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17-04-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

''मीठे बच्चे - तुम सवेरे अमीर बनते हो, शाम को फ़कीर बनते हो। फ़कीर से अमीर, पतित से पावन बनने के लिये दो शब्द याद रखो - मन्मनाभव, मध्याजीभव''

प्रश्नः-

कर्मबन्धन से मुक्त होने की युक्ति क्या है?

उत्तर:-

1. याद की यात्रा तथा ज्ञान का सिमरण,

2. एक के साथ सर्व सम्बन्ध रहें, अन्य कोई में भी बुद्धि न जाये,

3.जो सर्वशक्तिमान् बैटरी है, उस बैटरी से योग लगा हुआ हो।

अपने ऊपर पूरा ध्यान हो, दैवी गुणों के पंख लगे हुए हों तो कर्मबन्धन से मुक्त होते जायेंगे।

ओम् शान्ति। बाप ने बैठ समझाया है - यह है भारत के लिये कहानी। क्या कहानी है? सुबह को अमीर है, शाम को फ़कीर है। इस पर एक कहानी है। सुबह को अमीर था..... यह बातें तुम जब अमीर हो तब नहीं सुनते हो। फ़कीर और अमीर की बातें तुम बच्चे संगमयुग पर ही सुनते हो। यह दिल में धारण करना है। बरोबर भक्ति फ़कीर बनाती है, ज्ञान अमीर बनाता है। दिन और रात भी बेहद का है। फ़कीर और अमीर भी बेहद की बात है और बनाने वाला भी बेहद का बाप है। सभी पतित आत्माओं के लिये एक ही बैटरी है पावन बनाने की। ऐसे-ऐसे टोटके याद रखो तो भी खुशी में रहेंगे। बाप कहते हैं - बच्चे, तुम सवेरे अमीर बन जाते हो फिर शाम को फ़कीर बन जाते हो। कैसे बनते हो - यह भी बाप समझाते हैं। फिर पतित से पावन, फ़कीर से अमीर बनने की युक्ति भी बाप ही बतलाते हैं। मन्मनाभव, मध्याजीभव - यही दो युक्तियां हैं। यह भी बच्चे जानते हैं - यह पुरुषोत्तम संगमयुग है। तुम जो भी यहाँ बैठे हो, गैरन्टी है तुम स्वर्ग के अमीर जरूर बनेंगे, नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। स्कूल में भी ऐसे होता है। नम्बरवार क्लास ट्रांसफर होता है। इम्तहान पूरा होता है तो फिर नम्बरवार जाकर बैठते हैं, वह है हद की बात, यह है बेहद की बात। नम्बरवार रूद्र माला में जाते हैं। माला अथवा झाड़। बीज तो झाड़ का ही है। परमात्मा फिर मनुष्य सृष्टि का बीज है, यह बच्चे जानते हैं कि झाड़ वृद्धि को कैसे पाता है, पुराना कैसे होता है। आगे यह तुम नहीं जानते थे, बाप ने आकर समझाया है। अभी यह है पुरुषोत्तम संगमयुग। अभी तुम बच्चों को पुरुषार्थ करना है। दैवीगुण के पंख भी धारण करने हैं। अपने ऊपर पूरा ध्यान देना है। याद की यात्रा से ही तुम पावन बनेंगे और कोई उपाय नहीं। बाप जो सर्वशक्तिमान् बैटरी है उनसे पूरा योग लगाना है। उनकी बैटरी कभी ढीली नहीं होती। वह सतो, रजो, तमो में नहीं आते क्योंकि उनकी सदा कर्मातीत अवस्था है। तुम बच्चे कर्मबन्धन में आते हो। कितने कड़े बन्धन हैं। इन कर्मबन्धनों से मुक्त होने का एक ही उपाय है - याद की यात्रा। इसके सिवाए और कोई उपाय नहीं। जैसे यह ज्ञान है, यह भी हड्डियाँ नर्म करता है। यूँ तो भक्ति भी नर्म बनाती है। कहेंगे यह बिचारा भक्त आदमी है, इनमें ठगी आदि कुछ भी नहीं है। परन्तु भक्तों में ठगी भी होती है। बाबा अनुभवी है। आत्मा शरीर द्वारा धन्धाधोरी करती है तो इस जन्म का भी सब कुछ स्मृति में आता है। 4-5 वर्ष की आयु से अपनी जीवन कहानी याद रहनी चाहिए। कोई 10-20 वर्ष की बात भी भूल जाते हैं। जन्म-जन्मान्तर का नाम रूप तो याद नहीं रह सकता। एक जन्म का तो कुछ बता सकते हैं। फ़ोटो आदि रखते हैं। दूसरे जन्म का तो पता नहीं रह सकता। हर एक आत्मा भिन्न नाम, रूप, देश, काल में पार्ट बजाती है। नाम, रूप सब बदलता रहता है। यह तो बुद्धि में है कैसे आत्मा एक शरीर छोड़ फिर दूसरा लेती है। जरूर 84 जन्म, 84 नाम, 84 बाप बने होंगे। अन्त में फिर तमोप्रधान सम्बन्ध हो जाता है। इस समय जितने सम्बन्ध होते हैं, उतने कभी नहीं होते हैं। कलियुगी सम्बन्धों को बन्धन ही समझना चाहिये। कितने बच्चे होते हैं, फिर शादी करते हैं, फिर बच्चे पैदा करते हैं। इस समय सबसे जास्ती बंधन है - चाचे, मामे, काके का.... जितने जास्ती सम्बन्ध उतने जास्ती बन्धन। अखबार में पड़ा पांच बच्चे इकट्ठे जन्में, पांचों ही तन्दुरुस्त हैं। हिसाब करो कितने ढेर सम्बन्ध बन जाते हैं। इस समय तुम्हारा सम्बन्ध सबसे छोटा है। सिर्फ एक बाप से सर्व सम्बन्ध हैं। दूसरा कोई से भी तुम्हारा बुद्धि योग नहीं है, सिवाए एक के। सतयुग में फिर इससे जास्ती हैं। हीरे जैसा जन्म तुम्हारा अभी है। हाइएस्ट बाप बच्चों को एडाप्ट करते हैं। जीते जी गोद में जाना वर्सा पाने के लिये, सो अभी ही होता है। तुम ऐसे बाप की गोद में आये हो जिससे तुमको वर्सा मिलता है। तुम ब्राह्मणों से ऊंच कोई है नहीं। सबका योग एक के साथ है। तुम्हारा आपस में भी कोई सम्बन्ध नहीं। बहन-भाई का सम्बन्ध भी गिरा देता है। सम्बन्ध एक से होना चाहिये। यह है नई बात। पवित्र होकर वापिस जाना है। ऐसे-ऐसे विचार सागर मंथन करने से तुम बहुत रौनक में आयेंगे। सतयुगी रौनक और कलियुगी रौनक में रात-दिन का फ़र्क है। भक्ति मार्ग के समय है ही रावण का राज्य। पिछाड़ी में साइन्स का घमण्ड भी कितना होता है। जैसे सतयुग से भेंट करते हैं। एक बच्ची ने समाचार लिखा कि हमने प्रश्न पूछा कि स्वर्ग में हो या नर्क में? तो 4-5 ने कहा हम स्वर्ग में हैं। बुद्धि में रात-दिन का फ़र्क पड़ जाता है। कोई समझते हैं हम तो नर्क में हैं, फिर उनको समझाना पड़ता है कि स्वर्गवासी बनने चाहते हो? स्वर्ग कौन स्थापन करते हैं? यह बहुत मीठी-मीठी बातें हैं। तुम नोट करते हो, परन्तु वह कॉपी में ही नोट्स रह जाते हैं, समय पर याद नहीं आते। अब पतित से पावन बनाने वाला परमपिता परमात्मा शिव है। वह कहते हैं मामेकम् याद करो तो पाप कट जायेंगे। याद में कोई तो आमदनी होगी ना। याद की रस्म अब निकली है। याद से ही तुम कितने ऊंच स्वच्छ बनते हो। जितनी जो मेहनत करेगा उतना ऊंच पद पायेगा। बाबा से भी पूछ सकते हो। दुनिया में तो सम्बन्ध और जायदाद के पीछे झगड़े ही झगड़े हैं। यहाँ तो कोई सम्बन्ध नहीं। एक बाप, दूसरा न कोई। बाप है बेहद का मालिक। बात तो बड़ी सहज है। उस तरफ है स्वर्ग और इस तरफ है नर्क। नर्कवासी अच्छे या स्वर्गवासी अच्छे? जो सयाने होंगे वह तो कहेंगे स्वर्गवासी अच्छे। कोई तो कह देते हैं नर्कवासी और स्वर्गवासी, इन बातों से हमें कोई मतलब नहीं क्योंकि बाप को नहीं जानते हैं। कोई फिर बाप की गोद से निकल माया की गोद में चले जाते हैं। वन्डर है ना। बाप भी वन्डरफुल तो ज्ञान भी वन्डरफुल, सब वन्डरफुल। इन वन्डर्स को समझने वाला भी ऐसा चाहिये, जिसकी बुद्धि इस वन्डर में ही लगी रहे। रावण तो वन्डर नहीं है, न उनकी रचना वन्डर है। रात-दिन का फ़र्क है। शास्त्रों में लिख दिया है - कालीदह में गया, सर्प ने डसा, काला हो गया। अब तुम अच्छी रीति यह सब समझा सकते हो। कृष्ण के चित्र को कोई उठाकर पढ़े तो रिफ्रेश हो जाये। 84 जन्मों की कहानी है। जैसे कृष्ण की वैसे तुम्हारी। स्वर्ग में तो तुम आते हो ना। फिर त्रेता में भी आते रहते हैं। वृद्धि होती रहती है। ऐसे नहीं, त्रेता में जो राजा होते हैं वह त्रेता में ही आयेंगे। पढ़े के आगे अनपढ़े को भरी ढोनी पड़ेगी। यह ड्रामा का राज़ बाबा ही जान सकते हैं। अब तुम जानते हो तुम्हारे मित्र-सम्बन्धी आदि सब नर्कवासी हैं। हम पुरुषोत्तम संगमयुगी हैं। अब पुरुषोत्तम बन रहे हैं। बाहर के रहने और यहाँ 7 रोज़ आकर रहने में बहुत फ़र्क पड़ जाता है। हंसों के संग से निकल बगुलों के संग में जाते हैं। बहुत बिगाड़ने वाले भी हैं। बहुत बच्चे मुरली की परवाह नहीं करते हैं। बाप समझाते हैं - ग़फलत नहीं करो। तुमको खुशबूदार फूल बनना है। सिर्फ एक बात ही तुम्हारे लिये काफी है - याद की यात्रा। यहाँ तुमको ब्राह्मणों का ही संग है। कहाँ ऊंच ते ऊंच, कहाँ नीच। बच्चे लिखते हैं बाबा बगुलों के झुण्ड में हम एक हंस क्या करेंगे? बगुले कांटे लगाते हैं। कितनी मेहनत करनी पड़ती है। बाप की श्रीमत पर चलने से पद भी ऊंच मिलेगा। सदैव हंस होकर रहो। बगुले के संग में बगुला न बन जाओ। गायन है आश्चर्यवत् सुनन्ती, कथन्ती, भागन्ती..... थोड़ा भी ज्ञान है तो स्वर्ग में आयेंगे। परन्तु फ़र्क रात-दिन का पड़ जाता है। सजायें बहुत कड़ी खायेंगे। बाप कहते हैं मेरी मत पर न चल, पतित बनें तो सौ गुणा दण्ड पड़ जाता है। फिर पद भी कम हो जाता है। यह राजाई स्थापन हो रही है। यह बातें भूल जाती हैं। यह भी याद रहे तो भी ऊंच पद पाने का पुरुषार्थ जरूर करें। नहीं करते हैं तो समझा जाता है - एक कान से सुन दूसरे से निकाल देते हैं। बाप से योग नहीं। यहाँ रहते भी बुद्धियोग बाल बच्चों की तरफ है। बाप कहते हैं सब कुछ भूल जाना है - इसको कहा जाता है वैराग्य। इसमें भी परसेन्टेज़ है। कहाँ न कहाँ ख्यालात चले जाते हैं। एक-दो से लव हो जाता है तो भी बुद्धि लटक जाती है। बाबा रोज़ समझाते हैं - इन आंखों से जो कुछ देखते हो, वह सब ख़त्म होने वाला है। तुम्हारा बुद्धियोग नई दुनिया में रहे और बेहद के सम्बन्धियों से बुद्धियोग रखना है। यह माशूक वण्डरफुल है। भक्ति में गाते हैं आप जब आयेंगे तो आपके बिगर हम किसको भी याद नहीं करेंगे। अब मैं आया हूँ, तो अब तुमको सब तऱफ से बुद्धियोग हटाना पड़े ना। यह सब कुछ मिट्टी में मिल जाना है। तुम्हारा जैसे मिट्टी के साथ बुद्धियोग है। मेरे साथ बुद्धियोग होगा तो मालिक बन जायेंगे। बाप कितना समझदार बनाते हैं। मनुष्य नहीं जानते कि भक्ति क्या है और ज्ञान क्या है? अब तुमको ज्ञान मिला है तब तुम भक्ति को भी समझते हो। अब तुमको फीलिंग आती है कि भक्ति में कितना दु:ख है। मनुष्य भक्ति करते हैं अपने को बहुत सुखी समझते हैं। फिर भी कहते हैं भगवान् आकर फल देंगे। किसको और कैसे फल देंगे - वह कुछ भी नहीं समझते। अब तुम जानते हो - बाप भक्ति का फल देने आये हैं। विश्व की राजधानी का फल जिस बाप से मिलता है वह बाप जो डायरेक्शन देते हैं, उस पर चलना पड़े। उनको कहा जाता है ऊंचे ते ऊंची मत। मत मिलती तो सबको है। फिर कोई चल सके, कोई चल न सके। बेहद की बादशाही स्थापन होनी है। तुम अभी समझते हो - हम क्या थे, अब हमारी क्या हालत है। माया एकदम ख़त्म कर देती है। यह तो जैसे मुर्दों की दुनिया है। भक्ति मार्ग में तुम जो कुछ सुनते थे वह सब सत सत करते थे। लेकिन तुम जानते हो कि सच तो एक बाप ही सुनाते हैं। ऐसे बाप को याद करना चाहिये। यहाँ कोई बाहर वाला बैठा हो तो उनको कुछ भी समझ में नहीं आयेगा। कहेंगे यह तो पता नहीं क्या सुनाते हैं। सारी दुनिया कहती है परमात्मा सर्वव्यापी है और यह कहते हैं वह हमारा बाप है। कांध से ना-ना करते रहेंगे। तुम्हारे अन्दर से हाँ-हाँ निकलती रहेगी, इसलिये नये कोई को एलाउ नहीं किया जाता है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिये मुख्य सार :-

1) खुशबूदार फूल बनने के लिये संग की बहुत सम्भाल करनी है। हंसों का संग करना है, हंस होकर रहना है। मुरली में कभी बेपरवाह नहीं बनना है, गफलत नहीं करनी है।

2) कर्मबन्धन से मुक्त होने के लिये संगमयुग पर अपने सर्व सम्बन्ध एक बाप से रखने है। आपस में कोई सम्बन्ध नहीं रखना है। किसी हद के सम्बन्ध में लव रख बुद्धियोग लटकाना नहीं है। एक को ही याद करना है।

वरदान:-

साक्षी स्थिति में स्थित हो परिस्थितियों के खेल को देखने वाले सन्तोषी आत्मा भव

कैसी भी हिलाने वाली परिस्थिति हो लेकिन साक्षी स्थिति में स्थित हो जाओ तो अनुभव करेंगे जैसे पपेट शो (कठपुतली का खेल) है। रीयल नहीं है। अपनी शान में रहते हुए खेल को देखो। संगमयुग का श्रेष्ठ शान है सन्तुष्टमणी बनना वा सन्तोषी होकर रहना। इस शान में रहने वाली आत्मा परेशान नहीं हो सकती। संगमयुग पर बापदादा की विशेष देन सन्तुष्टता है।

स्लोगन:-

ऐसे खुशनुम: बनो जो मन की खुशी सूरत से स्पष्ट दिखाई दे।