26-05-19 प्रात:मुरली मधुबन

अव्यक्त-बापदादा रिवाइज: 03-12-84

सर्व समर्थ शिक्षक के श्रेष्ठ शिक्षाधारी बनो

आज सर्व शक्तिवान बाप अपने चारों ओर की शक्ति सेना को देख रहे हैं। कौन-कौन सदा सर्व शक्तियों के शस्त्रधारी महावीर विजयी विशेष आत्मायें हैं। कौन-कौन सदा नहीं लेकिन समय पर, समय प्रमाण शस्त्रधारी बनते हैं। कौन-कौन समय पर शस्त्रधारी बनने का प्रयत्न करते हैं इसलिए कभी वार कर सकते, कभी हार खा लेते। कब वार कब हार के चक्र में चलते रहते हैं। ऐसे तीनों प्रकार की सेना के अधिकारी बच्चे देखे। लेकिन विजयी श्रेष्ठ आत्मायें सदा पहले से ही एवररेडी रहती हैं। समय प्रमाण शस्त्रधारी बनने में समय शिक्षक बन जाता है। समय रूपी शिक्षक के आधार पर चलने वाले सर्व शक्तिवान शिक्षक की शिक्षा से एवररेडी न बनने के कारण कभी समय पर धोखा भी खा लेते हैं। धोखा खाने से स्मृति के होश में आते हैं इसलिए सर्वशक्तिवान शिक्षक के श्रेष्ठ शिक्षाधारी बनो। समय रूपी शिक्षक के शिक्षाधारी नहीं। कई बच्चे बापदादा से रूह-रूहान करते वा आपस में भी रूह-रूहान करते, साधरण रूप से यह बोलते रहते कि समय आने पर सब ठीक हो जायेगा। समय पर दिखा देंगे वा समय पर कर लेंगे। लेकिन आप विश्व परिवर्तक बच्चों को सम्पन्न श्रेष्ठ समय का आह्वान करने का कार्य मिला हुआ है। आप निमित्त हो सुनहरे सवेरे का समय लाने लिए। आप समय रूपी रचना के मास्टर रचता, समय अर्थात् युग परिवर्तक हो। डबल काल पर विजयी हो। एक काल अर्थात् ‘समय'। दूसरा काल ‘मृत्यु' के वशीभूत नहीं हो। विजयी हो। अमर भव के वरदानी स्वरूप हो इसलिए समय प्रमाण करने वाले नहीं लेकिन बाप के फरमान प्रमाण चलने वाले। समय तो अज्ञानी आत्माओं का भी शिक्षक बनता है। आपका शिक्षक समर्थ बाप है। कोई भी तैयारी समय के पहले की जाती है न कि उस समय। एवररेडी सर्व शस्त्र शक्ति धारी सेना के हो। तो सदा अपने को चेक करो कि सर्व शक्तियों के शस्त्र धारण किये हुए हैं? कोई भी शक्ति अर्थात् शस्त्र की कमी होगी तो माया उसी कमजोरी के विधि द्वारा ही वार करेगी इसलिए इसमें भी अलबेले नहीं बनना और सब तो ठीक है, थोड़ी सी सिर्फ एक बात में कमजोरी है, लेकिन एक कमजोरी माया के वार का रास्ता बन जायेगी। जैसे बाप का बच्चों से वायदा है कि जहाँ बाप की याद है वहाँ सदा मैं साथ हूँ ऐसे माया की भी चैलेन्ज है जहाँ कमजोरी है वहाँ मैं व्यापक हूँ इसलिए कमजोरी अंश मात्र भी माया के वंश का आह्वान कर देगी। सर्व शक्तिवान के बच्चे तो सबमें सम्पन्न होना है। बाप बच्चों को जो वर्से का अधिकार देते हैं, वा शिक्षक रूप में ईश्वरीय पढ़ाई की प्रालब्ध वा डिग्री देते हैं, वह क्या वर्णन करते हो? सर्वगुण सम्पन्न कहते हो वा गुण सम्पन्न कहते हो? सम्पूर्ण निर्विकारी, 16 कला सम्पन्न कहते हो, 14 कला नहीं कहते हो। 100 प्रतिशत सम्पूर्ण सुख शान्ति का वर्सा कहते हो। तो बनना भी ऐसा पड़ेगा या एक आधी कमजोरी चल जायेगी, ऐसे समझते हो? हिसाब किताब भी गहन है। भोलानाथ भी है लेकिन कर्मों की गति का ज्ञाता भी है। देता भी कणे का घणा (बहुत ज्यादा) करके है और हिसाब भी कणे कणे का करता है। अगर एक आधी कमजोरी रह जाती है तो प्राप्ति में भी आधा जन्म, एक जन्म पीछे आना पड़ता है। श्रीकृष्ण के साथ-साथ वा विश्व महाराजन पहले लक्ष्मी-नारायण की रॉयल फैमली वा समीप के सम्बन्ध में आ नहीं सकेंगे। जैसे संवत एक एक एक से शुरू होगा। ऐसे नया सम्बन्ध, नई प्रकृति, नम्बरवन नई आत्मायें, नई अर्थात् ऊपर से उतरी हुई नई आत्मायें, नया राज्य, यह नवीनता के समय का सुख, सतोप्रधान नम्बरवन प्रकृति का सुख नम्बरवन आत्मायें ही पा सकेंगी। नम्बरवन अर्थात् माया पर विन करने वाले। तो हिसाब पूरा होगा। बाप से वरदान वा वर्सा प्राप्त करने का वायदा यही किया है कि साथ रहेंगे, साथ जायेंगे और फिर वापिस ब्रह्मा बाप के साथ राज्य में आयेंगे। यह वायदा नहीं किया है कि पीछे-पीछे आयेंगे? समान बनना ही है, साथ रहना है। सम्पन्नता, समानता सदा-साथ के प्रालब्ध के अधिकारी बनाती है इसलिए सम्पन्न और समान बनने का समय अलबेलेपन में गँवाकर अन्त समय होश में आये तो क्या पायेंगे! तो आज सभी के सर्व शक्तियों के शस्त्रों की चेकिंग कर रहे थे। रिजल्ट सुनाई - तीन प्रकार के बच्चे देखे। आप सोचते हैं कि आगे चल यह अलबेले-पन के नाज़, इतना थोड़ा सा तो चल ही जायेगा, इतनी मदद तो बाप कर ही देगा, लेकिन यह नाज़ नाजुक समय पर धोखा न देवे। और बच्चे नाज़ से उल्हना न दें कि इतना तो सोचा नहीं था इसलिए नाज़ुक समय सामने आता जा रहा है। भिन्न-भिन्न प्रकार की हलचल बढ़ती ही जायेगी। यह निशानियाँ हैं समय आने की। यह ड्रामा में इशारे हैं तीव्रगति से सम्पन्न बनने के। समझा!

आजकल मधुबन में तीन तरफ की नदियों का मेला है। त्रिवेणी नदी का मेला है ना! तीनों तरफ के आये हुए, लगन से पहुँचने वाले बच्चों को विशेष देख, बच्चों के स्नेह पर बाप दादा हर्षित होते हैं। मुख की भाषा नहीं जानते लेकिन स्नेह की भाषा जानते हैं। कर्नाटक वाले स्नेह की भाषा को जानने वाले हैं। और पंजाब वाले क्या जानते हैं? पंजाब वाले ललकार करने में होशियार हैं। तो दैवी राजस्थान की ललकार हाहाकार की जगह जयजयकार करने वाली है। गुजरात वाले क्या करते हैं? गुजरात वाले सदा झूले में झूलते हैं। अपने संगमयुगी समीप स्थान के भाग्य के भी झूले में झूलते। खुशी में झूलते हैं कि हम तो सबसे नजदीक हैं। तो गुजरात भिन्न-भिन्न झूलों में झूलने वाले हैं। वैराइटी ग्रुप भी है। वैराइटी सभी को पसन्द आती है। गुलदस्ते में भी वैराइटी रंग, रूप, खुशबू वाले फूल प्रिय लगते हैं। अच्छा!

सब तरफ से आये हुए सभी शक्तिशाली, सदा अलर्ट रहने वाले, सदा सर्व शक्तियों के शस्त्रधारी, सर्व आत्माओं को सम्पूर्ण सम्पन्न बन शक्तियों का सहयोग देने वाले, श्रेष्ठ काल, श्रेष्ठ युग लाने वाले, युग परिवर्तक नम्बरवन बन नम्बरवन सम्पन्न राज्य-भाग्य के अधिकारी - ऐसे सर्व श्रेष्ठ बच्चों को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।

पंजाब पार्टी से- सदा हर कदम में याद की शक्ति द्वारा पदमों की कमाई जमा करते हुए आगे बढ़ रहे हो ना! हर कदम में पदम भरे हुए हैं - यह चेक करते रहते हो? याद का कदम भरपूर है, बिना याद के कदम भरपूर नहीं, कमाई नहीं। तो हर कदम में कमाई जमा करने वाले कमाऊ बच्चे हो ना! कमाने वाले कमाऊ बच्चे होते। एक हैं सिर्फ खाया पिया और उड़ाया और एक हैं कमाई जमा करने वाले। आप कौन से बच्चे हैं? वहाँ बच्चा कमाता है अपने लिए भी और बाप के लिए भी। यहाँ बाप को तो चाहिए नहीं। अपने लिए ही कमाते। सदा हर कदम में जमा करने वाले, कमाई करने वाले बच्चे हैं, यह चेक करो क्योंकि समय नाजुक होता जा रहा है। तो जितनी कमाई जमा होगी उतना आराम से श्रेष्ठ प्रालब्ध का अनुभव करते रहेंगे। भविष्य में तो प्राप्ति है ही। तो इस कमाई की प्राप्ति अभी संगम पर भी होगी और भविष्य में भी होगी। तो सभी कमाने वाले हो या कमाया और खाया! जैसे बाप वैसे बच्चे। जैसे बाप सम्पन्न है, सम्पूर्ण है वैसे बच्चे भी सदा सम्पन्न रहने वाले। सभी बहादुर हो ना? डरने वाले तो नहीं हो? डरे तो नहीं? थोड़ा-सा डर की मात्रा संकल्प मात्र भी आई या नहीं? यह नथिंग न्यु है ना। कितने बार यह हुआ है, अनेक बार रिपीट हो चुका है। अभी हो रहा है इसलिए घबराने की बात नहीं। शक्तियाँ भी निर्भय हैं ना। शक्तियाँ सदा विजयी, सदा निर्भय। जब बाप की छत्रछाया के नीचे रहने वाले हैं तो निर्भय ही होंगे। जब अपने को अकेला समझते हो तो भय होता। छत्रछाया के अन्दर भय नहीं होता। सदा निर्भय। शक्तियों की विजय सदा गाई हुई है। सभी विजयी शेर हो ना! शिव शक्तियों की, पाण्डवों की विजय नहीं होगी तो किसकी होगी! पाण्डव और शक्तियाँ कल्प-कल्प के विजयी हैं। बच्चों से बाप का स्नेह है ना। बाप के स्नेही बच्चों को याद में रहने वाले बच्चों को कुछ भी हो नहीं सकता। याद की कमजोरी होगी तो थोड़ा सा सेक आ भी सकता है। याद की छत्रछाया है तो कुछ भी हो नहीं सकता। बापदादा किसी न किसी साधन से बचा देते हैं। जब भक्त आत्माओं का भी सहारा है तो बच्चों का सहारा सदा ही है।

(2) सदा हिम्मत और हुल्लास के पंखों से उड़ने वाले हो ना! उमंग-उत्साह के पंख सदा स्वयं को भी उड़ाते और दूसरों को भी उड़ाने का मार्ग बताते हैं। यह दोनों ही पंख सदा ही साथ रहें। एक पंख भी ढीला होगा तो ऊंचा उड़ नहीं सकेंगे इसलिए यह दोनों ही आवश्यक हैं। हिम्मत भी, उमंग हुल्लास भी। हिम्मत ऐसी चीज़ है जो असम्भव को सम्भव कर सकती है, हिम्मत मुश्किल को सहज बनाने वाली है। नीचे से ऊंचा उड़ाने वाली है। तो सदा ऐसे उड़ने वाले अनुभवी आत्मायें हो ना! नीचे आने से तो देख लिया क्या प्राप्ति हुई! नीचे ही गिरते रहे लेकिन अब उड़ती कला का समय है। हाई जम्प का भी समय नहीं। सेकण्ड में संकल्प किया और उड़ा। ऐसी शक्ति बाप द्वारा सदा मिलती रहेगी।

(3) स्वयं को सदा मास्टर ज्ञान सूर्य समझते हो? ज्ञान सूर्य का कार्य है सर्व से अज्ञान अंधेरे का नाश करना। सूर्य अपने प्रकाश से रात को दिन बना देता है, तो ऐसे मास्टर ज्ञान सूर्य विश्व से अंधकार मिटाने वाले, भटकती आत्माओं को रास्ता दिखाने वाले, रात को दिन बनाने वाले हो ना! अपना यह कार्य सदा याद रहता है? जैसे लौकिक आक्यूपेशन भुलाने से भी नहीं भूलता। वह तो है एक जन्म का विनाशी कार्य, विनाशी आक्यूपेशन, यह है सदा का आक्यूपेशन कि हम मास्टर ज्ञान सूर्य हैं। तो सदा अपना यह अविनाशी आक्यूपेशन या ड्यूटी समझ अंधकार मिटाकर रोशनी लानी है। इससे स्वयं से भी अंधकार समाप्त हो प्रकाश होगा क्योंकि रोशनी देने वाला स्वयं तो प्रकाशमय हो ही जाता है। तो यह कार्य सदा याद रखो और अपने आपको रोज़ चेक करो कि मैं मास्टर ज्ञान सूर्य प्रकाशमय हूँ! जैसे आग बुझाने वाले स्वयं आग के सेक में नहीं आते, ऐसे सदा अंधकार दूर करने वाले अंधकार में स्वयं नहीं आ सकते। तो मैं मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ, यह नशा व खुशी सदा रहे।

कुमारों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

(1) कुमार जीवन श्रेष्ठ जीवन है, कुमार जीवन में बाप के बन गये ऐसी अपनी श्रेष्ठ तकदीर देख सदा हर्षित रहो और औरों को भी हर्षित रहने की विधि सुनाते रहो। सबसे निर्बन्धन कुमार और कुमारियाँ हैं। कुमार जो चाहें वह अपना भाग्य बना सकते हैं। हिम्मत वाले कुमार हो ना! कमजोर कुमार तो नहीं। कितना भी कोई अपने तरफ आकर्षित करे लेकिन महावीर आत्मायें एक बाप के सिवाए कहाँ भी आकर्षित नहीं हो सकती। ऐसे बहादुर हो। कई रूप से माया अपना बनाने का प्रयत्न तो करेगी लेकिन निश्चय बुद्धि विजयी। घबराने वाले नहीं। अच्छा है। वाह मेरी श्रेष्ठ तकदीर! बस यही सदा स्मृति रखना। हमारे जैसा कोई हो नहीं सकता - यह नशा रखो। जहाँ ईश्वरीय नशा होगा वहाँ माया से परे रहेंगे। सेवा में तो सदा बिजी रहते हो ना! यह भी जरूरी है। जितना सेवा में बिजी रहेंगे उतना सहजयोगी रहेंगे लेकिन याद सहित सेवा हो तो सेफ्टी है। याद नहीं तो सेफ्टी नहीं।

(2) कुमार सदा निर्विघ्न हो ना? माया आकर्षित तो नहीं करती? कुमारों को माया अपना बनाने की कोशिश बहुत करती है। माया को कुमार बहुत पसन्द आते हैं। वह समझती है मेरे बन जायें। लेकिन आप सब तो बहादुर हो ना! माया के मुरीद नहीं, माया को चैलेन्ज करने वाले। आधा कल्प माया के मुरीद रहे, मिला क्या? सब कुछ गँवा दिया इसलिए अभी प्रभू के बन गये। प्रभू का बनना अर्थात् स्वर्ग के अधिकार को पाना। तो सभी कुमार विजयी कुमार हैं। देखना, कच्चे नहीं होना। माया को कुमारों से एकस्ट्रा प्यार है इसलिए चारों ओर से कोशिश करती है मेरे बन जायें। लेकिन आप सबने संकल्प कर लिया। जब बाप के हो गये तो निस्फुरने (निश्चिन्त) हो गये। सदा निर्विघ्न भव, उड़ती कला भव।

(3) कुमार-सदा समर्थ। जहाँ समर्थी है वहाँ प्राप्ति है। सदा सर्व प्राप्ति स्वरूप। नॉलेजफुल होने के कारण माया के भिन्न-भिन्न रूपों को जानने वाले इसलिए अपने भाग्य को आगे बढ़ाते रहो। सदा एक ही बात पक्की करो कि कुमार जीवन अर्थात् मुक्त जीवन। जो जीवनमुक्त है वह संगमयुग की प्राप्ति युक्त होगा। सदा आगे बढ़ते रहो और बढ़ाते रहो। कुमारों को तो सदा खुशी में नाचना चाहिए - वाह कुमार जीवन! वाह भाग्य! वाह ड्रामा! वाह बाबा!.... यही गीत गाते रहो। खुशी में रहो तो कमजोरी आ नहीं सकती। सेवा और याद दोनों से शक्ति भरते रहो। कुमार जीवन हल्की जीवन है। इस जीवन में अपनी तकदीर बनाना यह सबसे बड़ा भाग्य है। कितने बन्धनों में बंधने से बच गये। सदा अपने को ऐसे डबल लाइट समझते हुए उड़ती कला में चलते रहो तो आगे नम्बर ले लेंगे। अच्छा -ओम् शान्ति।

वरदान:-

क्रोधी आत्मा को रहम के शीतल जल द्वारा गुण दान देने वाले वरदानी आत्मा भव

आपके सामने कोई क्रोध अग्नि में जलता हुआ आये, आपको गाली दे, निंदा करे..तो ऐसी आत्मा को भी अपनी शुभ भावना, शुभ कामना द्वारा, वृत्ति द्वारा, स्थिति द्वारा गुण दान या सहनशीलता की शक्ति का वरदान दो। क्रोधी आत्मा परवश है, ऐसी परवश आत्मा को रहम के शीतल जल द्वारा शान्त कर दो, यह आप वरदानी आत्मा का कर्तव्य है। चैतन्य में जब आप में ऐसे संस्कार भरे हैं तब तो जड़ चित्रों द्वारा भक्तों को वरदान मिलते हैं।

स्लोगन:-

याद द्वारा सर्व शक्तियों का खजाना अनुभव करने वाले ही शक्ति सम्पन्न बनते हैं।