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19-05-19 प्रात:मुरली अव्यक्त-बापदादा मधुबन

रिवाइज: 28-11-84

संकल्प को सफल बनाने का सहज साधन

आज विश्व रचता, विश्व कल्याणकारी बाप विश्व की परिक्रमा करने के लिए, विशेष सर्व बच्चों की रेख-देख करने के लिए चारों ओर गये। ज्ञानी तू आत्मा बच्चों को भी देखा। स्नेही सहयोगी बच्चों को भी देखा। भक्त बच्चों को भी देखा, अज्ञानी बच्चों को भी देखा। भिन्न-भिन्न आत्मायें अपनी-अपनी लगन में मगन देखा। कोई कुछ कार्य करने की लगन में मगन और कोई तोड़ने के कार्य में मगन, कोई जोड़ने के कार्य में मगन, लेकिन सभी मगन जरूर हैं। सभी के मन में संकल्प यही रहा कि कुछ मिल जाए, कुछ ले लें, कुछ पा लें, इसी लक्ष्य से हरेक अपने-अपने कार्य में लगा हुआ है। चाहे हद की प्राप्ति है, फिर भी कुछ मिल जाये वा कुछ बन जायें, यही तात और लात सभी तरफ देखी। इसी के बीच ब्राह्मण बच्चों को विशेष देखा। देश में चाहे विदेश में सभी बच्चों में यही एक संकल्प देखा कि अब कुछ कर लें। बेहद के कार्य में कुछ विशेषता करके दिखायें। अपने में भी कोई विशेषता धारण कर विशेष आत्मा बन जायें। ऐसा उमंग मैजारटी बच्चों में देखा। उमंग-उत्साह का बीज स्वयं के पुरूषार्थ से, साथ-साथ समय के वातावरण से सबके अन्दर प्रत्यक्ष रूप में देखा। इसी उमंग के बीज को बार-बार निरन्तर बनाने के अटेन्शन देने का पानी और चेकिंग अर्थात् सदा वृद्धि को पाने की विधि रूपी धूप देते रहें - इसमें नम्बरवार हो जाते हैं। बीज बोना सभी को आता है लेकिन पालना कर फल स्वरूप बनाना, इसमें अन्तर हो जाता है। बापदादा अमृत वेले से सारे दिन तक बच्चों का यह खेल कहो वा लगन का पुरूषार्थ कहो, रोज़ देखते हैं। हर एक बहुत अच्छे ते अच्छे स्व प्रति वा सेवा के प्रति उमंगों के संकल्प करते कि अभी से यह करेंगे, ऐसे करेंगे, अवश्य करेंगे। करके ही दिखायेंगे-ऐसे श्रेष्ठ संकल्प के बीज बोते रहते हैं। बापदादा से रूह-रूहाण में भी बहुत मीठी-मीठी बातें करते हैं। लेकिन जब उस संकल्प को अर्थात् बीज को प्रैक्टिकल में लाने की पालना करते तो क्या होता? कोई न कोई बातों में वृद्धि की विधि में वा फलस्वरूप बनाने की विशेषता में नम्बरवार यथा शक्ति बन जाते हैं। किसी भी संकल्प रूपी बीज को फलीभूत बनाने का सहज साधन एक ही है, वह है-“सदा बीज रूप बाप से हर समय सर्व शक्तियों का बल उस बीज में भरते रहना”। बीज रूप द्वारा आपके संकल्प रूपी बीज सहज और स्वत: वृद्धि को पाते फलीभूत हो जायेंगे। लेकिन बीज रूप से निरन्तर कनेक्शन न होने के कारण और आत्माओं को वा साधनों को वृद्धि की विधि बना देते हैं। इस कारण ऐसे करें वैसे करें, इस जैसा करें, इस विस्तार में समय और मेहनत ज्यादा लगाते हैं क्योंकि किसी भी आत्मा और साधन को अपना आधार बना लेते हैं। सागर और सूर्य से पानी और धूप मिलने के बजाए कितने भी साधनों के पानी से आत्माओं को आधार समझ सकाश देने से बीज फलीभूत हो नहीं सकता, इसलिए मेहनत करने के बाद, समय लगाने के बाद जब प्रत्यक्ष फल की प्राप्ति नहीं होती तो चलते-चलते उत्साह कम हो जाता और स्वयं से वा साथियों से वा सेवा से निराश हो जाते हैं। कभी खुशी, कभी उदासी दोनों लहरें ब्राह्मण जीवन के नांव को कभी हिलाती कभी चलाती। आजकल कई बच्चों के जीवन की गति विधि यह दिखाई देती है। चल भी रहे हैं, कार्य कर भी रहे हैं लेकिन जैसा होना चाहिए वैसा अनुभव नहीं करते हैं इसलिए खुशी है लेकिन खुशी में नाचते रहें, वह नहीं है। चल रहे हैं लेकिन तीव्रगति की चाल नहीं है। सन्तुष्ट भी हैं कि श्रेष्ठ जीवन वाले बन गये, बाप के बन गये, सेवाधारी बन गये, दुख: दर्द की दुनिया से किनारे हो गये। लेकिन सन्तुष्टता के बीच कभी कभी असन्तुष्टता की लहर न चाहते, न समझते भी आ जाती है, क्योंकि ज्ञान सहज है, याद भी सहज है लेकिन सम्बन्ध और सम्पर्क में न्यारे और प्यारे बन कर प्रीत निभाना इसमें कहाँ सहज, कहाँ मुश्किल बन जाता। ब्राह्मण परिवार और सेवा की प्रवृत्ति, इसको कहा जाता है सम्बन्ध सम्पर्क। इसमें किसी न किसी बात से जैसा अनुभव होना चाहिए वैसा नहीं करते। इस कारण दोनों लहरें चलती हैं। अभी समय की समीपता के कारण पुरूषार्थ की यह रफ्तार समय प्रमाण सम्पूर्ण मंजिल पर पहुँचा नहीं सकेगी। अभी समय है विघ्न विनाशक बन विश्व के विघ्नों के बीच दु:खी आत्माओं को सुख चैन की अनुभूति कराना। बहुत काल से निर्विघ्न स्थिति वाला ही विघ्न विनाशक का कार्य कर सकता है। अभी तक अपने जीवन में आये हुए विघ्नों को मिटाने में बिजी रहेंगे, उसमें ही शक्ति लगायेंगे तो दूसरों को शक्ति देने के निमित्त कैसे बन सकेंगे। निर्विघ्न बन शक्तियों का स्टाक जमा करो-तब शक्ति रूप बन विघ्न-विनाशक का कार्य कर सकेंगे। समझा! विशेष दो बातें देखी। अज्ञानी बच्चे भारत में सीट लेने में वा सीट दिलाने में लगे हुए हैं। दिन रात स्वप्न में भी सीट ही नजर आती और ब्राह्मण बच्चे सेट होने में लगे हुए हैं। सीट मिली हुई है लेकिन सेट हो रहे हैं। विदेश में अपने ही बनाये हुए विनाशकारी शक्ति से बचने के साधन ढूँढने में लगे हुए हैं। मैजारटी की जीवन, जीवन नहीं लेकिन क्वेश्चन मार्क बन गई है। अज्ञानी बचाव में लगे हुए हैं और ज्ञानी प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने में लगे हुए हैं। यह है विश्व का हाल-चाल। अब परेशानियों से बचाओ। भिन्न-भिन्न परेशानियों में भटकती हुई आत्माओं को शान्ति का ठिकाना दो।

अच्छा- सदा सम्पन्न स्थिति की सीट पर सेट रहने वाले, स्व के और विश्व के विघ्न-विनाशक, बीजरूप बाप के सम्बन्ध से हर श्रेष्ठ संकल्प रूपी बीज को फलीभूत बनाए प्रत्यक्ष फल खाने वाले, सदा सन्तुष्ट रहने वाले, सन्तुष्टमणी बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।“

हॉस्टेल की कुमारियों से बापदादा की मुलाकात

अपने भाग्य को देख हर्षित रहती हो ना? उल्टे रास्ते पर जाने से बच गई। गँवाने के बजाए कमाने वाली जीवन बना दी। लौकिक जीवन में बिना ज्ञान के गँवाना ही गँवाना है और ज्ञानी जीवन में हर सेकण्ड कमाई ही कमाई है। वैसे तकदीरवान सभी ब्राह्मण हैं लेकिन फिर भी कुमारियाँ हैं डबल तकदीरवान। और कुमारी जीवन में ब्रह्माकुमारी बनना, ब्राह्मण बनना यह बहुत महान है। कम बात नहीं है। बहुत बड़ी बात है। ऐसे नशा रहता है क्या बन गई। साधारण कुमारी से शक्ति रूप हो गई। माया का संघार करने वाली शक्तियाँ हो ना! माया से घबराने वाली नहीं, संघार करने वाली। कमजोर नहीं, बहादुर। कभी छोटी मोटी बात पर घबराती तो नहीं हो? सदा श्रेष्ठ प्राप्ति को याद रखेंगी तो छोटी-छोटी बातें कुछ नहीं लगेंगी। अभी पूरा जीवन का सौदा किया या जब तक होस्टल में है तब तक का सौदा है? कभी भी कोई श्रेष्ठ जीवन से साधारण जीवन में समझते हुए जा नहीं सकते। अगर कोई लखपति हो उसको कहो गरीब बनो, तो बनेगा? सरकमस्टाँस के कारण कोई बन भी जाता तो भी अच्छा नहीं लगता। तो यह जीवन है स्वराज्य अधिकारी जीवन। उससे साधारण जीवन में जा नहीं सकते। तो अभी समझदार बनकर अनुभव कर रही हो या एक दो के संग में चल रही हो? अपनी बुद्धि का फैसला किया है? अपने विवेक की जजमेन्ट से यह जीवन बनाई है ना! या माँ बाप ने कहा तो चली आई? अच्छा!

(2) कुमारियों ने अपने आपको आफर किया? जहाँ भी सेवा में भेजें वहाँ जायेंगी? पक्का सौदा किया है या कच्चा? पक्का सौदा है तो जहाँ बिठाओ, जो कराओ....ऐसे तैयार हो? अगर कोई भी बन्धन है तो पक्का सौदा नहीं। अगर खुद तैयार हो तो कोई रोक नहीं सकता। बकरी को बाँध कर बिठाते हैं, शेर को कोई बाँध नहीं सकता। तो शेरणी किसके बंधन में कैसे आ सकती। वह जंगल में रहते भी स्वतंत्र है। तो कौन हो? शेरणी? शेरणी माना मैदान में आने वाली। जब एक बल एक भरोसा है तो हिम्मत बच्चों की, मदद बाप की। कैसा भी कड़ा बन्धन है लेकिन हिम्मत के आधार पर वह कड़ा बन्धन भी सहज छूट जाता है। जैसे दिखाते हैं जेल के ताले भी खुल गये तो आपके बन्धन भी खुल जायेंगे। तो ऐसे बनो। अगर थोड़ा सा भी बन्धन है तो उसको योग अग्नि से भस्म कर दो। भस्म हो जायेगा तो नामनिशान गुम। तोड़ने से फिर भी गाँठ लगा सकते, इसलिए तोड़ो नहीं लेकिन भस्म करो तो सदा के लिए मुक्त हो जायेंगे। अच्छा-

चुने हुए अव्यक्त महावाक्य -

सरलचित बनो तो सफलता मिलती रहेगी ब्राह्मणों का मुख्य संस्कार है - सर्वस्व त्यागी। त्याग से ही जीवन में सरलता और सहनशीलता का गुण सहज आ जाता है। जिसमें सरलता, सहनशीलता होगी वह दूसरों को भी आकर्षण जरूर करेंगे और एक दो के स्नेही बन सकेंगे। जो स्वयं सरलचित्त रहते हैं वह दूसरों को भी सरलचित्त बना सकते हैं। सरलचित्त माना जो बात सुनी, देखी, की, वह सारयुक्त हो और सार को ही उठाये, और जो बात वा कर्म स्वयं करे उसमें भी सार भरा हुआ हो। जो सरल पुरुषार्थी होता है वह औरों को भी सरल पुरुषार्थी बना देता है। सरल पुरुषार्थी सब बातों में आलराउन्डर होगा। उसमें कोई भी बात की कमी दिखाई नहीं देगी। कोई भी बात में हिम्मत कम नहीं होगी। मुख से ऐसा बोल नहीं निकलेगा कि यह अभी नहीं कर सकते हैं। इसी एक सरलता के गुण से वह सब बातों में सैम्पुल बन पास विद आनर बन जाता है। जैसे साकार बाप को देखा - जितना ही नॉलेजफुल उतना ही सरल स्वभाव। जिसको कहते हैं बचपन के संस्कार। बुजुर्ग का बुजुर्ग, बचपन का बचपन। ऐसे फालो फादर कर सरलचित बनो। दूसरों के संस्कार को सरल बनाने का साधन है - हाँ जी कहना। जब आप यहाँ हाँ जी, हाँ जी करेंगे तब वहाँ सतयुग में आपकी प्रजा इतना हाँ जी, हाँ जी करेगी। अगर यहाँ ही ना जी ना जी करेंगे तो वहाँ भी प्रजा दूर से ही प्रणाम करेगी। तो ना शब्द को निकाल देना है। कोई भी बात हो पहले हाँ जी। इससे संस्कारों में सरलता आ जायेगी। सफलतामूर्त्त बनने के लिए मुख्य गुण सरलता और सहनशीलता का धारण करो। जैसे कोई धैर्यता वाला मनुष्य सोच समझकर कार्य करता है तो सफलता प्राप्त होती है। ऐसे ही जो सरल स्वभाव वाले सहनशील होते हैं वह अपनी सहनशीलता की शक्ति से कैसे भी कठोर संस्कार वाले को शीतल बना देते हैं, कठिन कार्य को सहज कर लेते हैं। आपके यादगार देवताओं के चित्र भी जो बनाते हैं, उनकी सूरत में सरलता ज़रूर दिखाते हैं। यह विशेष गुण दिखाते हैं। फीचर्स में सरलता जिसको आप भोलापन कहते हो। जितना जो सहज पुरुषार्थी होगा वह मन्सा में भी सरल, वाचा में भी सरल, कर्म में भी सरल होगा, उसको ही फरिश्ता कहते हैं। सरलता के गुण की धारणा के साथ समाने की, सहन करने की शक्ति भी जरूर चाहिए। अगर समाने और सहन करने की शक्ति नहीं तो सरलता बहुत भोला रुप धारण कर लेती है और कहां-कहां भोलापन बहुत भारी नुकसान कर देता है। तो ऐसा सरलचित नहीं बनना है। सरलता के गुण के कारण बाप को भी भोलानाथ कहते हो, लेकिन वह भोलानाथ के साथ-साथ आलमाइटी अथॉरिटी भी है। सिर्फ भोलानाथ नहीं है। तो आप भी सरलता के गुण को धारण करो लेकिन अपने शक्ति स्वरूप को भी सदा याद रखो। अगर शक्ति रूप भूलकर सिर्फ भोले बन जाते हो तो माया का गोला लग जाता है, इसलिए ऐसा शक्ति स्वरुप बनो जो माया सामना करने के पहले ही नमस्कार कर ले। बहुत सावधान, खबरदार-होशियार रहना है। ब्राह्मण जीवन में ऐसे विशेषता सम्पन्न बनो जो आपका स्वभाव सदा सरल हो, बोल भी सरल हों, हर कर्म भी सरलता सम्पन्न हो। सदा एक की मत पर, एक से सर्व सम्बन्ध, एक से सर्व प्राप्ति करते हुए सदा एकरस रहने के सहज अभ्यासी बनो। सदा खुश रहो और खुशी का खजाना बांटो। सरलता के गुण को जीवन में लाने के लिए वर्तमान समय सिर्फ एक बात ध्यान पर जरूर रखनी है - आपकी स्थिति स्तुति के आधार पर न हो। यदि स्तुति के आधार पर स्थिति है तो जो कर्म करते हो उसके फल की इच्छा वा लोभ रहता है। अगर स्तुति होती है तो स्थिति भी रहती है। अगर निंदा होती है तो निधन के बन जाते हो। अपनी स्टेज को छोड़ देते हैं और धनी को भूल जाते हो। तो यह कभी नहीं सोचना कि हमारी स्तुति हो। स्तुति के आधार पर स्थिति नहीं रखना, तब कहेंगे सरलचित। सरलता को अपना निजी स्वभाव बनाने से समेटने की शक्ति भी सहज आ जाती है। जो सरल स्वभाव वाला होगा वह सभी का स्नेही होगा उनको सभी द्वारा सहयोग भी अवश्य प्राप्त होगा इसलिए वह सभी बातों का सामना वा समेटना सहज ही कर सकता है। जो जितना सरल स्वभाव वाला होगा उतना माया सामना भी कम करेगी। वह सभी का प्रिय बन जाता है। सरल स्वभाव वाले के व्यर्थ संकल्प अधिक नहीं चलते। उनका समय भी व्यर्थ नहीं जाता। व्यर्थ संकल्प न चलने के कारण उनकी बुद्धि विशाल और दूरांदेशी रहती है इसलिए उनके आगे कोई भी समस्या सामना नहीं कर सकती। जितनी सरलता होगी उतनी स्वच्छता भी होगी। स्वच्छता सभी को अपने तरफ आकर्षित करती है। स्वच्छता अर्थात् सच्चाई और सफाई वह तब आयेगी जब अपने स्वभाव को सरल बनायेंगे। सरल स्वभाव वाला बहुरूपी बन सकता है। कोमल चीज़ को जैसे भी रूप में लाओ आ सकती है। तो अब गोल्ड बने हो लेकिन गोल्ड को अब अग्नि में गलाओ तो मोल्ड भी हो सके। इस कमी के कारण सर्विस की सफलता में कमी पड़ती है। अपने वा दूसरे की बीती को नहीं देखो तो सरलचित हो जायेंगे। जो सरलचित होते हैं उनमें मधुरता का गुण प्रत्यक्ष दिखाई देता है। उनके नयनों से, मुख से, चलन से मधुरता प्रत्यक्ष रूप में देखने में आती है। जो जितना स्पष्ट होता है वह उतना ही सरल और श्रेष्ठ होता है। स्पष्टता श्रेष्ठता के नजदीक है और जितनी स्पष्टता होती है उतनी सफलता भी होती है और समानता भी आती जाती है। स्पष्टता, सरलता और श्रेष्ठता बाप समान बना देती है।

वरदान:-

किसी भी परिस्थिति में फुलस्टॉप लगाकर स्वयं को परिवर्तन करने वाले सर्व की दुआओं के पात्र भव

किसी भी परिस्थिति में फुलस्टाप तब लगा सकते हैं जब बिन्दु स्वरूप बाप और बिन्दू स्वरूप आत्मा दोनों की स्मृति हो। कन्ट्रोलिंग पावर हो। जो बच्चे किसी भी परिस्थिति में स्वयं को परिवर्तन कर फुलस्टॉप लगाने में स्वयं को पहले आफर करते हैं, वह दुआओं के पात्र बन जाते हैं। उन्हें स्वयं को स्वयं भी दुआयें अर्थात् खुशी मिलती है, बाप द्वारा और ब्राह्मण परिवार द्वारा भी दुआयें मिलती हैं।

स्लोगन:-

जो संकल्प करते हो उसे बीच-बीच में दृढ़ता का ठप्पा लगाओ तो विजयी बन जायेंगे।

सूचना:

आज मास का तीसरा रविवार है, सभी संगठित रूप में सायं 6.30 से 7.30 बजे तक अन्तर्राष्ट्रीय योग में सम्मिलित होकर अपने डबल लाइट स्वरूप द्वारा पूरे विश्व को शान्ति और शक्ति की सकाश देने की सेवा करें। सारा दिन अन्तर्मुखता की गुफा में रह कर्मयोगी बनकर कर्म करें।