1.

"... कोई अपकार करे, आप एक सेकेण्ड में अपकार को उपकार में परिवर्तित कर लो। कोई अपने संस्कार वा स्वभाव के रूप में आपके सामने परीक्षा के रूप में आवे लेकिन आप सेकेण्ड में अपने श्रेष्ठ संस्कार, एक की स्मृति से ऐसी आत्मा के प्रति भी रहमदिल के संस्कार वा स्वभाव धारण कर सकते हो। कोई देहधारी दृष्टि से सामने आये आप एक सेकेण्ड में उनकी दृष्टि को आत्मिक दृष्टि में परिवर्तित कर लो। कोई गिराने की वृत्ति से, वा अपने संगदोष में लाने की दृष्टि से सामने आवे तो आप उनको सदा श्रेष्ठ संग के आधार से उसको भी संगदोष से निकाल श्रेष्ठ संग लगाने वाले बना दो। ऐसी परिवर्तन करने की युक्ति आने से कब भी विघ्न से हार नहीं खायेंगे। सर्व सम्पर्क में आने वाले आप की इस सूक्ष्म श्रेष्ठ सेवा पर बलिहार जावेंगे।"

 

Ref:-

1972/24.12.1972

संगमयुगी श्रेष्ठ आत्माओं की ज़िम्मेवारी