22-08-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन
"मीठे बच्चे - अब विकर्म करना बन्द करो
क्योंकि अब तुम्हें विकर्माजीत संवत शुरू करना है''
प्रश्नः-
हर एक ब्राह्मण बच्चे को किस एक बात में बाप को फॉलो अवश्य करना है?
उत्तर:-
जैसे बाप स्वयं टीचर बनकर तुम्हें पढ़ाते हैं,
ऐसे बाप के समान हर एक को टीचर बनना है।
जो पढ़ते हो उसे दूसरों को पढ़ाना है।
तुम टीचर के बच्चे टीचर,
सतगुरू के बच्चे सतगुरू भी हो।
तुम्हें सच-खण्ड स्थापन करना है।
तुम सच की नैया पर हो,
तुम्हारी नैया हिलेगी डुलेगी लेकिन
डूब नहीं सकती।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप बैठ बच्चों के साथ रूहरिहान करते हैं...
रूहों से पूछते हैं क्योंकि यह नई नॉलेज है ना।
मनुष्य से देवता बनने की यह है नई नॉलेज अथवा पढ़ाई।
यह तुमको कौन पढ़ाते हैं?
बच्चे जानते हैं रूहानी बाप हम बच्चों को ब्रह्मा द्वारा पढ़ाते हैं।
यह भूलना नहीं चाहिए।
वह बाप है फिर पढ़ाते हैं तो टीचर भी हो गया।
यह भी तुम जानते हो हम पढ़ते ही हैं नई दुनिया के लिए।
हर एक बात में निश्चय होना चाहिए।
नई दुनिया के लिए पढ़ाने वाला बाप ही होता है।
मूल बात ही बाप की हुई।
बाप हमको यह शिक्षा देते हैं ब्रह्मा द्वारा।
कोई द्वारा तो देंगे ना।
गाया हुआ भी है भगवान ब्रह्मा द्वारा राजयोग सिखलाते हैं।
ब्रह्मा द्वारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करते हैं,
जो देवी-देवता धर्म अभी नहीं है।
अब तो है ही कलियुग।
तो सिद्ध होता है स्वर्ग की स्थापना हो रही है।
स्वर्ग में सिर्फ देवी-देवता धर्म वाले हैं,
बाकी इतने सब धर्म होंगे ही नहीं
अर्थात् विनाश हो जायेंगे
क्योंकि सतयुग में और कोई धर्म था ही नहीं।
यह बातें तुम बच्चों की बुद्धि में हैं,
अब तो अनेक धर्म हैं।
अब फिर बाप हमको मनुष्य से देवता बनाते हैं क्योंकि अब संगमयुग है...
यह तो बहुत सहज बात समझाने की है।
त्रिमूर्ति में भी दिखाते हैं - ब्रह्मा द्वारा स्थापना।
किसकी?
स्थापना जरूर नई दुनिया की होगी,
पुरानी की तो नहीं होगी।
बच्चों को यह निश्चय है कि नई दुनिया में रहते ही हैं दैवी गुण वाले देवतायें।
तो अब हमको भी गृहस्थ व्यवहार में रहते दैवी गुण धारण करने हैं।
पहले-पहले काम पर जीत पाकर निर्विकारी बनना है।
कल इन देवी-देवताओं के आगे जाकर कहते भी थे कि आप सम्पूर्ण निर्विकारी हो, हम विकारी हैं।
अपने को विकारी फील करते थे क्योंकि विकार में जाते थे।
अब बाप कहते हैं तुमको भी ऐसे निर्विकारी बनना है।
दैवी गुण धारण करने हैं।
यह विकार काम-क्रोध आदि अगर हैं तो दैवी गुण नहीं कहेंगे।
विकार में जाना, क्रोध करना यह आसुरी गुण है।
देवताओं में लोभ होगा क्या?
वहाँ 5 विकार होते नहीं।
यह है ही रावण की दुनिया...
रावण का जन्म होता है त्रेता और द्वापर के संगम पर।
जैसे यह पुरानी दुनिया और नई दुनिया का संगम है ना,
ऐसे वह भी संगम हो जाता है।
अभी रावण राज्य में बहुत दु:ख है, बीमारी है, इसको कहा ही जाता है रावण राज्य।
रावण को हर वर्ष जलाते हैं।
वाम मार्ग में जाने से विकारी बन जाते हैं...
अब तुमको निर्विकारी बनना है।
यहाँ ही दैवीगुण धारण करने हैं।
जैसा जो कर्म करता है ऐसा ही फल पाता है।
बच्चों से अब कोई विकर्म नहीं होना चाहिए।
एक होता है राजा विकर्माजीत, दूसरा होता है राजा विक्रम...
यह है ही विक्रम संवत यानी रावण विकारियों का संवत।
यह कोई समझते नहीं।
न कल्प की आयु का ही किसको पता है।
वास्तव में विकर्माजीत होते हैं देवतायें।
5 हजार वर्ष में 2500 वर्ष हुए राजा विक्रम के, 2500 वर्ष राजा विकर्माजीत के।
आधा है विक्रम का।
वह लोग भल कहते हैं परन्तु कुछ भी पता नहीं है।
तुम कहेंगे विकर्माजीत का संवत एक वर्ष से शुरू होता है फिर 2500 वर्ष बाद विक्रम संवत शुरू होता है।
अभी विक्रम संवत पूरा होगा फिर तुम विकर्माजीत महाराजा-महारानी बन रहे हो,
जब बन जायेंगे तो विकर्माजीत संवत शुरू हो जायेगा।
यह सब तुम ही जानते हो।
तुमको कहते हैं ब्रह्मा को क्यों बिठाया है?...
अरे, तुम्हारी इनसे क्यों आकर पड़ी है।
हमको पढ़ाने वाला कोई यह थोड़ेही है।
हम तो शिवबाबा से पढ़ते हैं।
यह भी उनसे पढ़ता है।
पढ़ाने वाला तो ज्ञान का सागर है, वह है विचित्र, उनको चित्र अर्थात् शरीर होता नहीं...
उनको कहा ही जाता है निराकार।
वहाँ सब निराकारी आत्मायें रहती हैं।
फिर यहाँ आकर साकारी बनती हैं।
परमपिता परमात्मा को सब याद करते हैं, वह है आत्माओं का पिता।
लौकिक बाप को परम अक्षर नहीं कहेंगे।
यह समझ की बात है ना।
स्कूल के स्टूडेन्ट पढ़ाई पर अटेन्शन देते हैं।
जब कोई मर्तबा पा लेते, बैरिस्टर आदि बन जाते तो फिर पढ़ाई बन्द।
ऐसे थोड़ेही बैरिस्टर बनकर फिर पढ़ेगा।
नहीं, पढ़ाई पूरी हो जाती है।
तुम भी देवता बन गये फिर तुमको पढ़ाई की दरकार नहीं रहती।
2500 वर्ष देवताओं का राज्य चलता है।
यह बातें तुम बच्चे ही जानते हो तुमको फिर औरों को समझाना पड़े।
यह भी ख्याल रखना चाहिए।
पढ़ाते नहीं तो टीचर कैसे ठहरे!
तुम सब टीचर्स हो, टीचर की औलाद हो ना तो तुमको भी टीचर ही बनना है।
तो कितने टीचर्स चाहिए पढ़ाने लिए?
जैसे बाप, टीचर, सतगुरू है, वैसे तुम भी टीचर हो।
सतगुरू के बच्चे सतगुरू हो।
वह कोई सतगुरू नहीं हैं।
वह गुरू के बच्चे गुरू।
सत माना सच।
सचखण्ड भी भारत को कहा जाता था, यह झूठ खण्ड है...
सच खण्ड बाबा ही स्थापन करते हैं, वह है सच्चा सांई बाबा।
जब रीयल बाप आते हैं तो झूठे भी बहुत निकल पड़ते हैं।
गायन भी है ना - नैया डोलेगी, त़ूफान आयेंगे, परन्तु डूबेगी नहीं।
बच्चों को समझाया जाता है, माया के तूफान बहुत आयेंगे।
उनसे डरना नहीं है।
सन्यासी लोग तुमको ऐसे कभी नहीं कहेंगे कि माया के तूफान आयेंगे।
उनको पता ही नहीं है, नैया को पार कहाँ ले जायेंगे।
तुम बच्चे जानते हो भक्ति से सद्गति नहीं होती है...
नीचे ही उतरते जाते हैं।
भल कहते हैं भगवान् आकर भक्तों को भक्ति का फल देते हैं।
भक्ति तो जरूर करनी चाहिए।
अच्छा, भक्ति का फल भगवान क्या आकर देंगे?
जरूर सद्गति देंगे।
कहते हैं परन्तु कब और कैसे देंगे - यह पता नहीं है।
तुम कोई से पूछो तो कह देंगे यह तो अनादि चलती आ रही है।
परम्परा से चली आई है।
रावण को कब से जलाना शुरू किया है?
कहेंगे परम्परा से।
तुम समझाते हो तो कहते है इन्हों का ज्ञान तो कोई नया है...
जिन्होंने कल्प पहले समझा है, वह झट समझ जाते हैं।
ब्रह्मा की तो बात ही छोड़ दो।
शिवबाबा का जन्म तो है ना, जिसको शिवरात्रि भी कहते हैं।
बाप समझाते हैं मेरा जन्म दिव्य और अलौकिक है।
प्राकृतिक मनुष्यों सदृश्य जन्म नहीं मिलता है क्योंकि वह सब गर्भ से जन्म लेते हैं, शरीरधारी बनते हैं।
मैं तो गर्भ में प्रवेश नहीं करता हूँ।
यह नॉलेज सिवाए परमपिता परमात्मा, ज्ञान सागर के और कोई दे न सके।
ज्ञान सागर कोई मनुष्य को नहीं कहा जाता है।
यह उपमा है ही निराकार की।
निराकार बाप आत्माओं को पढ़ाते हैं, समझाते हैं।
तुम बच्चे इस रावण के राज्य में पार्ट बजाते-बजाते देह-अभिमानी बन पड़े हो...
आत्मा सब कुछ करती है।
यह ज्ञान उड़ गया है।
यह तो आरगन्स हैं ना।
मैं आत्मा हूँ, चाहे इनसे कर्म कराऊं, चाहे न कराऊं।
निराकारी दुनिया में तो शरीर रहित बैठे रहते हैं...
अभी तुम अपने घर को भी जान गये हो।
वो लोग फिर घर को ईश्वर मान लेते हैं।
ब्रह्म ज्ञानी, तत्व ज्ञानी हैं ना।
कहते हैं ब्रह्म में लीन हो जायेंगे।
अगर कहें ब्रह्म में निवास करेंगे तो ईश्वर अलग हो जाये।
यह तो ब्रह्म को ही ईश्वर कह देते हैं।
यह भी ड्रामा में नूंध है।
बाप को भी भूल जाते हैं।
जो बाप विश्व का मालिक बनाते हैं, उनको तो याद करना चाहिए ना क्योंकि वही स्वर्ग बनाने वाला है।
अभी तुम हो पुरूषोत्तम संगमयुगी ब्राह्मण...
तुम उत्तम पुरूष बनते हो।
कनिष्ट पुरूष उत्तम के आगे माथा टेकते हैं।
देवताओं के मन्दिर में जाकर कितनी महिमा गाते हैं।
अभी तुम जानते हो हम सो देवता बनते हैं।
यह तो बहुत सिम्पुल बात है।
विराट रूप के बारे में भी बतलाया है।
विराट चक्र है ना।
वह तो सिर्फ गाते हैं ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय.......।
लक्ष्मी-नारायण आदि के चित्र तो हैं ना...
बाप आकर सबको करेक्ट करते हैं।
तुमको भी करेक्ट कर रहे हैं क्योंकि भक्ति मार्ग में जन्म-जन्मान्तर तुम जो कुछ करते आये हो वह है रांग इसलिए तुम तमोप्रधान बने हो।
अभी है ही अनराइटियस वर्ल्ड...
इसमें दु:ख ही दु:ख है
क्योंकि रावण का राज्य है, सब विकारी हैं।
रावण का राज्य है अनराइटियस, राम का राज्य है राइटियस।
यह है कलियुग, वह है सतयुग।
यह तो समझ की बात है ना।
इनको शास्त्र उठाते कभी देखा है क्या...
अपना भी नॉलेज दिया, रचना की भी समझानी दी है।
शास्त्र बुद्धि में उन्हों के होते जो पढ़कर औरों को सुनाते हैं।
तो सबका सुख दाता एक शिवबाबा है।
वही ऊंच ते ऊंच बाप है, उनको परमपिता परमात्मा कहा जाता है।
बेहद का बाप जरूर बेहद का वर्सा देते हैं।
5 हजार वर्ष पहले तुम स्वर्गवासी थे, अब नर्कवासी हो।
राम कहा जाता है बाप को।
वह राम नहीं, जिसकी सीता चुराई गई।
वह कोई सद्गति दाता थोड़ेही है, वह राम राजा था।
महाराजा भी नहीं था।
महाराजा और राजा का भी राज़ समझाया है - वह 16 कला, वह 14 कला।
रावण राज्य में भी राजायें, महाराजायें होते हैं।
वह बहुत साहूकार, वह कम साहूकार।
उनको कोई सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी नहीं कहेंगे।
इनमें साहूकार को महाराजा का लकब मिलता है।
कम साहूकार को राजा का।
अभी तो है ही प्रजा का प्रजा पर राज्य...
धनी धोणी कोई है नहीं।
राजा को प्रजा अन्न दाता समझती थी।
अभी तो वह भी गये, बाकी प्रजा का देखो क्या हाल है!
लड़ाई-झगड़ा आदि कितना है।
अभी तुम्हारी बुद्धि में आदि से अन्त तक सारी नॉलेज है...
रचयिता बाप अब प्रैक्टिकल में है, जिसकी फिर भक्ति मार्ग में कहानी बनेगी।
अभी तुम भी प्रैक्टिकल में हो।
आधाकल्प तुम राज्य करेंगे फिर बाद में कहानी हो जायेगी।
चित्र तो रहते हैं।
कोई से पूछो यह कब राज्य करते थे?
तो लाखों वर्ष कह देंगे।
सन्यासी हैं निवृत्ति मार्ग वाले, तुम हो पवित्र गृहस्थ आश्रम वाले...
फिर अपवित्र गृहस्थ आश्रम में जाना है।
स्वर्ग के सुखों को कोई जानता नहीं।
निवृत्ति मार्ग वाले तो कभी प्रवृत्ति मार्ग सिखला न सकें।
आगे तो जंगल में रहते थे, उनमें ताकत थी।
जंगल में ही उन्हों को भोजन पहुँचाते थे, अभी वह ताकत ही नहीं रही है।
जैसे तुम्हारे में भी वहाँ राज्य करने की ताकत थी, अभी कहाँ है।
हो तो वही ना।
अभी वह ताकत नहीं रही है।
भारतवासियों का असुल जो धर्म था वह अभी नहीं है...
अधर्म हो गया है।
बाप कहते हैं मैं आकर धर्म की स्थापना, अधर्म का विनाश करता हूँ।
अधर्मियों को धर्म में ले आता हूँ।
बाकी जो बचते हैं, वह विनाश हो जायेंगे।
फिर भी बाप बच्चों को समझाते हैं कि सबको बाप का परिचय दो...
बाप को ही दु:ख हर्ता सुख कर्ता कहा जाता है।
जब बहुत दु:खी होते हैं तब ही बाप आकर सुखी बनाते हैं।
यह भी अनादि बना-बनाया खेल है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर उत्तम पुरूष बनने के लिए आत्म-अभिमानी बनने का पुरूषार्थ करना है।
सत् बाप मिला है तो कोई भी असत्य, अनराइटियस काम नहीं करना है।
2) माया के तूफानों से डरना नहीं है।
सदा याद रहे सत की नैया हिलेगी डुलेगी लेकिन डूबेगी नहीं।
सतगुरू के बच्चे सतगुरू बन सबकी नैया पार लगानी है।
वरदान:-
समय प्रमाण अपने भाग्य का सिमरण कर
खुशी और प्राप्तियों से भरपूर बनने वाले
स्मृति स्वरूप भव
भक्ति में आप स्मृति स्वरूप आत्माओं के यादगार रूप में भक्त अभी तक आपके हर कर्म की विशेषता का सिमरण करते अलौकिक अनुभवों में खो जाते हैं
तो आपने प्रैक्टिकल जीवन में कितने अनुभव प्राप्त किये होंगे!
सिर्फ जैसा समय, जैसा कर्म वैसे स्वरूप की स्मृति इमर्ज रूप में अनुभव करो तो बहुत विचित्र खुशी, विचित्र प्राप्तियों का भण्डार बन जायेंगे
और दिल से यही अनहद गीत निकलेगा कि पाना था सो पा लिया।
स्लोगन:-
नम्बरवन में आना है तो
सिर्फ ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखते चलो।