10.01.1990

"...सेवा में भी आत्मा की स्थिति वा उसकी आस्था क्या है - उसको परखना आवश्यक है।

तो सेवा में सफलता का आधार किस शक्ति से हुआ?

परखने की शक्ति चाहिए।

चाहे अज्ञानी आत्माओं की सेवा, चाहे सेवा-साथियों की सेवा - दोनों में सफलता का आधार एक ही है।

तो होलीहँस की विशेषता - सबसे पहले परखने की शक्ति को बढ़ाओ।

परखने की शक्ति यथार्थ है, श्रेष्ठ है तो निर्णय भी यथार्थ होगा और आप जिसको जो देना चाहते है वह उसमें ग्रहण करने की शक्ति स्वत: ही होगी।

और क्या बन जायेंगे?

नम्बरवन सफलतामूर्त। ..."

 

 

 


06.02.1969

"... तीन बातें धारण करनी हैं।

त्याग, तपस्या और सेवा। यह तीन बातें धारणा में चाहिए।

तपस्या अर्थात् याद की यात्रा और सर्विस के बिना भी जीवन नहीं बन सकती।

इन दोनों बातों की सफलता त्याग के बिना नहीं हो सकती। ..."

 

 

 


04.03.1969

"...अब अपने को आपे ही ज्यादा में ज्यादा सर्विस के बन्धन में बांधना चाहिए।

इस एक बन्धन से ही अनेक बन्धन मिट जाते हैं।

अपने को खुद ईश्वरीय सेवा में लगाना चाहिए औरों के कहने से नहीं।

औरों के कहने से क्या होगा?

आधा फल मिलेगा।

क्योंकि जिसने कहा अथवा प्रेरणा दी उनकी भाईवारी हो जाती है।..."

 

 

 

 

 

16.06.1969

"...सभी से बड़ी सेवा कौन सी है?

जो श्रेष्ठ सेवाधारी होंगे - वह मुख्य कौन सी सेवा करेंगे?

जो तीव्र पुरुषार्थी होंगे वह तीव्र पुरुषार्थ का सबूत क्या दिखावेंगे?

कोई भी सामने आये तो एक सेकेण्ड में उनको मरजीवा बनाना।

कहते हैं ना एक धक से मरजीवा बनना।

जिसको झाटकू कहते हैं।

अधूरा नहीं छोड़ना।

श्रेष्ठ सेवा यह है जो उनको झट झाटकू बना देना।

अभी तो आप तीर मारते हो, बाहर फिर जिन्दा हो जाते हैं।

लेकिन ऐसा समय आना है जो एक सेकेण्ड में नजर से निहाल कर देंगे तब सर्विस की सफलता और प्रभाव निकलेगा। ..."

 

 

 

 

06.07.1969

"...अव्यक्त वतन से बापदादा बच्चों की सर्विस करने और साफ बनाने लिए आये हैं।

बाप सेवा करते हैं।

आप सब बच्चों का शुरू से लेकर अन्त तक बाप सेवक है।

सेवा करने लिए सदैव तैयार है।

बाप को कितना फखुर रहता है -हमारे बच्चे सिरमोर हैं, आँखों के सितारे हैं।

जिन्हों के लिए स्वर्ग स्थापन हो रहा है।

उस स्वर्ग के वासी बनाने के लिए तैयार कर रहे हैं। ..."

 

 

 

06.07.1969

"... बापदादा आप बच्चों की सेवा करने के लिए सेवक बनकर शिक्षा दे रहे हैं।

फरमान नहीं करते हैं परन्तु शिक्षा देते हैं।

क्योंकि बाप टीचर भी है, सतगुरू भी है।

अगर बच्चों को फरमान करे और न माने तो वह भी अच्छा नहीं इसलिए शिक्षा देते हैं।..."

 

 

 

 

06.07.1969

"...एक तरफ सेवक भी बनना है।

सेवक अर्थात् पतित आत्माओं का उद्धार करना।

उस सेवा को कायम रखो।

आप सबको आने वाली आत्माओं का कैसे उद्धार करना है?

कैसे विघ्नों को हटाना है?

तीर में जौहर भरा हुआ होगा तो एक ही बार में पूरा तीर लग जायेगा। ..."

 

 

 

 

 

16.10.1969

"... यहाँ से जब जाओ तो ऐसे ही समझकर जाना कि हम इस शरीर में अवतरित हुए है - ईश्वरीय सेवा के लिये।

अगर यह स्मृति रखकर जायेंगे तो आपके हर चलन में अलौकिकता देखने में आयेगी।

जो भी आपके दैवी परिवार वाले वा लौकिक परिवार वाले है वह महसूस करे कि यह कुछ अनोखे ही बनकर आये है, बदलकर आये है।

जब आप की बदलने की महसूसता आयेगी तब आप दुनिया को बदल सकेंगे।

अगर आप सभी के बदलने की भासना नहीं तो दुनिया को नहीं बदल सकेंगे।

खुद बदल कर दुनिया को बदलना है। ..."

 

 

 

 

 

20.12.1969

"...शक्तिरूप में है मालिकपना और नम्रता में सेवागुण।

सेवा भी और मालिकपना भी।

सेवाधारी भी हो और विश्व के मालिकपने का नशा भी हो। ..."

 

 

20.12.1969

"...अलौकिक स्थिति का बल गुप्त हो गया है।

छिप गया है।

इसलिए अब फिर से ऐसी अलौकिकता सभी को दिखानी है जो सभी महसूस करे कि जैसे शुरू में भट्ठी से निकली हुई आत्मायें कितनी सेवा के निमित्त बनी, अब फिर से सृष्टि के दृश्य को चेंज करने के निमित्त बनी है।

उनसे अभी की सर्विस बड़ी है।

तो ऐसी शक्तिरूप और स्नेह रूप बन जाना है।

कितने भी हजारों के बीच खड़े हो तो भी दूर से अलौकिक व्यक्ति नजर आओ।..."