अगर समय आ जाए तो...

कोई भी संस्कार रूपी पत्ते

अटक तो नहीं जायेंगे,

जो मेहनत करनी पड़े?

कर्मातीत अवस्था सहज ही बन जायेगी या

कोई कर्मबन्धन उस समय अटक डालेगा?...


"...बाबा ने सभी को स्नेह और शक्ति भरी दृष्टि देते गिट्टी खिलाई।

फिर एक दृश्य इमर्ज हुआ -

क्या देखा सभी बच्चों का संगठन खड़ा है और ऊपर से बहुत फूलों की वर्षा हो रही है।

बिल्कुल चारों और फूल के सिवाए और कुछ देखने में नहीं आ रहा था।

बाबा ने सुनाया - बच्ची, बाप- दादा ने स्नेह और शक्ति तो बच्चों को दी ही है लेकिन साथ-साथ दिव्य गुण रुपी फूलों की वर्षा शिक्षा के रूप में भी बहुत की है।

परन्तु दिव्य गुणों की शिक्षा को हरेक बच्चे ने यथाशक्ति ही धारण किया है।

इसके बाद फिर दूसरा दृश्य दिखाया

- तीन प्रकार के गुलाब के फूल थे

एक लोहे का,

दूसरा हल्का पीतल का

और तीसरा रीयल गुलाब था।

तो बाबा ने कहा बच्चों की रिजल्ट भी इस प्रकार है।

जो लोहे का फूल हैं - यह बच्चों के कड़े संस्कार की निशानी थे।

जैसे लोहे को बहुत ठोकना पड़ता है, जब तक गर्म न करो, हथोड़ी न लगाओ तो मुड़ नहीं सकता।

इस तरह कई बच्चों के संस्कार लोहे की तरह है जो कितना भी भट्टी में पड़े रहें लेकिन बदलते ही नहीं।

 

दूसरे है जो मोड़ने से वा मेहनत से कुछ बदलते हैं।

 

तीसरे वह जो नैचुरल ही गुलाब हैं।

 

यह वही बच्चे हैं जिन्होंने गुलाब समान बनने में कुछ मेहनत नहीं ली।

ऐसे सुनाते- सुनाते बाबा ने रीयल गुलाब के फूल को अपने हाथ में उठाकर थोड़ा घुमाया।

घुमाते ही उनके सारे पत्ते गिर गये।

और सिर्फ बीच का बीज रह गया।

तो बाबा बोले, देखो बच्ची जैसे इनके पत्ते कितना जल्दी और सहज अलग हो गये

- ऐसे ही बच्चों को ऐसा पुरुषार्थ करना है जो एकदम फट से पुराने संस्कार, पुराने देह के सम्बन्धियों रूपी पत्ते छट जायें।

और फिर बीजरूप अवस्था में स्थित हो जायें।

तो सभी बच्चों को यही सन्देश देना कि अपने को चेक करो कि अगर समय आ जाए तो कोई भी संस्कार रूपी पत्ते अटक तो नहीं जायेंगे,

जो मेहनत करनी पड़े?

कर्मातीत अवस्था सहज ही बन जायेगी या कोई
कर्मबन्धन उस समय अटक डालेगा?

अगर कोई कमी है तो चेक करो और भरने की कोशिश करो। ..."

Avyakt Sandesh - 18.01.1969