गीत:- भारत की भूमि पर एक दिव्य पुरूष ने जन्म लिया....


पहला कदम
अपना सब कुछ विल करके

विल पावर से सम्पन्न


ब्रह्मा बाबा ने पहले कदम में

अपना सब कुछ विल किया।

 

पहले अपनी कमी

कमजोरियोंको सम्पूर्ण विल किया

फिर अपनी

स्थूल सूक्ष्म सम्पत्ति

विल की।

 

कभी यह नहीं सोचा कि

आगे क्या होगा,

कैसे होगा...

झाटकू बन सब कुछ विल किया,

तो विल पावर आ गई।

 

ऐसे आप बच्चे भी फालो फादर करो।

 


 

दूसरा कदम

अपने से भी ऊंचा

बनाने की भावना


जैसे ब्रह्मा बाप ने

बच्चों को अपने से भी ऊंचा बनाया।


हर बच्चे को हर बात में

"पहले आप' कह रिगार्ड दिया,

"पहले आप" का पाठ

वृत्ति, दृष्टि, वाणी
और कर्म में लाया।

 

माताओं, बहनों को सदा आगे रखा।


ऐसे फालो फादर
करो तब बाप समान बनेंगे।

 


 

तीसरा कदम

लौकिकता में अलौकिकता का अनुभव


जैसे ब्रह्मा बाप

कोई भी कर्म करते

सदा अपने फरिश्ता

स्थिति में रहे।

 

लौकिक को
अलौकिक में परिवर्तन किया।

 

कर्म वा संस्कारों में कोई भी

लौकिकता दिखाई नहीं दी।


सोचना, बोलना और करना

तीनों को समान बनाया,

ऐसे फालो फादर करो।

 

हर लौकिक
बात को, देखने, सुनने, बोलने... को अलौकिकता में

परिवर्तन कर समान बनो।

 


चौथा कदम

सबके स्नेही, सबके सहयोगी


ब्रह्मा बाप सभी रूपों से,

सभी रीति से हर बच्चे के

स्नेही और सहयोगी बनें।

 

सदा एक बाप के स्नेह में समाये रहे।

एक सेकण्ड, एक संकल्प भी


सहयोग के बिना नहीं गया।

ऐसे आप बच्चे भी सबके

स्नेही बन सच्चे स्नेह और

सहयोग का प्रत्यक्ष प्रमाण दो।



 

पांचवां कदम
सदा फल की इच्छा से मुक्त,

इच्छा मात्रम् अविद्या


ब्रह्मा बाप ने

कोई भी कर्म के फल की

इच्छा नहीं रखी।


हर वचन और कर्म में

सदैव पिता की स्मृति होने के कारण
फल की इच्छा का

संकल्प मात्र भी नहीं रहा।

 

निष्काम वृत्ति से सबकी पालना की।

 

पुरूषार्थ के प्रारब्ध की

नॉलेज होते हुए भी

उसमें अटैचमेन्ट नहीं रही।

 

ऐसे आप बच्चे

भी नाम-मान-शान की

इच्छा से परे,

इच्छा मात्रम् अविद्या
की स्थिति में रह सेवा करो।

इसी विधि से सबकी पालना

करो तब शमा के ऊपर परवाने फिदा होंगे।

 


 

छठा कदम

निरन्तर योगीपन के लक्षण


जैसे ब्रह्मा बाप का

हर संकल्प

विश्व कल्याण की सेवा अर्थ रहा।

 

हर बोल में नम्रता,

निर्माणता और महानता

अनुभव कराई।

 

स्मृति स्वरूप में एक तरफ बेहद का मालिकपन,

दूसरी तरफ विश्व के सेवाधारी,

एक तरफ अधिकारीपन का नशा,
दूसरी तरफ सर्व के प्रति सत्कारी,

 

सर्व आत्माओं के प्रति

दाता वा वरदाता बनकर रहे,

ठुकराने वाली, ग्लानि करने वाली
आत्मा को भी

कल्याणकारी आत्मा का

अनुभव कराया।


ऐसे फालो फादर करो।

हर आत्मा को

अपने से भी आगे बढ़ाने
की शुभ भावना रखते हुए

विश्व-कल्याणकारी बनो।

 

यही निरन्तर योगीपन के लक्षण हैं।



 

सातवां कदम

संकल्प वा स्वप्न मात्र भी लगाव मुक्त


जैसे ब्रह्मा बाप पुरानी दुनिया में

रहते किसी भी व्यक्ति

वा वैभव से संकल्प- -मात्र वा स्वप्न-मात्र भी
लगावमुक्त रहे,

सदा त्रिमूर्ति तख्त-नशीन, त्रिकालदर्शीपन

के स्मृति स्वरूप,

हर कर्म के तीनों कालों
को जानने वाले, हर कर्म को श्रेष्ठ कर्म वा सुकर्मी बनाया।


पुराने संस्कार और स्वभाव से

उपराम रहे,
सदा साक्षीपन की सीट पर

स्वयं को सेट रखा, ऐसे फालो

फादर कर सच्चे राजऋषि बनो।



 

आठवां कदम

गम्भीरता और रमणीकता का बैलेन्स


जैसे ब्रह्मा बाप की सूरत में

सदा गम्भीरता के चिन्ह और

मुस्कराहट देखी।

 

गम्भीरता अर्थात्
अन्तर्मुखता, उसकी निशानी सदा सागर के

तले में खोये रहे।

 

अभी-अभी मनन-चिंतन करने
वाला चेहरा और अभी-अभी रमणीक

अर्थात् मुस्कराता हुआ चेहरा।

 

तो दोनों ही लक्षण
सूरत में देखें, ऐसे आपकी सूरत भी

ब्रह्मा बाप की कॉपी स्वरूप हो।

 

सूरत और सीरत से ब्रह्मा
बाप दिखाई दे।

 

ऐसे ब्रह्मा बाप की फोटो कॉपी बनो।

 


 

नौवां कदम
लवलीन स्थिति के अनुभव द्वारा

साक्षात्कार मूर्त


जैसे शुरू में घर बैठे

ब्रह्मा रूप का साक्षात्कार होता था,

सभी अनुभव करते थे जैसे प्रैक्टिकल
में कोई बोल रहा है, इशारा कर रहा है।

 

ऐसे ही अन्त में

निमित्त बनी हुई आत्माओं द्वारा

यह अनुभव होगा,

इसके लिए ब्रह्मा बाप समान सदा एक के प्यार में

समाये हुए रहो।

 

यह लवलीन
स्थिति साक्षात्कार मूर्त बना देगी।

 

बुद्धि पर किसी भी

प्रकार का बोझ न हो,

दिनचर्या बापसमान हो,

तब आदि सो अन्त के दृश्य का

अनुभव कर सकेंगे।

 

 


 

दसवां कदम
सर्व गुणों में मास्टर सागर


जैसे ब्रह्मा बाप सर्वगुणों में

मास्टर सागर बनें,

सर्वशक्तियों का वर्सा

प्रैक्टिकल जीवन में
अनुभव किया।

 

साथ-साथ आत्मा की

जो श्रेष्ठ वा महान स्टेज है -

सम्पूर्ण निर्विकारी, सर्वगुण सम्पन्न, सोलह
कला सम्पूर्ण, मर्यादा पुरूषोत्तम और

सम्पूर्ण अहिंसक...

इस महानता को जीवन में लाया।

 

ऐसे आप
बच्चे भी सर्व गुणों,

सर्व कलाओं में सम्पन्न बनो।


सर्वशक्तियों को अनुभव में लाते हुए,

सर्व गुणों में
मास्टर सागर बनो,

तब वरदानी-महादानी स्वरूप से

सेवा कर सकेंगे।

 


 

ग्यारहवां कदम
निमित्त और निर्मानचित्त की

विशेषता से सच्चे सेवाधारी


ब्रह्मा बाप सदा अपने को

निमित्तमात्र अनुभव करते हुए

बहुत नम्रचित्त बन सच्चे सेवाधारी रहे।

 

यह अपना नेचुरल स्वभाव बनाया।

 

उनके हर कर्तव्य से विश्व

कल्याण की भावना स्पष्ट रूप में दिखाई दी।

 

अपने सुख के साधनों का,

अपने गुणों का

और अपनी प्राप्त हुई

सर्वशक्तियों का अन्य आत्माओं की उन्नति-अर्थ दान कर महादानी बनें।

 

हर एक के अवगुणों को गुण में बदल

दिया, नुकसान को फायदे में बदल दिया,

निन्दा को स्तुति
में बदल दिया, ऐसी दृष्टि और

स्मृति को धारण कर

सच्चे सेवाधारी बनो।

 


 

बारहवां कदम
त्याग और भाग्य दोनों में नम्बरवन


जैसे ब्रह्मा बाप आदि में

स्थापना के कार्य प्रति साकार

रूप में निमित्त बने - अल्फ की
तार आई तो सेवा अर्थ

सर्वस्व त्यागमूर्त बने।

 

त्याग और भाग्य दोनों में

नम्बरवन रहे।


अब अन्त में भी बच्चों को

ऊंचा उठाने के लिए वा

अव्यक्त बनाने के लिए अव्यक्त
वतनवासी बनें।

 

तो त्याग और भाग्य दोनों में फालो फादर
करते हुए स्वयं को और सेवा
को सम्पन्न कर बाप समान अव्यक्त वतनवासी बन जाओ।

 


 

तेरहवां कदम
शक्तिशाली मन्सा द्वारा

श्रेष्ठ वायब्रेशन फैलाने की सेवा


जैसे ब्रह्मा बाप रात को जाग करके भी वायब्रेशन्स फैलाने

की सेवा करते थे।

 

इस बात में
जो ओटे सो अर्जुन।

 

कोई भी सेवा करते, रोटी बनाते,

पहरा देते.. शक्तिशाली स्मृति
स्वरूप में रहो।

 

मन्सा से विश्व की सेवा करो, विश्व

सेवाधारी एक काम नहीं

डबल काम करते हैं।

 

स्थूल हाथ चलते रहें और

मन्सा से शक्तियों का

दान देते रहो।

 

गुण-मूर्त बनकर सेवा करो तो

डबल जमा हो जायेगा।

 


 

चौदहवां कदम
परोपकारी के साथ-साथ बाल ब्रह्मचारी


ब्रह्मा बाप सदा

परोपकारी बनकर रहे,

साथ-साथ इस

मरजीवा जीवन में सदा
आदि से अन्त तक

बाल ब्रह्मचारी बनकर रहे ।

 

ब्रह्मचारी

जीवन अर्थात् ब्रह्मा समान
पवित्र जीवन,

जिसको ब्रह्मचारी कहो या ब्रह्माचारी कहो,

इसमें आदि से अन्त तक
अखण्ड बनो।

 

किसी भी प्रकार की पवित्रता अर्थात्

स्वच्छता खण्डित न हो तब
पूज्यनीय बनेंगे,

इसे ही फालो फादर कहते हैं।

 


 

पंद्रहवां कदम
परिवर्तन शक्ति द्वारा सदा विजयी


ब्रह्मा बाप ने परिवर्तन शक्ति द्वारा

किसी के बोल और भाव को

परिवर्तन किया।

 

ब्रह्मा बाप ने

निन्दा को स्तुति में,

ग्लानि को गायन में परिवर्तित किया।


अपमान को स्व-अभिमान में,

अपकार को उपकार में,

माया के विघ्नों को

बाप की लगन में मग्न

होने का साधन समझ

परिवर्तित किया तब
सदा विजयी बनें।

 

ऐसे फालो फादर करो।

 

सिर्फ स्नेही आत्माओं के प्रति

सहयोगी नहीं,

ना उम्मीदवार को भी

उम्मीदों का सितारा बना दो,

तब कहेंगे कमाल।


इसे कहा जाता है फॉलो फादर।



 

सोलहवां कदम
सदा आत्मिक स्थिति के दर्पण द्वारा

स्व-स्वरूप का दर्शन


कराने वाले सिद्धि स्वरूप
ब्रह्मा बाप ने सदा आत्मिक स्थिति के शक्तिशाली दर्पण द्वारा

हर आत्मा को सेकेण्ड में

स्व स्वरूप का दर्शन वा

साक्षात्कार कराया।

 

इसी स्टेज को लाइट-माइट

हाउस की स्टेज कहते हैं।

जैसे बाप लाइट-माइट
स्वरूप, सर्वशक्तिवान है,

ब्रह्मा बाप भी उनके समान बनें।


ऐसे आप बच्चे भी बाप समान सर्वशक्तियों
से सम्पन्न सिद्धि स्वरूप बनो।

 

मस्तकमणि द्वारा सबको

स्व-स्वरूप का दर्शन कराओ।

 


 

सत्रहवां कदम
संगमयुग की प्रालब्ध के अनुभवी,

मुहब्बत में समाने वाले


मेहनत मुक्त
संगमयुग मुहब्बत में

समाने का युग है,

मेहनत का युग नहीं,

मिलन का युग है।

 

शमा और परवाने के समाने का
युग है।

 

बच्चा सिर का ताज,

घर का श्रृंगार होता है।

 

बाप का बालक सो मालिक होता है।

 

तो सदा ऐसी श्रेष्ठ स्थिति
के अनुभवी बनो।

 

मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध

सम्पर्क... सबमें फुटस्टेप,

कदम पर कदम रखते चलो।


संगमयुग की प्रालब्ध -

बाप समान सम्पन्न स्टेज के

तख्तनशीन बनो।

 

सम्पन्न स्टेज कुछ घड़ियों की नहीं,

यह तो जीवन है।


फरिश्ता जीवन, योगी जीवन है...

ऐसी मुहब्बत में समाने वाले

मेहनत मुक्त जीवन के अनुभवी बनो।

 



अठारहवां कदम
अव्यक्त से व्यक्त में आने का अभ्यास


जैसे ब्रह्मा बाप

अव्यक्त होते व्यक्त में प्रवेश हो

कार्य करते हैं,

वैसे आप बच्चे अपनी

अव्यक्त स्थिति में रह

व्यक्त कर्मेन्द्रियों से कर्म कराओ।

 

दृष्टि, वाणी, संकल्प सब

बाप समान हो।

 

जैसे ब्रह्मा बाप बेहद का बाप है,

ऐसे बच्चों

को भी समान बनना है।

 

जितनी समीपता उतनी समानता।


अन्त में आप बच्चे भी

अपनी रचना के रचयिता बनकर
प्रैक्टिकल में यह अनुभव करेंगे।

 

जैसे बाप को अपनी रचना देख

रचयिता के स्वरूप की

स्मृति स्वतः रहती है,

ऐसी स्टेज आप बच्चों की भी

नम्बरवार आनी है।

 


 

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