पों की रचना रचे, वह रच सकता है।

जब संकल्प को विनाश करना चाहे तो विनाश कर सकते हैं।

तो ऐसे महादानी में संकल्पों के रचने, संकल्पों को विनाश करने और

संकल्पों की पालना करने की तीनों ही शक्ति होती है।

तो यह है मन्सा का महादान।..."

 

 

 

अव्यक्त बापदादा 19.04.1971

"...हर कर्मेन्द्रिय से देह-अभिमान का त्याग और आत्माभिमानी की तपस्या प्रत्यक्ष रूप में दिखाई दे।

क्योंकि ब्रह्मा की स्थापना का कार्य तो चल ही रहा है।

ईश्वरीय पालना का कर्त्तव्य भी चल ही रहा है।

अब लाइट में तपस्या द्वारा अपने विकर्मों और हर आत्मा के तमोगुण और प्रकृति के तमोगुणी संस्कारों को भस्म करने का कर्त्तव्य चलना है।

अब समझा कि कौनसे कर्त्तव्य का अभी समय है?

तपस्या द्वारा तमोगुण को भस्म करने का।

जैसे अपने चित्रों में शंकर का रूप विनाशकारी अर्थात् तपस्वी रूप दिखाते हैं, ऐसे एकरस स्थिति के आसन पर स्थित हो तपस्वी रूप अपना प्रत्यक्ष दिखाओ। ..."

 

 

 

अव्यक्त बापदादा 08.06.1971

"...जैसे सर्विस के साधन की स्थापना की है वैसे पालना का रूप अभी विस्तार को पाना चाहिए। ..."

 

 


"...जैसे भट्ठी के प्रोग्राम का गायन है।

आग जलते हुए भी वह स्थान सेफ्टी का साधन रहा।

चारों ओर आग होगी लेकिन यह एक ही स्थान शान्ति का है - ऐसा

अनुभव करेंगे।

इसी स्थान से ही हमको सेफ्टी वा शान्ति मिल सकती है।

यह पालना का कर्त्तव्य बढ़ाओ।

वह तब होगा जब कोई एक स्थान बनाओ जो विशेष (योग) अभ्यास का हो, जिसमें जाने से ही ऐसा अनुभव करें कि ना मालूम हम कहाँ आ गये हैं।

स्थान भी अवस्था को बढ़ाता है। ..."

 

 

 


"...कई आत्माओं के संस्कार ऐसे हैं जो कुछ निर्बल हैं’।

अपने संस्कारों का परिवर्तन नहीं कर सकते वा अपने संस्कारों को सेवा में नहीं लगा सकते, उन्हों को मदद दे आगे बढ़ाना - यह है पालना।

पालना में छोटे से बड़ा करना होता है।

और फिर कई आत्मायें जो अपनी शक्ति से पुराने संस्कारों को मिटा नहीं सकती, उन्हों के भी मददगार बन उनके विकर्मों को नाश करने में मददगार बनते हो।

तीनों कर्त्तव्य चल रहे हैं।

इन तीन कर्त्तव्यों के लिए तीन मूर्त कौनसी हैं?

जिस समय कोई आत्मा में नये दैवी संस्कारों की रचना कराती हो, उस समय बनती हो ज्ञानमूर्त्त।

और जिस समय पालना कराती हो तो उस समय रहम और स्नेह दोनों मूर्ति की आवश्यकता है।

अगर रहम नहीं आता है तो स्नेह भी नहीं।

तो पालना के समय एक रहमदिल और स्नेह मूर्त।

और जिस समय कोई के पुराने संस्कारों का नाश कराती हो उस समय शक्ति-स्वरूप और दूसरा रोब के बजाय रूहाब में।

जब तक रूहाब में नहीं ठहरते तब तक उनके विकर्मों का विनाश नहीं

करा सकते।

जैसे अज्ञान-काल में कोई की बुराई छुड़ाने के लिए रोब रखा जाता है।

यहाँ रोब तो नहीं लेकिन रूहाब में ठहरना पड़ता है।

अगर रूहाब में न ठहरो तो

उनके पुराने संस्कारों का नाश नहीं करा सकेंगी।

शक्ति रूप में विशेष इस रूहाब की धारणा करती हो।

इन गुणों द्वारा यह तीन कर्त्तव्य करती हो।

कोई में अगर रूहाब की कमी है तो पालना कर सकती हो लेकिन उनके संस्कारों को नाश नहीं कर सकती।

सिर्फ तरस और स्नेह है तो विनाश कराने का कर्त्तव्य नहीं।

स्नेह, रहम नहीं तो पालना का कर्त्तव्य नहीं।

रूहाब ज्यादा है लेकिन रहम कम है तो पालना में इतना मददगार नहीं, लेकिन कोई के विकर्मों का नाश कराने में मददगार हैं। ..."

 

 

 

अव्यक्त बापदादा 22.06.1971

"...अभी तक बचपन के खेल खेलते रहते हो वा कभी दिल होती है बचपन के खेल खेलने की?

वहाँ ही रचना की, वहाँ ही पालना की और वहाँ ही विनाश किया -

यह कौनसा खेल कहा जाता है?

वह तो भक्ति-मार्ग के अंधश्रद्धा का खेल हुआ।

माया आयेगी जरूर लेकिन अब की स्टेज अनुसार, समय अनुसार विदाई लेने अर्थ आनी चाहिए, न कि ऐसे रूप में आये।

नमस्कार करने आये।..."

 

 

 

अव्यक्त बापदादा 27.07.1971

"...कई समझते हैं कि अगर थोड़ा- बहुत रोब के संस्कार अपने में न रखें तो प्रवृत्ति कैसे चलेगी।

वा थोड़ा-बहुत अगर लोभ के संस्कार भिन्न रूप में न होंगे तो

कमाई कैसे कर सकेंगे वा अहंकार का रूप न होगा तो लोगों के सामने पर्सनैलिटी कैसे देखने में आयेगी।

ऐसे-ऐसे कार्य के लिए अर्थात् आईवेल के लिए थोड़ा-बहुत पुराने संस्कारों का खज़ाना जो है उनको छिपाकर रखते हैं।

यह संस्कार ही धोखा देते हैं।

यह कोई पर्सनैलिटी नहीं वा इस पुराने संस्कारों का रूप प्रवृत्ति को पालन करने का साधन नहीं है।

पुराने संस्कारों का लोभ रॉयल रूप में होता है, लेकिन है लोभ का अंश।..."

 

 

 

 

अव्यक्त बापदादा 09.10.1971

"...अभी लास्ट कोर्स कौनसा रहा है?

फोर्स रूप बनना है।

अभी जगत्-माता बहुत बने, अब शक्तिरूप से स्टेज पर आना है।

शक्तियां आसुरी संस्कारों को एक धक से खत्म करती हैं और स्नेही मां जो होती है वह धीरे-धीरे प्यार से पालना करती है।

पहले वह आवश्यकता थी लेकिन अभी आवश्यकता है शक्ति रूप बन आसुरी संस्कारों को एक धक से खत्म करना।..."

 

 

 

1970

अव्यक्त बापदादा 25.01.1970

"...बीज पावरफुल है।

बाकी पालना करना, देखभाल करना आप का काम है। ..."

 

 

 

अव्यक्त बापदादा 23.03.1970

"...स्थापना करने वाला भी यह ग्रुप है।

समाप्ति क्या करनी है?

पालना क्या करनी है और स्थापना क्या करनी है?

यह तीनों ही टॉपिक्स इस भट्ठी में स्पष्ट करनी है।

इसलिए त्रिमूर्ति चिन्दी लगा रहे हैं।

स्थापना, पालना, समाप्ति अर्थात् विनाश।..."

 

 

 

 

अव्यक्त बापदादा 26.03.1970

"...बच्चे भी कई बातों की, संकल्पों की रचना करते हैं फिर उसकी पालना करते हैं फिर उनको बड़ा करते हैं फिर उनसे खुद ही तंग होते हैं।

तो यह गुड्डियों का खेल नहीं हुआ?

खुद ही अपने से आश्चर्य भी खाते हैं।

अब ऐसी रचना नहीं रचनी है।

बापदादा व्यर्थ रचना नहीं रचते हैं।

और बच्चे भी व्यर्थ रचना रचकर फिर उनसे हटने और मिटने का पुरुषार्थ करते हैं।

इसलिए ऐसी रचना नहीं रचनी है।..."

 

 

अव्यक्त बापदादा 25.06.1970

"...प्रवृत्ति की पालना तो करना ही है।

लेकिन प्रवृत्ति में रहते वैराग्य वृत्ति में रहना है, यह भूल जाता है।

आधी बात याद रहती है, आधी बात छोड़ देते हैं।

बहुत सूक्ष्म संकल्पों के रूप में पहले सुस्ती प्रवेश करती है।

इसके बाद फिर बड़ा रूप लेती है।..."

 

 

 

अव्यक्त बापदादा 23.10.1970

"...जब लक्ष्य पूरा वर्सा लेने का है तो घोड़ेसवार क्यों?

अगर घोड़ेसवार हैं तो मालूम है नम्बर कहाँ जायेगा?

सेकण्ड ग्रेड वाले कहाँ आयेंगे इतनी परवरिश लेने के बाद भी सेकण्ड ग्रेड।

अगर बहुत समय से सेकण्ड ग्रेड पुरुषार्थ ही रहा तो वर्सा भी बहुत समय सेकण्ड ग्रेड मिलेगा।

बाकी थोड़ा समय फर्स्ट ग्रेड में अनुभव करेंगे।

सर्वशक्तिमान बाप के बच्चे कहलाने वाले और व्यक्त-अव्यक्त द्वारा पालना लेने वाले फिर सेकण्ड ग्रेड।

ऐसे मुख से कहना भी शोभता नहीं है।

या तो आज से अपने को सर्वशक्तिमान के बच्चे न कहलाओ।..."

 

 

 

1969

अव्यक्त बापदादा 21.01.1969

"...अभी भी स्थापना का कार्य ब्रह्मा का है न कि हमारा।

अभी भी आप बच्चों की पालना ब्रह्मा द्वारा ही होगी।

स्थापना के अन्त तक ब्रह्मा का ही पार्ट है।..."

 

 

 

अव्यक्त बापदादा 15.09.1969

"...सिर्फ जगतमाता बनना है।

माता बनने बिना पालना नहीं कर सकते ..."

 

 

अव्यक्त बापदादा 20.12.1969

"...सभी के मुख से यही निकलता था कि यह एक ही साचें से निकली हुई हैं।

सभी की बात एक ही है, सभी के रहन-सहन, सभी के आकर्षण जहाँ देखो वही नजर आता है।

वह किसका प्रभाव पड़ता था?

अव्यक्ति पालना का प्रभाव।

व्यक्त में होते हुए भी सभी को अव्यक्त फरिश्ते नजर आते थे।

साधारण रूप में आकर्षण मूर्त और अलौकिक व्यक्तियों देखने में आते थे। ..."