अपने हस्तों से जल्दी-जल्दी एक एक दृष्टि भी दे रहे थे, हाथों से गिट्टी भी खिला रहे थे। ..."
18.01.1969
"...गुलाब का फूल वा कोई भी फूल होता है तो
उनको योग्य स्थान पर रखेंगे और अकेला पत्ता होगा तो हाथ से जल्दी मसल देंगे।
तो बच्चों का भी संगठन रूपी गुलदस्ता होगा तो विजय प्राप्त करते रहेंगे।
कोई वार नहीं कर सकेगा।
ऐसे कहते बाबा ने कहा कि सभी बच्चों को कहना कि संगठन ही सेफ्टी का साधन है।..."
18.01.1969
"...जैसे ही मैं याद दे रही थी तो
साकार बाबा ने मेरा हाथ पकड़ा।
उस हाथ पकड़ने में ना मालूम क्या जादू था - ऐसे अनुभव हुआ जैसे सागर में कोई स्नान करता है, ऐसे थोड़े समय के लिए मैं प्रेम के सागर में लीन हो गई।
उसके बाद हमने आलमाइटी बाबा की तरफ देखा।
तो बाबा ने कहा बच्ची-बाप में मुख्य दो गुण जो हैं वह बच्चों ने साकार रूप में अनुभव किया है।
वह दो गुण कौन से हैं?
जितना ही ज्ञान स्वरूप उतना ही प्रेम स्वरूप।
तो बच्चों को भी यह दो गुण अपने हर चलन में धारण करने हैं। ..."
18.01.1969
"...बाबा ने हमें ढेर हीरे हाथ में दिये और कहा
इन हीरों का टीका सभी बच्चों को लगाना।
यह हीरे क्यों दे रहा हूँ?
क्योंकि हीरे मिसल आत्मा मस्तक में रहती हैं।
तो हरेक आत्मा सच्चा हीरा बन चमकती रहे।..."
18.01.1969
"...वतन में बाबा ने सभी बच्चों को इमर्ज कर
अपने हस्तों से जल्दी-जल्दी एक एक दृष्टि भी दे रहे थे,
हाथों से गिट्टी भी खिला रहे थे।
लेकिन एक एक को एक सेकेण्ड भी जो दृष्टि दे रहे थे,
उस दृष्टि में बहुत कुछ भरा हुआ था।..."
21.01.1969
"...आज जब वतन में गई तो सभी बच्चों की ओर से बाबा को यादप्यार दी और अर्जी डाली।
ब्रह्मा बाबा को भी अर्जी डाली।
तो ब्रह्मा बाबा यही बोले कि मेरा हाथ तो शिवबाबा के पास है।
जो करायेंगे हम वही करेंगे। ..."
21.01.1969
"...जिसके दिल में कुछ संकल्प आता हो कि नामालूम क्या हो-ऐसी तो कोई बात नहीं होगी वह हाथ उठावे
- अगर सभी सन्तुष्ट हैं तो जो लेंगे उसको देने में भी सन्तुष्ट रहेंगे।
दो बातों का आज इस संगठन के बीच दान देना है।
कौनसी दो बातें?
एक मुख्य बात कि आज से आपस में एक दो का अवगुण न देखना, न सुनना, न चित पर रखना। ..."
21.01.1969
"...आप बच्चों को कार्य देकर देखते रहेंगे।
शरीर छूटा परन्तु हाथ-साथ नहीं छूटा।
बुद्धि का साथ-हाथ नहीं छूटा।..."
22.01.1969
"...अभी तुम परीक्षाओं रूपी सागर के बीच में चल रहे हो।
तो जिनका कनेक्शन अर्थात् जिनका हाथ बापदादा के हाथ में होगा उनकी यह जीवन रूपी नैया न हिलेगी न डूबेगी।
तुम बच्चे इसको ड्रामा का खेल समझकर चलेंगे तो डगमग नहीं होंगे।
और जिसका बुद्धि रूपी हाथ साथ ढीला होगा वह डोलते रहेंगे।
इसलिए बच्चों को बुद्धि रूपी हाथ मजबूत रखने का खास ध्यान रखना है।..."
22.01.1969
"...बाबा ने हस्त लिखित पत्र मेरे को दिया।
मैंने पढ़ा - जिसमें लिखा हुआ था।
"स्वदर्शन चक्रधारी नूरे रत्नों याद-प्यार के बाद, आज अव्यक्त रूप से आप अव्यक्त स्थिति में स्थित हुए बच्चों से मिल रहे हैं।"
दूसरे पेज में लिखा था - "बच्चे, जो बापदादा के साकार रूप से शिक्षायें मिली हैं उसका विस्तार करते रहना।
अब न बिसरों न याद रहो।"
विदाई के बाद बाबा जैसे सही डालते हैं वैसे डाली हुई थी। ..."
02.02.1969
"...साथ चलेंगे और साथ रहेंगे।
और फिर साथ-साथ ही सृष्टि पर आयेंगे।
आप बच्चों का जो गीत है कभी भी हाथ और साथ न छूटे, तो बच्चों का भी वायदा है तो बाप का भी वायदा है।..."
06.02.1969
"...यह बाप का कर्तव्य अब जास्ती समय नहीं है।
कुछ तो हाथ से गंवा दिया लेकिन जो कुछ थोड़ा समय रहा है,
उनको भी गंवा न दो। ..."
17.04.1969
"...अभी तो समय नजदीक पहुँच गया है, जिसमें अगर ढीला पुरुषार्थ रहा तो यह पुरुषार्थ का समय हाथ से खो देंगे।
अभी तो एकएक सैकेण्ड, एक-एक श्वांस, मालूम है कितने श्वांस चलते हैं?
अनगिनत है ना।
तो एक-एक श्वांस, एक-एक सैकेण्ड, सफल होना चाहिए।
अभी ऐसा समय है - अगर कुछ भी अलबेलापन रहा तो जैसे कई बच्चों ने साकार मधुर मिलन का सौभाग्य गंवा दिया, वैसे ही यह पुरुषार्थ के सौभाग्य का समय भी हाथ से चला जायेगा।
इसलिए पहले से ही सुना रहे हैं।
पुरुषार्थ से स्नेह रख पुरुषार्थ को आगे बढ़ाओ।..."
18.05.1969
"...एक होता है अपने आप से रिहर्सल।
एक होता है स्टेज पर सभी के सामने पार्ट बजाना।
तो स्टेज पर एक्ट करने वाले का अपने ऊपर कितना ध्यान रहता है।
एक-एक एक्ट पर हर समय अटेन्शन रहता है।
हाथों पर, पावों पर, आँखों पर सभी पर ध्यान रहता है।
अगर कोई भी बात नीचे ऊपर होती है तो एक्टर के एक्ट में शोभा नहीं देती।
तो ऐसे अपने को समझकर चलना है।..."
09.06.1969
"...अव्यक्त स्थिति में ज्यादा से ज्यादा कितना समय रहते हो? ज्यादा में ज्यादा कितना समय होना चाहिए, मालूम है? (आठ घंटा) सम्पूर्ण स्टेज के हिसाब से तो आठ घंटा भी कम से कम है। ..."
06.07.1969
"...जो एक की याद में थे वह हाथ उठायें।
और जो दो की याद में थे वह भी हाथ उठायें।
अब वह दो कौन?
अव्यक्त-वतन वासी वा व्यवत्त-वतन वासी?..."
06.07.1969
"...धरत परिये धर्म न छोड़िये।
कौन-सा धर्म, कौन-सा धरत?
मालूम है?
एक बार वायदा कर लिया, बापदादा को हाथ दे दिया फिर धर्म को नहीं छोड़ना है।
पवित्रता नारी जो होती है वह अपने धर्म में बहुत पक्की रहती है।
आप सच्ची-सच्ची सीता, सच्ची लक्ष्मी हो जो महालक्ष्मी बनने वाली हो। ..."
06.07.1969
"...जितना जो पुरुषार्थ करेंगे उतना नम्बर मिलेगा।
नसीब को बनाना खुद के हाथ में है।
तो अब लाटरी की इन्तजार में नहीं रहना, इन्तजाम करते रहना।
तो कैसे योग से एम पूरा होगा। ..."
17.07.1969
"...आप सभी के एक सेकेण्ड की दृष्टि के, अमूल्य बोल के भी प्यासे रहेंगे।
ऐसा अन्तिम दृश्य अपने सामने रख पुरुषार्थ करो।
ऐसा न हो कि दर पर आयी हुई कोई भूखी आत्मा खाली हाथ जाये।
साकार में क्या करके दिखाया?
कोई भी आत्मा असन्तुष्ट होकर न जाये।
भल कैसी भी आत्मा हो लेकिन सन्तुष्ट होकर जाये।..."
23.07.1969
"...यही काम का थोड़ा समय जो रहा हुआ है उसमें यह विशेष काम है।
विशेष काम समझकर बीच-बीच में समय निकालो तो निकल सकता है।
परन्तु अभ्यास नहीं है इसलिए सोचते ही सोचते समय हाथों से चला जा रहा है।
आप ध्यान रखो तो जैसी-जैसी परिस्थिति उसी प्रमाण अपनी प्रैक्टिस बढ़ा सकते हो। ..."
16.10.1969
"...हार खाने का मुख्य कारण यह है।
बुद्धि की सफाई नहीं है।
जैसे उन्हीं की हाथ की सफाई होती है ना।
आप फिर बुद्धि की सफाई से क्या से क्या कर सकते हो।
वह हाथ की सफाई से झट से बदल देते है।
देरी नहीं लगती।
इसलिए कहते है जादूगर।
आप में भी बदलने का जादू आ जायेगा।
अभी बदलने सीखे हो, लेकिन जादू के समान नहीं बदल सकते हो अर्थात् जल्दी नहीं बदल सकते हो।
समय लगता है।
जादू चलाने के लिये जितना समय जिसको मन्त्र याद रहता है, उतना उसका जादू सफल होता है।
आपको भी अगर महामन्त्र याद होगा तो जादू के समान कार्य होगा।
अब इसी में देरी है। ..."
20.10.1969
"...ड्रिल में जैसे ड्रिल मास्टर कहता है वैसे हाथ-पाँव चलाते है ना।
यहाँ भी अगर सभी को कहा जाये एक सेकेण्ड में साकारी से निराकारी बन जाओ तो बन सकेंगे?
जैसे स्कूल शरीर के हाथ-पाँव झट डायरेक्शन प्रमाण-ड्रिल में चलाते रहते है, वैसे एक सेकेण्ड में साकारी से निराकारी बनने की प्रैक्टिस है?
साकारी से निराकारी बनने में कितना समय लगता है?
जबकि अपना ही असली स्वरूप है फिर भी सेकेण्ड में क्यों नहीं स्थित हो सकते?..."