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09-05-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे - शिवबाबा वन्डरफुल बाप, टीचर और सतगुरू है, उसे अपना कोई बाप नहीं, वह कभी किसी से कुछ सीखता नहीं, उन्हें गुरू की दरकार नहीं, ऐसा वन्डर खाकर तुम्हें याद करना चाहिए”

प्रश्नः-

याद में कौन-सी नवीनता हो तो आत्मा सहज ही पावन बन सकती है?

उत्तर:-

याद में जब बैठते हो तो बाप की करेन्ट खींचते रहो। बाप तुम्हें देखे और तुम बाप को देखो, ऐसी याद ही आत्मा को पावन बना सकती है। यह बहुत सहज याद है, लेकिन बच्चे घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं कि हम आत्मा हैं, शरीर नहीं। देही-अभिमानी बच्चे ही याद में ठहर सकते हैं।

ओम् शान्ति। मीठे-मीठे बच्चों को यह तो निश्चय है कि यह हमारा बेहद का बाप है, उनका कोई बाप नहीं। दुनिया में ऐसा कोई मनुष्य नहीं होगा जिसका बाप न हो। एक-एक बात बड़ी अच्छी समझने की है और फिर नॉलेज भी वह सुनाते हैं, जो कब पढ़ते नहीं हैं। नहीं तो मनुष्य मात्र कुछ न कुछ पढ़ते जरूर हैं। कृष्ण भी पढ़ा है। बाप कहते हैं मैं क्या पढूँ। मैं तो पढ़ाने आया हूँ। मैं पढ़ा हुआ नहीं हूँ। मैंने कोई से शिक्षा नहीं ली है। कोई गुरू नहीं किया है। ड्रामा प्लैन अनुसार बाप की जरूर ऊंच ते ऊंच महिमा होगी। गाया भी जाता है ऊंचे ते ऊंचा भगवन्। उनसे ऊंचा फिर क्या होगा! न बाप, न टीचर, न गुरू। इस बेहद के बाप का न कोई बाप है, न टीचर है, न गुरू है। यह स्वयं ही बाप, टीचर, गुरू है। यह तो अच्छी तरह समझ सकते हो। ऐसा कोई भी व्यक्ति हो नहीं सकता। यही वन्डर खाकर ऐसे बाप, टीचर, सतगुरू को याद करना चाहिए। मनुष्य कहते भी हैं ओ गॉड फादर.. वह नॉलेजफुल टीचर भी है, सुप्रीम गुरू भी है। एक ही है, ऐसा कोई दूसरा मनुष्य मात्र नहीं होगा। उनको पढ़ाना भी मनुष्य तन में है। पढ़ाने के लिए मुख तो जरूर चाहिए। यह भी बच्चों को घड़ी-घड़ी स्मृति रहे तो भी बेड़ा पार हो जाए। बाप को याद करने से ही विकर्म विनाश होंगे। सुप्रीम टीचर समझने से सारा ज्ञान बुद्धि में आ जायेगा। वह सतगुरू भी है। हमको योग सिखला रहे हैं। एक के ही साथ योग लगाना है। सभी आत्माओं का एक ही फादर है। सब आत्माओं को कहते हैं मामेकम् याद करो। आत्मा ही सब कुछ करती है। इस शरीर रूपी मोटर को चलाने वाली आत्मा है। उनको रथ कहो वा कुछ भी कहो। मुख्य चलाने वाली आत्मा ही है। आत्मा का बाप एक ही है। मुख से कहते भी हो, हम सब भाई-भाई हैं। एक बाप के बच्चे हम सब भाई-भाई हैं। फिर जब बाप आते हैं, प्रजापिता ब्रह्मा के तन में तो भाई-बहन होना पड़ता है। प्रजापिता ब्रह्मा मुख वंशावली तो भाई-बहन होंगे ना। भाई की बहन से कभी भी शादी नहीं होती है। तो यह सब प्रजापिता ब्रह्माकुमार-कुमारियां हो गये। तो भाई-बहन समझने से जैसे बाप के लवली चिल्ड्रेन ईश्वरीय सम्प्रदाय हो गये। तुम कहेंगे हम हैं डायरेक्ट ईश्वरीय सम्प्रदाय। ईश्वर बाबा हमको सब कुछ सिखला रहे हैं। वह कोई से सीखा हुआ नहीं है। वह तो है ही सदैव सम्पूर्ण। उनकी कलायें कभी कम नहीं होती और सबकी कलायें कम होती हैं। हम तो शिवबाबा की बहुत महिमा करते हैं। शिवबाबा कहना बड़ा इज़ी है और बाप ही पतित-पावन है। सिर्फ ईश्वर कहने से इतना जंचता नहीं है। अभी तुम बच्चों को दिल में जंचता है। बाप कैसे आकर पतितों को पावन बनाते हैं। लौकिक बाप भी है, पारलौकिक बाप भी है। पारलौकिक बाप को सभी याद करते हैं क्योंकि पतित हैं तब याद करते हैं। पावन बन गये फिर तो दरकार नहीं पतित-पावन को बुलाने की। ड्रामा देखो कैसा है। पतित-पावन बाप को याद करते हैं। चाहते हैं हम पावन दुनिया के मालिक बनें। शास्त्रों में दिखाया है देवताओं और असुरों की लड़ाई लगी। परन्तु ऐसा तो है नहीं। अभी तुम समझते हो हम न असुर हैं, न देवता हैं। अभी हम हैं बीच के। सभी तुमको कूटते रहते हैं। यह खेल बड़ा मजे का है। नाटक में मजा ही देखने जाते हैं ना। वह सब हैं हद के ड्रामा, यह है बेहद का ड्रामा। इनको और कोई नहीं जानते। देवतायें तो जान भी नहीं सकते। अभी तुम कलियुग से निकल आये हो। जो खुद जानते हैं वह औरों को भी समझा सकते हैं। एक बार ड्रामा देखा तो फिर सारा ड्रामा बुद्धि में आ जायेगा। बाबा ने समझाया है यह मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ है, इनका बीज ऊपर में है। विराट रूप कहते हैं ना। बाप बैठ तुम बच्चों को समझाते हैं। मनुष्यों को यह पता नहीं है। शिवबाबा कोई से भाषा सीखा होगा? जबकि उनका कोई टीचर ही नहीं तो भाषा फिर क्या सीखा होगा। तो जरूर जिस रथ में आते हैं उनकी भाषा ही काम में लायेगा। उनकी अपनी भाषा तो कोई है नहीं। वह कुछ पढ़ते सीखते ही नहीं। उनका कोई टीचर होता नहीं। कृष्ण तो सीखता है। उनके माँ, बाप, टीचर हैं, उनको गुरू की दरकार ही नहीं क्योंकि उनको तो सद्गति मिली हुई है। यह भी तुम जानते हो। तुम ब्राह्मण हो सबसे ऊंच। यह तुम स्मृति में रखो। हमको पढ़ाने वाला है बाप। हम अभी ब्राह्मण हैं। ब्राह्मण, देवता.... कितना क्लीयर है। बाप को तो पहले से ही कह देते हैं, वह सब कुछ जानते हैं। क्या जानते हैं, यह किसको पता नहीं। वह नॉलेजफुल है। सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की उनको नॉलेज है। बीज को सारे झाड़ की नॉलेज होती है। वह तो है जड़ बीज। तुम हो चैतन्य। तुम अपने झाड़ की नॉलेज समझाते हो। बाप कहते हैं मैं इस वैराइटी मनुष्य सृष्टि का बीज हूँ। हैं तो सब मनुष्य, परन्तु वैराइटी हैं। एक भी आत्मा के शरीर के फीचर्स दूसरे जैसे नहीं हो सकते। दो एक्टर्स एक जैसे नहीं हो सकते। यह है बेहद का ड्रामा। हम मनुष्यों को एक्टर्स नहीं कहते हैं, आत्मा को कहते हैं। वो लोग मनुष्यों को ही समझते हैं। तुम्हारी बुद्धि में है कि हम आत्मायें एक्टर्स हैं। वह मनुष्य डांस करते हैं। जैसे मनुष्य बन्दर को आकर डांस कराते हैं। यह भी आत्मा है जो शरीर को डांस कराती, पार्ट बजवाती है। यह तो बहुत सहज समझने की बातें हैं। बेहद का बाप आते भी जरूर हैं। ऐसे नहीं कि नहीं आते। शिव जयन्ती भी होती है। बाप आते ही हैं जब दुनिया चेन्ज होनी होती है। भक्ति मार्ग में कृष्ण को याद करते रहते हैं, परन्तु कृष्ण आये कैसे। कलियुग में या संगम पर तो कृष्ण का रूप इन आंखों से देखा नहीं जा सकता। फिर उनको भगवान् कैसे कहें? वह तो सतयुग का पहला नम्बर प्रिन्स है। उनका बाप, टीचर भी है, गुरू की उनको दरकार नहीं क्योंकि सद्गति में है। स्वर्ग को सद्गति कहा जाता है। हिसाब भी क्लीयर है। बच्चे समझते हैं मनुष्य 84 जन्म लेते हैं। कौन-कौन कितने जन्म लेते हैं वह तो हिसाब करते हो। डीटी घराना जरूर पहले-पहले आता है। पहला जन्म उनका ही होता है। एक का हुआ तो उनके पीछे सभी आ जाते हैं। यह बातें तुम जानते हो। तुम्हारे में भी कोई अच्छी रीति समझते हैं। जैसे उस पढ़ाई में होता है, यह है बहुत सहज। सिर्फ एक गुप्त डिफीकल्टी है - तुम बाप को याद करते हो उसमें माया विघ्न डालती है क्योंकि माया रावण को हषद (ईर्ष्या) होता है। तुम राम को याद करते हो तो रावण को हषद होता है कि हमारा मुरीद राम को क्यों याद करता है! यह भी ड्रामा में पहले से ही नूँध है। नई बात नहीं। कल्प पहले जो पार्ट बजाया है वही बजायेंगे। अभी तुम पुरूषार्थ कर रहे हो। कल्प पहले जो पुरूषार्थ किया है, वह अभी भी कर रहे हो। यह चक्र फिरता रहता है। कभी बन्द नहीं होता है। टाइम की टिक-टिक होती रहती है। बाप समझाते हैं, यह 5 हजार वर्ष का ड्रामा है। शास्त्रों में तो कैसी-कैसी बातें लिख दी हैं। बाप ऐसे कभी नहीं कहेंगे कि भक्ति छोड़ो क्योंकि अगर यहाँ भी चल नहीं सके और वह भी छूट जाए तो न इधर का, न उधर का ही रहे। कोई काम का ही नहीं रहा इसलिए तुम देखते हो कई मनुष्य ऐसे भी हैं जो भक्ति आदि कुछ नहीं करते हैं। बस, ऐसे ही चलता रहता है। कई तो कह देते हैं, भगवान् ही अनेक रूप धरते हैं। अरे, यह तो बेहद का ड्रामा अनादि बना-बनाया है, जो रिपीट होता रहता है इसलिए इसको अनादि अविनाशी वर्ल्ड ड्रामा कहा जाता है। इसको भी तुम बच्चे ही समझ रहे हो। इसमें भी तुम कुमारियों के लिए तो बहुत सहज है। माताओं को तो जो सीढ़ी चढ़ी है वह उतरना पड़े। कुमारी को तो कोई और बन्धन नहीं। चिन्तन ही नहीं, बाप का बन जाना है। लौकिक सम्बन्ध को भूल पारलौकिक सम्बन्ध जोड़ना है। कलियुग में तो है ही दुर्गति। नीचे उतरना ही है, ड्रामा अनुसार। भारतवासी कहते हैं यह सब कुछ ईश्वर का है। वह मालिक है। तुम कौन हो! हम आत्मा हैं। बाकी यह सब कुछ ईश्वर का है। यह देह आदि जो कुछ है, परमात्मा ने दिया है। मुख से कहते ठीक हैं। कह देते हैं - यह सब कुछ ईश्वर ने दिया है। अच्छा, फिर उनकी दी हुई चीज़ में ख्यानत थोड़ेही डालनी चाहिए। परन्तु उस पर भी चलते नहीं। रावण मत पर चलते हैं। बाप समझाते हैं तुम तो ट्रस्टी हो। परन्तु रावण सम्प्रदाय होने कारण तुम ट्रस्टीपने में अपने को धोखा देते हो। मुख से कहते एक हो, करते दूसरा हो। बाप ने चीज़ दी, फिर ले ली तो उसमें तुमको दु:ख क्यों होता है? ममत्व मिटाने के लिए ही यह बातें बाप अपने बच्चों को समझाते हैं। अब बाप आये हैं। तुमने ही पुकारा है - बाबा हमको साथ ले चलो। हम रावण राज्य में बहुत दु:खी हैं, आकर हमको पावन बनाओ क्योंकि समझते हैं पावन बनने बिगर हम जा नहीं सकते। हमको ले चलो! कहाँ? घर ले चलो। सब कहते हैं हम घर जायें। कृष्ण के भक्त चाहते हैं हम कृष्णपुरी बैकुण्ठ में जायें। सतयुग ही याद रहता है। प्यारी चीज़ है। मनुष्य मरता है तो स्वर्ग जाता नहीं है, स्वर्ग तो सतयुग में ही होता है, कलियुग में होता है नर्क। तो जरूर पुनर्जन्म नर्क में ही होगा। यह कोई सतयुग थोड़ेही है। वह तो वन्डर ऑफ वर्ल्ड है। कहते भी हैं, समझते भी हैं, फिर भी कोई मरता है तो उनके सम्बन्धी कुछ भी समझते नहीं। बाप के पास जो 84 के चक्र की नॉलेज है वह बाप ही दे सकते हैं। तुम तो अपने को देह समझते थे, वह रांग था। अब बाप कहते हैं देही-अभिमानी भव। कृष्ण तो कह न सके देही-अभिमानी भव। उनको तो अपनी देह है ना। शिवबाबा को अपनी देह नहीं है। यह तो उनका रथ है, जिसमें वह विराजमान है। उनका यह रथ है तो इनका भी रथ है। इनकी अपनी आत्मा भी है। बाप का भी लोन लिया हुआ है। बाप कहते हैं मैं इनका आधार लेता हूँ। अपना तो है नहीं। तो पढ़ायेंगे कैसे! बाप रोज़ बैठ बच्चों को कशिश करते हैं कि अपने को आत्मा समझ और बाप को देखो। यह शरीर भी भूल जाए। हम तुमको देखें, तुम हमको देखो। तुम जितना बाप को देखेंगे, पवित्र होते जायेंगे। और कोई उपाय पावन बनने का है नहीं। अगर हो तो बताओ, जिससे आत्मा पवित्र होती हो? गंगा के पानी से तो नहीं होगी। पहले तो कोई को भी बाप का परिचय देना है। ऐसा बाप तो और कोई होता नहीं। नब्ज देखो ऐसा समझा है, जो चक्रित हो जाए? समझे बरोबर इनको परमात्मा कहा जाता है। अभी तुम बच्चों को बाप अपना परिचय दे रहे हैं। मैं कौन हूँ, यह भी बच्चों को मालूम है। हिस्ट्री रिपीट होती है। जो इस कुल के होंगे वही आयेंगे। बाकी तो सब अपने-अपने धर्म में चले जायेंगे। जो और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं वह फिर निकल अपने-अपने सेक्शन में चले जायेंगे इसलिए निराकारी झाड़ भी दिखाया है। यह बातें तुम बच्चे ही समझते हो बाकी तो कोई मुश्किल ही समझते। 7-8 से कोई 1-2 निकलेंगे जो समझेंगे यह नॉलेज तो बहुत अच्छी है। यहाँ का जो होगा उनको त़ूफान कम आयेंगे। दिल होगी फिर जायें, जाकर सुनें। कई फिर संग के रंग में भी आ जाते हैं तो फिर आते नहीं। जहाँ पार्टी को जाता हुआ देखेंगे तो उसमें लटक पड़ेंगे। मेहनत लगती है बहुत। कितनी मेहनत करनी पड़ती है। घड़ी-घड़ी कहते हैं हम भूल जाते हैं। मैं आत्मा हूँ, शरीर नहीं। यह घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। बाप भी जानते हैं बच्चे काम चिता पर बैठकर काले हो गये हैं। कब्रदाखिल हो पड़े हैं, इसलिए सांवरे बन गये हैं। उनको ही फिर बाप कहते हैं हमारे बच्चे सब जल मरे हैं। यह बेहद की बात है। कितनी करोड़ों आत्मायें हमारे घर में रहने वाली हैं अर्थात् ब्रह्मलोक में रहने वाली हैं। बाप तो बेहद में खड़े हैं ना। तुम भी बेहद में खड़े हो जायेंगे। जानते हो बाबा स्थापना करके चला जायेगा फिर तुम राज्य करेंगे। बाकी सब आत्मायें शान्तिधाम में चली जायेंगी। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) किसी भी एक्टर से रावण हषद (ईर्ष्या) करे, विघ्न डाले, त़ूफान में लाये तो उसे न देख अपने पुरूषार्थ में तत्पर रहना है क्योंकि हरेक एक्टर का पार्ट, इस ड्रामा में अपना-अपना है। यह अनादि ड्रामा बना हुआ है।

2) रावण मत पर ईश्वर की अमानत में ख्यानत नहीं डालनी है। सबसे ममत्व निकाल पूरा ट्रस्टी होकर रहना है।

वरदान:-

बुराई में भी अच्छाई का अनुभव करने वाले निश्चयबुद्धि बेफिक्र बादशाह भव

सदा यह स्लोगन याद रहे कि जो हुआ अच्छा हुआ, अच्छा है और अच्छा ही होना है। बुराई को बुराई के रूप में न देखें। लेकिन बुराई में भी अच्छाई का अनुभव करें, बुराई से भी अपना पाठ पढ़ लें। कोई भी बात आये तो “क्या होगा” यह संकल्प न आये लेकिन फौरन आये कि “अच्छा होगा”। बीत गया अच्छा हुआ। जहाँ अच्छा है वहाँ सदा बेफिक्र बादशाह हैं। निश्चयबुद्धि का अर्थ ही है बेफिक्र बादशाह।

स्लोगन:-

जो स्वयं को वा दूसरों को रिगार्ड देते हैं उनका रिकार्ड सदा ठीक रहता है।