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19-07-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम यहाँ याद में रहकर पाप दग्ध करने के लिए आये हो इसलिए बुद्धियोग निष्फल न जाए, इस बात का पूरा ध्यान रखना हैˮ

प्रश्नः-

कौन-सा सूक्ष्म विकार भी अन्त में मुसीबत खड़ी कर देता है?

उत्तर:-

अगर सूक्ष्म में भी हबच (लालच) का विकार है, कोई चीज़ हबच के कारण इकट्ठी करके अपने पास जमा करके रख दी तो वही अन्त में मुसीबत के रूप में याद आती है इसलिए बाबा कहते - बच्चे, अपने पास कुछ भी न रखो। तुम्हें सब संकल्पों को भी समेटकर बाप की याद में रहने की टेव (आदत) डालनी है इसलिए देही-अभिमानी बनने का अभ्यास करो।

ओम् शान्ति। बच्चों को रोज़-रोज़ याद दिलाते हैं - देही-अभिमानी बनो क्योंकि बुद्धि इधर-उधर जाती है। अज्ञानकाल में भी कथा वार्ता सुनते हैं तो बुद्धि बाहर भटकती है। यहाँ भी भटकती है इसलिए रोज़-रोज़ कहते हैं देही-अभिमानी बनो। वह तो कहेंगे हम जो सुनाते हैं उस पर ध्यान दो, धारण करो। शास्त्र जो सुनाते हैं वह वचन ध्यान पर रखो। यहाँ तो बाप आत्माओं को समझाते हैं, तुम सब स्टूडेण्ट देही-अभिमानी होकर बैठो। शिवबाबा आते हैं पढ़ाने के लिए। ऐसा कोई कॉलेज नहीं होगा जहाँ समझेंगे शिवबाबा पढ़ाने आते हैं। ऐसा स्कूल होना ही चाहिए पुरूषोत्तम संगमयुग पर। स्टूडेण्ट बैठे हैं और यह भी समझते हैं परमपिता परमात्मा आते हैं हमको पढ़ाने। शिवबाबा आते हैं हमको पढ़ाने। पहली-पहली बात समझाते हैं तुमको पावन बनना है तो मामेकम् याद करो परन्तु माया घड़ी-घड़ी भुला देती है इसलिए बाप ख़बरदार करते हैं। कोई को समझाना है तो भी पहली-पहली बात समझाओ कि भगवान् कौन है? भगवान् जो पतित-पावन दु:ख हर्ता, सुख कर्ता है, वह कहाँ है? उनको याद तो सब करते हैं। जब कोई आ़फतें आती हैं, कहते हैं हे भगवान् रहम करो। किसको बचाना होता है तो भी कहते हैं हे भगवान्, ओ गॉड हमको दु:ख से लिबरेट करो। दु:ख तो सबको है। यह तो पक्का मालूम है सतयुग को सुखधाम कहा जाता है, कलियुग को दु:खधाम कहा जाता है। यह बच्चे जानते हैं फिर भी माया भुला देती है। यह याद में बिठाने की रस्म भी ड्रामा में है क्योंकि बहुत हैं जो सारा दिन याद नहीं करते हैं, एक मिनट भी याद नहीं करते हैं फिर याद दिलाने के लिए यहाँ बिठाते हैं। याद करने की युक्ति बतलाते हैं तो पक्का हो जाए। बाप की याद से ही हमको सतोप्रधान बनना है। सतोप्रधान बनने की बाप ने फर्स्टक्लास रीयल युक्ति बताई है। पतित-पावन तो एक ही है, वह आकर युक्ति बताते हैं। यहाँ तुम बच्चे शान्ति में तब बैठते हो जबकि बाप के साथ योग है। अगर बुद्धि का योग यहाँ-वहाँ गया तो शान्त में नहीं हैं, गोया अशान्त हैं। जितना समय यहाँ-वहाँ बुद्धियोग गया, वह निष्फल हुआ क्योंकि पाप तो कटते नहीं। दुनिया यह नहीं जानती कि पाप कैसे कटते हैं! यह बड़ी महीन बातें हैं। बाप ने कहा है मेरी याद में बैठो, तो जब तक याद की तार जुटी हुई है, उतना समय सफलता है। ज़रा भी बुद्धि इधर-उधर गई तो वह टाइम वेस्ट हुआ, निष्फल हुआ। बाप का डायरेक्शन है ना कि बच्चे मुझे याद करो, अगर याद नहीं किया तो निष्फल हुआ। इससे क्या होगा? तुम जल्दी सतोप्रधान नहीं बनेंगे फिर तो आदत पड़ जायेगी। यह होता रहेगा। आत्मा इस जन्म के पाप तो जानती है। भल कोई कहते हैं हमको याद नहीं है, परन्तु बाबा कहते हैं 3-4 वर्ष से लेकर सब बातें याद रहती हैं। शुरू में इतने पाप नहीं होते हैं, जितने बाद में होते हैं। दिन-प्रतिदिन क्रिमिनल आई होती जाती है, त्रेता में दो कला कम होती हैं। चन्द्रमा की 2 कला कितने में कम होती हैं। धीरे-धीरे कम होती जाती हैं फिर 16 कला सम्पूर्ण भी चन्द्रमा को कहा जाता है, सूर्य को नहीं कहते। चन्द्रमा की है एक मास की बात, यह फिर है कल्प की बात। दिन-प्रतिदिन नीचे उतरते जाते हैं। फिर याद की यात्रा से ऊपर चढ़ सकते हैं। फिर तो दरकार नहीं जो हम याद करें और ऊपर चढ़ें। सतयुग के बाद फिर उतरना है। सतयुग में भी याद करें तो नीचे उतरे ही नहीं। ड्रामा अनुसार उतरना ही है, तो याद ही नहीं करते हैं। उतरना भी जरूर है फिर याद करने का उपाय बाप ही बतलाते हैं क्योंकि ऊपर जाना है। संगम पर ही आकर बाप सिखलाते हैं कि अब चढ़ती कला शुरू होती है। हमको फिर अपने सुखधाम में जाना है। बाप कहते हैं अब सुखधाम में जाना है तो मुझे याद करो। याद से तुम्हारी आत्मा सतोप्रधान बन जायेगी। तुम दुनिया से निराले हो, बैकुण्ठ दुनिया से बिल्कुल न्यारा है। बैकुण्ठ था, अब नहीं है। कल्प की आयु लम्बी कर देने के कारण भूल गये हैं। अभी तुम बच्चों को तो बैकुण्ठ बहुत नज़दीक दिखाई देता है। बाकी थोड़ा टाइम है। याद की यात्रा में ही कमी है इसलिए समझते हैं अभी टाइम है। याद की यात्रा जितनी होनी चाहिए उतनी नहीं है। तुम पैगाम पहुँचाते हो ड्रामा के प्लैन अनुसार, कोई को पैगाम नहीं देते हैं तो गोया सर्विस नहीं करते हैं। सारी दुनिया में पैगाम तो पहुँचाना है कि बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। गीता पढ़ने वाले जानते हैं, एक ही गीता शास्त्र है, जिसमें यह महावाक्य हैं। परन्तु उसमें कृष्ण भगवानुवाच लिख दिया है तो याद किसको करें। भल शिव की भक्ति करते हैं परन्तु यथार्थ ज्ञान नहीं जो श्रीमत पर चलें। इस समय तुमको मिलती है ईश्वरीय मत, इनके पहले थी मानव मत। दोनों में रात-दिन का फ़र्क है। मानव मत कहती है ईश्वर सर्वव्यापी है। ईश्वर की मत कहती है नहीं। बाप कहते हैं मैं आया हूँ स्वर्ग की स्थापना करने तो जरूर यह नर्क है। यहाँ 5 विकार सबमें प्रवेश हैं। विकारी दुनिया है तब तो मैं आता हूँ निर्विकारी बनाने के लिए। जो ईश्वर के बच्चे बने, उनके पास विकार तो हो नहीं सकते। रावण का चित्र 10 शीश वाला दिखाते हैं। कभी कोई कह न सके कि रावण की सृष्टि निर्विकारी है। तुम जानते हो अभी रावण राज्य है, सभी में 5 विकार हैं। सतयुग में है रामराज्य, कोई भी विकार नहीं। इस समय मनुष्य कितने दु:खी हैं। शरीर को कितने दु:ख लगते हैं, यह है दु:खधाम, सुखधाम में तो शारीरिक दु:ख भी नहीं होते हैं। यहाँ तो कितनी हॉस्पिटल्स भरी हुई हैं, इनको स्वर्ग कहना भी बड़ी भूल है। तो समझकर औरों को समझाना है, वह पढ़ाई कोई को समझाने के लिए नहीं है। इम्तहान पास किया और नौकरी पर चढ़ा। यहाँ तो तुमको सबको पैगाम देना है। सिर्फ एक बाप थोड़ेही देंगे। जो बहुत होशियार हैं उनको टीचर कहा जाता है, कम होशियार हैं तो उनको स्टूडेण्ट कहा जाता है। तुम्हें सबको पैगाम देना है, पूछना है भगवान् को जानते हो? वह तो बाप है सबका। तो मूल बात है बाप का परिचय देना क्योंकि कोई जानते नहीं हैं। ऊंच ते ऊंच बाप है, सारे विश्व को पावन बनाने वाला है। सारा विश्व पावन था, जिसमें भारत ही था। और कोई धर्म वाला कह न सके कि हम नई दुनिया में आये हैं। वह तो समझते हैं हमारे से आगे कोई होकर गये हैं। क्राइस्ट भी जरूर कोई में आयेगा। उनके आगे जरूर कोई थे। बाप बैठ समझाते हैं मैं इस ब्रह्मा तन में प्रवेश करता हूँ। यह भी कोई मानते नहीं कि ब्रह्मा के तन में आते हैं। अरे, ब्राह्मण तो चाहिए जरूर। ब्राह्मण कहाँ से आयेंगे। जरूर ब्रह्मा से ही तो आयेंगे ना। अच्छा, ब्रह्मा का बाप कभी सुना? वह है ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर। उनका साकार फादर कोई नहीं। ब्रह्मा का साकार बाप कौन? कोई बतला न सके। ब्रह्मा तो गाया हुआ है। प्रजापिता भी है। जैसे निराकार शिवबाबा कहते हैं, उनका बाप बताओ? फिर साकार प्रजापिता ब्रह्मा का बाप बताओ। शिवबाबा तो एडाप्ट किया हुआ नहीं है। यह एडाप्ट किया हुआ है। कहेंगे इनको शिवबाबा ने एडाप्ट किया। विष्णु को शिवबाबा ने एडाप्ट किया है, ऐसा नहीं कहेंगे। यह तो तुम जानते हो ब्रह्मा सो विष्णु बनते हैं। एडाप्ट तो हुआ नहीं। शंकर के लिए भी बताया है, उनका कोई पार्ट है नहीं। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा यह 84 का चक्र है। शंकर फिर कहाँ से आया। उनकी रचना कहाँ है। बाप की तो रचना है, वह सब आत्माओं का बाप है और ब्रह्मा की रचना हैं सब मनुष्य। शंकर की रचना कहाँ है? शंकर से कोई मनुष्य दुनिया नहीं रची जाती। बाप आकर यह सब बातें समझाते हैं फिर भी बच्चे घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। हरेक की बुद्धि नम्बरवार है ना। जितनी बुद्धि उतनी टीचर की पढ़ाई धारण कर सकते हैं। यह है बेहद की पढ़ाई। पढ़ाई के अनुसार ही नम्बरवार पद पाते हैं। भल पढ़ाई एक ही है मनुष्य से देवता बनने की परन्तु डिनायस्टी बनती है ना। यह भी बुद्धि में आना चाहिए कि हम कौन-सा पद पायेंगे? राजा बनना तो मेहनत का काम है। राजाओं के पास दास-दासियां भी चाहिए। दास-दासियां कौन बनते हैं, यह भी तुम समझ सकते हो। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार हरेक को दासियां मिलती होंगी। तो ऐसा नहीं पढ़ना चाहिए जो जन्म-जन्मान्तर दास-दासी बनें। पुरूषार्थ करना है ऊंच बनने का। तो सच्ची शान्ति बाप की याद में है, जरा भी बुद्धि इधर-उधर गई तो टाइम वेस्ट होगा। कमाई कम होगी। सतोप्रधान बन नहीं सकेंगे। यह भी समझाया है कि हाथों से काम करते रहो, दिल से बाप को याद करो। शरीर को तन्दरूस्त रखने के लिए घूमना फिरना, यह भी भल करो। परन्तु बुद्धि में बाप की याद रहे। अगर साथ में कोई हो तो झरमुई-झगमुई नहीं करनी है। यह तो हर एक की दिल गवाही देती है। बाबा समझा देते हैं ऐसी अवस्था में चक्कर लगाओ। पादरी लोग जाते हैं एकदम शान्त में, तुम लोग ज्ञान की बातें सारा समय तो नहीं करेंगे फिर जबान को शान्त में लाकर शिवबाबा की याद में रेस करनी चाहिए। जैसे खाने के समय बाबा कहते हैं - याद में बैठकर खाओ, अपना चार्ट देखो। बाबा अपना तो बताते हैं कि हम भूल जाते हैं। कोशिश करता हूँ, बाबा को कहता हूँ बाबा हम पूरा समय याद में रहूँगा। आप हमारी खाँसी बंद करो। शुगर कम करो। अपने साथ जो मेहनत करता हूँ, वह बताता हूँ। परन्तु मैं खुद ही भूल जाता हूँ तो खाँसी कम कैसे होगी। जो बातें बाबा के साथ करता हूँ, वह सच सुनाता हूँ। बाबा बच्चों को बता देते हैं, बच्चे बाप को नहीं सुनाते, लज्जा आती है। झाड़ू लगाओ, खाना बनाओ तो भी शिवबाबा की याद में बनाओ तो ताकत आयेगी। यह भी युक्ति चाहिए, इसमें तुम्हारा ही कल्याण होगा फिर तुम याद में बैठेंगे तो औरों को भी कशिश होगी। एक-दो को कशिश तो होती है ना। जितना तुम जास्ती याद में रहेंगे उतना सन्नाटा अच्छा हो जायेगा। एक-दो का प्रभाव ड्रामा अनुसार पड़ता है। याद की यात्रा तो बहुत कल्याणकारी है, इसमें झूठ बोलने की दरकार नहीं है। सच्चे बाप के बच्चे हैं तो सच्चा होकर चलना है। बच्चों को तो सब कुछ मिलता है। विश्व की बादशाही मिलती है तो फिर लोभ कर 10-20 साड़ियाँ आदि क्यों इकट्ठी करते हो। अगर बहुत चीजें इकट्ठी करते रहेंगे तो मरने समय भी याद आयेगी इसलिए मिसाल देते हैं कि स्त्री ने उनको कहा लाठी भी छोड़ दो, नहीं तो यह भी याद आयेगी। कुछ भी याद नहीं रहना चाहिए। नहीं तो अपने लिए ही मुसीबत लाते हैं। झूठ बोलने से सौगुणा पाप चढ़ जाता है। शिवबाबा का भण्डारा सदैव भरा रहता है, जास्ती रखने की भी दरकार क्या है। जिसकी चोरी हो जाती है तो सब कुछ दिया जाता है। तुम बच्चों को बाप से राजाई मिलती है, तो क्या कपड़े आदि नहीं मिलेंगे। सिर्फ फालतू खर्चा नहीं करना चाहिए क्योंकि अबलायें ही मदद करती हैं स्वर्ग की स्थापना में। उनके पैसे ऐसे बरबाद भी नहीं करने चाहिए। वह तुम्हारी परवरिश करती हैं तो तुम्हारा काम है उन्हों की परवरिश करना। नहीं तो सौ गुणा पाप सिर पर चढ़ता है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) बाप की याद में बैठते समय ज़रा भी बुद्धि इधर-उधर नहीं भटकनी चाहिए। सदा कमाई जमा होती रहे। याद ऐसी हो जो सन्नाटा हो जाए।

2) शरीर को तन्दुरूस्त रखने के लिये घूमने फिरने जाते हो तो आपस में झरमुई-झगमुई (परचिंतन) नहीं करना है। जबान को शान्त में रख बाप को याद करने की रेस करनी है। भोजन भी बाप की याद में खाना है।

वरदान:-

सम्बन्ध-सम्पर्क में सन्तुष्टता की विशेषता द्वारा माला में पिरोने वाले सन्तुष्टमणी भव

संगमयुग सन्तुष्टता का युग है। जो स्वयं से भी सन्तुष्ट हैं और सम्बन्ध-सम्पर्क में भी सदा सन्तुष्ट रहते वा सन्तुष्ट करते हैं वही माला में पिरोते हैं क्योंकि माला सम्बन्ध से बनती है। अगर दाने का दाने से सम्पर्क नहीं हो तो माला नहीं बनेंगी इसलिए सन्तुष्टमणी बन सदा सन्तुष्ट रहो और सर्व को सन्तुष्ट करो। परिवार का अर्थ ही है सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना। कोई भी प्रकार की खिटखिट न हो।

स्लोगन:-

विघ्नों का काम है आना और आपका काम है विघ्न-विनाशक बनना।