शिव का ये आदेश है...


Trimurti ShivBhagwanuVaach

 



"...बिगड़ी को बनाने वाला जरूर भगवान को ही कहेंगे न कि शंकर को।

भोलानाथ भी शिव को ही कहेंगे, शंकर को नहीं।

खिवैया भी शिव को ही कहेंगे, न शंकर को, न विष्णु को।

खिवैया अथवा गॉड फादर कहने से बुद्धि निराकार तरफ चली जाती है।

त्रिमूर्ति का चित्र तो नामीग्रामी है।

 

 

भारत में त्रिमूर्ति मशहूर है।

ब्रह्मा विष्णु शंकर, उसमें शिव का चित्र गुम कर दिया है क्योंकि उनकी नॉलेज ही नहीं है।

गॉड फादर कहने से बुद्धि निराकार की तरफ चली जायेगी।

ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को गॉड फादर नहीं कहेंगे।

गॉड फादर है आत्माओं का।

वह ऊंचे ते ऊंचा ठहरा।

दिखाते भी हैं ऊंचे ते ऊंचा भगवान।

ऐसे नहीं ऊंचे ते ऊंचा ब्रह्मा कहेंगे वा विष्णु वा शंकर को कहेंगे।

नहीं, ऊंचे से ऊंचा एक भगवान है।

 


श्रेष्ठाचारी बनाने वाला तो एक ही निराकार बाप ऊंचे ते ऊंचा भगवान है फिर है ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, यह हुई रचना परमपिता परमात्मा की।

जिसका चित्र तो है नहीं।

 

 

बाबा ने समझाया जिस ब्रह्मा के तन में मैंने प्रवेश किया है उनके पूरे 84 जन्म हुए हैं।

बाकी कोई रथ आदि की बात नहीं।

वह सब झूठ है।

 


तो ऊंचे ते ऊंचा है निराकार भगवान फिर ब्रह्मा विष्णु शंकर।

ब्रह्मा द्वारा स्थापना।

विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण को 84 जन्म पूरे कर अन्त में पतित बनना है।

डिनायस्टी ही पतित हो तब तो मैं आकर स्थापना करूँ और सब धर्मों को खलास कर दूँ।

फिर से सहज राजयोग सिखलाकर श्रेष्ठाचारी देवी-देवता धर्म की स्थापना कर, बाकी जो भ्रष्टाचारी धर्म हैं उन सबका विनाश कराता हूँ।

अब रिलीजस कान्फ्रेन्स होती है उसमें निराकार शिवबाबा तो जा नहीं सकते।

ब्रह्मा को भी नहीं बिठा सकते।

माता की महिमा है।

सभी धर्म वालों की हेड माता होनी चाहिए।

सभी की माता जगत अम्बा बैठ लोरी दे।

 

 

ब्रह्मा द्वारा मनुष्य सृष्टि रचते हैं।

ऐसे नहीं कोई नई दुनिया रचते हैं।

अगर ऐसा हो तो फिर मनुष्य ऐसे नहीं कहें कि पतित-पावन आओ।

इस समय सारी दुनिया पतित है, सब दुर्गति को पाये हुए हैं।

याद करते रहते हैं ओ गॉड फादर रहम करो।

हमको इन मायावी दु:खों से छुड़ाओ।

तो वह फिर दु:ख कैसे देंगे।

दु:ख देने वाला जरूर और है।

 


विष्णु की नाभी से ब्रह्मा निकलते हैं।

उनसे बैठ ज्ञान देता हूँ जो फिर देवता बनते हैं।

राजयोग सीखते हैं।

बाकी दुनिया वालों ने जो अनेक चित्र बनाये हैं, वह हैं सब दन्त कथायें।

 


पतित-पावन तो एक ही परमपिता परमात्मा है।

यहाँ तो ज्ञान गंगायें चाहिए जो मनुष्य को भ्रष्टाचारी से श्रेष्ठाचारी बनायें - सहज राजयोग से।

बाप कहते हैं मैं सर्वशक्तिमान हूँ, मेरे से योग लगाने से ही सर्व विकर्म विनाश होंगे।..."