17.01.2020 - Sakar Murli

"बाबा ने समझाया है बच्चों का अब कनेक्शन है ही बाप से क्योंकि पतित-पावन ज्ञान का सागर, स्वर्ग का वर्सा देने वाला तो शिवबाबा ही ठहरा।

याद भी उनको करना है।

...तो बच्चों को अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है।...

...बाप की याद से सजायें कटती जायेंगी।...

ऐसा न हो बाप की याद टूट जाये फिर सजा खानी पड़े और पुरानी दुनिया में चले जायें।

ऐसे तो ढेर गये हैं, जिनको बाप याद भी नहीं है।

देह-अहंकार से नुकसान बहुत होता है इसलिए देह सहित सब-कुछ भूल जाना है।

सिर्फ बाप को और घर को याद करना है।

आत्माओं को बाप समझाते हैं, शरीर से काम करते मुझे याद करो तो विकर्म भस्म हो जायेंगे।

एक राम को याद करें।

सच्चे पिताव्रता बने ना।

बाप कहते हैं मुझे याद करते रहो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे।

पिताव्रता अथवा भगवान व्रता बनना चाहिए।

उठते-बैठते बाप को याद करने का पुरुषार्थ करना है।

हम तो अभी सबको भूलने की कोशिश कर एक को याद करते हैं।

...सारा दिन शिवबाबा को याद करने का ही ख्याल रहना चाहिए। ...

...जितना बाप को याद करेंगे तो देह-अभिमान टूटता जायेगा और कोई की भी याद नहीं होगी। ...

...कितनी बड़ी मंजिल है, सिवाए एक बाप के और कोई के साथ दिल नहीं लगानी है।...

...जितना हो सके याद में रहना है। ...

...सिर्फ यह बतलाना है कि बाप और वर्से को याद करो"

 

16.01.2020 - Sakar Murli

1.01

"अभी यह दुनिया है पतित तमोप्रधान।

इसको सतोप्रधान नई दुनिया नहीं कहेंगे।

नई दुनिया को सतोप्रधान कहा जाता है।

वही फिर जब पुरानी बनती है तो उसको तमोप्रधान कहा जाता है।

फिर सतोप्रधान कैसे बनती है?

तुम बच्चों के योगबल से।

योगबल से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होते हैं और तुम पवित्र बन जाते हो। ''

1.02

"...मीठे बच्चे - तुम्हें अपने योगबल से ही विकर्म विनाश कर पावन बन पावन दुनिया बनानी है, यही तुम्हारी सेवा है ..."

 

 

 

From Avyakt Vaanis

 

1969/09.06.1969

"...मुख्य श्रीमत यही है कि ज्यादा से ज्यादा समय याद की यात्रा में रहना।

क्योंकि इस याद की यात्रा से ही

पवित्रतादैवीगुण और सर्विस की सफलता भी होगी। ..."

 

1970/23.01.1970

 

1.01

"... योगबल और ज्ञान-बल दोनों इकठ्ठा होता है।

अभी ज्ञान बल से सर्विस हो रही है।

योगबल गुप्त है।

लेकिन जितना योगबल और ज्ञानबल दोनों समानता में लायेंगे उतनी-उतनी सफ़लता होगी।

सारे दिन में चेक करो कि योगबल कितना रहा, ज्ञानबल कितना रहा?... "