सभी ब्राह्मण आत्माओं के साथ व्यवहार में सदभाव के साथ कैसे चलें...
Avyakt Baapdada - 07.03.1990
"...कई बच्चे ऐसे हैं
जो बाप को जानना,
बाप का बनना और
बाप से प्रीत की रीति निभाना
यह बहुत सहज अनुभव करते हैं
लेकिन
सभी ब्राह्मण-आत्माओं से चलना
इसमें समथिंग कहते हैं।
इसका कारण क्या?
बाप से निभाना सहज क्यों लगता है?
क्योंकि दिल का प्यार अटूट है।
प्यार में निभाना सहज होता है।
जिससे प्यार होता है
उसका कुछ शिक्षा का इशारा मिलना
भी प्यारा लगता है और
सदैव दिल में अनुभव होता है कि
जो कुछ कहा मेरे कल्याण के लिए कहा।
क्योंकि उसके प्रति दिल की
श्रेष्ठ भावना होती है।
तो जैसे आपके दिल में
उनके प्रति श्रेष्ठ भावना है,
वैसे ही आपकी
शुभभावना का रिटर्न
दूसरे द्वारा भी प्राप्त होता है।
जैसे गुम्बज में आवाज
करते हो तो
वही लौटकर आपके पास आती है।
तो जैसे बाप के प्रति
अटूट, अखण्ड, अटल प्यार है,
श्रेष्ठ भावना है, निश्चय है
ऐसे ब्राह्मण-आत्माएं
नंबरवार होते हुए भी
आत्मिक प्यार अटूट,
अखण्ड है?
वैराइटी चलन, वैरायटी संस्कार
देखकर प्यार करते हैं
वह अटूट और अखण्ड नहीं होता है।
किसी भी आत्मा की
अपने प्रति वा दूसरों के प्रति
चलन अर्थात् चरित्र वा
संस्कार दिल-पसंद नहीं होंगे
तो प्यार की परसेन्टेज
कम हो जाती है।
लेकिन आत्मा का श्रेष्ठ
आत्मा के भाव से
आत्मिक प्यार उसमें
परसेन्टेज नहीं होती है।
कैसे भी संस्कार हों,
चलन हो लेकिन
ब्राह्मण-आत्माओं का
सारे कल्प में अटूट सम्बन्ध है,
ईश्वरीय परिवार है।
बाप ने हर आत्मा को
विशेष चुनकर
ईश्वरीय परिवार में लाया है।
अपने-आप नहीं आये हैं,
बाप ने लाया है।
तो बाप को सामने रखने से
हर आत्मा से भी
आत्मिक अटूट प्यार हो जाता है।
किसी भी आत्मा की
कोई बात आपको पसंद नहीं आती
तब ही प्यार में अन्तर आता है।
उस समय बुद्धि में यही रखो कि
इस आत्मा को बाप ने
पसंद किया है,
अवश्य कोई विशेषता है
तब बाप ने पसंद किया है।
शुरू से बापदादा बच्चों को
यह सुनाते रहते हैं कि
मानों 36 गुणों में
किसमें 35 गुण नहीं हैं
लेकिन एक गुण भी विशेष है
तब बाप ने उनको पसंद किया है।
बाप ने उनके 35 अवगुण
देखे वा एक ही गुण देखा?
क्या देखा?
सबसे बड़े-ते-बड़ा गुण
वा विशेषता बाप को
पहचानने की बुद्धि,
बाप के बनने की हिम्मत,
बाप से प्यार करने की विधि है
जो सारे कल्प में
धर्म-पिताओं में भी नहीं थी,
राज्य नेताओं में भी नहीं,
धनवानों में भी नहीं लेकिन
उस आत्मा में हैं।
बाप आप सबसे पूछते हैं कि
आप जब बाप के पास आये तो
गुण सम्पन्न हो के आये थे?
बाप ने आपकी कमजोरियों को
देखा क्या?
हिम्मत बढ़ाई है ना कि
आप ही मेरे थे, हैं और सदा बनेंगे।
तो फालो फादर करो ना!
जब विशेष आत्मा समझ
किसको भी देखेंगे,
सम्बन्ध-सम्पर्क में आयेंगे तो
बाप को सामने रखने से
आत्मा में स्वत: ही
आत्मिक प्यार इमर्ज हो जाता है।
आपके स्नेह से सर्व के स्नेही
बन जायेंगे और
आत्मिक स्नेह से
सदा सभी द्वारा सद्भावना,
सहयोग की भावना
स्वत: ही आपके प्रति
दुआओं के रूप में
प्राप्त होगी।
इसको कहते हैं -
रूहानी यथार्थ श्रेष्ठ हैंडलिंग।..."
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