1971

 

21.01.1971

"...आजकल सर्व आत्मायें सुख और शान्ति का अनुभव करने चाहती हैं।

ज्यादा सुनने नहीं चाहती हैं।

अनुभव कराने के लिए स्वयं अनुभव-स्वरूप बनेंगे तब सर्व आत्माओं की इच्छा पूर्ण कर सकेंगे।

दिन-प्रतिदिन देखेंगे - जैसे धन के भिखारी भिक्षा लेने के लिए आते हैं

वैसे शान्ति के अनुभव के भिखारी आत्मायें भिक्षा लेने के लिए तड़पेंगी। ..."

 


"...डाक्टर लोग भी कोई को इस बीमारी की दवाई नहीं दे सकेंगे।

तब आप लोगों के पास यह औषधि लेने के लिए आयेंगे।

धीरे-धीरे यह आवाज़ फैलेगा कि सुख-शान्ति का अनुभव ब्रह्माकुमारियों के पास मिलेगा।

भटकते-भटकते असली द्वार पर अनेकानेक आत्मायें आकर पहुँचेंगी।..."

 


"....बापदादा के मुख्य गुण कौन से वर्णन करते हो?

ज्ञान, प्रेम, आनन्द, सुख-शान्ति का सागर।

जो भी कर्म करो वह सब ज्ञान सहित हों।

हर कर्म द्वारा सर्व आत्माओं को सुख-शान्ति, आनंद का अनुभव हो।

इसको कहते हैं बाप के गुणों की समानता।...."

 

 

09.04.1971

"... सिर्फ शान्ति नहीं लेकिन शान्ति के साथ-साथ ज्ञान, अतीन्द्रिय सुख, प्रेम, आनन्द, शक्ति आदि-आदि सर्व मुख्य गुणों का अनुभव होता है।

न सिर्फ अपने को लेकिन अन्य आत्मायें भी ऐसी स्थिति में स्थित हुई आत्मा के चेहरे से इन सर्व गुणों का अनुभव करती हैं। ..."

 

 

18.04.1971

"...अगर कोई शान्ति का प्यासा है, उसको शान्ति मिल जाये तो क्या होगा?

प्राप्ति से अविनाशी पुरुषार्थी बन जायेंगे। ..."

 

 

24.05.1971

"....सर्व आत्माओं के सुख और शान्ति कर्ता बने हो?

क्योंकि दु:खहर्ता सुखकर्ता के सिकीलधे बच्चे हो,

तो जो बाप का कर्त्तव्य वही बच्चों का कर्त्तव्य।..."


08.06.1971


"...इतना आवाज़ फैलना चाहिए जो

गवर्नमेन्ट तक यह आवाज़ जाये कि इस स्थान द्वारा शान्ति सहज प्राप्त हो सकती है।

गवर्नमेन्ट द्वारा शान्ति-दल के रूप में ऑफर हो सकती है।..."

 


"...चारों ओर आग होगी लेकिन यह एक ही स्थान शान्ति का है - ऐसा अनुभव करेंगे।

इसी स्थान से ही हमको सेफ्टी वा शान्ति मिल सकती है।

यह पालना का कर्त्तव्य बढ़ाओ। ...."


20.08.1971

"...अतीन्द्रिय सुख की प्राप्ति, उसमें शान्ति और खुशी समाई हुई है।

यह हुआ संगमयुग का वर्सा।

अभी जो प्राप्ति है वह फिर कभी भी प्राप्त नहीं हो सकती। ..."

 

1972

15.03.1972

"...बाप के गुण हैं -

ज्ञान का सागर,

सुख का सागर,

शान्ति का सागर,

वह सागर है पर आप स्वरूप तो हो।

तो जो आत्मा के निजी गुण हैं, शान्ति-स्वरूप तो हो ना।

यह तो संग के रंग में परिवर्तन में आये हो,..."

 


14.06.1972

" ...सदा सुख वा शान्तिमय जीवन तब बन सकती है जब

जीवन में चार बातें हों।

वह चार बातें हैं - हैल्थ, वैल्थ, हैपी और होली।

अगर यह चार बातें सदा कायम रहें तो दु:ख और अशान्ति कभी भी जीवन में अनुभव न करें।

ऐसे स्व-स्थिति का स्वरूप भी है - सदा सुख-शान्ति-आनन्द-प्रेम स्वरूप में स्थित रहना।..."


24.06.1972

"...जैसे ब्रह्म घर शान्तिधाम है

वैसे ही अमृतवेले के समय में भी आटोमेटिकली साइलेंस रहती है।

साइलेंस के कारण शान्तस्वरूप की स्टेज वा शान्तिधाम निवासी बनने की स्टेज को सहज ही धारण कर सकते हो।..."

 

13.04.1973

"...जैसे भक्तों को भावना का फल देते हैं,

वैसे ही कोई आत्मा भावना रखकर,

तड़पती हुई, आपके पास आये कि ‘जीय दान दो’ वा

‘हमारे मन को शान्ति दो’ तो आप लोग उनकी भावना का फल दे सकती हो? उन्हें अपने पुरूषार्थ से जो कुछ भी प्राप्ति होती है

वह तो हुआ उनका अपना पुरूषार्थ और उनका फल।

लेकिन आपको कोई अगर कहे कि मैं निर्बल हूँ, मेरे में शक्ति नहीं है तो ऐसे को आप भावना का फल दे सकती हो? (बाप द्वारा)।

बाप को तो पीछे जानेंगे-जब कि पहले उन्हें दिलासा मिले।

लेकिन यदि भावना का फल प्राप्त हो सकता है तब उनकी बुद्धि का योग डायरेक्शन प्रमाण लग सकेगा।

ऐसी भावना वाले भक्त अन्त में बहुत आयेंगे।

एक हैं-पुरूषार्थ करके पद पाने वाले, वह तो आते रहते हैं, लेकिन अन्त में पुरूषार्थ करने का न तो समय रहेगा और न आत्माओं में शक्ति ही रहेगी,

ऐसी आत्माओं को फिर अपने सहयोग से और अपने महादान देने के कर्त्तव्य के आधार से उन की भावना का फल दिलाने के निमित्त बनना पड़े। ..."

 


01.06.1973

"...जब इस विनाश की आग चारो ओर लगेगी, उस समय आप श्रेष्ठ आत्माओं का पहला-पहला कर्त्तव्य कौन-सा है?

शान्ति का दान

अर्थात् शीतलता का जल देना।

पानी डालने के बाद फिर क्या-क्या करते हैं?

जिसको जो-कुछ आवश्यकता होती है वह उनकी आवश्यकताएं पूर्ण करते हैं।

किसी को आराम चाहिए, किसी को ठिकाना चाहिए, मतलब जिसकी जैसी आव श्यकता होती है वही पूरी करते हैं।

आप लोगों को कौन-सी आवश्यकताएं पूर्ण करनी पड़ेंगी, वह जानते हो?

उस समय हरेक को अलग-अलग शक्ति की आवश्यकता होगी।

किसी को सहनशक्ति की आवश्यकता, किसी को समेटने की शक्ति की आवश्यकता, किसी को निर्णय करने की शक्ति की आवश्यकता और किसी को अपने-आप को परखने की शक्ति की आवश्यकता होगी।

किसी को मुक्ति के ठिकाने की आवश्यकता होगी।

भिन्न-भिन्न शक्तियों की उन आत्माओं को उस समय आवश्यकता होगी। बाप के परिचय द्वारा एक सेकेण्ड में अशान्त आत्माओं को शान्त कराने की शक्ति भी उस समय आवश्यक है।

वह अभी से ही इकट्ठी करनी होगी।

नहीं तो उस समय लगी हुई आग से कैसे बचा सकेंगे?

जी-दान कैसे दे सकेंगे? ..."


28.06.1973

" ...जब विनाश की आग चारों ओर लगेगी उस समय आप श्रेष्ठ आत्माओं का पहला कर्त्तव्य है-

शान्ति का दान अर्थात् सफलता का बल देना। ..."

 

 

15.07.1973

"...जैसे वह लोग अभी इन्वेन्शन कर रहे हैं कि ऐसे पॉवरफुल यन्त्र बनायें जो विनाश सहज और शीघ्र हो जाये तो क्या ऐसे आप महावीर, सायलेन्स की शक्ति के इन्वेन्टर ऐसा प्लान बना रहे हो कि जो सारे विश्व को परिवर्तन होने में अथवा उसे मुक्ति और जीवनमुक्ति का वर्सा लेने में सिर्फ एक सेकेण्ड ही लगे और सहज भी हो जाये?

आप मुआफिक पैतीस वर्ष न लगें। तो ऐसी रिफाईन इन्वेन्शन से एक सेकेण्ड में नज़र से निहाल, एक सेकेण्ड में दु:खी से सुखी, निर्बल से बलवान और अशान्ति से शान्ति का अनुभव करा सको।

क्या ऐसे रिफाईन रूहानी शस्त्र और युक्तियाँ सोचते हो कि एक सेकेण्ड में उनका तड़पना बन्द हो जाय?

जैसे बम द्वारा एक सेकेण्ड में मर जायें, वैसे एक सेकेण्ड में उनको वरदान, महादान दे सको, क्या ऐसे महादानी और ऐसे वरदानी बने हो?..."

 

 

21.07.1973

"...अगर किसी को आवश्यकता हो शान्ति की और आप उसको सुख का रास्ता बताओ (परखने की शक्ति कम होने के कारण) तो भी वह सन्तुष्ट नहीं होगा।

इसलिये हरेक की प्राप्ति की इच्छा को परखने वाला ही सम्पूर्ण और यथार्थ जज़मेन्ट कर सकता है।..."

 


23.09.1973

"...बे-आरामी में आराम से रहना इसको कहा जाता है-

"पद्मापद्म भाग्यशाली"।

तो ऐसे विषय सागर के बीच रहते हुए पाँच विकारों को अपने आराम व सुख और शान्ति की शैया बनाना है।

अर्थात् क्या अभी से विकारों के ऊपर सदा विजयी बन सदा ज्ञान के मनन

और बाप के मिलन में मग्न रहते हो?..."

 


15.04.1974

"...एकाग्र, एकरस, एकान्त अर्थात् एक रचयिता और रचना के अन्त को जानने वाले त्रिकालदर्शी की स्टेज पर, क्या आराम से शान्ति की स्टेज पर स्थित हैं या कर्मेन्द्रियों की हलचल आन्तरिक स्टेज को भी हिलाती है?

जब स्थूल सागर दोनों ही रूप दिखाता है तो क्या मास्टर ज्ञान सागर ऐसा रूप नहीं दिखा सकते?

यह प्रकृति ने पुरूष से कॉपी की है।

आप तो पुरूषोत्तम हो।

जो प्रकृति अपनी क्वॉलिफिकेशन दिखा सकती है,

क्या वह पुरूषोत्तम नहीं दिखा सकते?..."

 


28.04.1974

" ...गाँव-गाँव में अथवा हर स्थान में सदाकाल की शान्ति व आनन्द का अनुभव एक सेकेण्ड में अपनी अनुभवी-मू्र्त्त द्वारा दिखाओ व कराओ

तो क्या यह ‘कम खर्च बाला नशीन’ (ऊंची परन्तु कम खर्च वाली) सर्विस नहीं? ..."

 

 


23.05.1974

"...शान्ति में शान्त रहना बड़ी बात नहीं है, लेकिन अशान्ति के वातावरण में भी शान्त रहना इसको ही ज्ञानस्वरूप, शक्तिस्वरूप, यादस्वरूप, और सर्वगुण-स्वरूप कहा जाता है।..."

 

 

13.09.1974

"...आगे चल कर, जब प्रकृति के प्रकोप होंगे और आपदायें आवेंगी, तब सबका पेट भरने के लिये कौन-सी चीज काम आयेगी?

उस समय सबके अन्दर कौन-सी भूख होगी?

अन्न की कमी या धन की?

तब तो, शान्ति और सुख की भूख होगी।

क्योंकि प्राकृतिक आपदाओं के कारण, धन होते हुए भी, धन काम में नहीं आयेगा।

साधन होते हुए भी साधनों द्वारा प्राप्ति नहीं हो सकेगी।

जब सब स्थूल साधनों से व स्थूल धन से प्राप्ति की कोई आशा नहीं रहेगी, तब उस समय सबका संकल्प क्या होगा कि कोई शक्ति देवे, जो कि इन आपदाओं से पार हो सकें और कोई हमें शान्ति देवे।

तो ऐसे-ऐसे लंगर बहुत लगने वाले हैं।

उस समय पानी की एकादा बूंद भी कहीं दिखाई नहीं देगी।

अनाज भी प्राकृतिक आपदाओं के कारण खाने योग्य नहीं होगा, तो फिर उस समय आप लोग क्या करेंगे?

जब ऐसी परीक्षायें आपके सामने आयें तो, उस समय आप क्या करेंगे?

क्या ऐसी परीक्षाओं को सहन करने की इतनी हिम्मत है?

क्या उस समय योग लगेगा या कि प्यास लगेगी।

अगर कूएँ भी सूख जावेंगे, फिर क्या करेंगे?

जब यह विशेष आत्माओं का ग्रुप है, तो उनका पुरूषार्थ भी विशेष होना चाहिए ना?

क्या इतनी सहनशक्ति है?

यह क्यों नहीं समझते-जैसा कि गायन है कि चारों ओर आग लगी हुई थी, लेकिन भट्ठी में पडे हुए पूंगरे, ऐसे ही सेफ रहे, जो कि उनको सेक तक नहीं आया।

आप इस निश्चय से क्यों नहीं कहते?

अगर योग-युक्त हैं, तो भल नजदीक वाले स्थान पर नुकसान भी होगा, पानी आ जायेगा लेकिन बाप द्वारा जो निमित्त बने हुए स्थान हैं, वह सेफ रह जावेंगे, यदि अपनी गफलत नहीं है तो।

अगर अभी तक कहीं भी नुकसान हुआ है, तो वह अपनी बुद्धि की जजमेन्ट की कमजोरी के कारण। ..."


1975

18.01.1975

"...रहमदिल बाप के बच्चे हो; दु:ख-अशान्ति में तड़पती हुई आत्माओं को देखते हुए सहन कर सकते हो?

क्या रहम नहीं आता?

अनेक प्रकार के विनाशी सुख-शान्ति में विचलित हुई आत्माएँ, जो बाप को और अपने आप को भूल चुकी हैं,

ऐसी भूली हुई आत्माओं पर कल्याण की भावना द्वारा उन्हें भी यथार्थ मंज़िल बता कर अविनाशी प्राप्ति की अंजलि देने का संकल्प उत्पन्न नहीं होता?..."

 


02.02.1975

"...रूहानी रॉयल्टी वाले के सम्पर्क में जो भी आत्मा आये,

उसे थोड़े समय में भी, उस आत्मा के दातापन की व वरदातापन की

अनुभूति होनी चाहिए,

शीतलता व शान्ति की अनुभूति होनी चाहिए

जो हर-एक के मन में यह गुणगान हो कि यह कौन-सा फरिश्ता था, जो सम्पर्क में आया।..."


08.02.1975

" ...अब सबके अन्दर यह इंतज़ार है कि कब स्थापना के निमित्त बने हुए ये लोग सुख-शान्तिमयी नई दुनिया की स्थापना का कार्य सम्पन्न करते हैं,

जो यह दु:खदाई दुनिया के स्थापना के आधार पर परिवर्तित हो जायेगी।

इन्हों की नजर स्थापना करने वालों में है और स्थापना करने वालों की नजर कहाँ है?

अपने कार्यो में मग्न हो वा विनाशकारियों की तरफ नजर रखते हो? विनाश के साधनों के समाचारों को सुनने के आधार पर तो नहीं चल रहे हो?..."


29.08.1975

" ...आजकल सर्व परेशानियों से परेशान निर्बल आत्मायें, मंज़िल को ढूँढ़ने वाली आत्मायें और सुख-शान्ति की प्राप्ति के लिये तड़फती हुई आत्मायें पुरूषार्थ की विधि नहीं चाहतीं,

बल्कि विधि के बजाय सहज सिद्धि चाहती हैं। सिद्धि के बाद विधि के महत्व को जान सकेंगी।

ऐसी आत्माओं को आप विश्वकल् याणकारी आत्मा का कौन-सा स्वरूप चाहिए?

वर्तमान समय चाहिए प्रेम स्वरूप। लॉफुल नहीं, लेकिन लवफुल पहले लव दो फिर लॉ दो। ..."

 

1976

23.01.1976

"...आजकल मैजॉरिटी आत्माओं की इच्छा क्या है?

सुख-शान्ति की प्राप्ति की इच्छा तो है,

लेकिन विशेष जो भक्त आत्माएँ हैं उन्हों की इच्छा क्या है?

मैजॉरिटी भक्तों की इच्छा सिर्फ एक सेकेण्ड के लिये भी लाइट देखने की है।

तो वह इच्छा कैसे पूर्ण होगी?

वह इच्छा पूर्ण करने के साधन ब्राह्मणों के नयन हैं।

इन नयनों द्वारा बाप के ज्योतिस्वरूप का साक्षात्कार हो।..."

 


02.02.1976

"...पाण्डवों की श्रेष्ठ शान, रूहानी शान की स्थिति यादवों के परेशानी वाली परिस्थिति को समाप्त करेगी।

तो अपनी शान से परेशान आत्माओं को शान्ति और चैन का वरदान दो। ..."

 

 

07.02.1976

" ...ऐसा स्वयं की उन्नति के प्रति विशेष प्रोग्राम बनाओ।

जिस द्वारा आप श्रेष्ठ आत्माओं की शुभ वृत्ति व कल्याण की वृत्ति और

शक्तिशाली वातावरण द्वारा अनेक तड़पती हुई, भटकती हुई, पुकार करने वाली आत्माओं को आनन्द, शान्ति और शक्ति की अनुभूति हो। ..."

 


1977

26.1.1977

" ...अप्राप्त आत्मा को, अशान्त, दु:खी, रोगी आत्मा को दूर बैठे भी शान्ति, शक्ति, निरोगीपन का वरदान दे सकते हो?

जैसे शक्तियों के जड़ चित्रों में वरदान देने का स्थूल रूप हस्तों के रूप में दिखाया है, हस्त भी एकाग्र रूप दिखाते हैं।

वरदान का पोज (Pose,स्थिति) हस्त, दृष्टि और संकल्प एकाग्र ही दिखाते हैं, ऐसे चैतन्य रूप में एकाग्रचित की शक्ति को बढ़ाओ, तो रूहों की

दुनिया में रूहानी सेवा होगी।

रूहानी दुनिया मूलवतन नहीं लेकिन रूह रूह को आह्वान करके रूहानी सेवा करे। यह रूहानी लीला का अनुभव करो।..."

 


31.01.1977

" ...जो पूज्य होते हैं उनकी प्रजा बनती है, उनके ही फिर बाद में भक्त बनते हैं।

तो अपनी प्रजा को या अपने भक्तों को अब भी निमित्त बन शान्ति और शक्ति का वरदान दो।..."

 

 

05.05.1977

"...चारों ओर की आत्माएं,

कोई तन के दु:ख के वशीभूत,

कोई सम्बन्ध के वशीभूत,

कोई इच्छाओं के वशीभूत,

कोई अपने संस्कार जो कि दु:खदाई संस्कार हैं,

दु:खदाई स्वभाव हैं,

उनके दु:ख के वशीभूत,

कोई प्रभु-प्राप्ति न मिलने के अशान्ति में भटकने के दु:ख वशीभूत,

कोई जीवन का लक्ष्य स्पष्ट न होने के कारण परेशान,

कोई पशुओं की तरह खाया-पिया, जीवन बिताया, लेकिन फिर भी संतुष्टता नहीं।

काई साधना करते, त्याग करते, अध्ययन करते, फिर भी मंजिल को प्राप्त नहीं होते, पुकारने, चिल्लाने के ही दु:ख के वशीभूत,

ऐसे अनेक प्रकार के बन्धनों वश, दु:ख- अशान्ति के वश आत्माएं अपने को लिबरेट करना चाहते हैं।

ऐसे अपने आत्मा के नाते, भाइयों को दु:खी देख रहम आता?

दिखाई देता है?

आत्माओं के दु:खमय जीवन को कोई सहारा नहीं मिल रहा है।

देखने आता है वा अपने में बिजी हो?..."

 

 

11.05.1977

"... हरेक के मस्तक से, नयनों से क्या नज़र आते हैं?

जो बाप के गुण है, वही गुण बच्चों से नज़र आते है?

हरेक गुणों और शक्ति का भंडार है।

अपने को भी सदैव ऐसे सम्पन्न समझकर चलते हो?

सम्पन्न स्वरूप की निशानी, सर्व आत्माओं को दो बातों से दिखाई देगी।

वह दो बातें कौन-सी हैं?

ऐसी सम्पन्न आत्मा, सदैव स्वयं प्रति शुभ-चिन्तन में रहेगी और अन्य आत्माओं के प्रति शुभ-चिन्तक रहेगी।

तो ‘शुभ-चिन्तन और शुभ-चिन्तक’ - यह दोनों ही निशानियाँ सम्पन्न आत्माओं में दिखाई देंगी।

सम्पन्न आत्मा के पास अशुभ चिन्तन, वा व्यर्थ चिन्तन स्वत: ही समाप्त हो जाता है,

क्योंकि शुभ चिन्तन का खज़ाना, सत्य ज्ञान, ऐसी आत्मा के पास बहुत होता है। ..."


04.05.1977

"...आजकल के जमाने में दूरन्देशी बनने का अभ्यास करना होगा।

साइन्स के साधन भी दूर से परखने का प्रयत्न करते हैं।

पहले या, तुफान आना और उससे बचाव करना लेकिन अभी ऐसे नहीं है।

अभी तो तुफान आ रहा है, उसको जान करके भगाने का प्रयत्न करते हैं।

जब साइन्स (विज्ञान) भी आगे बढ़ रही है तो साइलेन्स (Silence;शान्ति) की शक्ति कितनी आगे चाहिए?

दूर से भगाने के लिए सदैव ‘त्रिकालदर्शीपन की स्थिति में स्थित रहो।’..."

 


21.05.1977

"...सेवाधारी के सम्पर्क में रहने वाली वा सम्बन्ध में आने वाली आत्माएं उनकी समीपता वा साथ से ऐसा अनुभव करेंगे जैसे शीतलता वा शक्ति, शान्ति के झरने के नीचे बैठे हैं, वा कोई सहारे वा किनारे की प्राप्ति का अनुभव करेंगे।..."

 


31.05.1977

"....जब वैरायटी आत्माएं हैं और वैरायटी ड्रामा है,

तो सब आत्माओं को एक जैसा पार्ट हो नहीं सकता।

अगर किसी आत्मा का तमोगुणी अर्थात् अज्ञान का पार्ट है,

तो शुभ भावना और शुभकामना से उन आत्मा को शान्ति और शक्ति का दान दो। लेकिन उसी अज्ञानी के पार्ट को देख, अपनी श्रेष्ठ स्थिति के अनुभव को भूल क्यों जाते हो?

अपनी स्थिति में हलचल क्यों करते हो?

साक्षी हो पार्ट देखते हुए, जो शक्ति का दान देना है, वह दो।...."

 

14.06.1977

"...नए व पुराने हर आत्मा में एक ही उमंग है कि इस श्रेष्ठ कार्य में हम भी अंगुली दें। कुछ करके दिखावें और क्या देखा?

संदेश पाने वाली आत्माएं, इच्छुक आत्माएं अर्थात् जिज्ञासा वाली आत्माएं थोड़े से समय में शान्ति और शक्ति की अंचली प्राप्त कर बहुत खुश होती हैं।

निमित्त बनी हुई आत्माओं को परमात्मा द्वारा वा गॉड फॉदर (God Father) द्वारा भेजे हुए अलौकिक फरिश्ते अनुभव करते हैं।

थोड़ी सी ली हुई सेवा का भी रिटर्न देने में भी अपनी खुशी अनुभव करते हैं और फौरन रिटर्न करते। ...."

 

 

"...जैसे कहने में आता है मिनट-मोटर वैसे विशेष आत्माओं की लास्ट विशेषता यही रहेगी - सेकेण्ड में किसी भी आत्मा को मुक्ति और जीवन्मुक्ति के अनुभवी बना देंगी।

सिर्फ रास्ता नहीं बतलायेगी लेकिन एक सेकेण्ड में शान्ति का वा अतिइन्द्रिय सुख का अनुभव करायेगी।

जीवन्मुक्ति का अनुभव है सुख, और मुक्ति का अनुभव है शान्ति। सामने आया और अनुभव किया।

ऐसी स्पीड जब होगी तब साइंस के ऊपर साइलेन्स की विजय देखते हुए सबके मुख से वाह-वाह का आवाज़ निकलेगा कि साइंस के ऊपर भी इनकी विजय हो गई।

जो साइंस नहीं कर सके वह साइलेन्स करके दिखावे।

साइंस का लक्ष्य भी है - सबको शान्तिमय, सुखमय जीवन व्यतीत करना।

तो जो साइंस नहीं कर सके वह करो तब कहेंगे साइंस के ऊपर विजय।

शान्ति वालों को शान्ति और सुख वालों को सुख मिले,

तब आपका गायन करेंगे,

आपको पूर्वज मानेंगे,

अष्टदेव समझेंगे और बारम्बार बाप की महिमा करेंगे।...."

 

 

30.06.1977

"...आजकल चारों ओर मैजारिटी से पूछेंगे तो सबको सुख से भी शान्ति आधिक चाहिए।

वह एक घड़ी भी शान्ति का अनुभव इतना श्रेष्ठ मानते हैं जैसे भगवान की प्राप्ति हो गई।

तो एक सेकेण्ड में शान्ति का अनुभव कराने वाले स्वयं शान्त स्वरूप में स्थित होंगे ना। ..."

 


07.01.1978

"...जिस भी आत्मा को कोई देखे तो हर चेहरे से बाप द्वारा प्राप्त हुई अविनाशी खुशी, अतीन्द्रिय सुख की अविनाशी शान्ति की झलक दिखाई दे।

आप सबके चेहरे बाप द्वारा प्राप्त हुई प्रॉपर्टी (Property) दिखाने के आईनें बन जायेंगे।

ऐसी सर्विस करने वालों को बाप-दादा द्वारा विशेष मार्क्स का इनाम मिलेगा।..."

 


13.01.1978

"...सबसे बड़े से बड़े, अविनाशी रत्न ज्ञान रत्न हैं। ज्ञान सागर के बच्चे ज्ञान रत्नों से खेलेंगे।

आधाकल्प पत्थर बुद्धि रहे और पत्थरों से खेला,

इसलिए दु:ख-अशान्ति रही।

आप किससे खेलते?

ज्ञान रत्नों से।

जैसे राजा के बच्चे, सोने-चांदी के खिलौने से खेलते हैं तो

ज्ञान सागर के बच्चे सदा ज्ञान रत्नों से खेलते हैं।

ज्ञान रत्नों में खेलने से दु:ख-अशान्ति की लहर नहीं आयेगी।

ज्ञान रत्न भी हैं, तो नॉलेज भी।

नॉलेज के आधार पर अशान्ति की लहर आ नहीं सकती।

अभी नया जीवन है, दु:ख-अशान्ति की जीवन ऐसे लगेगी

- मेरी नहीं, दूसरे की जीवन थी।

बीती हुई जीवन पर हँसी आयेगी।..."

 


"...कर्मयोगी या सहज राजयोगी का हर संकल्प बाप के स्नेह के वायब्रेशन (Vibration) फैलाने वाले होंगे जैसे जड़ चित्र भी शान्ति के अल्पकाल के सुख के वायब्रेशन अब तक भी आत्माओं को देने का कार्य कर रहे हैं तो अवश्य चैतन्य रूप में संकल्प द्वारा,वाणी द्वारा, कर्म द्वारा विश्व में सदा सुख-शान्ति बाप के स्नेह के वायब्रेशन फैलाने का कर्त्तव्य किया है।

तब जड़ चित्रों में भी शान्ति है।

जब साइन्स का यंत्र गर्मी का या सर्दा का वायब्रेशन वायुमण्डल बना सकते हैं तो मास्टर सर्वशक्तिवान अपने साइलेन्स (Silence) अर्थात् याद की शक्ति से अपने लग्न की स्थिति द्वारा जो वायुमण्डल या वायब्रेशन फैलाना चाहें वह सब बना सकते हैं।

ऐसी प्रैक्टिकस करो।

अभी-अभी सुख का या शान्ति का वायुमण्डल या शक्ति रूप का वायुमण्डल बना सकते हो।..."

 

 

Yogi ka Kartavya

"...स्वयं प्रति शान्ति का या शक्ति का अनुभव किया यह कोई बड़ी बात नहीं लेकिन अपने याद की शक्ति द्वारा अब विश्व में वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल बनाओ।

तब कहेंगे नम्बरवन सहज राजयोगी।

सिर्फ स्वयं सन्तुष्ट न रह जाओ।

सन्तुष्ट रहना और सर्व को सन्तुष्ट करना है।

यह है योगी का कर्त्तव्य। ...."

 


"...जैसे दान देने से धन बढ़ता, ऐसे अन्य आत्माओं को खुशी, शान्ति, शक्ति देना नहीं लेकिन भरना है।

जब लग्न लग जाती है सेवा की तो सोते हुए भी स्वप्न में भी सेवा करेंगे।..."


18.01.1978

"...अब ऐसी पावरफुल स्टेज बनाओ जिस स्टेज से हर आत्मा को शान्ति, सुख और पवित्रता की तीनों ही लाइट्स (Light) अपनी माइट (Might) से दे सको।

जैसे साकारी सृष्टि में जिस रंग की लाइट (Light) जलाते हो तो चारों ओर वही वातावरण हो जाता है।

अगर हरी लाइट (Light) होती है तो चारों ओर वही प्रकाश छा जाता है।

एक स्थान पर होते हुए भी एक लाइट (Light) वातावरण को बदल देती है जैसे आप लोग भी जब लाल लाइट (Light) करते हो तो ऑटोमेटिकली याद का वायुमण्डल बन जाता है।

ऐसे जब स्थूल लाइट वायुमण्डल को परिवर्तन कर लेती है तो आप लाइट हाउस पवित्रता की लाइट से व सुख की लाइट से वायुमण्डल नहीं बना सकते हो?

स्थूल लाइट आँखों से देखते।

रूहानी लाइट अनुभव से जानेंगे।

वर्तमान समय इस रूहानी लाइट्स द्वारा वायुमण्डल परिवर्तन करने की सेवा है। ..."

 


24.01.1978

"...जैसे निरन्तर योगी का वरदान बाप द्वारा प्राप्त हुआ है वैसे ही निरन्तर सेवाधारी।

सोते हुए भी सेवा हो।

सोते हुए भी कोई देखे तो आपके चेहरे से शान्ति, आनन्द के वायब्रेशन अनुभव करें। इसलिए कहा जाता है कि बड़ी मीठी नींद थी।..."

 

14.02.1978

"...वह कलियुगी है हम संगमयुगी हैं।

संगमयुगी के पास दु:ख अशान्ति का नाम नहीं, दु:खी को देख तरस आएगा।

दु:ख का अनुभव तो बहुत समय किया।

अब संगमयुग है ही अतीन्द्रिय सुख में रहने का समय, यह अनुभव सतयुग में भी नहीं होगा।

जैसा समय वैसा लाभ लो। ..."

 


16.02.1978

"...अन्धकार के बीच रोशनी करना, अशान्ति के अन्दर शान्ति लाना, नीरस वातावरण में खुशी की झलक लाना इसको कहा जाता है एवर हैप्पी।

ऐसी सेवा की आवश्यकता अभी है न कि भविष्य में । ..."

 

27.11.1978

"...अब दु:ख अशान्ति की अनुभूति अति में जा रही है - उन्हें अपनी अन्तिम स्टेज द्वारा समाप्त करने का कार्य अति तीव्रता से करो।

मास्टर रचता की स्टेज पर स्थित हो अपनी रचना के बेहद दु:ख और अशान्ति की समस्या को समाप्त करो - दु:ख हर्ता सुख कर्ता का पार्ट बजाओ।

सुख शान्ति के खज़ाने से अपनी रचना को महादान और वरदान दो, रचना की पुकार सुनने में आती है! ..."

 


01.01.1979

"...अभी मेजोरिटी आत्माएं प्रकृति के अल्पकाल के साधनों से, वा आत्मिक शान्ति प्राप्त करने के बने हुए अल्पज्ञ स्थानों से अर्थात्

परमात्म मिलन मनाने के ठेकेदारों से अब थक गए हैं, निराश हो गए हैं - समझते हैं सत्य कुछ और है - सत्यता की मंजिल की खोज में हैं - प्राप्ति के प्यासे हैं।

ऐसी प्यासी आत्माओं को आत्मिक परिचय, परमात्म परिचय की यथार्थ बूँद भी तृप्त आत्मा बना देगी - इसलिए ज्ञान कलश धारण कर प्यासों की प्यास बुझाओ। ..."


12.01.1979
Also self esteem point


"...आध्यात्मिक खज़ाने अविनाशी सुख और शान्ति, शक्ति इन खज़ानों में भारत ही सबसे सम्पत्तिवान गाया जाता है - तो आपकी इस संगमयुगी की सम्पन्न स्थिति के कारण ही स्थान का गायन है।

इतने खज़ानों से सम्पन्न होते हो जो आधा कल्प वही प्राप्त खजाने चलते रहते हैं।

इतना खज़ाना जमा होता जो अनेक जन्म खाते रहते।

ऐसा कभी कोई सारे कल्प में नहीं बन सकता।

संगमयुग सर्व युगों में से छोटा युग होने के कारण इनकी बहुत थोड़ी-सी आयु है।

जितनी छोटी-सी जीवन है छोटा-सा युग है इतनी कमाई सब युगों से श्रेष्ठ है।

सदा अपने खज़ानों को स्मृति में रखते हो।

क्या-क्या खज़ाने मिले हैं, किस द्वारा मिले हैं और कितने समय तक चलने वाले हैं - बाप ने खज़ाने तो सबको एक समान दिये हैं किसको एक लाख, किसको हजार नहीं दिया है।

सब बच्चों को बेहद का अखुट खज़ाना बाप द्वारा मिला है।

ऐसे अखुट खज़ाने से स्वयं को सदा भरपूर तृप्त आत्मा समझते हो!

तृप्त आत्मा को सदा बाप और खज़ाना ही सामने रहता है।

सदा इसी नशे में झूमते रहते हैं - सबसे बड़े ते बड़ा खज़ाना, जिस खज़ाने के लिए अनेक आत्मायें अनेक प्रकार के साधनों को अपनाती हैं फिर भी वन्चित हैं।..."

 

 

"...सबको सुख और शान्ति देने का भी संकल्प चाहिए, औरों को दुखी देख, तड़फता हुआ देख रहम भी तो आना चाहिए ना।...."

 

 

16.01.1979

"...सदा आत्मिक स्वरूप की जब स्मृति रहेगी तो सदाकाल के सुख और शान्ति की स्थिति बन जायेगी।..."

 


18.01.1979

"....साकार बाप ने स्थिति का स्तम्भ बनकर दिखाया -

जिसके स्नेह में यह स्मृति स्तम्भ भी बनाया है - ऐसे ही तत्वम - सर्वगुणों के स्तम्भ बनो।

जो विश्व के हर धर्म वाली आत्मायें धारणा स्वरूप स्तम्भ आपको माने - विश्व के आगे आदि पिता के समान शक्ति और शान्ति स्तम्भ बनो।..."


05.02.1979

"...आपको सभी ढूढ़ने आवेंगे कि सुख शान्ति के मास्टर दाता कहाँ हैं!

जब अपने पास सर्वशक्तियों का स्टाक होगा तब तो सबको सन्तुष्ट कर सकेंगे। ..."

 

 

19.11.1979

"...अभी ऐसा कोई वातावरण बनाओ जो वातावरण चुम्बक जैसा कार्य करे।

चारों ओर फैल जाए कि अगर शान्ति, सुख या प्रेम चाहिए तो यहाँ से मिल सकता है।

एडवरटाइज़मेन्ट हो जाए।

आजकल वाणी की बजाय वायब्रेशन्स से प्राप्ति करने के इच्छुक ज्यादा हैं।

स्पीच करो लेकिन उसके पहले ऐसे वातावरण की आवाज़ जरूर फैलाओ।

सभी अनुभव करें - जैसे प्यासे की प्यास पानी से बुझ जाती है ऐसे आत्माओं की शान्ति, सुख की प्यास बुझ जाए।..."


21.11.1979

"...ऐसे ही भिन्न-भिन्न शक्तियों का इसेन्स, शान्ति का, आनन्द का, प्रेम का, आप संगठित रूप में सेकेण्ड में फैलाओ।

जिस इसेन्स का आकर्षण चारों ओर की आत्माओं को आये और अनुभव करें कि कहाँ से यह शान्ति का इसेन्स वा शान्ति के वायब्रेशन्स आ रहे हैं

जैसे अशान्त को अगर शान्ति मिल जाए वा प्यासे को पानी मिल जाए तो उनकी ऑख खुल जाती है, बेहोशी से होश में आ जाते हैं।..."

 


"...जब द्वापर के रजोगुणी ऋषि-मुनि भी अपने तत्व योग की शक्ति से अपने आसपास शान्ति के वायब्रेशन्स फैला सकते थे यह भी आपकी रचना हैं। आप सब मास्टर रचयिता हो।

वह हद के जंगल को शान्त करते थे आप राजयोगी क्या बेहद के जंगल में शान्ति व शक्ति व आनन्द के वायब्रेशन्स नहीं फैला सकते हो?

अब इस अभ्यास का दृढ़ संकल्प, निरन्तर का संकल्प करो।

हर मास के इन्टरनेशनल योग का अभ्यास तो शुरू किया है लेकिन अब यही अभ्यास ज्यादा बढ़ाओ।...."

 

23.11.1979

"...हरेक यही संकल्प ले कि हमें शान्ति की,

शक्ति की किरणे फैलानी हैं,

तपस्वी मूर्त बनकर रहना है,

एक दूसरे को मन्सा से वा वाणी से भी अब सावधान करने का समय नहीं,

अब मन्सा शुभ भावना से एक दूसरे के सहयोगी बनकर आगे बढ़ो और बढ़ाओ।..."


03.12.1979

"...यहाँ बैठे भी चाहे कोई अमेरिका में या कितनी भी दूर रहने वाली आत्मा हो, सेकेण्ड में उस आत्मा को अपनी श्रेष्ठ भावना वा श्रेष्ठ कामना के आधार से शान्ति व शक्ति की रेज़ दे सकते हो।

ऐसे मास्टर ज्ञान सूर्य विश्व को कल्याण की रोशनी दे सकते हो।

जैसे साइन्स के साधनों द्वारा समय और आवाज़ कितना भी दूर होते समीप हो गया है ना।

जैसे प्लेन द्वारा समय कितना नज़दीक हो गया है, थोड़े समय में कहाँ से कहाँ पहुँच सकते हो।

टेलीफोन द्वारा आवाज़ कितना समीप हो गया है।

लण्डन के

व्यक्ति का आवाज़ भी ऐसे सुनाई देगा जैसे सम्मुख बात कर रहे हैं।

ऐसे ही टेलीविजन के साधनों द्वारा कोई भी दृश्य वा व्यक्ति दूर होते हुए भी सम्मुख अनुभव होता है।

साइन्स तो आपकी रचना है।

आप मास्टर रचयिता हो।

साइलेन्स की शक्ति से आप सब भी विश्व की किसी भी दूर रहने वाली आत्मा का आवाज़ सुन सकते हो।

कौन-सा आवाज़?

साइन्स मुख का आवाज़ सुनाने का साधन बन सकती है लेकिन मन का आवाज़ नहीं पहुँचा सकती।

साइन्स की शक्ति से हर आत्मा के मन का आवाज़ इतना ही समीप सुनाई देगा जैसे कोई सम्मुख बोल रहा है।

आत्माओं के मन में अशान्ति, दु:ख की स्थिति के चित्र ऐसे ही स्पष्ट दिखाई देंगे जैसे टी.वी. द्वारा दृश्य वा व्यक्ति स्पष्ट देखते हो।

जैसे इन साधनों का कनेक्शन जोड़ा, स्वीच ऑन किया और स्पष्ट दिखाई और सुनाई देता है।

ऐसे ही बाप से कनेक्शन जोड़ा, श्रेष्ठ भावना और कामना का स्वीच ऑन किया तो दूर की आत्माओं को भी समीप अनुभव करेंगे।

इसको कहा जाता है विश्व-कल्याणकारी।

ऐसी स्थिति को बनाने के लिए विशेष कौंन-सा साधन अपनाना पड़े।..."

 


"...साइलेन्स पावर बढ़ाने की विधि और सिद्धि इन सबका आधार है - साइलेन्स।

वर्तमान समय साइलेन्स की शक्ति जमा करो।

मन का आवाज़ संकल्पों के रूप में आवेगा।

मन के आवाज़ अर्थात् व्यर्थ संकल्प का समाप्त कर एक समर्थ संकल्प में रहो।

संकल्पों के विस्तार को समेट कर सार रूप में लाओ तब साइलेन्स की शक्ति स्वत: ही बढ़ती जावेगी।

व्यर्थ है बाह्यमुखता और समर्थ है अन्तर्मुखता।

ऐसे ही मुख के आवाज़ के भी व्यर्थ को समेट कर समर्थ अर्थात् सार में लाओ तब साइलेन्स की शक्ति जमा कर सकेंगे साइलेन्स की शक्ति के विचित्र प्रमाण देखेंगे।

ऐसे दूर की आत्मायें आपके सामने आकर कहेंगी कि आप ने मुझे सही रास्ता दिखाया।

आपने मुझे ठिकाने का इशारा दिया।

आपने मुझे बुलाया और मैं पहुँच गया।

आपके दिव्य स्वरूप उनके मस्तक रूपी टी.वी. में स्पष्ट दिखाई देंगे और अनुभव करेंगे कि यह तो सम्मुख मिलन था।

इतना स्पष्ट अनुभव करेंगे।

इतनी साइलेन्स की शक्ति रूहानी रंगत दिखायेगी।

जैसे शुरू में भी दूर बैठे हुए ब्रह्मा बाप के स्वरूप को स्पष्ट देखते इशारा

मिलता था कि इस स्थान पर पहुँचो।

ऐसे ही अन्त, में आप सब विशेष विश्व-कल्याणकारी आत्माओं का ऐसा ही विचित्र पार्ट चलना है।

इसके लिए आत्मा को सर्व बन्धनों से मुक्त, स्वतन्त्र होना चाहिए।

जो जब चाहें, जहाँ चाहें, जो शक्ति चाहें उससे कार्य कर सकें।

ऐसी निर्बन्धन आत्मा अनेकों को जीवन मुक्त बना सकती है।

समझा, कितनी ऊंची मंजिल है?

कहाँ तक पहुँचना है?

बेहद सेवा की रूपरेखा कितनी श्रेष्ठ है?

अनेक मेहनतों से छूट जायेंगे।

लेकिन एक मेहनत करनी पड़ेगी।

ऐसी हिम्मत है?..."


12.12.1979

"...आधा कल्प जड़ चित्रों को बहुत प्यार से झुलाया अब झुलाना खत्म हुआ झूलना शुरू हो गया।

कभी सुख के झूले में, कभी शान्ति के झूले में...अनेक झूले हैं,

जिसमें चाहो झूलो, नीचे नहीं आओ।

माताओं के झूला अच्छा लगता है। ..."

 

15.12.1979

"... आपके ही जड़ चित्रों में चैतन्य देवताओं का आह्वान कर रहे हैं।

पुकार रहे हैं, आओ, आ करके अशान्ति से छुड़ाओ।

भकतों की पुकार, अपनी भविष्य में होने वाली प्रजा का भी आह्वान सुनाई देता है?

आज की राजनीति की हलचल को देख आप विश्व के महाराजन महारानियों को व वैकुण्ठ रामराज्य को सब याद कर रहे हैं कि अब वह राज्य चाहिए।

रामराज्य में व सतयुगी वैकुण्ठ में आप सब बाप के साथ-साथ राज्य-अधिकारी हो ना।

तो आप अधिकारियों को आपकी प्रजा आह्वान कर रही है कि फिर से वह राज्य लाओ।

आप सब श्रेष्ठ आत्माओं को उनकी आवाज़ नहीं पहुँचती है?

सब चिल्ला रहे हैं, कोई भूख से चिल्ला रहे हैं, कोई मँहगाई से चिल्ला रहे हैं, कोई तन के रोग से चिल्ला रहे हैं, कोई मन की अशान्ति से चिल्ला रहे हैं, कोई टैक्स से चिल्ला रहे हैं, कोई परिवार की समस्याओं से चिल्ला रहे हैं, कोई अपनी कुर्सी की हलचल के कारण चिल्ला रहे हैं, बड़े-बड़े राज्य-अधिकारी एक-दूसरे से भयभीत होकर चिल्ला रहे हैं, छोटे-छोटे बच्चे पढ़ाई के बोझ से चिल्ला रहे हैं।

छोटे से बड़े, सब चिल्ला रहे हैं।

चारों ओर का चिल्लाना आप सबके कानों तक पहुँचता है?

ऐसे समय पर बाप के साथ-साथ आप सब भी टॉवर ऑफ पीस हो।

सबकी नज़र टॉवर ऑफ पीस की तरफ जा रही है। सब देख रहे हैं - हा-हाकार के बाद जय-जयकार कब होती है।

तो सब टॉवर ऑफ पीस बताओ, कब जय-जयकार कर रहे हो? क्योंकि बाप-दादा ने साकार रूप में निमित्त आप बच्चों को ही रखा है।..."

 

 


"...आजकल मन्सा सेवा ही चाहिए क्योंकि विश्व को आवश्यकता है - मन की शान्ति की।

तो मन्सा द्वारा शान्ति के वायब्रेशन्स फैला सकती हो।

शान्ति के सागर बाप की याद में इसी संकल्प में रहना, यही मन्सा सेवा है। ऑटोमेटिक शान्ति की किरणें फैलती रहेगी।

तो शान्ति का दान देने वाली, महादानी हो न?..."

 

19.12.1979

"...चारों ओर आवाज़ हो और आपके पास ऐसा अनुभव करें जैसे शान्ति के कुण्ड में पहुँच गये।

बाहर जो ड्युटी पर हो वह भी शान्ति के वरदानी होकर रहें।

आपके शान्ति के वायब्रेशन्स उनको शान्त कर दें।..."

 

28.12.1979

"... मैजॉरटी एक सेकेण्ड की शान्ति का अनुभव करना चाहते हैं।

ऐसी तड़फती हुई आत्माओं को सेकेण्ड में शान्ति का अनुभव कराने के लिए सदा अपनी स्थिति शान्ति स्वरूप की रहे तब औरों को अनुभव करा सकेंगे।

तो रहम आता है आत्माओं पर।

बहुत भिखारी बन करके आपके पास आयेंगे।

इतने सम्पन्न होंगे तो अनेक भिखारियों को तृप्त कर सकेंगे।..."

 


"...जो सुख-शान्ति के भिखारी हैं उनकों सुख-शान्ति देकर सम्पन्न बनाओ तो पीस मेकर हो जायेंगे। सभी दिल से आपकी शुक्रिया गायेंगे।..."

 

 

"...साइलेन्स की शक्ति का नाम बाला करो। सदा याद रखो हम शान्ति के सागर के बच्चे शान्ति देवा हैं।

जो भी सामने आये उसे पीस मेकर बन शान्ति का दान दो।..."

 


1980

 

Work done upto 13.12.2019 03:29PM

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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