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पहला कदम विल पावर से सम्पन्न
अपना सब कुछ विल किया।
पहले अपनी कमी कमजोरियोंको सम्पूर्ण विल किया फिर अपनी स्थूल सूक्ष्म सम्पत्ति विल की।
कभी यह नहीं सोचा कि आगे क्या होगा, कैसे होगा... झाटकू बन सब कुछ विल किया, तो विल पावर आ गई।
ऐसे आप बच्चे भी फालो फादर करो।
दूसरा कदम अपने से भी ऊंचा बनाने की भावना
बच्चों को अपने से भी ऊंचा बनाया।
हर बच्चे को हर बात में "पहले आप' कह रिगार्ड दिया, "पहले आप" का पाठ वृत्ति, दृष्टि, वाणी
माताओं, बहनों को सदा आगे रखा।
ऐसे फालो फादर
तीसरा कदम लौकिकता में अलौकिकता का अनुभव
कोई भी कर्म करते सदा अपने फरिश्ता स्थिति में रहे।
लौकिक को
कर्म वा संस्कारों में कोई भी लौकिकता दिखाई नहीं दी।
तीनों को समान बनाया, ऐसे फालो फादर करो।
हर लौकिक परिवर्तन कर समान बनो।
चौथा कदम सबके स्नेही, सबके सहयोगी
सभी रीति से हर बच्चे के स्नेही और सहयोगी बनें।
सदा एक बाप के स्नेह में समाये रहे। एक सेकण्ड, एक संकल्प भी
ऐसे आप बच्चे भी सबके स्नेही बन सच्चे स्नेह और सहयोग का प्रत्यक्ष प्रमाण दो।
पांचवां कदम इच्छा मात्रम् अविद्या
कोई भी कर्म के फल की इच्छा नहीं रखी।
हर वचन और कर्म में सदैव पिता की स्मृति होने के कारण संकल्प मात्र भी नहीं रहा।
निष्काम वृत्ति से सबकी पालना की।
पुरूषार्थ के प्रारब्ध की नॉलेज होते हुए भी उसमें अटैचमेन्ट नहीं रही।
ऐसे आप बच्चे भी नाम-मान-शान की इच्छा से परे, इच्छा मात्रम् अविद्या इसी विधि से सबकी पालना करो तब शमा के ऊपर परवाने फिदा होंगे।
छठा कदम निरन्तर योगीपन के लक्षण
हर संकल्प विश्व कल्याण की सेवा अर्थ रहा।
हर बोल में नम्रता, निर्माणता और महानता अनुभव कराई।
स्मृति स्वरूप में एक तरफ बेहद का मालिकपन, दूसरी तरफ विश्व के सेवाधारी, एक तरफ अधिकारीपन का नशा,
सर्व आत्माओं के प्रति दाता वा वरदाता बनकर रहे, ठुकराने वाली, ग्लानि करने वाली कल्याणकारी आत्मा का अनुभव कराया।
ऐसे फालो फादर करो। हर आत्मा को अपने से भी आगे बढ़ाने विश्व-कल्याणकारी बनो।
यही निरन्तर योगीपन के लक्षण हैं।
सातवां कदम संकल्प वा स्वप्न मात्र भी लगाव मुक्त
रहते किसी भी व्यक्ति वा वैभव से संकल्प- -मात्र वा स्वप्न-मात्र भी सदा त्रिमूर्ति तख्त-नशीन, त्रिकालदर्शीपन के स्मृति स्वरूप, हर कर्म के तीनों कालों
पुराने संस्कार और स्वभाव से उपराम रहे, स्वयं को सेट रखा, ऐसे फालो फादर कर सच्चे राजऋषि बनो।
आठवां कदम गम्भीरता और रमणीकता का बैलेन्स
सदा गम्भीरता के चिन्ह और मुस्कराहट देखी।
गम्भीरता अर्थात् तले में खोये रहे।
अभी-अभी मनन-चिंतन करने अर्थात् मुस्कराता हुआ चेहरा।
तो दोनों ही लक्षण ब्रह्मा बाप की कॉपी स्वरूप हो।
सूरत और सीरत से ब्रह्मा
ऐसे ब्रह्मा बाप की फोटो कॉपी बनो।
नौवां कदम साक्षात्कार मूर्त
ब्रह्मा रूप का साक्षात्कार होता था, सभी अनुभव करते थे जैसे प्रैक्टिकल
ऐसे ही अन्त में निमित्त बनी हुई आत्माओं द्वारा यह अनुभव होगा, इसके लिए ब्रह्मा बाप समान सदा एक के प्यार में समाये हुए रहो।
यह लवलीन
बुद्धि पर किसी भी प्रकार का बोझ न हो, दिनचर्या बापसमान हो, तब आदि सो अन्त के दृश्य का अनुभव कर सकेंगे।
दसवां कदम
मास्टर सागर बनें, सर्वशक्तियों का वर्सा प्रैक्टिकल जीवन में
साथ-साथ आत्मा की जो श्रेष्ठ वा महान स्टेज है - सम्पूर्ण निर्विकारी, सर्वगुण सम्पन्न, सोलह सम्पूर्ण अहिंसक... इस महानता को जीवन में लाया।
ऐसे आप सर्व कलाओं में सम्पन्न बनो।
सर्वशक्तियों को अनुभव में लाते हुए, सर्व गुणों में तब वरदानी-महादानी स्वरूप से सेवा कर सकेंगे।
ग्यारहवां कदम विशेषता से सच्चे सेवाधारी
निमित्तमात्र अनुभव करते हुए बहुत नम्रचित्त बन सच्चे सेवाधारी रहे।
यह अपना नेचुरल स्वभाव बनाया।
उनके हर कर्तव्य से विश्व कल्याण की भावना स्पष्ट रूप में दिखाई दी।
अपने सुख के साधनों का, अपने गुणों का और अपनी प्राप्त हुई सर्वशक्तियों का अन्य आत्माओं की उन्नति-अर्थ दान कर महादानी बनें।
हर एक के अवगुणों को गुण में बदल दिया, नुकसान को फायदे में बदल दिया, निन्दा को स्तुति स्मृति को धारण कर सच्चे सेवाधारी बनो।
बारहवां कदम
स्थापना के कार्य प्रति साकार रूप में निमित्त बने - अल्फ की सर्वस्व त्यागमूर्त बने।
त्याग और भाग्य दोनों में नम्बरवन रहे।
ऊंचा उठाने के लिए वा अव्यक्त बनाने के लिए अव्यक्त
तो त्याग और भाग्य दोनों में फालो फादर
तेरहवां कदम श्रेष्ठ वायब्रेशन फैलाने की सेवा
की सेवा करते थे।
इस बात में
कोई भी सेवा करते, रोटी बनाते, पहरा देते.. शक्तिशाली स्मृति
मन्सा से विश्व की सेवा करो, विश्व सेवाधारी एक काम नहीं डबल काम करते हैं।
स्थूल हाथ चलते रहें और मन्सा से शक्तियों का दान देते रहो।
गुण-मूर्त बनकर सेवा करो तो डबल जमा हो जायेगा।
चौदहवां कदम
परोपकारी बनकर रहे, साथ-साथ इस मरजीवा जीवन में सदा बाल ब्रह्मचारी बनकर रहे ।
ब्रह्मचारी जीवन अर्थात् ब्रह्मा समान जिसको ब्रह्मचारी कहो या ब्रह्माचारी कहो, इसमें आदि से अन्त तक
किसी भी प्रकार की पवित्रता अर्थात् स्वच्छता खण्डित न हो तब इसे ही फालो फादर कहते हैं।
पंद्रहवां कदम
किसी के बोल और भाव को परिवर्तन किया।
ब्रह्मा बाप ने निन्दा को स्तुति में, ग्लानि को गायन में परिवर्तित किया।
अपमान को स्व-अभिमान में, अपकार को उपकार में, माया के विघ्नों को बाप की लगन में मग्न होने का साधन समझ परिवर्तित किया तब
ऐसे फालो फादर करो।
सिर्फ स्नेही आत्माओं के प्रति सहयोगी नहीं, ना उम्मीदवार को भी उम्मीदों का सितारा बना दो, तब कहेंगे कमाल।
इसे कहा जाता है फॉलो फादर।
सोलहवां कदम स्व-स्वरूप का दर्शन
कराने वाले सिद्धि स्वरूप हर आत्मा को सेकेण्ड में स्व स्वरूप का दर्शन वा साक्षात्कार कराया।
इसी स्टेज को लाइट-माइट हाउस की स्टेज कहते हैं। जैसे बाप लाइट-माइट ब्रह्मा बाप भी उनके समान बनें।
ऐसे आप बच्चे भी बाप समान सर्वशक्तियों
मस्तकमणि द्वारा सबको स्व-स्वरूप का दर्शन कराओ।
सत्रहवां कदम मुहब्बत में समाने वाले
मेहनत मुक्त समाने का युग है, मेहनत का युग नहीं, मिलन का युग है।
शमा और परवाने के समाने का
बच्चा सिर का ताज, घर का श्रृंगार होता है।
बाप का बालक सो मालिक होता है।
तो सदा ऐसी श्रेष्ठ स्थिति
मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध सम्पर्क... सबमें फुटस्टेप, कदम पर कदम रखते चलो।
संगमयुग की प्रालब्ध - बाप समान सम्पन्न स्टेज के तख्तनशीन बनो।
सम्पन्न स्टेज कुछ घड़ियों की नहीं, यह तो जीवन है।
ऐसी मुहब्बत में समाने वाले मेहनत मुक्त जीवन के अनुभवी बनो।
अठारहवां कदम
अव्यक्त होते व्यक्त में प्रवेश हो कार्य करते हैं, वैसे आप बच्चे अपनी अव्यक्त स्थिति में रह व्यक्त कर्मेन्द्रियों से कर्म कराओ।
दृष्टि, वाणी, संकल्प सब बाप समान हो।
जैसे ब्रह्मा बाप बेहद का बाप है, ऐसे बच्चों को भी समान बनना है।
जितनी समीपता उतनी समानता।
अन्त में आप बच्चे भी अपनी रचना के रचयिता बनकर
जैसे बाप को अपनी रचना देख रचयिता के स्वरूप की स्मृति स्वतः रहती है, ऐसी स्टेज आप बच्चों की भी नम्बरवार आनी है।
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