07.05.1969
"...अभी तीव्र पुरुषार्थी बनने का समय चल रहा है।
इससे जितना लाभ उठाना चाहिए उतना उठाते हैं वा नहीं वह हरेक को चेक करना है।
इसलिए कहा है कि अपने पास हरदम दर्पण रखो तो कमी का झट मालूम होगा।
और अपने पुरुषार्थ को तीव्र करते आगे चलते रहेंगे।..."
23.07.1969
"...अभी यह जो थोड़ा समय मिला है उसका पूरा-पूरा लाभ उठाओ।
नहीं तो फिर यह समय ही याद आयेगा इसलिए ही जैसे भी हो जहाँ पर भी हो, परिस्थितियां नहीं बदलेंगी।
यह नहीं सोचना कि मुसीबतें हल्की होंगी फिर कमाई करेंगे, यह तो दिन प्रति दिन और विशाल रूप धारण करेंगी परन्तु इनमें रहते हुए भी अपनी स्थिति की परिपक्वता चाहिए।
इसलिए ही समय का ध्यान और अपने स्वरूप की स्मृति और इसके बाद फिर स्थिति।
इसका ध्यान रखना है ..."
23.01.1970
"...जैसे जैसे अव्यक्त स्थिति होती जाएगी वैसे बोलना भी कम होता जायेगा।
कम बोलने से ज्यादा लाभ होगा।
फिर इस योग की शक्ति से सर्विस करेंगे।
योगबल और ज्ञान-बल दोनों इकठ्ठा होता है।
अभी ज्ञान बल से सर्विस हो रही है।
योगबल गुप्त है।
लेकिन जितना योगबल और ज्ञानबल दोनों समानता में लायेंगे उतनी-उतनी सफ़लता होगी।
सरे दिन में चेक करो कि योगबल कितना रहा, ज्ञानबल कितना रहा?
फिर मालूम पद जायेगा कि अंतर कितना है।
सर्विस में बिजी हो जायेंगे तो फिर विघ्न आदि भी टल जायेंगे।
दृढ़ निश्चय के आगे कोई रुकावट नहीं आ सकती। ..."
"...वरदान से ऐसी झोली भर लो, जो भरी हुई झोली कभी खाली न हो।
जितना जो भरना चाहे वह भर सकते हैं।
ऐसा ही ध्यान रखकर इन थोड़े दिनों में अथक लाभ उठाना है।
एक-एक सेकंड सफल करने के यह दिन है।
अभी का एक सेकंड बहुत फायदे और बहुत नुकसान का भी है।
एक सेकंड में जैसे कई वर्षों की कमाई गँवा भी देते हैं ना।
तो यहाँ का एक सेकंड इतना बड़ा है।..."
25.06.1970
"...बापदादा बुद्धि की ड्रिल कराने आते हैं जिससे परखने की और दूरांदेशी बनने की क्वालिफिकेशन इमर्ज रूप में आ जाये।
क्योंकि आगे चल करके ऐसी सर्विस होगी जिसमे दूरांदेशी बुद्धि और निर्णयशक्ति बहुत चाहिए।
इसलिए यह ड्रिल करा रहे हैं।
फिर पावरफुल हो जाएँगी।
ड्रिल से शरीर भी बलवान होता है।
तो यह बुद्धि की ड्रिल से बुद्धि शक्तिशाली होगी।
जितनी-जितनी अपनी सीट फिक्स करेंगे समय भी फिक्स करेंगे तो अपना प्रवृत्ति का कार्य भी फिक्स कर सकेंगे।
दोनों लाभ होंगे।
जितनी बुद्धि फिक्स रहती है तो प्रोग्राम भी सभी फिक्स रहते हैं।
प्रोग्राम फिक्स तो प्रोग्राम फिक्स।
प्रोग्रेस हिलती है तो प्रोग्राम भी हिलते हैं अब फिक्स करना सीखो।
अब सम्पूर्ण बनकर औरों को भी सम्पूर्ण बनाना बाकी रह गया है।
जो बनता है वह फिर सबूत भी देता है।
अभी बनाने का सबूत देना है।
बाकी इस कार्य के लिए व्यक्त देश में रहना है।..."
02.02.1972
"...अगर जरा भी गफलत की तो जैसे कहावत है - एक का सौ गुणा लाभ भी मिलता है और एक का सौ गुणा दण्ड भी मिलता है, यह बोल अभी प्रैक्टिकल में अनुभव होने वाले हैं।
इसलिए सदा बाप के सम्मुख, सदा प्रीत बुद्धि बनकर रहो। ..."
27.05.1972
"...ऐसे सहज और श्रेष्ठ आधार मिलते हुए भी अगर कोई उस आधार का लाभ नहीं उठाते तो उसको क्या कहेंगे?
अपनी कमजोरी।
तो कमजोर आत्मा बनने के बजाय शक्तिशाली आत्मा बनो और बनाओ।..."
11.07.1972
"...जैसे औरों को कहते हो कि समय को पहचानो, समय का लाभ उठाओ।
तो अपने आप को भी यह सूचना देते हो?
वा सिर्फ दूसरों को देते हो?
अगर अपने आप को भी यह सूचना देते हो तो एक सेकेण्ड भी मिलन से दूर नहीं रह सकते हो।
हर सेकेण्ड मिलन मनाते रहेंगे।
जैसे कोई भी बड़ा मेला लगता है, उसका भी समय फिक्स होता है कि इतने समय के लिये यह मेला है।
फिर वह समाप्त हो जाता है।
अगर कोई श्रेष्ठ मेला होता है और बहुत थोड़े समय के लिये होता तो क्या किया जाता है?
मेले को मनाने का प्रयत्न किया जाता है।
वैसे ही इस संगम के मेले को अगर अब नहीं मनाया तो क्या फिर कब यह मेला लगेगा क्या?
जबकि सारे कल्प के अन्दर यह थोड़ा समय ही बाप और बच्चों का मेला लगता है, तो इतने थोड़े समय के मेले को क्या करना चाहिए?
हर सेकेण्ड मनाना चाहिए।
तो समय की विशेषताओं को जानते हुये अपने में भी वह विशेषता धारण करो।..."
"...वर्से के अधिकारी तो बन जाते हो।
उस वर्से को जीवन में धारण कर के उससे लाभ उठाना, वह हरेक की अवस्था पर है।
वर्सा देने में बाप कोई अन्तर नहीं करता है।
लायक और नालायक बनने पर अन्तर हो जाता है।
इसलिये कहा कि जन्मसिद्ध अधिकार अपने आप में सदा प्राप्ति करते हो। ..."
15.09.1974
"...जो अपने में विशेषतायें होंगी या शक्तियाँ हैं, उसका लाभ चारों ओर हो।
अभी तक सिर्फ एक स्थान पर ही आपकी विशेषता का लाभ है।
सूर्य एक स्थान को ही रोशनी देता है क्या?
तो आपकी भी विशेष शक्ति रूपी किरणें चारों ओर फैलनी चाहिए ना?
नहीं तो मास्टर सर्वशक्तिमान् और ज्ञान सितारे आप कैसे सिद्ध होंगे?
मास्टर ज्ञानसूर्य अर्थात् बापसमान।
सितारे होते हुए भी बापसमान स्टेज।
वह तो अष्ट रत्न ही प्राप्त करेंगे ना?
अगर कोई सितारा एक ही स्थान पर, अपना प्रकाश फैलाता है और वह टिमटिमाता उसी अपनी एरिया में ही रोशनी देता है तो उसको मास्टर ज्ञानसूर्य व बाप-समान नहीं कहेंगे।
जब तक वह बाप-समान की स्टेज पर नहीं आया है, तब तक बाप-समान तख्त नहीं ले सकता।
इसलिये अपनी स्टेज ऐसी बनाओ जो सर्विस बढ़े।..."
10.02.1975
"...जैसे कल्प पहले का गायन है - पाण्डवों ने तीर मारा और जल निकला अर्थात् पुरूषार्थ किया और फल निकला।
अब प्रत्यक्ष फल का समय है।
सीजन है, समय का वरदान है।
इसका लाभ उठाओ।
अपने साधनों व अपने प्रति समय व सम्पत्ति का त्याग करो, तब यह प्रत्यक्ष फल का भाग्य प्राप्त कर सकेंगे।
स्वयं को आराम, स्वयं के प्रति सेवा-अर्थ अर्पण की हुई सम्पत्ति लगाने से कभी सफलता नहीं मिलेगी।..."
11.02.1975
"...हर बात में हम सैम्पल हैं।
जब ऐसा लक्ष्य आगे रखेंगे तब ही पुरूषार्थ की गति को तीव्र कर सकेंगे।
भले ही आराम के साधन प्राप्त हैं, परन्तु आराम पसन्द नहीं बन जाना है।
पुरूषार्थ में भी आराम पसन्द न होना अर्थात् अलबेला न होना है।
आराम के साधनों का एडवान्टेज (Advantage) सदाकाल की प्राप्ति का विघ्न रूप नहीं बनाना।
यह अटेन्शन रखना है। ..."
06.09.1975
"...जबकि बाप स्वयं बच्चों से सदा साथ रहने का वायदा कर रहे हैं और निभा भी रहे हैं तो वायदे का लाभ उठाना चाहिए।
ऐसे कम्पनी व कम्पेनियन, फिर कब मिलेंगे?
बहुत जन्मों से आत्माओं की कम्पनी लेते हुए दु:ख का अनुभव करते हुए भी अब भी आत्माओं की कम्पनी अच्छी लगती है क्या, जो बाप की कम्पनी को भूल औरों की कम्पनी में चले जाते हो?
कोई वैभव को व कोई व्यक्ति को कम्पेनियन बना देते हो, अर्थात् उस कम्पनी को निभाने में इतने मस्त हो जाते हो जो बाप से किये हुए वायदे में भी अलमस्त हो जाते हो!
ऐसे समय मालूम है कौन-सा खेल करते हो?
खेल करने के टाइम तो बड़े मस्त हो जाते हो।
अभी भूल गए हो।
कलाबाजी से भी बहुत रमणीक खेल करते हो?
ऐसे नहीं कि जो सुनायेंगे वह खेल करते होंगे, देखने वाले भी सुना सकते हैं।
आपके ही इस साकारी दुनिया में खेल दिखाते हैं - बन्दर और बन्दरी का।
बन्दरिया को बन्दर से सगाई के लिए पकड़ कर ले जाते हैं और बन्दरिया नटखट हो घूँघट निकाल किनारा कर लेती, पीठ कर लेती है। वह आगे करता है वह पीछे हटती है।
तो जैसे वह रमणीक खेल मनोरंजन के लिए दिखाते हैं, ऐसे ही बच्चे भी उस समय ऐसे नटखट होते हैं।
बाप सम्मुख आते और बच्चे अलमस्त होने के कारण देखते हुए भी नहीं देखते, सुनते हुए भी नहीं सुनते।
ऐसा खेल अभी नहीं करना है। ..."
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