1.

"...बाबा ने कहा

जो मोटा श्रृंगार है

वह तो साकार में ही बच्चों का करके आये हैं।

परन्तु अब अव्यक्त रूप में क्या सजा रहे हैं

सभी श्रृंगार तो है,

 जेवर भी है परन्तु जेवर में बीच में नग लगा रहे हैं।

बाबा के कहने के बाद कोई-कोई में जैसे एकस्ट्रा नग दिखाई पड़े।

बाबा ने कहा बच्चों के प्रति मुख्य शिक्षा यही है कि अव्यक्त स्थिति में स्थित रहकर व्यक्त भाव में आओ।

जब एकान्त में बैठते हैं तो अव्यक्त स्थिति रहती है लेकिन व्यक्त में रहकर अव्यक्त भाव में स्थित रहें वह मिस कर लेते हैं

इसलिए एकरस कर्मातीत स्थिति का जो नग हैवह कम है।

तो जिसके जीवन में जो कमी देखता हूँ वह सजा रहा हूँ।

जैसे साकार रूप में यह कार्य करता था

वही फिर अव्यक्त रूप में करता हूँ।..."

 

Ref:- Baba's 4th Message from Avyakt Vatan, 18Jan. 1969