Bhagwan
 

तुम दूर थे तो सुख दूर थे, तुम साथ हो तो...



05.12.1989

"...कई कहते हैं -

मेरे को दु:ख नहीं होता लेकिन

दूसरा दु:ख देता है तो क्या करें?

दूसरा देता है तो लेते क्यों हो?

कोई भी चीज़ आपको दे और

आप नहीं लो तो वह किसके पास रहेगी?

उसके पास ही रहेगी ना।

देने वाले तो देंगे,

उनके पास है ही दु:ख

लेकिन आप नहीं लो।

आपका स्लोगन है - ‘सुख दो, सुख लो।

न दु:ख दो, न दु:ख लो।'

लेकिन गलती कर देते हो।

 

इसलिए थोड़ी दु:ख की लहर आ जाती है।

कोई दु:ख दे तो

उसे भी परिवर्तन कर

उसको सुख दे दो,

उसको भी सुखी बना दो।

सुखदाता के बच्चे हो,

सुख देना और सुखी रहना - यही आपका काम है। ..."

 

 


 

 

15.02.1969

"...अभी बच्चों की सर्विस पूरी की।

वतन से अभी सबकी करनी है।

बच्चे सगे भी हैं तो लगे भी हैं।

सर्विस तो सबकी करनी है।

सवेरे भी आकर

दृष्टि से परिचय दे दिया।

दृष्टि द्वारा सर्चलाइट दे

सभी को सुख देना बाप का कर्तव्य है।..."

 

 


 

13.03.1969

"...भाषण करना, प्रदर्शनी में समझाना

यह तो आजकल के स्कूलों की कुमारियों को

एक सप्ताह ट्रेनिंग दे दो तो

बहुत अच्छा समझा लेंगी।

लेकिन

यह तो जीवन में

अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करना है ना।

उसी समय ऐसे समझो जैसे कि

बापदादा के निमन्त्रण पर जा रहे हैं।

जैसे बापदादा सैर करने आते हैं वैसे

बुद्धियोग बल से तुम सैर कर सकती हो। ..."

 

 


 

 

07.05.1969

"...अव्यक्त स्थिति की जो आवश्यकता है

उनको पूरा करना है।

अव्यक्त स्थिति की परख

आप सभी के जीवन में

क्या होगी, वह मालूम है?

उनके हर कर्म में

एक तो अलौकिकता और

दूसरा हर कर्म करते

हर कर्मेन्द्रियों से अतीन्द्रिय सुख की

महसूसता आवेगी।

उनके नयन,

चैन,

उनकी चलन

अतीन्द्रिय सुख में हर वक्त रहेगी।

अलौकिकता और अतीन्द्रिय सुख की झलक

उनके हर कर्म में देखने में आयेगी।..."

 

 


 

 

"...अधीन होने से बचने लिये

अपने को अधिकारी समझना है।

पहले संगमयुग के सुख के अधिकारी हैं

और फिर भविष्य में स्वर्ग के सुखों के अधिकारी हैं।

तो अपना अधिकार भूलो नहीं।

 

जब अपना अधिकार भूल जाते हो

तब कोई न कोई बात के अधीन होते हो

और जो पर-अधीन होते हैं

वह कभी भी सुखी नहीं रह सकते।

पर-अधीन हर बात में

मन्सा,

वाचा,

कर्मणा

दु :ख की प्राप्ति में रहते

और जो अधिकारी हैं

 

वह अधिकार के नशे

और खुशी में रहते हैं।

और खुशी के कारण

सुखों की सम्पत्ति उन्हों के

गले में माला के रूप में

पिरोई हुए होती है।

सतयुगी सुखों का पता है?

 

सतयुग में खिलौने कैसे होते हैं?

वहाँ रत्नों से खेलेंगे।

आप लोगों ने सतयुगी सुखों की लिस्ट

और कलियुगी दु :खो की लिस्ट

तो लगाई है।

 

लेकिन काम के सुखों की

लिस्ट बनायेंगे तो

इससे भी दुगुने हो जायेंगे।

वही सतयुगी संस्कार अभी भरने हैं।

जैसे छोटे बच्चे होते हैं

सारा दिन खेल में ही मस्त होते हैं,

 

कोई भी बात का फिक्र नहीं होता है

इसी रीति हर वक्त सुखों की लिस्ट,

रत्नों की लिस्ट

बुद्धि में दौड़ाते रहो

अथवा इन सुखों रूपी रत्नों से

खेलते रहो तो

कभी भी ड्रामा के खेल में हार न हो।

अभी तो कहाँ-कहाँ

हार भी हो जाती है।..."

 


 

 

"...जो मगन अवस्था में होंगे

उन्हों की चाल-चलन से

क्या देखने में आयेगा?

अलौकिकता और अतीन्द्रिय सुख।

मग्न अवस्था वाले का

यह गुण हर चलन से

मालूम होगा।

तो यह जो कमी है

उसे भरने का तीव्र पुरुषार्थ करना है। ..."

 

 


 

 

15.09.1969

"...आवाज में आते भी

अतीन्द्रिय सुख में रह सकते हो

तो फिर आवाज से परे रहने की

कोशिश क्यों?

अगर आवाज से परे

निराकार रूप में स्थित हो

फिर साकार में आयेंगे तो

फिर औरों को भी उस अवस्था में ला सकेंगे। ..."

 

 


 

 

25.10.1969

"...एक की याद,

स्थिति एकरस और

ज्ञान भी सारा एक की याद का

ही मिलता है।

 

प्राप्ति भी जो होती है

वह भी एकरस रहती है।

आज बहुत खुशी

कल गुम हो जाती

इसमें प्राप्ति नहीं होती।

जो अतीन्द्रिय सुख है

वह भी एकरस नहीं रहता।

कभी बहुत तो कभी कम। ..."

 

 


 

 

 

17.11.1969

"...अट्रैक्टिव भी तब बन सकेंगे

जब पहले अपने में विशेषताएं होगी।

आकर्षित बनने लिये हर्षित भी रहना पड़ेगा।

हर्षित का अर्थ ही है

अतीन्द्रिय सुख में झूमना।

 

ज्ञान को सुमिरण करके हर्षित होना।

अव्यक्त स्थिति का अनुभव करते

अतीन्द्रिय सुख में आना।

इसको कहा जाता है हर्षित।

हर्षित भी मन से

और तन से दोनों से होना है।

ऐसा जो हर्षित होता है

वही आकर्षित होता है।.."

 

 


 

 

 

"...बच्चे बने और अधिकार हुआ।

सर्वदा सुख,

शान्ति

और पवित्रता का

जन्म सिद्ध अधिकार कहते हो ना।

 

अपने आप से पूछो कि

बच्चा बना और

पवित्रता, सुख, शान्ति का अधिकार प्राप्त किया।

अगर अधिकार छूट जाता है तो

कोई बात के अधीन बन जाते हो।

तो अब अधीनता को छोडो,

अपने जन्म सिद्ध अधिकार को प्राप्त करो। ..."

 

 


 

 

06.12.1969

"...आप लोगों ने

स्नेह के सागर को अपने में समाया है।

वह एक बूँद के भी प्यासे रहेंगे।

ऐसा सौभाग्य किसका हो सकता है?

सर्व सम्बन्धों का सुख,

रसना जो आप आत्माओं में भरी हुई है

वह और कोई में नहीं हो सकती।

 

तो ड्रामा में अपने इतने ऊँच भाग्य को

सदैव सामने रखना।

सामने रखने से

रिटर्न देना आप ही याद आयेगा। ..."


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"सुख देना और सुखी रहना ..."