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23-07-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन
“मीठे बच्चे - याद से ही बैटरी चार्ज होगी, शक्ति मिलेगी, आत्मा सतोप्रधान बनेगी इसलिए याद की यात्रा पर विशेष अटेन्शन दोˮ
प्रश्नः-
जिन बच्चों का प्यार एक बाप से है, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
1. यदि एक बाप से प्यार है तो बाप की नज़र उन्हें निहाल कर देगी,
2. वे पूरा नष्टोमोहा होंगे,
3. जिन्हें बेहद के बाप का प्यार पसन्द आ गया, वह और किसी के प्यार में फँस नहीं सकते,
4. उनकी बुद्धि झूठ खण्ड के झूठे मनुष्यों से टूट जाती है। बाबा तुम्हें अभी ऐसा प्यार देते हैं जो अविनाशी बन जाता है। सतयुग में भी तुम आपस में बहुत प्यार से रहते हो।
ओम् शान्ति।
बेहद के बाप का प्यार अभी एक ही बार तुम बच्चों को मिलता है,
जिस प्यार को भक्ति में भी बहुत याद करते हैं।
बाबा, बस आपका ही प्यार चाहिए।
तुम मात पिता..... तुम ही सब-कुछ हो।
एक से ही आधाकल्प के लिए प्यार मिल जाता है।
तुम्हारे इस रूहानी प्यार की महिमा अपरम्पार है।
बाप ही तुम बच्चों को शान्तिधाम का मालिक बनाते हैं।
अभी तुम दु:खधाम में हो।
अशान्ति और दु:ख में सब चिल्लाते हैं।
धनी धोणी किसका नहीं है
इसलिए भक्ति मार्ग में याद करते हैं।
परन्तु कायदेसिर भक्ति का भी समय होता है आधाकल्प।
यह तो बच्चों को समझाया है, ऐसे नहीं कि बाप अन्तर्यामी है।
बाप को सबके अन्दर जानने की दरकार ही नहीं।
वह तो थॉट रीडर्स होते हैं।
वह भी यह विद्या सीखते हैं।
यहाँ वह बात ही नहीं।
बाप आते हैं, बाप और बच्चे ही यह सारा पार्ट बजाते हैं।
बाप जानते हैं सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है।
उसमें बच्चे कैसे पार्ट बजाते हैं।
ऐसे नहीं कि वह हर एक के अन्दर को जानते हैं।
यह तो रात को भी समझाया कि हर एक के अन्दर तो विकार ही हैं।
बहुत छी-छी मनुष्य हैं।
बाप आकर गुल-गुल (फूल) बनाते हैं।
यह बाप का प्यार तुम बच्चों को
एक ही बार मिलता है जो फिर अविनाशी हो जाता है।
वहाँ तुम एक-दो से बहुत प्यार करते हो।
अभी तुम मोहजीत बन रहे हो।
सतयुगी राज्य को मोहजीत राजा, रानी तथा प्रजा का राज्य कहा जाता है।
वहाँ कभी कोई रोते नहीं।
दु:ख का नाम नहीं।
तुम बच्चे जानते हो बरोबर भारत में हेल्थ, वेल्थ और हैप्पीनेस था,
अब नहीं है
क्योंकि अभी रावण राज्य है।
इसमें सब दु:ख भोगते हैं,
फिर बाप को याद करते हैं कि
आकर सुख-शान्ति दो, रहम करो।
बेहद का बाप है रहमदिल।
रावण है बेरहम करने वाला, दु:ख का रास्ता बताने वाला।
सब मनुष्य दु:ख के रास्ते पर चलते हैं।
सबसे बड़े ते बड़ा दु:ख देने वाला है काम विकार
इसलिए बाप कहते हैं - मीठे-मीठे बच्चों, काम विकार पर जीत पहनो तो जगतजीत बनेंगे।
इन लक्ष्मी-नारायण को जगत जीत कहेंगे ना।
तुम्हारे सामने एम ऑबजेक्ट खड़ी है।
मन्दिरों में भल जाते हैं परन्तु उनकी बायोग्राफी कुछ नहीं जानते।
जैसे गुड़ियों की पूजा होती है।
देवियों की पूजा करते हैं, रचकर खूब श्रृंगार कराकर भोग आदि लगाते हैं।
परन्तु वह देवियाँ तो कुछ भी खाती नहीं।
खा जाते हैं ब्राह्मण लोग।
क्रियेट कर फिर पालना कर विनाश कर देते,
इसको कहा जाता है अन्धश्रद्धा।
सतयुग में यह बातें होती नहीं।
यह सब रस्म रिवाज निकलती है कलियुग में।
तुम पहले-पहले एक शिवबाबा की पूजा करते हो,
जिसको अव्यभिचारी राइटियस पूजा कहा जाता है।
फिर होती है व्यभिचारी पूजा।
‘बाबा' अक्षर कहने से ही परिवार की खुशबू आती है।
तुम भी कहते हो ना तुम मात-पिता...... तुम्हारे इस ज्ञान देने की कृपा से हमको सुख घनेरे मिलते हैं।
बुद्धि में याद है कि हम पहले-पहले मूलवतन में थे।
वहाँ से यहाँ आते हैं शरीर लेकर पार्ट बजाने।
पहले-पहले हम दैवी चोला लेते हैं अर्थात् देवता कहलाते हैं।
फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र वर्ण में आते भिन्न-भिन्न पार्ट बजाते हैं।
यह बातें तुम पहले नहीं जानते थे।
अब बाबा ने आकर आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज तुम बच्चों को दिया है।
अपनी भी नॉलेज दी है कि मैं इस तन में प्रवेश करता हूँ।
यह अपने 84 जन्मों को नहीं जानते थे।
तुम भी नहीं जानते थे।
श्याम-सुन्दर का राज़ तो समझाया है।
यह श्रीकृष्ण है नई दुनिया का पहला प्रिन्स और राधे सेकण्ड नम्बर में।
थोड़े वर्ष का फ़र्क पड़ता है।
सृष्टि के आदि में इनको पहले नम्बर में कहा जाता है इसलिए ही कृष्ण को सब प्यार करते हैं, इनको ही श्याम और सुन्दर कहा जाता है।
स्वर्ग में तो सब सुन्दर ही थे।
अभी स्वर्ग कहाँ है!
चक्र फिरता रहता है।
ऐसे नहीं कि समुद्र के नीचे चले जाते हैं।
जैसे कहते हैं लंका, द्वारिका नीचे चली गई।
नहीं, यह चक्र फिरता है।
इस चक्र को जानने से तुम
चक्रवर्ती महाराजा-महारानी विश्व के मालिक बनते हो।
प्रजा भी तो अपने को मालिक समझती है ना।
कहेंगे, हमारा राज्य है।
भारतवासी कहेंगे हमारा राज्य है।
भारत नाम है।
हिन्दुस्तान नाम रांग है।
वास्तव में आदि सनातन देवी-देवता धर्म ही है।
परन्तु धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट होने कारण अपने को देवता नहीं कह सकते।
यह भी ड्रामा की नूँध है।
नहीं तो बाप कैसे आकर फिर से देवी-देवता धर्म की स्थापना करे।
आगे तुमको भी इन सब बातों का मालूम नहीं था,
अब बाप ने समझाया है।
ऐसा मीठा बाबा, उनको भी फिर तुम भूल जाते हो!
सबसे मीठा बाबा है ना।
बाकी रावण राज्य में तुमको सब दु:ख ही देते हैं ना,
इसलिए बेहद के बाप को याद करते हैं।
उनकी याद में प्रेम के आंसू बहाते हैं -
हे साजन, कब आकर सजनियों से मिलेंगे?
क्योंकि तुम सब हो भक्तियां।
भक्तियों का पति हुआ भगवान्।
भगवान् आकर
भक्ति का फल देते हैं,
रास्ता बताते हैं और
समझाते हैं - यह 5 हज़ार वर्ष का खेल है।
रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को कोई भी मनुष्य नहीं जानते हैं।
रूहानी बाप और रूहानी बच्चे ही जानते हैं।
कोई मनुष्य नहीं जानते, देवतायें भी नहीं जानते।
यह स्प्रीचुअल फादर ही जानते हैं।
वह अपने बच्चों को बैठ समझाते हैं।
और कोई भी देहधारी के पास यह रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज हो न सके।
यह नॉलेज होती ही है रूहानी बाप के पास।
उनको ही ज्ञान-ज्ञानेश्वर कहा जाता है।
ज्ञान-ज्ञानेश्वर तुमको ज्ञान देते हैं, राज-राजेश्वर बनाने के लिए इसलिए
इसको राजयोग कहा जाता है।
बाकी वह सभी हैं हठयोग।
हठयोगियों के भी चित्र बहुत हैं।
सन्यासी जब आते हैं, वह आकर बाद में हठयोग सिखलाते हैं।
जब बहुत वृद्धि हो जाती है तब हठयोग आदि सिखलाते हैं।
बाप ने समझाया है मैं आता ही हूँ संगम पर, आकर राजधानी स्थापन करता हूँ।
स्थापना यहाँ करते हैं, न कि सतयुग में।
सतयुग आदि में तो राजाई है तो जरूर संगम पर स्थापना होती है।
यहाँ कलियुग में हैं सब पुजारी, सतयुग में हैं पूज्य।
तो बाप पूज्य बनाने के लिए आते हैं।
पुजारी बनाने वाला है रावण।
यह सब जानना चाहिए ना।
यह है ऊंच ते ऊंच पढ़ाई।
इस टीचर को कोई जानते नहीं।
वह सुप्रीम बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है।
यह कोई नहीं जानते।
बाप ही आकर अपना पूरा परिचय देते हैं।
बच्चों को खुद पढ़ाकर फिर साथ में ले जाते हैं।
बेहद के बाप का लव मिलता है तो फिर और कोई लव पसन्द नहीं आता।
इस समय है ही झूठ खण्ड।
झूठी माया, झूठी काया...... भारत अब झूठ खण्ड है
फिर सतयुग में होगा सच खण्ड।
भारत कभी विनाश को नहीं पाता है।
यह है सबसे बड़े ते बड़ा तीर्थ।
जहाँ बेहद का बाप बच्चों को बैठ सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त का राज़ समझाते हैं और सर्व की सद्गति करते हैं।
यह बहुत बड़ा तीर्थ है।
भारत की महिमा अपरम्पार है।
परन्तु यह भी तुम समझ सकते हो
भारत है वन्डर ऑफ वर्ल्ड।
वह हैं माया के 7 वन्डर्स।
ईश्वर का वन्डर एक ही है।
बाप एक,
उनका वन्डरफुल स्वर्ग भी एक है।
उनको ही हेविन, पैराडाइज़ कहते हैं।
सच्चा-सच्चा नाम एक ही है स्वर्ग,
यह है नर्क।
ऑलराउन्ड चक्र तुम ब्राह्मण ही लगाते हो।
हम सो ब्राह्मण, सो देवता.......।
चढ़ती कला, उतरती कला।
चढ़ती कला तेरे भाने सर्व का भला।
भारतवासी ही चाहते हैं कि विश्व में शान्ति भी हो, सुख भी हो।
स्वर्ग में तो है ही सुख, दु:ख का नाम नहीं।
उनको कहा जाता है ईश्वरीय राज्य।
सतयुग में सूर्यवंशी फिर सेकण्ड ग्रेड में हैं चन्द्रवंशी।
तुम हो आस्तिक, वह हैं नास्तिक।
तुम धनी के बन बाप से वर्सा लेने का पुरूषार्थ करते हो।
तुम्हारी माया के साथ गुप्त लड़ाई चलती है।
बाप आते हैं रात्रि को।
शिवरात्रि है ना।
परन्तु शिव की रात्रि का भी अर्थ नहीं समझते।
ब्रह्मा की रात पूरी होती है, दिन शुरू होता है।
वह कहते हैं कृष्ण भगवानुवाच, यह तो है शिव भगवानुवाच।
अब राइट कौन?
कृष्ण तो पूरे 84 जन्म लेते हैं।
बाप कहते हैं मैं आता हूँ साधारण बूढ़े तन में।
यह भी अपने जन्मों को नहीं जानते हैं।
बहुत जन्मों के अन्त में जब पतित बन जाते हैं तो पतित सृष्टि, पतित राज्य में आता हूँ।
पतित दुनिया में अनेक राज्य, पावन दुनिया में होता है एक राज्य।
हिसाब है ना।
भक्ति मार्ग में जब बहुत नौधा भक्ति करते हैं,
सिर काटने पर आ जाते हैं तब उनकी मनोकामना पूरी होती है।
बाकी उसमें रखा कुछ भी नहीं हैं, उसको कहा जाता है नौधा भक्ति।
जबसे रावण राज्य शुरू होता है तब से भक्ति के कर्मकाण्ड की बातें मनुष्य पढ़ते-पढ़ते नीचे आ जाते हैं,
कहते हैं व्यास भगवान् ने शास्त्र बनाये, क्या-क्या बैठ लिखा है?
भक्ति और ज्ञान का राज़ अभी तुम बच्चों ने समझा है।
सीढ़ी और झाड़ में यह सब समझानी है।
उसमें 84 जन्म भी दिखाये हैं।
सब तो 84 जन्म नहीं लेते हैं।
जो शुरू में आये होंगे वही पूरे 84 जन्म लेंगे।
यह नॉलेज तुमको अभी ही मिलती है
फिर सोर्स ऑफ इनकम हो जाती है।
21 जन्म कोई अप्राप्त वस्तु नहीं रहती है, जिसकी प्राप्ति के लिए पुरूषार्थ करना पड़े।
उसको कहा जाता बाप का एक ही स्वर्ग है वन्डर ऑफ दी वर्ल्ड।
नाम ही है पैराडाइज़।
उनका बाप मालिक बनाते हैं।
वह तो सिर्फ वन्डर्स दिखाते हैं, परन्तु तुमको तो बाप उसका मालिक बनाते हैं
इसलिए अब बाप कहते हैं निरन्तर मुझे याद करो।
सिमर-सिमर सुख पाओ, कलह कलेष मिटे सब तन के, जीवनमुक्ति पद पाओ।
पवित्र बनने के लिए याद की यात्रा भी बहुत जरूरी है।
मनमनाभव, तो फिर अन्त मती सो गति हो जायेगी।
गति कहा जाता है शान्तिधाम को।
सद्गति होती है यहाँ।
सद्गति के अगेन्स्ट होती है दुर्गति।
अभी तुम बाप को और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जान गये हो।
तुमको बाप का लव मिलता है।
बाप नज़र से निहाल कर देते हैं।
सम्मुख आकर ही नॉलेज सुनायेंगे ना।
इसमें प्रेरणा की तो कोई बात ही नहीं।
बाप डायरेक्शन देते हैं, ऐसे याद करने से शक्ति मिलेगी।
जैसे बैटरी चार्ज होती है ना।
यह मोटर है, इसकी बैटरी डल हो गई है।
अब सर्वशक्तिमान् बाप के साथ बुद्धि का योग लगाने से फिर तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे।
बैटरी चार्ज हो जायेगी।
बाप ही आकर सबकी बैटरी चार्ज करते हैं।
सर्वशक्तिमान् बाप ही है।
यह मीठी-मीठी बातें बाप ही बैठ समझाते हैं।
वह भक्ति के शास्त्र तो जन्म-जन्मान्तर पढ़ते आये हो।
अब बाप सब धर्म वालों के लिए एक ही बात सुनाते हैं।
कहते हैं अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो तुम्हारे पाप कट जायेंगे।
अब याद करना तुम बच्चों का काम है,
इसमें मूँझने की तो बात ही नहीं है।
पतित-पावन एक बाप ही है।
फिर पावन बन सब घर चले जायेंगे।
सबके लिए यह नॉलेज है।
यह है सहज राजयोग और सहज ज्ञान। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सर्व शक्तिमान् बाप से अपना बुद्धियोग लगाकर बैटरी चार्ज करनी है। आत्मा को सतोप्रधान बनाना है। याद की यात्रा में कभी मूँझना नहीं है।
2) पढ़ाई पढ़कर अपने ऊपर आपेही कृपा करनी है। बाप समान प्यार का सागर बनना है। जैसे बाप का प्यार अविनाशी है, ऐसे सबसे अविनाशी सच्चा प्यार रखना है, मोहजीत बनना है।
वरदान:-
दृढ़ता की शक्ति से मन-बुद्धि को सीट पर सेट करने वाले सहजयोगी भव
बच्चों का बाप से प्यार है इसलिए याद में शक्तिशाली हो बैठने का, चलने का, सेवा करने का अटेन्शन बहुत देते हैं लेकिन मन पर अगर पूरा कन्ट्रोल नहीं है, मन आर्डर में नहीं है तो थोड़ा टाइम अच्छा बैठते हैं फिर हिलना डुलना शुरू कर देते हैं। कभी सेट होते कभी अपसेट। लेकिन एकाग्रता की वा दृढ़ता की शक्ति से मन-बुद्धि को एकरस स्थिति की सीट पर सेट कर दो तो सहजयोगी बन जायेंगे।
स्लोगन:-
जो भी शक्तियां हैं उन्हें समय पर यूज़ करो तो बहुत अच्छे-अच्छे अनुभव होंगे।
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