24-06-19 प्रात:मुरली मातेश्वरी मधुबन

रिवाइज: 21-06-64 (प्रात:क्लास में सुनाने के लिए मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य)

गीत:-

यह मेरा छोटा-सा संसार है... ओम् शान्ति।

नॉलेजफुल, बेहद का बाप आत्माओं से बात करते हैं। आत्माओं की जो ओरीज्नल स्टेज थी अभी वह कुछ और हो गई है। ऐसे नहीं कहेंगे कि आत्मा सदा से एक ही स्टेज में है। आत्मा भले अनादि है परन्तु उसकी स्टेज बदलती है, जैसे-जैसे समय बीतता जाता है तो उनकी स्थिति बदलती जाती है, वैसे आत्मा अनादि अविनाशी है, लेकिन आत्मा जैसा कर्म करती है वैसा फल पाती है। तो करने वाली रेसपान्सिबुल आत्मा है। तो अभी बाप भी उनसे बात करते हैं, यह तो सबकी बुद्धि में है कि आत्मा का पिता परमपिता परमात्मा है। जब पिता कहते हैं तो जरूर हम उसके पुत्र ठहरे, ऐसे नहीं वो पिता है तो हम भी पिता है। अगर आत्मा सो परमात्मा कहें तो आत्मा को ही परमपिता भी कहें। परन्तु पिता और पुत्र के रिलेशन में पिता कहने में आता है। अगर हम सब भी पितायें है तो फिर पिता कहेगा कौन! जरूर पुत्र और पिता दो चीज़ हैं। पिता कहने का सम्बन्ध पुत्र से बनता है और पुत्र के सम्बन्ध में ही पिता का सम्बन्ध आता है। तो उनको कहा ही जाता है परम पिता परम आत्मा। अभी वह बाप बैठ करके समझाते हैं कि अभी तुम्हारी जो स्थिति है और जो पहले स्थिति थी, उसमें फर्क है। अभी मैं आया हूँ उसी फर्क को मिटाने के लिए। बाप समझ दे करके समझाते हैं कि तुम्हारी जो ओरीज्नल स्टेज थी, अभी उसी को पकड़ लो। कैसे पकड़ो, उसका ज्ञान भी दे रहे हैं तो बल भी दे रहे हैं। कहते हैं तुम मुझे याद करो तो श्रेष्ठ कर्म करने का बल आयेगा, नहीं तो तुम्हारे कर्म श्रेष्ठ नहीं रहेंगे। कई कहते हैं कि हम चाहते हैं कि अच्छा काम करें लेकिन पता नहीं फिर क्या होता है जो हमारा मन अच्छे तरफ लगता नहीं है, दूसरी तरफ लग जाता है क्योंकि आत्मा में अच्छे कर्म करने का बल नहीं है। हमारी स्थिति तमोप्रधान होने के कारण तमो का प्रभाव अभी जोर से है, जो हमको दबाता है इसलिए बुद्धि उसी तरफ जल्दी चली जाती है और अच्छे तरफ बुद्धि जाने में रूकावट आती है। तो बाप कहते हैं अभी मेरे से योग लगाओ और जो मैं समझ देता हूँ, उसी आधार से अपने पापों का जो बोझा है, बन्धन है, जो रूकावटें बन सामने आती हैं उससे अपना रास्ता साफ करते चलो। फिर श्रेष्ठ कर्म करते रहेंगे तो तुम्हारे में सतोप्रधानता की वह पॉवर आती जायेगी, उसी आधार से तुम फिर से उस स्थिति को प्राप्त करेंगे जो तुम्हारी असुल थी। फिर जैसी आत्मा वैसा शरीर भी मिलेगा और संसार भी वैसा ही होगा। तो ऐसा संसार अभी परमपिता परमात्मा बनाते हैं इसलिए उसको कहा जाता है वर्ल्ड क्रियेटर, परन्तु ऐसे नहीं कि दुनिया कभी है ही नहीं जो बैठ करके बनाते हैं, लेकिन ऐसी और इस तरीके से दुनिया बनाते हैं। दूसरे किसी को भी दुनिया बनाने वाला नहीं कहेंगे, क्राइस्ट आया, बुद्ध आया तो उसने अपना नया धर्म स्थापन किया लेकिन दुनिया को बदलना और दुनिया बनाना, यह काम उसका है जो वर्ल्ड क्रियेटर, वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी है। तो यह भी समझना है कि उनका कर्तव्य सभी आत्माओं से भिन्न है, लेकिन वह भी अपना कर्तव्य वा एक्ट अन्य आत्माओं की तरह इस मनुष्य सृष्टि में ही आ करके करते हैं। बाकी तो हरेक आत्मा का एक्ट अपना चलता है, ऐसे नहीं कहेंगे कि यह सभी एक्ट परमात्मा का ही चलता है, यह हरेक आत्मा का अपना-अपना कर्म का खाता चलता है, जो करते हैं सो पाते हैं, उसमें फिर कई अच्छी आत्मायें भी हैं, जैसे क्राइस्ट, बुद्ध आये, इस्लामी आये, गांधी आया, जो जो अच्छे अच्छे आये वे सब अपना-अपना पार्ट प्ले करके गये। इसी तरह से आप आत्माओं का भी बहुत जन्मों का पार्ट है। एक शरीर छोड़ा दूसरा लिया, हर एक का जितने भी जन्मों का हिसाब होगा, आत्मा वह पार्ट बजाती है। आत्मा में सारा रिकॉर्ड भरा हुआ है, जो वो प्ले करती है। यह है प्ले करने का स्थान, इसलिये इसको नाटक भी कहते हैं, ड्रामा भी कहते हैं। इसमें एक बार परमात्मा का भी एक्ट है, इसलिये उनके एक्ट की महिमा सबसे ऊंच है। लेकिन ऊंचा किसमें हैं? वह आ करके हमारी दुनिया को बदलते हैं। यह है ही कर्म का खेत, जहाँ हरेक मनुष्य आत्मा अपना-अपना पार्ट प्ले करती है। इसमें परमात्मा का भी पार्ट है लेकिन वह आत्माओं के सदृश्य जन्म-मरण में नहीं आते हैं। आत्माओं के सदृश्य उनके कर्म का खाता उल्टा नहीं बनता है। वह कहते हैं मैं तो सिर्फ तुम आत्माओं को लिबरेट करने आता हूँ इसीलिये मुझे लिब्रेटर, बन्धन से छुड़ाने वाला गति सद्गति दाता कहते हैं। आत्मा पर माया का जो बन्धन चढ़ा है, उसे उतारकर प्युअर बनाते हैं और कहते हैं कि मेरा काम है आत्माओं को सर्व बन्धनों से छुड़ा करके वापस ले जाना, तो सृष्टि के जो अनादि नियम और कायदे हैं उन्हें भी समझना है, फिर इस मनुष्य सृष्टि की वृद्धि किस तरह से होती है, फिर वह टाइम भी आता है जब यह कम होती है। ऐसे नहीं कि बढ़ती है तो बढ़ती ही जाती है, नहीं। कम भी होती है। तो सृष्टि में हर चीज़ का नियम है। अपने शरीर का भी नियम है, पहले बाल, फिर किशोर, फिर युवा, फिर वृद्ध। तो वृद्ध भी जल्दी नहीं, वृद्ध होते-होते जड़जड़ीभूत हो जाते हैं तो हर बात का बढ़ना और उसका अन्त होना, यह भी नियम है। इसी तरह से सृष्टि की जनरेशन्स का भी नियम है। एक जीवन की भी स्टेजेज़ हैं तो फिर जन्मों की भी स्टेजेज़ हैं, फिर जनरेशन्स भी जो चली उसकी भी स्टेजेज़ हैं, इसी तरह सभी धर्मों की भी स्टेजेज़ हैं। पहला जो धर्म है वह सबसे ताकत वाला है, पीछे आहिस्ते-आहिस्ते जो आते हैं, उनकी ताकत कम होती जाती है। तो धर्मों का बंटना, धर्मों का चलना, हरेक बात नियमों से चलती है, इन सब बातों को भी समझना है। इसी हिसाब से बाप भी कहते हैं मेरा भी इसमें पार्ट है। मैं भी एक सोल हूँ, मैं गॉड कोई दूसरी चीज़ नहीं हूँ। मैं भी सोल ही हूँ परन्तु मेरा काम बहुत बड़ा और ऊंचा है इसलिये मुझे गॉड कहते हैं। जैसी तुम आत्मा हो मैं भी वैसा ही हूँ। जैसे आपका बच्चा है वो भी तो मनुष्य है, आप भी तो मनुष्य हो, उसमें तो कोई फर्क नहीं है ना। तो मैं भी आत्मा ही हूँ, आत्मा, आत्मा में कोई फर्क नहीं है लेकिन कर्तव्य में बहुत भारी फर्क है इसीलिये कहते हैं मेरा जो कर्तव्य है वह सबसे भिन्न है। मैं कोई हद के एक धर्म का स्थापक नहीं हूँ, मैं तो दुनिया का क्रियेटर हूँ, वो हो गये धर्म के क्रियेटर। जैसे वो आत्मायें अपना काम अपने समय पर करती हैं, वैसे मैं भी अपने समय पर आता हूँ। मेरा कर्तव्य विशाल है, मेरा कर्तव्य महान है और सबसे निराला है इसलिये कहते हैं तेरे काम निराले। उनको सर्वशक्तिवान भी कहते हैं, सबसे शक्तिशाली काम है आत्माओं को माया के बंधनों से छुड़ाना और नई दुनिया का सैपलिंग लगाना इसलिए उनको अंग्रेजी में कहते हैं हेविनली गॉड फादर। जैसे क्राइस्ट को कहेंगे क्रिश्चियनिटी का फादर, उनको हेविनली गॉड फादर नहीं कहेंगे। हेविन का स्थापक परमात्मा है। तो हेविन वर्ल्ड हो गई ना, हेविन कोई एक धर्म नहीं है। तो वह वर्ल्ड का स्थापक हो गया और उस वर्ल्ड में एक धर्म, एक राज्य होगा, तत्व आदि सब चेन्ज हो जायेंगे इसलिये बाप को कहते हैं हेविनली गॉड फादर। दूसरा, गॉड इज़ ट्रूथ कहते हैं, तो ट्रूथ क्या चीज़ है, किसमें ट्रूथ? यह भी समझने की बात है। कई समझते हैं कि जो सच बोलता है वही गॉड है। गॉड कोई और चीज़ नहीं है, बस सच बोलना चाहिए। परन्तु नहीं, गॉड इज ट्रूथ का मतलब ही है कि गॉड ने ही आ करके सभी बातों की सच्चाई बताई है, गॉड इज ट्रूथ माना गॉड ही ट्रूथ बतलाता है, उसमें ही सच्चाई है, तब तो उनको नॉलेजफुल कहते हैं। ओशन ऑफ नॉलेज, ओशन ऑफ ब्लिस, गॉड नोज़, (ईश्वर जानता है)... तो जरूर विशेष कुछ जानने की बात है ना! तो वह कौनसी जानकारी है? यह नहीं कि इसने चोरी की, गॉड नोज़। भले वह जानता सबकुछ है परन्तु उसकी महिमा जो है ना, वह इसी पर है कि हमारी दुनिया जो नीचे गिरी है वह ऊंची कैसे चढ़े, इस चक्र की बातों को वह जानता है इसलिये कहते हैं गॉड नोज़। तो परमात्मा की महिमा उस तरीके से आती है जो मनुष्य से भिन्न है क्योंकि उनका जानना सबसे भिन्न है। मनुष्य का जानना हद है, कहते भी हैं मनुष्य अल्पज्ञ है और परमात्मा के लिए कहते हैं वह सर्वज्ञ है, जिसको अंग्रेजी में नॉलेजफुल कहते हैं यानि सर्व का ज्ञाता अथवा जानने वाला है। तो जो सर्वज्ञ है वही ट्रूथ को जान सकता है, यथार्थ बातों की नॉलेज जिसके पास होगी, जरूर वह सबको देगा ना। अगर खुद जाने, दूसरों को न दे तो उससे हमें क्या फायदा! जानने दो। परन्तु नहीं। उसके जानकारी से हमें कोई फायदा मिला है, तब तो हम उसकी क्वालिफिकेशन्स गाते हैं। उसके पीछे पड़ते हैं। कभी कुछ भी होता है तो कहते हैं हे भगवान! अब तू यह कर! खैर कर, रहम कर, मेरा दु:ख दूर कर, तो हम उससे मांगते हैं ना। उससे कुछ सम्बन्ध है ना इसलिए उस तरीके से याद करते हैं, जैसे उसने हमारे पर कोई एहसान किया है। अगर कभी किया ही नहीं होता तो हम क्यों उसके लिये माथाकुटी करते। जब कोई मुसीबत के समय मदद करता है तो दिल में आता है कि इसने बड़ी मुसीबत के समय मुझे हेल्प की थी। समय पर मेरी रक्षा की थी, तो उसके प्रति दिल में प्रेम रहता है। तो परमात्मा के प्रति भी ऐसा ही प्रेम आता है कि उसने हमारी समय पर मदद की है। परन्तु ऐसे नहीं कि कभी कोई मनुष्य का अच्छा हो गया तो कहें यह भगवान ने किया... बस भगवान ऐसा ही करता है। लेकिन उसका बड़ा काम है, वर्ल्ड का काम है, दुनिया के सम्बन्ध की बात है। बाकी ऐसे नहीं कि किसी को थोड़ा पैसा मिल गया, यह भगवान ने किया, यह तो हम भी अच्छे कर्म करते हैं, तो उस कर्म का फल मिलता है। अच्छे बुरे कर्मों का हिसाब चलता है, उसका भी हम पाते रहते हैं लेकिन परमात्मा ने आ करके जो कर्म सिखाया उसका जो फल है, वह अलग है। अल्पकाल का सुख तो बुद्धि के आधार पर भी मिलता है। परन्तु उसने जो नॉलेज दी उससे हम सदा सुख पाते हैं। तो परमात्मा का काम भिन्न हो गया ना इसलिए कहते हैं कि मैं ही आ करके कर्म की जो यथार्थ नॉलेज है वो सिखाता हूँ, जिसको कहा है कर्मयोग श्रेष्ठ है, इसमें कर्म को, घर गृहस्थ को छोड़ने की बात नहीं है। सिर्फ तुम अपने कर्मों को पवित्र कैसे बनाओ, उसकी नॉलेज मैं बतलाता हूँ। तो कर्म को पवित्र बनाना है, कर्म छोड़ना नहीं है। कर्म तो अनादि चीज़ है। यह कर्मक्षेत्र भी अनादि है। मनुष्य है तो कर्म भी है, परन्तु उस कर्म को तुम श्रेष्ठ कैसे बनाओ वह आ करके सिखाता हूँ जिससे फिर तुम्हारे कर्म का खाता अकर्म रहता है। अकर्म का मतलब है कोई बुरा खाता नहीं बनता है। अच्छा।

ऐसे बापदादा और माँ के मीठे-मीठे बहुत अच्छे, खबरदार रहने वाले बच्चों के प्रति यादप्यार और गुडमार्निंग। अच्छा।

वरदान:-

सदा उमंग-उत्साह में रह मन से खुशी के गीत गाने वाले अविनाशी खुशनसीब भव

आप खुशनसीब बच्चे अविनाशी विधि से अविनाशी सिद्धियां प्राप्त करते हो। आपके मन से सदा वाह-वाह की खुशी के गीत बजते रहते हैं। वाह बाबा! वाह तकदीर! वाह मीठा परिवार! वाह श्रेष्ठ संगम का सुहावना समय! हर कर्म वाह-वाह है इसलिए आप अविनाशी खुशनसीब हो। आपके मन में कभी व्हाई, आई (क्यों, मैं) नहीं आ सकता। व्हाई के बजाए वाह-वाह और आई के बजाए बाबा-बाबा शब्द ही आता है।

स्लोगन:-

जो संकल्प करते हो उसे अविनाशी गवर्मेन्ट की स्टैम्प लगा दो तो अटल रहेंगे।