07.03.1986
"...तो आज भी आप सभी ‘शिवरात्रि’ मना रहे हो।

प्रैक्टिकल शिव-जयन्ति तो रोज मनाते ही हो क्योंकि संगमयुग है ही अवतरण का युग, श्रेष्ठ कर्त्तव्य, श्रेष्ठ चरित्र करने का युग।

लेकिन बेहद युग के बीच मे यह यादगार दिन भी मना रहे हो। आप सबका मनाना है - ‘मिलन मनाना’ और उन्हों का मनाना है - ‘आह्वाहन करना’।

उन्हों का है ‘पुकारना’ और आपका है ‘पा लेना’।

वह कहेंगे ‘आओ’ और आप कहेंगे ‘आ गये’। मिल गये।

यादगार और प्रैक्टिकल में कितना रात-दिन का अन्तर है।

वास्तव में यह दिन भोलानाथ बाप का दिन है, भोलानाथ अर्थात् बिना हिसाब के अनगिनत देने वाला।

वैसे जितना और उतने का हिसाब होता है, जो करेगा वह पायेगा।

उतना ही पायेगा। यह हिसाब है।

लेकिन भोलानाथ क्यों कहते?

क्योंकि इस समय देने में जितने और उतने का हिसाब नहीं रखता।

एक का पद्मगुणा हिसाब है।

तो अनगिनत हो गया ना।

कहाँ एक, कहाँ पद्म।

पद्म भी लास्ट शब्द है इसलिए पद्म कहते हैं।

अनगिनत देने वाले भोले भण्डारी का दिन यादगार रूप में मनाते हैं।

आपको तो इतना मिला है जो अब तो भरपूर हो ही लेकिन 21 जन्म 21 पीढ़ी सदा भरपूर रहेंगे।

इतने जन्मों की गैरन्टी और कोई नहीं कर सकता।

कितना भी कोई बड़ा दाता हो लेकिन अनेक जन्म का भरपूर भण्डारा होने की गैरन्टी कोई भी नहीं कर सकता।

तो भोलानाथ हुआ ना!

नॉलेजफुल होते भी भोला बनते हैं... इसलिए भोलानाथ कहा जाता है।

वैसे तो हिसाब करने में - एक-एक संकल्प का भी हिसाब जान सकते हैं।

लेकिन जानते हुए भी देने में भोलानाथ ही बनता है।

तो आप सभी भोलानाथ बाप के भोलानाथ बच्चे हो ना!

एक तरफ भोलानाथ कहते दूसरे तरफ भरपूर भण्डारी कहते हैं।

यादगार भी देखो कितना अच्छा मनाते हैं।

मनाने वालों को पता नहीं लेकिन आप जानते हो।

जो मुख्य इस संगमयुग की पढ़ाई है, जिसकी विशेष 4 सबजेक्ट हैं, वह चार ही सबजेक्ट यादगार दिवस पर मनाते आते हैं। कैसे?

पहले भी सुनाया था कि विशेष इस उत्सव के दिन बिन्दु का और बूँद का महत्व होता है।

तो बिन्दु इस समय के याद अर्थात् योग के सबजेक्ट की निशानी है।

याद में बिन्दु स्थिति में ही स्थित होते हो ना!

तो ‘बिन्दु’ याद की निशानी और बूँद - ज्ञान की भिन्न-भिन्न बूँदें।

इस ज्ञान के सबजेक्ट की निशानी ‘बूँद’ के रूप में दिखाई है।

धारणा की निशानी इसी दिन विशेष व्रत रखते हैं।

तो व्रत धारण करना।

धारणा में भी आप दृढ़ संकल्प करते हो।

तो व्रत रखते हो कि ऐसा सहनशील वा अन्तर्मुख अवश्य बनके ही दिखायेंगे।

तो यह व्रत धारण करते हो ना!

यह ‘व्रत’ धारणा की निशानी है।

और सेवा की निशानी है ‘जागरण’।

सेवा करते ही हो - किसको जगाने के लिए?

अज्ञान नींद से जगाना, जागरण कराना, जागृति दिलाना यही आपकी सेवा है।

तो यह ‘जागरण’ सेवा की निशानी है।

तो चार ही सबजेक्ट आ गई ना।

लेकिन सिर्फ रूपरेखा उन्होंने स्थूल रूप में बदल दी है।

गुह्य रहस्य धारण करने की दिव्य बुद्धि तो हैं ही नहीं।

भक्त-बुद्धि, महीन बुद्धि नहीं होती।

भक्त-बुद्धि को बापदादा मोटी बुद्धि कहते हैं।

ब्रह्मा बाप के बोल सुने हैं ना।

तो यह भी भक्त बुद्धि महीनता को नहीं ग्रहण कर सकते।

इसलिए स्थूल रूप, साधारण रूप दे दिया है।

फिर भी भक्तों के ऊपर भी भगवान खुश होते हैं, क्यों?

फिर भी ठगत बनने से तो बच गये न।

ठगत से भक्त बनना अच्छा ही है।

जो सच्चे भक्त होते हैं वह ठगत नहीं होते हैं।

वह भावना वाले होते हैं और सदा ही सच्चे भक्तों की यह निशानी होगी कि जो संकल्प करेंगे उसमें दृढ़ रहेंगे।

इसलिए भक्तों से भी बाप का स्नेह है।

फिर भी आपके यादगार की द्वापर से परम्परा तो चला रहे हैं और विशेष इस दिन जैसे आप लोग यहाँ संगमयुग पर बार-बार समर्पण समारोह मनाते हो, अलग-अलग भी मनाते हो, ऐसे ही आपके इस फंक्शन का भी यादगार वह स्वयं को समर्पण नहीं करते लेकिन बकरे को करते हैं।

बलि चढ़ा देते हैं।

वैसे तो बापदादा भी हंसी में कहते हैं कि यह ‘मैं-मैं-पन’ का समर्पण हो तब समर्पण अर्थात् सम्पूर्ण बनो।

बाप समान बनो। जैसे ब्रह्मा बाप ने पहला-पहला कदम क्या उठाया? मैं और मेरा-पन का समर्पण समारोह मनाया किसी भी बात में ‘मैं’ के बजाए सदा नेचुरल भाषा में, साधारण भाषा में भी ‘बाप’ शब्द ही सुना।

‘मैं’ शब्द नहीं।

मैं कर रहा हूँ, नहीं।

बाबा करा रहा है। बाबा चला रहा है, मै कहता हूँ, नहीं।

बाबा कहता है।

हद के कोई भी व्यक्ति या वैभव से लगाव यह ‘मेरापन’ है।

तो मेरेपन को और मैं-पन को समर्पण करना इसको ही कहते हैं - ‘बलि चढ़ना’।

बलि चढ़ना अर्थात् - महाबली बनना।

तो यह समर्पण होने की निशानी है।

तो बनाया अच्छा है न। भक्तों को आप भी दिल से शाबास तो देते हो ना!

फिर भी आप सबके भक्त हैं।

ऐसे आता है ना कि यह हमारे भक्त हैं।

या समझते हो कि यह बापदादा के भक्त हैं।

बाप के भी हैं, आपके भी हैं।

जैसे कहते हो हमारा राज्य आने वाला है।

तख्त पर तो एक लक्ष्मी नारायण बैठेंगे!

एक समय पर तो एक ही तख्तनशीन होंगे न।

लेकिन फिर भी आप लोग क्या कहेंगे?

आधाकल्प हमारा राज्य है। ऐसे नहीं कहेंगे कि लक्ष्मी नारायण का राज्य है।

हमारा कहेंगे न।

ऐसे ही जो बाप के भक्त वह आपके भी भक्त हैं।

साक्षी होकर देखो तो बहुत मजा आयेगा।

हम क्या कर रहे हैं और हमारे भक्त क्या कर रहे हैं!

प्रैक्टिकल क्या है और यादगार क्या है!

फिर भी बापदादा भक्तों को एक बात की आफरीन देते हैं।

किसी भी रूप से भारत में वा हर देश में उत्साह की लहर फैलाने के लिए उत्सव बनाये तो अच्छे हैं ना।

चाहे दो दिन के लिए हो या एक दिन के लिए हो लेकिन उत्साह की लहर तो फैल जाती हैं न।

इसलिए ‘उत्सव’ कहते हैं।

फिर भी अल्पकाल के लिए विशेष रूप से बाप के तरफ मैजारिटी का अटेन्शन तो जाता है ना।

तो सुना ‘शिवरात्रि’ का महत्व क्या है!

यह तो है दिन का महत्व लेकिन आपको क्या करना है?

विशेष दिन पर क्या विशेष करेंगे?

झण्डा लहरेगा वह तो देखेंगे, पिकनिक करेंगे, गीत गायेंगे, बस।

यही करेंगे! मनाना तो अच्छा है।

आये ही हो मौज करने के लिए।

आजकल तो व्रत भी लेते हैं और फिर छोड़ भी देते हैं।

जैसे भक्ति में कोई सदाकाल के लिए व्रत लेता है और कोई में हिम्मत नहीं होती है तो एक मास के लिए, एक दिन के लिए या थोड़े समय के लिए लेते हैं।

फिर वह व्रत छोड़ देते हैं।

आप तो ऐसे नहीं करते हो न!

मधुबन में तो धरनी पर पाँव नहीं है और फिर जब विदेश में जायेंगे तो धरनी पर आयेंगे या ऊपर ही रहेंगे!

सदा ऊपर से नीचे आकर कर्म करेंगे या नीचे रहकर कर्म करेंगे?

ऊपर रहना अर्थात् ऊपर की स्थिति में रहना।

ऊपर कोई छत पर नहीं लटकना है।

ऊँची स्थिति में स्थित हो कोई भी साधारण कर्म करना अर्थात् नीचे आना, लेकिन साधारण कर्म करते भी स्थिति ऊपर अर्थात् ऊँची हो।

जैसे बाप भी साधारण तन लेता है ना।

कर्म तो साधारण ही करेंगे न जैसे आप लोग बोलेंगे वैसे ही बोलेंगे।

वैसे ही चलेंगे।

तो कर्म साधारण है, तन ही साधारण है, लेकिन साधारण कर्म करते भी स्थिति ऊँची रहती।

ऐसे आप की भी स्थिति सदा ऊँची हो।

जैसे आज के दिन को अवतरण का दिन कहते हो ना तो रोज अमृतवेले ऐसे ही सोचो कि निंद्रा से नही शान्तिधाम से कर्म करने के लिए अवतरित हुए हैं।

और रात को कर्म करके शान्तिधाम में चले जाओ।

तो अवतार अवतरित होते ही हैं - श्रेष्ठ कर्म करने के लिए।

उनको जन्म नहीं कहते हैं, अवतरण कहते हैं।

ऊपर की स्थिति से नीचे आते हैं - यह है अवतरण।

तो ऐसी स्थिति में रहकर कर्म करने से साधारण कर्म भी अलौकिक कर्म में बदल जाते हैं।

जैसे दूसरे लोग भी भोजन खाते और आप कहते हो ‘ब्रह्मा भोजन’ खाते हैं।

फर्क हो गया न।

चलते हो लेकिन आप फरिश्ते की चाल चलते, डबल लाइट स्थिति में चलते।

तो अलौकिक चाल अलौकिक कर्म हो गया।

तो सिर्फ आज का दिन अवतरण का दिन नहीं लेकिन संगमयुग ही अवतरण दिवस है।

...दीपमाला होगी, शिवरात्रि होगी तो कहेंगे आज बड़ा दिन है।

जो भी उत्सव होंगे उसको बड़ा दिन कहेंगे।

क्योंकि आपकी बड़ी दिल है तो उन्होंने बड़ा दिन कह दिया है।

तो एक दो को बधाइयाँ देना यह बड़ी दिल है।

समझा - ऐसे नहीं कि रांग को रांग समझायेंगे नहीं, लेकिन थोड़ा धैर्य रखो, इशारा तो देना पड़ेगा लेकिन टाइम तो देखो ना।

वह मर रहा है और उसको कहो मर जाओ, मर जाओ...।

तो टाइम देखो, उसकी हिम्मत देखो।

बहुत अच्छा, ‘बहुत अच्छा’ कहने से हिम्मत आ जाती है।

लेकिन दिल से कहो, ऐसे नहीं बाहर से कहो तो वह समझे कि मेरे को ऐसे ही कह रहे हैं।

यह भावना की बात है।

दिल का भाव ‘रहम’ का हो तो उसके दिल को रहम का भाव लगेगा।

इसीलिए सदा बधाइयाँ देते रहो।

बधाइयॉ लेते रहो।

यह बधाई वरदान है।

जैसे आज के दिन को गायन करते हैं - शिव के भण्डारे भरपूर,... तो आपका गायन है, सिर्फ बाप का नहीं।

सदा भण्डारा भरपूर हो।

दाता के बच्चे दाता बन देते जाओ।

सुनाया था ना - भक्त हैं ‘लेवता’ और आप हो देने वाले ‘देवता’ तो दाता माना देने वाले।

किसी को भी कुछ थोड़ा भी देकर फिर आप उनसे कुछ ले लो तो उसको फील नहीं होगा।

फिर कुछ भी उसको मना सकते हो।

लेकिन पहले उसको दो।

हिम्मत दो, उमंग दिलाओ, खुशी दिलाओ फिर उससे कुछ भी बात मनाने चाहो तो मना सकते हो, रोज उत्सव मनाते रहो।

रोज बाप से मिलन मनाना यही उत्सव मनाना है।

तो रोज उत्सव है। ..."

 

1983
"...एक ही शिवरात्रि - बाप की यादगार में मनाते हैं। लेकिन परिचय नहीं। ..."

 

 

 

09.01.1980
"...इस शिवरात्रि पर विशेष क्या करेंगे?
जैसे पिछली बारी लाइट एण्ड साउण्ड का संकल्प रखा तो हरेक ने अपने-अपने स्थान पर यथाशक्ति किया।

शिवरात्रि पर जैसे गीता के भगवान को सिद्ध करने का लक्ष्य रखते हो ना, लेकिन कटाक्ष करते हो तो लोगों को समझ में नहीं आता है।

इसके लिए इस बार शिवरात्रि के दिन दो चित्रों को विशेष सजाओ - एक निराकार शिव का, दूसरा श्रीकृष्ण का।

विशेष दोनों चित्रों को ऐसे सजाकर रखो जैसे किरणों का चित्र बनाते हो ना।

शिव का भी किरणों वाला चित्र सजाया हुआ हो और श्रीकृष्ण का भी किरणों का चित्र सजाया हुआ हो।

विशेष दोनों चित्रों की आकर्षण हो।

कृष्ण के चित्र की महिमा अलग और शिव की महिमा अलग।

कटाक्ष नहीं करो लेकिन दोनों के अन्तर को सिद्ध करो। स्टेज का विशेष शो यह दो चित्र हों।

जैसे कोई भी कोन्फेरेंस आदि करते हो तो कोन्फेरेंस का सिम्बल सजाकर रखते हो, फिर उसका अनावरण कराते हो।

ऐसे शिवरात्री पर कोई भी वी.आई.पी. द्वारा इन दोनों चित्रों का अनावरण कराओ और उन्हें थोड़े में पहले उसका अन्तर स्पष्ट कर सुनाओ। फिर सभा में भी इसी टॉपिक पर जिस समय शिव की महिमा करो तो भाषण के साथ-साथ चित्र भी रखो।

भाषण करने वाले साथ-साथ चित्र दिखाते जाएँ।

यह ये हैं - यह ये हैं।

तो सभी का अटेन्शन जायेगा।

पहले अन्तर सुनाकर फिर उनको कहो अब आप जज करो कि रचयिता कौन और रचता कौन?

तो गीता का ज्ञान रचयिता ने दिया या रचना ने?

तो इस शिवरात्रि पर इन दो विशेष चित्रों का महत्व रखो।..."

 

 

03.02.1979
"...इस शिवरात्रि पर बाप को प्रत्यक्ष करने का कार्य करना है।

अथॉरिटी से निर्भय हो वास्तविक परिचय देना है।

इस शिवरात्रि उत्सव मनाने समय सब ऐसा प्रोग्राम रखें जिसमें सबका अटेन्शन विश्व के रचयिता तथा जिसके द्वारा पार्ट बजाया उस आदिदेव अर्थात् साकार ब्रह्मा को पहचानें।

यह शिवरात्रि विशेष बाप को प्रत्यक्ष करने वाली, नवीनता वाली हो।

बोलने समय यह विशेष अटेन्शन रहे कि प्वाइन्टस में ज्यादा न जावें, भाषण का लेविल ठीक रहे, प्वाइन्टस में ज्यादा जाने से जो लक्ष्य होता वह खत्म हो जाता।

भाषण में शब्द कम हों लेकिन ऐसे शक्तिशाली हों जिसमें बाप का परिचय और स्नेह समाया हुआ हो, जो स्नेह रूपी चुम्बक आत्माओं को परमात्मा तरफ खैंचे।

भाषण का स्थूल रूप तो अनेक लोग जानते हैं लेकिन हरेक के भाषण में रूहानी नशा हो, शब्दों में परमात्म स्नेह हो, मस्तक में बाप के प्रत्यक्षता की चमक हो तब बाप का साक्षात्कार सभी को करा सकेंगे।

यह शिवरात्रि प्रत्यक्षता की शिवरात्रि करके मनाओ।

सबका अटेन्शन जाए यह कौन हैं और किसके प्रति सम्बन्ध जोड़ने वाले हैं, सब अनुभव करें कि जो आवश्यकता है वह यहाँ से ही मिल सकती है, सब सुखों के खान की चाबी यहाँ ही मिलेगी। अच्छा।

सभी शिवरात्रि पर विश्व कल्याणकारी बन सेवा में उपस्थित होने वाले होवनहार सफलता के सितारों को यादप्यार।..."

 

 

05.12.1978
"...इस शिवरात्रि पर सेवा के साधन, जिससे अन्य अनेक आत्माओं को परिचय मिले वह तो करेंगे ही लेकिन साथ-साथ ऐसा संकल्प करो कि परिचय के साथ बाप की झलक देखने या अनुभव करने का प्रसाद भी लेवें।..."


"...इस शिवरात्रि पर पाण्डव और शक्तियाँ दोनों विशेष ग्रुप बनावें जो विघ्न-विनाशक ग्रुप हो।

यह प्रसाद बाप-दादा ले जायेंगे।

यज्ञ की आहुति की खुशबू दूर तक फैलती है - तो बाप-दादा भी साकार वतन से सुक्ष्मवतन तक यज्ञ की इस विशेष खूशबू की खुशखबरी ले जायें - ऐसा प्रसाद तैयार करो..."

 

26.01.1977
"...इस शिवरात्रि पर ऐसी स्थूल और सूक्ष्म स्टेज बनाओ, जिससे आने वाली आत्माओं को अपने स्वरूप रूह और रूहानियत का अनुभव हो। वाणी द्वारा वाणी से परे जाने का अनुभव हो।..."

 

 

21.01.1972
"..वर्तमान समय शिवरात्रि की सर्विस के पहले स्वयं में शक्ति भरने का फोर्स चाहिए। भले योग के प्रोग्रामस रखते हैं लेकिन योग द्वारा शक्तियों का अनुभव करना-कराना ..."

 

 

11.02.1971
"...अभी सभी महान् पर्व शिवरात्रि मनाने का प्लैन बना रहे हो,

फिर नवीनता क्या सोची है?

(झण्डा लहरायेंगे) अपने-अपने सेवाकेन्द्रों पर झण्डा भले लहराओ लेकिन हरेक आत्मा के दिल पर बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहराओ।

वह तब होगा जब शक्ति-स्वरूप की प्रत्यक्षता होगी।

शक्ति-स्वरूप से ही सर्वशक्तिवान को प्रत्यक्ष कर सकते हो।..."

 

06.02.1969
"...अभी शिवरात्रि का जो पर्व आ रहा है उनको और भी धूमधाम से

मनाना है।

बड़े उमंग और हुल्लास से परिचय देना है।

क्योंकि बाप के परिचय में बच्चों का परिचय भी आ जाता है।

बच्चे बाप का परिचय देंगे तो बाप फिर अव्यक्त में बच्चों का परिचय, बच्चों का साक्षात्कार आत्माओं को कराते रहेंगे।

तो इस शिवरात्रि पर कुछ नवीनता करके दिखाना है।..."


"...खास शिवरात्रि तक हरेक बच्चे को ऐसा समझना चाहिए जैसे शुरू में

आप बच्चों की भट्टी के प्रोग्राम चलते थे,

इसी रीति से हरेक को समझना चाहिए शिवरात्रि तक हमको याद की यात्रा की भट्टी में ही रहना है।

बिल्कुल अव्यक्त स्थिति में स्थित रहने का, अपनी चेकिंग करने का ध्यान रखो।..."

 

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