12.06.2023 जो निष्काम सेवाधारी हैं उनके सामने सर्व प्राप्तियां स्वत: आती हैं। लेकिन प्राप्ति आपके आगे भल आये, आप प्राप्तियों को स्वीकार नहीं करो। अगर इच्छा रखी तो सर्व प्राप्तियां होते भी कमी महसूस होगी। सदा अपने को खाली समझेंगे इसलिए इच्छा मात्रम् अविद्या बन सर्व प्राप्तियों से भरपूर रहो। संगमयुग पर बापदादा द्वारा जो भी अविनाशी प्राप्तियां हुई हैं, उन्हीं प्राप्तियों के झूले में सदा झूलते रहो तो कोई भी भूलें नहीं होंगी। ब्राह्मण आत्माओं में कोई दिल के स्नेह, सम्बन्ध से याद करते हैं और कोई दिमाग अर्थात् नॉलेज के आधार पर संबंध को अनुभव करने का बार-बार प्रयत्न करते हैं। जहाँ दिल का स्नेह और संबंध अति प्यारा अर्थात् समीप है वहाँ याद भूलना मुश्किल है। जैसे शरीर के अन्दर नस-नस में ब्लड समाया हुआ है ऐसे आत्मा में निश-पल अर्थात् हर पल याद समाई हुई है, इसको कहते हैं दिल के स्नेह सम्पन्न निरन्तर याद। कल्प पहले की स्मृति आते ही बच्चे कहते तुम मेरे हो और बाप कहते तुम मेरे हो। इस मेरे-पन की स्मृति से नया जीवन, नया जहान मिल गया और सदा के लिए “मेरा बाबा'' इस स्मृति स्वरूप में टिक गये। इसी स्मृति के रिटर्न में समर्थी स्वरूप बन गये, जो जितना स्मृति में रहते हैं उतना उन्हें समर्थियों का अधिकार प्राप्त होता है। जहाँ स्मृति है वहाँ समर्थी है ही। थोड़ी भी विस्मृति है तो व्यर्थ है इसलिए सदा स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप बनो। बापदादा ने ब्राह्मण जन्म होते ही सबको खुशी का बड़े से बड़ा खजाना दिया है, यह ब्राह्मण जन्म की गिफ्ट है। बापदादा हर बच्चे का चेहरा सदा खुश देखना चाहते हैं। सदा हर्षित, चेयरफुल चेहरा ही प्रभू पसन्द है और हर एक को भी वही पसन्द आता है। सदा खुश रहने के लिए यही गीत गाते रहो कि “पाना था वो पा लिया'', काम बाकी क्या रहा। नशे से कहो कि हम खुश नहीं रहेंगे तो कौन रहेगा। सबसे पहले अपनी सूक्ष्म शक्तियों की रिजल्ट को चेक करो, जो विशेष मन-बुद्धि और संस्कारों पर पूरा कन्ट्रोल रखते हैं उन्हें ही स्वराज्य अधिकारी कहा जाता है। यह सूक्ष्म शक्तियां ही स्थूल कर्मेन्द्रियों को संयम और नियम में चला सकती हैं। जो अपनी सूक्ष्म शक्तियों को हैन्डिल कर लेते हैं वह दूसरों को भी हैन्डिल कर सकते हैं। स्व के ऊपर कन्ट्रोलिंग और रूलिंग पावर सर्व के लिए यथार्थ हैन्डलिंग पावर बन जाती है। ड्रामानुसार जो पक्के निश्चयबुद्धि हैं, दिल में संकल्प कर लेते हैं कि बाप मेरा, मैं बाप का, तो ऐसे बच्चों को स्वत: मदद मिलती है। सिर्फ सच्ची दिल से कहो ''मेरा बाबा“ तो हर कदम में मदद की अनुभूति होती रहेगी। जिन बच्चों का एक बाप के साथ अटूट प्यार है उन्हें कोई भी बात रोक नहीं सकती। बाप का प्यार सब बातों से पार करा देता है। वे उड़ते रहते हैं। भक्ति में कहते हैं - हिम्मत, उत्साह धूल को भी धन बना देता है। आपमें यदि हिम्मत और उत्साह है तो दूसरे भी आपके सहयोगी बन जायेंगे। धन की कमी होगी तो उत्साह कहाँ न कहाँ से धन को भी खींचकर लायेगा, सफलता को भी खींचकर लायेगा। तो जो निमित्त महान आत्मायें हैं उनका काम है स्वयं उत्साह में रहना और दूसरों को उत्साह दिलाना। जब अभी आप ऐसे उत्साह में रहे हो तब जड़ चित्रों में सदा मुस्कराता हुआ, शक्तिशाली चेहरा दिखाते हैं। 05.06.2023 आप बच्चों की शुभ भावना है कि हर आत्मा बाप से प्राप्ति की अंचली ले लेवे, इसी शुभ भावना का फल उन आत्माओं को अनुभव करने का बल मिलता है। शुभ भावना के संकल्प में बहुत बड़ी शक्ति है जो चारों ओर के वातावरण को बदल देती है। तो सच्चे सेवाधारी वह हैं जो स्वयं भी उत्साह में रहते हैं और सेवा भी उत्साह से करते हैं और अन्य आत्माओं में भी बाप के परिचय द्वारा उत्साह भरते हैं। उत्साह ऐसी चीज़ है जो उसके आगे परिस्थिति कुछ भी नहीं है, वह वार करने के बजाए बलिहार हो जाती है। जो बच्चे त्रिकालदर्शी अर्थात् तीनों कालों का ज्ञान बुद्धि में रख, आगे पीछे सोच समझकर कर्म करते हैं उन्हें हर कर्म में सफलता मिलती है। ऐसे नहीं बहुत बिजी था इसलिए जो काम सामने आया वह करना शुरू कर दिया, नहीं। कोई भी कर्म करने के पहले यह आदत पड़ जाए कि पहले तीनों काल सोचना है। त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित होकर कर्म करो तो कोई भी कार्य व्यर्थ वा साधारण नहीं होगा। 03.06.2023 आप बच्चे ब्राह्मण बने हो सदा बिजी रहने के लिए, बिजी रहने वाले ही बड़े से बड़े बिजनेसमैंन हैं जो हर कदम में पदमों की कमाई जमा करते हैं। सारे कल्प में ऐसा बिजनेस कोई कर नहीं सकता और जो सदा बिजी रहता है उसके पास माया नहीं आती क्योंकि उसके पास माया को रिसीव करने का टाइम ही नहीं है। तो सदा इसी रूहानी नशे में रहो कि हमारे कदम-कदम में पदम हैं। लेकिन जितना नशा उतना निर्मान। ब्राह्मण अर्थात् सदा सन्तुष्ट रहने और सर्व को सन्तुष्ट करने वाले इसलिए कुछ भी हो जाए, कोई कितना भी हिलाने की कोशिश करे लेकिन सन्तुष्ट रहना है और करना है - यह स्मृति रहे तो कभी गुस्सा नहीं आयेगा। यदि कोई बार-बार गलती करता है तो उसे परिवर्तन करने के लिए गुस्सा नहीं करो, बल्कि रहमदिल बनकर शुभ भावना, शुभ कामना की दृष्टि रखो तो वह सहज परिवर्तन हो जायेंगे। कोई भी बात होती है तो आप बच्चों को यह ज्ञान है कि नथिंगन्यु, हर सीन अनेक बार रिपीट की है। नथिंगन्यु की स्मृति से कभी भी हलचल में नहीं आ सकते, सदा ही अचल अडोल रहेंगे। कोई नई बात होती है तो आश्चर्य से निकलता है यह क्या, ऐसे होता है क्या? लेकिन नथिंगन्यु तो क्या, क्यों का क्वेश्चन नहीं, फुलस्टाप आ जाता है। ऐसे हर दृश्य को देखते बिन्दी लगाते चलो तो हाय-हाय में भी वाह-वाह के गीत गाते रहेंगे। जैसे बाप ने बच्चों को आगे किया, स्वयं बैकबोन रहे ऐसे फालो फादर करो। जितना यहाँ बाप को फालो करेंगे उतना वहाँ नम्बरवार विश्व के राज्य का तख्त लेने वाले तख्तनशीन बनेंगे। जितना इस समय सदा बाप के साथ खाते-पीते रहते, खेलते, पढ़ाई करते उतना ही वहाँ साथ रहते हैं। जिन बच्चों को जितना समीपता की स्मृति रहती है उतना नैचुरल नशा, निश्चय स्वत: रहता है। तो दिल से सदा यह अनुभव करो कि अनेक बार बाप के साथी बने हैं, अभी हैं और अनेक बार बनते रहेंगे। बोलने की सेवा तो यथाशक्ति समय प्रमाण करते ही हो लेकिन संगमयुग का जो फ्युचर फरिश्ता स्वरूप है, वह आपके फीचर्स से दिखाई दे तब सहज सेवा कर सकते हो। जैसे जड़ चित्र फीचर्स द्वारा अन्तिम जन्म तक सेवा कर रहे हैं, ऐसे आपके फीचर्स में सदा सुख की, शान्ति की, खुशी की झलक हो तो श्रेष्ठ सेवा कर सकेंगे। आपके फीचर्स को देखकर कैसी भी दु:खी अशान्त, परेशान आत्मा अपना श्रेष्ठ फ्युचर बना लेगी। जैसा समय उस विधि से दिव्य बुद्धि को यूज़ करो तो सर्व सिद्धियां आपकी हथेली पर हैं। सिद्धि कोई बड़ी चीज़ नहीं है सिर्फ दिव्य बुद्धि की सफाई है। जैसे आजकल के जादूगर हाथ की सफाई दिखाते हैं, यह दिव्य बुद्धि की सफाई सर्व सिद्धियों को हथेली में कर देती है। आप ब्राह्मण आत्माओं ने सब दिव्य सिद्धियां प्राप्त की हैं इसलिए आपकी मूर्तियों द्वारा आज तक भी भक्त सिद्धि प्राप्त करने के लिए जाते हैं। सर्व-वंश त्यागी वह है जिसका संकल्प, स्वभाव, संस्कार, नेचर बाप समान है। जो बाप का स्वभाव वही आपका हो, संस्कार सदा बाप समान स्नेह, रहम और उदारता के हों, जिसे ही बड़ी दिल कहते हैं। बड़ी दिल अर्थात् सर्व अपनापन अनुभव हो। बड़ी दिल में तन, मन, धन, संबंध में सफलता की बरक्कत होती है। छोटी दिल वाले को मेहनत ज्यादा, सफलता कम होती है। बड़ी दिल, उदार दिल वाले ही बाप समान बनते हैं, उन पर साहेब राज़ी रहता है। 63 जन्म तो व्यर्थ गंवाया अभी समर्थ बनने का यह एक जन्म है, इसे व्यर्थ नहीं गंवाना क्योंकि संगम की यह एक-एक घड़ी पदमों की कमाई जमा करने की है, यह कमाई की सीज़न का युग है इसलिए कभी भी समर्थ को छोड़ व्यर्थ तरफ नहीं जाना। नालेजफुल बन जो जितना स्वयं समर्थ बनेंगे उतना औरों को समर्थ बनायेंगे। ऐसा जो समय के महत्व को जानते हैं वह स्वत: महान बन जाते हैं। जो ज्ञानी और योगी तू आत्मा हैं उनके हर कर्म स्वत: युक्तियुक्त होते हैं। युक्तियुक्त अर्थात् सदा यथार्थ श्रेष्ठ कर्म। कोई भी कर्म रूपी बीज फल के सिवाए नहीं होता। जो युक्तियुक्त होगा वह जिस समय जो संकल्प, वाणी या कर्म चाहे वह कर सकेगा। उनके संकल्प भी युक्तियुक्त होंगे। ऐसे नहीं यह करना नहीं चाहता था, हो गया। सोचना नहीं चाहिए था, सोच लिया। राज़युक्त, योगयुक्त की निशानी है ही युक्तियुक्त। जो बच्चे यहाँ सेवा की सीट पर नजदीक हैं वह भविष्य में राज्य सिंहासन के भी नजदीक हैं। जितना यहाँ सेवा के सहयोगी उतना वहाँ राज्य के सदा साथी। यहाँ तपस्या और सेवा का आसन और वहाँ राज्य भाग्य का सिंहासन। जैसे यहाँ हर कर्म में बापदादा की याद में साथी हैं वैसे वहाँ हर कर्म में बचपन से लेकर राज्य करने के हर कर्म में साथी हैं। जो सदा समीप, सदा साथी, सदा सहयोगी, सदा तपस्या और सेवा के आसन पर रहते हैं वही भविष्य में सिंहासनधारी बनते हैं। जो बच्चे बाप समान सम्पन्न बनने वाले हैं वह सदा याद स्वरूप, सर्वगुण और सर्व शक्तियों स्वरूप रहते हैं। स्वरूप का अर्थ है अपना रूप ही वह बन जाए। गुण वा शक्ति अलग नहीं हो, लेकिन रूप में समाये हुए हों। जैसे कमजोर संस्कार या कोई अवगुण बहुतकाल से स्वरूप बन गये हैं, उसको धारण करने की मेहनत नहीं करते। ऐसे हर गुण हर शक्ति निजी स्वरूप बन जाए, याद करने की भी मेहनत नहीं करनी पड़े लेकिन याद में समाये रहें तब कहेंगे बाप समान। आधाकल्प व्यवहार में, भक्ति में, धर्म के क्षेत्र में सबमें मेहनत की और अभी मेहनत से छूट गये। अभी व्यवहार भी परमार्थ के आधार पर सहज हो गया। निमित्त मात्र कर रहे हो। निमित्त मात्र करने वाले को सदा सहज अनुभव होगा। व्यवहार नहीं है लेकिन खेल है। माया का तूफान नहीं लेकिन ड्रामा अनुसार आगे बढ़ने का तोहफा है। तो मेहनत छूट गई ना। ऐसे मेहनत से अपने को बचाने वाली श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हूँ -इसी स्मृति में रहो। जो परमात्म स्नेही बच्चे हैं उन्हें बापदादा एक डायमण्ड शब्द की बहुत बढ़िया सौगात देते हैं - वह शब्द है “बाबा''। इस चाबी को सदा साथ रखो तो सर्व खजानों की प्राप्ति हो जायेगी। इस चाबी की, की चेन है - सदा सर्व सम्बन्धों से स्मृति स्वरूप रहना। साथ-साथ प्रतिज्ञा के कंगन और सर्व गुणों के श्रृंगार से सजे सजाये रहो तब विश्व के आगे फरिश्ते रूप वा देव रूप में प्रख्यात होंगे। नया दिन, नई रात तो सब कहते हैं लेकिन आप श्रेष्ठ आत्माओं का हर सेकण्ड, हर संकल्प नये ते नया, ऊंचे ते ऊंचा, अच्छे ते अच्छा रहे तो चारों ओर से नई दुनिया की झलक देखने का आवाज फैलेगा और नई दुनिया के आने की तैयारी में जुट जायेंगे। जैसे स्थापना के आदि में स्वप्न और साक्षात्कार की लीला विशेष रही, ऐसे अन्त में भी यही लीला प्रत्यक्षता करने के निमित्त बनेंगी। 19.05.2023 आप सब भाग्य की लकीर खींचने वाले ब्रह्मा के बच्चे हो इसलिए सदा गोल्डन गिफ्ट का स्टॉक भरपूर रहे। जब भी किसी से मिलते हो तो हर एक को शुभ भावना और शुभ कामना की गिफ्ट सदा देते रहो। विशेषता दो और विशेषता लो। गुण दो और गुण लो। ऐसी गाडॅली गिफ्ट सभी को देते रहो। चाहे कोई किसी भी भावना वा कामना से आये लेकिन आप यह गिफ्ट अवश्य दो तब कहेंगे मास्टर भाग्य विधाता। 18.05.2023 जो बच्चे हंस आसन पर बैठकर हर कार्य करते हैं उनकी निर्णय शक्ति श्रेष्ठ हो जाती है इसलिए जो भी कार्य करेंगे उसमें विशेषता समाई हुई होगी। जैसे कुर्सी पर बैठकर कार्य करते हो वैसे बुद्धि इस हंस आसन पर रहे तो लौकिक कार्य से भी आत्माओं को स्नेह और शक्ति मिलती रहेगी। हर कार्य सहज ही सफल होता रहेगा। तो स्वयं को हंस आसन पर विराजमान विशेष आत्मा समझ कोई भी कार्य करो और सफलतामूर्त बनो। जो सच्ची लगन वाले बच्चे एक बल एक भरोसे के आधार से चलते हैं उन्हें सदा सफलता मिलती रही है और मिलती रहेगी क्योंकि सच्ची लगन विघ्नों को सहज ही समाप्त कर देती है। जहाँ सर्वशक्तिमान बाप का साथ है, उस पर पूरा भरोसा है वहाँ छोटी-छोटी बातें ऐसे समाप्त हो जाती हैं जैसे कुछ थी ही नहीं। असम्भव भी सम्भव हो जाता है। मक्खन से बाल समान सब बातें सिद्ध हो जाती हैं। तो ऐसे अपने को मास्टर सर्वशक्तिमान समझ सफलता स्वरूप बनते चलो। सेवा के क्षेत्र में हर एक के साथ मिलकर चलने का लक्ष्य हो, स्वयं को बदलने की भावना हो तो सभी बातों में सहज विजयी बन सकते हो। दूसरा बदले - यह देखने वा सोचने वाले धोखा खा लेते हैं इसलिए मुझे बदलना है, मुझे करना है, पहले हर बात में स्वयं को आगे करो। अभिमान में नहीं, करने में आगे करो तो सफलता ही सफलता है। जो मोल्ड होना जानते हैं वह रीयल गोल्ड बन जाते हैं। 15.05.2023 जो भी विशेष संकल्प लेते हो उसमें दृढ़ रहो, संकल्प करते ही उसका स्वरूप बन जाओ तो विजय का झण्डा लहरा जायेगा। ऐसे नहीं सोचो देखेंगे, करेंगे... गे गे करना अर्थात् कमजोर बनना। ऐसे कमजोर संकल्प करना अर्थात् माया से हार खाना। सदा यही अमर अविनाशी संकल्प करो कि हम सदा के विजयी, महावीर हैं, सदा आगे बढ़ेंगे, विजयी बनेंगे। तो इस संकल्प से सफलतामूर्त बन जायेंगे। ब्राह्मण जन्म लेते ही हर बच्चे को दिव्य बुद्धि का वरदान मिलता है। इस दिव्य बुद्धि पर किसी भी समस्या का, संग का वा मनमत का प्रभाव न पड़े तब रजिस्टर बेदाग रह सकता है। लेकिन यदि समय पर दिव्य बुद्धि काम नहीं करती तो रजिस्टर में दाग लग जाता है, इसलिए कहा जाता है कर्मो की लीला अति गुह्य है। दुनिया वाले तो हर कदम में कर्मों को कूटते हैं लेकिन आप कर्मो की गति के ज्ञाता बच्चे कभी कर्म कूट नहीं सकते। आप तो कहेंगे वाह मेरे श्रेष्ठ कर्म। जब स्वयं को ट्रस्टी समझकर रहेंगे तो हर परिस्थिति में स्थिति एकरस रहेगी क्योंकि ट्रस्टी अर्थात् न्यारे और प्यारे। गृहस्थी हैं तो अनेक रस हैं, मेरा-मेरा बहुत हो जाता है। कभी मेरा घर, कभी मेरा परिवार। गृहस्थीपन अर्थात् अनेक रसों में भटकना। ट्रस्टीपन अर्थात् एकरस। ट्रस्टी सदा हल्का और सदा चढ़ती कला में जायेगा। उसमें मेरेपन की ममता नहीं होगी, दु:ख की लहर भी नहीं आयेगी। सारे विश्व के अन्दर हम कोटों में कोई, कोई में भी कोई श्रेष्ठ आत्मायें हैं, जिन्होंने स्वयं अनुभव करके यह महसूस किया है, कि हम कल्प पहले वाली वही श्रेष्ठ आत्मायें हैं, जिन्होंने स्वयं को बाप शमा के पीछे फिदा किया है। वे चक्र लगाने वाले नहीं, परवाने बन फिदा होने वाले हैं। फिदा होना अर्थात् मर जाना। तो ऐसे जल मरने वाले परवाने हो ना! जलना ही बाप का बनना है, जलना अर्थात् सम्पूर्ण परिवर्तन होना। जैसे स्थूल सेवा में सदा एवररेडी रहते हो, जहाँ बुलावा होता है वहाँ पहुंच जाते हो। ऐसे मन्सा से भी जो संकल्प धारण करने चाहो उसमें भी एवररेडी रहो। जो सोचो उसी समय वह करो। रूहानी सेवाधारी बच्चे रूहानी संबंध और सम्पर्क निभाने में एवररेडी। उन्हें संस्कार मिटाने वा संस्कार मिलाने में टाइम नहीं लगता। जैसे बाप के संस्कार वैसे आप के भी संस्कार हो। यह संस्कार मिलाना बड़े से बड़ी रास है।
सेवा की अविनाशी सफलता के लिए मास्टर दाता बन सर्व को सहयोग दो। बिगड़े हुए कार्य को, बिगड़े हुए संस्कारों को, बिगड़े हुए मूड को शुभ भावना से ठीक करने में सदा सर्व के सहयोगी बनना - यह है बड़े से बड़ी देन। इसने यह कहा, यह किया, यह देखते सुनते, समझते हुए भी अपने सहयोग के स्टॉक द्वारा परिवर्तन कर देना। किसी द्वारा कोई शक्ति की कमी भी महसूस हो तो अपने सहयोग से जगह भर देना - यही है मास्टर दाता बनना। मेहनत से मुक्त होने के लिए बाप के स्नेही बनो। यह अविनाशी स्नेह ही अविनाशी लिफ्ट बन उड़ती कला का अनुभव कराता है। लेकिन यदि स्नेह में अलबेलापन है तो बाप से करेन्ट नहीं मिलती और लिफ्ट काम नहीं करती। जैसे लाइट बन्द होने से, कनेक्शन खत्म होने से लिफ्ट द्वारा सुख की अनुभूति नहीं कर सकते, ऐसे स्नेह कम है तो मेहनत का अनुभव होता है, इसलिए अविनाशी स्नेही बनो। बापदादा के पास सभी बच्चों की सेवा के तीन प्रकार के खाते जमा हैं। जो यज्ञ स्नेही हैं वह मन्सा-वाचा-कर्मणा, तन मन और धन तीनों सेवा में सदा सहयोगी बनते हैं। हर खाते की 100 मार्क्स हैं। अगर किसी की वाचा सेवा की ड्युटी है तो उसमें मन्सा और कर्मणा की परसेन्टेज कम न हो। वाचा सेवा सहज है लेकिन मन्सा में अटेन्शन देने की बात है और कर्मणा सिर्फ स्थूल सेवा नहीं लेकिन संगठन में सम्पर्क-सम्बन्ध में आना - यह भी कर्म के खाते में जमा होता है। जैसे बाप ने किसी भी बच्चे की कमजोरी को नहीं देखा, हिम्मत बढ़ाई कि आप ही मेरे थे, हैं और सदा बनेंगे, ऐसे फालो फादर करो। हर एक की विशेषता को देखते सम्बन्ध-सम्पर्क में आओ तो आत्माओं से स्वत: आत्मिक प्यार इमर्ज होगा और बाप के साथ-साथ सर्व के स्नेही बन जायेंगे। जहाँ आत्मिक स्नेह है वहाँ सदा सभी द्वारा सद्भावना, सहयोग की भावना स्वत: ही दुआओं के रूप में प्राप्त होती है, इसको ही रूहानी यथार्थ हैन्डलिंग कहा जाता है। एक दो को आगे बढ़ाने का गुण अर्थात् “पहले आप'' का गुण परमार्थ और व्यवहार दोनों में ही सर्व का प्रिय बना देता है। बाप का भी यही मुख्य गुण है। बाप कहते हैं बच्चे “पहले आप''। तो इसी गुण में फालो फादर करो, यही सफलता प्राप्त करने की विधि है। जो बाप के प्रिय, ब्राह्मण परिवार के प्रिय और विश्व सेवा के प्रिय हैं वही एवररेडी हैं। जैसे बाप के प्रति अटूट, अखण्ड, अटल प्यार है, श्रेष्ठ भावना है, निश्चय है ऐसे ब्राह्मण आत्माओं से आत्मिक प्यार अटूट और अखण्ड हो। किसी के कैसे भी संस्कार हो, चलन हो लेकिन ब्राह्मण आत्माओं का सारे कल्प में अटूट संबंध है, ईश्वरीय परिवार है, बाप ने हर आत्मा को चुनकर ईश्वरीय परिवार में लाया है, यह स्मृति रहे तो आत्मिक प्यार अटूट होने से स्नेह सम्पन्न व्यवहार होगा और सहज सफलतामूर्त बन जायेंगे। ब्राह्मण आत्माओं का निज़ी संस्कार “अटेन्शन और अभ्यास'' है। इसलिए कभी अटेन्शन का भी टेन्शन नहीं रखना। सदा स्व सेवा और औरों की सेवा साथ-साथ करो। जो स्व सेवा छोड़ पर सेवा में लगे रहते हैं उन्हें सफलता नहीं मिल सकती, इसलिए दोनों का बैलेन्स रख आगे बढ़ो। कमजोर नहीं बनो। अनेक बार के निमित्त बने हुए विजयी आत्मा हो, विजयी आत्मा के लिए कोई मेहनत नहीं, मुश्किल नहीं। दिव्य बुद्धि को बुद्धिबल कहा जाता है इस बुद्धिबल द्वारा ही बाप से सर्वशक्तियां कैच कर मास्टर सर्व-शक्तिमान बनते हो। जैसे साइंस बुद्धिबल है लेकिन वह संसारी बुद्धि है इसलिए इस संसार के प्रति, प्रकृति के प्रति ही सोच सकते हैं। आपके पास दिव्य बुद्धि का बल है जो परमात्म प्राप्ति की अनुभूति कराता है। दिव्य बुद्धि द्वारा हर कर्म में परमात्म प्योर टचिंग का अनुभव कर सफलता का अनुभव कर सकते हो। दिव्य बुद्धि के बल से माया के वार को हार खिला सकते हो। वाचा के साथ-साथ संकल्प शक्ति द्वारा सेवा करना - यही पावरफुल अन्तिम सेवा है। जब मन्सा सेवा और वाणी की सेवा दोनों का कम्बाइन्ड रूप होगा तब सहज सफलता होगी, इससे दुगुनी रिजल्ट निकलेगी। वाणी की सेवा करने वाले तो थोड़े होते हैं बाकी रेख देख करने वाले, दूसरे कार्यों में जो रहते हैं उन्हें मन्सा सेवा करनी चाहिए, इससे वायुमण्डल योगयुक्त बनता है। हर एक समझे मुझे सेवा करनी है तो वातावरण भी पावरफुल होगा और सेवा भी डबल हो जायेगी। रूहानी एक्सरसाइज़ अर्थात् अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी अव्यक्त फरिश्ता, अभी-अभी साकारी कर्मयोगी। अभी-अभी विश्व सेवाधारी। ऐसी एक्सरसाइज रोज़ करो तो व्यर्थ का जो बोझ है वो समाप्त हो जायेगा। जब बोझ (वेट) समाप्त हो, माशूक समान डबल लाइट बनो तब जोड़ी अच्छी लगेगी। यदि माशूक हल्का हो और आशिक भारी हो तो जोड़ी अच्छी नहीं लगेगी। रूहानी माशूक आशिकों को कहते हैं समान बनो, समीप बनो। 28.04.2023 जैसे छोटा सा फायरफलाई (जुगनू) दूर से ही अपनी रोशनी का अनुभव कराता है। ऐसे विश्व की आत्माओं वा सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को महसूस हो कि शान्ति की किरणें इन विशेष आत्माओं द्वारा मिल रही हैं। बुद्धि द्वारा अनुभव करें कि शान्ति का अवतार शान्ति देने आ गये हैं। चारों ओर की अशान्त आत्मायें शान्ति की किरणों के आधार पर शान्ति कुण्ड की तरफ खिंची हुई आयें। इस शान्ति की शक्ति का अभी प्रयोग करो। साइलेन्स की शक्ति का विशेष यंत्र है “शुभ संकल्प''। इस संकल्प के यंत्र द्वारा जो चाहो वह सिद्धि स्वरूप में देख सकते हो, इसका प्रयोग पहले स्व के प्रति करो। तन की व्याधि के ऊपर प्रयोग करके देखो तो शान्ति की शक्ति द्वारा कर्मबंधन का रूप, मीठे संबंध के रूप में बदल जायेगा। कर्मभोग - कर्म का कड़ा बंधन साइलेन्स की शक्ति से पानी की लकीर मिसल अनुभव होगा। तो तन पर, मन पर, संस्कारों पर साइलेन्स की शक्ति का प्रयोग करो और सिद्धि स्वरूप बनो। बापदादा बच्चों को निमंत्रण देते हैं कि बच्चे संकल्प का स्विच आन करो और वतन में पहुंच कर सूर्य की किरणें लो, चन्द्रमा की चांदनी भी लो, पिकनिक भी करो और खेलकूद भी करो। इसके लिए सिर्फ बुद्धि रूपी विमान में डबल रिफाइन पेट्रोल की आवश्यकता है। डबल रिफाइन अर्थात् एक निराकारी निश्चय का नशा कि मैं आत्मा हूँ, बाप का बच्चा हूँ, दूसरा साकार रूप में सर्व संबंधों का नशा। यह नशा और खुशी सहजयोगी भी बना देगी और तीनों लोकों का सैर भी करते रहेंगे। जो अभी स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं वही भविष्य में चक्रवर्ती राज्य-भाग्य के अधिकारी बनते हैं। स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात् अपने सारे चक्र के अन्दर सर्व भिन्न-भिन्न पार्ट को जानने वाले। आप बच्चे विशेष इस समय 5 हजार वर्ष की जन्मपत्री को जानकर मास्टर नॉलेजफुल बन गये। सभी ने यह विशेष बात जान ली कि इस अन्तिम जन्म में हीरे तुल्य जीवन बनाने से सारे कल्प के अन्दर हीरो पार्ट बजाने वाले बन जाते हैं। 20.04.2023 स्वयं को बेहद की स्टेज पर समझ सदा श्रेष्ठ पार्ट बजाने वाले हीरो पार्टधारी भव आप सब विश्व के शोकेस में रहने वाले शोपीस हो, बेहद की अनेक आत्माओं के बीच बड़े ते बड़ी स्टेज पर हो। इसी स्मृति से हर संकल्प, बोल और कर्म करो कि विश्व की आत्मायें हमें देख रही हैं इससे हर पार्ट श्रेष्ठ होगा और हीरो पार्टधारी बन जायेंगे। सभी आप निमित्त आत्माओं से प्राप्ति की भावना रखते हैं तो सदा दाता के बच्चे देते रहो और सर्व की आशायें पूर्ण करते रहो। 19.04.2023 चलते-फिरते सदा यही स्मृति में रहे कि हम हैं ही फरिश्ते। फरिश्तों का स्वरूप क्या, बोल क्या, कर्म क्या...वह सदा स्मृति में रहें क्योंकि जब बाप के बन गये, सब कुछ मेरा सो तेरा कर दिया तो हल्के (फरिश्ते) बन गये। इस लक्ष्य को सदा सम्पन्न करने के लिए एक ही शब्द याद रहे - सब बाप का है, मेरा कुछ नहीं। जहाँ मेरा आये वहाँ तेरा कह दो, फिर कोई बोझ फील नहीं होगा, सदा उड़ती कला में उड़ते रहेंगे। 18.04.2023 जिस समय कोई कमजोरी वर्णन करते हो, चाहे संकल्प की, बोल की, चाहे संस्कार-स्वभाव की तो यही कहते हो कि मेरा विचार ऐसे कहता है, मेरा संस्कार ही ऐसा है। लेकिन जो बाप का संस्कार, संकल्प सो मेरा। समर्थ की निशानी ही है बाप समान। तो संकल्प, बोल, हर बात में बाबा शब्द नेचुरल हो और कर्म करते करावनहार की स्मृति हो तो बाबा के आगे माया अर्थात् कमजोरी आ नहीं सकती। 17.04.2023 दिलाराम को दिल देना अर्थात् दिल में बसाना - इसी को ही सहजयोग कहा जाता है। जहाँ दिल होगी वहाँ ही दिमाग भी चलेगा। जब दिल और दिमाग अर्थात् स्मृति, संकल्प, शक्ति सब बाप को दे दी, मन-वाणी और कर्म से बाप के हो गये तो और कोई भी संकल्प वा किसी भी प्रकार की आकर्षण आने की मार्जिन ही नहीं। स्वप्न भी इसी आधार पर आते हैं। जब सब कुछ तेरा कहा तो दूसरी आकर्षण आ ही नहीं सकती। सहज ही सर्व आकर्षण मूर्त बन जायेंगे। 16.04.2023 जब यह अनुभव हो जाता है कि मेरा बाबा है, तो जो मेरा होता है वह स्वत: याद रहता है। याद किया नहीं जाता है। मेरा अर्थात् अधिकार प्राप्त हो जाना। मेरा बाबा और मैं बाबा का - इसी को कहा जाता है सहजयोग। ऐसे सहजयोगी बन एक बाप की याद के लगन में मगन रहते हुए आगे बढ़ते चलो। यह अटूट याद ही सर्व समस्याओं का हलकर उड़ती पंछी बनाए उड़ती कला में ले जायेगी। 15.04.2023 वर्तमान समय कई आत्मायें आपके सहयोग के लिए चात्रक हैं लेकिन अपनी शक्ति नहीं है। उन्हें आपको अपने शक्तियों की मदद विशेष देनी पड़ेगी इसलिए निमित्त बने हुए सेवाधारियों में सर्व शक्तियों की पावर चाहिए। जैसे ब्रह्मा बाप ने लास्ट में बच्चों को शक्तियों की विल की, उस विल से यह कार्य चल रहा है, ऐसे फालो फादर। अपने शक्तियों की विल आत्माओं के प्रति करो तो समय के प्रमाण सेवा सम्पन्न हो जायेगी। 14.04.2023 साधनों को आधार बनाने के बजाए अपनी साधना के आधार से साधनों को कार्य में लगाओ। किसी भी साधन को उन्नति का आधार नहीं बनाओ, नहीं तो आधार हिलने के साथ उमंग-उत्साह भी हिल जाता है क्योंकि साधन को आधार बनाने से बाप बीच से निकल जाता इसलिए हलचल होती है। साधनों के साथ साधना हो तो हर कार्य में बाप की ब्लैसिंग का अनुभव करेंगे, उमंग-उत्साह भी कम नहीं होगा। 13.04.2023 साधना अर्थात् शक्तिशाली याद। बाप के साथ दिल का सच्चा संबंध। जैसे योग में शरीर से एकाग्र होकर बैठते हो ऐसे दिल, मन-बुद्धि सब एक बाप की तरफ बाप के साथ-साथ बैठ जाए - यही है यथार्थ साधना। अगर ऐसी साधना नहीं तो फिर आराधना चलती है। कभी याद करते कभी फरियाद करते। वास्तव में याद में फरियाद की आवश्यकता नहीं, जिसका दिल से बाप के साथ संबंध है वह निरन्तर योगी बन जाता है। 12.04.2023 ब्राह्मण जीवन की विशेष धारणा पवित्रता है, यही निरन्तर अतीन्द्रिय सुख और स्वीट साइलेन्स का विशेष आधार है। पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं लेकिन ब्रह्मचारी और सदा ब्रह्माचारी अर्थात् ब्रह्मा बाप के आचरण पर हर कदम चलने वाले। संकल्प, बोल और कर्म रूपी कदम ब्रह्मा बाप के कदम ऊपर कदम हो, ऐसे जो ब्रह्माचारी हैं उनका चेहरा और चलन सदा ही अन्तर्मुखी और अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करायेगा। 11.04.2023 10.04.2023 09.04.2023 अपनी श्रेष्ठ स्थिति द्वारा भटकती हुई आत्माओं को श्रेष्ठ ठिकाना देने वाले लाइट स्वरूप भव 08.04.2023 हर आत्मा को सेकण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति का अधिकार दिलाने वाले मास्टर सतगुरू भव अभी तक मास्टर दाता वा मास्टर शिक्षक का पार्ट बजा रहे हो। लेकिन अभी सतगुरू के बच्चे बन गति और सद्गति के वरदाता का पार्ट बजाना है। मास्टर सतगुरू अर्थात् सम्पूर्ण फालो करने वाले। सतगुरू के वचन पर सदा सम्पूर्ण रीति चलने वाले। ऐसे मास्टर सतगुरू ही सेकण्ड में नज़र से निहाल करने अर्थात् मुक्ति जीवनमुक्ति का अधिकार दिलाने की सेवा कर सकते हैं। 07.04.2023 हर कर्म का बोझ बाप पर छोड़ स्वयं ट्रस्टी बन रहने वाले डबल लाइट फरिश्ता भव हिम्मत रखने वाले बच्चों को बापदादा सदा ही मदद करते हैं। बच्चे श्रेष्ठ संकल्प करते और बाप हाज़िर हो जाते। सिर्फ बाप के ऊपर सारा कार्य छोड़ दो तो बाप जाने, कार्य जाने। खुद अपने ऊपर जवाबदारियों का बोझ नहीं उठाओ, ट्रस्टी बनकर रहो तो सदा हल्के, डबल लाइट फरिश्ता बन उड़ते रहेंगे। दिल साफ है तो मुराद हांसिल हो जाती है। 06.04.2023 करावनहार की स्मृति द्वारा बड़े से बड़े कार्य को सहज करने वाले निमित्त करनहार भव बापदादा स्थापना का बड़े से बड़ा कार्य स्वयं करावनहार बन निमित्त करनहार बच्चों द्वारा करा रहे हैं। करन-करावनहार इस शब्द में बाप और बच्चे दोनों कम्बाइन्ड हैं। हाथ बच्चों का और काम बाप का। हाथ बढ़ाने का गोल्डन चांस बच्चों को ही मिला है। लेकिन अनुभव यहीं करते हो कि कराने वाला करा रहा है, निमित्त बनाए चला रहा है। हर कर्म में करावनहार के रूप में साथी है। 05.04.2023 साथ रहेंगे, साथ जियेंगे.. इस वायदे की स्मृति द्वारा कम्बाइन्ड रहने वाले सहजयोगी भव आप बच्चों को वायदा है कि साथ रहेंगे, साथ जियेंगे, साथ चलेंगे... इस वायदे को स्मृति में रख बाप और आप कम्बाइन्ड रूप में रहो तो इस स्वरूप को ही सहजयोगी कहा जाता है। योग लगाने वाले नहीं लेकिन सदा कम्बाइन्ड अर्थात् साथ रहने वाले। ऐसे साथ रहने वाले ही निरन्तर योगी, सदा सहयोगी, उड़ती कला में जाने वाले फरिश्ता स्वरूप बनते हैं। 29.03.2023 न्यारेपन के अभ्यास द्वारा पास विद आनर होने वाले ब्रह्मा बाप समान भव जैसे ब्रह्मा बाप ने साकार जीवन में कर्मातीत होने के पहले न्यारे और प्यारे रहने के अभ्यास का प्रत्यक्ष अनुभव कराया। सेवा वा कोई कर्म छोड़ा नहीं लेकिन न्यारे होकर सेवा की। यह न्यारा पन हर कर्म में सफलता सहज अनुभव कराता है। तो सेवा का विस्तार भल कितना भी बढ़ाओ लेकिन विस्तार में जाते सार की स्थिति का अभ्यास कम न हो तब ही डबल लाइट बन कर्मातीत स्थिति को प्राप्त कर डबल ताजधारी, ब्रह्मा बाप समान पास विद आनर बनेंगे। 28.03.2023 आने और जाने के अभ्यास द्वारा बन्धनमुक्त बनने वाले न्यारे, निर्लिप्त भव सारे पढ़ाई अथवा ज्ञान का सार है - आना और जाना। बुद्धि में घर जाने और राज्य में आने की खुशी है। लेकिन खुशी से वही जायेगा जिसका सदा आने और जाने का अभ्यास होगा। जब चाहो तब अशरीरी स्थिति में स्थित हो जाओ और जब चाहो तब कर्मातीत बन जाओ - यह अभ्यास बहुत पक्का चाहिए। इसके लिए कोई भी बंधन अपनी तरफ आकर्षित न करे। बंधन ही आत्मा को टाइट कर देता है और टाइट वस्त्र को उतारने में खिंचावट होती है इसलिए सदा सदा न्यारे, निर्लिप्त रहने का पाठ पक्का करो। 27.03.2023 तन मन और दिल की स्वच्छता द्वारा साहेब को राज़ी करने वाले सच्चे होलीहंस भव स्वच्छता अर्थात् मन-वचन-कर्म, सम्बन्ध सबमें पवित्रता। पवित्रता की निशानी सफेद रंग दिखाते हैं। आप होलीहंस भी सफेद वस्त्रधारी, साफ दिल अर्थात् स्वच्छता स्वरूप हो। तन, मन और दिल से सदा बेदाग अर्थात् स्वच्छ हो। साफ मन वा साफ दिल पर साहेब राज़ी होता है। उनकी सर्व मुरादें अर्थात् कामनायें पूरी होती हैं। हंस की विशेषता स्वच्छता है इसलिए ब्राह्मण आत्माओं को होलीहंस कहा जाता है। 26.03.2023 शुद्ध मन और दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा सेकण्ड में स्वीट होम की यात्रा करने वाले मा0 सर्वशक्तिवान भव साइन्स वाले फास्ट गति के यत्र निकालने का प्रयत्न करते हैं, उसके लिए कितना खर्चा करते हैं, कितना समय और एनर्जी लगाते हैं, लेकिन आपके पास इतनी तीव्रगति का यत्र है जो बिना खर्च के सोचा और पहुंचा, आपको शुभ संकल्प का यत्र मिला है, दिव्य बुद्धि मिली है। इस शुद्ध मन और दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा जब चाहे तब चले जाओ और जब चाहे तब लौट आओ। मास्टर सर्वशक्तिवान को कोई रोक नहीं सकता। 25.03.2023 भ्रकुटी की कुटिया में बैठ अन्तर्मुखता का रस लेने वाले सच्चे तपस्वीमूर्त भव जो बच्चे अपने बोल पर कन्ट्रोल कर एनर्जी और समय जमा कर लेते हैं, उन्हें स्वत: अन्तर्मुखता के रस का अनुभव होता है। अन्तर्मुखता का रस और बोलचाल का रस - इसमें रात दिन का अन्तर है। अन्तर्मुखी सदा भ्रकुटी की कुटिया में तपस्वीमूर्त का अनुभव करता है। वो व्यर्थ संकल्पों से मन का मौन और व्यर्थ बोल से मुख का मौन रखता है इसलिए अन्तर्मुखता के रस की अलौकिक अनुभूति होती है। 24.03.2023 एक बाप को अपना संसार बनाकर सदा हंसने, गाने और उड़ने वाले प्रसन्नचित भव कहा जाता है दृष्टि से सृष्टि बदल जाती है तो आपकी रूहानी दृष्टि से सृष्टि बदल गई, अभी आपके लिए बाप ही संसार है। पहले के संसार और अभी के संस्कार में फ़र्क हो गया, पहले संसार में बुद्धि भटकती थी, अभी बाप ही संसार हो गया तो बुद्धि का भटकना बंद हो गया। बेहद की प्राप्तियां कराने वाला बाप मिल गया तो और क्या चाहिए इसलिए हंसते गाते, उड़ते सदा प्रसन्नचित रहो। माया रुलाये तो भी रोना नहीं। 23.03.2023 सर्व संबंध एक बाप से जोड़कर माया को विदाई देने वाले सहजयोगी भव 22.03.2023 सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को सदा सुख की अनुभूति कराने वाले मास्टर सुखदाता भव आप सुखदाता के बच्चे मास्टर सुखदाता हो इसलिए सुख का खाता जमा करते रहो। सिर्फ यह चेक नहीं करो कि आज सारे दिन में किसी को दु:ख तो नहीं दिया? लेकिन चेक करो कि सुख कितनों को दिया? जो भी सम्पर्क में आये आप मास्टर सुखदाता द्वारा हर कदम में सुख की अनुभूति करे, इसको कहा जाता है दिव्यता वा अलौकिकता। हर समय स्मृति रहे कि इस एक जन्म में 21 जन्मों का खाता जमा करना है। 21.03.2023 सूर्यमुखी पुष्प के समान ज्ञान सूर्य के प्रकाश से चमकने वाले सदा सम्मुख और समीप भव जैसे सूर्यमुखी पुष्प सदा सूर्य की सकाश से घिरा हुआ रहता है। उसका मुख सूर्य की तरफ होता है, पंखुड़ियां सूर्य की किरणों के समान सर्किल में होती हैं। ऐसे जो बच्चे सदा ज्ञान सूर्य के समीप और सम्मुख रहते हैं, कभी दूर नहीं होते - वे सूर्यमुखी पुष्प के समान ज्ञान सूर्य के प्रकाश से स्वयं भी चमकते और दूसरों को भी चमकाते हैं। 20.03.2023 रूहानियत में रहकर स्वमान की सीट पर बैठने वाले सदा सुखी, सर्व प्राप्ति स्वरूप भव हर एक बच्चे में किसी न किसी गुण की विशेषता है। सभी विशेष हैं, गुणवान हैं, महान हैं, मास्टर सर्वशक्तिमान् हैं - यह रूहानी नशा सदा स्मृति में रहे - इसको ही कहते हैं स्वमान। इस स्वमान में अभिमान आ नहीं सकता। अभिमान की सीट कांटों की सीट है इसलिए उस सीट पर बैठने का प्रयत्न नहीं करो। रूहानियत में रहकर स्वमान की सीट पर बैठ जाओ तो सदा सुखी, सदा श्रेष्ठ, सदा सर्व प्राप्ति स्वरूप का अनुभव करते रहेंगे। 19.03.2023 सर्व रूहानी खजानों से सम्पन्न बन सदा सन्तुष्ट रहने वाले आलराउण्ड सेवाधारी भव आलराउण्ड सेवाधारी अर्थात् मास्टर सुख दाता, मास्टर शान्ति दाता, मास्टर ज्ञान दाता। दाता सदा सम्पन्न मूर्त होते हैं। जैसा स्वयं होंगे वैसा औरों को बनायेंगे। रूहानी सेवाधारी अर्थात् एवररेडी और आलराउन्ड। आलराउन्डर वही बन सकते जो सम्पन्न हैं, सम्पन्न ही सन्तुष्ट होंगे और सबको सन्तुष्ट करेंगे। किसी भी प्रकार की अप्राप्ति असन्तुष्टता पैदा करती है। सन्तुष्ट रहने और सन्तुष्ट करने की विधि है सम्पन्न और दाता बनना। 18.03.2023 बिन्दू रूप में स्थित रह सारयुक्त, योगयुक्त, युक्तियुक्त स्वरूप का अनुभव करने वाले सदा समर्थ भव क्वेश्चन मार्क के टेढ़े रास्ते पर जाने के बजाए हर बात में बिन्दी लगाओ। बिन्दू रूप में स्थित हो जाओ तो सारयुक्त, योग-युक्त, युक्तियुक्त स्वरूप का अनुभव करेंगे। स्मृति, बोल और कर्म सब समर्थ हो जायेंगे। बिना बिन्दू बने विस्तार में गये तो क्यों, क्या के व्यर्थ बोल और कर्म में समय और शक्तियां व्यर्थ गवां देंगे क्योंकि जंगल से निकलना पड़ेगा इसलिए बिन्दू रूप में स्थित रह सर्व कर्मेन्द्रियों को आर्डर प्रमाण चलाओ। 17.03.2023 बिन्दू की मात्रा के महत्व को जान बीती को बिन्दी लगाने वाले सहजयोगी भव सबसे सरल मात्रा बिन्दी है। बापदादा सिर्फ बिन्दी का हिसाब बताते हैं। स्वयं भी बिन्दु रूप बनो, याद भी बिन्दु को करो और ड्रामा के हर दृश्य को जानने करने के बाद बिन्दु की मात्रा लगा दो। इस बिन्दु की मात्रा के महत्व को जान बीती को बिन्दी लगा दो, बिन्दू बन जाओ तो सहजयोगी बन जायेंगे। वैसे भी अब बिन्दी बन घर जाना है। घर में सब बिन्दू रूप में रहते जहाँ संकल्प, कर्म, संस्कार सब मर्ज हैं। 16.03.2023 स्वदर्शन चक्रधारी बन हर कर्म चरित्र के रूप में करने वाले मायाजीत, सफलतामूर्त भव जैसे बाप के हर कर्म चरित्र के रूप में गाये जाते हैं ऐसे आपके भी हर कर्म चरित्र के समान हों। जो बाप के समान स्वदर्शन चक्रधारी बने हैं उनसे कभी भी साधारण कर्म नहीं हो सकते। स्वदर्शन चक्रधारी की निशानी ही है सफलता स्वरूप। जो भी कार्य करेंगे उसमें सफलता समाई हुई होगी। स्वदर्शन चक्रधारी मायाजीत होने के कारण सफलता मूर्त होंगे और जो सफलतामूर्त हैं वह हर कदम में पदमापदम पति हैं। 15.03.2023 तीर्थ स्थान की स्मृति द्वारा सर्व पापों से मुक्त होने वाले पुण्य आत्मा भव मधुबन महान तीर्थ है। भक्ति मार्ग में मानते हैं कि तीर्थ स्थान पर जाने से पाप खत्म हो जाते हैं लेकिन इसका प्रैक्टिकल अनुभव तुम बच्चे अभी करते हो कि इस महान तीर्थ स्थान पर आने से पुण्य आत्मा बन जाते हैं। यह तीर्थ स्थान की स्मृति अनेक समस्याओं से पार कर देती है। यह स्मृति भी एक ताबीज़ का काम करती है। कोई भी बात हो यहाँ के वातावरण को याद करने से सुख-शान्ति के झूले में झूलने लगेंगे। तो इस धरनी पर आना भी बहुत बड़ा भाग्य है। 14.03.2023 मास्टर ज्ञान सूर्य बन सारे विश्व को सर्व शक्तियों की किरणें देने वाले विश्व कल्याणकारी भव जैसे सूर्य अपनी किरणों द्वारा विश्व को रोशन करता है ऐसे आप सभी भी मास्टर ज्ञान सूर्य हो तो अपने सर्व शक्तियों की किरणें विश्व को देते रहो। यह ब्राह्मण जन्म मिला ही है विश्व कल्याण के लिए तो सदा इसी कर्तव्य में बिजी रहो। जो बिजी रहते हैं वो स्वयं भी निर्विघ्न रहते और सर्व के प्रति भी विघ्न-विनाशक बनते। उनके पास कोई भी विघ्न आ नहीं सकता। 13.03.2023 सेवा का पार्ट बजाते पार्ट से न्यारे और बाप के प्यारे रहने वाले सहज योगी भव कई बच्चे कहते हैं योग कभी लगता है कभी नहीं लगता, इसका कारण है - न्यारे पन की कमी। न्यारे न होने के कारण प्यार का अनुभव नहीं होता और जहाँ प्यार नहीं वहाँ याद नहीं। जितना ज्यादा प्यार उतनी सहज याद इसलिए संबंध के आधार पर पार्ट नहीं बजाओ, सेवा के संबंध से पार्ट बजाओ तो न्यारे रहेंगे। कमल पुष्प समान पुरानी दुनिया के वातावरण से न्यारे और बाप के प्यारे बनो तो सहजयोगी बन जायेंगे। 12.03.2023 खुशी के खजाने से सम्पन्न बन सदा खुश रहने और खुशी का दान देने वाले महादानी भव संगमयुग पर बापदादा ने सबसे बड़ा खजाना खुशी का दिया है। रोज़ अमृतवेले खुशी की एक प्वाइंट सोचो और सारा दिन उसी खुशी में रहो। ऐसे खुशी में रहते दूसरों को भी खुशी का दान देते रहो, यही सबसे बड़े ते बड़ा महादान है क्योंकि दुनिया में अनेक साधन होते हुए भी अन्दर की सच्ची अविनाशी खुशी नहीं है, आपके पास खुशियों का भण्डार है तो दान देते रहो, यही सबसे बड़ी सौगात है। 11.03.2023 रूहानी नशे द्वारा दु:ख-अशान्ति के नाम निशान को समाप्त करने वाले सर्व प्राप्ति स्वरूप भव रूहानी नशे में रहना अर्थात् चलते-फिरते आत्मा को देखना वा आत्म-अभिमानी रहना। इस नशे में रहने से सर्व प्राप्तियों का अनुभव होता है। प्राप्ति स्वरूप रूहानी नशे में रहने वाली आत्मा के सब दु:ख दूर हो जाते हैं। दु:ख-अशान्ति का नाम निशान भी नहीं रहता क्योंकि दु:ख और अशान्ति की उत्पत्ति अपवित्रता से होती है। जहाँ अपवित्रता नहीं वहाँ दु:ख अशान्ति कहाँ से आई! जो पावन आत्मायें हैं उनके पास सुख और शान्ति स्वत: ही है। 10.03.2023 पुराने हिसाब-किताब को समाप्त कर सम्पूर्णता का समारोह मनाने वाले बन्धनमुक्त भव इस पराये देश में जब सभी बंधन-युक्त आत्मा बन जाते हैं तब बाप आकर स्वरूप और स्वदेश की स्मृति दिलाकर बन्धन-मुक्त बनाए स्वदेश में ले जाते हैं और स्वराज्य अधिकारी बनाते हैं। तो अपने स्वदेश में चलने के लिए सब हिसाब-किताब के समाप्ति का समाप्ति समारोह मनाओ। जब अभी यह समारोह मनायेंगे तब अन्त में सम्पूर्णता समारोह मना सकेंगे। बहुतकाल के बन्धनमुक्त ही बहुतकाल के जीवनमुक्त पद को प्राप्त करते हैं। 09.03.2023 न्यारे और प्यारे पन की विशेषता द्वारा बाप के प्रिय बनने वाले निरन्तर योगी भव मैं बाप का कितना प्यारा हूँ - इसका हिसाब न्यारेपन से लगा सकते हो। अगर थोड़ा न्यारे हैं, बाकी फंस जाते हैं तो प्यारे भी इतने होंगे। जो सदा बाप के प्यारे हैं उसकी निशानी है स्वत: याद। प्यारी चीज़ स्वत: और निरन्तर याद रहती है। तो यह कल्प-कल्प की प्रिय चीज़ है। ऐसी प्रिय वस्तु भूल कैसे सकते! भूलते तब हो जब बाप से भी अधिक कोई व्यक्ति या वस्तु को प्रिय समझने लगते हो। अगर सदा बाप को प्रिय समझो तो निरन्तर योगी बन जायेंगे। 08.03.2023 पवित्रता की स्टेज द्वारा अविनाशी ईश्वरीय मस्ती का अनुभव करने वाले होलीहंस भव होली पर सभी बड़े छोटे के भान को भूल आपस में एक समान समझ मस्ती में खेलते हैं, दुश्मनी के संस्कार भूल मंगल मिलन मनाते हैं। यह रस्म भी अभी की है। आप बच्चे जब होली अर्थात् पवित्रता की स्टेज पर ठहरते हो, बाप के संग के रंग में रंगे हुए होते हो तब ईश्वरीय मस्ती में देह का भान वा भिन्न-भिन्न सम्बन्ध का भान, छोटे बड़े का भान विस्मृत हो एक ही आत्म स्वरुप का भान रहता है। यही होलीहंस स्थिति है। इसी का यादगार हर वर्ष होली उत्सव के रूप में मनाते हैं। 07.03.2023 होली के अर्थ स्वरूप में स्थित हो सच्ची होली मनाने वाले हाइएस्ट होलीएस्ट भव “हो ली'' अर्थात् जो कुछ हुआ वह हो गया, हो लिया। जो सीन हुई हो ली अर्थात् बीत गई, बीती को बीती करने के लिए सदा ड्रामा की ढाल को यूज़ करो। होली का रंग पक्का तभी लगता है जब हर वक्त याद रहता कि हो ली, जो बीता हो गया। वह कभी ड्रामा की कोई भी सीन देखते क्यों, क्या, कैसे.. इन प्रश्नों में उलझते नहीं। सदा ज्ञान मंथन कर अपनी होलीएस्ट और हाइएस्ट स्टेज बना लेते हैं। 06.03.2023 अपने बचे हुए तन-मन-धन को ईश्वरीय कार्य में लगाकर जमा करने वाले सदा सहयोगी भव यादगार में जो गोवर्धन पर्वत को उठाने में हर एक की अंगुली दिखाई है - यह आपके सहयोग की निशानी है। चित्र में बाप का साथ भी दिखाते हैं तो सेवा भी दिखाते हैं। अभी आप बच्चे बापदादा के सहयोगी बने हो तब यादगार बना है। भक्ति में तो तन-मन-धन जो कुछ लगाया उसमें 99 परसेन्ट गंवा दिया। बाकी जो 1 परसेन्ट बचा है उसे अब सच्ची दिल से ईश्वरीय कार्य में लगाओ तो फिर से पदमगुणा जमा हो जायेगा। 05.03.2023 एक बाप के लव में लवलीन रह सर्व बातों से सेफ रहने वाले मायाप्रूफ भव जो बच्चे एक बाप के लव में लवलीन रहते हैं वे सहज ही चारों ओर के वायब्रेशन से, वायुमण्डल से दूर रहते हैं क्योंकि लीन रहना अर्थात् बाप समान शक्तिशाली सर्व बातों से सेफ रहना। लीन रहना अर्थात् समाया हुआ रहना, जो समाये हुए हैं वही मायाप्रूफ हैं। यही है सहज पुरुषार्थ, लेकिन सहज पुरुषार्थ के नाम पर अलबेले नहीं बनना। अलबेले पुरुषार्थी का मन अन्दर से खाता है और बाहर से वह अपनी महिमा के गीत गाता है। 04.03.2023 सदा भरपूरता की अनुभूति द्वारा टेढ़े रास्ते को सीधा बनाने वाले शक्ति अवतार भव सदा शक्ति के, गुणों के, ज्ञान के, खुशी के खजाने से भरपूर रहो तो भरपूता के नशे से टेढ़ा रास्ता भी सीधा हो जायेगा। अगर खाली होंगे तो खड्डा बन जायेगा और खड्डे में गिरने से मोच आयेगी। जो कमजोर और खाली होते हैं उन्हें संकल्पों की मोच आती है। शक्ति अवतार अर्थात् टेढ़े को सीधा करने का कान्ट्रैक्ट लेने वाले। ऐसा कान्ट्रैक्ट लेने वाले कभी यह नहीं कह सकते कि रास्ता टेढा है। अगर कोई गिरते हैं तो अटेन्शन की कमी है या बुद्धि भरपूर नहीं है। 03.03.2023 समस्याओं रूपी पहाड़ को उड़ती कला द्वारा सेकण्ड में पार करने वाले सहज पुरुषार्थी भव हिमालय पर्वत जितनी बड़ी समस्या को भी पार करने के लिए उड़ती कला की विधि को अपनाओ। सदा अपने सामने सर्व प्राप्तियों को इमर्ज रखो, और उड़ती कला में उड़ते रहो तो समस्या रूपी पहाड़ को सेकण्ड में पार कर लेंगे। सिर्फ वर्तमान और भविष्य प्रालब्ध के अनुभवी बनो। जैसे स्थूल नेत्रों द्वारा स्थूल वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है ऐसे बुद्धि के अनुभव के नेत्र द्वारा प्रालब्ध स्पष्ट दिखाई दे, हर कदम में पदमों की कमाई जमा करते रहो। 02.03.2023 स्नेह और भावना के बंधन में भगवान को भी बांधने वाले गायन योग्य भव भक्ति मार्ग में गायन हैं कि गोपियों ने भगवान को भी बंधन में बांध दिया। यह है स्नेह और भावना का बंधन, जो चरित्र रूप में गाया जाता है। आप बच्चे इस समय बेहद के कल्प वृक्ष में स्नेह और भावना की रस्सी से बाप को भी बांध देते हो, इसका ही गायन भक्ति मार्ग में चलता है। बाप फिर इसके रिटर्न में स्नेह और भावना की दोनों रस्सियों को दिलतख्त का आसन दे झूला बनाए बच्चों को दे देते हैं, इसी झूले में सदा झूलते रहो। 01.03.2023 ब्राह्मण जीवन में सदा आनंद वा मनोरंजन का अनुभव करने वाले खुशनसीब भव खुशनसीब बच्चे सदा खुशी के झूले में झूलते ब्राह्मण जीवन में आनंद वा मनोरंजन का अनुभव करते हैं। यह खुशी का झूला सदा एकरस तब रहेगा जब याद और सेवा की दोनों रस्सियां टाइट हों। एक भी रस्सी ढीली होगी तो झूला हिलेगा और झूलने वाला गिरेगा इसलिए दोनों रस्सियां मजबूत हो तो मनोरंजन का अनुभव करते रहेंगे। सर्वशक्तिमान का साथ हो और खुशियों का झूला हो तो इस जैसी खुशनसीबी और क्या होगी।
28.02.2023 रूहानी आकर्षण द्वारा सेवा और सेवाकेन्द्र को चढ़ती कला में ले जाने वाले योगी तू आत्मा भव जो योगी तू आत्मायें रूहानियत में रहती हैं, उनकी रूहानी आकर्षण सेवा और सेवाकेन्द्र को स्वत: चढ़ती कला में ले जाती है। योगयुक्त हो रूहानियत से आत्माओं का आह्वान करने से जिज्ञासु स्वत: बढ़ते हैं। इसके लिए मन सदा हल्का रखो, किसी भी प्रकार का बोझ नहीं रहे। दिल साफ मुराद हांसिल करते रहो, तो प्राप्तियां आपके सामने स्वत: आयेंगी। अधिकार ही आप लोगों का है। 27.02.2023 सम्बन्ध में सन्तुष्टता रूपी स्वच्छता को धारण कर सदा हल्के और खुश रहने वाले सच्चे पुरुषार्थी भव सारे दिन में वैरायटी आत्माओं से संबंध होता है। उसमें चेक करो कि सारे दिन में स्वयं की सन्तुष्टता और सम्बन्ध में आने वाली दूसरी आत्माओं की सन्तुष्टता की परसेन्टेज कितनी रही? सन्तुष्टता की निशानी स्वयं भी मन से हल्के और खुश रहेंगे और दूसरे भी खुश रहेंगे। संबंध की स्वच्छता अर्थात् सन्तुष्टता यही सम्बन्ध की सच्चाई और सफाई है, इसलिए कहते हैं सच तो बिठो नच। सच्चा पुरुषार्थी खुशी में सदा नाचता रहेगा। 26.02.2023 तन को आत्मा का मन्दिर समझ उसे स्वच्छ बनाने वाले नम्बरवन श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा भव हम ब्राह्मण आत्मायें सारे कल्प में नम्बरवन श्रेष्ठ आत्मायें हैं, हीरे तुल्य हैं, इस स्मृति से तन को आत्मा का मन्दिर समझकर स्वच्छ रखना है। जितनी मूर्ति श्रेष्ठ होती है उतना ही मन्दिर भी श्रेष्ठ होता है। तो इस शरीर रूपी मन्दिर के हम ट्रस्टी हैं, यह ट्रस्टीपन आपेही स्वच्छता वा पवित्रता लाता है। इस विधि से तन की पवित्रता सदा रूहानी खुशबू का अनुभव कराती रहेगी। 25.02.2023 एक के पाठ द्वारा निराकार, आकार को साकार में अनुभव करने वाले वरदानी मूर्त भव सिर्फ एक का पाठ पक्का करके वरदाता को राज़ी कर लो तो अमृतवेले से रात तक हर दिनचर्या के कर्म में वरदानों से ही पलते, चलते, उड़ते रहेंगे। वह एक का पाठ है - एक बल एक भरोसा, एकमत, एकरस, एकता और एकान्तप्रिय ...यह “एक'' शब्द ही बाप को प्रिय है। जो इस एक का पाठ पक्का कर लेते हैं उन्हें कभी मुश्किल का अनुभव नहीं होता। ऐसी वरदानी आत्मा को विशेष वरदान प्राप्त होता है इसलिए वे निराकार-आकार को जैसे साकार अनुभव करते हैं। 24.02.2023 बाप के राइट हैण्ड बन हर कार्य में सदा एवररेडी रहने वाले मास्टर भाग्य विधाता भव जो बच्चे राइट हैण्ड बन बाप के हर कार्य में सदा सहयोगी, सदा एवररेडी रहते हैं, आज्ञाकारी बन सदा कहते हाँ बाबा हम तैयार हैं। बाप भी ऐसे सहयोगी बच्चों को सदा मुरब्बी बच्चे, सपूत बच्चे, विश्व के श्रृंगार बच्चे कह मास्टर वरदाता और भाग्य विधाता का वरदान दे देते हैं। ऐसे बच्चे प्रवृत्ति में रहते भी प्रवृत्ति की वृत्ति से परे रहते हैं, व्यवहार में रहते अलौकिक व्यवहार का सदा ध्यान रखते हैं। 23.02.2023 स्वयं को संगमयुगी समझ व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने वाली समर्थ आत्मा भव यह संगमयुग समर्थ युग है। तो सदा यह स्मृति रखो कि हम समर्थ युग के वासी, समर्थ बाप के बच्चे, समर्थ आत्मायें हैं, तो व्यर्थ समाप्त हो जायेगा। कलियुग है व्यर्थ, जब कलियुग का किनारा कर चुके, संगमयुगी बन गये तो व्यर्थ से किनारा हो ही गया। यदि सिर्फ समय की भी याद रहे तो समय के प्रमाण कर्म स्वत: चलेंगे। आधाकल्प व्यर्थ सोचा, व्यर्थ किया, लेकिन अब जैसा समय, जैसा बाप वैसे बच्चे। 22.02.2023 अमृतवेले के फाउण्डेशन द्वारा सारे दिन की दिनचर्या को ठीक रखने वाले सहज पुरुषार्थी भव जैसे ट्रेन को पटरी पर खड़ा कर देते हैं तो आटोमेटिकली रास्ते पर चलती रहती है, ऐसे ही रोज़ अमृतवेले याद की लकीर पर खड़े हो जाओ। अमृतवेला ठीक है तो सारा दिन ठीक हो जायेगा। अमृतवेले का फाउण्डेशन पक्का है तो सारा दिन स्वत: सहयोग मिलता रहेगा और पुरुषार्थ भी सहज हो जायेगा। जो सदा बाप की याद और श्रीमत की लकीर के अन्दर रहने वाली ऐसी सच्ची सीतायें हैं उनके नस-नस में एक राम की स्मृति का आवाज रहता है। 21.02.2023 इन्तजार को छोड़ इन्तजाम करने वाले वियोगी के बजाए सहयोगी सो सहजयोगी भव 20.02.2023 “छोड़ो तो छूटो'' इस पाठ द्वारा नम्बरवन लेने वाले उड़ता पंछी भव उड़ता पछी बनने के लिए यह पाठ पक्का करो कि “छोड़ो तो छूटो''। किसी भी प्रकार की डाली को अपने बुद्धि रूपी पांव से पकड़कर नहीं बैठना। इसी पाठ से ब्रह्मा बाप नम्बरवन बने। यह नहीं सोचा कि साथी मुझे छोड़े तो छूटूं, सम्बन्धी छोड़ें तो छूटूं। विघ्न डालने वाले विघ्न डालने से छोड़ें तो छूटूं - स्वयं को सदा यही पाठ प्रैक्टिकल में पढ़ाया कि स्वयं छोड़ो तो छूटो। तो नम्बरवन में आने के लिए ऐसे फालो फादर करो। 19.02.2023 महावीर बन बाप का साक्षात्कार कराने वाले वाहनधारी सो अलंकारधारी भव 18.02.2023 समेटने की शक्ति द्वारा पेटी बिस्तरा बंद करने वाले समय पर एवररेडी भव 17.02.2023 शान्ति की शक्ति द्वारा सर्व को आकर्षित करने वाले मास्टर शान्ति देवा भव 16.02.2023 अपने अनादि स्वरूप में स्थित रह सर्व समस्याओं का हल करने वाले एकान्तवासी भव 15.02.2023 सोचना, कहना और करना इन तीनों को समान बनाने वाले बाप समान सम्पन्न भव बापदादा अब सभी बच्चों को समान और सम्पन्न देखना चाहते हैं। सम्पन्न बनने के लिए सोचना, कहना और करना तीनों समान हो। इसके लिए सब तैयारी भी करते हो, संकल्प भी है, इच्छा भी यही है। लेकिन यह इच्छा पूरी तब होगी जब और सब इच्छाओं से इच्छा मात्रम् अविद्या बनेंगे। छोटी-छोटी अनेक प्रकार की इच्छायें ही इस एक इच्छा को पूर्ण करने नहीं देती हैं। 14.02.2023 कर्मक्षेत्र पर कमल पुष्प समान रहते हुए माया की कीचड़ से सेफ रहने वाले कर्मयोगी भव कर्मयोगी को ही दूसरे शब्दों में कमल पुष्प कहा जाता है। कर्मयोगी अर्थात् कर्म और योग दोनों कम्बाइन्ड हों, किसी भी कर्म का बोझ अनुभव न हो। किसी भी प्रकार का कीचड़ अर्थात् माया का वायब्रेशन टच न करे। आत्मा की कमजोरी से माया को जन्म मिलता है। कमजोरी को समाप्त करने का साधन है रोज़ की मुरली। यही शक्तिशाली ताजा भोजन है। मनन शक्ति द्वारा इस भोजन को हज़म कर लो तो माया की कीचड़ से सेफ रहेंगे। 13.02.2023 हर कदम में पदमों की कमाई जमा करने वाले समझदार ज्ञानी तू आत्मा भव समझदार ज्ञानी तू आत्मा वह है जो पहले सोचता है फिर करता है। जैसे बड़े आदमी पहले भोजन को चेक कराते हैं फिर खाते हैं। तो यह संकल्प बुद्धि का भोजन है इसे पहले चेक करो फिर कर्म में लाओ। संकल्प को चेक कर लेने से वाणी और कर्म स्वत: समर्थ हो जायेंगे। और जहाँ समर्थ है वहाँ कमाई है। तो समर्थ बन हर कदम अर्थात् संकल्प, बोल और कर्म में पदमों की कमाई जमा करो, यही ज्ञानी तू आत्मा का लक्षण है। 12.02.2023 सहज विधि द्वारा विधाता को अपना बनाने वाले सर्व भाग्य के खजानों से भरपूर भव भाग्य विधाता को अपना बनाने की विधि है - बाप और दादा दोनों के साथ संबंध। कई बच्चे कहते हैं हमारा तो डायरेक्ट निराकार से कनेक्शन है, साकार ने भी तो निराकार से पाया हम भी उनसे सब कुछ पा लेंगे। लेकिन यह खण्डित चाबी है, सिवाए ब्रह्माकुमार कुमारी बनने के भाग्य बन नहीं सकता। साकार के बिना सर्व भाग्य के भण्डारे का मालिक बन नहीं सकते क्योंकि भाग्य विधाता भाग्य बांटते ही हैं ब्रह्मा द्वारा। तो विधि को जानकर सर्व भाग्य के खजानों से भरपूर बनो। 11.02.2023 श्रेष्ठ कर्मधारी बन ऊंची तकदीर बनाने वाले पदमापदम भाग्यशाली भव जिसके जितने श्रेष्ठ कर्म हैं उसकी तकदीर की लकीर उतनी लम्बी और स्पष्ट है। तकदीर बनाने का साधन है ही श्रेष्ठ कर्म। तो श्रेष्ठ कर्मधारी बनो और पदमापदम भाग्यशाली की तकदीर प्राप्त करो। लेकिन श्रेष्ठ कर्म का आधार है श्रेष्ठ स्मृति। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बाप की स्मृति में रहने से ही श्रेष्ठ कर्म होंगे इसलिए जितना चाहो उतना लम्बी भाग्य की लकीर खींच लो। इस एक जन्म में अनेक जन्मों की तकदीर बन सकती है। 10.02.2023 स्वयं को बाप हवाले कर बुद्धि से भी सरेन्डर होने वाले डबल लाइट भव अपनी जिम्मेवारी बाप को देकर, स्वयं को बाप हवाले कर दो अर्थात् अपने सब बोझ बाप को दे दो तो डबल लाइट बन जायेंगे। बुद्धि से सरेन्डर हो जाओ तो और कोई भी बात बुद्धि में नहीं आयेगी, बस सब कुछ बाप का है, सब कुछ बाप में है तो और कुछ रहा ही नहीं, जब रहा ही नहीं तो बुद्धि कहाँ जायेगी, बस एक बाप, एक ही याद का रास्ता, इस रास्ते से सहज मंजिल पर पहुंच जायेंगे। 09.02.2023 सेवा के क्षेत्र में स्व-सेवा और सर्व की सेवा का बैलेन्स रखने वाले मायाजीत भव सर्व की सेवा के साथ-साथ पहले स्व सेवा आवश्यक है। यह बैलेन्स सदा स्व में और सेवा में उन्नति को प्राप्त कराता है इसलिए सेवा के क्षेत्र में भाग-दौड़ करते दोनों बातों का बैलेन्स रखो तो मायाजीत बन जायेंगे। बैलेन्स रखने से कमाल होती है। नहीं तो सेवा में बाह्यमुखता के कारण कमाल के बजाए अपने वा दूसरों के भाव-स्वभाव की धमाल में आ जाते हो। सेवा की भाग-दौड़ में माया बुद्धि की भाग दौड़ करा देती है। 08.02.2023 प्युरिटी की पर्सनैलिटी और रॉयल्टी द्वारा बाप के समीप आने वाले देही-अभिमानी भव जैसे शरीर की पर्सनैलिटी आत्माओं को देहभान में लाती है, ऐसे प्युरिटी की पर्सनैलिटी देही-अभिमानी बनाए बाप के समीप लाती है। प्युरिटी की पर्सनैलिटी आत्माओं को प्युरिटी की तरफ आकर्षित करती है, प्युरिटी की रॉयल्टी धर्मराजपुरी की रॉयल्टी देने से छुड़ा देती है। इसी रायॅल्टी अनुसार भविष्य रायॅल फैमली में आ सकेंगे। देही-अभिमानी बच्चे इस पर्सनैलिटी द्वारा बाप का साक्षात्कार कराने वाले रूहानी दर्पण बन जाते हैं। 07.02.2023 श्रेष्ठ जीवन की स्मृति द्वारा विशाल स्टेज पर विशेष पार्ट बजाने वाले हीरो पार्टधारी भव 06.02.2023 ज्ञान को रमणीकता से सिमरण कर आगे बढ़ने वाले सदा हर्षित, खुशनसीब भव 05.02.2023 भाग्य और भाग्य विधाता बाप की स्मृति में रह भाग्य बांटने वाले फ्राकदिल महादानी भव भाग्य विधाता बाप और भाग्य दोनों ही याद रहें तब औरों को भी भाग्यवान बनाने का उमंग-उत्साह रहेगा। जैसे भाग्यविधाता बाप ब्रह्मा द्वारा भाग्य बांटते हैं ऐसे आप भी दाता के बच्चे हो, भाग्य बांटते चलो। वे लोग कपड़ा बांटेंगे, अनाज बांटेंगे, कोई गिफ्ट देंगे.. लेकिन उससे कोई तृप्त नहीं हो सकते। आप भाग्य बांटो तो जहाँ भाग्य है वहाँ सब प्राप्तियां हैं। ऐसे भाग्य बांटने में फ्राकदिल, श्रेष्ठ महादानी बनो। सदा देते रहो। 04.02.2023 समर्थ स्थिति के आसन पर बैठ व्यर्थ और समर्थ का निर्णय करने वाले स्मृति स्वरूप भव 03.02.2023 अमृतवेले से लेकर रात तक मर्यादापूर्वक चलने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भव संगमयुग की मर्यादायें ही पुरुषोत्तम बनाती हैं इसलिए मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। तमोगुणी वायुमण्डल, वायब्रेशन से बचने का सहज साधन यह मर्यादायें हैं। मर्यादाओं के अन्दर रहने वाले मेहनत से बच जाते हैं। हर कदम के लिए बापदादा द्वारा मर्यादायें मिली हुई हैं, उसी प्रमाण कदम उठाने से स्वत: ही मर्यादा पुरुषोत्तम बन जाते हैं। तो अमृतवेले से रात तक मर्यादापूर्वक जीवन हो तब कहेंगे पुरूषोत्तम अर्थात् साधारण पुरुषों से उत्तम आत्मायें। 02.02.2023 अमृतवेले के महत्व को जान महान बनने वाले विशेष सेवाधारी भव सेवाधारी अर्थात् आंख खुले और सदा बाप के साथ बाप के समान स्थिति का अनुभव करें। जो विशेष वरदान के समय को जानते हैं और वरदानों का अनुभव करते हैं वही विशेष सेवाधारी हैं। अगर यह अनुभव नहीं तो साधारण सेवाधारी हुए, विशेष नहीं। जिसे अमृतवेले का, संकल्प का, समय का और सेवा का महत्व है ऐसे सर्व महत्व को जानने वाले महान बनते हैं और औरों को भी महत्व बतलाकर महान बनाते हैं। 01.02.2023
31.01.2023 अटेन्शन और चेकिंग की विधि द्वारा व्यर्थ के खाते को समाप्त करने वाले मा. सर्वशक्तिमान् भव ब्राह्मण जीवन में व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म बहुत समय व्यर्थ गंवा देते हैं। जितनी कमाई करने चाहो उतनी नहीं कर सकते। व्यर्थ का खाता समर्थ बनने नहीं देता इसलिए सदा इस स्मृति में रहो कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ। शक्ति है तो जो चाहे वो कर सकते हैं। सिर्फ बार-बार अटेन्शन दो। जैसे क्लास के समय वा अमृतवेले की याद के समय अटेन्शन देते हो, ऐसे बीच-बीच में भी अटेन्शन और चेकिंग की विधि अपना लो तो व्यर्थ का खाता समाप्त हो जायेगा। 30.01.2023 निमित्त और नम्रचित की विशेषता द्वारा सेवा में फास्ट और फर्स्ट नम्बर लेने वाले सफलतामूर्त भव सेवा में आगे बढ़ते हुए यदि निमित्त और नम्रचित की विशेषता स्मृति में रहती है तो सफलता स्वरूप बन जायेंगे। जैसे सेवाओं की भाग-दौड़ में होशियार हो ऐसे इन दो विशेषताओं में भी होशियार बनो, इससे सेवा में फास्ट और फर्स्ट हो जायेंगे। ब्राह्मण जीवन की मर्यादाओं की लकीर के अन्दर रहकर, स्वयं को रूहानी सेवाधारी समझकर सेवा करो तो सफलतामूर्त बन जायेंगे। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। 29.01.2023 सहनशक्ति का कवच पहन, सम्पूर्ण स्टेज को वरने वाले विघ्न जीत भव अपनी सम्पूर्ण स्टेज को वरने अर्थात् प्राप्त करने के लिए अलबेलेपन के नाज़ नखरों को छोड़ सहनशक्ति में मजबूत बनो। सहनशक्ति ही सर्व विघ्नों से बचने का कवच है। जो यह कवच नहीं पहनते वह नाजुक बन जाते हैं। फिर बाप की बातें बाप को ही सुनाते हैं, कभी बहुत उमंग-उत्साह में रहते, कभी दिलशिकस्त हो जाते। अब इस उतरने चढ़ने की सीढ़ी को छोड़ सदा उमंग-उत्साह में रहो तो सम्पूर्ण स्टेज समीप आ जायेगी। 28.01.2023 सदा हर दिन स्व उत्साह में रहने और सर्व को उत्साह दिलाने वाले रूहानी सेवाधारी भव बापदादा सभी रूहानी सेवाधारी बच्चों को स्नेह की यह सौगात देते हैं कि “बच्चे हर रोज़ स्व उत्साह में रहो और सर्व को उत्साह दिलाने का उत्सव मनाओ।'' इससे संस्कार मिलाने की, संस्कार मिटाने की जो मेहनत करनी पड़ती है वह छूट जायेगी। यह उत्सव सदा मनाओ तो सारी समस्यायें खत्म हो जायेंगी। फिर समय भी नहीं देना पड़ेगा, शक्तियां भी नहीं लगानी पड़ेगी। खुशी में नाचने, उड़ने वाले फरिश्ते बन जायेंगे। 27.01.2023 समानता द्वारा समीपता की सीट ले फर्स्ट डिवीजन में आने वाले विजयी रत्न भव समय की समीपता के साथ-साथ अब स्वयं को बाप के समान बनाओ। संकल्प, बोल, कर्म, संस्कार और सेवा सबमें बाप जैसे समान बनना अर्थात् समीप आना। हर संकल्प में बाप के साथ का, सहयोग का, स्नेह का अनुभव करो। सदा बाप के साथ और हाथ में हाथ की अनुभूति करो तो फर्स्ट डिवीजन में आ जायेंगे। निरन्तर याद और सम्पूर्ण स्नेह एक बाप से हो तो विजय माला के विजयी रत्न बन जायेंगे। अभी भी चांस है, टूलेट का बोर्ड नहीं लगा है। 26.01.2023 सर्व पुराने खातों को संकल्प और संस्कार रूप से भी समाप्त करने वाले अन्तर्मुखी भव बापदादा बच्चों के सभी चौपड़े अब साफ देखने चाहते हैं। थोड़ा भी पुराना खाता अर्थात् बाह्यमुखता का खाता संकल्प वा संस्कार रूप में भी रह न जाए। सदा सर्व बन्धनमुक्त और योगयुक्त - इसी को ही अन्तर्मुखी कहा जाता है इसलिए सेवा खूब करो लेकिन बाह्यमुखी से अन्तर्मुखी बनकर करो। अन्तर्मुखता की सूरत द्वारा बाप का नाम बाला करो, आत्मायें बाप का बन जाएं - ऐसा प्रसन्नचित बनाओ। 25.01.2023 विशेषता देखने का चश्मा पहन सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाले विश्व परिवर्तक भव एक दो के साथ सम्बन्ध वा सम्पर्क में आते हर एक की विशेषता को देखो। विशेषता देखने की ही दृष्टि धारण करो। जैसे आजकल का फैशन और मजबूरी चश्मे की है। तो विशेषता देखने वाला चश्मा पहनो। दूसरा कुछ दिखाई ही न दे। जैसे लाल चश्मा पहन लो तो हरा भी लाल दिखाई देता है। तो विशेषता के चश्में द्वारा कीचड़ को न देख कमल को देखने से विश्व परिवर्तन के विशेष कार्य के निमित्त बन जायेंगे। 24.01.2023 विशेषता के बीज द्वारा सन्तुष्टता रूपी फल प्राप्त करने वाली विशेष आत्मा भव इस विशेष युग में विशेषता के बीज का सबसे श्रेष्ठ फल है “सन्तुष्टता''। सन्तुष्ट रहना और सर्व को सन्तुष्ट करना - यही विशेष आत्मा की निशानी है, इसलिए विशेषताओं के बीज अथवा वरदान को सर्व शक्तियों के जल से सींचो तो बीज फलदायक हो जायेगा। नहीं तो विस्तार हुआ वृक्ष भी समय प्रति समय आये हुए तूफान में हिलते-हिलते टूट जाता है अर्थात् आगे बढ़ने का उमंग, उत्साह, खुशी वा रूहानी नशा नहीं रहता। तो विधिपूर्वक शक्तिशाली बीज को फलदायक बनाओ। 23.01.2023 अपनी सर्व विशेषताओं को कार्य में लगाकर उनका विस्तार करने वाले सिद्धि स्वरूप भव जितना-जितना अपनी विशेषताओं को मन्सा सेवा वा वाणी और कर्म की सेवा में लगायेंगे तो वही विशेषता विस्तार को पाती जायेगी। सेवा में लगाना अर्थात् एक बीज से अनेक फल प्रगट करना। इस श्रेष्ठ जीवन में जो जन्म सिद्ध अधिकार के रूप में विशेषतायें मिली हैं उनको सिर्फ बीज रूप में नहीं रखो, सेवा की धरनी में डालो तो फल स्वरूप अर्थात् सिद्धि स्वरूप का अनुभव करेंगे। 22.01.2023 उड़ती कला द्वारा बाप समान आलराउन्ड पार्ट बजाने वाले चक्रवर्ती भव जैसे बाप आलराउन्ड पार्टधारी है, सखा भी बन सकते तो बाप भी बन सकते। ऐसे उड़ती कला वाले जिस समय जिस सेवा की आवश्यकता होगी उसमें सम्पन्न पार्ट बजा सकेंगे। इसको ही कहा जाता है आलराउन्ड उड़ता पंछी। वे ऐसे निर्बन्धन होंगे जो जहाँ भी सेवा होगी वहाँ पहुंच जायेंगे। हर प्रकार की सेवा में सफलतामूर्त बनेंगे। उन्हें ही कहा जाता है चक्रवर्ती, आलराउन्ड पार्टधारी। 21.01.2023 बोल पर डबल अन्डरलाइन कर हर बोल को अनमोल बनाने वाले मा. सतगुरू भव आप बच्चों के बोल ऐसे हों जो सुनने वाले चात्रक हों कि यह कुछ बोलें और हम सुनें - इसको कहा जाता है अनमोल महावाक्य। महावाक्य ज्यादा नहीं होते। जब चाहे तब बोलता रहे - इसको महावाक्य नहीं कहेंगे। आप सतगुरू के बच्चे मास्टर सतगुरू हो इसलिए आपका एक-एक बोल महावाक्य हो। जिस समय जिस स्थान पर जो बोल आवश्यक है, युक्तियुक्त है, स्वयं और दूसरी आत्माओं के लाभदायक है, वही बोल बोलो। बोल पर डबल अन्डरलाइन करो। 20.01.2023 रूहानियत के साथ रमणीकता में आने वाले मर्यादा पुरूषोत्तम भव कई बच्चे हंसी-मजाक बहुत करते हैं और उसे ही रमणीकता समझते हैं। वैसे रमणीकता का गुण अच्छा माना जाता है लेकिन व्यक्ति, समय, संगठन, स्थान, वायुमण्डल के प्रमाण रमणीकता अच्छी लगती है। यदि इन सब बातों में से एक बात भी ठीक नहीं तो रमणीकता भी व्यर्थ की लाइन में गिनी जायेगी और सर्टीफिकेट मिलेगा कि यह हंसाते बहुत अच्छा हैं लेकिन बोलते बहुत हैं, इसलिए हंसीमजाक अच्छा वह है जिसमें रूहानियत हो और उस आत्मा का फ़ायदा हो, सीमा के अन्दर बोल हों, तब कहेंगे मर्यादा पुरुषोत्तम। 19.01.2023 दिनचर्या की सेटिंग और बाप के साथ द्वारा हर कार्य एक्यूरेट करने वाले विश्व कल्याणकारी भव दुनिया में जो बड़े आदमी होते हैं उनकी दिनचर्या सेट होती है। कोई भी कार्य एक्यूरेट तब होता है जब दिनचर्या की सेटिंग हो। सेटिंग से समय, एनर्जी सब बच जाते हैं, एक व्यक्ति 10 कार्य कर सकता है। तो आप विश्व कल्याणकारी जिम्मेवार आत्मायें, हर कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए दिनचर्या को सेट करो और बाप के साथ सदा कम्बाइन्ड होकर रहो। हजार भुजाओं वाला बाप आपके साथ है तो एक कार्य के बजाए हजार कार्य एक्यूरेट कर सकते हो। 18.01.2023 साइलेन्स की शक्ति द्वारा नई सृष्टि की स्थापना के निमित्त बनने वाले मास्टर शान्ति देवा भव साइलेन्स की शक्ति जमा करने के लिए इस शरीर से परे अशरीरी हो जाओ। यह साइलेन्स की शक्ति बहुत महान शक्ति है, इससे नई सृष्टि की स्थापना होती है। तो जो आवाज से परे साइलेन्स रूप में स्थित होंगे वही स्थापना का कार्य कर सकेंगे इसलिए शान्ति देवा अर्थात् शान्त स्वरूप बन अशान्त आत्माओं को शान्ति की किरणें दो। विशेष शान्ति की शक्ति को बढ़ाओ। यही सबसे बड़े से बड़ा महादान है, यही सबसे प्रिय और शक्तिशाली वस्तु है। 17.01.2023 बाह्यमुखता के रसों की आकर्षण के बन्धन से मुक्त रहने वाले जीवनमुक्त भव बाहयमुखता अर्थात् व्यक्ति के भाव-स्वभाव और व्यक्त भाव के वायब्रेशन, संकल्प, बोल और संबंध, सम्पर्क द्वारा एक दो को व्यर्थ की तरफ उकसाने वाले, सदा किसी न किसी प्रकार के व्यर्थ चिन्तन में रहने वाले, आन्तरिक सुख, शान्ति और शक्ति से दूर.....यह बाह्यमुखता के रस भी बाहर से बहुत आकर्षित करते हैं, इसलिए पहले इसको कैंची लगाओ। यह रस ही सूक्ष्म बंधन बन सफलता की मंजिल से दूर कर देते हैं, जब इन बंधनों से मुक्त बनो तब कहेंगे जीवनमुक्त। 16.01.2023 एकरस और निरन्तर खुशी की अनुभूति द्वारा नम्बरवन लेने वाले अखुट खजाने से सम्पन्न भव नम्बरवन में आने के लिए एकरस और निरन्तर खुशी की अनुभूति करते रहो, किसी भी झमेले में नहीं जाओ। झमेले में जाने से खुशी का झूला ढीला हो जाता है फिर तेज नहीं झूल सकते इसलिए सदा और एकरस खुशी के झूले में झूलते रहो। बापदादा द्वारा सभी बच्चों को अविनाशी, अखुट और बेहद का खजाना मिलता है। तो सदा उन खजानों की प्राप्ति में एकरस और सम्पन्न रहो। संगमयुग की विशेषता है अनुभव, इस युग की विशेषता का लाभ उठाओ। 15.01.2023 बैलेन्स की विशेषता को धारण कर सर्व को ब्लैसिंग देने वाले शक्तिशाली, सेवाधारी भव अभी आप शक्तिशाली आत्माओं की सेवा है सर्व को ब्लैसिंग देना। चाहे नयनों से दो, चाहे मस्तकमणी द्वारा दो। जैसे साकार को लास्ट कर्मातीत स्टेज के समय देखा-कैसे बैलेन्स की विशेषता थी और ब्लैसिंग की कमाल थी। तो फालो फादर करो - यही सहज और शक्तिशाली सेवा है। इसमें समय भी कम, मेहनत भी कम और रिजल्ट ज्यादा निकलती है। तो आत्मिक स्वरूप से सबको ब्लैसिंग देते चलो। 14.01.2023 सुख के सागर बाप की स्मृति द्वारा दु:ख की दुनिया में रहते भी सुख स्वरूप भव सदा सुख के सागर बाप की स्मृति में रहो तो सुख स्वरूप बन जायेंगे। चाहे दुनिया में कितना भी दु:ख अशान्ति का प्रभाव हो लेकिन आप न्यारे और प्यारे हो, सुख के सागर के साथ हो इसलिए सदा सुखी, सदा सुखों के झूले में झूलने वाले हो। मास्टर सुख के सागर बच्चों को दु:ख का संकल्प भी नहीं आ सकता क्योंकि दु:ख की दुनिया से किनारा कर संगम पर पहुंच गये। सब रस्सियां टूट गई तो सुख के सागर में लहराते रहो। 13.01.2023 त्याग और तपस्या के वातावरण द्वारा विघ्न-विनाशक बनने वाले सच्चे सेवाधारी भव जैसे बाप का सबसे बड़े से बड़ा टाइटल है वर्ल्ड सर्वेन्ट। वैसे बच्चे भी वर्ल्ड सर्वेन्ट अर्थात् सेवाधारी हैं। सेवाधारी अर्थात् त्यागी और तपस्वी। जहाँ त्याग और तपस्या है वहाँ भाग्य तो उनके आगे दासी के समान आता ही है। सेवाधारी देने वाले होते हैं, लेने वाले नहीं इसलिए सदा निर्विघ्न रहते हैं। तो सेवाधारी समझकर त्याग और तपस्या का वातावरण बनाने से सदा विघ्न-विनाशक रहेंगे। 12.01.2023 अपनी शक्तिशाली स्थिति द्वारा दान और पुण्य करने वाले पूज्यनीय और गायन योग्य भव अन्तिम समय में जब कमजोर आत्मायें आप सम्पूर्ण आत्माओं द्वारा प्राप्ति का थोड़ा भी अनुभव करेंगी तो यही अन्तिम अनुभव के संस्कार लेकर आधाकल्प के लिए अपने घर में विश्रामी होंगी और फिर द्वापर में भक्त बन आपका पूजन और गायन करेंगी इसलिए अन्त की कमजोर आत्माओं के प्रति महादानी वरदानी बन अनुभव का दान और पुण्य करो। यह सेकण्ड का शक्तिशाली स्थिति द्वारा किया हुआ दान और पुण्य आधाकल्प के लिए पूज्यनीय और गायन योग्य बना देगा। 11.01.2023 संकल्प शक्ति द्वारा हर कार्य में सफल होने की सिद्धि प्राप्त करने वाले सफलतामूर्त भव संकल्प शक्ति द्वारा बहुत से कार्य सहज सफल होने की सिद्धि का अनुभव होता है। जैसे स्थूल आकाश में भिन्न-भिन्न सितारे देखते हो ऐसे विश्व के वायुमण्डल के आकाश में चारों ओर सफलता के चमकते हुए सितारे तब दिखाई देंगे जब आपके संकल्प श्रेष्ठ और शक्तिशाली होंगे, सदा एक बाप के अन्त में खोये रहेंगे, आपके यह रूहानी नयन, रूहानी मूर्त दिव्य दर्पण बनेंगे। ऐसे दिव्य दर्पण ही अनेक आत्माओं को आत्मिक स्वरूप का अनुभव कराने वाले सफलतामूर्त होते हैं। 10.01.2023 रूहानियत की शक्ति द्वारा दूर रहने वाली आत्माओं को समीपता का अनुभव कराने वाले मा. सर्वशक्तिमान भव जैसे साइन्स के साधनों द्वारा दूर की हर वस्तु समीप अनुभव होती है, ऐसे दिव्य बुद्धि द्वारा दूर की वस्तु समीप अनुभव कर सकते हो। जैसे साथ रहने वाली आत्माओं को स्पष्ट देखते, बोलते, सहयोग देते और लेते हो, ऐसे रूहानियत की शक्ति द्वारा दूर रहने वाली आत्माओं को समीपता का अनुभव करा सकते हो। सिर्फ इसके लिए मास्टर सर्वशक्तिमान, सम्पन्न और सम्पूर्ण स्थिति में स्थित रहो और संकल्प शक्ति को स्वच्छ बनाओ। 09.01.2023 हर बात में मुख से वा मन से बाबा-बाबा कह मैं पन को समाप्त करने वाले सफलता मूर्त भव आप अनेक आत्माओं के उमंग-उत्साह को बढ़ाने के निमित्त बच्चे कभी भी मैं पन में नहीं आना। मैंने किया, नहीं। बाबा ने निमित्त बनाया। मैं के बजाए मेरा बाबा, मैने किया, मैने कहा, यह नहीं। बाबा ने कराया, बाबा ने किया तो सफलतामूर्त बन जायेंगे। जितना आपके मुख से बाबा-बाबा निकलेगा उतना अनेकों को बाबा का बना सकेंगे। सबके मुख से यही निकले कि इनकी तात और बात में बस बाबा ही है। 08.01.2023 अपने मस्तक पर श्रेष्ठ भाग्य की लकीर देखते हुए सर्व चिंताओं से मुक्त बेफिक्र बादशाह भव बेफिक्र रहने की बादशाही सब बादशाहियों से श्रेष्ठ है। अगर कोई ताज पहनकर तख्त पर बैठ जाए और फिकर करता रहे तो यह तख्त हुआ या चिंता? भाग्य विधाता भगवान ने आपके मस्तक पर श्रेष्ठ भाग्य की लकीर खींच दी, बेफिक्र बादशाह हो गये। तो सदा अपने मस्तक पर श्रेष्ठ भाग्य की लकीर देखते रहो - वाह मेरा श्रेष्ठ ईश्वरीय भाग्य, इसी फ़खुर में रहो तो सब फिकरातें (चिंतायें) समाप्त हो जायेंगी। 07.01.2023 परमात्म प्यार की छत्रछाया में सदा सेफ रहने वाले दु:खों की लहरों से मुक्त भव जैसे कमल पुष्प कीचड़ पानी में होते भी न्यारा रहता है। और जितना न्यारा उतना सबका प्यारा है। ऐसे आप बच्चे दु:ख के संसार से न्यारे और बाप के प्यारे हो गये, यह परमात्म प्यार छत्रछाया बन जाता है। और जिसके ऊपर परमात्म छत्रछाया है उसका कोई क्या कर सकता! इसलिए फ़खुर में रहो कि हम परमात्म छत्रछाया में रहने वाले हैं, दु:ख की लहर हमें स्पर्श भी नहीं कर सकती। 06.01.2023 दु:ख के चक्करों से सदा मुक्त रहने और सबको मुक्त करने वाले स्वदर्शन चक्रधारी भव जो बच्चे कर्मेन्द्रियों के वश होकर कहते हैं कि आज आंख ने, मुख ने वा दृष्टि ने धोखा दे दिया, तो धोखा खाना अर्थात् दु:ख की अनुभूति होना। दुनिया वाले कहते हैं - चाहते नहीं थे लेकिन चक्कर में आ गये। लेकिन जो स्वदर्शन चक्रधारी बच्चे हैं वह कभी किसी धोखे के चक्कर में नहीं आ सकते। वह तो दु:ख के चक्करों से मुक्त रहने और सबको मुक्त करने वाले, मालिक बन सर्व कर्मेन्द्रियों से कर्म कराने वाले हैं। 05.01.2023 बालक और मालिकपन के बैलेन्स से पुरुषार्थ और सेवा में सदा सफलतामूर्त भव सदा यह नशा रखो कि बेहद बाप और बेहद वर्से का बालक सो मालिक हूँ लेकिन जब कोई राय देनी है, प्लैन सोचना है, कार्य करना है तो मालिक होकर करो और जब मैजॉरिटी द्वारा या निमित्त बनी आत्माओं द्वारा कोई भी बात फाइनल हो जाती है तो उस समय बालक बन जाओ। किस समय राय बहादुर बनना है, किस समय राय मानने वाला - यह तरीका सीख लो तो पुरुषार्थ और सेवा दोनों में सफल रहेंगे। 04.01.2023 छोटी-छोटी अवज्ञाओं के बोझ को समाप्त कर सदा समर्थ रहने वाले श्रेष्ठ चरित्रवान भव जैसे अमृतवेले उठने की आज्ञा है तो उठकर बैठ जाते हैं लेकिन विधि से सिद्धि को प्राप्त नहीं करते, स्वीट साइलेन्स के साथ निद्रा की साइलेन्स मिक्स हो जाती है। 2-बाप की आज्ञा है किसी भी आत्मा को न दु:ख दो, न दु:ख लो, इसमें दु:ख देते नहीं हैं लेकिन ले लेते हैं। 3- क्रोध नहीं करते लेकिन रोब में आ जाते हैं, ऐसी छोटी-छोटी अवज्ञायें मन को भारी कर देती हैं। अब इन्हें समाप्त कर आज्ञाकारी चरित्र का चित्र बनाओ तब कहेंगे सदा समर्थ चरित्रवान आत्मा। 03.01.2023 बाप के कदम पर कदम रखते हुए परमात्म दुआयें प्राप्त करने वाले आज्ञाकारी भव आज्ञाकारी अर्थात् बापदादा के आज्ञा रूपी कदम पर कदम रखने वाले। ऐसे आज्ञाकारी को ही सर्व संबंधों से परमात्म दुआयें मिलती हैं। यह भी नियम है। साधारण रीति भी कोई किसी के डायरेक्शन प्रमाण हाँ जी कहकर कार्य करते हैं तो जिसका कार्य करते उसकी दुआयें उनको जरूर मिलती हैं। यह तो परमात्म दुआयें हैं जो आज्ञाकारी आत्माओं को सदा डबल लाइट बना देती हैं। 02.01.2023 मन को बिजी रखने की कला द्वारा व्यर्थ से मुक्त रहने वाले सदा समर्थ स्वरूप भव जैसे आजकल की दुनिया में बड़ी पोजीशन वाले अपने कार्य की दिनचर्या को समय प्रमाण सेट करते हैं ऐसे आप जो विश्व के नव निर्माण के आधारमूर्त हो, बेहद ड्रामा के अन्दर हीरो एक्टर हो, हीरे तुल्य जीवन वाले हो, आप भी अपने मन और बुद्धि को समर्थ स्थिति में स्थित करने का प्रोग्राम सेट करो। मन को बिजी रखने की कला सम्पूर्ण रीति से यूज़ करो तो व्यर्थ से मुक्त हो जायेंगे। कभी भी अपसेट नहीं होंगे। 01.01.2023 इस मरजीवा जीवन में सदा सन्तुष्ट रहने वाले इच्छा मात्रम् अविद्या भव आप बच्चे मरजीवा बने ही हो सदा सन्तुष्ट रहने के लिए। जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ सर्वगुण और सर्वशक्तियां हैं क्योंकि रचयिता को अपना बना लिया, तो बाप मिला सब कुछ मिला। सर्व इच्छायें इक्ट्ठी करो उनसे भी पदमगुणा ज्यादा मिला है। उसके आगे इच्छायें ऐसे हैं जैसे सूर्य के आगे दीपक। इच्छा उठने की तो बात ही छोड़ो लेकिन इच्छा होती भी है - यह क्वेश्चन भी नहीं उठ सकता। सर्व प्राप्ति सम्पन्न हैं इसलिए इच्छा मात्रम् अविद्या, सदा सन्तुष्ट मणि हैं। 31.12.2022 महानता के साथ निर्मानता को धारण कर सर्व का मान प्राप्त करने वाले सुखदाई भव महानता की निशानी निर्मानता है। जितना महान उतना निर्मान क्योंकि सदा भरपूर हैं। जैसे वृक्ष जितना भरपूर होगा उतना झुका हुआ होगा। तो निर्मानता ही सेवा करती है और जो निर्मान रहता है वह सर्व द्वारा मान पाता है। जो अभिमान में रहता है उसको कोई मान नहीं देता, उससे दूर भागते हैं। जो निर्मान हैं वे सुखदायी होंगे। उनसे सभी सुख की अनुभूति करेंगे। सभी उनके समीप आना चाहेंगे। 30.12.2022 सर्व शक्तियों का अनुभव करते हुए समय पर सिद्धि प्राप्त करने वाले निश्चित विजयी भव सर्व शक्तियों से सम्पन्न निश्चयबुद्धि बच्चों की विजय निश्चित है ही। जैसे किसी के पास धन की, बुद्धि की वा सम्बन्ध-सम्पर्क की शक्ति होती है तो उसे निश्चय रहता है कि यह क्या बड़ी बात है! आपके पास तो सब शक्तियां हैं। सबसे बड़ा धन अविनाशी धन सदा साथ है, तो धन की भी शक्ति है, बुद्धि और पोजीशन की भी शक्ति है, इन्हें सिर्फ यूज़ करो, स्व के प्रति कार्य में लगाओ तो समय पर विद्धि द्वारा सिद्धि प्राप्त होगी। 29.12.2022 ब्राह्मण जीवन में याद और सेवा के आधार द्वारा शक्तिशाली बनने वाले मायाजीत भव ब्राह्मण जीवन का आधार है याद और सेवा। अगर याद और सेवा का आधार कमजोर है तो ब्राह्मण जीवन कभी तेज चलेगा, कभी ढीला चलेगा। कोई सहयोग मिले, कोई साथ मिले, कोई सरकमस्टांस मिले तो चलेंगे नहीं तो ढीले हो जायेंगे इसलिए याद और सेवा दोनों में तीव्रगति चाहिए। याद और नि:स्वार्थ सेवा है तो मायाजीत बनना बहुत सहज है फिर हर कर्म में विजय दिखाई देगी। 28.12.2022 विकारों रूपी सांपों को गले की माला बना देने वाले सच्चे तपस्वी भव ये पांच विकार लोगों के लिए जहरीले सांप हैं लेकिन आप योगी तपस्वी आत्माओं के लिए ये सांप गले की माला बन जाते हैं इसलिए आप ब्राह्मणों के और ब्रह्मा बाप के अशरीरी, तपस्वी शंकर स्वरूप के यादगार में सांपों की माला गले में दिखाते हैं। सांप आपके लिए खुशी में नाचने की स्टेज बन जाते हैं, यह अधीनता की निशानी दिखाई है। स्थिति ही स्टेज है। तो जब विकारों पर इतनी विजय हो तब कहेंगे सच्चे तपस्वी। 27.12.2022 साधन वा सैलवेशन के प्रभाव में आने के बजाए प्रकृति को दासी बनाने वाले विजयी भव कभी भी योगी पुरूष वा पुरूषोत्तम आत्मायें प्रकृति के प्रभाव में नहीं आ सकती। आप ब्राह्मण आत्मायें पुरूषोत्तम और योगी आत्मायें हो, प्रकृति आप मालिकों की दासी है इसलिए प्रकृति के कोई भी साधन वा सैलवेशन आपको अपने प्रभाव में प्रभावित न कर लें। साधन, साधना का आधार न हों लेकिन साधना, साधनों को आधार बनाये तब कहेंगे प्रकृतिजीत, विजयी आत्मा। 26.12.2022 समय पर योग की शक्तियों का प्रयोग करने वाले स्व के संस्कार सो संसार परिवर्तक भव जैसे योग करने और कराने में योग्य हो ऐसे योग का प्रयोग करने में भी योग्य बनो। सबसे पहले अपने संस्कारों पर योग की शक्ति का प्रयोग करो क्योंकि आपके श्रेष्ठ संस्कार ही श्रेष्ठ संसार के रचना की नींव हैं। तो चेक करो कि कोई भी संस्कार समय पर धोखा तो नहीं देते हैं? कैसी भी बात हो, व्यक्ति या वायुमण्डल हो लेकिन श्रेष्ठ संस्कारों को परिवर्तन कर साधारण वा व्यर्थ न बना दें। जो स्व के संस्कारों को परिवर्तन कर लेते हैं वही संसार को परिवर्तन करने के निमित्त बन जाते हैं। 25.12.2022 संगमयुग पर हर समय, हर संकल्प, हर सेकण्ड को समर्थ बनाने वाले ज्ञान स्वरूप भव ज्ञान सुनने और सुनाने के साथ-साथ ज्ञान को स्वरूप में लाओ। ज्ञान स्वरूप वह है जिसका हर संकल्प, बोल और कर्म समर्थ हो। सबसे मुख्य बात - संकल्प रूपी बीज को समर्थ बनाना है। यदि संकल्प रूपी बीज समर्थ है तो वाणी, कर्म, सम्बन्ध सहज ही समर्थ हो जाता है। ज्ञान स्वरूप माना हर समय, हर संकल्प, हर सेकण्ड समर्थ हो। जैसे प्रकाश है तो अन्धियारा नहीं होता। ऐसे समर्थ है तो व्यर्थ हो नहीं सकता। 24.12.2022 त्रिकालदर्शी स्थिति में रह ड्रामा के हर समय के पार्ट को देखने वाले मास्टर नॉलेजफुल भव त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित रहकर देखो कि हम क्या थे, क्या हैं और क्या होंगे....इस ड्रामा में हमारा विशेष पार्ट नूंधा हुआ है। इतना स्पष्ट अनुभव हो कि कल हम देवता थे और फिर कल बनने वाले हैं। हमें तीनों कालों की नॉलेज मिल गई। जैसे कोई भी देश में जब टॉप प्वाइंट पर खड़े होकर सारे शहर को देखते हैं तो मजा आता है ऐसे संगमयुग टॉप पाइंट है, इस पर खड़े होकर नॉलेजफुल बन हर पार्ट को देखो तो बहुत मजा आयेगा। 23.12.2022 सर्व शक्तियों को समय पर आर्डर प्रमाण कार्य में लगाने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव मास्टर का अर्थ है कि हर शक्ति जिस समय आह्वान करो वो शक्ति प्रैक्टिकल स्वरूप में अनुभव हो। जिस समय, जिस शक्ति की आवश्यकता हो, उस समय वो शक्ति सहयोगी बने। शक्ति को ऑर्डर किया और हाज़िर। ऐसे भी नहीं ऑर्डर करो सहनशक्ति को और आये सामना करने की शक्ति तो उसे मास्टर सर्वशक्तिमान् नहीं कहेंगे। जैसे शरीर की शक्तियां ऑर्डर में हैं ऐसे सूक्ष्म शक्तियां भी ऑर्डर प्रमाण कार्य करें, एक सेकण्ड का भी फर्क न पड़े। 22.12.2022 सम्पर्क सम्बन्ध में आते सदा सन्तुष्ट रहने और सन्तुष्ट करने वाले गुप्त पुरूषार्थी भव संगमयुग सन्तुष्टता का युग है, यदि संगम पर सन्तुष्ट नहीं रहेंगे तो कब रहेंगे इसलिए न स्वयं में किसी भी प्रकार की खिटखिट हो, न दूसरों के साथ सम्पर्क में आने में खिटखिट हो। माला बनती ही तब है जब दाना, दाने के सम्पर्क में आता है इसलिए सम्बन्ध-सम्पर्क में सदा सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना, तब माला के मणके बनेंगे। परिवार का अर्थ ही है सदा सन्तुष्ट रहने और सन्तुष्ट करने वाले। 21.12.2022 अपनी श्रेष्ठ दृष्टि, वृत्ति, कृति से सेवा करने वाले निरन्तर सेवाधारी भव जैसे यह शरीर श्वांस के बिना नहीं रह सकता ऐसे ब्राह्मण जीवन का श्वांस है सेवा। जैसे श्वांस न चलने पर मूर्छित हो जाते हैं ऐसे अगर ब्राह्मण आत्मा सेवा में बिजी नहीं तो मूर्छित हो जाती है इसलिए हर समय अपनी श्रेष्ठ दृष्टि से, वृत्ति से, कृति से सेवा करते रहो। वाणी से सेवा का चांस नहीं मिलता तो मन्सा सेवा करो। जब सब प्रकार की सेवा करेंगे तब फुल मार्क्स ले सकेंगे। 20.12.2022 संगमयुग के समय का महत्व जान परमात्म दुआओं से झोली भरने वाले मायाजीत भव संगमयुग का एक सेकण्ड और युगों के एक वर्ष से भी ज्यादा है, इस समय एक सेकण्ड भी गंवाया तो सेकण्ड नहीं लेकिन बहुत कुछ गंवाया। इतना महत्व सदा याद रहे तो हर सेकण्ड परमात्म दुआयें प्राप्त करते रहेंगे और जिसकी झोली परमात्म दुआओं से सदा भरपूर है उसके पास कभी माया आ नहीं सकती। दूर से ही भाग जायेगी। तो समय को बचाना - यही तीव्र पुरूषार्थ है। तीव्र पुरूषार्थी अर्थात् सदा मायाजीत। 19.12.2022 परमात्म चिंतन के आधार पर सदा बेफिक्र रहने वाले निश्चयबुद्धि, निश्चिंत भव दुनिया वालों को हर कदम में चिंता है और आप बच्चों के हर संकल्प में परमात्म चिंतन है इसलिए बेफिक्र हो। करावनहार करा रहा है आप निमित्त बन करने वाले हो, सर्व के सहयोग की अंगुली है इसलिए हर कार्य सहज और सफल हो रहा है, सब ठीक चल रहा है और चलना ही है। कराने वाला करा रहा है हमें सिर्फ निमित्त बन तन-मन-धन सफल करना है। यही है बेफिक्र, निश्चिंत स्थिति। 18.12.2022 ज्ञान, गुण और शक्तियों रूपी खजाने द्वारा सम्पन्नता का अनुभव करने वाले सम्पत्तिवान भव जिन बच्चों के पास ज्ञान, गुण और शक्तियों का खजाना है वे सदा सम्पन्न अर्थात् सन्तुष्ट रहते हैं, उनके पास अप्राप्ति का नाम-निशान नहीं रहता। हद के इच्छाओं की अविद्या हो जाती है। वह दाता होते हैं। उनके पास हद की इच्छा वा प्राप्ति की उत्पत्ति नहीं होती। वह कभी मांगने वाले मंगता नहीं बन सकते। ऐसे सदा सम्पन्न और सन्तुष्ट बच्चों को ही सम्पत्तिवान कहा जाता है। 17.12.2022 स्वराज्य की स्मृति द्वारा तूफानों को तोहफा बनाने वाले अखण्ड सुख-शान्ति सम्पन्न भव अखण्ड सुख-शान्तिमय, सम्पन्न जीवन का अनुभव करने के लिए स्वराज्य अधिकारी बनो। स्वराज्य अधिकारी के लिए तूफान अनुभवी बनाने वाले उड़ती कला का तोह़फा बन जाते हैं। उन्हें साधन, सैलवेशन वा प्रशंसा के आधार पर सुख की अनुभूति नहीं होती लेकिन परमात्म प्राप्ति के आधार पर अखण्ड सुख-शान्ति का अनुभव करते हैं। किसी भी प्रकार की अशान्त करने वाली परिस्थितियां उनकी अखण्ड शान्ति को खण्डित नहीं कर सकती। 16.12.2022 दिव्य बुद्धि द्वारा त्रिकालदर्शी स्थिति का अनुभव करने वाले सफलतामूर्त भव ब्राह्मण जन्म की विशेष सौगात दिव्य बुद्धि है। इस दिव्य बुद्धि द्वारा बाप को, अपने आपको और तीनों कालों को स्पष्ट जान सकते हो। दिव्य बुद्धि से ही याद द्वारा सर्व शक्तियों को धारण कर सकते हो। दिव्य बुद्धि त्रिकालदर्शी स्थिति का अनुभव कराती है, उनके सामने तीनों ही काल स्पष्ट होते हैं। कहा भी जाता है जो सोचो, जो बोलो, आगे पीछे का सोच समझकर करो। परिणाम को जानकर कर्म करने से सफलता अवश्य होती है। 15.12.2022 सुख स्वरूप बन सबको सुख देने वाले मास्टर सुखदाता भव संगमयुगी ब्राह्मण अर्थात् दु:ख का नाम-निशान नहीं क्योंकि सुखदाता के बच्चे मास्टर सुखदाता हो। जो मास्टर सुखदाता, सुख स्वरूप हैं वह स्वयं दु:ख में कैसे आ सकते हैं। बुद्धि से दु:खधाम का किनारा कर लिया। वे स्वयं तो सुख स्वरूप रहते ही हैं लेकिन औरों को भी सदा सुख देते हैं। जैसे बाप हर आत्मा को सदा सुख देते हैं ऐसे जो बाप का कार्य वो बच्चों का कार्य। कोई दु:ख दे रहा है तो भी आप दु:ख नहीं दे सकते, आपका स्लोगन है “ना दु:ख दो, ना दु:ख लो।'' 14.12.2022 संगमयुग के महत्व को जान स्नेह की अनुभूतियों में समाने वाले सम्पूर्ण ज्ञानी योगी भव संगमयुग परमात्म स्नेह का युग है। इस युग के महत्व को जानकर स्नेह की अनुभूतियों में समा जाओ। स्नेह का सागर स्नेह के हीरे मोतियों की थालियां भरकर दे रहे हैं, तो अपने को सदा भरपूर करो। थोड़े से अनुभव में खुश नहीं हो जाओ, सम्पन्न बनो। ये परमात्म प्यार के हीरे-मोती अनमोल हैं, इससे सदा सजे सजाये रहो क्योंकि यह स्नेह ही योग है और स्नेह में समाना ही सम्पूर्ण ज्ञान है। ऐसे रूहानी स्नेह का सदा अनुभव करने वाले ही सम्पूर्ण ज्ञानी-योगी हैं। 13.12.2022 स्नेह की शक्ति द्वारा मेहनत से मुक्त होने वाले परमात्म स्नेही भव स्नेह की शक्ति मेहनत को सहज कर देती है, जहाँ मोहब्बत है वहाँ मेहनत नहीं होती। मेहनत मनोरंजन बन जाती है। भिन्न-भिन्न बन्धनों में बंधी हुई आत्मायें मेहनत करती हैं लेकिन परमात्म स्नेही आत्मायें सहज ही मेहनत से मुक्त हो जाती हैं। यह स्नेह का वरदान सदा स्मृति में रहे तो कितनी भी बड़ी परिस्थिति हो, प्यार से, स्नेह से परिस्थिति रूपी पहाड़ भी परिवर्तन हो पानी के समान हल्का बन जाता है। 12.12.2022 यथार्थ सेवा द्वारा सेवा का प्रत्यक्ष फल खाने वाले मन-बुद्धि से सदा तन्दरूस्त भव यदि सेवा योगयुक्त और यथार्थ है तो सेवा का फल खुशी, अतीन्द्रिय सुख, डबल लाइट की अनुभूति अथवा बाप के कोई न कोई गुणों की अनुभूति प्रत्यक्षफल के रूप में जरूर होती है। और जो प्रत्यक्षफल खाते हैं वह मन-बुद्धि से सदा तन्दरूस्त रहते हैं। अगर कमजोर रहते हैं तो समझो ताजा प्रत्यक्षफल नहीं खाते। प्रत्यक्षफल सदा हेल्दी बनाता है इसलिए आपका स्लोगन है - एवरहेल्दी, एवरवेल्दी और एवरहैपी। 11.12.2022 श्रेष्ठ कर्म और योगी जीवन द्वारा सन्तुष्टता के 3 सर्टीफिकेट लेने वाले सन्तुष्टमणि भव श्रेष्ठ कर्म की निशानी है - स्वयं भी सन्तुष्ट और दूसरे भी सन्तुष्ट। ऐसे नहीं मैं तो सन्तुष्ट हूँ, दूसरे हों या नहीं। योगी जीवन वाले का प्रभाव दूसरों पर स्वत: पड़ता है। अगर कोई स्वयं से असन्तुष्ट है या और उससे असन्तुष्ट रहते हैं तो समझना चाहिए कि योगयुक्त बनने में कोई कमी है। योगी जीवन के तीन सर्टीफिकेट हैं - एक स्व से सन्तुष्ट, दूसरा - बाप सन्तुष्ट और तीसरा - लौकिक अलौकिक परिवार सन्तुष्ट। जब यह तीन सर्टीफिकेट प्राप्त हों तब कहेंगे सन्तुष्टमणि। 10.12.2022 हर कर्म योगयुक्त, युक्तियुक्त करने वाले कर्मयोगी सो निरन्तर योगी भव कर्मयोगी आत्मा का हर कर्म योगयुक्त, युक्तियुक्त होगा। अगर साधारण या व्यर्थ कर्म हो जाता है तो भी निरन्तर योगी नहीं कहेंगे। निरन्तर योग अर्थात् याद का आधार है प्यार। जो प्यारा लगता है वह स्वत: याद रहता है। प्यार वाली चीज़ अपनी ओर आकर्षित करती है। तो हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर बोल सदा श्रेष्ठ हो और एक बाप से दिल का प्यार हो तब कहेंगे कर्मयोगी सो निरन्तर योगी। 09.12.2022 मन्सा-वाचा-कर्मणा और सम्बन्ध-सम्पर्क में पवित्रता की धारणा द्वारा परमपूज्य आत्मा भव पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं लेकिन मन्सा संकल्प में भी किसी के प्रति निगेटिव संकल्प नहीं हो, बोल में भी कोई ऐसे शब्द न निकलें, सम्बन्ध-सम्पर्क भी सबसे अच्छा हो, किसी में जरा भी अपवित्रता खण्डित न हो तब कहेंगे पूज्य आत्मा। तो पवित्रता के फाउण्डेशन को चेक करो। सदा स्मृति में रहे कि मैं परम पवित्र पूज्य आत्मा इस शरीर रूपी मन्दिर में विराजमान हूँ, कोई भी व्यर्थ संकल्प मन्दिर में प्रवेश कर नहीं सकता। 08.12.2022 हर आत्मा के प्रति प्यार की दृष्टि, प्यार की भावना रखने वाले बाप समान भव जैसे द्वापर से आप लोगों ने बाप को अनेक गालियां दी फिर भी बाप ने प्यार किया। तो फालो फादर कर बाप समान बनो। कैसी भी आत्मायें हों लेकिन अपनी दृष्टि, अपनी भावना प्यार की हो - इसको कहा जाता है सर्व के प्यारे। कोई इनसल्ट करे या घृणा सबके प्रति प्यार हो। चाहे संबंधी क्या भी कहें, क्या भी करें लेकिन आपकी भावना शुद्ध हो, सर्व के प्रति कल्याण की हो - इसको कहते हैं बाप समान। 07.12.2022 संकल्प से भी मेरेपन की मैल को समाप्त कर बोझ से हल्का रहने वाले फरिश्ता भव मेरेपन का विस्तार ही बोझ है। कोई भी मेरा पन, मेरा स्वभाव, मेरा संस्कार, मेरी नेचर, कुछ भी मेरा है तो बोझ है और बोझ वाला उड़ नहीं सकता, फरिश्ता बन नहीं सकता। संकल्प में भी मेरे पन का भान आया तो समझो मैले हो गये। किसी भी चीज़ पर मैल चढ़ जाए तो मैल का बोझ हो जायेगा। तो सब बोझ बाप हवाले कर मेरेपन की मैल को समाप्त करो तो फरिश्ता बन जायेंगे। 06.12.2022 एक “पाइंट'' शब्द की स्मृति से मन-बुद्धि को निगेटिव के प्रभाव से बचाने वाले नम्बरवन विजयी भव वर्तमान समय विशेष माया का प्रभाव मन में निगेटिव भाव और भावना पैदा करने वा यथार्थ महसूसता को समाप्त करने का चल रहा है इसलिए पहले से ही सेफ्टी का साधन अपनाओ। इसका विशेष साधन है सिर्फ एक “पाइंट'' शब्द। कोई भी संकल्प, बोल वा कर्म व्यर्थ है तो उसे पाइंट लगा दो तब नम्बरवन विजयी बन सकेंगे। माया के स्वरूपों को पहचानो, सीजन को पहचानो और स्वयं को सेफ कर लो। 05.12.2022 अटेन्शन की विधि द्वारा माया की छाया से स्वयं को सेफ रखने वाले हलचल में अचल भव वर्तमान समय प्रकृति की तमोगुणी शक्ति और माया की सूक्ष्म रॉयल समझदारी की शक्ति अपना कार्य तीव्रगति से कर रही है। बच्चे प्रकृति के विकराल रूप को जान लेते हैं लेकिन माया के अति सूक्ष्म स्वरूप को जानने में धोखा खा लेते हैं क्योंकि माया रांग को भी राइट अनुभव कराती है, महसूसता की शक्ति को समाप्त कर देती है, झूठ को सच सिद्ध करने में होशियार बना देती है इसलिए “अटेन्शन'' शब्द को अन्डरलाइन कर माया की छाया से स्वयं को सेफ रखो और हलचल में भी अचल बनो। 04.12.2022 ज्ञान को लाइट और माइट के रूप से समय पर कार्य में लगाने वाले ज्ञानी तू आत्मा भव ज्ञान अर्थात् नॉलेज और नॉलेज इज़ लाइट, माइट कहा जाता है। जब लाइट अर्थात् रोशनी है कि ये रांग है, ये राइट है, ये अंधकार है, ये प्रकाश है, ये व्यर्थ है, ये समर्थ है तो लाइट और माइट से सम्पन्न आत्मा कभी अंधकार में नहीं रह सकती। अगर अंधकार समझते हुए भी अंधकार में है तो उसे ज्ञानी वा समझदार नहीं कहेंगे। ज्ञानी तू आत्मा कभी भी रांग कर्मो के, संकल्पों के वा स्वभाव-संस्कार के वशीभूत नहीं हो सकती। 03.12.2022 याद और सेवा द्वारा अपने भाग्य की रेखा श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने वाले भाग्यवान भव ब्राह्मणों की जन्म-पत्री में तीनों ही काल अच्छे से अच्छे हैं। जो हुआ वह भी अच्छा और जो हो रहा है वो और अच्छा और जो होने वाला है वह बहुत-बहुत अच्छा। सभी के मस्तक पर श्रेष्ठ तकदीर की लकीर खींची हुई है, सिर्फ याद और सेवा में सदा बिजी रहो। यह दोनों ऐसे नेचुरल हों जैसे शरीर में श्वांस नेचुरल है। भाग्य विधाता बाप ने याद और सेवा की यह विधि ऐसी दी है जिससे जो जितना चाहे उतना अपना श्रेष्ठ भाग्य बना सकते हैं। 02.12.2022 एक की याद में मन को एकाग्र कर मन्मनाभव रहने वाले एवररेडी सम्पूर्ण भव सदैव स्मृति में रखो कि हर समय एवररेडी रहना है। किसी भी समय कोई भी परिस्थिति आ जाए लेकिन हम एवररेडी रहेंगे। कल भी विनाश हो जाए तो हम तैयार हैं। एवररेडी अर्थात् सम्पूर्ण। सम्पूर्ण बनने के लिए एक बाप दूसरा न कोई - यह तैयारी चाहिए। मन सदा एक की तरफ मन्मनाभव है तो एवररेडी बन जायेंगे। एवररेडी होकर सेवा करो तो सेवा में भी सहयोग मिलेगा, सफलता भी मिलेगी। 01.12.2022 कोई भी कार्य करते सदा दिलतख्तनशीन रहने वाले बेफिक्र बादशाह भव जो सदा बापदादा के दिलतख्तनशीन रहते हैं वे बेफिक्र बादशाह बन जाते हैं क्योंकि इस तख्त की विशेषता है कि जो तख्तनशीन होगा वह सब बातों में बेफिक्र होगा। जैसे आजकल भी कोई-कोई स्थान को विशेष कोई न कोई नवीनता, विशेषता मिली हुई है तो दिलतख्त की विशेषता है कि फिक्र आ नहीं सकता। यह दिलतख्त को वरदान मिला हुआ है, इसलिए कोई भी कार्य करते सदा दिलतख्तनशीन रहो। 30.11.2022 श्रेष्ठ संस्कारों के आधार पर भविष्य संसार बनाने वाले धारणा स्वरूप भव अभी के श्रेष्ठ संस्कारों से ही भविष्य संसार बनेगा। एक राज्य, एक धर्म के संस्कार ही भविष्य संसार का फाउण्डेशन हैं। स्वराज्य का धर्म वा धारणा है - मन-वचन-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में सब प्रकार की पवित्रता। संकल्प वा स्वप्न मात्र भी अपवित्रता अर्थात् दूसरा धर्म न हो। जहाँ पवित्रता है वहाँ अपवित्रता अर्थात् व्यर्थ वा विकल्प का नामनिशान नहीं रहता, उन्हें ही धारणा स्वरूप कहा जाता है। 29.11.2022 मालिकपन की स्मृति से शक्तियों को आर्डर प्रमाण चलाने वाले स्वराज्य अधिकारी भव बाप द्वारा जो भी शक्तियाँ मिली हैं उन सर्व शक्तियों को कार्य में लगाओ। समय पर शक्तियों को यूज़ करो। सिर्फ मालिकपन की स्मृति में रहकर फिर आर्डर करो तो शक्तियां आपका आर्डर मानेंगी। अगर कमजोर होकर आर्डर करेंगे तो नहीं मानेंगी। बापदादा सभी बच्चों को मालिक बनाते हैं, कमजोर नहीं। सब बच्चे राजा बच्चे हैं क्योंकि स्वराज्य आपका बर्थ राइट है। यह बर्थ-राइट कोई भी छीन नहीं सकता। 28.11.2022 कल्याणकारी समय की स्मृति से अपने भविष्य को जानने वाले मास्टर त्रिकालदर्शी भव यदि आपसे कोई पूछे कि आपका भविष्य क्या है? तो बोलो हमको पता है - बहुत अच्छा है क्योंकि हम जानते हैं कि कल जो होगा वह बहुत अच्छा होगा। जो हो गया वो भी अच्छा, जो हो रहा है वह और अच्छा और जो होने वाला है वह और बहुत अच्छा। जो मास्टर त्रिकालदर्शी बच्चे हैं उन्हें निश्चय रहता कि कल्याणकारी समय है, बाप हमारा कल्याणकारी है और हम विश्व कल्याणकारी हैं तो हमारा अकल्याण हो नहीं सकता। 27.11.2022 परमात्म प्यार और अधिकार की अलौकिक खुशी वा नशे में रहने वाले सर्व प्राप्ति सम्पन्न भव जो बच्चे बाप के साथ सदा कम्बाइन्ड रह, प्यार से कहते हैं ‘मेरा बाबा' तो उन्हें परमात्म अधिकार प्राप्त हो जाता है। बेहद का दाता सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न कर देता है। तीनों लोकों के अधिकारी बन जाते हैं। फिर यही गीत गाते कि पाना था वह पा लिया, अभी कुछ पाने को नहीं रहा। उन्हें 21 जन्मों का गैरन्टी कार्ड मिल जाता है। तो यही अलौकक खुशी और नशे में रहो कि सब कुछ मिल गया। 26.11.2022 संगमयुग पर सदा प्रत्यक्ष वा ताजा फल खाने वाले शक्तिशाली वा तन्दरूस्त भव संगमयुग की ही विशेषता है जो एक की पदमगुणा प्राप्ति होती है और प्रत्यक्षफल भी मिलता है। अभी-अभी सेवा की और अभी-अभी खुशी रूपी फल मिला। तो जो प्रत्यक्षफल अर्थात् ताजा फ्रूट खाने वाले हैं वह शक्तिशाली वा तन्दरूस्त होते हैं। कोई कमजोरी उनके पास आ नहीं सकती। कमजोरी तब आती है जब अलबेले होकर कुम्भकरण की नींद में सो जाते हो। अलर्ट रहो तो सर्व शक्तियां साथ रहेंगी और सदा तन्दरूस्त रहेंगे। 25.11.2022 दिल की समीपता द्वारा सहयोग का अधिकार प्राप्त कर उमंग-उत्साह में उड़ने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव जो बच्चे दूर बैठे भी सदा बाप की दिल के समीप हैं उन्हें सहयोग का अधिकार प्राप्त है और अन्त तक सहयोग मिलता रहेगा इसलिए इस अधिकार की स्मृति से कभी भी न तो कमजोर बनना, न दिलशिकस्त बनना, न पुरूषार्थ में साधारण पुरूषार्थी बनना। बाप कम्बाइन्ड है इसलिए सदा उमंग-उत्साह से तीव्र पुरूषार्थी बन आगे बढ़ते रहना। कमजोरी वा दिलशिकस्त-पन बाप के हवाले कर दो, अपने पास सिर्फ उमंग-उत्साह रखो। 24.11.2022 नॉलेजफुल बन व्यर्थ को समझने, मिटाने और परिवर्तन करने वाले नेचरल योगी भव नेचरल योगी बनने के लिए मन और बुद्धि को व्यर्थ से बिल्कुल फ्री रखो। इसके लिए नॉलेजफुल के साथ-साथ पावरफुल बनो। भले नॉलेज के आधार पर समझते हो कि ये रांग है, ये राइट है, ये ऐसा है लेकिन अन्दर वह समाओ नहीं। ज्ञान अर्थात् समझ और समझदार उसको कहा जाता है जिसे समझना भी आता हो, मिटाना और परिवर्तन करना भी आता हो। तो जब व्यर्थ वृत्ति, व्यर्थ वायब्रेशन स्वाहा करो तब कहेंगे नेचरल योगी। 23.11.2022 वाणी के साथ वृत्ति द्वारा रूहानी वायब्रेशन फैलाने की सेवा करने वाले डबल सेवाधारी भव जैसे वाणी द्वारा सेवा करते हो ऐसे वाणी के साथ वृत्ति द्वारा सेवा करो तो फास्ट सेवा होगी क्योंकि बोल तो समय पर भूल जाते हैं लेकिन वायब्रेशन के रूप में मन और बुद्धि पर छाप लग जाती है। तो यह सेवा करने के लिए वृत्ति में किसी के लिए भी व्यर्थ वायब्रेशन्स न हों। व्यर्थ वायब्रेशन रूहानी वायब्रेशन के आगे एक दीवार बन जाती है, इसलिए मन-बुद्धि को व्यर्थ वायब्रेशन से मुक्त रखो - तब डबल सेवा कर सकेंगे। 22.11.2022 ‘मैं'शब्द की स्मृति द्वारा अपने ओरीज्नल स्वरूप में स्थित होने वाले देह के बंधन से मुक्त भव एक ‘मैं' शब्द ही उड़ाने वाला है और ‘मैं' शब्द ही नीचे ले आने वाला है। मैं कहने से ओरीज्नल निराकार स्वरूप याद आ जाये, यह नेचुरल हो जाए, देह भान का मैं समाप्त हो जाए तो देह के बंधन से मुक्त बन जायेंगे क्योंकि यह मैं शब्द ही देह-अहंकार में लाकर कर्म-बंधन में बांध देता है। लेकिन मैं निराकारी आत्मा हूँ, जब यह स्मृति आती है तो देहभान से परे हो, कर्म के संबंध में आयेंगे, बंधन में नहीं। 21.11.2022 निर्मानता की महानता द्वारा सर्व की दुआयें प्राप्त करने वाले मास्टर सुखदाता भव महानता की निशानी निर्मानता है, जितना निर्मान बनेंगे उतना सबके दिल में महान स्वत: बनेंगे। निर्मानता निरंहकारी सहज बनाती है। निर्मानता का बीज महानता का फल स्वत: प्राप्त कराता है। निर्मानता ही सबकी दुआयें प्राप्त करने का सहज साधन है। निर्मानता महिमा योग्य बना देती है। निर्मानता सबके मन में प्यार का स्थान बना देती है, वह बाप समान मास्टर सुखदाता बन जाते हैं। 20.11.2022 देह-अंहकार वा अभिमान के सूक्ष्म अंश का भी त्याग करने वाले आकारी सो निराकारी भव कईयों का मोटे रूप से देह के आकार में लगाव वा अभिमान नहीं है लेकिन देह के संबंध से अपने संस्कार विशेष हैं, बुद्धि विशेष है, गुण विशेष हैं, कलायें विशेष हैं, कोई शक्ति विशेष है - उसका अभिमान अर्थात् अंहकार, नशा, रोब - ये सूक्ष्म देह-अभिमान है। तो यह अभिमान कभी भी आकारी फरिश्ता वा निराकारी बनने नहीं देगा, इसलिए इसके अंश मात्र का भी त्याग करो तो सहज ही आकारी सो निराकारी बन सकेंगे। 19.11.2022 सर्व विकारों के अंश का भी त्याग कर सम्पूर्ण पवित्र बनने वाले नम्बरवन विजयी भव सम्पूर्ण पवित्र वह है जिसमें अपवित्रता का अंश-मात्र भी न हो। पवित्रता ही ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है। यह पर्सनैलिटी ही सेवा में सहज सफलता दिलाती है। लेकिन यदि एक भी विकार का अंश है तो दूसरे साथी भी उसके साथ जरूर होंगे। जैसे पवित्रता के साथ सुख-शान्ति है, ऐसे अपवित्रता के साथ पांचों विकारों का गहरा संबंध है, इसलिए एक भी विकार का अंश न रहे तब नम्बरवन विजयी बनेंगे। 18.11.2022 योग की करेन्ट के वायब्रेशन द्वारा किले को मजबूत करने वाले यज्ञ रक्षक भव जैसे ब्राह्मण फैमली बढ़ाने की प्लैनिंग करते हो, ऐसे अब यह भी प्लैन करो जो कोई भी आत्मा ब्राह्मण परिवार से किनारे नहीं हो जाए। किले को ऐसा मजबूत बनाओ जो कोई जा ही नहीं सके। जैसे चारों ओर करेन्ट की तारें लगा देते हैं तो आप भी योग के वायब्रेशन द्वारा करेन्ट की तारें लगा दो। जब इस यज्ञ के किले को अपने योग के पावरफुल वायब्रेशन द्वारा मजबूत बनाने का संकल्प इमर्ज हो तब कहेंगे यज्ञ रक्षक। 17.11.2022 कम्पैनियन के साथ द्वारा सदा मनोरंजन का अनुभव करने वाले कम्बाइन्ड रूपधारी भव जब भी अकेलेपन का अनुभव हो तो उस समय बिन्दू रूप को याद नहीं करो। वह मुश्किल होगा, उससे बोर हो जायेंगे। उस समय अपने रमणीक अनुभवों की कहानी को स्मृति में लाओ, अपने स्वमान की, प्राप्तियों की लिस्ट सामने लाओ। सिर्फ दिमाग से याद नहीं करो लेकिन दिल से कम्पैनियन के साथ कम्बाइन्ड बन सर्व सम्बन्धों के स्नेह का रस अनुभव करो - यही मनमनाभव है और यह मनमनाभव होना ही मनोरंजन है। 16.11.2022 बाप के साथ का अनुभव कर मेहनत को मोहब्बत में बदलने वाले परमात्म स्नेही भव बापदादा बच्चों को अपने स्नेह और सहयोग की गोदी में बिठाकर मंजिल पर ले जा रहे हैं। आप बच्चे सिर्फ परमात्म स्नेही बन गोद में समाये रहो तो मेहनत, मोहब्बत में बदल जायेगी। लवलीन हो हर कार्य करो। बापदादा हर समय सर्व संबंधों से आपके साथ हैं। सेवा में साथी है और स्थिति में साथ हैं। सर्व संबंधों से साथ निभाने की आफर करते हैं, आप सिर्फ परमात्म स्नेही बनो और जैसा समय वैसे सम्बन्ध से साथ रहो तो अकेलापन फील नहीं होगा। 15.11.2022 स्वमान में स्थित रह देहभान को समाप्त करने वाले अकाल तख्तनशीन, अकालमूर्त भव संगमयुग पर बाप द्वारा अनेक स्वमान प्राप्त हैं। रोज़ एक नया स्वमान स्मृति में रखो तो स्वमान के आगे देहभान ऐसे भाग जायेगा जैसे रोशनी के आगे अंधकार भाग जाता है। न समय लगता, न मेहनत लगती। आपके पास डायरेक्ट परमात्म लाइट का कनेक्शन है सिर्फ स्मृति का स्वीच डायरेक्ट लाइन से आन करो तो इतनी लाइट आ जायेगी जो स्वयं तो लाइट में होंगे लेकिन औरों के लिए भी लाइट हाउस हो जायेंगे। जो ऐसे स्वमान में रहते हैं, उन्हें ही अकाल तख्तनशीन, अकालमूर्त कहा जाता है। 14.11.2022 शान्ति की शक्ति द्वारा असम्भव को सम्भव करने वाले योगी तू आत्मा भव शान्ति की शक्ति सर्वश्रेष्ठ शक्ति है। और सभी शक्तियां इसी एक शक्ति से निकली हैं। साइन्स की शक्ति भी इसी शान्ति की शक्ति से निकली है। शान्ति की शक्ति द्वारा असम्भव को भी सम्भव कर सकते हो। जिसे दुनिया वाले असम्भव कहते वह आप योगी तू आत्मा बच्चों के लिए सहज सम्भव है। वह कहेंगे परमात्मा तो बहुत ऊंचा हजारों सूर्यो से तेजोमय है, लेकिन आप अपने अनुभव से कहते - हमने तो उसे पा लिया, शान्ति की शक्ति से स्नेह के सागर में समा गये। 13.11.2022 अपनी जीवन को हीरे समान वैल्युबुल बनाने वाले स्मृति और विस्मृति के चक्कर से मुक्त भव यह संगमयुग स्मृति का युग है और कलियुग विस्मृति का युग है। अगर अपने श्रेष्ठ पार्ट, श्रेष्ठ भाग्य की सदा स्मृति है तो हीरे समान वैल्युबुल हो और अगर विस्मृति है तो पत्थर हो। यह स्मृति और विस्मृति का खेल है। संगमयुग के रहवासी कभी कलियुग में चक्कर लगाने जा नहीं सकते। अगर थोड़ा भी बुद्धि गई तो चक्कर में फंस जायेंगे क्योंकि कलियुग में बहुत रौनक है लेकिन वह रौनक धोखा देने वाली है। 12.11.2022 बेहद के अधिकार की स्मृति द्वारा अपार खुशी में रहने वाले सदा निश्चिंत भव आजकल दुनिया में किसी को रिवाजी अधिकार भी मिलता है तो कितनी मेहनत करके अधिकार लेते हैं आपको तो बिना मेहनत के अधिकार मिल गया। बच्चा बनना अर्थात् अधिकार लेना। मेरा माना और अधिकार मिला। तो वाह मैं श्रेष्ठ अधिकारी आत्मा! इसी बेहद के अधिकार की खुशी में रहो। यह अविनाशी अधिकार निश्चित ही है और जहाँ निश्चित होता है वहाँ निश्चिन्त रहते हैं। 11.11.2022 दृढ़ता की शक्ति से सफलता प्राप्त करने वाले, प्रयोगशाली, त्रिकालदर्शी भव बापदादा का वरदान है-जहाँ दृढ़ता है वहाँ सफलता है। तो दृढ़ता से कोई भी गुण वा शक्ति के प्रयोग का प्रोग्राम बनाओ और पहले स्वयं में सन्तुष्टता का अनुभव करो। दृढ़ संकल्प हो कि “मुझे करना ही है''। दूसरों के अलबेलेपन का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। त्रिकालदर्शी पन की स्थिति के आसन पर बैठ-कर जैसा समय वैसी विधि से पहले स्वयं सिद्धि स्वरूप बनो, तब प्रयोगशाली आत्माओं का पावरफुल संगठन तैयार होगा और उस संगठन की किरणें बहुत कार्य करके दिखायेंगी। 10.11.2022 हर रोज़ की मुरली के साधन द्वारा व्यर्थ को खत्म करने वाले पास विद आनर भव हर रोज़ की मुरली मन को बिजी रखने का साधन है, मुरली की कोई भी पाइंट पर मनन करते रहो तो मन बिजी रहेगा और व्यर्थ स्वत: खत्म हो जायेगा। मन को मन्सा-वाचा और कर्मणा सेवा में इतना बिजी कर दो जो व्यर्थ संकल्प आवे ही नहीं, तभी फाइनल पेपर में पास विद आनर हो सकेंगे। अगर व्यर्थ संकल्प चलने का अभ्यास होगा तो समय पर धोखा खा लेंगे। 09.11.2022 मास्टर दाता बन खुशियों का खजाना बांटने वाले सर्व की दुआओं के पात्र भव वर्तमान समय सभी को अविनाशी खुशी की आवश्यकता है, सब खुशी के भिखारी हैं, आप दाता के बच्चे हो। दाता के बच्चों का काम है देना। जो भी संबंध-सम्पर्क में आये उसे खुशी देते जाओ। कोई खाली न जाये, इतना भरपूर रहो। हर समय देखो कि मास्टर दाता बनकर कुछ दे रहा हूँ या सिर्फ अपने में ही खुश हूँ! जितना दूसरों को देंगे उतना सबकी दुआओं के पात्र बनेंगे और यह दुआयें सहज पुरूषार्थी बना देंगी। 08.11.2022 कम्पेनियन को कम्बाइन्ड रूप में अनुभव करने वाले स्मृति स्वरूप भव कई बच्चों ने बाप को अपना कम्पैनियन तो बनाया है लेकिन कम्पैनियन को कम्बाइन्ड रूप में अनुभव करो, अलग हो ही नहीं सकते, किसकी ताकत नहीं जो मुझ कम्बाइन्ड रूप को अलग कर सके, ऐसा अनुभव बार-बार स्मृति में लाते-लाते स्मृति स्वरूप बन जायेंगे। जितना कम्बाइन्ड रूप का अनुभव बढ़ाते जायेंगे उतना ब्राह्मण जीवन बहुत प्यारी, मनोरंजक अनुभव होगी। 07.11.2022 सच्चे वैष्णव बन पवित्रता की श्रेष्ठ स्थिति का अनुभव करने वाले सम्पूर्ण पवित्र भव सम्पूर्ण पवित्रता की परिभाषा बहुत श्रेष्ठ और सहज है। सम्पूर्ण पवित्रता का अर्थ है स्वप्न-मात्र भी अपवित्रता मन और बुद्धि को टच नहीं करे - इसी को कहा जाता है सच्चे वैष्णव। चाहे अभी नम्बरवार पुरूषार्थी हो लेकिन पुरूषार्थ का लक्ष्य सम्पूर्ण पवित्रता है और यह सहज भी है क्योंकि असम्भव से सम्भव करने वाले सर्वशक्तिमान् बाप का साथ है। 06.11.2022 साधनों के वशीभूत होने के बजाए उन्हें यूज़ करने वाले मास्टर क्रियेटर भव साइन्स के साधन जो आप लोगों के काम आ रहे हैं, ड्रामा अनुसार उन्हें भी टच तभी हुआ है जब बाप को आवश्यकता है। लेकिन यह साधन यूज़ करते हुए उनके वश नहीं हो जाओ। कभी कोई साधन अपनी ओर खींच न ले। मास्टर क्रियेटर बनकर क्रियेशन से लाभ उठाओ। अगर उनके वशीभूत हो गये तो वे दु:ख देंगे इसलिए साधन यूज़ करते भी साधना निरन्तर चलती रहे। 05.11.2022 बड़ी दिल रख सेवा का प्रत्यक्षफल निकालने वाले विश्व कल्याणकारी भव जो बच्चे बड़ी दिल रखकर सेवा करते हैं तो सेवा का प्रत्यक्षफल भी बड़ा निकलता है। कोई भी कार्य करो तो स्वयं करने में भी बड़ी दिल और दूसरों को सहयोगी बनाने में भी बड़ी दिल हो। स्वयं प्रति वा साथी सहयोगी आत्माओं प्रति संकुचित दिल नहीं रखो। बड़ी दिल रखने से मिट्टी भी सोना हो जाती है, कमजोर साथी भी शक्तिशाली बन जाते हैं, असम्भव सफलता सम्भव हो जाती है। इसके लिए मैं-मैं की बलि चढ़ा दो तो बड़ी दिल वाले विश्व कल्याणकारी बन जायेंगे। 04.11.2022 मन और बुद्धि को सदा सेवा में बिज़ी रखने वाले निर्विघ्न सेवाधारी भव जो जितना सेवा का उमंग-उत्साह रखते हैं उतना निर्विघ्न रहते हैं क्योंकि सेवा में बुद्धि बिजी रहती है। खाली रहने से किसी और को आने का चांस है और बिजी रहने से सहज निर्विघ्न बन जाते हैं। मन और बुद्धि को बिजी रखने के लिए उसका टाइम-टेबल बनाओ। सेवा वा स्वयं के प्रति जो लक्ष्य रखते हो उस लक्ष्य को प्रैक्टिकल में लाने के लिए बीच-बीच में अटेन्शन जरूर चाहिए। अटेन्शन कभी टेन्शन में बदली न हो, जहाँ टेन्शन होता है वहाँ मुश्किल हो जाता है। 03.11.2022 दाता बन अखुट खजानों का दान करने वाले महादानी सो विश्व सेवाधारी भव सदा याद रखो कि बाप द्वारा जो भी अखुट खजाने मिले हैं, वह देने ही हैं। खजानों को कार्य में लगाओ। चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क में सफल करते चलो, दाता के बच्चे एक दिन भी देने के बिना रह नहीं सकते। विश्व सेवाधारी को हर दिन सेवा करनी ही है। अगर वाचा का चांस नहीं मिलता तो मन्सा करो, मन्सा नहीं कर सकते तो अपने कर्म वा प्रैक्टिकल लाइफ द्वारा करो। जितना आप मन्सा से, वाणी से, स्वयं सैम्पल बनेंगे तो सैम्पल को देखकरके स्वत: सब आकर्षित होंगे। 02.11.2022 किसी भी बात को फुलस्टाप की बिन्दी लगाकर समाप्त करने वाले सहजयोगी भव सभी पाइंटस का सार है - प्वाइंट बनना। प्वाइंट रूप में स्थित रहो तो क्वेश्चन मार्क की क्यू समाप्त हो जायेगी। जब किसी भी बात में क्वेश्चन आये तो बिन्दी (फुलस्टाप) लगा दो। फुलस्टाप लगाने का सहज स्लोगन है -जो हुआ, जो हो रहा है, जो होगा वह अच्छा होगा, क्योंकि संगमयुग है ही अच्छे से अच्छा। अच्छा कहने से अच्छा हो ही जाता है, इससे सहजयोगी जीवन का अनुभव करते रहेंगे। 01.11.2022 दृढ़ संकल्प द्वारा असम्भव को सम्भव कर सफलता का अनुभव करने वाले निश्चित विजयी भव संगमयुग को विशेष वरदान है - असम्भव को सम्भव करना इसलिए कभी यह नहीं सोचो कि यह कैसे होगा। ‘कैसे' के बजाए सोचो कि ‘ऐसे' होगा। निश्चय रखकर चलो कि यह हुआ ही पड़ा है सिर्फ प्रैक्टिकल में लाना है, रिपीट करना है। दृढ़ संकल्प को यूज़ करो। संकल्प में भी क्या-क्यों की हलचल न हो तो विजय निश्चित है ही। दृढ़ संकल्प यूज़ करना अर्थात् सहज सफलता प्राप्त कर लेना। 31.10.2022 मन से दृढ़ प्रतिज्ञा कर मनमनाभव के मंत्र को यंत्र बनाने वाले सदा शक्तिशाली भव जो बच्चे सच्चे मन से प्रतिज्ञा करते हैं तो मन मन्मनाभव हो जाता है और यह मन्मनाभव का मंत्र किसी भी परिस्थिति को पार करने में यंत्र बन जाता है। लेकिन मन में आये कि मुझे यह करना ही है। यही संकल्प हो कि जो बाप ने कहा वह हुआ ही पड़ा है इसलिए कोई भी प्रतिज्ञा मन से करो और दृढ़ करो तो शक्तिशाली बन जायेंगे। बार-बार अपने को चेक करो कि प्रतिज्ञा पावरफुल है या परीक्षा पावरफुल है? परीक्षा प्रतिज्ञा को कमजोर न कर दे। 30.10.2022 विश्व से अंधकार को मिटाकर रोशनी देने वाले मास्टर ज्ञान सूर्य भव मास्टर ज्ञान सूर्य वह हैं जो विश्व से अंधकार को मिटाकर रोशनी देने वाले हैं। वह स्वयं भी प्रकाश स्वरूप, लाइट-माइट रूप हैं और दूसरों को भी लाइट-माइट देने वाले हैं। जहाँ सदा रोशनी होती है वहाँ अंधकार का सवाल ही नहीं, अंधकार हो ही नहीं सकता। जो विश्व को रोशनी देने वाले हैं वह स्वयं अंधकार में नहीं रह सकते। सम्पूर्ण पवित्रता अर्थात् रोशनी। उनके पास अंधकार अर्थात् विकारों का अंश भी नहीं रह सकता। 29.10.2022 ब्राह्मण जीवन में काम महाशत्रु के साथ उसके सर्व साथियों को भी विदाई देने वाले सम्पूर्ण पवित्र भव ब्राह्मण जीवन में जैसे काम महाशत्रु को जीतने के लिए विशेष अटेन्शन रखते हो, ऐसे उसके सभी साथियों को भी विदाई दो। कई बच्चे क्रोध महाभूत को तो भगाते हैं लेकिन क्रोध के बाल-बच्चों से थोड़ी प्रीत रखते हैं। जैसे छोटे बच्चे अच्छे लगते हैं ऐसे इस क्रोध के भी छोटे बच्चे कभी-कभी प्यारे लगते हैं, लेकिन सम्पूर्ण पवित्र तब कहेंगे जब कोई भी विकार का अंश न रहे। ऐसा पक्का व्रत लो तब कहेंगे सच्चे ब्राह्मण। 28.10.2022 संगमयुग की हर घड़ी को उत्सव के रूप में मनाने वाले सदा उमंग-उत्साह सम्पन्न भव कोई भी उत्सव, उमंग उत्साह के लिए मनाते हैं। आप ब्राह्मण बच्चों की जीवन ही उत्साह भरी जीवन है। जैसे इस शरीर में श्वांस है तो जीवन है ऐसे ब्राह्मण जीवन का श्वांस ही उमंग-उत्साह है। इसलिए संगमयुग की हर घड़ी उत्सव है। लेकिन श्वांस की गति सदा एकरस, नार्मल होनी चाहिए। अगर श्वांस की गति बहुत तेज हो जाए या स्लो हो जाए तो यथार्थ जीवन नहीं कही जायेगी। तो चेक करो कि ब्राह्मण जीवन के उमंग-उत्साह की गति नार्मल अर्थात् एकरस है! 27.10.2022 ब्राह्मण जीवन में कम खर्च बालानशीन करने वाले अलौकिकता सम्पन्न भव इस अलौकिक ब्राह्मण जीवन का विशेष स्लोगन है “कम खर्च बालानशीन''। खर्चा कम हो लेकिन प्राप्ति शानदार हो अर्थात् रिजल्ट अच्छे से अच्छी हो। अलौकिकता सम्पन्न जीवन तब कहेंगे जब बोल में, कर्म में खर्च कम हो। कम समय में काम ज्यादा हो, कम बोल में स्पष्टीकरण ज्यादा हो, संकल्प कम हो लेंकिन शक्तिशाली हों-इसको कहा जाता है कम खर्च बालानशीन। जो सर्व खजाने कम खर्च करते हैं उनके भण्डारे भरपूर हो जाते हैं। 26.10.2022 ब्राह्मण जीवन में सदा सुख का अनुभव करने वाले मायाजीत, क्रोधमुक्त भव ब्राह्मण जीवन में यदि सुख का अनुभव करना है तो क्रोधजीत बनना अति आवश्यक है। भल कोई गाली भी दे, इनसल्ट करे लेकिन आपको क्रोध न आये। रोब दिखाना भी क्रोध का ही अंश है। ऐसे नहीं क्रोध तो करना ही पड़ता है, नहीं तो काम ही नहीं चलेगा। आजकल के समय प्रमाण क्रोध से काम बिगड़ता है और आत्मिक प्यार से, शान्ति से बिगड़ा हुआ कार्य भी ठीक हो जाता है इसलिए इस क्रोध को बहुत बड़ा विकार समझकर मायाजीत, क्रोध मुक्त बनो। 25.10.2022 सर्व खजानों को बांटते और बढ़ाते सदा भरपूर रहने वाले बालक सो मालिक भव बाप ने सभी बच्चों को एक जैसा खजाना देकर बालक सो मालिक बना दिया है। खजाना सबको एक जैसा मिला है लेकिन यदि कोई भरपूर नहीं है तो उसका कारण है कि खजाने को सम्भालना वा बढ़ाना नहीं आता है। बढ़ाने का तरीका है बांटना और सम्भालने का तरीका है खजाने को बार-बार चेक करना। अटेन्शन और चेकिंग - यह दोनों पहरे वाले ठीक हों तो खजाना सदा सेफ रहता है। 24.10.2022 लगन की अग्नि द्वारा एक दीप से अनेक दीप जलाकर सच्ची दीपावली मनाने वाले कुल दीपक भव आप आत्मा रूपी दीपक की लगन एक दीपराज बाप के साथ लगना ही सच्ची दीपावली है। जैसे दीपक में अग्नि होती है ऐसे आप दीपकों में लगन की अग्नि है, जिससे अज्ञानता का अंधकार दूर होता है। लोग तो दीपावली पर मिट्टी का स्थूल दीपक जगाते हैं लेकिन आप चैतन्य दीपक, कुल के दीपक और बापदादा की आशाओं के दीपक हो। आपके एकरस, अटल अडोल जगे हुए दीपक से जब अनेक दीपक जग जायेंगे तब सच्ची दीपावली होगी। 23.10.2022 उमंग-उत्साह के आधार पर सदा उड़ती कला का अनुभव करने वाले हिम्मतवान भव उड़ती कला का अनुभव करने के लिए हिम्मत और उमंग-उत्साह के पंख चाहिए। किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए उमंग-उत्साह बहुत जरूरी है। अगर उमंग-उत्साह नहीं तो कार्य सफल नहीं हो सकताक्योंकि उमंग-उत्साह नहीं तो थकावट होगी और थका हुआ कभी सफल नहीं होगा इसलिए हिम्मतवान बन उमंग और उत्साह के आधार पर उड़ते रहो तो मंजिल पर पहुंच जायेंगे। 22.10.2022 अपने आक्यूपेशन की स्मृति से सेवा का फल और बल प्राप्त करने वाले विश्व कल्याणकारी भव कोई भी काम करते अपना आक्यूपेशन कभी नहीं भूलो। जैसे पाण्डवों ने गुप्त वेष में नौकरी की लेकिन नशा विजय का था। ऐसे आप भल गवर्मेन्ट सर्वेन्ट हो, नौकरी करते हो लेकिन नशा रहे मैं विश्व कल्याणकारी हूँ तो इस स्मृति से स्वत: समर्थ रहेंगे और सदा सेवा भाव होने के कारण सेवा का फल और बल मिलता रहेगा। गाया हुआ है भावना का फल मिलता है तो आपकी सेवा-भावना अनेक आत्माओं को शान्ति, शक्ति का फल देगी। 21.10.2022 न्यारी अवस्था में स्थित रह हर कार्य करने वाले सर्व के वा परमात्म प्यार के अधिकारी भव जैसे बाप सबसे न्यारा और सबका प्यारा है। न्यारापन ही प्यारा बना देता है। जितना अपनी देह के भान से न्यारे होते जायेंगे उतना प्यारा बनेंगे। बीच-बीच में प्रैक्टिस करो देह में प्रवेश होकर कर्म किया और अभी-अभी न्यारे हो गये। ऐसे न्यारी अवस्था में स्थित रहने से कर्म भी अच्छा होगा और बाप के वा सर्व के प्यारे भी बनेंगे। परमात्म प्यार के अधिकारी बनना - कितना बड़ा फायदा है। 20.10.2022 बहानेबाज़ी के खेल को समाप्त करने वाले मास्टर दातापन के स्वमानधारी भव जिन बच्चों को बहानेबाजी का खेल आता है वह कहेंगे - ऐसे नहीं होता तो वैसा नहीं होता। इसने ऐसे किया, सरकमस्टांश वा बात ही ऐसी थी....अब इस बहानेबाजी की भाषा को समाप्त कर दृढ़ प्रतिज्ञा करो कि ऐसा हो या वैसा लेकिन मुझे तो बाप जैसा बनना है। दूसरा सहयोग दे तो मैं सम्पन्न बनूं, नहीं। इस लेने के बजाए मास्टर दाता बन सहयोग, स्नेह, सहानुभूति देना ही लेना है। इस भावना से मास्टर दातापन के स्वमानधारी बन जायेंगे। 19.10.2022 दृढ़ प्रतिज्ञा द्वारा अलबेलेपन के लूज़ स्क्रू को टाइट करने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव प्रतिज्ञा में लूज़ होने का मूल कारण है - अलबेलापन। जैसे कितनी भी बड़ी मशीनरी हो लेकिन एक छोटा सा स्क्रू लूज़ हो जाता है तो सारी मशीन को बेकार कर देता है, वैसे प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए प्लैन बहुत अच्छे बनाते हो, पुरूषार्थ भी करते हो लेकिन पुरूषार्थ वा प्लैन को कमजोर करने का स्क्रू एक ही है - अलबेलापन। वह नये-नये रूप में आता है। इसी लूज़ स्क्रू को टाइट करो। मुझे बाप समान बनना ही है - इसी दृढ़ संकल्प से तीव्र पुरूषार्थी बन जायेंगे। 18.10.2022 सेवा के बंधन द्वारा कर्म-बन्धनों को समाप्त करने वाले विश्व सेवाधारी भव प्रवृत्ति में रहते हुए कभी यह नहीं समझो कि हिसाब-किताब है, कर्मबन्धन है...लेकिन यह भी सेवा है। सेवा के बन्धन में बंधने से कर्मबन्धन खत्म हो जाता है। जब तक सेवा भाव नहीं होता तो कर्मबन्धन खींचता है। कर्मबन्धन होगा तो दुख की लहर आयेगी और सेवा का बन्धन होगा तो खुशी होगी इसलिए कर्मबन्धन को सेवा के बंधन से समाप्त करो। विश्व सेवाधारी विश्व में जहाँ भी हैं विश्व सेवा अर्थ हैं। 17.10.2022 मर्यादा की लकीर के अन्दर सदा छत्रछाया की अनुभूति करने वाले मायाजीत, विजयी भव बाप की याद ही छत्रछाया है, जितना याद में रहते उतना साथ का अनुभव होता है। छत्रछाया में रहना अर्थात् सदा सेफ रहना। जो संकल्प से भी छत्रछाया से बाहर निकलते हैं उन पर माया का वार होता है। छत्रछाया के नीचे, मर्यादा की लकीर के अन्दर रहने से कोई की हिम्मत नहीं अन्दर आने की। लेकिन यदि लकीर से बाहर निकले तो माया है ही होशियार, इसलिए साथ के अनुभव से मायाजीत बनो। 17.10.2022 मर्यादा की लकीर के अन्दर सदा छत्रछाया की अनुभूति करने वाले मायाजीत, विजयी भव बाप की याद ही छत्रछाया है, जितना याद में रहते उतना साथ का अनुभव होता है। छत्रछाया में रहना अर्थात् सदा सेफ रहना। जो संकल्प से भी छत्रछाया से बाहर निकलते हैं उन पर माया का वार होता है। छत्रछाया के नीचे, मर्यादा की लकीर के अन्दर रहने से कोई की हिम्मत नहीं अन्दर आने की। लेकिन यदि लकीर से बाहर निकले तो माया है ही होशियार, इसलिए साथ के अनुभव से मायाजीत बनो। 16.10.2022 सेवा का प्रत्यक्ष फल खाते एवरहेल्दी, वेल्दी और हैपी रहने वाले सदा खुशहाल भव जैसे साकार दुनिया में कहते हैं कि ताजा फल खाओ तो तन्दरूस्त रहेंगे। हेल्दी रहने का साधन फल बताते हैं और आप बच्चे तो हर सेकण्ड प्रत्यक्ष फल खाने वाले हो इसलिए यदि आपसे कोई पूछे कि आपका हालचाल क्या है? तो बोलो - हाल है खुशहाल और चाल है फरिश्तों की, हम हेल्दी भी हैं, वेल्दी भी हैं तो हैपी भी हैं। ब्राह्मण कभी उदास हो नहीं सकते। 15.10.2022 मालिकपन की स्मृति द्वारा परवश स्थिति को समाप्त करने वाले सदा समर्थ भव जो सदा मालिकपन की स्मृति में स्थित रहते हैं - उनके संकल्प आर्डर प्रमाण चलते हैं। मन, मालिक को परवश नहीं बना सकता। ब्राह्मण आत्मा कभी अपने कमजोर स्वभाव-संस्कार के वश नहीं हो सकती। जब स्वभाव शब्द सामने आये तो स्वभाव अर्थात् स्व प्रति व सर्व के प्रति आत्मिक भाव, इस श्रेष्ठ अर्थ में टिक जाओ और जब संस्कार शब्द आये तो अपने अनादि और आदि संस्कारों को स्मृति में लाओ तो समर्थ बन जायेंगे। परवश स्थिति समाप्त हो जायेगी। 14.10.2022 एकाग्रता के अभ्यास द्वारा मन-बुद्धि को अनुभवों की सीट पर सेट करने वाले निर्विघ्न भव एकाग्रता की शक्ति सहज ही निर्विघ्न बना देती है। इसके लिए मन और बुद्धि को किसी भी अनुभव की सीट पर सेट कर दो। एकागता की शक्ति स्वत: ही “एक बाप दूसरा न कोई'' - यह अनुभूति कराती है। इससे सहज ही एकरस स्थिति बन जाती है। सर्व के प्रति कल्याण की वृत्ति रहती है, एकाग्रता के अभ्यास से भाई-भाई की दृष्टि रहती है। उसे कभी भी कोई कमजोर संस्कार, कोई आत्मा वा प्रकृति, किसी भी प्रकार की रॉयल माया अपसेट नहीं कर सकती। 13.12.2022 कल्याणकारी युग में स्वयं का और सर्व का कल्याण करने वाले प्रकृतिजीत, मायाजीत भव इस कल्याणकारी युग में, कल्याणकारी बाप के साथ-साथ आप बच्चे भी कल्याणकारी हो। आपकी चैलेन्ज है कि हम विश्व परिवर्तक हैं। दुनिया वालों को सिर्फ विनाश दिखाई देता इसलिए समझते हैं - यह अकल्याण का समय है लेकिन आपके सामने विनाश के साथ स्थापना भी स्पष्ट है और मन में यही शुभ भावना है कि अब सर्व का कल्याण हो। मनुष्यात्मायें तो क्या प्रकृति का भी कल्याण करने वाले ही प्रकृतिजीत, मायाजीत कहलाते हैं, उनके लिए प्रकृति सुखदाई बन जाती है। 12.10.2022 एकरस स्थिति के आसन पर मन-बुद्धि को बिठाने वाले सच्चे तपस्वी भव तपस्वी सदा आसनधारी होते हैं, वे कोई न कोई आसन पर बैठकर तपस्या करते हैं। आप तपस्वी बच्चों का आसन है - एकरस स्थिति, फरिश्ता स्थिति। इन्हीं श्रेष्ठ स्थितियों के आसन पर स्थित होकर तपस्या करो। जैसे स्थूल आसन पर शरीर बैठता है ऐसे श्रेष्ठ स्थिति के आसन पर मन-बुद्धि को बिठा दो और जितना समय चाहो, जब चाहो-आसन पर बैठ जाओ। इस समय श्रेष्ठ स्थिति के आसन पर बैठने वालों को भविष्य में राज्य का सिंहासन प्राप्त होता है। 11.10.2022 स्वराज्य के साथ बेहद की वैराग्य वृत्ति को धारण करने वाले सच्चे-सच्चे राजऋषि भव एक तरफ राज्य और दूसरे तरफ ऋषि अर्थात् बेहद के वैरागी। ऐसे राजऋषि का कहाँ भी - चाहे अपने में, चाहे व्यक्ति में, चाहे वस्तु में..... लगाव नहीं हो सकता क्योंकि स्वराज्य है तो मन-बुद्धि-संस्कार सब अपने वश में हैं और वैराग्य है तो पुरानी दुनिया में संकल्प मात्र भी लगाव जा नहीं सकता, इसलिए स्वयं को राजऋषि समझना अर्थात् राजा के साथ-साथ बेहद के वैरागी बनना। 10.10.2022 हर घड़ी को अन्तिम घड़ी समझ सदा एवररेडी रहने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव जो बच्चे तीव्र पुरूषार्थी हैं वह हर घड़ी को अन्तिम घड़ी समझकर एवररेडी रहते हैं। ऐसा नहीं सोचते कि अभी तो विनाश होने में कुछ टाइम लगेगा, फिर तैयार हो जायेंगे। उस अन्तिम घड़ी को देखने के बजाए यही सोचो कि अपनी अन्तिम घड़ी का कोई भरोसा नहीं इसलिए एवररेडी, अपनी स्थिति सदा उपराम रहे। सबसे न्यारे और बाप के प्यारे, नष्टोमोहा। सदा निर्मोही और निर्विकल्प, निरव्यर्थ, व्यर्थ भी न हो तब कहेंगे एवररेडी। 09.10.2022 मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्मृति द्वारा सर्व हलचलों को मर्ज करने वाले अचल-अडोल भव जैसे शरीर का आक्यूपेशन इमर्ज रहता है, ऐसे ब्राह्मण जीवन का आक्यूपेशन इमर्ज रहे और उसका हर कर्म में नशा हो तो सर्व हलचलें मर्ज हो जायेंगी और आप सदा अचल-अडोल रहेंगे। मास्टर सर्व शक्तिमान् की स्मृति सदा इमर्ज है तो कोई भी कमजोरी हलचल में ला नहीं सकती क्योंकि वे हर शक्ति को समय पर कार्य में लगा सकते हैं, उनके पास कन्ट्रोलिंग पावर रहती है इसलिए संकल्प और कर्म दोनों समान होते हैं। 08.10.2022 दु:ख की लहरों से न्यारे रह प्रभू प्यार का अनुभव करने वाले खुशी के खजाने से सम्पन्न भव संगम के समय दु:ख के लहरों की कई बातें सामने आयेंगी लेकिन अपने अन्दर वो दु:ख की लहर दु:खी नहीं करे। जैसे गर्मी की मौसम में गर्मी होगी लेकिन स्वयं को बचाना अपने ऊपर है। तो दु:ख की बातें सुनते हुए भी दिल पर उसका प्रभाव न पड़े। जब ऐसे दु:ख की लहरों से न्यारे बनो तब प्रभू का प्यारा बनेंगे। जो ऐसे न्यारे और परमात्म प्यारे हैं वही खुशियों के खजाने से सम्पन्न रहते हैं। 07.10.2022 सदा हज़ूर को हाज़िर समझ साथ का अनुभव करने वाले कम्बाइन्ड रूपधारी भव बच्चे जब भी स्नेह से बाप को याद करते हैं तो समीप और साथ का अनुभव करते हैं। दिल से बाबा कहा और दिलाराम हाज़िर इसीलिए कहते हैं हज़ूर हाज़िर है। हाज़िरा हज़ूर है। स्नेह की विधि से हर स्थान पर हर एक के पास हज़ूर हाज़िर हो जाते हैं, अनुभवी ही इस अनुभव को जानते हैं। गाया हुआ है - करनकरावनहार तो करनहार और करावनहार कम्बाइन्ड हो गया। ऐसे कम्बाइन्ड रूपधारी सदा साथ का अनुभव करते हैं। 06.10.2022 अपनी श्रेष्ठ दृष्टि, वृत्ति द्वारा सृष्टि का परिवर्तन करने वाले विश्व के आधारमूर्त भव आप बच्चे विश्व की सर्व आत्माओं के आधारमूर्त हो। आपकी श्रेष्ठ वृत्ति से विश्व का वातावरण परिवर्तन हो रहा है, आपकी पवित्र दृष्टि से विश्व की आत्मायें और प्रकृति दोनों पवित्र बन रही हैं। आपकी दृष्टि से सृष्टि बदल रही है। आपके श्रेष्ठ कर्मो से श्रेष्ठाचारी दुनिया बन रही है, ऐसी जिम्मेवारी का ताज पहनने वाले आप बच्चे ही भविष्य के ताजधारी बनते हो। 05.10.2022 सदा उमंग-उत्साह के पंखों द्वारा उड़ती कला की स्थिति का अनुभव करने वाले कर्मयोगी भव उमंग-उत्साह आप ब्राह्मणों के उड़ती कला के पंख हैं। अगर कार्य अर्थ नीचे भी आते हो तो उड़ती कला की स्थिति से, कर्मयोगी बन कर्म में आते हो। यह उमंग-उत्साह ब्राह्मणों के लिए बड़े से बड़ी शक्ति है। नीरस जीवन नहीं है। उमंग-उत्साह का रस है तो कभी दिलशिकस्त नहीं हो सकते, सदा दिलखुश। उमंग-उत्साह, तूफान को भी तोहफा बना देता है। परीक्षा वा समस्या को मनोरंजन अनुभव कराता है। 04.10.2022 सर्वशक्तिमान् के साथ की स्मृति द्वारा सदा सफलता का अनुभव करने वाले कम्बाइन्ड रूपधारी भव सर्वशक्तिमान् बाप को अपना साथी बना लो तो शक्तियां सदा साथ रहेंगी। और जहाँ सर्व शक्तियां हैं वहाँ सफलता न हो - यह असम्भव है। लेकिन यदि बाप से कम्बाइन्ड रहने में कमी है, माया कम्बाइन्ड रूप को अलग कर देती है तो सफलता भी कम हो जाती है, मेहनत करने के बाद सफलता होती है। मास्टर सर्वशक्तिमान् के आगे सफलता तो आगे पीछे घूमती है।
03.10.2022 ड्रामा में समस्याओं को खेल समझ एक्यूरेट पार्ट बजाने वाले हीरो पार्टधारी भव हीरो पार्टधारी उसे कहा जाता - जिसकी कोई भी एक्ट साधारण न हो, हर पार्ट एक्यूरेट हो। कितनी भी समस्यायें हो, कैसी भी परिस्थितियां हों किसी के भी अधीन नहीं, अधिकारी बन समस्याओं को ऐसे पार करें जैसे खेल-खेल में पार कर रहे हैं। खेल में सदा खुशी रहती है, चाहे कैसा भी खेल हो, बाहर से रोने का भी पार्ट हो लेकिन अन्दर रहे कि यह सब बेहद का खेल है। खेल समझने से बड़ी समस्या भी हल्की बन जायेगी। 02.10.2022 जिम्मेवारी की स्मृति द्वारा सदा अलर्ट रहने वाले शुभभावना, शुभ कामना सम्पन्न भव आप बच्चे प्रकृति और मनुष्यात्माओं की वृत्ति को परिवर्तन करने के जिम्मेवार हो। लेकिन यह जिम्मेवारी तब ही निभा सकेंगे जब आपकी वृत्ति शुभ भावना, शुभ कामना से सम्पन्न, सतोप्रधान और शक्तिशाली होगी। जिम्मेवारी की स्मृति सदा अलर्ट बना देगी। हर आत्मा को मुक्ति-जीवनमुक्ति दिलाना, वर्से के अधिकारी बनाना यह बहुत बड़ी जिम्मेवारी है इसलिए कभी अलबेलापन न आये, वृत्ति साधारण न हो। 01.10.2022 नथिंगन्यु के पाठ द्वारा विघ्नों को खेल समझकर पार करने वाले अनुभवी मूर्त भव विघ्नों को देखकर घबराओ नहीं। मूर्ति बन रहे हो तो कुछ हेमर (हथौड़े) तो लगेंगे ही। हेमर से ही तो ठोक-ठोक कर ठीक करते हैं। तो जितना आगे बढ़ेंगे उतना तूफान ज्यादा क्रास करने पड़ेंगे। लेकिन आपके लिए यह तूफान तोहफा हैं - अनुभवी बनने के, इसलिए यह नहीं सोचो कि क्या सब विघ्नों के अनुभव मेरे पास ही आने हैं, नहीं। वेलकम करो - आओ। नथिंगन्यु का पाठ पक्का हो तो यह विघ्न खेल लगेंगे। 30.09.2022 प्रत्यक्षता और प्रतिज्ञा के बैलेन्स द्वारा सर्व को बाप की ब्लैसिंग प्राप्त कराने वाले विजयी रत्न भव प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजाने के लिए दृढ़ता सम्पन्न प्रतिज्ञा करो। प्रतिज्ञा करना माना जान की बाज़ी लगा देना। जान चली जाए लेकिन प्रतिज्ञा नहीं जा सकती। दृढ़ प्रतिज्ञा वाले कैसी भी परिस्थिति में हार नहीं खा सकते, वह गले का हार अर्थात् विजयी रत्न बन जाते हैं। तो जब ऐसी दृढ़ प्रतिज्ञा करो तब प्रत्यक्षता हो। प्रत्यक्षता और प्रतिज्ञा - इन दोनों का बैलेन्स ही सर्व आत्माओं को बापदादा द्वारा ब्लैसिंग प्राप्त होने का आधार है। 29.09.2022 विनाश के पहले एवररेडी रहने वाले समान और सम्पन्न भव विनाश के पहले एवररेडी बनना ही सेफ्टी का साधन है। अगर समय मिलता है तो संगमयुग की मौज मनाओ लेकिन रहो एवररेडी क्योंकि फाइनल विनाश की डेट कभी भी पहले मालूम नहीं पड़ेगी, अचानक होना है। एवररेडी नहीं होंगे तो धोखा हो जायेगा इसलिए एवररेडी रहो। सदा याद रखो कि हम और बाप सदा साथ हैं। जैसे बाप सम्पन्न है वैसे साथ रहने वाले भी समान और सम्पन्न हो जायेंगे। समान बनने वाले ही साथ चलेंगे। 28.09.2022 विश्व कल्याणकारी बन अशान्त आत्माओं को शान्ति का दान देने वाले मास्टर दाता भव दुनिया में हंगामा हो, झगड़े हो रहे हो, ऐसे अशान्ति के समय पर आप मास्टर शान्ति दाता बन औरों को भी शान्ति दो, घबराओ नहीं क्योंकि जानते हो जो हो रहा है वो भी अच्छा और जो होना है वह और अच्छा। विकारों के वशीभूत मनुष्य तो लड़ते ही रहेंगे। उनका काम ही यह है लेकिन आप विश्व कल्याणकारी आत्मायें सदा मास्टर दाता बन शान्ति का दान देते रहो। यही आपकी सेवा है। 27.09.2022 स्वमान में स्थित रह हद की इच्छाओं को समाप्त करने वाले इच्छा मात्रम् अविद्या भव जो स्वमान में स्थित रहते हैं उन्हें कभी भी हद का मान प्राप्त करने की इच्छा नहीं होती। एक स्वमान में सर्व हद की इच्छायें समा जाती हैं, मांगने की आवश्यकता नहीं रहती। हद की इच्छायें कभी भी पूर्ण नहीं होती हैं, एक हद की इच्छा अनेक इच्छाओं को उत्पन्न करती है और स्वमान सर्व इच्छाओं को सहज ही सम्पन्न कर देता है इसलिए स्वमानधारी बनो तो सर्व प्राप्ति स्वरूप बन जायेंगे, अप्राप्ति वा इच्छाओं की अविद्या हो जायेगी। 26.09.2022 अकालतख्त पर बैठकर कर्मेन्द्रियों से सदा श्रेष्ठ कर्म कराने वाले कर्मयोगी भव कर्मयोगी वह है जो अकाल तख्तनशीन अर्थात् स्वराज्य अधिकारी और बाप के वर्से के राज्य-भाग्य अधिकारी है। जो सदा अकालतख्त पर बैठकर कर्म करते हैं, उनके कर्म श्रेष्ठ होते हैं क्योंकि सभी कर्मेन्द्रियां लॉ और ऑर्डर पर रहती हैं। अगर कोई तख्त पर ठीक न हो तो लॉ और ऑर्डर चल नहीं सकता। तो तख्तनशीन आत्मा सदा यथार्थ कर्म और यथार्थ कर्म का प्रत्यक्षफल खाने वाली होती है, उसे खुशी भी मिलती है तो शक्ति भी मिलती है। 25.09.2022 परखने की शक्ति द्वारा कुसंग व व्यर्थ संग से बचने वाले शक्तिशाली आत्मा भव कई बच्चे कुसंग अर्थात् बुरे संग से तो बच जाते हैं लेकिन व्यर्थ संग से प्रभावित हो जाते हैं, क्योंकि व्यर्थ बातें रमणीक और बाहर से आकर्षित करने वाली होती हैं इसलिए बापदादा की शिक्षा है - न व्यर्थ सुनो, न व्यर्थ बोलो, न व्यर्थ करो, न व्यर्थ देखो, न व्यर्थ सोचो। ऐसे शक्तिशाली बनो जो बाप के सिवाए और कोई भी संग का रंग प्रभावित न करे। परखने की शक्ति द्वारा खराब वा व्यर्थ संग को पहले से ही परखकर परिवर्तन कर दो-तब कहेंगे शक्तिशाली आत्मा। 24.09.2022 ज्ञान और योग के बल द्वारा माया की शक्ति पर विजय प्राप्त करने वाले मायाजीत, जगतजीत भव दुनिया में साइन्स का भी बल है, राज्य का भी बल है और भक्ति का भी बल है लेकिन आपके पास है ज्ञान बल और योग बल। यह सबसे श्रेष्ठ बल है। यह योगबल माया पर सदा के लिए विजयी बनाता है। इस बल के आगे माया की शक्ति कुछ भी नहीं है। मायाजीत आत्मायें कभी स्वप्न में भी हार नहीं खा सकती, उनके स्वप्न भी शक्तिशाली होंगे। तो सदा यह स्मृति रहे कि हम योगबल वाली आत्मायें सदा विजयी हैं और विजयी रहेंगे। 23.09.2022 व्यर्थ की अपवित्रता को समाप्त कर सम्पूर्ण स्वच्छ बनने वाले होलीहंस भव होलीहंस की विशेषता है - सदा ज्ञान रत्न चुगना और निर्णय शक्ति द्वारा दूध पानी को अलग करना अर्थात् व्यर्थ और समर्थ का निर्णय करना। होलीहंस अर्थात् सदा स्वच्छ। स्वच्छता अर्थात् पवित्रता, कभी भी मैलेपन का असर न हो। व्यर्थ की अपवित्रता भी नहीं, अगर व्यर्थ भी है तो सम्पूर्ण स्वच्छ नहीं कहेंगे। हर समय बुद्धि में ज्ञान रत्न चलते रहें, ज्ञान का मनन चलता रहे तो व्यर्थ नहीं चलेगा। इसको कहा जाता है रत्न चुगना। 22.09.2022 बाप की छत्रछाया के नीचे रह माया की छाया से बचने वाले सदा खुश और बेफिक्र भव माया की छाया से बचने का साधन है-बाप की छत्रछाया। छत्रछाया में रहना अर्थात् खुश रहना। सब फिक्र बाप को दे दिया। जिनकी खुशी गुम होती है, कमजोर हो जाते हैं उन पर माया की छाया का प्रभाव पड़ ही जाता है क्योंकि कमजोरी माया का आह्वान करती है। अगर स्वप्न में भी माया की छाया पड़ गई तो परेशान होते रहेंगे, युद्ध करनी पड़ेगी इसलिए सदा बाप की छत्रछाया में रहो। याद ही छत्रछाया है। 21.09.2022 रहम की भावना को इमर्ज कर दुख दर्द की दुनिया को परिवर्तन करने वाले मास्टर मर्सीफुल भव प्रकृति की हलचल में जब आत्मायें चिल्लाती हैं, मर्सी और रहम मांगती हैं तो अपने मर्सीफुल स्वरूप को इमर्ज कर उनकी पुकार सुनो। दुख दर्द की दुनिया को परिवर्तन करने के लिए स्वयं को सम्पन्न बनाओ। परिवर्तन की शुभ भावना को तीव्र करो। आपके सम्पन्न बनने से यह दुख की दुनिया सम्पन्न (समाप्त) हो जायेगी, इसलिए स्वयं प्रति, चाहे सर्व आत्माओं के प्रति रहम की भावना इमर्ज करो। जहाँ रहम होगा, वहाँ तेरा-मेरा की हलचल नहीं होगी। 20.09.2022 लाइट स्वरूप की स्मृति द्वारा व्यर्थ के बोझ से हल्का रहने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव जो अपने निज़ी लाइट स्वरूप की स्मृति में रहते हैं उनमें व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने की शक्ति होती है। वे व्यर्थ समय, व्यर्थ संग, व्यर्थ वातावरण को सहज परिवर्तन कर डबल लाइट रहते हैं। साथ-साथ ब्राह्मण परिवार के सम्बन्ध में, सेवा के संबंध में भी हल्के रहते हैं। उनका रिश्ता किसी भी पुराने संस्कार वा संसार से नहीं रहता। किसी देहधारी व्यक्ति या वस्तु की तरफ उनकी आकर्षण हो नहीं सकती। ऐसे तीव्र पुरूषार्थी बच्चे सहज ही फरिश्ते पन की स्थिति को प्राप्त कर लेते हैं। 19.09.2022 ब्राह्मण जन्म की विशेषता को नेचरल नेचर बनाने वाले सहज पुरूषार्थी भव जैसे किसी का जन्म राज परिवार में हो, तो बार-बार स्मृति में लाते हैं कि मैं राजकुमार या राजकुमारी हूँ, चाहे कर्म रूचि के कारण साधारण भी हो लेकिन अपने जन्म की विशेषता को नहीं भूलते। ऐसे ब्राह्मण जन्म ही विशेष जन्म है, तो जन्म भी श्रेष्ठ, धर्म भी श्रेष्ठ और कर्म भी श्रेष्ठ है। इसी श्रेष्ठता अर्थात् विशेषता की जीवन स्मृति में नेचरल रहे तो सहज पुरूषार्थी बन जायेंगे। विशेष जीवन वाली आत्मायें कभी साधारण कर्म नहीं कर सकती। 18.09.2022 निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करने वाले स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक भव कोई भी संकल्प वा संस्कार सेकण्ड में निगेटिव से पॉजिटिव में परिवर्तन हो जाए - इसके लिए सारे दिन में ट्रैफिक ब्रेक का अभ्यास चाहिए, क्योंकि व्यर्थ वा निगेटिव संकल्पों की गति बहुत फास्ट होती है। फास्ट गति के समय पावरफुल ब्रेक लगाकर परिवर्तन करने का अभ्यास करो। तब स्वयं के व्यर्थ को परिवर्तन कर स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक बन सकेंगे तथा अपने फरिश्ते स्वरूप द्वारा अनेक आत्माओं को सुख-शान्ति का वरदान दे सकेंगे। 17.09.2022 प्रवृत्ति में रहते लौकिकता से न्यारे रह प्रभू का प्यार प्राप्त करने वाले लगावमुक्त भव प्रवृत्ति में रहते लक्ष्य रखो कि सेवा-स्थान पर सेवा के लिए हैं, जहाँ भी रहते वहाँ का वातावरण सेवा स्थान जैसा हो, प्रवृत्ति का अर्थ है पर-वृत्ति में रहने वाले अर्थात् मेरापन नहीं, बाप का है तो पर-वृत्ति है। कोई भी आये तो अनुभव करे कि ये न्यारे और प्रभु के प्यारे हैं। किसी में भी लगाव न हो। वातावरण लौकिक नहीं, अलौकिक हो, कहना और करना समान हो तब नम्बरवन मिलेगा। 16.09.2022 स्वदर्शन चक्र के टाइटल की स्मृति द्वारा परदर्शन मुक्त बनने वाले मायाजीत भव संगमयुग पर स्वयं बाप बच्चों को भिन्न-भिन्न टाइटल्स देते हैं, उन्हीं टाइटल्स को स्मृति में रखो तो श्रेष्ठ स्थिति में सहज ही स्थित हो जायेंगे। सिर्फ बुद्धि से वर्णन नहीं करो लेकिन सीट पर सेट हो जाओ, जैसा टाइटल वैसी स्थिति हो। यदि स्वदर्शन चक्रधारी का टाइटल स्मृति में रहे तो परदर्शन चल नहीं सकता। स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात् मायाजीत। माया उसके आगे आने की हिम्मत भी नहीं रख सकती। स्वदर्शन चक्र के आगे कोई भी ठहर नहीं सकता। 15.09.2022 किसी भी परिस्थिति में फुलस्टॉप लगाकर दुआओं का अधिकार प्राप्त करने वाले महान आत्मा भव महान आत्मा वो है जिसमें स्वयं को बदलने की शक्ति है और जो किसी भी परिस्थिति में फुलस्टॉप लगाने में स्वयं को पहले आफर करते हैं - “मुझे करना है, मुझे बदलना है'', ऐसी आफर करने वालों को तीन प्रकार की दुआयें मिलती हैं - 1-स्वयं को स्वयं की दुआयें अर्थात् खुशी मिलती है। 2-बाप द्वारा और 3- ब्राह्मण परिवार द्वारा, इसलिए अलबेलापन नहीं लाओ कि ये तो होता ही है, चलता ही है..। फुलस्टॉप लगाकर अलबेलेपन को परिवर्तन कर अलर्ट बन जाओ। 14.09.2022 कन्ट्रोलिंग पावर द्वारा स्व को कन्ट्रोल कर फुलस्टॉप लगाने वाले सदा समर्थ आत्मा भव बिन्दु स्वरूप बाप और बिन्दु स्वरूप आत्मा - दोनों की स्मृति फुलस्टॉप अर्थात् बिन्दु लगाने में समर्थ बना देती है। समर्थ आत्मा के पास स्व के ऊपर कन्ट्रोल करने की कन्ट्रोलिंग पावर होती है। वह दूसरों को कन्ट्रोल नहीं करते लेकिन स्व पर कन्ट्रोल रख परिवर्तन शक्ति को कार्य में लगाते हैं। उनमें रांग को राइट करने की शक्ति होती है, वह कभी ऐसे नहीं कहते कि क्या मुझे ही मरना है, मुझे ही सहन करना है। समर्थ आत्मा यही समझती कि यह मरना नहीं लेकिन स्वर्ग में स्वराज्य लेना है। 13.09.2022 पवित्रता के फाउन्डेशन को मजबूत कर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने वाले सम्पूर्ण और सम्पन्न भव ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन पवित्रता है। ये फाउण्डेशन मजबूत है तो सम्पूर्ण सुख-शान्ति की अनुभूति होती है। यदि अतीन्द्रिय सुख वा स्वीट साइलेन्स का अनुभव कम है तो जरूर पवित्रता का फाउण्डेशन कमजोर है। ये व्रत धारण करना कम बात नहीं है। बापदादा पवित्रता के व्रत को पालन करने वाली आत्माओं को दिल से दुआओं सहित मुबारक देते हैं। इस व्रत में सम्पूर्ण और सम्पन्न भव का वरदान प्राप्त करने के लिए व्यर्थ सोचने, देखने, बोलने और करने में फुलस्टॉप लगाकर परिवर्तन करो। 12.09.2022 मेरे पन के अधिकार को समाप्त कर क्रोध व अभिमान पर विजयी बनने वाले कर्मबन्धन मुक्त भव जहाँ मेरेपन का अधिकार रखते हो कि ये क्यों किया, यह मेरी है या मेरा है तो क्रोध, अभिमान या मोह आता है। लेकिन यह सेवा के साथी हैं, न कि मेरे का अधिकार है। जब मेरा नहीं तो क्रोध, मोह का कर्मबन्धन भी नहीं। तो कर्मबन्धनों से मुक्त होने के लिए एक बाप को अपना संसार बना लो। “एक बाप दूसरा न कोई'' एक बाप ही संसार बन गया तो कोई आकर्षण नहीं, कोई कमजोर संस्कारों का भी बंधन नहीं। सब मेरा-मेरा एक मेरे बाप में समा जाता है। 11.09.2022 कन्ट्रोलिंग पावर द्वारा तूफान को भी तोहफा बनाने वाले यथार्थ योगी भव यथार्थ वा सच्चा योगी वह है जो अपनी बुद्धि को एक सेकण्ड में जहाँ और जब लगाना चाहे वहाँ लगा सके। परिस्थिति हलचल की हो, वायुमण्डल तमोगुणी हो, माया अपना बनाने का प्रयत्न कर रही हो फिर भी सेकण्ड में एकाग्र हो जाना - यह है याद की शक्ति। कितना भी व्यर्थ संकल्पों का तूफान हो लेकिन सेकण्ड में तूफान आगे बढ़ने का तोहफा बन जाए-ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर हो। ऐसी शक्तिशाली आत्मा कभी ये संकल्प नहीं लायेगी कि चाहते तो नहीं हैं लेकिन हो जाता है। 10.09.2022 सदा खुशी की खुराक खाने वाले और खुशी बांटने वाले, खुशनसीब बेफिक्र भव ब्राह्मण जीवन की खुराक खुशी है। जो सदा खुशी की खुराक खाने वाले और खुशी बांटने वाले हैं वही खुशनसीब हैं। उनके दिल से यही निकलता कि मेरे जैसा खुशनसीब और कोई नहीं। भले सागर की लहरें भी डुबोने आ जाएं तो भी फिक्र नहीं क्योंकि जो योगयुक्त हैं वह सदा ही सेफ हैं इसलिए सारे कल्प में इस समय ही आप बेफिक्र जीवन का अनुभव करते हो। सतयुग में भी बेफिक्र होंगे लेकिन ज्ञान नहीं होगा। 09.09.2022 अपने मस्तक पर सदा बाप की दुआओं का हाथ अनुभव करने वाले विघ्न-विनाशक भव विघ्न-विनाशक वही बन सकते जिनमें सर्वशक्तियां हों। तो सदा ये नशा रखो कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान् हूँ। सर्व शक्तियों को समय पर कार्य में लगाओ। कितने भी रूप से माया आये लेकिन आप नॉलेजफुल बनो। बाप के हाथ और साथ का अनुभव करते हुए कम्बाइन्ड रूप में रहो। रोज़ अमृतवेले विजय का तिलक स्मृति में लाओ। अनुभव करो कि बापदादा की दुआओं का हाथ मेरे मस्तक पर है तो विघ्न-विनाशक बन सदा निश्चिंत रहेंगे। 08.09.2022 पवित्रता की श्रेष्ठता को धारण कर सदा शुभ कार्य करने वाले पुरूषोत्तम व विशेष आत्मा भव साधारण आत्मायें जब पवित्रता को धारण करती हैं तो महान आत्मा कहलाती हैं। पवित्रता ही श्रेष्ठता है, पवित्रता ही पूज्य है। ब्राह्मणों की पवित्रता का ही गायन है। कोई भी शुभ कार्य होगा तो ब्राह्मणों से ही करायेंगे। वैसे तो नामधारी ब्राह्मण बहुत हैं लेकिन आप जैसा नाम वैसा काम करने वाली विशेष आत्मा हो। साधारण कर्म भी बाप की याद में रहकर करते हो तो विशेष हो जाता है, इसलिए ऐसे विशेष कर्म करने वाली पुरूषोत्तम वा विशेष आत्मायें हो। 07.09.2022 धन कमाते अथवा सम्बन्धों को निभाते हुए दु:खों से मुक्त रहने वाले नष्टोमोहा, ट्रस्टी भव लौकिक संबंधों के बीच में रहते संबंध निभाना अलग चीज़ है और उनके तरफ आकर्षित होना अलग चीज़ है। ट्रस्टी होकर धन कमाना अलग चीज है, लगाव से कमाना, मोह से कमाना अलग चीज़ है। नष्टोमोहा वा ट्रस्टी की निशानी है - दु:ख और अशान्ति का नाम निशान न हो। कभी कमाने में धन नीचे ऊपर हो जाए वा सम्बन्ध निभाने में कोई बीमार हो जाए, तो भी दु:ख की लहर न आये। सदा बेफिक्र बादशाह। 06.09.2022 एक बल एक भरोसा रख हलचल की परिस्थिति में एकरस रहने वाले सर्वशक्ति सम्पन्न भव एक बल, एक भरोसे में रहने वाली आत्मा सदा एकरस स्थिति में स्थित होगी। एकरस स्थिति अर्थात् सदा अचल, हलचल नहीं। एक बाप द्वारा सर्वशक्तियां प्राप्त कर सर्व शक्ति सम्पन्न रहने वाली आत्मा कैसी भी हलचल की परिस्थिति में अचल रह सकती है। एकरस स्थिति का अर्थ ही है कि एक द्वारा सर्व सम्बन्ध, सर्व प्राप्तियों के रस का अनुभव करना। उसे और कोई भी संबंध अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकते। 05.09.2022 फ्राकदिल बन दु:खी अशान्त आत्माओं को खुशी का दान देने वाले मास्टर रहमदिल भव वर्तमान समय लोगों को और सब कुछ मिल सकता है लेकिन सच्ची खुशी नहीं मिल सकती। इसलिए ऐसे समय पर दु:खी अशान्त आत्माओं को खुशी की अनुभूति करा दो तो वे दिल से दुआयें देंगी। आप दाता के बच्चे हो तो फ्राकदिली से खुशी का खजाना बांटो, रहमदिल के गुण को इमर्ज करो। कभी भी यह नहीं सोचो कि यह तो सुनने वाले ही नहीं हैं। भल कोई आपोजीशन भी करे तो भी आपको रहम की भावना नहीं छोड़नी है। रहम भावना, शुभ भावना फल अवश्य देती है। 04.09.2022 लगाव के सूक्ष्म धागों को समाप्त कर उड़ती कला में उड़ने वाले सम्पूर्ण फरिश्ता भव फरिश्ता अर्थात् जिसका पुरानी दुनिया से कोई रिश्ता नहीं। तो सूक्ष्म रीति से चेक करो कि अंश मात्र भी कोई धागा अपनी तरफ आकर्षित तो नहीं करता है? क्योंकि यदि कोई चीज़ अच्छी लगती है तो वह अपनी तरफ आकर्षित जरूर करती है। कई कहते हैं इच्छा नहीं है लेकिन अच्छा लगता है। तो इच्छा है मोटा धागा और अच्छा है सूक्ष्म धागा, अब उसे भी समाप्त कर सम्पूर्ण फरिश्ता बनो। 03.09.2022 अनेक प्रकार के भावों को समाप्त कर आत्मिक भाव को धारण करने वाले सर्व के स्नेही भव देह-भान में रहने से अनेक प्रकार के भाव उत्पन्न होते हैं। कभी कोई अच्छा लगेगा तो कभी कोई बुरा लगेगा। आत्मा रूप में देखने से रूहानी प्यार पैदा होगा। आत्मिक भाव, आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति में रहने से हर एक के सम्बन्ध में आते हुए अति न्यारे और प्यारे रहेंगे। तो चलते फिरते अभ्यास करो - “मैं आत्मा हूँ'' इससे अनेक प्रकार के भाव-स्वभाव समाप्त हो जायेंगे और सबके स्नेही स्वत: बन जायेंगे। 02.09.2022 रूहानी सोशल वर्कर बन हलचल के समय परिस्थितियों को पार करने की हिम्मत देने वाले सच्चे सेवाधारी भव अभी समय प्रति समय विश्व में हलचल बढ़नी ही है। अशान्ति वा हिंसा के समाचार सुनते हुए आप रूहानी सोशल सेवाधारी बच्चों को विशेष अलर्ट बनकर अपने पावरफुल वायब्रेशन द्वारा सबमें शान्ति की, सहन शक्ति की हिम्मत भरनी है, लाइट हाउस बन सर्व को शान्ति की लाइट देनी है। यह फर्जअदाई अब तीव्रगति से पालन करो जिससे आत्माओं को रूहानी राहत मिले। जलते हुए दु:ख की अग्नि में शीतल जल भरने का अनुभव करें। 01.09.2022 पूर्वजपन की स्मृति द्वारा सर्व की पालना करने वाले शुभ वृत्ति वा मंसा शक्ति सम्पन्न भव किसी भी धर्म की आत्माओं को मिलते वा देखते हो तो यह स्मृति रहे कि यह सब आत्मायें हमारे ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर की वंशावली हैं। हम ब्राह्मण आत्मायें पूर्वज हैं। पूर्वज सभी की पालना करते हैं। आपकी अलौकिक पालना का स्वरूप है बाप द्वारा प्राप्त हुई सर्व शक्तियां अन्य आत्माओं में भरना। जिस आत्मा को जिस शक्ति की आवश्यकता है, उसकी उस शक्ति द्वारा पालना करना। इसके लिए अपनी वृत्ति बहुत शुद्ध और मन्सा, शक्ति सम्पन्न होनी चाहिए। 31.08.2022
30.08.2022 परवश आत्माओं को रहम के शीतल जल द्वारा वरदान देने वाले वरदानी मूर्त भव यदि कोई क्रोध अग्नि में जलता हुआ आपके सामने आये, तो उसे परवश समझ अपने रहम के शीतल जल द्वारा वरदान दो। तेल के छींटे नहीं डालो, अगर किसी के प्रति क्रोध की भावना भी रखी तो तेल के छींटें डाले, इसलिए वरदानी मूर्त बन सहनशीलता की शक्ति का वरदान दो। जब अभी चैतन्य में यह संस्कार भरेंगे तब जड़ चित्रों द्वारा भी वरदानी मूर्त बनेंगे। 29.08.2022 ज्ञान, गुण और शक्तियों से सम्पन्न बन दान करने वाले महादानी भव सारे दिन में जो भी आत्मा सम्बन्ध-सम्पर्क में आये उसे महादानी बन कोई न कोई शक्ति का, ज्ञान का, गुणों का दान दो। दान शब्द का रूहानी अर्थ है सहयोग देना। आपके पास ज्ञान का खजाना भी है तो शक्तियों और गुणों का खजाना भी है। तीनों में सम्पन्न बनो, एक में नहीं। कैसी भी आत्मा हो, गाली देने वाली, निंदा करने वाली भी हो - उसे भी अपनी वृत्ति वा स्थिति द्वारा गुण दान दो। 28.08.2022 दृढ़ संकल्प रूपी व्रत द्वारा अपनी वृत्तियों को परिवर्तन करने वाले महान आत्मा भव महान आत्मा बनने का आधार है -“पवित्रता के व्रत को प्रतिज्ञा के रूप में धारण करना'' किसी भी प्रकार का दृढ़ संकल्प रूपी व्रत लेना अर्थात् अपनी वृत्ति को परिवर्तन करना। दृढ़ व्रत वृत्ति को बदल देता है। व्रत का अर्थ है मन में संकल्प लेना और स्थूल रीति से परहेज करना। आप सबने पवित्रता का व्रत लिया और वृत्ति श्रेष्ठ बनाई। सर्व आत्माओं के प्रति आत्मा भाई-भाई की वृत्ति बनने से ही महान आत्मा बन गये। 27.08.2022 सन्तुष्टता के खजाने द्वारा हद की इच्छाओं को समाप्त करने वाले सदा सन्तुष्टमणि भव जिनके पास सन्तुष्टता का खजाना है उनके पास सब कुछ है, जो थोड़े में सन्तुष्ट रहते हैं उन्हें सर्व प्राप्तियों की अनुभूति होती है। और जिसके पास सन्तुष्टता नहीं तो सब कुछ होते भी कुछ नहीं है, क्योंकि असन्तुष्ट आत्मा सदा इच्छाओं के वश होती है उसकी एक इच्छा पूरी होगी तो और 10 इच्छायें उत्पन्न हो जायेंगी, इसलिए हद के इच्छा मात्रम् अविद्या .... तब कहेंगे सन्तुष्टमणि। 26.08.2022 सर्व प्राप्तियों की खुशी में उड़ते हुए मंजिल पर पहुंचने वाले स्मृति स्वरूप भव ब्राह्मण जीवन में आदि से अब तक जो भी प्राप्तियां हुई हैं-उनकी लिस्ट स्मृति में लाओ तो सार रूप में यही कहेंगे कि अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मण जीवन में, और यह सब अविनाशी प्राप्तियां हैं। इन प्राप्तियों की स्मृति इमर्ज रूप में रहे अर्थात् स्मृति स्वरूप बनो तो खुशी में उड़ते मंजिल पर सहज ही पहुंच जायेंगे। प्राप्ति की खुशी कभी नीचे हलचल में नहीं लायेगी क्योंकि सम्पन्नता अचल बनाती है। 25.08.2022 अपने भाग्य की स्मृति से सदा खुशी में डांस करने वाले खुशनसीब भव अमृतवेले से रात तक आप ब्राह्मण बच्चों को जो श्रेष्ठ भाग्य मिला है, उस भाग्य की लिस्ट सदा सामने रखो और यही गीत गाते रहो - वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य, जो भाग्य-विधाता ही अपना हो गया। इसी नशे में सदा खुशी की डांस करते रहो। कुछ भी हो जाए, मरने तक की बात भी आ जाए लेकिन खुशी नहीं जाए। शरीर चला जाए कोई हर्जा नहीं लेकिन खुशी नहीं जाए। 24.08.2022 कर्म और योग के बैलेन्स द्वारा सर्व की ब्लैसिंग प्राप्त करने वाले सहज सफलतामूर्त भव कर्म में योग और योग में कर्म - ऐसा कर्मयोगी अर्थात् श्रेष्ठ स्मृति, श्रेष्ठ स्थिति और श्रेष्ठ वायुमण्डल बनाने वाला सर्व की दुआओं का अधिकारी बन जाता है। कर्म और योग के बैलेन्स से हर कर्म में बाप द्वारा ब्लैसिंग तो मिलती ही है लेकिन जिसके भी संबंध-सम्पर्क में आते हैं उनसे भी दुआयें मिलती हैं, सब उसे अच्छा मानते हैं, यह अच्छा मानना ही दुआयें हैं। तो जहाँ दुआयें हैं वहाँ सहयोग है और यह दुआयें व सहयोग ही सफलता-मूर्त बना देता है। 23.08.2022 सदा उमंग-उत्साह के पंखों द्वारा उड़ने और उड़ाने वाले मजबूत और अथक भव आप आत्मायें अनेक आत्माओं को उड़ाने के निमित्त हो इसलिए उमंग-उत्साह के पंख मजबूत हों। सदा इसी स्मृति में रहो कि हम ब्राह्मण (बी.के.) विश्व कल्याण के जवाबदार हैं तो आलस्य और अलबेलापन स्वत: समाप्त हो जायेगा। कभी भी थकेंगे नहीं, जिसमें उमंग-उत्साह होता है वह अथक होते हैं। वह अपने चेहरे और चलन से सदा औरों का भी उमंग-उत्साह बढ़ाते हैं। 22.08.2022 एवररेडी बन हर परीक्षा में रूहानी मौज का अनुभव करने वाली विशेष आत्मा भव संगमयुग रूहानी मौजों में रहने का युग है इसलिए सदा मौज में रहो, कभी भी मूंझना नहीं। कोई भी परिस्थिति या परीक्षा में थोड़े समय के लिए भी मूंझ हुई और उसी घड़ी अन्तिम घड़ी आ जाए तो अन्त मति सो गति क्या होगी! इसलिए सदा एवररेडी रहो। कोई भी समस्या सम्पूर्ण बनने में विघ्न रूप नहीं बनें। सदा यह स्मृति रहे कि मैं दुनिया में सबसे वैल्युबुल, विशेष आत्मा हूँ, मेरा हर संकल्प, बोल और कर्म विशेष हो, एक सेकण्ड भी व्यर्थ न जाए। 21.08.2022 विशेषता के संस्कारों को अपनी नेचर बनाए साधारणता को समाप्त करने वाले मरजीवा भव जैसे किसी की कोई भी नेचर होती है तो वह स्वत: ही अपना काम करती है। सोचना वा करना नहीं पड़ता। ऐसे विशेषता के संस्कार भी नेचर बन जाएं और हर एक के मुख से, मन से यही निकले कि इस विशेष आत्मा की नेचर ही विशेषता की है। साधारण कर्म की समाप्ति हो जाए तब कहेंगे मरजीवा। साधारणता से मर गये, विशेषता में जी रहे हैं। संकल्प में भी साधारणता न हो। 20.08.2022 साधनों को सहारा बनाने के बजाए निमित्त मात्र कार्य में लगाने वाले सदा साक्षीदृष्टा भव कई बच्चे चलते-चलते बीज को छोड़ टाल-टालियों में आकर्षित हो जाते हैं, कोई आत्मा को आधार बना लेते और कोई साधनों को, क्योंकि बीज का रूप-रंग शोभनिक नहीं होता और टाल-टालियों का रूप-रंग बड़ा शोभनिक होता है। माया बुद्धि को ऐसा परिवर्तन कर देती है जो झूठा सहारा ही सच्चा अनुभव होता है इसलिए अब साकार स्वरूप में बाप के साथ का और साक्षी-दृष्टा स्थिति का अनुभव बढ़ाओ, साधनों को सहारा नहीं बनाओ, उन्हें निमित्त-मात्र कार्य में लगाओ। 19.08.2022 सदा एक बाप के स्नेह में समाये हुए सर्व प्राप्तियों में सम्पन्न और सन्तुष्ट भव जो बच्चे सदा एक बाप के स्नेह में समाये हुए हैं -बाप उनसे जुदा नहीं और वे बाप से जुदा नहीं। हर समय बाप के स्नेह के रिटर्न में सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न और सन्तुष्ट रहते हैं इसलिए उन्हें और किसी भी प्रकार का सहारा आकर्षित नहीं कर सकता। स्नेह में समाई हुई आत्मायें सदा सर्व प्राप्ति सम्पन्न होने के कारण सहज ही “एक बाप दूसरा न कोई'' इस अनुभूति में रहती हैं। समाई हुई आत्माओं के लिए एक बाप ही संसार है। 18.08.2022 बेफिक्र बादशाह की स्थिति में रह वायुमण्डल पर अपना प्रभाव डालने वाले मास्टर रचयिता भव जैसे बाप को इतना बड़ा परिवार है फिर भी बेफिक्र बादशाह है, सब कुछ जानते हुए, देखते हुए बेफिक्र। ऐसे फालो फादर करो। वायुमण्डल पर अपना प्रभाव डालो, वायुमण्डल का प्रभाव आपके ऊपर नहीं पड़े क्योंकि वायुमण्डल रचना है और आप मास्टर रचयिता हो। रचता का रचना के ऊपर प्रभाव हो। कोई भी बात आये तो याद करो कि मैं विजयी आत्मा हूँ, इससे सदा बेफिक्र रहेंगे, घबरायेंगे नहीं। 17.08.2022 अटूट निश्चय के आधार पर विजय का अनुभव करने वाले सदा हर्षित और निश्चिंत भव निश्चय की निशानी है-मन्सा-वाचा-कर्मणा, सम्बन्ध-सम्पर्क हर बात में सहज विजयी। जहाँ निश्चय अटूट है वहाँ विजय की भावी टल नहीं सकती। ऐसे निश्चयबुद्धि ही सदा हर्षित और निश्चिंत रहेंगे। किसी भी बात में यह क्या, क्यों, कैसे कहना भी चिंता की निशानी है। निश्चयबुद्धि निश्चिंत आत्मा का स्लोगन है “जो हुआ अच्छा हुआ, अच्छा है और अच्छा ही होना है।'' वह बुराई में भी अच्छाई का अनुभव करेंगे। चिंता शब्द की भी अविद्या होगी। 16.08.2022 भाग्य और भाग्य विधाता की स्मृति से सदा खुश रहने और खुशियां बांटने वाले सहजयोगी भव संगमयुग खुशियों का युग, मौजों का युग है तो सदा खुशी में रहो और खुशियां बांटते रहो। भाग्य और भाग्य विधाता सदा याद रहे। बाप मिला सब कुछ मिला-यह स्मृति ही सहजयोगी बना देगी। दुनिया वाले कहते हैं कि कष्ट के बिना परमात्मा नहीं मिल सकता और आप कहते घर बैठे बाप मिल गया, जो सोचा नहीं था वह मिल गया। खुशियों का सागर मिल गया...इसी खुशी में रहो-यह भी सहजयोग है। 15.08.2022 मेरे-मेरे को तेरे में परिवर्तन कर श्रेष्ठ मंजिल को प्राप्त करने वाले नष्टोमोहा भव जहाँ मेरापन होता है वहाँ हलचल होती है। मेरी रचना, मेरी दुकान, मेरा पैसा, मेरा घर...यह मेरा पन थोड़ा भी किनारे रखा है तो मंजिल का किनारा नहीं मिलेगा। श्रेष्ठ मंजिल को प्राप्त करने के लिए मेरे को तेरे में परिवर्तन करो। हद का मेरा नहीं, बेहद का मेरा। वह है मेरा बाबा। बाबा की स्मृति और ड्रामा के ज्ञान से नथिंगन्यु की अचल स्थिति रहेगी और नष्टोमोहा बन जायेंगे। 14.08.2022 स्मृति के महत्व को जान अपनी श्रेष्ठ स्थिति बनाने वाले अविनाशी तिलकधारी भव भक्ति मार्ग में तिलक का बहुत महत्व है। जब राज्य देते हैं तो तिलक लगाते हैं, सुहाग और भाग्य की निशानी भी तिलक है। ज्ञान मार्ग में फिर स्मृति के तिलक का बहुत महत्व है। जैसी स्मृति वैसी स्थिति होती है। अगर स्मृति श्रेष्ठ है तो स्थिति भी श्रेष्ठ होगी। इसलिए बापदादा ने बच्चों को तीन स्मृतियों का तिलक दिया है। स्व की स्मृति, बाप की स्मृति और श्रेष्ठ कर्म के लिए ड्रामा की स्मृति-अमृतवेले इन तीनों स्मृतियों का तिलक लगाने वाले अविनाशी तिलकधारी बच्चों की स्थिति सदा श्रेष्ठ रहती है। 13.08.2022 फ्राकदिल बन अखुट खजानों से सबको भरपूर करने वाले मास्टर दाता भव आप दाता के बच्चे मास्टर दाता हो, किसी से कुछ लेकर फिर देना-वह देना नहीं है। लिया और दिया तो यह बिजनेस हो गया। दाता के बच्चे फ्राक दिल बन देते जाओ। अखुट खजाना है, जिसको जो चाहिए वह देते भरपूर करते जाओ। किसी को खुशी चाहिए, स्नेह चाहिए, शान्ति चाहिए, देते चलो। यह खुला खाता है, हिसाब-किताब का खाता नहीं है। दाता की दरबार में इस समय सब खुला है इसलिए जिसको जितना चाहिए उतना दो, इसमें कंजूसी नहीं करो। 12.08.2022 मास्टर स्नेह के सागर बन घृणा भाव को समाप्त करने वाले नॉलेजफुल भव नॉलेजफुल अर्थात् ज्ञानी तू आत्मा बच्चे हर एक के प्रति मास्टर स्नेह के सागर होते हैं। उनके पास स्नेह के बिना और कुछ है ही नहीं। आजकल सम्पत्ति से भी ज्यादा स्नेह की आवश्यकता है। तो मास्टर स्नेह के सागर बन अपकारी पर भी उपकार करो। जैसे बाप सभी बच्चों के प्रति रहम और कल्याण की भावना रखते हैं, ऐसे बाप समान क्षमा के सागर और रहमदिल बच्चों में भी किसी के प्रति घृणा भाव नहीं हो सकता। 11.08.2022 स्वयं को विश्व कल्याण के निमित्त समझ व्यर्थ से मुक्त रहने वाले बाप समान भव जैसे बाप विश्व कल्याणकारी है, ऐसे बच्चे भी विश्व कल्याण के निमित्त हैं। आप निमित्त आत्माओं की वृत्ति से वायुमण्डल परिवर्तन होना है। जैसा संकल्प वैसी वृत्ति होती है इसलिए विश्व कल्याण की जिम्मेवार आत्मायें एक सेकण्ड भी संकल्प वा वृत्ति को व्यर्थ नहीं बना सकती। कैसी भी परिस्थिति हो, व्यक्ति हो लेकिन स्व की भावना, स्व की वृत्ति कल्याण की हो, ग्लानि करने वाले के प्रति भी शुभ भावना हो तब कहेंगे व्यर्थ से मुक्त बाप समान। 10.08.2022 हद की इच्छाओं का त्याग कर अच्छा बनने की विधि द्वारा सर्व प्राप्ति सम्पन्न भव जो हद की इच्छायें रखते हैं, उनकी इच्छायें कभी पूरी नहीं होती। अच्छा बनने वालों की सभी शुभ इच्छायें स्वत: पूरी हो जाती हैं। दाता के बच्चों को कुछ भी मांगने की आवश्यकता नहीं है। मांगने से कुछ भी मिलता नहीं है। मांगना अर्थात् इच्छा। बेहद की सेवा का संकल्प बिना हद की इच्छा के होगा तो अवश्य पूरा होगा इसलिए हद की इच्छा के बजाए अच्छा बनने की विधि अपना लो तो सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न हो जायेंगे। 09.08.2022 अपनी निश्चिंत स्थिति द्वारा श्रेष्ठ टचिंग के आधार पर कार्य करने वाले सफलतामूर्त भव कोई भी कार्य करते सदा स्मृति रहे कि “बड़ा बाबा बैठा है'' तो स्थिति सदा निश्चिंत रहेगी। इस निश्चिंत स्थिति में रहना भी सबसे बड़ी बादशाही है। आजकल सब फिक्र के बादशाह हैं और आप बेफिक्र बादशाह हो। जो फिक्र करने वाले होते हैं उन्हें कभी भी सफलता नहीं मिलती क्योंकि वह फिक्र में ही समय और शक्ति को व्यर्थ गंवा देते हैं। जिस काम के लिए फिक्र करते वह काम बिगाड़ देते। लेकिन आप निश्चिंत रहते हो इसलिए समय पर श्रेष्ठ टचिंग होती है और सेवाओं में सफलता मिल जाती है। 08.08.2022 माया की बड़ी बात को भी छोटी बनाकर पार करने वाले निश्चयबुद्धि विजयी भव कोई भी बड़ी बात को छोटा बनाना या छोटी बात को बड़ा बनाना अपने हाथ में हैं। किसी-किसी का स्वभाव होता है छोटी बात को बड़ी बनाना और कोई बड़ी बात को भी छोटा बना देते हैं। तो माया की कितनी भी बड़ी बात सामने आ जाए लेकिन आप उससे बड़े बन जाओ तो वह छोटी हो जायेगी। स्व-स्थिति में रहने से बड़ी परिस्थिति भी छोटी लगेगी और उस पर विजय पाना सहज हो जायेगा। समय पर याद आये कि मैं कल्प-कल्प का विजयी हूँ तो इस निश्चय से विजयी बन जायेंगे। 07.08.2022 समर्पण भाव से सेवा करते सफलता प्राप्त करने वाले सच्चे सेवाधारी भव सच्चे सेवाधारी वह हैं जो समर्पण भाव से सेवा करते हैं। सेवा में जरा भी मेरे पन का भाव न हो। जहाँ मेरा पन है वहाँ सफलता नहीं। जब कोई यह समझ लेते हैं कि यह मेरा काम है, मेरा विचार है, यह मेरी फर्ज-अदाई है-तो यह मेरापन आना अर्थात् मोह उत्पन्न होना। लेकिन कहाँ भी रहते सदा स्मृति रहे कि मैं निमित्त हूँ, यह मेरा घर नहीं लेकिन सेवा-स्थान है तो समर्पण भाव से निर्मान और नष्टोमोहा बन सफलता को प्राप्त कर लेंगे। 06.08.2022 श्रेष्ठ और शुभ वृत्ति द्वारा वाणी और कर्म को श्रेष्ठ बनाने वाले विश्व परिवर्तक भव जो बच्चे अपनी कमजोर वृत्तियों को मिटाकर शुभ और श्रेष्ठ वृत्ति धारण करने का व्रत लेते हैं, उन्हें यह सृष्टि भी श्रेष्ठ नज़र आती है। वृत्ति से दृष्टि और कृत्ति का भी कनेक्शन है। कोई भी अच्छी वा बुरी बात पहले वृत्ति में धारण होती है फिर वाणी और कर्म में आती है। वृत्ति श्रेष्ठ होना माना वाणी और कर्म स्वत: श्रेष्ठ होना। वृत्ति से ही वायब्रेशन, वायुमण्डल बनता है। श्रेष्ठ वृत्ति का व्रत धारण करने वाले विश्व परिवर्तक स्वत: बन जाते हैं। 05.08.2022 देह-अभिमान के अंशमात्र की भी बलि चढ़ाने वाले महाबलवान भव सबसे बड़ी कमजोरी है देह-अभिमान। देह-अभिमान का सूक्ष्म वंश बहुत बड़ा है। देह-अभिमान की बलि चढ़ाना अर्थात् अंश और वंश सहित समर्पित होना। ऐसे बलि चढ़ाने वाले ही महाबलवान बनते हैं। यदि देह अभिमान का कोई भी अंश छिपाकर रख लिया, अभिमान को ही स्वमान समझ लिया तो उसमें अल्पकाल की विजय भल दिखाई देगी लेकिन बहुतकाल की हार समाई हुई है। 04.08.2022 हर कर्म में बाप का साथ साथी रूप में अनुभव करने वाले सिद्धि स्वरूप भव सबसे सहज और निरन्तर याद का साधन है-सदा बाप के साथ का अनुभव हो। साथ की अनुभूति याद करने की मेहनत से छुड़ा देती है। जब साथ है तो याद रहेगी ही लेकिन ऐसा साथ नहीं कि सिर्फ साथ में बैठा है लेकिन साथी अर्थात् मददगार है। साथ वाला कभी भूल भी सकता है लेकिन साथी नहीं भूलता। तो हर कर्म में बाप ऐसा साथी है जो मुश्किल को भी सहज करने वाला है। ऐसे साथी के साथ का सदा अनुभव होता रहे तो सिद्धि स्वरूप बन जायेंगे। 03.08.2022 निमित्त भाव के अभ्यास द्वारा स्व की और सर्व की प्रगति करने वाले न्यारे और प्यारे भव निमित्त बनने का पार्ट सदा न्यारा और प्यारा बनाता है। अगर निमित्त भाव का अभ्यास स्वत: और सहज है तो सदा स्व की प्रगति और सर्व की प्रगति हर कदम में समाई हुई है। उन आत्माओं का कदम धरनी पर नहीं लेकिन स्टेज पर है। निमित्त बनी हुई आत्माओं को सदा यह स्मृति स्वरूप में रहता कि विश्व के आगे बाप समान का एक्जैम्पल हैं। 02.08.2022 बाप की मदद द्वारा उमंग-उत्साह और अथकपन का अनुभव करने वाले कर्मयोगी भव कर्मयोगी बच्चों को कर्म में बाप का साथ होने के कारण एकस्ट्रा मदद मिलती है। कोई भी काम भल कितना भी मुश्किल हो लेकिन बाप की मदद - उमंग-उत्साह, हिम्मत और अथकपन की शक्ति देने वाली है। जिस कार्य में उमंग-उत्साह होता है वह सफल अवश्य होता है। बाप अपने हाथ से काम नहीं करते लेकिन मदद देने का काम जरूर करते हैं। तो आप और बाप - ऐसी कर्मयोगी स्थिति है तो कभी भी थकावट फील नहीं होगी। 01.08.2022 सर्व कर्मेन्द्रियों को लॉ और आर्डर प्रमाण चलाने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव मास्टर सर्वशक्तिमान् राजयोगी वह है जो राजा बनकर अपनी कर्मेन्द्रियों रूपी प्रजा को लॉ और आर्डर प्रमाण चलाये। जैसे राजा राज्य-दरबार लगाते हैं ऐसे आप अपने राज्य कारोबारी कर्मेन्द्रियों की रोज़ दरबार लगाओ और हालचाल पूछो कि कोई भी कर्मचारी आपोजीशन तो नहीं करते हैं, सब कन्ट्रोल में हैं। जो मास्टर सर्वशक्तिमान् हैं, उन्हें एक भी कर्मेन्द्रिय कभी धोखा नहीं दे सकती। स्टॉप कहा तो स्टॉप। 31.07.2022 अपनी सर्व जिम्मेवारियों का बोझ बाप को दे स्वयं हल्का रहने वाले निमित्त और निर्माण भव जब अपनी जिम्मेवारी समझ लेते हो तब माथा भारी होता है। जिम्मेवार बाप है, मैं निमित्त मात्र हूँ - यह स्मृति हल्का बना देती है इसलिए अपने पुरूषार्थ का बोझ, सेवाओं का बोझ, सम्पर्क-सम्बन्ध निभाने का बोझ...सब छोटे-मोटे बोझ बाप को देकर हल्के हो जाओ। अगर थोड़ा भी संकल्प आया कि मुझे करना पड़ता है, मैं ही कर सकता हूँ, तो यह मैं-पन भारी बना देगा और निर्माणता भी नहीं रहेगी। निमित्त समझने से निर्मानता का गुण भी स्वत: आ जाता है। 30.07.2022 समस्याओं के पहाड़ को उड़ती कला से पार करने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव जैसे समय की रफ्तार तीव्रगति से सदा आगे बढ़ती रहती है। समय कभी रूकता नहीं, यदि उसे कोई रोकना भी चाहे तो भी रूकता नहीं। समय तो रचना है, आप रचयिता हो इसलिए कैसी भी परिस्थिति अथवा समस्याओं के पहाड़ भी आ जायें तो भी उड़ने वाले कभी रुकेंगे नहीं। अगर उड़ने वाली चीज़ बिना मंजिल के रुक जाए तो एक्सीडेंट हो जायेगा। तो आप बच्चे भी तीव्र पुरूषार्थी बन उड़ती कला में उड़ते रहो, कभी भी थकना और रुकना नहीं। 29.07.2022 श्रेष्ठ स्मृति द्वारा सुखमय स्थिति बनाने वाले सुख स्वरूप भव स्थिति का आधार स्मृति है। आप सिर्फ स्मृति स्वरूप बनो, तो स्मृति आने से जैसी स्मृति वैसी स्थिति स्वत: हो जायेगी। खुशी की स्मृति में रहो तो स्थिति भी खुशी की बन जायेगी और दु:ख की स्मृति करो तो दु:ख की स्थिति हो जायेगी। संसार में तो दु:ख बढ़ने ही हैं, सब अति में जाना है लेकिन आप सुख के सागर के बच्चे सदा खुश रहने वाले दु:खों से न्यारे सुख-स्वरूप हो, इसलिए क्या भी होता रहे लेकिन आप सदा मौज में रहो। 28.07.2022 स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन के निमित्त बनने वाले सर्व खजानों के मालिक भव आपका स्लोगन है “बदला न लो बदलकर दिखाओ''। स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन। कई बच्चे सोचते हैं यह ठीक हो तो मैं ठीक हो जाऊं, यह सिस्टम ठीक हो तो मैं ठीक रहूँ। क्रोध करने वाले को शीतल कर दो तो मैं शीतल हो जाऊं, इस खिटखिट करने वाले को किनारे कर दो तो सेन्टर ठीक हो जाए, यह सोचना ही रांग है। पहले स्व को बदलो तो विश्व बदल जायेगा। इसके लिए सर्व खजानों के मालिक बन समय प्रमाण खजानों को कार्य में लगाओ। 27.07.2022 शिक्षक बनने के साथ रहमदिल की भावना द्वारा क्षमा करने वाले मास्टर मर्सीफुल भव सर्व की दुआये लेनी हैं तो शिक्षक बनने के साथ-साथ मास्टर मर्सीफुल बनो। रहमदिल बन क्षमा करो तो यह क्षमा करना ही शिक्षा देना हो जायेगा। सिर्फ शिक्षक नहीं बनना है, क्षमा करना है - इन संस्कारों से ही सबको दुआयें दे सकेंगे। अभी से दुआयें देने के संस्कार पक्के करो तो आपके जड़ चित्रों से भी दुआयें लेते रहेंगे, इसके लिए हर कदम श्रीमत प्रमाण चलते हुए दुआओं का खजाना भरपूर करो।
26.07.2022 परमात्म प्यार की शक्ति से असम्भव को सम्भव करने वाले पदमापदम भाग्यवान भव पदमापदम भाग्यवान बच्चे सदा परमात्म प्यार में लवलीन रहते हैं। परमात्म प्यार की शक्ति किसी भी परिस्थिति को श्रेष्ठ स्थिति में बदल देती है। असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते हैं। मुश्किल सहज हो जाता है क्योंकि बापदादा का वायदा है कि हर समस्या को पार करने में प्रीति की रीति निभाते रहेंगे। लेकिन कभी-कभी प्रीत करने वाले नहीं बनना। सदा प्रीत निभाने वाले बनना।
25.07.2022 नॉलेज की शक्ति द्वारा कर्मेन्द्रियों पर शासन करने वाले सफल स्वराज्य अधिकारी भव रोज़ अपने सहयोगी सर्व कर्मचारियों की राज्य दरबार लगाओ और चेक करो कि कोई भी कर्मेन्द्रिय वा कर्मचारी से बार-बार गलती तो नहीं होती है! क्योंकि गलत कार्य करते-करते संस्कार पक्के हो जाते हैं, इसलिए नॉलेज की शक्ति से चेक करने के साथ-साथ चेंज कर दो तब कहेंगे सफल स्वराज्य अधिकारी। ऐसे स्वराज्य चलाने में जो सफल रहते हैं, उनसे सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्मायें सन्तुष्ट रहती हैं, वे सर्व की शुक्रिया के पात्र बन जाते हैं। 24.07.2022 मेरे-मेरे को समाप्त कर पुरानी दुनिया से मरने वाले निर्भय व ट्रस्ट्री भव लोग मरने से ड़रते हैं और आप तो हो ही मरे हुए। नई दुनिया में जीते हो, पुरानी दुनिया से मरे हुए हो तो मरे हुए को मरने से क्या डर, वे तो स्वत: निर्भय होंगे ही। लेकिन यदि कोई भी मेरा-मेरा होगा तो माया बिल्ली म्याऊं-म्याऊं करेगी। लोगों को मरने का, चीज़ों का या परिवार का फिक्र होता है, आप ट्रस्टी हो, यह शरीर भी मेरा नहीं, इसलिए न्यारे हो, जरा भी किसी में लगाव नहीं। 23.07.2022 अपने क्षमा स्वरूप द्वारा शिक्षा देने वाले मास्टर क्षमा के सागर भव यदि कोई आत्मा आपकी स्थिति को हिलाने की कोशिश करे, अकल्याण की वृत्ति रखे, उसे भी आप अपने कल्याण की वृत्ति से परिवर्तन करो या क्षमा करो। परिवर्तन नहीं कर सकते हो तो मास्टर क्षमा के सागर बन क्षमा करो। आपकी क्षमा उस आत्मा के लिए शिक्षा हो जायेगी। आजकल शिक्षा देने से कोई समझता, कोई नहीं। लेकिन क्षमा करना अर्थात् शुभ भावना की दुआयें देना, सहयोग देना। 22.07.2022 तपस्या द्वारा सर्व कमजोरियों को भस्म करने वाले फर्स्ट नम्बर के राज्य अधिकारी भव फर्स्ट जन्म में फर्स्ट नम्बर की आत्माओं के साथ राज्य अधिकार प्राप्त करना है तो जो भी कमजोरियां हैं उन्हें तपस्या की योग अग्नि में भस्म करो। मन-बुद्धि को एकाग्र करना अर्थात् एक ही संकल्प में रह फुल पास होना। अगर मन-बुद्धि जरा भी विचलित हो तो दृढ़ता से एकाग्र करो। व्यर्थ संकल्पों की समाप्ति ही सम्पूर्णता को समीप लायेगी। 21.07.2022 एक पास शब्द की स्मृति द्वारा किसी भी पेपर में फुल पास होने वाले पास विद आनर भव किसी भी पेपर में फुल पास होने के लिए उस पेपर के क्वेश्चन के विस्तार में नहीं जाओ, ऐसा नहीं सोचो कि यह क्यों आया, कैसे आया, किसने किया? इसके बजाए पास होने का सोचकर पेपर को पेपर समझकर पास कर लो। सिर्फ एक पास शब्द स्मृति में रखो कि हमें पास होना है, पास करना है और बाप के पास रहना है तो पास विद आनर बन जायेंगे। 20.07.2022 कल्प-कल्प के विजय की नूंध को स्मृति में रख सदा निश्चिंत रहने वाले निश्चयबुद्धि विजयी भव निश्चयबुद्धि बच्चे व्यवहार वा परमार्थ के हर कार्य में सदा विजय की अनुभूति करते हैं। भल कैसा भी साधारण कर्म हो, लेकिन उन्हें विजय का अधिकार अवश्य प्राप्त होता है। वे कोई भी कार्य में स्वयं से दिलशिकस्त नहीं होते क्योंकि निश्चय है कि कल्प-कल्प के हम विजयी हैं। जिसका मददगार स्वयं भगवान है उसकी विजय नहीं होगी तो किसकी होगी, इस भावी को कोई टाल नहीं सकता! यह निश्चय और नशा निश्चिंत बना देता है। 19.07.2022 “एक बाप दूसरा न कोई'' - इस स्थिति द्वारा सदा एकरस और लवलीन रहने वाले सहजयोगी भव “एक बाप दूसरा न कोई'' - जो बच्चे ऐसी स्थिति में सदा रहते हैं उनकी बुद्धि सार स्वरूप में सहज स्थित हो जाती है। जहाँ एक बाप है वहाँ स्थिति एकरस और लवलीन है। अगर एक के बजाए कोई दूसरा-तीसरा आया तो खिटखिट होगी, इसलिए अनेक विस्तारों को छोड़ सार स्वरूप का अनुभव करो, एक की याद में एकरस रहो तो सहजयोगी बन जायेंगे। 18.07.2022 सर्व शक्तियों से सम्पन्न बन हर शक्ति को कार्य में लगाने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव जो बच्चे सर्व शक्तियों से सदा सम्पन्न हैं वही मास्टर सर्वशक्तिमान् हैं। कोई भी शक्ति अगर समय पर काम नहीं आती तो मास्टर सर्वशक्तिमान् नहीं कह सकते। एक भी शक्ति कम होगी तो समय पर धोखा दे देगी, फेल हो जायेंगे। ऐसे नहीं सोचना कि हमारे पास सर्व शक्तियां तो हैं, एक कम हुई तो क्या हर्जा है। एक में ही हर्जा है, एक ही फेल कर देगी इसलिए एक भी शक्ति कम न हो और समय पर वह शक्ति काम में आये तब कहेंगे मास्टर सर्वशक्तिमान्। 17.07.2022 मेरे पन की खोट को समाप्त कर भरपूरता का अनुभव करने वाले सम्पूर्ण ट्रस्टी भव यदि बाप की श्रीमत प्रमाण निमित्त बनकर रहो तो न मेरी प्रवृत्ति है, न मेरा सेन्टर है। प्रवृत्ति में हो तो भी ट्रस्टी हो, सेन्टर पर हो तो भी बाप के सेन्टर हैं न कि मेरे, इसलिए सदा शिव बाप की भण्डारी है, ब्रह्मा बाप का भण्डारा है - इस स्मृति से भरपूरता का अनुभव करेंगे। मेरा पन लाया तो भण्डारा व भण्डारी में बरक्कत नहीं होगी। किसी भी कार्य में अगर कोई खोट अर्थात् कमी है तो इसका कारण बाप की बजाए मेरेपन की खोट अर्थात् अशुद्धि मिक्स है। 16.07.2022 कर्म और योग के बैलेन्स द्वारा निर्णय शक्ति को बढ़ाने वाले सदा निश्चिंत भव सदा निश्चिंत वही रह सकते हैं जिनकी बुद्धि समय पर यथार्थ जजमेंट देती है क्योंकि दिन-प्रतिदिन समस्यायें, सरकमस्टांश और टाइट होने हैं, ऐसे समय पर कर्म और योग का बैलेन्स होगा तो निर्णय शक्ति द्वारा सहज पार कर लेंगे। बैलेन्स के कारण बापदादा की जो ब्लैसिंग प्राप्त होगी उससे कभी संकल्प में भी आश्चर्यजनक प्रश्न उत्पन्न नहीं होंगे। ऐसा क्यों हुआ, यह क्या हुआ..यह क्वेश्चन नहीं उठेगा। सदैव यह निश्चय पक्का होगा कि जो हो रहा है उसमें कल्याण छिपा हुआ है। 15.07.2022 मन-बुद्धि की एकाग्रता द्वारा हर कार्य में सफलता प्राप्त करने वाले कर्मयोगी भव दुनिया वाले समझते हैं कि कर्म ही सब कुछ हैं लेकिन बापदादा कहते हैं कि कर्म अलग नहीं, कर्म और योग दोनों साथ-साथ हैं। ऐसा कर्मयोगी कैसा भी कर्म होगा उसमें सहज सफलता प्राप्त कर लेगा। चाहे स्थूल कर्म करते हो, चाहे अलौकिक करते हो। लेकिन कर्म के साथ योग है माना मन और बुद्धि की एकाग्रता है तो सफलता बंधी हुई है। कर्मयोगी आत्मा को बाप की मदद भी स्वत: मिलती है। 14.07.2022 बाप द्वारा प्राप्त हुए सर्व खजानों को कार्य में लगाकर बढ़ाने वाले ज्ञानी-योगी तू आत्मा भव बापदादा ने बच्चों को सर्व खजानों से सम्पन्न बनाया है लेकिन जो समय पर हर खजाने को काम में लगाते हैं उनका खजाना सदा बढ़ता जाता है। वे कभी ऐसे नहीं कह सकते कि चाहते तो नहीं थे लेकिन हो गया। खजानों से सम्पन्न ज्ञानी-योगी तू आत्मायें पहले सोचती हैं फिर करती हैं। उन्हें समय प्रमाण टच होता है वे फिर कैच करके प्रैक्टिकल में लाती हैं। एक सेकण्ड भी करने के बाद सोचा तो ज्ञानी तू आत्मा नहीं कहेंगे। 13.07.2022 स्मृति स्वरूप के वरदान द्वारा सदा शक्तिशाली स्थिति का अनुभव करने वाले सहज पुरुषार्थी भव सदा शक्तिशाली, विजयी वही रह सकते हैं जो स्मृति स्वरूप हैं, उन्हें ही सहज पुरुषार्थी कहा जाता है। वे हर परिस्थिति में सदा अचल रहते हैं, भल कुछ भी हो जाए, परिस्थिति रूपी बड़े से बड़ा पहाड़ भी आ जाए, संस्कार टक्कर खाने के बादल भी आ जाएं, प्रकृति भी पेपर ले लेकिन अंगद समान मन-बुद्धि रूपी पांव को हिलने नहीं देते। बीती की हलचल को भी स्मृति में लाने के बजाए फुलस्टॉप लगा देते हैं। उनके पास कभी अलबेलापन नहीं आ सकता। 12.07.2022 शुद्धि की विधि द्वारा किले को मजबूत बनाने वाले सदा विजयी वा निर्विघ्न भव जैसे कोई भी कार्य शुरू करते हो तो शुद्धि की विधि अपनाते हो, ऐसे जब किसी स्थान पर कोई विशेष सेवा शुरू करते हो वा चलते-चलते सेवा में कोई विघ्न आते हैं तो पहले संगठित रूप में चारों ओर विशेष टाइम पर एक साथ योग का दान दो। सर्व आत्माओं का एक ही शुद्ध संकल्प हो - विजयी। यह है शुद्धि की विधि, इससे सभी विजयी वा निर्विघ्न बन जायेंगे और किला मजबूत हो जायेगा। 11.07.2022 यथार्थ चार्ट द्वारा हर सबजेक्ट में सम्पूर्ण पास मार्क्स लेने वाले आज्ञाकारी भव यथार्थ चार्ट का अर्थ है हर सबजेक्ट में प्रगति और परिवर्तन का अनुभव करना। ब्राह्मण जीवन में प्रकृति, व्यक्ति अथवा माया द्वारा परिस्थितियां तो आनी ही हैं लेकिन स्व-स्थिति की शक्ति परिस्थिति के प्रभाव को समाप्त कर दे, परिस्थितियां मनोरंजन की सीन अनुभव हो। संकल्प में भी हलचल न हो। ऐसे विधि-पूर्वक चार्ट द्वारा वृद्धि का अनुभव करने वाले आज्ञाकारी बच्चों को सम्पूर्ण पास मार्क्स मिलती हैं। 10.07.2022 सदा उत्साह में रह निराशावादी को आशावादी बनाने वाले सच्चे सेवाधारी भव ब्राह्मण अर्थात् हर समय उत्साह भरे जीवन में उड़ने और उड़ाने वाले, उनके पास कभी निराशा आ नहीं सकती क्योंकि उनका आक्यूपेशन है “निराशावादी को आशावादी बनाना,'' यही सच्ची सेवा है। सच्चे सेवाधारियों का उत्साह कभी कम नहीं हो सकता। उत्साह है तो जीवन जीने का मजा है। जैसे शरीर में श्वांस की गति यथार्थ चलती है तो अच्छी तन्दरूस्ती मानी जाती है। ऐसे ब्राह्मण जीवन अर्थात् उत्साह, निराशा नहीं। 09.07.2022 समय के ज्ञान को स्मृति में रख सब प्रश्नों को समाप्त करने वाले स्वदर्शन चक्रधारी भव जो स्वदर्शन चक्रधारी बच्चे स्व का दर्शन कर लेते हैं उन्हें सृष्टि चक्र का दर्शन स्वत: हो जाता है। ड्रामा के राज़ को जानने वाले सदा खुशी में रहते हैं, कभी क्यों, क्या का प्रश्न नहीं उठ सकता क्योंकि ड्रामा में स्वयं भी कल्याणकारी हैं और समय भी कल्याणकारी है। जो स्व को देखते, स्वदर्शन चक्रधारी बनते वह सहज ही आगे बढ़ते रहते हैं। 08.07.2022 सर्व शक्तियों रूपी बर्थ राइट को हर समय कार्य में लगाने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव सर्व शक्तियां बाप का खजाना हैं और उस खजाने पर बच्चों का अधिकार है। अधिकार वाले को जैसे भी चलाओ वैसे वह चलेगा। ऐसे ही सर्वशक्तियां जब अधिकार में होंगी तब नम्बरवन विजयी बन सकेंगे। तो चेक करो कि हर शक्ति समय पर काम में आती है! हर परिस्थिति में अधिकार से शक्ति को यूज़ करो। बहुतकाल से शक्तियों रूपी रचना को कार्य में लगाने का अभ्यास हो तब कहेंगे मास्टर सर्वशक्तिमान्। 07.07.2022 सत्यता की हिम्मत से विश्वास का पात्र बनने वाले बाप वा परिवार के स्नेही भव विश्वास की नांव सत्यता है। दिल और दिमाग की ऑनेस्टी है तो उसके ऊपर बाप का, परिवार का स्वत: ही दिल से प्यार और विश्वास होता है। विश्वास के कारण फुल अधिकार उसको दे देते हैं। वे स्वत: ही सबके स्नेही बन जाते हैं इसलिए सत्यता की हिम्मत से विश्वासपात्र बनो। सत्य को सिद्ध नहीं करो लेकिन सिद्धि स्वरूप बन जाओ तो तीव्रगति से आगे बढ़ते रहेंगे। 06.07.2022 सर्व खजानों को कार्य में लगाकर बढ़ाने वाले योगी सो प्रयोगी आत्मा भव बापदादा ने बच्चों को सर्व खजाने प्रयोग के लिए दिये हैं। जो जितना प्रयोगी बनते हैं, प्रयोगी की निशानी है प्रगति। अगर प्रगति नहीं होती है तो प्रयोगी नहीं। योग का अर्थ ही है प्रयोग में लाना। तो तन-मन-धन या वस्तु जो भी बाप द्वारा मिली हुई अमानत है, उसे अलबेलेपन के कारण व्यर्थ नहीं गंवाना, ब्लकि उसे कार्य में लगाकर एक से दस गुना बढ़ाना, कम खर्च बाला नशीन बनना - यही योगी सो प्रयोगी आत्मा की निशानी है। 05.07.2022 हर सेकण्ड, हर कदम श्रीमत पर एक्यूरेट चलने वाले ईमानदार, वफादार भव हर कर्म में, श्रीमत के इशारे प्रमाण चलने वाली आत्मा को ही ऑनेस्ट अर्थात् ईमानदार और वफादार कहा जाता है। ब्राह्मण जन्म मिलते ही दिव्य बुद्धि में बापदादा ने जो श्रीमत भर दी है, ऑनेस्ट आत्मा हर सेकण्ड हर कदम उसी प्रमाण एक्यूरेट चलती रहती है। जैसे साइन्स की शक्ति द्वारा कई चीजें इशारे से ऑटोमेटिक चलती हैं, चलाना नहीं पड़ता, चाहे लाइट द्वारा, चाहे वायब्रेशन द्वारा स्विच आन किया और चलता रहता है। ऐसे ही ऑनेस्ट आत्मा साइलेन्स की शक्ति द्वारा सदा और स्वत: चलते रहते हैं। 04.07.2022 ब्राह्मण जीवन में सदा सुख देने और लेने वाले अतीन्द्रिय सुख के अधिकारी भव जो अतीन्द्रिय सुख के अधिकारी हैं वे सदा बाप के साथ सुखों के झूलों में झूलते हैं। उन्हें कभी यह संकल्प नहीं आ सकता कि फलाने ने मुझे बहुत दु:ख दिया। उनका वायदा है - न दु:ख देंगे, न दु:ख लेंगे। अगर कोई जबरदस्ती भी दे तो भी उसे धारण नहीं करते। ब्राह्मण आत्मा अर्थात् सदा सुखी। ब्राह्मणों का काम ही है सुख देना और सुख लेना। वे सदा सुखमय संसार में रहने वाली सुख स्वरूप आत्मा होंगी। 03.07.2022 आत्मिक वृत्ति, दृष्टि से दु:ख के नाम-निशान को समाप्त करने वाले सदा सुखदायी भव ब्राह्मणों का संसार भी न्यारा है तो दृष्टि-वृत्ति सब न्यारी है। जो चलते-फिरते आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति में रहते हैं उनके पास दु:ख का नाम-निशान नहीं रह सकता क्योंकि दु:ख होता है शरीर भान से। अगर शरीर भान को भूलकर आत्मिक स्वरूप में रहते हैं तो सदा सुख ही सुख है। उनका सुख-मय जीवन सुखदायी बन जाता है। वे सदा सुख की शैया पर सोते हैं और सुख स्वरूप रहते हैं। 02.07.2022 सदा सर्व प्राप्तियों की स्मृति द्वारा मांगने के संस्कारों से मुक्त रहने वाले सम्पन्न व भरपूर भव एक भरपूरता बाहर की होती है, स्थूल वस्तुओं से, स्थूल साधनों से भरपूर, लेकिन दूसरी होती है मन की भरपूरता। जो मन से भरपूर रहता है उसके पास स्थूल वस्तु या साधन नहीं भी हो फिर भी मन भरपूर होने के कारण वे कभी अपने में कमी महसूस नहीं करेंगे। वे सदा यही गीत गाते रहेंगे कि सब कुछ पा लिया, उनमें मांगने के संस्कार अंश मात्र भी नहीं होंगे। 01.07.2022 अपने चेहरे और चलन से सत्यता की सभ्यता का अनुभव कराने वाले महान आत्मा भव महान आत्मायें वह हैं जिनमें सत्यता की शक्ति है। लेकिन सत्यता के साथ सभ्यता भी जरूर चाहिए। ऐसे सत्यता की सभ्यता वाली महान आत्माओं का बोलना, देखना, चलना, खाना-पीना, उठना-बैठना हर कर्म में सभ्यता स्वत: दिखाई देगी। अगर सभ्यता नहीं तो सत्यता नहीं। सत्यता कभी सिद्ध करने से सिद्ध नहीं होती। उसे तो सिद्ध होने की सिद्धि प्राप्त है। सत्यता के सूर्य को कोई छिपा नहीं सकता। 30.06.2022 सर्व खजानों के अधिकारी बन स्वयं को भरपूर अनुभव करने वाले मास्टर दाता भव कहा जाता है - एक दो हजार पाओ, विनाशी खजाना देने से कम होता है, अविनाशी खजाना देने से बढ़ता है। लेकिन दे वही सकता है जो स्वयं भरपूर है। तो मास्टर दाता अर्थात् स्वयं भरपूर व सम्पन्न रहने वाले। उन्हें नशा रहता कि बाप का खजाना मेरा खजाना है। जिनकी याद सच्ची है उन्हें सर्व प्राप्तियां स्वत: होती हैं, मांगने वा फरियाद करने की दरकार नहीं। 29.06.2022 यथार्थ याद और सेवा के डबल लाक द्वारा निर्विघ्न रहने वाले फीलिंगप्रूफ भव माया के आने के जो भी दरवाजे हैं उन्हें याद और सेवा का डबल लॉक लगाओ। यदि याद में रहते और सेवा करते भी माया आती है तो जरूर याद अथवा सेवा में कोई कमी है। यथार्थ सेवा वह है जिसमें कोई भी स्वार्थ न हो। अगर नि:स्वार्थ सेवा नहीं तो लॉक ढीला है और याद भी शक्तिशाली चाहिए। ऐसा डबल लाक हो तो निर्विघ्न बन जायेंगे। फिर क्यों, क्या की व्यर्थ फीलिंग से परे फीलिंग प्रूफ आत्मा रहेंगे। 28.06.2022
27.06.2022 परमात्म श्रीमत के आधार पर हर कदम उठाने वाले अविनाशी वर्से के अधिकारी भव संगमयुग पर आप श्रेष्ठ भाग्यवान आत्माओं को जो परमात्म श्रीमत मिल रही है - यह श्रीमत ही श्रेष्ठ पालना है। बिना श्रीमत अर्थात् परमात्म पालना के एक कदम भी उठा नहीं सकते। ऐसी पालना सतयुग में भी नहीं मिलेगी। अभी प्रत्यक्ष अनुभव से कहते हो कि हमारा पालनहार स्वयं भगवान है। यह नशा सदा इमर्ज रहे तो बेहद के खजानों से भरपूर स्वयं को अविनाशी वर्से के अधिकारी अनुभव करेंगे। 26.06.2022 अपने चलन और चेहरे द्वारा भाग्य की लकीर दिखाने वाले श्रेष्ठ भाग्यवान भव आप ब्राह्मण बच्चों को डायरेक्ट अनादि पिता और आदि पिता द्वारा यह अलौकिक जन्म प्राप्त हुआ है। जिसका जन्म ही भाग्यविधाता द्वारा हुआ हो, वह कितना भाग्यवान हुआ। अपने इस श्रेष्ठ भाग्य को सदा स्मृति में रखते हुए हर्षित रहो। हर चलन और चेहरे में यह स्मृति स्वरूप प्रत्यक्ष रूप में स्वयं को भी अनुभव हो और दूसरों को भी दिखाई दे। आपके मस्तक बीच यह भाग्य की लकीर चमकती हुई दिखाई दे - तब कहेंगे श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा। 25.06.2022 संगठन में न्यारे और प्यारे बनने के बैलेन्स द्वारा अचल रहने वाले निर्विघ्न भव जैसे बाप बड़े से बड़े परिवार वाला है लेकिन जितना बड़ा परिवार है, उतना ही न्यारा और सर्व का प्यारा है, ऐसे फालो फादर करो। संगठन में रहते सदा निर्विघ्न और सन्तुष्ट रहने के लिए जितनी सेवा उतना ही न्यारा पन हो। कितना भी कोई हिलावे, एक तरफ एक डिस्टर्ब करे, दूसरे तरफ दूसरा। कोई सैलवेशन नहीं मिले, कोई इनसल्ट कर दे, लेकिन संकल्प में भी अचल रहें तब कहेंगे निर्विघ्न आत्मा। 24.06.2022 अपने पूज्य स्वरूप की स्मृति से सदा रूहानी नशे में रहने वाले जीवनमुक्त भव ब्राह्मण जीवन का मजा जीवनमुक्त स्थिति में है। जिन्हें अपने पूज्य स्वरूप की सदा स्मृति रहती है उनकी आंख सिवाए बाप के और कहाँ भी डूब नहीं सकती। पूज्य आत्माओं के आगे स्वयं सब व्यक्ति और वैभव झुकते हैं। पूज्य किसी के पीछे आकर्षित नहीं हो सकते। देह, सम्बन्ध, पदार्थ वा संस्कारों में भी उनके मन-बुद्धि का झुकाव नहीं रहता। वे कभी किसी बंधन में बंध नहीं सकते। सदा जीवन-मुक्त स्थिति का अनुभव करते हैं। 23.06.2022 श्रेष्ठ मत प्रमाण हर कर्म कर्मयोगी बन करने वाले कर्मबन्धन मुक्त भव जो बच्चे श्रेष्ठ मत प्रमाण हर कर्म करते हुए बेहद के रूहानी नशे में रहते हैं, वह कर्म करते कर्म के बंधन में नहीं आते, न्यारे और प्यारे रहते हैं। कर्मयोगी बनकर कर्म करने से उनके पास दु:ख की लहर नहीं आ सकती, वे सदा न्यारे और प्यारे रहते हैं। कोई भी कर्म का बन्धन उन्हें अपनी ओर खींच नहीं सकता। सदा मालिक होकर कर्म कराते हैं इसलिए बन्धनमुक्त स्थिति का अनुभव होता है। ऐसी आत्मा स्वयं भी सदा खुश रहती है और दूसरों को भी खुशी देती है। 22.06.2022 बुराई में भी बुराई को न देख अच्छाई का पाठ पढ़ने वाले अनुभवी मूर्त भव चाहे सारी बात बुरी हो लेकिन उसमें भी एक दो अच्छाई जरूर होती हैं। पाठ पढ़ाने की अच्छाई तो हर बात में समाई हुई है ही क्योंकि हर बात अनुभवी बनाने के निमित्त बनती है। धीरज का पाठ पढ़ा देती है। दूसरा आवेश कर रहा है और आप उस समय धीरज वा सहनशीलता का पाठ पढ़ रहे हो, इसलिए कहते हैं जो हो रहा है वह अच्छा और जो होना है वह और अच्छा। अच्छाई उठाने की सिर्फ बुद्धि चाहिए। बुराई को न देख अच्छाई उठा लो तो नम्बरवन बन जायेंगे। 21.06.2022 रंग और रूप के साथ-साथ सम्पूर्ण पवित्रता की खुशबू को धारण करने वाले आकर्षणमूर्त भव ब्राह्मण बनने से सभी में रंग भी आ गया है और रूप भी परिवर्तन हो गया है लेकिन खुशबू नम्बरवार है। आकर्षण मूर्त बनने के लिए रंग और रूप के साथ सम्पूर्ण पवित्रता की खुशबू चाहिए। पवित्रता अर्थात् सिर्फ ब्रह्मचारी नहीं लेकिन देह के लगाव से भी न्यारा। मन बाप के सिवाए और किसी भी प्रकार के लगाव में नहीं जाये। तन से भी ब्रह्मचारी, सम्बन्ध में भी ब्रह्मचारी और संस्कारों में भी ब्रह्मचारी - ऐसी खुशबू वाले रूहानी गुलाब ही आकर्षणमूर्त बनते हैं। 20.06.2022 निर्मानता द्वारा नव निर्माण करने वाले निराशा और अभिमान से मुक्त भव कभी भी पुरूषार्थ में निराश नहीं बनो। करना ही है, होना ही है, विजय माला मेरा ही यादगार है, इस स्मृति से विजयी बनो। एक सेकण्ड वा मिनट के लिए भी निराशा को अपने अन्दर स्थान न दो। अभिमान और निराशा - यह दोनों महाबलवान बनने नहीं देते हैं। अभिमान वालों को अपमान की फीलिंग बहुत आती है, इसलिए इन दोनों बातों से मुक्त बन निर्मान बनो तो नव निर्माण का कार्य करते रहेंगे। 19.06.2022 अच्छे संकल्प रूपी बीज द्वारा अच्छा फल प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप आत्मा भव सिद्धि स्वरूप आत्माओं के हर संकल्प अपने प्रति वा दूसरों के प्रति सिद्ध होने वाले होते हैं। उन्हें हर कर्म में सिद्धि प्राप्त होती है। वे जो बोल बोलते हैं वह सिद्ध हो जाते हैं इसलिए सत वचन कहा जाता है। सिद्धि स्वरूप आत्माओं का हर संकल्प, बोल और कर्म सिद्धि प्राप्त होने वाला होता है, व्यर्थ नहीं। यदि संकल्प रूपी बीज बहुत अच्छा है लेकिन फल अच्छा नहीं निकलता तो दृढ़ धारणा की धरनी ठीक नहीं है या अटेन्शन की परहेज में कमी है। 18.06.2022 पवित्रता की रायॅल्टी द्वारा सदा हर्षित रहने वाले हर्षितचित, हर्षितमुख भव पवित्रता की रॉयल्टी अर्थात् रीयल्टी वाली आत्मायें सदा खुशी में नाचती हैं। उनकी खुशी कभी कम, कभी ज्यादा नहीं होती। दिनप्रतिदिन हर समय और खुशी बढ़ती रहेगी, उनके अन्दर एक बाहर दूसरा नहीं होगा। वृत्ति, दृष्टि, बोल और चलन सब सत्य होगा। ऐसी रीयल रायल आत्मायें चित से भी और नैन-चैन से भी सदा हर्षित होंगी। हर्षितचित, हर्षितमुख अविनाशी होगा। 17.06.2022 अचल स्थिति द्वारा मास्टर दाता बनने वाले विश्व कल्याणकारी भव जो अचल स्थिति वाले हैं उनके अन्दर यही शुभ भावना, शुभ कामना उत्पन्न होती है कि यह भी अचल हो जाएं। अचल स्थिति वालों का विशेष गुण होगा - रहमदिल। हर आत्मा के प्रति सदा दाता-पन की भावना होगी। उनका विशेष टाइटल ही है विश्व कल्याणकारी। उनके अन्दर किसी भी आत्मा के प्रति घृणा भाव, द्वेष भाव, ईर्ष्या भाव या ग्लानी का भाव उत्पन्न नहीं हो सकता। सदा ही कल्याण का भाव होगा। 16.06.2022 सदा सत के संग द्वारा कमजोरियों को समाप्त करने वाले सहज योगी, सहज ज्ञानी भव कोई भी कमजोरी तब आती है जब सत के संग से किनारा हो जाता है और दूसरा संग लग जाता है। इसलिए भक्ति में कहते हैं सदा सतसंग में रहो। सतसंग अर्थात् सदा सत बाप के संग में रहना। आप सबके लिए सत बाप का संग अति सहज है क्योंकि समीप का संबंध है। तो सदा सतसंग में रह कमजोरियों को समाप्त करने वाले सहज योगी, सहज ज्ञानी बनो। 15.06.2022 साक्षी बन माया के खेल को मनोरंजन समझकर देखने वाले मास्टर रचयिता भव माया कितने भी रंग दिखाये, मैं मायापति हूँ, माया रचना है, मैं मास्टर रचयिता हूँ - इस स्मृति से माया का खेल देखो, खेल में हार नहीं खाओ। साक्षी बनकर मनोरंजन समझकर देखते चलो तो फर्स्ट नम्बर में आ जायेंगे। उनके लिए माया की कोई समस्या, समस्या नहीं लगेगी। कोई क्वेश्चन नहीं होगा। सदा साक्षी और सदा बाप के साथ की स्मृति से विजयी बन जायेंगे। 14.06.2022 एक बाप दूसरा न कोई इस स्मृति से निमित्त बनकर सेवा करने वाले सर्व लगावमुक्त भव जो बच्चे सदा एक बाप दूसरा न कोई - इसी स्मृति में रहते हैं उनका मन-बुद्धि सहज एकाग्र हो जाता है। वह सेवा भी निमित्त बनकर करते हैं इसलिए उसमें उनका लगाव नहीं रहता। लगाव की निशानी है - जहाँ लगाव होगा वहाँ बुद्धि जायेगी, मन भागेगा इसलिए सब जिम्मेवारियां बाप को अर्पण कर ट्रस्टी वा निमित्त बनकर सम्भालो तो लगावमुक्त बन जायेंगे। 13.06.2022 मन-बुद्धि से किसी भी बुराई को टच न करने वाले सम्पूर्ण वैष्णव व सफल तपस्वी भव पवित्रता की पर्सनैलिटी व रायॅल्टी वाले मन-बुद्धि से किसी भी बुराई को टच नहीं कर सकते। जैसे ब्राह्मण जीवन में शारीरिक आकर्षण व शारीरिक टचिंग अपवित्रता है, ऐसे मन-बुद्धि में किसी विकार के संकल्प मात्र की आकर्षण व टचिंग अपवित्रता है। तो किसी भी बुराई को संकल्प में भी टच न करना - यही सम्पूर्ण वैष्णव व सफल तपस्वी की निशानी है। 12.06.2022 श्रेष्ठ कर्म द्वारा दुआओं का स्टॉक जमा करने वाले चैतन्य दर्शनीय मूर्त भव जो भी कर्म करो उसमें दुआयें लो और दुआयें दो। श्रेष्ठ कर्म करने से सबकी दुआयें स्वत: मिलती हैं। सबके मुख से निकलता है कि यह तो बहुत अच्छे हैं। वाह! उनके कर्म ही यादगार बन जाते हैं। भल कोई भी काम करो लेकिन खुशी लो और खुशी दो, दुआयें लो, दुआयें दो। जब अभी संगम पर दुआयें लेंगे और देंगे तब आपके जड़ चित्रों द्वारा भी दुआ मिलती रहेगी और वर्तमान में भी चैतन्य दर्शनीय मूर्त बन जायेंगे। 11.06.2022 शुभ भावना से व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने वाले होलीहंस भव होलीहंस उसे कहा जाता - जो निगेटिव को छोड़ पाजिटिव को धारण करे। देखते हुए, सुनते हुए न देखे न सुने। निगेटिव अर्थात् व्यर्थ बातें, व्यर्थ कर्म न सुने, न करे और न बोले। व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दे। इसके लिए हर आत्मा के प्रति शुभ भावना चाहिए। शुभ भावना से उल्टी बात भी सुल्टी हो जाती है इसलिए कोई कैसा भी हो आप शुभ भावना दो। शुभ भावना पत्थर को भी पानी कर देगी। व्यर्थ समर्थ में बदल जायेगा। 10.06.2022 रूहानी सम्पेथी द्वारा सर्व को सन्तुष्ट करने वाले सदा सम्पत्तिवान भव आज के विश्व में सम्पत्ति वाले तो बहुत हैं लेकिन सबसे बड़े से बड़ी आवश्यक सम्पत्ति है सम्पेथी। चाहे गरीब हो, चाहे धनवान हो लेकिन आज सिम्पेथी नहीं है। आपके पास सिम्पेथी की सम्पत्ति है इसलिए किसी को और भले कुछ भी नहीं दो लेकिन सिम्पेथी से सबको सन्तुष्ट कर सकते हो। आपकी सिम्पेथी ईश्वरीय परिवार के नाते से है, इस रूहानी सिम्पेथी से तन मन और धन की पूर्ति कर सकते हो। 09.06.2022 नथिंगन्यु की स्मृति से विघ्नों को खेल समझकर पार करने वाले अनुभवी मूर्त भव विघ्नों का आना - यह भी ड्रामा में आदि से अन्त तक नूंध है लेकिन वह विघ्न असम्भव से सम्भव की अनुभूति कराते हैं। अनुभवी आत्माओं के लिए विघ्न भी खेल लगते हैं। जैसे फुटबाल के खेल में बाल आता है, ठोकर लगाते हैं, खेल खेलने में मजा आता है। ऐसे यह विघ्नों का खेल भी होता रहेगा, नथिंगन्यु। ड्रामा खेल भी दिखाता है और सम्पन्न सफलता भी दिखाता है। 08.06.2022 योग के प्रयोग द्वारा हर खजाने को बढ़ाने वाले सफल तपस्वी भव बाप द्वारा प्राप्त हुए सभी खजानों पर योग का प्रयोग करो। खजानों का खर्च कम हो और प्राप्ति अधिक हो - यही है प्रयोग। जैसे समय और संकल्प श्रेष्ठ खजाने हैं। तो संकल्प का खर्च कम हो लेकिन प्राप्ति ज्यादा हो। जो साधारण व्यक्ति दो चार मिनट सोचने के बाद सफलता प्राप्त करते हैं वह आप एक दो सेकण्ड में कर लो। कम समय, कम संकल्प में रिजल्ट ज्यादा हो तब कहेंगे - योग का प्रयोग करने वाले सफल तपस्वी।
07.06.2022 बाप को अपनी सर्व जिम्मेवारियां देकर सेवा का खेल करने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव कोई भी कार्य करते सदा स्मृति रहे कि सर्वशक्तिमान् बाप हमारा साथी है, हम मास्टर सर्वशक्तिमान् हैं तो किसी भी प्रकार का भारीपन नहीं रहेगा। जब मेरी जिम्मेवारी समझते हो तो माथा भारी होता है इसलिए ब्राह्मण जीवन में अपनी सर्व जिम्मेवारियां बाप को दे दो तो सेवा भी एक खेल अनुभव होगी। चाहे कितना भी बड़ा सोचने का काम हो, अटेन्शन देने का काम हो लेकिन मास्टर सर्वशक्तिमान के वरदान की स्मृति से अथक रहेंगे। 06.06.2022 अपने हल्केपन की स्थिति द्वारा हर कार्य को लाइट बनाने वाले बाप समान न्यारे-प्यारे भव मन-बुद्धि और संस्कार - आत्मा की जो सूक्ष्म शक्तियां हैं, तीनों में लाइट अनुभव करना, यही बाप समान न्यारे-प्यारे बनना है क्योंकि समय प्रमाण बाहर का तमोप्रधान वातावारण, मनुष्यात्माओं की वृत्तियों में भारी पन होगा। जितना बाहर का वातावरण भारी होगा उतना आप बच्चों के संकल्प, कर्म, संबंध लाइट होते जायेंगे और लाइटनेस के कारण सारा कार्य लाइट चलता रहेगा। कारोबार का प्रभाव आप पर नहीं पड़ेगा, यही स्थिति बाप समान स्थिति है। 05.06.2022 हर संकल्प, बोल और कर्म द्वारा पुण्य कर्म करने वाले दुआओं के अधिकारी भव अपने आपसे यह दृढ़ संकल्प करो कि सारे दिन में संकल्प द्वारा, बोल द्वारा, कर्म द्वारा पुण्य आत्मा बन पुण्य ही करेंगे। पुण्य का प्रत्यक्षफल है हर आत्मा की दुआयें। तो हर संकल्प में, बोल में दुआयें जमा हों। सम्बन्ध-सम्पर्क से दिल से सहयोग की शुक्रिया निकले। ऐसे दुआओं के अधिकारी ही विश्व परिवर्तन के निमित्त बनते हैं। उन्हें ही प्राइज़ मिलती है। 04.06.2022 दु:ख को सुख, ग्लानि को प्रशंसा में परिवर्तन करने वाले पुण्य आत्मा भव पुण्य आत्मा वह है जो कभी किसी को न दु:ख दे और न दुख ले, ब्लकि दु:ख को भी सुख के रूप में स्वीकार करे। ग्लानि को प्रशंसा समझे तब कहेंगे पुण्य आत्मा। यह पाठ सदा पक्के रहे कि गाली देने वाली व दुख देने वाली आत्मा को भी अपने रहमदिल स्वरूप से, रहम की दृष्टि से देखना है। ग्लानि की दृष्टि से नहीं। वह गाली दे और आप फूल चढ़ाओ तब कहेंगे पुण्य आत्मा। 03.06.2022 ब्राह्मण जीवन में सदा खुशी की खुराक खाने और खिलाने वाले श्रेष्ठ नसीबवान भव विश्व के मालिक के हम बालक सो मालिक हैं - इसी ईश्वरीय नशे और खुशी में रहो। वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य अर्थात् नसीब। इसी खुशी के झूले में सदा झूलते रहो। सदा खुशनसीब भी हो और सदा खुशी की खुराक खाते और खिलाते भी हो। औरों को भी खुशी का महादान दे खुशनसीब बनाते हो। आपकी जीवन ही खुशी है। खुश रहना ही जीना है। यही ब्राह्मण जीवन का श्रेष्ठ वरदान है। 02.06.2022 ईश्वरीय संस्कारों को कार्य में लगाकर सफल करने वाले सफलता मूर्त भव जो बच्चे अपने ईश्वरीय संस्कारों को कार्य में लगाते हैं उनके व्यर्थ संकल्प स्वत: खत्म हो जाते हैं। सफल करना माना बचाना या बढ़ाना। ऐसे नहीं पुराने संस्कार ही यूज करते रहो और ईश्वरीय संस्कारों को बुद्धि के लॉकर में रख दो, जैसे कईयों की आदत होती है अच्छी चीजें वा पैसे बैंक अथवा अलमारियों में रखने की, पुरानी वस्तुओं से प्यार होता है, वही यूज करते रहते। यहाँ ऐसे नहीं करना, यहाँ तो मन्सा से, वाणी से, शक्तिशाली वृत्ति से अपना सब कुछ सफल करो तो सफलतामूर्त बन जायेंगे। 01.06.2022 बाबा शब्द की स्मृति से हद के मेरेपन को अर्पण करने वाले बेहद के वैरागी भव कई बच्चे कहते हैं मेरा यह गुण है, मेरी शक्ति है, यह भी गलती है, परमात्म देन को मेरा मानना यह महापाप है। कई बच्चे साधारण भाषा में बोल देते हैं मेरे इस गुण को, मेरी बुद्धि को यूज़ नहीं किया जाता, लेकिन मेरी कहना माना मैला होना - यह भी ठगी है, इसलिए इस हद के मेरे-पन को अर्पण कर सदा बाबा शब्द याद रहे, तब कहेगे बेहद की वैरागी आत्मा। 31.05.2022
30.05.2022 मन्सा द्वारा तीव्रगति की सेवा करने वाले बाप समान मर्सीफुल भव संगमयुग पर बाप द्वारा जो वरदानों का खजाना मिला है उसे जितना बढ़ाना चाहो उतना दूसरों को देते जाओ। जैसे बाप मर्सीफुल है ऐसे बाप समान मर्सीफुल बनो, सिर्फ वाणी से नहीं, लेकिन अपनी मन्सा वृत्ति से वायुमण्डल द्वारा भी आत्माओं को अपनी मिली हुई शक्तियां दो। जब थोड़े समय में सारे विश्व की सेवा सम्पन्न करनी है तो तीव्रगति से सेवा करो। जितना स्वयं को सेवा में बिजी करेंगे उतना सहज मायाजीत भी बन जायेंगे। 29.05.2022 सम्पूर्णता की स्थिति द्वारा प्रकृति को आर्डर करने वाले विश्व परिवर्तक भव जब आप विश्व परिवर्तक आत्मायें संगठित रूप में सम्पन्न, सम्पूर्ण स्थिति से विश्व परिवर्तन का संकल्प करेंगी तब यह प्रकृति सम्पूर्ण हलचल की डांस शुरू करेगी। वायु, धरती, समुद्र, जल...इनकी हलचल ही सफाई करेगी। परन्तु यह प्रकृति आपका आर्डर तब मानेगी जब पहले आपके स्वयं के सहयोगी कर्मेन्द्रियां, मन-बुद्धि-संस्कार आपका आर्डर मानेंगे। साथ-साथ इतनी पावरफुल तपस्या की ऊंची स्थिति हो जो सबका एक साथ संकल्प हो “परिवर्तन'' और प्रकृति हाजिर हो जाए। 28.05.2022 चित की प्रसन्नता द्वारा दुआओं के विमान में उड़ने वाले सन्तुष्टमणी भव सन्तुष्टमणि उन्हें कहा जाता जो स्वयं से, सेवा से और सर्व से सन्तुष्ट हो। तपस्या द्वारा सन्तुष्टता रूपी फल प्राप्त कर लेना - यही तपस्या की सिद्धि है। सन्तुष्टमणि वह है जिसका चित सदा प्रसन्न हो। प्रसन्नता अर्थात् दिल-दिमाग सदा आराम में हो, सुख चैन की स्थिति में हो। ऐसी सन्तुष्टमणियां स्वयं को सर्व की दुआओं के विमान में उड़ता हुआ अनुभव करेंगी। 27.05.2022 ब्राह्मण जीवन में बधाईयों की पालना द्वारा सदा वृद्धि को प्राप्त करने वाले पदमापदम भाग्यवान भव संगमयुग पर विशेष खुशियों भरी बधाईयों से ही सर्व ब्राह्मण वृद्धि को प्राप्त कर रहे हैं। ब्राह्मण जीवन की पालना का आधार बधाईयां हैं। बाप के स्वरूप में हर समय बधाईयां हैं, शिक्षक के स्वरूप में हर समय शाबास-शाबास का बोल पास विद् आनर बना रहा है, सद्गुरू के रूप में हर श्रेष्ठ कर्म की दुआयें सहज और मौज वाली जीवन अनुभव करा रही हैं, इसलिए पदमापदम भाग्यवान हो जो भाग्यविधाता भगवान के बच्चे, सम्पूर्ण भाग्य के अधिकारी बन गये। 26.05.2022 सदा ऊंची स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर स्थित रहने वाली मायाजीत महान आत्मा भव जो महान आत्मायें हैं वह सदैव ऊंची स्थिति में रहती हैं। ऊंची स्थिति ही ऊंचा आसन है। जब ऊंची स्थिति के आसन पर रहते हो तो माया आ नहीं सकती। वो आपको महान समझकर आपके आगे झुकेगी, वार नहीं करेंगी, हार मानेंगी। जब ऊंचे आसन से नीचे आते हो तब माया वार करती है। आप सदा ऊंचे आसन पर रहो तो माया के आने की ताकत नहीं। वह ऊंचे चढ़ नहीं सकती। 25.05.2022 सर्व आत्माओं को शुभ भावना, शुभ कामना की अंचली देने वाले सच्चे सेवाधारी भव सिर्फ वाणी की सेवा ही सेवा नहीं है, शुभ भावना, शुभ कामना रखना भी सेवा है। ब्राह्मणों का आक्यूपेशन ही है ईश्वरीय सेवा। कहाँ भी रहते सेवा करते रहो। कोई कैसा भी हो, चाहे पक्का रावण ही क्यों न हो, कोई आपको गाली भी दे तो भी आप उन्हें अपने खजाने से, शुभ-भावना, शुभ-कामना की अंचली जरूर दो, तब कहेंगे सच्चे सेवाधारी। 24.05.2022
23.05.2022 बापदादा के स्नेह के रिटर्न में समान बनने वाले तपस्वीमूर्त भव समय की परिस्थितियों के प्रमाण, स्व की उन्नति वा तीव्रगति से सेवा करने तथा बापदादा के स्नेह का रिटर्न देने के लिए वर्तमान समय तपस्या की अति आवश्यकता है। बाप से बच्चों का प्यार है लेकिन बापदादा प्यार के रिटर्न स्वरूप में बच्चों को अपने समान देखना चाहते हैं। समान बनने के लिए तपस्वीमूर्त बनो। इसके लिए चारों ओर के किनारे छोड़ बेहद के वैरागी बनो। किनारों को सहारा नहीं बनाओ। 22.05.2022 समय और परिस्थिति प्रमाण अपनी श्रेष्ठ स्थिति बनाने वाले अष्ट शक्ति सम्पन्न भव जो बच्चे अष्ट शक्तियों से सम्पन्न हैं वो हर कर्म में समय प्रमाण, परिस्थिति प्रमाण, हर शक्ति को कार्य में लगाते हैं। उन्हें अष्ट शक्तियां इष्ट और अष्ट रत्न बना देती हैं। ऐसे अष्ट शक्ति सम्पन्न आत्मायें जैसा समय, जैसी परिस्थिति वैसी स्थिति सहज बना लेती हैं। उनके हर कदम में सफलता समाई रहती है। कोई भी परिस्थिति उन्हें श्रेष्ठ स्थिति से नीचे नहीं उतार सकती। 21.05.2022 ड्रामा के हर राज़ को जान सदा खुश-राज़ी रहने वाले नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी भव जो बच्चे नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी हैं वे कभी नाराज़ नहीं हो सकते। भल कोई गाली भी दे, इनसल्ट कर दे तो भी राज़ी, क्योंकि ड्रामा के हर राज़ को जानने वाले नाराज़ नहीं होते। नाराज़ वो होता है जो राज़ को नहीं जानता है, इसलिए सदैव यह स्मृति रखो कि भगवान बाप के बच्चे बनकर भी राज़ी नहीं होंगे तो कब होंगे! तो अभी जो खुश भी हैं, राज़ी भी हैं वही बाप के समीप और समान हैं। 20.05.2022 अकालतख्त सो दिलतख्तनशीन बन स्वराज्य के नशे में रहने वाले प्रकृतिजीत, मायाजीत भव अकालतख्त नशीन आत्मा सदा रूहानी नशे में रहती है। जैसे राजा बिना नशे के राज्य नहीं चला सकता, ऐसे आत्मा यदि स्वराज्य के नशे में नहीं तो कर्मेन्द्रियों रूपी प्रजा पर राज्य नहीं कर सकती इसलिए अकालतख्त नशीन सो दिलतख्तनशीन बनो और इसी रूहानी नशे में रहो तो कोई भी विघ्न वा समस्या आपके सामने आ नहीं सकती। प्रकृति और माया भी वार नहीं कर सकती। तो तख्तनशीन बनना अर्थात् सहज प्रकृतिजीत और मायाजीत बनना। 19.05.2022 देह, देह के सम्बन्ध और पदार्थो के बन्धन से मुक्त रहने वाले जीवनमुक्त फरिश्ता भव फरिश्ता अर्थात् पुरानी दुनिया और पुरानी देह से लगाव का रिश्ता नहीं। देह से आत्मा का रिश्ता तो है लेकिन लगाव का संबंध नहीं। कर्मेन्द्रियों से कर्म के सबंध में आना अलग बात है लेकिन कर्मबन्धन में नहीं आना। फरिश्ता अर्थात् कर्म करते भी कर्म के बन्धन से मुक्त। न देह का बन्धन, न देह के संबंध का बन्धन, न देह के पदार्थो का बन्धन - ऐसे बन्धन मुक्त रहने वाले ही जीवनमुक्त फरिश्ता हैं। 18.05.2022 महावीर बन हर समस्या का समाधान करने वाले सदा निर्भय और विजयी भव जो महावीर हैं वह कभी यह बहाना नहीं बना सकते कि सरकमस्टांश ऐसे थे, समस्या ऐसी थी इसलिए हार हो गई। समस्या का काम है आना और महावीर का काम है समस्या का समाधान करना न कि हार खाना। महावीर वह है जो सदा निर्भय होकर विजयी बनें, छोटी-मोटी बातों में कमजोर न हो। महावीर विजयी आत्मायें हर कदम में तन से, मन से खुश रहते हैं वे कभी उदास नहीं होते, उनके पास दु:ख की लहर स्वप्न में भी नहीं आ सकती। 17.05.2022 यथार्थ विधि द्वारा व्यर्थ को समाप्त कर नम्बरवन लेने वाले परमात्म सिद्धि स्वरूप भव जैसे रोशनी से अंधकार स्वत: खत्म हो जाता है। ऐसे समय, संकल्प, श्वांस को सफल करने से व्यर्थ स्वत: समाप्त हो जाता है, क्योंकि सफल करने का अर्थ है श्रेष्ठ तरफ लगाना। तो श्रेष्ठ तरफ लगाने वाले व्यर्थ पर विन कर नम्बरवन ले लेते हैं। उन्हें व्यर्थ को स्टॉप करने की सिद्धि प्राप्त हो जाती है। यही परमात्म सिद्धि है। वह रिद्धि सिद्धि वाले अल्पकाल का चमत्कार दिखाते हैं और आप यथार्थ विधि द्वारा परमात्म सिद्धि को प्राप्त करते हो। 16.05.2022 संगमयुग के महत्व को जान श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव संगमयुग छोटा सा युग है, इस युग में ही बाप के साथ का अनुभव होता है। संगम का समय और यह जीवन दोनों ही हीरे तुल्य हैं। तो इतना महत्व जानते हुए एक सेकण्ड भी साथ को नहीं छोड़ना। सेकण्ड गया तो सेकण्ड नहीं लेकिन बहुत कुछ गया। सारे कल्प की श्रेष्ठ प्रालब्ध जमा करने का यह युग है, अगर इस युग के महत्व को भी याद रखो तो तीव्र पुरूषार्थ द्वारा राज्य अधिकार प्राप्त कर लेंगे। 15.05.2022 सर्व खजानों से सम्पन्न बन हर समय सेवा में बिजी रहने वाले विश्व कल्याणकारी भव विश्व कल्याण के निमित्त बनी हुई आत्मा पहले स्वयं सर्व खजानों से सम्पन्न होगी। अगर ज्ञान का खजाना है तो फुल ज्ञान हो, कोई भी कमी नहीं हो तब कहेंगे भरपूर। किसी-किसी के पास खजाना फुल होते हुए भी समय पर कार्य में नहीं लगा सकते, समय बीत जाने के बाद सोचते हैं, तो उन्हें भी फुल नहीं कहेंगे। विश्व कल्याणकारी आत्मायें मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध-सम्पर्क में हर समय सेवा में बिजी रहती हैं। 14.05.2022 ज्ञान के राज़ों को समझ सदा अचल रहने वाले निश्चयबुद्धि, विघ्न-विनाशक भव विघ्न-विनाशक स्थिति में स्थित रहने से कितना भी बड़ा विघ्न खेल अनुभव होगा। खेल समझने के कारण विघ्नों से कभी घबरायेंगे नहीं लेकिन खुशी-खुशी से विजयी बनेंगे और डबल लाइट रहेंगे। ड्रामा के ज्ञान की स्मृति से हर विघ्न नथिंगन्यु लगता है। नई बात नहीं लगेगी, बहुत पुरानी बात है। अनेक बार विजयी बनें हैं - ऐसे निश्चयबुद्धि, ज्ञान के राज़ को समझने वाले बच्चों का ही यादगार अचलघर है। 13.05.2022 भाग्यविधाता बाप द्वारा मिले हुए भाग्य को बांटने और बढ़ाने वाले खुशनसीब भव सबसे बड़ी खुशनसीबी यह है - जो भाग्यविधाता बाप ने अपना बना लिया! दुनिया वाले तड़फते हैं कि भगवान की एक सेकण्ड भी नजर पड़ जाए और आप सदा नयनों में समाये हुए हो। इसको कहा जाता है खुशनसीब। भाग्य आपका वर्सा है। सारे कल्प में ऐसा भाग्य अभी ही मिलता है। तो भाग्य को बढ़ाते चलो। बढ़ाने का साधन है बांटना। जितना औरों को बांटेंगे अर्थात् भाग्यवान बनायेंगे उतना भाग्य बढ़ता जायेगा। 12.05.2022 खुशी की खुराक द्वारा मन और बुद्धि को शक्तिशाली बनाने वाले अचल-अडोल भव “वाह बाबा वाह और वाह मेरा भाग्य वाह!'' सदा यही खुशी के गीत गाते रहो। ‘खुशी' सबसे बड़ी खुराक है, खुशी जैसी और कोई खुराक नहीं। जो रोज़ खुशी की खुराक खाते हैं वे सदा तन्दरूस्त रहते हैं। कभी कमजोर नहीं होते, इसलिए खुशी की खुराक द्वारा मन और बुद्धि को शक्तिशाली बनाओ तो स्थिति शक्तिशाली रहेगी। ऐसी शक्तिशाली स्थिति वाले सदा ही अचल-अडोल रहेंगे। 11.05.2022 निश्चिंत स्थिति द्वारा यथार्थ जजमेंट देने वाले निश्चयबुद्धि विजयी-रत्न भव सदा विजयी बनने का सहज साधन है - एक बल, एक भरोसा। एक में भरोसा है तो बल मिलता है। निश्चय सदा निश्चिंत बनाता है और जिसकी स्थिति निश्चिंत है, वह हर कार्य में सफल होता है क्योंकि निश्चिंत रहने से बुद्धि जजमेंट यथार्थ करती है। तो यथार्थ निर्णय का आधार है-निश्चयबुद्धि, निश्चिंत। सोचने की भी आवश्यकता नहीं क्योंकि फालो फादर करना है, कदम पर कदम रखना है, जो श्रीमत मिलती है उसी प्रमाण चलना है। सिर्फ श्रीमत के कदम पर कदम रखते चलो तो विजयी रत्न बन जायेंगे। 10.05.2022 “मैं और मेरा बाबा'' इस विधि द्वारा जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव करने वाले सहजयोगी भव ब्राह्मण बनना अर्थात् देह, सम्बन्ध और साधनों के बन्धन से मुक्त होना। देह के सम्बन्धियों का देह के नाते से सम्बन्ध नहीं लेकिन आत्मिक सम्बन्ध है। यदि कोई किसी के वश, परवश हो जाते हैं तो बन्धन है, लेकिन ब्राह्मण अर्थात् जीवनमुक्त। जब तक कर्मेन्द्रियों का आधार है तब तक कर्म तो करना ही है लेकिन कर्मबन्धन नहीं, कर्म-सम्बन्ध है। ऐसा जो मुक्त है वो सदा सफलतामूर्त है। इसका सहज साधन है - मैं और मेरा बाबा। यही याद सहजयोगी, सफलतामूर्त और बन्धनमुक्त बना देती है। 09.05.2022 अमृतवेले तीन बिन्दियों का तिलक लगाने वाले क्यूं, क्या की हलचल से मुक्त अचल-अडोल भव बापदादा सदा कहते हैं कि रोज़ अमृतवेले तीन बिन्दियों का तिलक लगाओ। आप भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और जो हो गया, जो हो रहा है नथिंगन्यु, तो फुलस्टॉप भी बिन्दी। यह तीन बिन्दी का तिलक लगाना अर्थात् स्मृति में रहना। फिर सारा दिन अचल-अडोल रहेंगे। क्यूं, क्या की हलचल समाप्त हो जायेगी। जिस समय कोई बात होती है उसी समय फुलस्टॉप लगाओ। नथिंगन्यु, होना था, हो रहा है... साक्षी बन देखो और आगे बढ़ते चलो। 08.05.2022 शुद्ध संकल्प और श्रेष्ठ संग द्वारा हल्के बन खुशी की डांस करने वाले अलौकिक फरिश्ते भव आप ब्राह्मण बच्चों के लिए रोज़ की मुरली ही शुद्ध संकल्प हैं। कितने शुद्ध संकल्प बाप द्वारा रोज़ सवेरे-सवेरे मिलते हैं, इन्हीं शुद्ध संकल्पों में बुद्धि को बिजी रखो और सदा बाप के संग में रहो तो हल्के बन खुशी में डांस करते रहेंगे। खुश रहने का सहज साधन है - सदा हल्के रहो। शुद्ध संकल्प हल्के हैं और व्यर्थ संकल्प भारी हैं इसलिए सदा शुद्ध संकल्पों में बिजी रह हल्के बनों और खुशी की डांस करते रहो तब कहेंगे अलौकिक फरिश्ते। 07.05.2022 शुभ भावना और श्रेष्ठ भाव द्वारा सर्व के प्रिय बन विजय माला में पिरोने वाले विजयी भव 06.05.2022 अपनी शक्तियों वा गुणों द्वारा निर्बल को शक्तिवान बनाने वाले श्रेष्ठ दानी वा सहयोगी भव श्रेष्ठ स्थिति वाले सपूत बच्चों की सर्व शक्तियाँ और सर्व गुण समय प्रमाण सदा सहयोगी रहते हैं। उनकी सेवा का विशेष स्वरूप है-बाप द्वारा प्राप्त गुणों और शक्तियों का अज्ञानी आत्माओं को दान और ब्राह्मण आत्माओं को सहयोग देना। निर्बल को शक्तिवान बनाना - यही श्रेष्ठ दान वा सहयोग है। जैसे वाणी द्वारा वा मन्सा द्वारा सेवा करते हो ऐसे प्राप्त हुए गुणों और शक्तियों का सहयोग अन्य आत्माओं को दो, प्राप्ति कराओ। 05.05.2022 बुद्धि को बिजी रखने की विधि द्वारा व्यर्थ को समाप्त करने वाले सदा समर्थ भव सदा समर्थ अर्थात् शक्तिशाली वही बनता है जो बुद्धि को बिजी रखने की विधि को अपनाता है। व्यर्थ को समाप्त कर समर्थ बनने का सहज साधन ही है - सदा बिजी रहना इसलिए रोज़ सवेरे जैसे स्थूल दिनचर्या बनाते हो ऐसे अपनी बुद्धि को बिजी रखने का टाइम-टेबल बनाओ कि इस समय बुद्धि में इस समर्थ संकल्प से व्यर्थ को खत्म करेंगे। बिजी रहेंगे तो माया दूर से ही वापस चली जायेगी। 04.05.2022 मन-बुद्धि की स्वच्छता द्वारा यथार्थ निर्णय करने वाले सफलता सम्पन्न भव किसी भी कार्य में सफलता तब प्राप्त होती है जब समय पर बुद्धि यथार्थ निर्णय देती है। लेकिन निर्णय शक्ति काम तब करती है जब मन-बुद्धि स्वच्छ हो, कोई भी किचड़ा न हो। इसलिए योग अग्नि द्वारा किचड़े को खत्म कर बुद्धि को स्वच्छ बनाओ। किसी भी प्रकार की कमजोरी - यह गन्दगी है। जरा सा व्यर्थ संकल्प भी किचड़ा है, जब यह किचड़ा समाप्त हो तब बेफिक्र रहेंगे और स्वच्छ बुद्धि होने से हर कार्य में सफलता प्राप्त होगी। 03.05.2022 साधारण कर्म करते भी श्रेष्ठ स्मृति वा स्थिति की झलक दिखाने वाले पुरूषोत्तम सेवाधारी भव जैसे असली हीरा कितना भी धूल में छिपा हुआ हो लेकिन अपनी चमक जरूर दिखायेगा, ऐसे आपकी जीवन हीरे तुल्य है। तो कैसे भी वातावरण में, कैसे भी संगठन में आपकी चमक अर्थात् वह झलक और फलक सबको दिखाई दे। भल काम साधारण करते हो लेकिन स्मृति और स्थिति ऐसी श्रेष्ठ हो जो देखते ही महसूस करें कि यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं, यह सेवाधारी होते भी पुरूषोत्तम हैं। 02.05.2022 निर्माणता की विशेषता द्वारा सहज सफलता प्राप्त करने वाले सर्व के माननीय भव सर्व द्वारा मान प्राप्त करने का सहज साधन है - निर्मान बनना। जो आत्मायें स्वयं को सदा निर्माणचित की विशेषता से चलाती रहती हैं वह सहज सफलता को पाती हैं। निर्मान बनना ही स्वमान है। निर्मान बनना झुकना नहीं है लेकिन सर्व को अपनी विशेषता और प्यार से झुकाना है। वर्तमान समय के प्रमाण सदा और सहज सफलता प्राप्त करने का यही मूल आधार है। हर कर्म, सम्बन्ध और सम्पर्क में निर्मान बनने वाले ही विजयी-रत्न बनते हैं। 01.05.2022 यथार्थ याद द्वारा सर्व शक्ति सम्पन्न बनने वाले सदा शस्त्रधारी, कर्मयोगी भव यथार्थ याद का अर्थ है सर्व शक्तियों से सदा सम्पन्न रहना। परिस्थिति रूपी दुश्मन आये और शस्त्र काम में नहीं आये तो शस्त्रधारी नहीं कहा जायेगा। हर कर्म में याद हो तब सफलता होगी। जैसे कर्म के बिना एक सेकण्ड भी नहीं रह सकते, वैसे कोई भी कर्म योग के बिना नहीं कर सकते, इसलिए कर्म-योगी, शस्त्रधारी बनो और समय पर सर्व शक्तियों को आर्डर प्रमाण यूज़ करो - तब कहेंगे यथार्थ योगी। 30.04.2022 हर सेकण्ड, हर खजाने को सफल कर सफलता की खुशी अनुभव करने वाले सफलतामूर्त भव सफलता मूर्त बनने का विशेष साधन है - हर सेकण्ड को, हर श्वांस को, हर खजाने को सफल करना। यदि संकल्प, बोल, कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में सर्व प्रकार की सफलता का अनुभव करना चाहते हो तो सफल करते जाओ, व्यर्थ नहीं जाये। चाहे स्व के प्रति सफल करो, चाहे और आत्माओं के प्रति सफल करो तो आटोमेटिकली सफलता की खुशी अनुभव करते रहेंगे क्योंकि सफल करना अर्थात् वर्तमान में सफलता प्राप्त करना और भविष्य के लिए जमा करना। 29.04.2022 अपने देवताई संस्कारों को इमर्ज कर दिव्यता का अनुभव करने वाले व्यर्थ से इनोसेंट, अविद्या स्वरूप भव जब आप बच्चे अपने सतयुगी राज्य में थे तो व्यर्थ वा माया से इनोसेंट थे इसलिए देवताओं को सेंट वा महान आत्मा कहते हैं। तो अपने वही संस्कार इमर्ज कर, व्यर्थ के अविद्या स्वरूप बनो। समय, श्वास, बोल, कर्म, सबमें व्यर्थ की अविद्या अर्थात् इनोसेंट। जब व्यर्थ की अविद्या होगी तब दिव्यता स्वत: और सहज अनुभव होगी इसलिए यह नहीं सोचो कि पुरूषार्थ तो कर रहे हैं - लेकिन पुरूष बन इस रथ द्वारा कार्य कराओ। एक बार की गलती दुबारा रिपीट न हो। 28.04.2022 स्नेह की उड़ान द्वारा समीपता का अनुभव करने वाले पास विद आनर भव स्नेह की शक्ति से सभी बच्चे आगे बढ़ते जा रहे हैं। स्नेह की उड़ान तन से, मन से वा दिल से बाप के समीप लाती है। ज्ञान, योग, धारणा में यथाशक्ति नम्बरवार हैं लेकिन स्नेह में हर एक नम्बरवन हैं। स्नेह में सभी पास हैं। स्नेह का अर्थ ही है पास रहना और पास होना वा हर परिस्थिति को सहज ही पास कर लेना। ऐसे पास रहने वाले ही पास विद आनर बनते हैं। 27.04.2022 बाप द्वारा मिले हुए वरदानों को समय पर कार्य में लगाकर फलीभूत बनाने वाले वरदानी मूर्त भव बापदादा द्वारा जो भी वरदान मिलते हैं उन्हें समय पर कार्य में लगाओ तो वरदान कायम रहेंगे। वरदान के बीज को फलदायक बनाने के लिए उसे बार-बार स्मृति का पानी दो, वरदान के स्वरूप में स्थित होने की धूप दो। तो एक वरदान अनेक वरदानों को साथ में लायेगा और फल स्वरूप वरदानी मूर्त बन जायेंगे। जितना वरदानों को समय पर कार्य में लगायेंगे उतना वरदान और श्रेष्ठ स्वरूप दिखाता रहेगा। 26.04.2022 बेहद के सम्पूर्ण अधिकार के निश्चय और रूहानी नशे में रहने वाले सर्वश्रेष्ठ, सम्पत्तिवान भव वर्तमान समय आप बच्चे ऐसे श्रेष्ठ सम्पूर्ण अधिकारी बनते हो जो स्वयं आलमाइटी अथॉरिटी के ऊपर आपका अधिकार है। परमात्म अधिकारी बच्चे सर्व संबंधों का और सर्व सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त कर लेते हैं। इस समय ही बाप द्वारा सर्वश्रेष्ठ सम्पत्ति भव का वरदान मिलता है। आपके पास सर्व गुणों की, सर्व शक्तियों की और श्रेष्ठ ज्ञान की अविनाशी सम्पत्ति है, इसलिए आप जैसा सम्पत्तिवान और कोई नहीं। 25.04.2022 माया वा प्रकृति के भिन्न-भिन्न कार्टून शो को साक्षी बन देखने वाले सन्तोषी आत्मा भव संगमयुग पर बापदादा की विशेष देन सन्तुष्टता है। सन्तोषी आत्मा के आगे कैसी भी हिलाने वाली परिस्थिति ऐसे अनुभव होगी जैसे पपेट शो (कठपुतली का खेल)। आजकल कार्टून शो का फैशन है। तो कभी कोई भी परिस्थिति आए उसे ऐसा ही समझो कि बेहद के स्क्रीन पर कार्टून शो वा पपेट शो चल रहा है। माया वा प्रकृति का यह एक शो है, जिसको साक्षी स्थिति में स्थिति हो, अपनी शान में रहते हुए, सन्तुष्टता के स्वरूप में देखते रहो - तब कहेंगे सन्तोषी आत्मा। 24.04.2022 प्राप्तियों को इमर्ज कर सदा खुशी की अनुभूति करने वाले सहजयोगी भव सहजयोग का आधार है - स्नेह और स्नेह का आधार है संबंध। संबंध से याद करना सहज होता है। संबंध से ही सर्व प्राप्तियां होती हैं। जहाँ से प्राप्ति होती है मन-बुद्धि वहाँ सहज ही चली जाती है, इसलिए बाप ने जो शक्तियों का, ज्ञान का, गुणों का, सुख-शान्ति, आनंद, प्रेम का खजाना दिया है, जो भी भिन्न-भिन्न प्राप्तियां हुई हैं, उन प्राप्तियों को बुद्धि में इमर्ज करो तो खुशी की अनुभूति होगी और सहज योगी बन जायेंगे। 23.04.2022 प्योरिटी की रॉयल्टी द्वारा ब्राह्मण जीवन की विशेषता को प्रत्यक्ष करने वाले सम्पूर्ण पवित्र भव प्योरिटी की रॉयल्टी ही ब्राह्मण जीवन की विशेषता है। जैसे कोई रॉयल फैमिली का बच्चा होता है तो उसके चेहरे से, चलन से मालूम पड़ता है कि यह कोई रॉयल कुल का है। ऐसे ब्राह्मण जीवन की परख प्योरिटी की झलक से होती है। चलन और चेहरे से प्योरिटी की झलक तब दिखाई देगी, जब संकल्प में भी अपवित्रता का नाम-निशान न हो। प्योरिटी अर्थात् किसी भी विकार वा अशुद्धि का प्रभाव न हो तब कहेंगे सम्पूर्ण पवित्र। 22.04.2022 अपने आक्यूपेशन की स्मृति द्वारा मन को कन्ट्रोल करने वाले राजयोगी भव अमृतवेले तथा सारे दिन में बीच-बीच में अपने आक्यूपेशन को स्मृति में लाओ कि मैं राजयोगी हूँ। राजयोगी की सीट पर सेट होकर रहो। राजयोगी माना राजा, उसमें कन्ट्रोलिंग और रूलिंग पावर होती है। वह एक सेकण्ड में मन को कन्ट्रोल कर सकते हैं। वह कभी अपने संकल्प, बोल और कर्म को व्यर्थ नहीं गंवा सकते। अगर चाहते हुए भी व्यर्थ चला जाता है तो उसे नॉलेजफुल वा राजा नहीं कहेंगे। 21.04.2022 सर्व शक्तियों द्वारा हर कम्पलेन को समाप्त कर कम्पलीट बनने वाले शक्तिशाली आत्मा भव अन्दर में अगर कोई भी कमी है तो उसके कारण को समझकर निवारण करो क्योंकि माया का नियम है कि जो कमजोरी आपमें होगी, उसी कमजोरी के द्वारा वह आपको मायाजीत बनने नहीं देगी। माया उसी कमजोरी का लाभ लेगी और अन्त समय में भी वही कमजोरी धोखा देगी। इसलिए सर्व शक्तियों का स्टॉक जमा कर, शक्तिशाली आत्मा बनो और योग के प्रयोग द्वारा हर कम्पलेन को समाप्त कर कम्पलीट बन जाओ। यही स्लोगन याद रहे -“अब नहीं तो कब नहीं''। 20.04.2022 पुरूषार्थ के साथ योग के प्रयोग की विधि द्वारा वृत्तियों को परिवर्तन करने वाले सदा विजयी भव पुरूषार्थ धरनी बनाता है, वह भी जरूरी है लेकिन पुरूषार्थ के साथ-साथ योग के प्रयोग से सबकी वृत्तियों को परिवर्तन करो तो सफलता समीप दिखाई देगी। दृढ़ निश्चय और योग के प्रयोग द्वारा किसी की भी बुद्धि को परिवर्तन कर सकते हो। सेवाओं में जब भी कोई हलचल हुई है तो उसमें विजय योग के प्रयोग से ही मिली है, इसलिए पुरूषार्थ से धरनी बनाओ लेकिन बीज को प्रत्यक्ष करने के लिए योग का प्रयोग करो तब विजयी भव का वरदान प्राप्त होगा। 19.04.2022 हर समय अपने दिल में बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने वाले दृढ़ संकल्पधारी भव जैसे स्नेह के कारण हर एक के दिल में आता है कि हमें बाप को प्रत्यक्ष करना ही है। ऐसे अपने संकल्प, बोल और कर्म द्वारा दिल में प्रत्यक्षता का झण्डा लहराओ, सदा खुश रहने की डांस करो, कभी खुश, कभी उदास - यह नहीं। ऐसा दृढ़ संकल्प अर्थात् व्रत धारण करो कि जब तक जीना है तब तक खुश रहना है। मीठा बाबा, प्यारा बाबा, मेरा बाबा-यही गीत ऑटोमेटिक बजता रहे तो प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने लगेगा। 18.04.2022 सब फिकरातें बाप को देकर बेफिक्र स्थिति का अनुभव करने वाले परमात्म प्यारे भव जो बच्चे परमात्म प्यारे हैं वह सदा दिलतख्त पर रहते हैं। कोई की हिम्मत नहीं जो दिलाराम के दिल से उन्हें अलग कर सके, इसलिए आप दुनिया के आगे फखुर से कहते हो कि हम परमात्म प्यारे बन गये। इसी फखुर में रहने के कारण सब फिकरातों से फारिग हो। आप कभी गलती से भी नहीं कह सकते कि आज मेरा मन थोड़ा सा उदास है, मेरा मन नहीं लगता ....., यह बोल ही व्यर्थ बोल हैं। मेरा कहना माना मुश्किल में पड़ना। 17.04.2022 फालो फादर करते हुए सपूत बन हर कर्म में सबूत देने वाले सफलता स्वरूप भव जो फालो फादर करने वाले बच्चे हैं वही समान हैं, क्योंकि जो बाप के कदम वो आपके कदम। बापदादा सपूत उन्हें कहता - जो हर कर्म में सबूत दे। सपूत अर्थात् सदा बाप के श्रीमत का हाथ और साथ अनुभव करने वाले। जहाँ बाप की श्रीमत व वरदान का हाथ है वहाँ सफलता है ही, इसलिए कोई भी कार्य करते ये स्मृति में लाओ कि बाप के वरदान का हाथ हमारे ऊपर है। 16.04.2022 सर्व शक्तियों को आर्डर प्रमाण चलाने वाले शक्ति स्वरूप मास्टर रचयिता भव जो बच्चे मास्टर सर्वशक्तिमान् की अथॉरिटी से शक्तियों को आर्डर प्रमाण चलाते हैं, तो हर शक्ति रचना के रूप में मास्टर रचयिता के सामने आती है। ऑर्डर किया और हाजिर हो जाती है। तो जो हजूर अर्थात् बाप के हर कदम की श्रीमत पर हर समय “जी-हाजिर'' वा हर आज्ञा में “जी-हाजिर'' करते हैं। तो जी-हाजिर करने वालों के आगे हर शक्ति भी जी-हाज़िर वा जी मास्टर हज़ूर करती है। ऐसे आर्डर प्रमाण शक्तियों को कार्य में लगाने वालों को ही मास्टर रचयिता कहेंगे। 15.04.2022 स्व और सेवा के बैलेन्स द्वारा दुआयें लेने और देने वाले सदा सफलतामूर्त भव जैसे सेवा में बहुत आगे बढ़ रहे हो ऐसे स्वउन्नति पर भी पूरा अटेन्शन रहे। जिनको यह बैलेन्स रखना आता है वे सदा दुआयें लेते और दुआयें देते हैं। बैलेन्स की प्राप्ति ही है ब्लैसिंग। बैलेन्स वाले को ब्लैसिंग नहीं मिले - यह हो नहीं सकता। मात-पिता और परिवार की दुआओं से सदा आगे बढ़ते चलो। यह दुआयें ही पालना हैं। सिर्फ दुआयें लेते चलो और सबको दुआयें देते चलो तो सहज सफलतामूर्त बन जायेंगे। 14.04.2022 डबल नशे की स्थिति द्वारा सदा निर्विघ्न बनने और बनाने वाले विश्व परिवर्तक भव “मालिक सो बालक हैं'' - जब चाहो मालिकपन की स्थिति में स्थित हो जाओ और जब चाहो बालकपन की स्थिति में स्थित हो जाओ, यह डबल नशा सदा निर्विघ्न बनाने वाला है। ऐसी आत्माओं का टाइटल है विघ्न-विनाशक। लेकिन सिर्फ अपने लिए विघ्न-विनाशक नहीं, सारे विश्व के विघ्न-विनाशक, विश्व परिवर्तक हो। जो स्वयं शक्तिशाली रहते हैं उनके सामने विघ्न स्वत: कमजोर बन जाता है। 13.04.2022 अपनी आकर्षणमय स्थिति द्वारा सर्व को आकर्षित करने वाले रूहानी सेवाधारी भव रूहानी सेवाधारी कभी यह नहीं सोच सकते कि सेवा में वृद्धि नहीं होती या सुनने वाले नहीं मिलते। सुनने वाले बहुत हैं सिर्फ आप अपनी स्थिति रूहानी आकर्षणमय बनाओ। जब चुम्बक अपनी तरफ खींच सकता है तो क्या आपकी रूहानी शक्ति आत्माओं को नहीं खींच सकती! तो रूहानी आकर्षण करने वाले चुम्बक बनो जिससे आत्मायें स्वत: आकर्षित होकर आपके सामने आ जायें, यही आप रूहानी सेवाधारी बच्चों की सेवा है। 12.04.2022 माया और प्रकृति की हलचल से सदा सेफ रहने वाले दिलाराम के दिलतख्तनशीन भव सदा सेफ रहने का स्थान-दिलाराम बाप का दिलतख्त है। सदा इसी स्मृति में रहो कि हमारा ही यह श्रेष्ठ भाग्य है जो भगवान के दिलतख्त-नशीन बन गये। जो परमात्म दिल में समाया हुआ अथवा दिलतख्तनशीन है वह सदा सेफ है। माया वा प्रकृति के तूफान उसे हिला नहीं सकते। ऐसे अचल रहने वालों का यादगार अचलघर है, चंचल घर नहीं, इसलिए स्मृति रहे कि हम अनेक बार अचल बने हैं और अभी भी अचल हैं। 11.04.2022 “नेचुरल अटेन्शन'' को अपनी नेचर (आदत) बनाने वाले स्मृति स्वरूप भव सेना में जो सैनिक होते हैं वह कभी भी अलबेले नहीं रहते, सदा अटेन्शन में अलर्ट रहते हैं। आप भी पाण्डव सेना हो इसमें जरा भी अबेलापन न हो। अटेन्शन एक नेचुरल विधि बन जाए। कई अटेन्शन का भी टेन्शन रखते हैं। लेकिन टेन्शन की लाइफ सदा नहीं चल सकती, इसलिए नेचुरल अटेन्शन अपनी नेचर बनाओ। अटेन्शन रखने से स्वत: स्मृति स्वरूप बन जायेंगे, विस्मृति की आदत छूट जायेगी। 10.04.2022 ब्राह्मण जीवन में अलौकिक मौजों का अनुभव करने वाले कर्मो की गुह्य गति के ज्ञाता भव ब्राह्मण जीवन मौज की जीवन है लेकिन मौज में रहने का अर्थ यह नहीं कि जो आया वह किया, मस्त रहा। यह अल्पकाल के सुख की मौज वा अल्पकाल के सम्बन्ध-सम्पर्क की मौज सदाकाल की प्रसन्नचित स्थिति से भिन्न है। जो आया वह बोला, जो आया वह किया - हम तो मौज में रहते हैं, ऐसे अल्पकाल के मनमौजी नहीं बनो। सदाकाल की रूहानी अलौकिक मौज में रहो - यही यथार्थ ब्राह्मण जीवन है। मौज के साथ कर्मो की गुह्य गति के ज्ञाता भी बनो। 09.04.2022 सूक्ष्म पापों से मुक्त बन सम्पूर्ण स्थिति को प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव कर्म फिलासाफी का सिद्धान्त है - यदि आप किसी की ग्लानी करते हो, किसी की गलती (बुराई) को फैलाते हो या किसी के साथ हाँ में हाँ भी मिलाते हो तो यह भी पाप के भागी बनते हो। आज आप किसी की ग्लानी करते हो तो कल वह आपकी दुगुनी ग्लानी करेगा। यह छोटे-छोटे पाप सम्पूर्ण स्थिति को प्राप्त करने में विघ्न रूप बनते हैं इसलिए कर्मो की गति को जानकर पापों से मुक्त बन सिद्धि स्वरूप बनो। 08.04.2022 साइलेन्स की शक्ति से बुराई को अच्छाई में बदलने वाले शुभ भावना सम्पन्न भव जैसे साइन्स के साधन से खराब माल को भी परिवर्तन कर अच्छी चीज़ बना देते हैं। ऐसे आप साइलेन्स की शक्ति से बुरी बात वा बुरे संबंध को बुराई से अच्छाई में परिवर्तन कर दो। ऐसे शुभ भावना सम्पन्न बन जाओ जो आपके श्रेष्ठ संकल्प से अन्य आत्मायें भी बुराई को बदल अच्छाई धारण कर लें। नॉलेजफुल के हिसाब से राइट रांग को जानना अलग बात है लेकिन स्वयं में बुराई को बुराई के रूप में धारण करना गलत है, इसलिए बुराई को देखते, जानते भी उसे अच्छाई में बदल दो। 07.04.2022 क्या, क्यों, ऐसे और वैसे के सभी प्रश्नों से पार रहने वाले सदा प्रसन्नचित्त भव जो प्रसन्नचित आत्मायें हैं वे स्व के संबंध में वा सर्व के संबंध में, प्रकृति के संबंध में, किसी भी समय, किसी भी बात में संकल्प-मात्र भी क्वेश्चन नहीं उठायेंगी। यह ऐसा क्यों वा यह क्या हो रहा है, ऐसा भी होता है क्या? प्रसन्नचित आत्मा के संकल्प में हर कर्म को करते, देखते, सुनते, सोचते यही रहता है कि जो हो रहा है वह मेरे लिए अच्छा है और सदा अच्छा ही होना है। वे कभी क्या, क्यों, ऐसा-वैसा इन प्रश्नों की उलझन में नहीं जाते।
06.04.2022 सर्व खजाने जमा कर रूहानी फखुर (नशे) में रहने वाले बेफिकर बादशाह भव बापदादा द्वारा सब बच्चों को अखुट खजाने मिले हैं। जिसने अपने पास जितने खजाने जमा किये हैं उतना उनकी चलन और चेहरे में वह रूहानी नशा दिखाई देता है, जमा करने का रूहानी फखुर अनुभव होता है। जिसे जितना रूहानी फखुर रहता है उतना उनके हर कर्म में वह बेफिक्र बादशाह की झलक दिखाई देती है क्योंकि जहाँ फखुर है वहाँ फिक्र नहीं रह सकता। जो ऐसे बेफिक्र बादशाह हैं वह सदा प्रसन्नचित हैं।
05.04.2022 सदा हर कर्म में रूहानी नशे का अनुभव करने और कराने वाले खुशनसीब भव संगमयुग पर आप बच्चे सबसे अधिक खुशनसीब हो, क्योंकि स्वयं भगवान ने आपको पसन्द कर लिया। बेहद के मालिक बन गये। भगवान की डिक्शनरी में “हू इज हू'' में आपका नाम है। बेहद का बाप मिला, बेहद का राज्य भाग्य मिला, बेहद का खजाना मिला ... यही नशा सदा रहे तो अतीन्द्रिय सुख का अनुभव होता रहेगा। यह है बेहद का रूहानी नशा, इसका अनुभव करते और कराते रहो तब कहेंगे खुशनसीब। 04.04.2022 होलीहंस बन व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने वाले फीलिंग प्रूफ भव सारे दिन में जो व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ सम्बन्ध-सम्पर्क होता है उस व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दो। व्यर्थ को अपनी बुद्धि में स्वीकार नहीं करो। अगर एक व्यर्थ को भी स्वीकार किया तो वह एक अनेक व्यर्थ का अनुभव करायेगा, जिसे ही कहते हैं फीलिंग आ गई इसलिए होलीहंस बन व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दो तो फीलिंग प्रूफ बन जायेंगे। कोई गाली दे, गुस्सा करे, आप उसको शान्ति का शीतल जल दो, यह है होली-हंस का कर्तव्य। 03.04.2022 दूसरों के परिवर्तन की चिंता छोड़ स्वयं का परिवर्तन करने वाले शुभ चिंतक भव स्व परिवर्तन करना ही शुभ चिंतक बनना है। यदि स्व को भूल दूसरे के परिवर्तन की चिंता करते हो तो यह शुभचिंतन नहीं है। पहले स्व और स्व के साथ सर्व। यदि स्व का परिवर्तन नहीं करते और दूसरों के शुभ चिंतक बनते हो तो सफलता नहीं मिल सकती, इसलिए स्वयं को कायदे प्रमाण चलाते हुए स्व का परिवर्तन करो, इसी में ही फायदा है। बाहर से कोई फायदा भल दिखाई न दे लेकिन अन्दर से हल्कापन और खुशी की अनुभूति होती रहेगी। 02.04.2022 अपनी सूक्ष्म चेकिंग द्वारा पापों के बोझ को समाप्त करने वाले समान वा सम्पन्न भव यदि कोई भी असत्य वा व्यर्थ बात देखी, सुनी और उसे वायुमण्डल में फैलाई। सुनकर दिल में समाया नहीं तो यह व्यर्थ बातों का फैलाव करना-यह भी पाप का अंश है। यह छोटे-छोटे पाप उड़ती कला के अनुभव को समाप्त कर देते हैं। ऐसे समाचार सुनने वालों पर भी पाप और सुनाने वालों पर उससे ज्यादा पाप चढ़ता है इसलिए अपनी सूक्ष्म चेकिंग कर ऐसे पापों के बोझ को समाप्त करो तब बाप समान वा सम्पन्न बन सकेंगे। 01.04.2022 सत्यता के साथ सभ्यता पूर्वक बोल और चलन से आगे बढ़ने वाले सफलतामूर्त भव सदैव याद रहे कि सत्यता की निशानी है सभ्यता। यदि आप में सत्यता की शक्ति है तो सभ्यता को कभी नहीं छोड़ो। सत्यता को सिद्ध करो लेकिन सभ्यतापूर्वक। सभ्यता की निशानी है निर्माण और असभ्यता की निशानी है जिद। तो जब सभ्यता पूर्वक बोल और चलन हो तब सफलता मिलेगी। यही आगे बढ़ने का साधन है। अगर सत्यता है और सभ्यता नहीं तो सफलता मिल नहीं सकती। 31.03.2022 नॉलेजफुल बन हर कर्म के परिणाम को जान कर्म करने वाले मास्टर त्रिकालदर्शी भव त्रिकालदर्शी बच्चे हर कर्म के परिणाम को जानकर फिर कर्म करते हैं। वे कभी ऐसे नहीं कहते कि होना तो नहीं चाहिए था, लेकिन हो गया, बोलना नहीं चाहिए था, लेकिन बोल लिया। इससे सिद्ध है कि कर्म के परिणाम को न जान भोलेपन में कर्म कर लेते हो। भोला बनना अच्छा है लेकिन दिल से भोले बनो, बातों में और कर्म में भोले नहीं बनो। उसमें त्रिकालदर्शी बनकर हर बात सुनो और बोलो तब कहेंगे सेंट अर्थात् महान आत्मा। 30.03.2022 भिन्न-भिन्न स्थितियों के आसन पर एकाग्र हो बैठने वाले राजयोगी, स्वराज्य अधिकारी भव राजयोगी बच्चों के लिए भिन्न-भिन्न स्थितियां ही आसन हैं, कभी स्वमान की स्थिति में स्थित हो जाओ तो कभी फरिश्ते स्थिति में, कभी लाइट हाउस, माइट हाउस स्थिति में, कभी प्यार स्वरूप लवलीन स्थिति में। जैसे आसन पर एकाग्र होकर बैठते हैं ऐसे आप भी भिन्न-भिन्न स्थिति के आसन पर स्थित हो वैराइटी स्थितियों का अनुभव करो। जब चाहो तब मन-बुद्धि को आर्डर करो और संकल्प करते ही उस स्थिति में स्थित हो जाओ तब कहेंगे राजयोगी स्वराज्य अधिकारी। 29.03.2022 दिल की तपस्या द्वारा सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट प्राप्त करने वाले सर्व की दुआओं के अधिकारी भव तपस्या के चार्ट में अपने को सर्टीफिकेट देने वाले तो बहुत हैं लेकिन सर्व की सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट तभी प्राप्त होता है जब दिल की तपस्या हो, सर्व के प्रति दिल का प्यार हो, निमित्त भाव और शुभ भाव हो। ऐसे बच्चे सर्व की दुआओं के अधिकारी बन जाते हैं। कम से कम 95 परसेन्ट आत्मायें सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट दें, सबके मुख से निकले कि हाँ यह नम्बरवन है, ऐसा सबके दिल से दुआओं का सर्टीफिकेट प्राप्त करने वाले ही बाप समान बनते हैं। 28.03.2022 ब्राह्मण सो फरिश्ता सो जीवन-मुक्त देवता बनने वाले सर्व आकर्षण मुक्त भव संगमयुग पर ब्राह्मणों को ब्राह्मण से फरिश्ता बनना है, फरिश्ता अर्थात् जिसका पुरानी दुनिया, पुराने संस्कार, पुरानी देह के प्रति कोई भी आकर्षण का रिश्ता नहीं। तीनों से मुक्त, इसलिए ड्रामा में पहले मुक्ति का वर्सा है फिर जीवनमुक्ति का। तो फरिश्ता अर्थात् मुक्त और मुक्त फरिश्ता ही जीवनमुक्त देवता बनेंगे। जब ऐसे ब्राह्मण सो सर्व आकर्षण मुक्त फरिश्ता सो देवता बनों तब प्रकृति भी दिल व जान, सिक व प्रेम से आप सबकी सेवा करेगी। 27.03.2022 प्लेन बुद्धि बन सेवा के प्लैन बनाने वाले यथार्थ सेवाधारी भव यथार्थ सेवाधारी उन्हें कहा जाता है जो स्व की और सर्व की सेवा साथ-साथ करते हैं। स्व की सेवा में सर्व की सेवा समाई हुई हो। ऐसे नहीं दूसरों की सेवा करो और अपनी सेवा में अलबेले हो जाओ। सेवा में सेवा और योग दोनों ही साथ-साथ हो। इसके लिए प्लेन बुद्धि बनकर सेवा के प्लैन बनाओ। प्लेन बुद्धि अर्थात् कोई भी बात बुद्धि को टच नहीं करे, सिवाए निमित्त और निर्माण भाव के। हद का नाम, हद का मान नहीं लेकिन निर्मान। यही शुभ भावना और शुभ कामना का बीज है। 26.03.2022 ज्ञान युक्त भावना और स्नेह सम्पन्न योग द्वारा उड़ती कला का अनुभव करने वाले बाप समान भव जो ज्ञान स्वरूप योगी तू आत्मायें हैं वे सदा सर्वशक्तियों की अनुभूति करते हुए विजयी बनती हैं। जो सिर्फ स्नेही वा भावना स्वरूप हैं उनके मन और मुख में सदा बाबा-बाबा है इसलिए समय प्रति समय सहयोग प्राप्त होता है। लेकिन समान बनने में ज्ञानी-योगी तू आत्मायें समीप हैं, इसलिए जितनी भावना हो उतना ही ज्ञान स्वरूप हो। ज्ञानयुक्त भावना और स्नेह सम्पन्न योग - इन दोनों का बैलेन्स उड़ती कला का अनुभव कराते हुए बाप समान बना देता है। 25.03.2022 अपने भरपूर स्टॉक द्वारा खुशियों का खजाना बांटने वाले हीरो हीरोइन पार्टधारी भव संगमयुगी ब्राह्मण आत्माओं का कर्तव्य है सदा खुश रहना और खुशी बांटना लेकिन इसके लिए खजाना भरपूर चाहिए। अभी जैसा नाज़ुक समय नजदीक आता जायेगा वैसे अनेक आत्मायें आपसे थोड़े समय की खुशी की मांगनी करने के लिए आयेंगी। तो इतनी सेवा करनी है जो कोई भी खाली हाथ नहीं जाये। इसके लिए चेहरे पर सदा खुशी के चिन्ह हों, कभी मूड आफ वाला, माया से हार खाने वाला, दिलशिकस्त वाला चेहरा न हो। सदा खुश रहो और खुशी बांटते चलो - तब कहेंगे हीरो हीरोइन पार्टधारी। 24.03.2022 त्रिकालदर्शी स्थिति द्वारा मूंझने की परिस्थितियों को मौज में परिवर्तन करने वाले कर्मयोगी भव जो बच्चे त्रिकालदर्शी हैं वे कभी किसी बात में मूंझ नहीं सकते क्योंकि उनके सामने तीनों काल क्लीयर हैं। जब मंजिल और रास्ता क्लीयर होता है तो कोई मूंझता नहीं। त्रिकालदर्शी आत्मायें कभी कोई बात में सिवाए मौज के और कोई अनुभव नहीं करती। चाहे परिस्थिति मुंझाने की हो लेकिन ब्राह्मण आत्मा उसे भी मौज में बदल देगी क्योंकि अनगिनत बार वह पार्ट बजाया है। यह स्मृति कर्म-योगी बना देती है। वह हर काम मौज से करते हैं। 23.03.2022 न्यारेपन की अवस्था द्वारा पास विद आनर का सर्टीफिकेट प्राप्त करने वाले अशरीरी भव पास विद आनर का सर्टीफिकेट प्राप्त करने के लिए मुख और मन दोनों की आवाज से परे शान्त स्वरूप की स्थिति में स्थित होने का अभ्यास चाहिए। आत्मा शान्ति के सागर में समा जाये। यह स्वीट साइलेन्स की अनुभूति बहुत प्रिय लगती है। तन और मन को आराम मिल जाता है। अन्त में यह अशरीरी बनने का अभ्यास ही काम में आता है। शरीर का कोई भी खेल चल रहा है, अशरीरी बन आत्मा साक्षी (न्यारा) हो अपने शरीर का पार्ट देखे तो यही अवस्था अन्त में विजयी बना देगी। 22.03.2022 कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति द्वारा कम्बाइन्ड सेवा करने वाले सफलता मूर्त भव जैसे शरीर और आत्मा कम्बाइन्ड है, भविष्य विष्णु स्वरूप कम्बाइन्ड है, ऐसे बाप और हम आत्मा कम्बाइन्ड हैं इस स्वरूप की स्मृति में रहकर स्व सेवा और सर्व आत्माओं की सेवा साथ-साथ करो तो सफलता मूर्त बन जायेंगे। ऐसे कभी नहीं कहो कि सेवा में बहुत बिजी थे इसलिए स्व की स्थिति का चार्ट ढीला हो गया। ऐसे नहीं जाओ सेवा करने और लौटो तो कहो माया आ गई, मूड आफ हो गया, डिस्टर्ब हो गये। सेवा में वृद्धि का साधन ही है स्व और सर्व की सेवा कम्बाइन्ड हो। 21.03.2022 ज्ञान जल में तैरने और ऊंची स्थिति में उड़ने वाले होलीहंस भव जैसे हंस सदा पानी में तैरते भी हैं और उड़ने वाले भी होते हैं, ऐसे आप सच्चे होलीहंस बच्चे उड़ना और तैरना जानते हो। ज्ञान मनन करना अर्थात् ज्ञान अमृत वा ज्ञान जल में तैरना और उड़ना अर्थात् ऊंची स्थिति में रहना। ऐसे ज्ञान मनन करने वा ऊंची स्थिति में रहने वाले होलीहंस कभी भी दिलशिकस्त वा नाउम्मींद नहीं हो सकते। वह बीती को बिन्दी लगाए, क्या क्यों की जाल से मुक्त हो उड़ते और उड़ाते रहते हैं। 20.03.2022 साक्षीपन के अचल आसन पर विराजमान रहने वाले अचल-अडोल, प्रकृतिजीत भव प्रकृति चाहे हलचल करे या अपना सुन्दर खेल दिखाये - दोनों में प्रकृतिपति आत्मायें साक्षी होकर खेल देखती हैं। खेल देखने में मजा आता है, घबराते नहीं। जो तपस्या द्वारा साक्षीपन की स्थिति के अचल आसन पर विराजमान रहने का अभ्यास करते हैं, उन्हें प्रकृति की वा व्यक्तियों की कोई भी बातें हिला नहीं सकती। प्रकृति और माया के 5-5 खिलाड़ी अपना खेल कर रहे हैं आप उसे साक्षी होकर देखो तब कहेंगे अचल अडोल, प्रकृतिजीत आत्मा। 19.03.2022 बेहद के अधिकार को स्मृति में रख सम्पूर्णता की बधाईयां मनाने वाले मास्टर रचयिता भव संगमयुग पर आप बच्चों को वर्सा भी प्राप्त है, पढ़ाई के आधार पर सोर्स आफ इनकम भी है और वरदान भी मिले हुए हैं। तीनों ही संबंध से इस अधिकार को स्मृति में इमर्ज रखकर हर कदम उठाओ। अभी समय, प्रकृति और माया विदाई के लिए इन्तजार कर रही है सिर्फ आप मास्टर रचयिता बच्चे, सम्पूर्णता की बंधाईयां मनाओ तो वो विदाई ले लेगी। नॉलेज के आइने में देखो कि अगर इसी घड़ी विनाश हो जाए तो मैं क्या बनूंगा? 18.03.2022 सर्वशक्तियों को अपने अधिकार में रख सहज सफलता प्राप्त करने वाले मा. सर्वशक्तिमान् भव जितना-जितना मास्टर सर्वशक्तिमान् की सीट पर सेट होंगे उतना ये सर्व शक्तियां आर्डर में रहेंगी। जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियां जिस समय जैसा आर्डर करते हो वैसे आर्डर से चलती हैं, ऐसे सूक्ष्म शक्तियां भी आर्डर पर चलने वाली हों। जब यह सर्व शक्तियाँ अभी से आर्डर पर होंगी तब अन्त में सफलता प्राप्त कर सकेंगे क्योंकि जहाँ सर्व शक्तियाँ हैं, वहाँ सफलता जन्म सिद्ध अधिकार है। 17.03.2022 नथिंगन्यु की युक्ति द्वारा हर परिस्थिति में मौज की स्थिति का अनुभव करने वाले सदा अचल-अडोल भव ब्राह्मण अर्थात् सदा मौज की स्थिति में रहने वाले। दिल में सदा स्वत: यही गीत बजता रहे - वाह बाबा और वाह मेरा भाग्य! दुनिया की किसी भी हलचल वाली परिस्थिति में आश्चर्य नहीं, फुलस्टाप। कुछ भी हो जाए - लेकिन आपके लिए नथिंगन्यु। कोई नई बात नहीं है। इतनी अन्दर से अचल स्थिति हो, क्या, क्यों में मन मूंझे नहीं तब कहेंगे अचल-अडोल आत्मायें। 16.03.2022 हदों से न्यारे रह परमात्म प्यार का अनुभव करने वाले रूहानियत की खुशबू से सम्पन्न भव जैसे गुलाब का पुष्प कांटों के बीच में रहते भी न्यारा और खुशबूदार रहता है, कांटों के कारण बिगड़ नहीं जाता। ऐसे रूहे गुलाब जो सर्व हदों से वा देह से न्यारे हैं, किसी भी प्रभाव में नहीं आते वे रूहानियत की खुशबू से सम्पन्न रहते हैं। ऐसी खुशबूदार आत्मायें बाप के वा ब्राह्मण परिवार के प्यारे बन जाते हैं। परमात्म प्यार अखुट है, अटल है, इतना है जो सभी को प्राप्त हो सकता है, लेकिन उसे प्राप्त करने की विधि है - न्यारा बनना। 15.03.2022 अमृतवेले अपने मस्तक पर विजय का तिलक लगाने वाले स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी भव रोज़ अमृतवेले अपने मस्तक पर विजय का तिलक अर्थात् स्मृति का तिलक लगाओ। भक्ति की निशानी तिलक है और सुहाग की निशानी भी तिलक है, राज्य प्राप्त करने की निशानी भी राजतिलक है। कभी कोई शुभ कार्य में सफलता प्राप्त करने जाते हैं तो जाने के पहले तिलक देते हैं। आप सबको भी बाप के साथ का सुहाग है इसलिए अविनाशी तिलक है। अभी स्वराज्य के तिलकधारी बनो तो भविष्य में विश्व के राज्य का तिलक मिल जायेगा। 14.03.2022 दिव्य बुद्धि द्वारा सदा दिव्यता को ग्रहण करने वाले सफलतामूर्त भव बापदादा द्वारा जन्म से ही हर बच्चे को दिव्य बुद्धि का वरदान प्राप्त होता है, जो इस दिव्य बुद्धि के वरदान को जितना कार्य में लगाते हैं उतना सफलतामूर्त बनते हैं क्योंकि हर कार्य में दिव्यता ही सफलता का आधार है। दिव्य बुद्धि को प्राप्त करने वाली आत्मायें अदिव्य को भी दिव्य बना देती हैं। वह हर बात में दिव्यता को ही ग्रहण करती हैं। अदिव्य कार्य का प्रभाव दिव्य बुद्धि वालों पर पड़ नहीं सकता। 13.03.2022 सर्व शक्तियों की सम्पन्नता द्वारा विश्व के विघ्नों को समाप्त करने वाले विघ्न-विनाशक भव जो सर्व शक्तियों से सम्पन्न है वही विघ्न-विनाशक बन सकता है। विघ्न-विनाशक के आगे कोई भी विघ्न आ नहीं सकता। लेकिन यदि कोई भी शक्ति की कमी होगी तो विघ्न-विनाशक बन नहीं सकते इसलिए चेक करो कि सर्व शक्तियों का स्टॉक भरपूर है? इसी स्मृति वा नशे में रहो कि सर्व शक्तियां मेरा वर्सा हैं, मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ तो कोई विघ्न ठहर नहीं सकता। 12.03.2022 बिजी रहने के सहज पुरूषार्थ द्वारा निरन्तर योगी, निरन्तर सेवाधारी भव ब्राह्मण जन्म है ही सदा सेवा के लिए। जितना सेवा में बिजी रहेंगे उतना सहज ही मायाजीत बनेंगे। इसलिए जरा भी बुद्धि को फुर्सत मिले तो सेवा में जुट जाओ। सेवा के सिवाए समय नहीं गॅवाओ। चाहे संकल्प से सेवा करो, चाहे वाणी से, चाहे कर्म से। अपने सम्पर्क और चलन द्वारा भी सेवा कर सकते हो। सेवा में बिजी रहना ही सहज पुरूषार्थ है। बिजी रहेंगे तो युद्ध से छूट निरन्तर योगी निरन्तर सेवाधारी बन जायेंगे। 11.03.2022 पुराने संसार और संस्कारों की आकर्षण से जीते जी मरने वाले यथार्थ मरजीवा भव यथार्थ जीते जी मरना अर्थात् सदा के लिए पुराने संसार वा पुराने संस्कारों से संकल्प और स्वप्न में भी मरना। मरना माना परिवर्तन होना। उन्हें कोई भी आकर्षण अपनी ओर आकर्षित कर नहीं सकती। वह कभी नहीं कह सकते कि क्या करें, चाहते नहीं थे लेकिन हो गया...कई बच्चे जीते जी मरकर फिर जिंदा हो जाते हैं। रावण का एक सिर खत्म करते तो दूसरा आ जाता, लेकिन फाउन्डेशन को ही खत्म कर दो तो रूप बदल करके माया वार नहीं करेगी। 10.03.2022 सम्पन्नता के आधार पर सन्तुष्टता का अनुभव करने वाले सदा तृप्त आत्मा भव चाहे कोई कितना भी असन्तुष्ट करने की परिस्थितियां उनके आगे लाये लेकिन सम्पन्न, तृप्त आत्मा असन्तुष्ट करने वाले को भी सन्तुष्टता का गुण सहयोग के रूप में देगी। ऐसी आत्मा ही रहमदिल बन शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा उनको भी परिवर्तन करने का प्रयत्न करेगी। रूहानी रॉयल आत्मा का यही श्रेष्ठ कर्म है। 09.03.2022 अपने चेहरे और चलन से रूहानी रॉयल्टी का अनुभव कराने वाले सम्पूर्ण पवित्र भव सम्पूर्ण प्योरिटी ही रॉयल्टी है। इस रूहानी रॉयल्टी की झलक पवित्र आत्मा के स्वरूप से दिखाई देगी। यह चमक कभी छिप नहीं सकती। कोई कितना भी स्वयं को गुप्त रखे लेकिन उनके बोल, उनका संबंध-सम्पर्क, रूहानी व्यवहार का प्रभाव उनको प्रत्यक्ष करेगा। तो हर एक नालेज के दर्पण में देखो कि मेरे चेहरे पर, चलन में वह रॉयल्टी दिखाई देती है वा साधारण चेहरा, साधारण चलन है? 08.03.2022 कन्ट्रोलिंग पावर द्वारा रांग को राइट में परिवर्तन करने वाले श्रेष्ठ पुरूषार्थी भव
ऐसे नहीं व्यर्थ को कन्ट्रोल तो करना चाहते हैं, समझते भी हैं यह रांग हैं लेकिन आधा घण्टे तक वही चलता रहे। इसे कहेंगे थोड़ा-थोड़ा अधीन और थोड़ा-थोड़ा अधिकारी। जब समझते हो कि यह सत्य नहीं है, अयथार्थ वा व्यर्थ है, तो उसी समय ब्रेक लगा देना - यही श्रेष्ठ पुरूषार्थ है। कन्ट्रोलिंग पावर का अर्थ यह नहीं कि ब्रेक लगाओ यहाँ और लगे वहाँ। 07.03.2022 सर्व प्राप्तियों को सामने रख श्रेष्ठ शान में रहने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव हम सर्व श्रेष्ठ आत्मायें हैं, ऊंचे ते ऊंचे भगवान के बच्चे हैं - यह शान सर्वश्रेष्ठ शान है, जो इस श्रेष्ठ शान की सीट पर रहते हैं वह कभी भी परेशान नहीं हो सकते। देवताई शान से भी ऊंचा ये ब्राह्मणों का शान है। सर्व प्राप्तियों की लिस्ट सामने रखो तो अपना श्रेष्ठ शान सदा स्मृति में रहेगा और यही गीत गाते रहेंगे कि पाना था वो पा लिया...सर्व प्राप्तियों की स्मृति से मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्थिति सहज बन जायेगी। 06.03.2022 अकल्याण की सीन में भी कल्याण का अनुभव कर सदा अचल-अटल रहने वाले निश्चय-बुद्धि भव ड्रामा में जो भी होता है - वह कल्याणकारी युग के कारण सब कल्याणकारी है, अकल्याण में भी कल्याण दिखाई दे तब कहेंगे निश्चयबुद्धि। परिस्थिति के समय ही निश्चय के स्थिति की परख होती है। निश्चय का अर्थ है - संशय का नाम-निशान न हो। कुछ भी हो जाए लेकिन निश्चयबुद्धि को कोई भी परिस्थिति हलचल में ला नहीं सकती। हलचल में आना माना कमजोर होना। 05.03.2022 बाप की समीपता के अनुभव द्वारा स्वप्न में भी विजयी बनने वाले समान साथी भव भक्ति मार्ग में समीप रहने के लिए सतसंग का महत्व बताते हैं। संग अर्थात् समीप वही रह सकता है जो समान है। जो संकल्प में भी सदा साथ रहते हैं वह इतने विजयी होते हैं जो संकल्प में तो क्या लेकिन स्वप्न मात्र भी माया वार नहीं कर सकती। सदा मायाजीत अर्थात् सदा बाप के समीप संग में रहने वाले। कोई की ताकत नहीं जो बाप के संग से अलग कर सके। 04.3.2022 चारों ही सबजेक्ट को अपने स्वरूप में लाने वाले विश्व कल्याणकारी भव पढ़ाई की जो चार सबजेक्ट हैं, उन सबका एक दो के साथ सम्बन्ध है। जो ज्ञानी तू आत्मा है, वह योगी तू आत्मा भी अवश्य होगा और जिसने ज्ञान-योग को अपनी नेचर बना लिया उसके कर्म नेचुरल युक्तियुक्त वा श्रेष्ठ होंगे। स्वभाव - संस्कार धारणा स्वरूप होंगे। जिनके पास इन तीनों सबजेक्ट की अनुभूतियों का खजाना है वह मास्टर दाता अर्थात् सेवाधारी स्वत: बन जाते हैं। जो इन चारों सबजेक्ट में नम्बरवन लेते हैं उन्हें ही कहा जाता है विश्व कल्याणकारी। 03.03.2022 परमात्म प्यार में धरती की आकर्षण से ऊपर उड़ने वाले मायाप्रूफ भव परमात्म प्यार धरनी की आकर्षण से ऊपर उड़ने का साधन है। जो धरनी अर्थात् देह-अभिमान की आकर्षण से ऊपर रहते हैं उन्हें माया अपनी ओर खींच नहीं सकती। कितना भी कोई आकर्षित रूप हो लेकिन माया की आकर्षण आप उड़ती कला वालों के पास पहुंच नहीं सकती। जैसे राकेट धरनी की आकर्षण से परे हो जाता है। ऐसे आप भी परे हो जाओ, इसकी विधि है न्यारा बनना वा एक बाप के प्यार में समाये रहना - इससे मायाप्रूफ बन जायेंगे। 02.03.2022 मन-बुद्धि-संस्कार वा सर्व कर्मेन्द्रियों को नीति प्रमाण चलाने वाले स्वराज्य अधिकारी भव स्वराज्य अधिकारी आत्मायें अपने योग की शक्ति द्वारा हर कर्मेन्द्रिय को ऑर्डर के अन्दर चलाती हैं। न सिर्फ यह स्थूल कर्मेन्द्रियां लेकिन मन-बुद्धि-संस्कार भी राज्य अधिकारी के डायरेक्शन अथवा नीति प्रमाण चलते हैं।
वे कभी संस्कारों के वश नहीं होते लेकिन संस्कारों को अपने वश में कर श्रेष्ठ नीति से कार्य में लगाते हैं, श्रेष्ठ संस्कार प्रमाण सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हैं। स्वराज्य अधिकारी आत्मा को स्वप्न में भी धोखा नहीं मिल सकता। 01.03.2022 निमित्त पन की स्मृति से हर पेपर में पास होने वाले एवररेडी, नष्टोमोहा भव एवररेडी का अर्थ ही है - नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप। उस समय कोई भी संबंधी अथवा वस्तु याद न आये। किसी में भी लगाव न हो, सबसे न्यारा और सबका प्यारा। इसका सहज पुरुषार्थ है निमित्त भाव। निमित्त समझने से “निमित्त बनाने वाला'' याद आता है। मेरा परिवार है, मेरा काम है - नहीं। मैं निमित्त हूँ। इस निमित्त पन की स्मृति से हर पेपर में पास हो जायेंगे। 28.02.2022 हर बोल द्वारा जमा का खाता बढ़ाने वाले आत्मिक भाव और शुभ भावना सम्पन्न भव बोल से भाव और भावना दोनों अनुभव होती हैं। अगर हर बोल में शुभ वा श्रेष्ठ भावना, आत्मिक भाव है तो उस बोल से जमा का खाता बढ़ता है। यदि बोल में ईर्ष्या, हषद, घृणा की भावना किसी भी परसेन्ट में समाई हुई है तो बोल द्वारा गंवाने का खाता ज्यादा होता है। समर्थ बोल का अर्थ है - जिस बोल में प्राप्ति का भाव वा सार हो। अगर बोल में सार नहीं है तो बोल व्यर्थ के खाते में चला जाता है। 27.02.2022 दूसरों के लिए रिमार्क देने के बजाए स्व को परिवर्तन करने वाले स्वचिंतक भव कई बच्चे चलते-चलते यह बहुत बड़ी गलती करते हैं - जो दूसरों के जज बन जाते हैं और अपने वकील बन जाते हैं। कहेंगे इसको यह नहीं करना चाहिए, इनको बदलना चाहिए और अपने लिए कहेंगे - यह बात बिल्कुल सही है, मैं जो कहता हूँ वही राइट है..। अब दूसरों के लिए ऐसी रिमार्क देने के बजाए स्वयं के जज बनो। स्वचिंतक बन स्वयं को देखो और स्वयं को परिवर्तन करो तब विश्व परिवर्तन होगा। 26.02.2022 बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा मेरे-पन के रॉयल रूप को समाप्त करने वाले न्यारे-प्यारे भव समय की समीपता प्रमाण वर्तमान समय के वायुमण्डल में बेहद का वैराग्य प्रत्यक्ष रूप में होना आवश्यक है। यथार्थ वैराग्य वृत्ति का अर्थ है - सर्व के सम्बन्ध-सम्पर्क में जितना न्यारा, उतना प्यारा। जो न्यारा-प्यारा है वह निमित्त और निर्मान है, उसमें मेरेपन का भान आ नहीं सकता। वर्तमान समय मेरापन रॉयल रूप से बढ़ गया है - कहेंगे ये मेरा ही काम है, मेरा ही स्थान है, मुझे यह सब साधन भाग्य अनुसार मिले हैं... तो अब ऐसे रायॅल रूप के मेरे पन को समाप्त करो। 25.02.2022 समय और वायुमण्डल को परखकर स्वयं को परिवर्तन करने वाले सर्व के स्नेही भव जिसमें परिवर्तन शक्ति है वो सबका प्यारा बनता है, वह विचारों में भी सहज होगा। उसमें मोल्ड होने की शक्ति होगी। वह कभी ऐसे नहीं कहेगा कि मेरा विचार, मेरा प्लैन, मेरी सेवा इतनी अच्छी होते हुए भी मेरा क्यों नहीं माना गया। यह मेरापन आया माना अलाए मिक्स हुआ। इसलिए समय और वायुमण्डल को परखकर स्वयं को परिवर्तन कर लो - तो सर्व के स्नेही, नम्बरवन विजयी बन जायेंगे। 24.02.2022 परिवर्तन शक्ति द्वारा बीती को बिन्दी लगाने वाले निर्मल और निर्मान भव परिवर्तन शक्ति द्वारा पहले अपने स्वरूप का परिवर्तन करो, मैं शरीर नहीं, आत्मा हूँ। फिर स्वभाव का परिवर्तन करो, पुराना स्वभाव ही पुरूषार्थी जीवन में धोखा देता है, तो पुराने स्वभाव अर्थात् नेचर का परिवर्तन करो। फिर है संकल्पों का परिवर्तन। व्यर्थ संकल्पों को समर्थ में परिवर्तन कर दो। इस प्रकार परिवर्तन शक्ति द्वारा हर बीती को बिन्दी लगा दो तो निर्मल और निर्मान स्वत: बन जायेंगे। 23.02.2022 व्यर्थ संकल्पों के तेज बहाव को सेकण्ड में स्टॉप कर निर्विकल्प स्थिति बनाने वाले श्रेष्ठ भाग्यवान भव यदि कोई भी गलती हो जाती है तो गलती होने के बाद क्यों, क्या, कैसे, ऐसे नहीं वैसे...यह सोचने में समय नहीं गंवाओ। जितना समय सोचने स्वरूप बनते हो उतना दाग के ऊपर दाग लगाते हो, पेपर का टाइम कम होता है लेकिन व्यर्थ सोचने का संस्कार पेपर के टाइम को बढ़ा देता है इसलिए व्यर्थ संकल्पों के तेज बहाव को परिवर्तन शक्ति द्वारा सेकण्ड में स्टॉप कर दो तो निर्विकल्प स्थिति बन जायेगी। जब यह संस्कार इमर्ज हो तब कहेंगे भाग्यवान आत्मा। 22.02.2022 बाप के प्यार की पालना द्वारा सहज योगी जीवन बनाने वाले स्मृति सो समर्थी स्वरूप भव सारे विश्व की आत्मायें परमात्मा को बाप कहती हैं लेकिन पालना और पढ़ाई के पात्र नहीं बनती हैं। सारे कल्प में आप थोड़ी सी आत्मायें अभी ही इस भाग्य के पात्र बनती हो। तो इस पालना का प्रैक्टिकल स्वरूप है - सहजयोगी जीवन। बाप बच्चों की कोई भी मुश्किल बात देख नहीं सकते। बच्चे खुद ही सोच-सोच कर मुश्किल बना देते हैं। लेकिन स्मृति स्वरूप के संस्कारों को इमर्ज करो तो समर्थी आ जायेगी। 21.02.2022 श्रेष्ठ पुरूषार्थ द्वारा हर शक्ति वा गुण का अनुभव करने वाले अनुभवी मूर्त भव सबसे बड़ी अथॉरिटी अनुभव की है। जैसे सोचते और कहते हो कि आत्मा शान्त स्वरूप, सुख स्वरूप है - ऐसे एक-एक गुण वा शक्ति की अनुभूति करो और उन अनुभवों में खो जाओ। जब कहते हो शान्त स्वरूप तो स्वरूप में स्वयं को, दूसरे को शान्ति की अनुभूति हो। शक्तियों का वर्णन करते हो लेकिन शक्ति वा गुण समय पर अनुभव में आये। अनुभवी मूर्त बनना ही श्रेष्ठ पुरूषार्थ की निशानी है। तो अनुभवों को बढ़ाओ। 20.02.2022 दृढ़ निश्चय द्वारा फर्स्ट डिवीजन के भाग्य को निश्चित करने वाले मास्टर नालेजफुल भव दृढ़ निश्चय भाग्य को निश्चित कर देता है। जैसे ब्रह्मा बाप फर्स्ट नम्बर में निश्चित हो गये, ऐसे हमें फर्स्ट डिवीजन में आना ही है - यह दृढ़ निश्चय हो। ड्रामा में हर एक बच्चे को यह गोल्डन चांस है। सिर्फ अभ्यास पर अटेन्शन हो तो नम्बर आगे ले सकते हैं, इसलिए मास्टर नॉलेजफुल बन हर कर्म करते चलो। साथ के अनुभव को बढ़ाओ तो सब सहज हो जायेगा, जिसके साथ स्वयं सर्वशक्तिमान् बाप है उसके आगे माया पेपर टाइगर है। 19.02.2022 परमात्म प्यार के आधार पर दु:ख की दुनिया को भूलने वाले सुख-शान्ति सम्पन्न भव परमात्म प्यार ऐसा सुखदाई है जो उसमें यदि खो जाओ तो यह दुख की दुनिया भूल जायेगी। इस जीवन में जो चाहिए वो सर्व कामनायें पूर्ण कर देना - यही तो परमात्म प्यार की निशानी है। बाप सुख-शान्ति क्या देता लेकिन उसका भण्डार बना देता है। जैसे बाप सुख का सागर है, नदी, तलाव नहीं ऐसे बच्चों को भी सुख के भण्डार का मालिक बना देता है, इसलिए मांगने की आवश्यकता नहीं, सिर्फ मिले हुए खजाने को विधि पूर्वक समय प्रति समय कार्य में लगाओ। 18.02.2022 साधारण जीवन में भावना के आधार पर श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले पदमापदम भाग्यवान भव बापदादा को साधारण आत्मायें ही पसन्द हैं। बाप स्वयं भी साधारण तन में आते हैं। आज का करोड़पति भी साधारण है। साधारण बच्चों में भावना होती है और बाप को भावना वाले बच्चे चाहिए, देह-भान वाले नहीं। ड्रामानुसार संगमयुग पर साधारण बनना भी भाग्य की निशानी है। साधारण बच्चे ही भाग्य विधाता बाप को अपना बना लेते हैं, इसलिए अनुभव करते हैं कि “भाग्य पर मेरा अधिकार है।'' ऐसे अधिकारी ही पदमापदम भाग्यवान बन जाते हैं। 17.02.2022 स्नेह के रिटर्न में स्वयं को टर्न करने वाले सच्चे स्नेही सो समान भव बाप का बच्चों से अति स्नेह है इसलिए स्नेही की कमी देख नहीं सकते। बाप, बच्चों को अपने समान सम्पन्न और सम्पूर्ण देखना चाहते हैं। ऐसे आप बच्चे भी कहते हो कि बाबा को हम स्नेह का रिटर्न क्या दें? तो बाप बच्चों से यही रिटर्न चाहते हैं कि स्वयं को टर्न कर लो। स्नेह में कमजोरियों का त्याग कर दो। भक्त तो सिर उतारकर रखने के लिए तैयार हो जाते हैं। आप शरीर का सिर नहीं उतारो लेकिन रावण का सिर उतार दो, थोड़ा भी कमजोरी का सिर नहीं रखो। 16.02.2022 शुद्ध संकल्पों के घेराव द्वारा सदा छत्रछाया की अनुभूति करने, कराने वाले दृढ़ संकल्पधारी भव आपका एक शुद्ध वा श्रेष्ठ शक्तिशाली संकल्प बहुत कमाल कर सकता है। शुद्ध संकल्पों का बंधन वा घेराव कमजोर आत्माओं के लिए छत्रछाया बन, सेफ्टी का साधन वा किला बन जाता है। सिर्फ इसके अभ्यास में पहले युद्ध चलती है, व्यर्थ संकल्प शुद्ध संकल्पों को कट करते हैं लेकिन यदि दृढ़ संकल्प करो तो आपका साथी स्वयं बाप है, विजय का तिलक सदा है ही सिर्फ इसको इमर्ज करो तो व्यर्थ स्वत: मर्ज हो जायेगा। 15.02.2022 एक बाप की याद द्वारा एकरस स्थिति का अनुभव करने वाले सार स्वरूप भव एकरस स्थिति में रहने की सहज विधि है एक की याद। एक बाबा दूसरा न कोई। जैसे बीज में सब कुछ समाया हुआ होता है। ऐसे बाप भी बीज है, जिसमें सर्व सम्बन्धों का, सर्व प्राप्तियों का सार समाया हुआ है। एक बाप को याद करना अर्थात् सार स्वरूप बनना। तो एक बाप, दूसरा न कोई - यह एक की याद एकरस स्थिति बनाती है। जो एक सुखदाता बाप की याद में रहते हैं उनके पास दु:ख की लहर कभी आ नहीं सकती। उन्हें स्वप्न भी सुख के, खुशी के, सेवा के और मिलन मनाने के आते हैं। 14.02.2022 अल्पकाल के सहारे के किनारों को छोड़ बाप को सहारा बनाने वाले यथार्थ पुरूषार्थी भव अल्पकाल के आधारों का सहारा, जिसको किनारा बनाकर रखा है। यह अल्पकाल के सहारे के किनारे अभी छोड़ दो। जब तक ये किनारे हैं तो सदा बाप का सहारा अनुभव नहीं हो सकता और बाप का सहारा नहीं है इसलिए हद के किनारों को सहारा बना लेते हो। अल्पकाल की बातें धोखेबाज हैं, इसलिए समय की तीव्रगति को देख अब इन किनारों से तीव्र उड़ान कर सेकण्ड में क्रॉस करो - तब कहेंगे यथार्थ पुरूषार्थी। 13.02.2022 शान्ति की शक्ति से, संस्कार मिलन द्वारा सर्व कार्य सफल करने वाले सदा निर्विघ्न भव सदा निर्विघ्न वही रह सकता है जो सी फादर, फालो फादर करता है। सी सिस्टर, सी ब्रदर करने से ही हलचल होती है इसलिए अब बाप को फालो करते हुए बाप समान संस्कार बनाओ तो संस्कार मिलन की रास करते हुए सदा निर्विघ्न रहेंगे। शान्ति की शक्ति से अथवा शान्त रहने से कितना भी बड़ा विघ्न सहज समाप्त हो जाता है और सर्व कार्य स्वत: सम्पन्न हो जाते हैं। 12.02.2022 सर्व प्राप्तियों की स्मृति से उदासी को तलाक देने वाले खुशियों के खजाने से सम्पन्न भव संगमयुग पर सभी ब्राह्मण बच्चों को बाप द्वारा खुशी का खजाना मिलता है, इसलिए कुछ भी हो जाए - भल यह शरीर भी चला जाए लेकिन खुशी के खजाने को नहीं छोड़ना। सदा सर्व प्राप्तियों की स्मृति में रहना तो उदासी को तलाक मिल जायेगी। धन्धेधोरी में भल नुकसान भी हो जाए तो भी मन में उदासी की लहर न आये क्योंकि अखुट प्राप्तियों के आगे यह क्या बड़ी बात है! अगर खुशी है तो सब कुछ है, खुशी नहीं तो कुछ भी नहीं। 11.02.2022 सन्तुष्टता के आधार पर दुआयें देने और लेने वाले सहज पुरूषार्थी भव सर्व की दुआयें उन्हें मिलती हैं जो स्वयं सन्तुष्ट रहकर सबको सन्तुष्ट करते हैं। जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ दुआयें हैं। यदि सर्व गुण धारण करने वा सर्व शक्तियों को कन्ट्रोल करने में मेहनत लगती हो, तो उसे भी छोड़ दो, सिर्फ अमृतवेले से लेकर रात तक दुआयें देने और दुआयें लेने का एक ही कार्य करो तो इसमें सब कुछ आ जायेगा। कोई दु:ख भी दे तो भी आप दुआयें दो तो सहज पुरूषार्थी बन जायेंगे। 10.02.2022 बाप की छत्रछाया के नीचे सदा सेफ्टी का अनुभव करने वाले सर्व आकर्षण मुक्त भव जैसे स्थूल दुनिया में धूप वा बारिश से बचने के लिए छत्रछाया का आधार लेते हैं, वह है स्थूल छत्रछाया और यह है बाप की छत्रछाया, जो आत्मा को हर समय सेफ रखती है। उसे कोई भी आकर्षण अपनी ओर आकर्षित कर नहीं सकती। दिल से बाबा कहा और सेफ। चाहे कैसी भी परिस्थिति आ जाए-छत्रछाया के अन्दर रहने वाले सदा सेफ्टी का अनुभव करते हैं। माया के प्रभाव का सेक-मात्र भी नहीं आ सकता। 09.02.2022 स्व-स्थिति द्वारा हर परिस्थिति को पार करने वाले मास्टर त्रिकालदर्शी भव जो बच्चे त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित रहते हैं वह अपनी स्व स्थिति द्वारा हर परिस्थिति को ऐसे पार कर लेते हैं जैसेकि कुछ था ही नहीं। नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी आत्मायें समय प्रमाण हर शक्ति को, हर प्वाइंट को, हर गुण को ऑर्डर से चलाते हैं। ऐसे नहीं कि समय आने पर आर्डर करें सहनशक्ति को और कार्य पूरा हो जाए फिर सहनशक्ति आये। जिस समय जो शक्ति, जिस विधि से चाहिए - उस समय अपना कार्य करे तब कहेंगे खजाने के मालिक, मास्टर त्रिकालदर्शी। 08.02.2022 हर खजाने को स्व प्रति और सर्व प्रति कार्य में लगाने वाले अनुभवी मूर्त भव समाने की शक्ति को धारण कर सर्व खजानों से सम्पन्न बन उन्हें स्व के कार्य में अथवा अन्य की सेवा के कार्य में यूज करो। खजानों को यूज करने से अनुभवी मूर्त बनते जायेंगे। सुनना, समाना और समय पर कार्य में लगाना - इसी विधि से अनुभव की अथॉरिटी बन सकते हो। जैसे सुनना अच्छा लगता है, प्वाइंट बड़ी अच्छी शक्तिशाली है, ऐसे उसे यूज़ करके शक्तिशाली विजयी बन जाओ तब कहेंगे अनुभवी मूर्त।
07.02.2022 दुआओं के राकेट द्वारा तीव्रगति से उड़ने वाले विघ्न प्रूफ भव मात-पिता और सर्व के संबंध में आते हुए दुआओं के खजाने से स्वयं को सम्पन्न करो तो कभी भी पुरूषार्थ में मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। जैसे साइन्स में सबसे तीव्रगति राकेट की होती है ऐसे संगमयुग पर सबसे तीव्रगति से आगे उड़ने का यन्त्र अथवा उससे भी श्रेष्ठ राकेट “सबकी दुआयें'' हैं, जिसे कोई भी विघ्न जरा भी स्पर्श नहीं कर सकता, इससे विघ्न प्रूफ बन जायेंगे, युद्ध नहीं करनी पड़ेगी।
06.02.2022 ज्ञान खजाने द्वारा मुक्ति-जीवनमुक्ति का अनुभव करने वाले सर्व बंधनमुक्त भव ज्ञान रत्नों का खजाना सबसे श्रेष्ठ खजाना है, इस खजाने द्वारा इस समय ही मुक्ति-जीवनमुक्ति की अनुभूति कर सकते हो। ज्ञानी तू आत्मा वह है जो दु:ख और अशान्ति के सब कारण समाप्त कर, अनेकानेक बन्धनों की रस्सियों को काटकर मुक्ति वा जीवनमुक्ति का अनुभव करे। अनेक व्यर्थ संकल्पों से, विकल्पों से और विकर्मो से सदा मुक्त रहना - यही मुक्त और जीवनमुक्त अवस्था है।
05.02.2022 सदा विजय की स्मृति से हर्षित रहने और सर्व को खुशी दिलाने वाले आकर्षण मूर्त भव हम कल्प-कल्प की विजयी आत्मा हैं, विजय का तिलक मस्तक पर सदा चमकता रहे तो यह विजय का तिलक औरों को भी खुशी दिलायेगा क्योंकि विजयी आत्मा का चेहरा सदा ही हर्षित रहता है। हर्षित चेहरे को देखकर खुशी के पीछे स्वत: ही सब आकर्षित होते हैं। जब अन्त में किसी के पास सुनने का समय नहीं होगा तब आपका आकर्षण मूर्त हर्षित चेहरा ही अनेक आत्माओं की सेवा करेगा।
04.02.2022 देह-अंहकार वा अभिमान के सूक्ष्म अंश का भी त्याग करने वाले आकारी सो निराकारी भव कईयों का मोटे रूप से देह के आकार में लगाव वा अभिमान नहीं है लेकिन देह के संबंध से अपने संस्कार विशेष हैं, बुद्धि विशेष है, गुण विशेष हैं, कलायें विशेष हैं, कोई शक्ति विशेष है - उसका अभिमान अर्थात् अंहकार, नशा, रोब - ये सूक्ष्म देह-अभिमान है। तो यह अभिमान कभी भी आकारी फरिश्ता वा निराकारी बनने नहीं देगा, इसलिए इसके अंश मात्र का भी त्याग करो तो सहज ही आकारी सो निराकारी बन सकेंगे।
03.02.2022 स्वयं को विशेष पार्टधारी समझ साधारणता को समाप्त करने वाले परम व श्रेष्ठ भव जैसे बाप परम आत्मा है, वैसे विशेष पार्ट बजाने वाले बच्चे भी हर बात में परम यानी श्रेष्ठ हैं। सिर्फ चलते-फिरते, खाते-पीते विशेष पार्टधारी समझकर ड्रामा की स्टेज पर पार्ट बजाओ। हर समय अपने कर्म अर्थात् पार्ट पर अटेन्शन रहे। विशेष पार्टधारी कभी अलबेले नहीं बन सकते। यदि हीरो एक्टर साधारण एक्ट करें तो सब हंसेंगे इसलिए हर कदम, हर संकल्प हर समय विशेष हो, साधारण नहीं। 02.02.2022 नॉलेज की लाइट और माइट द्वारा सोलकान्सेस रहने वाले स्मृति स्वरूप भव आपका अनादि रूप निराकार ज्योति स्वरूप आत्मा है और आदि स्वरूप है देव आत्मा। दोनों स्वरूप सदा स्मृति में तब रहेंगे जब नॉलेज की लाइट-माइट के आधार से सोलकान्सेस स्थिति में रहने का अभ्यास होगा। ब्राह्मण बनना अर्थात् नॉलेज की लाइट-माइट के स्मृति स्वरूप बनना। जो स्मृति स्वरूप हैं, वह स्वयं भी सन्तुष्ट रहते और दूसरों को भी सन्तुष्ट करते हैं। 01.02.2022 पावरफुल ब्रेक द्वारा सेकण्ड में व्यक्त भाव से परे होने वाले अव्यक्त फरिश्ता व अशरीरी भव चारों ओर आवाज का वायुमण्डल हो लेकिन आप एक सेकण्ड में फुलस्टॉप लगाकर व्यक्त भाव से परे हो जाओ, एकदम ब्रेक लग जाए तब कहेंगे अव्यक्त फरिश्ता वा अशरीरी। अभी इस अभ्यास की बहुत आवश्यकता है क्योंकि अचानक प्रकृति की आपदायें आनी हैं, उस समय बुद्धि और कहाँ भी नहीं जाये, बस बाप और मैं, बुद्धि को जहाँ लगाने चाहें वहाँ लग जाए। इसके लिए समाने और समेटने की शक्ति चाहिए, तब उड़ती कला में जा सकेंगे। 31.01.2022 संकल्प रूपी बीज द्वारा वाणी और कर्म में सिद्धि प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव बुद्धि में जो संकल्प आते हैं, वह संकल्प हैं बीज। वाचा और कर्मणा बीज का विस्तार है। अगर संकल्प अर्थात् बीज को त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित होकर चेक करो, शक्तिशाली बनाओ तो वाणी और कर्म में स्वत: ही सहज सफलता है ही। यदि बीज शक्तिशाली नहीं होता तो वाणी और कर्म में भी सिद्धि की शक्ति नहीं रहती। जरूर चैतन्य में सिद्धि स्वरूप बने हो तब तो जड़ चित्रों द्वारा भी और आत्मायें सिद्धि प्राप्त करती हैं। 30.01.2022 पुरूषार्थ की यथार्थ विधि द्वारा सदा आगे बढ़ने वाले सर्व सिद्धि स्वरूप भव पुरूषार्थ की यथार्थ विधि है - अनेक मेरे को परिवर्तन कर एक “मेरा बाबा'' - इस स्मृति में रहना और कुछ भी भूल जाए लेकिन यह बात कभी नहीं भूले कि “मेरा बाबा''। मेरे को याद नहीं करना पड़ता, उसकी याद स्वत: आती है। “मेरा बाबा'' दिल से कहते हो तो योग शक्तिशाली हो जाता है। तो इस सहज विधि से सदा आगे बढ़ते हुए सिद्धि स्वरूप बनो। 29.01.2022 शक्तिशाली याद द्वारा परिवर्तन, खुशी और हल्के पन की अनुभूति करने वाले स्मृति सो समर्थ स्वरूप भव शक्तिशाली याद एक समय पर डबल अनुभव कराती है। एक तरफ याद अग्नि बन भस्म करने का काम करती है, परिवर्तन करने का काम करती है और दूसरे तरफ खुशी व हल्के पन का अनुभव कराती है। ऐसे विधिपूर्वक शक्तिशाली याद को ही यथार्थ याद कहा जाता है। ऐसी यथार्थ याद में रहने वाले स्मृति स्वरूप बच्चे ही समर्थ हैं। यह स्मृति सो समर्थी ही नम्बरवन प्राइज का अधिकारी बना देती है। 28.01.2022 27.01.2022 अपने स्नेह के शीतल स्वरूप द्वारा विकराल ज्वाला रूप को भी परिवर्तन करने वाले स्नेहीमूर्त भव स्नेह के रिटर्न में वरदाता बाप बच्चों को यही वरदान देते हैं कि “सदा हर समय, हर एक आत्मा से, हर परिस्थिति में स्नेही मूर्त भव।'' कभी भी अपनी स्नेही मूर्त, स्नेह की सीरत, स्नेही व्यवहार, स्नेह के सम्पर्क-सम्बन्ध को छोड़ना, भूलना मत। चाहे कोई व्यक्ति, चाहे प्रकृति, चाहे माया कैसा भी विकराल रूप, ज्वाला रूप धारण कर सामने आये लेकिन उसे सदा स्नेह की शीतलता द्वारा परिवर्तन करते रहना। स्नेह की दृष्टि, वृत्ति और कृति द्वारा स्नेही सृष्टि बनाना। 26.01.2022 मेरे को तेरे में परिवर्तन कर सर्व आकर्षण मुक्त बनने वाले डबल लाइट भव लौकिक सम्बन्धों में सेवा करते हुए सदा यही स्मृति रहे कि ये मेरे नहीं हैं, सभी बाप के बच्चे हैं। बाप ने इनकी सेवा अर्थ हमें निमित्त बनाया है। घर में नहीं रहते लेकिन सेवा-स्थान पर रहते हैं। मेरा सब तेरा हो गया। शरीर भी मेरा नहीं। मेरे में ही आकर्षण होती है। जब मेरा समाप्त हो जाता है तब मन बुद्धि को कोई भी अपनी तरफ खींच नहीं सकता। ब्राह्मण जीवन में मेरे को तेरे में बदलने वाले ही डबल लाइट रह सकते हैं। 25.01.2022 बालक सो मालिक की सीढ़ी चढ़ने और उतरने वाले बेफिक्र, डबल लाइट भव सदा यह स्मृति रहे कि मालिक के साथ बालक भी हैं और बालक के साथ मालिक भी हैं। बालक बनने से सदा बेफिक्र, डबल लाइट रहेंगे और मालिक अनुभव करने से मालिकपन का रूहानी नशा रहेगा। राय देने के समय मालिक और जब मैजारिटी फाइनल करते हैं तो उस समय बालक, यह बालक और मालिक बनने की भी एक सीढ़ी है। यह सीढ़ी कभी चढ़ो, कभी उतरो, कभी बालक बन जाओ, कभी मालिक बन जाओ तो किसी भी प्रकार का बोझ नहीं रहेगा। 24.01.2022 कर्म करते हुए न्यारी और प्यारी अवस्था में रह, हल्के पन की अनुभूति करने वाले कर्मातीत भव कर्मातीत अर्थात् न्यारा और प्यारा। कर्म किया और करने के बाद ऐसा अनुभव हो जैसे कुछ किया ही नहीं, कराने वाले ने करा लिया। ऐसी स्थिति का अनुभव करने से सदा हल्कापन रहेगा। कर्म करते तन का भी हल्कापन, मन की स्थिति में भी हल्कापन, जितना ही कार्य बढ़ता जाए उतना हल्कापन भी बढ़ता जाए। कर्म अपनी तरफ आकर्षित न करे, मालिक होकर कर्मेन्द्रियों से कर्म कराना और संकल्प में भी हल्के-पन का अनु-भव करना - यही कर्मातीत बनना है।
23.01.2022 अव्यक्त पालना द्वारा शक्तिशाली बन लास्ट सो फास्ट जाने वाले फर्स्ट नम्बर के अधिकारी भव अव्यक्त पार्ट में आने वाली आत्माओं को पुरूषार्थ में तीव्रगति का भाग्य सहज मिला हुआ है। यह अव्यक्त पालना सहज ही शक्तिशाली बनाने वाली है इसलिए जो जितना आगे बढ़ना चाहे बढ़ सकते हैं। इस समय लास्ट सो फास्ट और फास्ट सो फर्स्ट का वरदान प्राप्त है। तो इस वरदान को कार्य में लगाओ अर्थात् समय प्रमाण वरदान को स्वरूप में लाओ। जो मिला है उसे यूज़ करो तो फर्स्ट नम्बर में आने का अधिकार प्राप्त हो जायेगा। 22.01.2022 चारों ओर की हलचल के समय अव्यक्त स्थिति वा अशरीरी बनने के अभ्यास द्वारा विजयी भव लास्ट समय में चारों ओर व्यक्तियों का, प्रकृति का हलचल और आवाज होगा। चिल्लाने का, हिलाने का वायुमण्डल होगा। ऐसे समय पर सेकण्ड में अव्यक्त फरिश्ता सो निराकारी अशरीरी आत्मा हूँ - यह अभ्यास ही विजयी बनायेगा इसलिए बहुत समय का अभ्यास हो कि मालिक बन जब चाहें मुख द्वारा साज़ बजायें, चाहें तो कानों द्वारा सुनें, अगर नहीं चाहें तो सेकण्ड में स्टॉप - यही अभ्यास सिमरणी अर्थात् विजय माला में ले आयेगा। 21.01.2022 सर्व आत्माओं के अशुभ भाव और भावना का परिवर्तन करने वाले विश्व परिवर्तक भव जैसे गुलाब का पुष्प बदबू की खाद से खुशबू धारण कर खुशबूदार गुलाब बन जाता है। ऐसे आप विश्व परिवर्तक श्रेष्ठ आत्मायें अशुभ, व्यर्थ, साधारण भावना और भाव को श्रेष्ठता में, अशुभ भाव आर भावना को शुभ भाव और भावना में परिवर्तन करो, तब ब्रह्मा बाप समान अव्यक्त फरिश्ता बनने के लक्षण सहज और स्वत: आयेंगे। इसी से माला का दाना, दाने के समीप आयेगा। 20.01.2022 विपरीत भावनाओं को समाप्त कर अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने वाले सद्भावना सम्पन्न भव जीवन में उड़ती कला वा गिरती कला का आधार दो बातें हैं - भावना और भाव। सर्व के प्रति कल्याण की भावना, स्नेह-सहयोग देने की भावना, हिम्मत-उल्लास बढ़ाने की भावना, आत्मिक स्वरूप की भावना वा अपने पन की भावना ही सद्भावना है, ऐसी भावना वाले ही अव्यक्त स्थिति में स्थित हो सकते हैं। अगर इनके विपरीत भावना है तो व्यक्त भाव अपनी तरफ आकर्षित करता है। किसी भी विघ्न का मूल कारण यह विपरीत भावनायें हैं। 19.01.2022 व्यक्त भाव की आकर्षण से परे अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने वाले सर्व बन्धनमुक्त भव प्रवृत्ति में रहते बन्धनमुक्त बनने के लिए संकल्प से भी किसी सम्बन्ध में, अपनी देह में और पदार्थो में फंसना नहीं। संकल्प में भी कोई बंधन आकर्षित न करे क्योंकि संकल्प में आयेगा तो संकल्प के बाद फिर कर्म में भी आ जायेगा इसलिए व्यक्त भाव में आते भी, व्यक्त भाव की आकर्षण में नहीं आना, तब ही न्यारी और प्यारी अव्यक्त स्थिति का अनुभव कर सकेंगे। 18.01.2022 भुजाओं में समाने और भुजायें बन सेवा करने वाले ब्रह्मा बाप के स्नेही भव जो बच्चे बाप स्नेही हैं वह सदा ब्रह्मा बाप की भुजाओं में समाये रहते हैं। यह ब्रह्मा बाप की भुजायें ही आप बच्चों की सेफ्टी का साधन हैं। जो प्यारे, स्नेही होते हैं वो सदा भुजाओं में होते हैं। तो सेवा में बापदादा की भुजायें हो और रहते हो बाप की भुजाओं में। इन दोनों दृश्यों का अनुभव करो - कभी भुजाओं में समा जाओ और कभी भुजायें बनकर सेवा करो। नशा रहे कि हम भगवान के राइट हैण्ड हैं। 17.01.2022 ब्रह्मा बाप के संस्कारों को स्वयं में धारण करने वाले स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक भव जैसे ब्रह्मा बाप ने जो अपने संस्कार बनाये, वह सभी बच्चों को अन्त समय में याद दिलाये - निराकारी, निर्विकारी और निरंहकारी - तो यह ब्रह्मा बाप के संस्कार ही ब्राह्मणों के संस्कार नेचुरल हों। सदा इन्हीं श्रेष्ठ संस्कारों को सामने रखो। सारे दिन में हर कर्म के समय चेक करो कि तीनों ही संस्कार इमर्ज रूप में हैं। इन्हीं संस्कारों को धारण करने से स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक बन जायेंगे। 16.01.2022 ज्ञान के साथ-साथ गुणों को इमर्ज कर नम्बरवन बनने वाले सर्वगुण सम्पन्न भव
यही संकल्प करो कि मुझे सदा गुण मूर्त बन सबको गुण मूर्त बनाने का विशेष कर्तव्य करना ही है तो व्यर्थ देखने, सुनने वा करने की फुर्सत ही नहीं रहेगी। दूसरों को देखने के बजाए ब्रह्मा बाप को फालो करते हुए हर सेकण्ड गुणों का दान करते चलो तो सर्वगुण सम्पन्न बनने और बनाने का एक्जैम्पल बन नम्बरवन हो जायेंगे। 15.01.2022 दिव्य गुणों रूपी प्रभू प्रसाद खाने और खिलाने वाले संगमयुगी फरिश्ता सो देवता भव दिव्य गुण सबसे श्रेष्ठ प्रभू प्रसाद है। इस प्रसाद को खूब बांटों, जैसे एक दो में स्नेह की निशानी स्थूल टोली खिलाते हो, ऐसे ये गुणों की टोली खिलाओ। जिस आत्मा को जिस शक्ति की आवश्यकता है उसे अपनी मन्सा अर्थात् शुद्ध वृत्ति, वायब्रेशन द्वारा शक्तियों का दान दो और कर्म द्वारा गुण मूर्त बन, गुण धारण करने में सहयोग दो। तो इसी विधि से संगमयुग का जो लक्ष्य है “फरिश्ता सो देवता'' यह सहज सर्व में प्रत्यक्ष दिखाई देगा।
14.01.2022 आकारी और निराकारी स्थिति के अभ्यास द्वारा हलचल में भी अचल रहने वाले बाप समान भव जैसे साकार में रहना नेचुरल हो गया है, ऐसे ही मैं आकारी फरिश्ता हूँ और निराकारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ - यह दोनों स्मृतियां नेचुरल हो क्योंकि शिव बाप है निराकारी और ब्रह्मा बाप है आकारी। अगर दोनों से प्यार है तो समान बनो। साकार में रहते अभ्यास करो - अभी-अभी आकारी और अभी-अभी निराकारी। तो यह अभ्यास ही हलचल में अचल बना देगा। 13.01.2022 अपने श्रेष्ठ कर्म रूपी दर्पण द्वारा ब्रह्मा बाप के कर्म दिखलाने वाले बाप समान भव एक-एक ब्राह्मण आत्मा, श्रेष्ठ आत्मा हर कर्म में ब्रह्मा बाप के कर्म का दर्पण हो। ब्रह्मा बाप के कर्म आपके कर्म के दर्पण में दिखाई दें। जो बच्चे इतना अटेन्शन रखकर हर कर्म करते हैं उनका बोलना, चलना, उठना, बैठना सब ब्रह्मा बाप के समान होगा। हर कर्म वरदान योग्य होगा, मुख से सदैव वरदान निकलते रहेंगे। फिर साधारण कर्म में भी विशेषता दिखाई देगी। तो यह सर्टीफिकेट लो तब कहेंगे बाप समान। 12.01.2022 मंजिल को सामने रख ब्रह्मा बाप को फालो करते हुए फर्स्ट नम्बर लेने वाले तीव्र पुरुषार्थी भव तीव्र पुरुषार्थी के सामने सदा मंजिल होती है। वे कभी यहाँ वहाँ नहीं देखते। फर्स्ट नम्बर में आने वाली आत्मायें व्यर्थ को देखते हुए भी नहीं देखती, व्यर्थ बातें सुनते हुए भी नहीं सुनती। वे मंजिल को सामने रख ब्रह्मा बाप को फालो करती हैं। जैसे ब्रह्मा बाप ने अपने को करनहार समझकर कर्म किया, कभी करावनहार नहीं समझा, इसलिए जिम्मेवारी सम्भालते भी सदा हल्के रहे। ऐसे फालो फादर करो। 11.01.2022 सदा हर संकल्प और कर्म में ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले समीप और समान भव जैसे ब्रह्मा बाप ने दृढ़ संकल्प से हर कार्य में सफलता प्राप्त की, एक बाप दूसरा न कोई - यह प्रैक्टिकल में कर्म करके दिखाया। कभी दिलशिकस्त नहीं बनें, सदा नथिंगन्यु के पाठ से विजयी रहे, हिमालय जैसी बड़ी बात को भी पहाड़ से रूई बनाए रास्ता निकाला, कभी घबराये नहीं, ऐसे सदा बड़ी दिल रखो, दिलखुश रहो। हर कदम में ब्रह्मा बाप को फालो करो तो समीप और समान बन जायेंगे। 10.01.2022 ब्रह्मा बाप के प्यार का प्रैक्टिकल सबूत देने वाले सपूत और समान भव यदि कहते हो कि ब्रह्मा बाप से हमारा बहुत प्यार है तो प्यार की निशानी है जिससे बाप का प्यार रहा उससे प्यार हो। जो भी कर्म करो, कर्म के पहले, बोल के पहले, संकल्प के पहले चेक करो कि यह ब्रह्मा बाप को प्रिय है? ब्रह्मा बाप की विशेषता विशेष यही रही - जो सोचा वह किया, जो कहा वह किया। आपोजीशन होते भी सदा अपनी पोजीशन पर सेट रहे, तो प्यार का प्रैक्टिकल सबूत देना अर्थात् फालो फादर कर सपूत और समान बनना। 09.01.2022 चलन और चेहरे द्वारा पुरूषोत्तम स्थिति का साक्षात्कार कराने वाले ब्रह्मा बाप समान भव जैसे ब्रह्मा बाप साधारण तन में होते भी सदा पुरूषोत्तम अनुभव होते थे। साधारण में पुरूषोत्तम की झलक देखी, ऐसे फालो फादर करो। कर्म भल साधारण हो लेकिन स्थिति महान हो। चेहरे पर श्रेष्ठ जीवन का प्रभाव हो। जैसे लौकिक रीति में कई बच्चों की चलन और चेहरा बाप समान होता है, यहाँ चेहरे की बात नहीं लेकिन चलन ही चित्र है। हर चलन से बाप का अनुभव हो, ब्रह्मा बाप समान पुरूषोत्तम स्थिति हो - तब कहेंगे बाप समान। 08.01.2022 रूहानियत द्वारा वृत्ति, दृष्टि, बोल और कर्म को रॉयल बनाने वाले ब्रह्मा बाप समान भव ब्रह्मा बाप के बोल, चाल, चेहरे और चलन में जो रायॅल्टी देखी - उसमें फालो करो। जैसे ब्रह्मा बाप ने कभी छोटी-छोटी बातों में अपनी बुद्धि वा समय नहीं दिया। उनके मुख से कभी साधारण बोल नहीं निकले, हर बोल युक्तियुक्त अर्थात् व्यर्थ भाव से परे अव्यक्त भाव और भावना वाले रहे। उनकी वृत्ति हर आत्मा प्रति सदा शुभ भावना, शुभ कामना वाली रही, दृष्टि से सबको फरिश्ते रूप में देखा। कर्म से सदा सुख दिया और सुख लिया। ऐसे फालो करो तब कहेंगे ब्रह्मा बाप समान। 07.01.2022 लाइट बन ज्ञान योग की शक्तियों को प्रयोग में लाने वाले प्रयोगी आत्मा भव ज्ञानी-योगी आत्मा तो बने हो अभी ज्ञान, योग की शक्ति को प्रयोग में लाने वाले प्रयोगी आत्मा बनो। जैसे साइन्स के साधनों का प्रयोग लाइट द्वारा होता है। ऐसे साइलेन्स की शक्ति का आधार भी लाइट है। अविनाशी परमात्म लाइट, आत्मिक लाइट और साथ-साथ प्रैक्टिकल स्थिति भी लाइट। तो जब कोई प्रयोग करना चाहते हो तो चेक करो लाइट हैं या नहीं? अगर स्थिति और स्वरूप डबल लाइट है तो प्रयोग की सफलता सहज होगी।
06.01.2022 बिन्दू रूप में स्थित रह उड़ती कला में उड़ने वाले डबल लाइट भव सदा स्मृति में रखो कि हम बाप के नयनों के सितारे हैं, नयनों में सितारा अर्थात् बिन्दू ही समा सकता है। आंखों में देखने की विशेषता भी बिन्दू की है। तो बिन्दू रूप में रहना - यही उड़ती कला में उड़ने का साधन है। बिन्दू बन हर कर्म करो तो लाइट रहेंगे। कोई भी बोझ उठाने की आदत न हो। मेरा के बजाए तेरा कहो तो डबल लाइट बन जायेंगे। स्व उन्नति वा विश्व सेवा के कार्य का भी बोझ अनुभव नहीं होगा। 05.01.2022 ट्रस्टी पन की स्मृति से निमित्त समझ हर कार्य करने वाले डबल लाइट भव निमित्तपन का भाव बोझ को सहज खत्म कर देता है। मेरी जिम्मेवारी है, मेरे को ही सम्भालना है, मेरे को ही सोचना है....तो बोझ होता है। जिम्मेवारी बाप की है और बाप ने ट्रस्टी अर्थात् निमित्त बनाया है इस स्मृति से डबल लाइट बन उड़ती कला का अनुभव करते रहो। जहाँ मेरा है वहाँ बोझ है इसलिए कभी किसी भी कार्य में जब बोझ महसूस हो तो चेक करो कि कहीं गलती से तेरे के बजाए मेरा तो नहीं कहते। 04.01.2022 डबल लाइट स्थिति द्वारा उड़ती कला का अनुभव करने वाले सर्व आकर्षण मुक्त भव अभी चढ़ती कला का समय समाप्त हुआ, अभी उड़ती कला का समय है। उड़ती कला की निशानी है डबल लाइट। थोड़ा भी बोझ होगा तो नीचे ले आयेगा। चाहे अपने संस्कारों का बोझ हो, वायुमण्डल का हो, किसी आत्मा के सम्बन्ध-सम्पर्क का हो, कोई भी बोझ हलचल में लायेगा इसलिए कहीं भी लगाव न हो, जरा भी कोई आकर्षण आकर्षित न करे। जब ऐसे आकर्षण मुक्त, डबल लाइट बनो तब सम्पूर्ण बन सकेंगे। 03.01.2022 सब कुछ बाप हवाले कर डबल लाइट रहने वाले बाप समान न्यारे-प्यारे भव तन भी मेरा नहीं। ये तन सेवा अर्थ बाप ने दिया है। आपका तो वायदा है कि तन-मन-धन सब तेरा। जब तन ही अपना नहीं तो बाकी क्या रहा। तो सदा कमल पुष्प का दृष्टान्त स्मृति में रहे कि मैं कमल पुष्प समान न्यारा और प्यारा हूँ। ऐसे न्यारे रहने वालों को परमात्म प्यार का अधिकार मिल जाता है। 02.01.2022 कम समय में सम्पूर्णता की श्रेष्ठ मंजिल को प्राप्त करने वाले डबल लाइट भव डबल लाइट स्थिति तीव्रगति के पुरूषार्थ की निशानी है, उसे किसी भी प्रकार का बोझ अनुभव होगा। चाहे प्रकृति द्वारा या व्यक्तियों द्वारा कोई भी परिस्थिति आये लेकिन हर परिस्थिति स्व-स्थिति के आगे कुछ भी अनुभव नहीं होगी।
डबल लाइट अर्थात् ऊंचा रहने से किसी भी प्रकार का प्रभाव, प्रभावित नहीं कर सकता। नीचे की बातों से, नीचे के वायुमण्डल से ऊपर रहने से कम समय में सम्पूर्ण बनने की श्रेष्ठ मंजिल को प्राप्त कर लेंगे। 01.01.2022 एक बाप में सारे संसार की अनुभूति करते हुए निरन्तर एक की याद में रहने वाले सहज योगी भव सहजयोग का अर्थ ही है - एक को याद करना। एक बाप दूसरा न कोई। तन-मन-धन सब तेरा, मेरा नहीं। ऐसे ट्रस्टी बन डबल लाइट रहने वाले ही सहजयोगी हैं। सहजयोगी बनने की सहज विधि है - एक को याद करना, एक में सब कुछ अनुभव करना। बाप ही संसार है तो याद सहज हो गई। आधाकल्प मेहनत की अभी बाप मेहनत से छुड़ाते हैं। लेकिन यदि फिर भी मेहनत करनी पड़ती है तो उसका कारण है अपनी कमजोरी। 31.12.2021 श्रेष्ठ मत के आधार पर मायावी संगदोष से परे रहने वाले शक्ति स्वरूप भव बच्चों की एक कम्पलेन रहती है कि सम्बन्धी नहीं सुनते, संग अच्छा नहीं है, इस कारण शक्तिशाली नहीं बन सकते। लेकिन श्रेष्ठ मत के आधार पर ज्ञान स्वरूप, शक्ति स्वरूप के वरदानी बन अपनी स्थिति को अचल बनाओ। साक्षी होकर हर एक का पार्ट देखो। अपने सतोगुणी पार्ट में स्थित रहो। सदा बाप के संग में रहो तो तमोगुणी आत्मा के संग के रंग का प्रभाव पड़ नहीं सकता। 30.12.2021 स्व-स्थिति द्वारा सर्व परिस्थितियों का सामना करने वाले अव्यक्त स्थिति के अभ्यासी भव जब अव्यक्त स्थिति के अभ्यास की आदत बन जायेगी तब स्व स्थिति द्वारा हर परिस्थिति का सामना कर सकेंगे। और यह आदत अदालत में जाने से बचा देगी इसलिए इस अभ्यास को जब नेचरल और नेचर बनाओ तब नेचरल कैलेमिटीज हो क्योंकि जब सामना करने वाले स्व स्थिति से हर परिस्थिति को पार करने की शक्ति धारण कर लेंगे तब पर्दा खुलेगा। इसके लिए पुरानी आदतों से, पुराने संस्कारों से, पुरानी बातों से...पूरा वैराग्य चाहिए। 29.12.2021 रूहाब और रहम के गुण द्वारा विश्व नव निर्माण करने वाले विश्व कल्याणकारी भव
विश्व कल्याणकारी बनने के लिए मुख्य दो धारणायें आवश्यक हैं एक ईश्वरीय रूहाब और दूसरा रहम। अगर रूहाब और रहम दोनों साथ-साथ और समान हैं तो रूहानियत की स्टेज बन जाती है। तो जब भी कोई कर्तव्य करते हो वा मुख से शब्द वर्णन करते हो तो चेक करो कि रहम और रूहाब दोनों समान रूप में हैं? शक्तियों के चित्रों में इन दोनों गुणों की समानता दिखाते हैं, इसी के आधार पर विश्व नव-निर्माण के निमित्त बन सकते हो।
28.12.2021 साइलेन्स की शक्ति द्वारा अपने रजिस्टर को साफ करने वाले लोकप्रिय, प्रभू प्रिय भव जैसे साइन्स ने ऐसी इन्वेन्शन की है जो लिखा हुआ सब मिट जाए, मालूम न पड़े। ऐसे आप साइलेन्स की शक्ति से अपने रजिस्टर को रोज़ साफ करो तो प्रभू प्रिय वा दैवी लोक प्रिय बन जायेंगे। सच्चाई सफाई को सभी पसन्द करते हैं। इसलिए एक दिन के किये हुए व्यर्थ संकल्प वा व्यर्थ कर्म की दूसरे दिन लीक भी न रहे, बीती को बीती कर फुलस्टाप लगा दो तो रजिस्टर साफ रहेगा और साहेब राज़ी हो जायेगा। 27.12.2021 साधारणता द्वारा महानता को प्रसिद्ध करने वाले सिम्पल और सैम्पुल भव जैसे कोई सिम्पल चीज़ अगर स्वच्छ होती है तो अपने तरफ आकर्षित जरूर करती है। ऐसे मन्सा के संकल्पों में, सम्बन्ध में, व्यवहार में, रहन सहन में जो सिम्पल और स्वच्छ रहते हैं वह सैम्पल बन सर्व को अपनी तरफ स्वत: आकर्षित करते हैं। सिम्पल अर्थात् साधारण। साधारणता से ही महानता प्रसिद्ध होती है। जो साधारण अर्थात् सिम्पल नहीं वह प्राब्लम रूप बन जाते हैं। 26.12.2021 स्थूल और सूक्ष्म दोनों रीति से स्वयं को बिजी रखने वाले मायाजीत, विजयी भव स्वयं को सेवाधारी समझ अपनी रुची, उमंग से सेवा में बिजी रहो तो माया को चांस नहीं मिलेगा। जब संकल्प से, बुद्धि से, चाहे स्थूल कर्मणा से फ्री रहते हो तो माया चांस ले लेती है। लेकिन स्थूल और सूक्ष्म दोनों ही रीति से खुशी-खुशी से सेवा में बिजी रहो तो खुशी के कारण माया सामना करने का साहस नहीं रख सकती, इसलिए स्वयं ही टीचर बन बुद्धि को बिजी रखने का डेली प्रोग्राम बनाओ तो मायाजीत, विजयी बन जायेंगे। 25.12.2021 इस पुरानी दुनिया को विदेश समझ इससे उपराम रहने वाले स्वदेशी भव जैसे कई लोग विदेश की चीज़ों को टच भी नहीं करते हैं, समझते हैं अपने देश की चीज़ का प्रयोग करें। ऐसे आप लोगों के लिए यह पुरानी दुनिया ही विदेश है, इससे उपराम रहो अर्थात् पुरानी दुनिया की जो चीज़े हैं, स्वभाव-संस्कार हैं उनकी तरफ जरा भी आकर्षित न हो। स्वदेशी बनो अर्थात् आत्मिक रूप में अपने ऊंचे देश परमधाम और इस ईश्वरीय परिवार के हिसाब से मधुबन देश के निवासी समझ, इसके नशे में रहो। 24.12.2021 श्रेष्ठ कर्म द्वारा सिमरण योग्य बनने वाले योगयुक्त, युक्तियुक्त भव आपका एक-एक कर्म जितना श्रेष्ठ होगा उतना ही श्रेष्ठ आत्माओं में सिमरण किये जायेंगे। भक्ति में नाम का सिमरण करते हैं, लेकिन यहाँ जो श्रेष्ठ आत्मायें हैं उनके गुणों और कर्मो को मिसाल बनाने के लिए सिमरण करते हैं। तो आप श्रेष्ठ कर्मो के आधार पर सिमरण योग्य बनते जायेंगे, इसके लिए योगयुक्त बनो। योगयुक्त बनने से हर संकल्प, शब्द वा कर्म युक्तियुक्त अवश्य होगा, उनसे अयुक्त कर्म वा संकल्प हो ही नहीं सकता - यह भी कनेक्शन है। 23.12.2021 मरजीवा स्थिति द्वारा हिम्मत और हुल्लास की अविनाशी स्टैम्प लगाने वाले प्राप्ति सम्पन्न भव जो प्राप्तियों से सम्पन्न होते हैं उनके हर चलन, नैन चैन से उमंग-उत्साह दिखाई देता है। लेकिन हिम्मत और हुल्लास की अविनाशी स्टैम्प लगाने के लिए अपने पास्ट के वा ईश्वरीय मर्यादाओं के विपरीत जो संस्कार, स्वभाव, संकल्प वा कर्म होते हैं उनसे मरजीवा बनो। प्रतिज्ञा रूपी स्वीच को सेट कर प्रैक्टिकल में प्रतिज्ञा प्रमाण चलते रहो। हिम्मत के साथ हुल्लास हो तो प्राप्ति की झलक दूर से ही दिखाई देगी। 22.12.2021 मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी की सीट पर सेट रहने वाले सहज और सदा के कर्म-योगी भव जैसे किसी मशीनरी को सेट किया जाता है तो एक बार सेट करने से फिर आटोमेटिकली चलती रहती है, इसी रीति से मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी की स्टेज पर स्वयं को एक बार सेट कर दो तो कभी कमजोरी के शब्द नहीं निकलेंगे। हर संकल्प, शब्द वा कर्म उसी सेटिंग प्रमाण आटोमेटिक चलते रहेंगे। यही सेटिंग सहज और सदा के लिए कर्मयोगी, निरन्तर निर्विकल्प समाधि में रहने वाला सहजयोगी बना देगी। 21.12.2021 संगमयुग पर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने वाले डबल प्राप्ति के अधिकारी भव जो बच्चे संगमयुग पर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर लेते हैं उन्हें सदा शान्ति और खुशी की डबल प्राप्ति का नशा रहता है क्योंकि अतीन्द्रिय सुख में यह दोनों प्राप्तियां समाई हुई हैं। अभी आप बच्चों को जो बाप और वर्से की प्राप्ति है यह सारे कल्प में नहीं हो सकती। इस समय की प्राप्ति अतीन्द्रिय सुख और नॉलेज भी फिर कभी नहीं मिल सकती। तो इस डबल प्राप्ति के अधिकारी बनो। 20.12.2021 निर्विकारी वा फरिश्ते स्वरूप की स्थिति का अनुभव करने वाले आत्म-अभिमानी भव जो बच्चे आत्म-अभिमानी बनते हैं वह सहज ही निर्विकारी बन जाते हैं। आत्म-अभिमानी स्थिति द्वारा मन्सा में भी निर्विकारीपन की स्टेज का अनुभव होता है। ऐसे निर्विकारी, जिन्हें किसी भी प्रकार की इम्प्युरिटी वा 5 तत्वों की आकर्षण आकर्षित नहीं करती - वही फरिश्ता कहलाते हैं। इसके लिए साकार में रहते हुए अपनी निराकारी आत्म-अभिमानी स्थिति में स्थित रहो। 19.12.2021 समय और संकल्प सहित अपने सर्व खजानों को विल करने वाले मोहजीत भव जैसे बच्चे को सब कुछ विल किया जाता है, ऐसे आप लोग भी बाप को अपना वारिस बनाकर सब कुछ विल कर दो तो विल पावर आ जायेगी। इस विल पावर से मोह स्वत: नष्ट हो जायेगा। जैसे साकार बाप ने पूरा ही अपने को विल किया वैसे आप लोगों की जो स्मृति है, समय और संकल्पों का खजाना है उसे विल करो अर्थात् श्रीमत प्रमाण सेवाओं में लगाओ तो मोहजीत, बन्धनमुक्त बन जायेंगे। 18.12.2021 तपस्या द्वारा अपने विकर्मो वा तमोगुण के संस्कारों को भस्म करने वाले तपस्वीमूर्त भव जैसे अभी ईश्वरीय पालना का कर्तव्य चल रहा है ऐसे लास्ट में तपस्या द्वारा अपने विकर्मो और हर आत्मा के तमोगुणी संस्कार वा प्रकृति के तमोगुण को भस्म करने का कर्तव्य चलना है। इसके लिए सदा एकरस स्थिति के आसन पर स्थित हो अपने तपस्वी रूप को प्रत्यक्ष करो। आपकी हर कर्मेन्द्रिय से देह-अभिमान का त्याग और आत्म-अभिमानी बनने की तपस्या प्रत्यक्ष रूप में दिखाई दे। 17.12.2021 त्याग, तपस्या द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले सर्व के कल्याणकारी भव जैसे स्थूल अग्नि दूर से ही अपना अनुभव कराती है, ऐसे आपकी तपस्या और त्याग की झलक दूर से ही सर्व को आकर्षित करे। सेवाधारी के साथ-साथ त्यागी, तपस्वीमूर्त बनो तब सेवा का प्रत्यक्षफल दिखाई देगा। त्यागी अर्थात् कोई भी पुराने संकल्प वा संस्कार दिखाई न दें। तपस्वी अर्थात् बुद्धि की स्मृति वा दृष्टि से सिवाए आत्मिक स्वरूप के और कुछ भी दिखाई न दे। जो भी संकल्प उठे उसमें हर आत्मा का कल्याण समाया हुआ हो तब कहेंगे सर्व के कल्याणकारी। 16.12.2021 साकार बाप समान अपने हर कर्म को यादगार बनाने वाले आधारमूर्त और उद्धारमूर्त भव जैसे साकार बाप ने अपना हर कर्म यादगार बनाया ऐसे आप सभी का हर कर्म यादगार तब बनेगा जब स्वयं को आधारमूर्त और उद्धारमूर्त समझकर चलेंगे। जो अपने को विश्व परिवर्तन के आधारमूर्त समझते हो, उनका हर कर्म ऊंचा होता है और वृत्ति-दृष्टि में जब सर्व के कल्याण की भावना रहती है तो हर कर्म श्रेष्ठ हो जाता है। ऐसे श्रेष्ठ कर्म ही यादगार बनते हैं। 15.12.2021 पुराने संस्कार रूपी अस्थियों को सम्पूर्ण स्थिति के सागर में सामने वाले समान और सम्पूर्ण भव बाप समान वा सम्पूर्ण बनने के लिए सृष्टि की कयामत के पहले अपनी कमजोरियों और कमियों की कयामत करो। कोई भी उलझन का नाम निशान न रहे ऐसा अपने को उज्जवल बनाओ। जैसे जन्म परिवर्तन के बाद पुराने जन्म की बातें भूल जाती हैं ऐसे पुरानी बातों को, पुराने संस्कारों को भस्म करो, अस्थियों को भी सम्पूर्ण स्थिति के सागर में समा दो तब कहेंगे समान और सम्पूर्ण। 14.12.2021 कम्बाइन्ड रूप की सेवा द्वारा आत्माओं को समीप सम्बन्ध में लाने वाले कम्बाइन्ड रूपधारी भव सिर्फ आवाज द्वारा सेवा करने से प्रजा बनती जा रही है लेकिन आवाज से परे स्थिति में स्थित हो फिर आवाज में आओ, अव्यक्त स्थिति और फिर आवाज - ऐसे कम्बाइन्ड रूप की सेवा वारिस बनायेगी। आवाज द्वारा प्रभावित हुई आत्मायें अनेक आवाज सुनने से आवागमन में आ जाती हैं लेकिन कम्बाइन्ड रूपधारी बन कम्बाइन्ड रूप की सेवा करो तो उन पर किसी भी रूप का प्रभाव पड़ नहीं सकता। 13.12.2021 बाप-दादा के साथ द्वारा माया को दूर से ही मूर्छित करने वाले मायाजीत, जगतजीत भव जैसे बाप के स्नेही बने हो ऐसे बाप को साथी बनाओ तो माया दूर से ही मूर्छित हो जायेगी। शुरू-शुरू का जो वायदा है तुम्हीं से खाऊं, तुम्हीं से बैठूं, तुम्हीं से रूह को रिझाऊं...इसी वायदे प्रमाण सारी दिनचर्या में हर कार्य बाप के साथ करो तो माया डिस्टर्ब कर नहीं सकती, उसका डिस्ट्रक्शन हो जायेगा। तो साथी को सदा साथ रखो, साथ की शक्ति से वा मिलन में मगन रहने से मायाजीत, जगतजीत बन जायेंगे। 12.12.2021 अपने मस्तक द्वारा तीसरे नेत्र का साक्षात्कार कराने वाले सच्चे योगी भव यादगार में योगी के मस्तक पर तीसरा नेत्र दिखाते हैं। आप सच्चे योगी बच्चे भी अपने मस्तक द्वारा तीसरे नेत्र का साक्षात्कार कराने के लिए सदा बुद्धि द्वारा एक बाप के संग में रहो। एक बाप दूसरे हम, तीसरा न कोई, जब ऐसी स्थिति होगी तब तीसरे नेत्र का साक्षात्कार होगा। अगर बुद्धि में कोई तीसरा आ गया तो फिर तीसरा नेत्र बन्द हो जायेगा, इसलिए सदैव तीसरा नेत्र खुला रहे - इसके लिए याद रखना कि तीसरा न कोई। 11.12.2021 अन्तर स्वरूप में स्थित रह अपने वा बाप के गुप्त रूप को प्रत्यक्ष करने वाले सच्चे स्नेही भव जो बच्चे सदा अन्तर की स्थिति में अथवा अन्तर स्वरूप में स्थित रह अन्तर्मुखी रहते हैं, वे कभी किसी बात में लिप्त नहीं हो सकते। पुरानी दुनिया, सम्बन्ध, सम्पत्ति, पदार्थ जो अल्पकाल और दिखावा मात्र हैं उनसे धोखा नहीं खा सकते। अन्तर स्वरूप की स्थिति में रहने से स्वयं का शक्ति स्वरूप जो गुप्त है वह प्रत्यक्ष हो जाता है और इसी स्वरूप से बाप की प्रत्यक्षता होती है। तो ऐसा श्रेष्ठ कर्तव्य करने वाले ही सच्चे स्नेही हैं। 10.12.2021 सम्पूर्ण समर्पण की विधि द्वारा अपने पन का अधिकार समाप्त करने वाले समान साथी भव जो वायदा है कि साथ रहेंगे, साथ चलेंगे और साथ में राज्य करेंगे - इस वायदे को तभी निभा सकेंगे जब साथी के समान बनेंगे। समानता आयेगी समर्पणता से। जब सब कुछ समर्पण कर दिया तो अपना वा अन्य का अधिकार समाप्त हो जाता है। जब तक किसी का भी अधिकार है तो सर्व समर्पण में कमी है इसलिए समान नहीं बन सकते। तो साथ रहने, साथ उड़ने के लिए जल्दी-जल्दी समान बनो। 09.12.2021 सदा बिज़ी रहने की विधि द्वारा व्यर्थ संकल्पों की कम्पलेन को समाप्त करने वाले सम्पूर्ण कर्मातीत भव सम्पूर्ण कर्मातीत बनने में व्यर्थ संकल्पों के तूफान ही विघ्न डालते हैं। इस व्यर्थ संकल्पों की कम्पलेन को समाप्त करने के लिए अपने मन को हर समय बिज़ी रखो, समय की बुकिंग करने का तरीका सीखो। सारे दिन में मन को कहाँ-कहाँ बिजी रखना है - यह प्रोग्राम बनाओ। रोज़ अपने मन को 4 बातों में बिज़ी कर दो: 1-मिलन (रूहरिहान) 2-वर्णन (सर्विस) 3-मगन और 4-लगन। इससे समय सफल हो जायेगा और व्यर्थ की कम्पलेन खत्म हो जायेगी। 08.12.2021 प्रालब्ध की इच्छा को त्याग अच्छा पुरुषार्थ करने वाले श्रेष्ठ पुरूषार्थी भव श्रेष्ठ पुरुषार्थी उन्हें कहा जाता है जो पुरुषार्थ की प्रालब्ध को भोगने की इच्छा नहीं रखते। जहाँ इच्छा है वहाँ स्वच्छता खत्म हो जाती है और सोचता (सोचने वाले) बन जाते हैं। जो यहाँ ही प्रालब्ध भोगने की इच्छा रखते हैं वह अपनी भविष्य कमाई जमा होने में कमी कर देते हैं इसलिए इच्छा के बजाए अच्छा शब्द याद रखो। श्रेष्ठ पुरुषार्थी सदा फ्लोलेस बनने का पुरुषार्थ करते हैं, किसी भी बात में फेल नहीं होते। 07.12.2021 स्व-स्थिति द्वारा सर्व परिस्थितियों को पार करने वाले निराकारी, अलंकारी भव जो अलंकारी हैं वे कभी देह-अहंकारी नहीं बन सकते। निराकारी और अलंकारी रहना - यही है मन्मनाभव, मध्याजीभव। जब ऐसी स्व-स्थिति में सदा स्थित रहते तो सर्व परिस्थितियों को सहज ही पार कर लेते, इससे अनेक पुराने स्वभाव समाप्त हो जाते हैं। स्व में आत्मा का भाव देखने से भाव-स्वभाव की बातें समाप्त हो जाती हैं और सामना करने की सर्व शक्तियां स्वयं में आ जाती हैं। 06.12.2021 बार-बार हार खाने के बजाए बलिहार जाने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् विजयी भव स्वयं को सदा विजयी रत्न समझकर हर संकल्प और कर्म करो तो कभी भी हार हो नहीं सकती। मास्टर सर्वशक्तिमान् कभी हार नहीं खा सकते। यदि बार-बार हार होती है तो धर्मराज की मार खानी पड़ेगी और हार खाने वालों को भविष्य में हार बनाने पड़ेंगे, द्वापर से अनेक मूर्तियों को हार पहनाने पड़ेंगे इसलिए हार खाने के बजाए बलिहार हो जाओ, अपने सम्पूर्ण स्वरूप को धारण करने की प्रतिज्ञा करो तो विजयी बन जायेंगे। 05.12.2021 समाने और सामना करने की शक्ति द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले रूहानी सेवाधारी भव रूहानी सेवाधारियों को सेवा के सिवाए कुछ भी सूक्षता नहीं, वे मन्सा-वाचा-कर्मणा सर्विस से एक सेकण्ड भी रेस्ट नहीं लेते इसलिए बेस्ट बन जाते हैं। वे सेवाओं में सफलता प्राप्त करने के लिए सदा यही स्लोगन याद रखते कि समाना और सामना करना- यही हमारा निशाना है। वे अपने पुराने संस्कारों को समाते हैं और सामना माया से करते न कि दैवी परिवार से। ऐसे बच्चे जो नॉलेजफुल के साथ-साथ पावरफुल भी हैं उन्हें ही कहा जाता है रूहानी सेवाधारी। 04.12.2021 आत्मिक उन्नति के साधन द्वारा सर्व परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने वाले अकाल-मूर्त भव जैसे शरीर निर्वाह के लिए अनेक साधन अपनाते हो ऐसे आत्मिक उन्नति के भी साधन अपनाओ, इसके लिए सदा अकालमूर्त स्थिति में स्थित होने का अभ्यास करो। जो स्वयं को अकालमूर्त (आत्मा) समझकर चलते हैं वह अकाले मृत्यु से, अकाल से, सर्व समस्याओं से बच जाते हैं। मानसिक चिंतायें, मानसिक परिस्थितियों को हटाने के लिए सिर्फ अपने पुराने शरीर के भान को मिटाते जाओ। 03.12.2021 तड़फती हुई भिखारी, प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाने वाले सर्व खजाने से सम्पन्न भव जैसे लहरों में लहराती व डूबती हुई आत्मा एक तिनके का सहारा ढूंढती है। ऐसे दु:ख की एक लहर आने दो फिर देखना अनेक सुख-शान्ति की भिखारी आत्मायें तड़फते हुए आपके सामने आयेंगी। ऐसी प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाने के लिए अपने को अतीन्द्रिय सुख वा सर्व शक्तियों से, सर्व खजानों से भरपूर करो। सर्व खजाने इतने जमा हो जो अपनी स्थिति भी कायम रहे और अन्य आत्माओं को भी सम्पन्न बना सको। 02.12.2021 बालक और मालिकपन के बैलेन्स द्वारा युक्तियुक्त चलने वाले सफलतामूर्त भव जितना हो सके सर्विस के संबंध में बालकपन, अपने पुरुषार्थ की स्थिति में मालिकपन, सम्पर्क और सर्विस में बालकपन, याद की यात्रा और मंथन करने में मालिकपन, साथियों और संगठन में बालकपन और व्यक्तिगत में मालिकपन - इस बैलेन्स से चलना ही युक्तियुक्त चलना है। इससे सहज ही हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है, स्थिति एकरस रहती है और सहज ही सर्व के स्नेही बन जाते हैं। 01.12.2021 सर्व के गुण देखने वा सन्तुष्ट करने की उत्कण्ठा द्वारा सदा एकरस उत्साह में रहने वाले गुणमूर्त भव सदा एकरस उमंग-उत्साह में रहने के लिए जो भी संबंध में आते हैं उन्हें सन्तुष्ट करने की उत्कण्ठा हो। जिसको भी देखो उससे हर समय गुण उठाते रहो। सर्व के गुणों का बल मिलने से उत्साह सदाकाल के लिए रहेगा। उत्साह कम तब होता है जब औरों के भिन्न-भिन्न स्वरूप, भिन्न-भिन्न बातें देखते, सुनते हो। लेकिन गुण देखने की उत्कण्ठा हो तो एकरस उत्साह रहेगा और सर्व के गुण देखने से स्वयं भी गुणमूर्त बन जायेंगे। 30.11.2021 अपनी मूर्त से बाप और शिक्षक की सूरत को प्रत्यक्ष करने वाले अनुभवी मूर्त भव अपने असली पोजीशन में ठहरना - यही याद की यात्रा है, जो हूँ, जिसका हूँ - उसमें स्थित रहो, इसी असली स्वरूप के निश्चय और अनेक बार के विजय की स्मृति से सदा नशे की स्थिति के सागर में लहराते रहेंगे। जब सुख दाता के बच्चे हैं तो दु:ख की लहर आ कैसे सकती, सर्वशक्तिवान के बच्चे शक्तिहीन हो कैसे सकते! इसी पोजीशन के अनुभवों में रहो तो आपकी मूर्त से बाप वा शिक्षक की सूरत स्वत: प्रत्यक्ष होगी। 29.11.2021 याद के मंत्र द्वारा संकल्प और कर्म में अविनाशी सिद्धि प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव आप बच्चे आलमाइटी गवर्मेन्ट के मैसेन्जर हो इसलिए कोई से भी डिस्कस करने में अपना माइन्ड डिस्टर्व नहीं करना। याद का मन्त्र यूज़ करना। जैसे कोई वाणी से या अन्य किसी तरीके से वश नहीं होते हैं तो मन्त्र-जन्त्र करते हैं, आपके पास आत्मिक दृष्टि का नेत्र और मनमनाभव का मन्त्र है जिससे अपने संकल्पों को सिद्ध कर सिद्धि स्वरूप बन सकते हो। 28.11.2021 संगदोष से दूर रह सदा बाप की समीपता का भाग्य प्राप्त करने वाले पास विद आनर भव यदि बाप के समीप रहना पसन्द है तो कभी कोई भी संगदोष से दूर रहना। कई प्रकार के आकर्षण पेपर के रूप में आयेंगे लेकिन आकर्षित नहीं होना। संगदोष कई प्रकार का होता है, व्यर्थ संकल्पों वा माया की आकर्षण के संकल्पों का संग, सम्बन्धियों का संग, वाणी का संग, अन्नदोष का संग, कर्म का संग...इन सब संगदोषों से अपने को बचाने वाले ही पास विद आनर बनते हैं। 27.11.2021 सदा अपने पवित्र स्वरूप में स्थित रह गुण रूपी मोती चुगने वाले होलीहंस भव आप होली हसों का स्वरूप है पवित्र और कर्तव्य है सदैव गुणों रूपी मोती चुगना। अवगुण रूपी कंकड कभी भी बुद्धि में स्वीकार न हो। लेकिन इस कर्तव्य को पालन करने के लिए सदैव एक आज्ञा याद रहे कि न बुरा सोचना है, न बुरा सुनना है, न बुरा देखना है, न बुरा बोलना है.... जो इस आज्ञा को सदा स्मृति में रखते हैं वह सदा सागर के किनारे पर रहते हैं। हंसों का ठिकाना है ही सागर। 26.11.2021 कोमलता को कमाल में परिवर्तन कर माया जीत बनने वाले शक्ति स्वरूप भव शक्ति स्वरूप बनने के लिए कोमलता को कमाल में परिवर्तन करो। सिर्फ स्वयं के संस्कारों को परिवर्तन करने में कोमल बनो, कर्म में कभी कोमल नहीं बनना, इसमें शक्ति रूप बनना है। जो शक्ति रूप का कवच धारण कर लेते हैं उन्हें माया का कोई भी तीर लग नहीं सकता इसलिए आपके चेहरे, नयन-चैन से कोमलता के बजाए शक्ति रूप दिखाई दे तब मायाजीत बन पास विद आनर का सर्टीफिकेट ले सकेंगे। 25.11.2021 ईश्वरीय अथॉरिटी द्वारा संकल्प वा बुद्धि को आर्डर प्रमाण चलाने वाले मास्टर सर्वशक्तिवान भव जैसे स्थूल हाथ पांव को बिल्कुल सहज रीति जहाँ चाहो वहाँ चलाते हो वा कर्म में लगाते हो वैसे संकल्प वा बुद्धि को जहाँ लगाने चाहो वहाँ लगा सको - इसे ही कहते हैं ईश्वरीय अथॉरिटी। जैसे वाणी में आना सहज है वैसे वाणी से परे जाना भी इतना ही सहज हो, इसी अभ्यास से साक्षात्कार मूर्त बनेंगे। तो अब इस अभ्यास को सहज और निरन्तर बनाओ तब कहेंगे मास्टर सर्वशक्तिवान। 24.11.2021 सच्ची लगन के आधार पर और संग तोड़ एक संग जोड़ने वाले सम्पूर्ण वफादार भव सम्पूर्ण वफादार उन्हें कहा जाता है जिनके संकल्प वा स्वप्न में भी सिवाए बाप के और बाप के कर्तव्य वा बाप की महिमा के, बाप के ज्ञान के और कुछ भी दिखाई न दे। एक बाप दूसरा न कोई... बुद्धि की लगन सदा एक संग रहे तो अनेक संग का रंग लग नहीं सकता इसलिए पहला वायदा है और संग तोड़ एक संग जोड़ - इस वायदे को निभाना अर्थात् सम्पूर्ण वफादार बनना। 23.11.2021 स्थूल वा सूक्ष्म में हर फरमान को पालन करने वाले सम्पूर्ण फरमानबरदार भव स्थूल फरमान पालन करने की शक्ति उन्हीं बच्चों में आ सकती है जो सूक्ष्म फरमान पालन करते हैं। सूक्ष्म और मुख्य फरमान है निरन्तर याद में रहो वा मन-वचन-कर्म से पवित्र बनो। संकल्प में भी अपवित्रता व अशुद्धता न हो। यदि संकल्प में भी पुराने अशुद्ध संस्कार टच करते हैं तो सम्पूर्ण वैष्णव वा सम्पूर्ण पवित्र नहीं कहेंगे इसलिए कोई एक संकल्प भी फरमान के सिवाए न चले तब कहेंगे सम्पूर्ण फरमानबरदार। 22.11.2021 सदा फरमान के तिलक को धारण कर फर्स्ट प्राइज़ लेने वाले फरमानवरदार भव जिन बच्चों के मस्तक पर फरमानबरदारी की स्मृति का तिलक लगा हुआ है, एक संकल्प भी फरमान के बिना नहीं करते उन्हें फर्स्ट प्राइज़ प्राप्त होती है। जैसे सीता को लकीर के अन्दर बैठने का फरमान था, ऐसे हर कदम उठाते हुए, हर संकल्प करते हुए बाप के फरमान की लकीर के अन्दर रहो तो सदा सेफ रहेंगे। कोई भी प्रकार के रावण के संस्कार वार नहीं करेंगे और समय भी व्यर्थ नहीं जायेगा। 21.11.2021 अपने परिवर्तन द्वारा निरन्तर विजय की अनुभूति करने वाले सच्चे सेवाधारी भव जैसे निरन्तर योगी बने हो ऐसे निरन्तर विजयी बनो तो सच्चे सेवाधारी बन जायेंगे क्योंकि विजयी आत्मा, जब हर संकल्प, हर कदम में विजय का अनुभव करती है तो उनका यह परिवर्तन देख अनेक आत्माओं की सेवा स्वत: होती है। उनके नैन रूहानियत का अनुभव कराते हैं, चलन बाप के चरित्रों का साक्षात्कार कराती है, मस्तक से मस्तकमणि का साक्षात्कार होता है। ऐसे अपनी अव्यक्त सूरत से सेवा करने वाली विशेष आत्मा को ही सच्चा सेवाधारी कहा जाता है। 20.11.2021 अनुभव की विल पावर द्वारा माया की पावर का सामना करने वाले अनुभवीमूर्त भव सबसे पावरफुल स्टेज है अपना अनुभव। अनुभवी आत्मा अपने अनुभव की विल-पावर से माया की कोई भी पावर का, सभी बातों का, सर्व समस्याओं का सहज ही सामना कर सकती है और सभी आत्माओं को सन्तुष्ट भी कर सकती है। सामना करने की शक्ति से सर्व को सन्तुष्ट करने की शक्ति अनुभव के विल पावर से सहज प्राप्त होती है, इसलिए हर खजाने को अनुभव में लाकर अनुभवीमूर्त बनो। 19.11.2021 सर्व शक्तियों की सम्पत्ति से सम्पन्न बन दाता बनने वाले विधाता, वरदाता भव जो बच्चे सर्व शक्तियों के सम्पत्तिवान हैं - वही सम्पन्न और सम्पूर्ण स्थिति के समीपता का अनुभव करते हैं। उनमें कोई भी भक्तपन के वा भिखारीपन के संस्कार इमर्ज नहीं होते, बाप की मदद चाहिए, आशीर्वाद चाहिए, सहयोग चाहिए, शक्ति चाहिए - यह चाहिए शब्द दाता विधाता, वरदाता बच्चों के आगे शोभता ही नहीं। वे तो विश्व की हर आत्मा को कुछ न कुछ दान वा वरदान देने वाले होते हैं। 18.11.2021 त्याग और स्नेह की शक्ति द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले स्नेही सहयोगी भव जैसे शुरू में नॉलेज की शक्ति कम थी लेकिन त्याग और स्नेह के आधार पर सफलता मिली। बुद्धि में दिन रात बाबा और यज्ञ तरफ लगन रही, जिगर से निकलता था बाबा और यज्ञ। इसी स्नेह ने सभी को सहयोग में लाया। इसी शक्ति से केन्द्र बनें। साकार स्नेह से ही मन्मनाभव बनें, साकार स्नेह ने ही सहयोगी बनाया। अभी भी त्याग और स्नेह की शक्ति से घेराव डालो तो सफलता मिल जायेगी। 17.11.2021 नॉलेज की लाइट द्वारा पुरूषार्थ के मार्ग को सहज और स्पष्ट करने वाले फरिश्ता स्वरूप भव फरिश्तेपन की लाइफ में लाइट और माइट दोनों ही स्पष्ट दिखाई देते हैं। लेकिन लाइट और माइट रूप बनने के लिए मनन करने और सहन करने की शक्ति चाहिए। मन्सा के लिए मननशक्ति और वाचा, कर्मणा के लिए सहनशक्ति धारण करो फिर जो भी शब्द बोलेंगे, कर्म करेंगे वह उसी के प्रमाण होंगे। अगर यह दोनों शक्तियां हैं तो हर एक के लिए पुरूषार्थ का मार्ग सहज और स्पष्ट हो जायेगा। 16.11.2021 नम्बरवन बिजनेसमैन बन एक एक सेकण्ड वा संकल्प में कमाई जमा करने वाले पदमपति भव नम्बरवन बिजनेसमैन वह है जो स्वयं को बिजी रखने का तरीका जानता है। बिजनेसमैन अर्थात् जिसका एक संकल्प भी व्यर्थ न जाये, हर संकल्प में कमाई हो। जैसे वह बिजनेसमैन एक एक पैसे को कार्य में लगाकर पदमगुणा बना देते हैं, ऐसे आप भी एक एक सेकण्ड वा संकल्प कमाई करके दिखाओ तब पदमपति बनेंगे। इससे बुद्धि का भटकना बंद हो जायेगा और व्यर्थ संकल्पों की कम्पलेन भी समाप्त हो जायेगी। 15.11.2021 बापदादा के कर्तव्य को अपना निशाना बनाने वाले मास्टर मर्यादा पुरुषोत्तम भव कहा जाता है “अपनी घोट तो नशा चढ़े'' दूसरे की कमाई में कभी भी आंख नहीं जानी चाहिए। दूसरे के नशे को निशाना बनाने के बजाए बापदादा के गुण और कर्तव्य को निशाना बनाओ। बापदादा के साथ अधर्म विनाश और सतधर्म की स्थापना के कर्तव्य में मददगार बनो। अधर्म विनाश करने वाले अधर्म का कार्य वा दैवी मर्यादा को तोड़ने का कार्य कर नहीं सकते, वे मास्टर मर्यादा पुरुषोत्तम होते हैं। 14.11.2021 कैचिंग पावर द्वारा अपने असली संस्कारों को कैच कर उनका स्वरूप बनने वाले शक्तिशाली भव जैसे साइंसदान बहुत पहले के साउण्ड को कैच करते हैं ऐसे आप साइलेन्स की शक्ति से अपने आदि दैवी संस्कार कैच करो, इसके लिए सदैव यही स्मृति रहे कि मैं यही था और फिर बन रहा हूँ। जितना उन संस्कारों को कैच करेंगे उतना उसका स्वरूप बनेंगे। 5 हजार वर्ष की बात इतनी स्पष्ट अनुभव में आये जैसे कल की बात है। अपनी स्मृति को इतना श्रेष्ठ और स्पष्ट बनाओ तब शक्तिशाली बनेंगे। 13.11.2021 मरजीवे जन्म की स्मृति द्वारा कर्मबन्धन को सम्बन्ध में परिवर्तन करने वाले परोपकारी भव कर्मबन्धन नहीं सेवा का सम्बन्ध है। सेवा के सम्बन्ध में वैराइटी प्रकार की आत्माओं का ज्ञान धारण कर चलेंगे तो बंधन में तंग नहीं होंगे। लेकिन अति पाप आत्मा, अपकारी आत्मा से भी नफरत वा घृणा के बजाए, रहमदिल बन तरस की भावना रखते हुए, सेवा का सम्बन्ध समझकर सेवा करेंगे तो नामीग्रामी विश्व कल्याणी वा परोपकारी गाये जायेंगे। 12.11.2021 करावनहार की स्मृति से सेवा में सदा निर्माण का कार्य करने वाले कर्मयोगी भव कोई भी कर्म, कर्मयोगी की स्टेज में परिवर्तन करो, सिर्फ कर्म करने वाले नहीं लेकिन कर्मयोगी हैं। कर्म अर्थात् व्यवहार और योग अर्थात् परमार्थ दोनों का बैलेन्स हो। शरीर निर्वाह के पीछे आत्मा का निर्वाह भूल न जाए। जो भी कर्म करो वह ईश्वरीय सेवा अर्थ हो। इसके लिए सेवाओं में निमित्त मात्र का मंत्र वा करनहार की स्मृति का संकल्प सदा याद रहे। करावनहार भूले नहीं तो सेवा में निर्माण ही निर्माण करते रहेंगे। 11.11.2021 साधनों को यूज़ करते हुए साधना को अपना आधार बनाने वाले सिद्धि स्वरूप भव कोई भी पुरानी दुनिया के आकर्षणमय दृश्य, अल्पकाल के सुख के साधन यूज़ करते वा देखते हो तो उन साधनों के वशीभूत हो जाते हो। साधनों के आधार पर साधना ऐसे है जैसे रेत के फाउण्डेशन पर बिल्डिंग, इसलिए किसी भी विनाशी साधन के आधार पर अविनाशी साधना न हो। साधन निमित्तमात्र हैं और साधना निर्माण का आधार है, इसलिए साधना को महत्व दो तो साधना सिद्धि को प्राप्त करायेगी। 10.11.2021 सर्व के दिलों के राज़ को जान सर्व को राज़ी करने वाले सदा विजयी भव विजयी बनने के लिए हर एक के दिल के राज़ को जानना है। किसी के मुख द्वारा निकलने वाले आवाज से उसके दिल के राज़ को जान लो तो विजयी बन सकते हो लेकिन दिल के राज़ को जानने के लिए अन्तर्मुखता चाहिए। जितना अन्तर्मुखी रहेंगे उतना हर एक के दिल के राज़ को जानकर उसे राज़ी कर सकेंगे। राज़ी करने वाले ही विजयी बनते हैं। 09.11.2021 हर बात में सार को ग्रहण कर आलराउण्ड बनने वाले सरल पुरूषार्थी भव जो भी बात देखते हो, सुनते हो, उसके सार को समझ लो और जो बोल बोलो, जो कर्म करो उसमें सार भरा हुआ हो तो पुरूषार्थ सरल हो जायेगा। ऐसा सरल पुरूषार्थी सब बातों में आलराउण्ड होता है। उसमें कोई भी कमी दिखाई नहीं देती। कोई भी बात में हिम्मत कम नहीं होती, मुख से ऐसे बोल नहीं निकलते कि हम यह नहीं कर सकते। ऐसे सरल पुरूषार्थी स्वयं भी सरलचित रहते हैं और दूसरों को सरलचित बना देते हैं। 08.11.2021 सबको रिगार्ड देते हुए अपना रिकार्ड ठीक रखने वाले सर्व के स्नेही भव जितना जो सभी को रिगार्ड देता है उतना ही अपने रिकार्ड को ठीक रख सकता है। दूसरों का रिगार्ड रखना अपना रिकार्ड बनाना है। जैसे यज्ञ के मददगार बनना ही मदद लेना है, वैसे रिगार्ड देना ही रिगार्ड लेना है। एक बार देना और अनेक बार लेने के हकदार बन जाना। वैसे कहते हैं छोटों को प्यार और बड़ों को रिगार्ड दो लेकिन जो सभी को बड़ा समझकर रिगार्ड देते हैं वह सबके स्नेही बन जाते हैं। इसके लिए हर बात में “पहले आप'' का पाठ पक्का करो। 07.11.2021 समाने की शक्ति द्वारा एकमत का वातावरण बनाने वाले दृष्टान्त रूप भव जो एक जैसे मणके हैं, एक की ही लगन और एकरस स्थिति में स्थित, एक की मत पर चलने वाले हैं, आपस में संकल्पों में भी एकमत हैं, वही माला में पिरोये जाते हैं। लेकिन एकमत का वातावरण तब बनेगा जब समाने की शक्ति होगी। यदि कोई बात में भिन्नता हो जाती है तो उस भिन्नता को समाओ तब आपस में एकता से समीप आयेंगे और सबके आगे दृष्टान्त रूप बनेंगे। 06.11.2021 एकरस स्थिति द्वारा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करने वाले सर्व आकर्षणों से मुक्त भव जब इन्द्रियों की आकर्षण और सम्बन्धों की आकर्षण से मुक्त बनो तब अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति कर सकेंगे। कोई भी कर्मन्द्रिय के वश होने से जो भिन्न-भिन्न आकर्षण होते हैं वह अतीन्द्रिय सुख वा हर्ष दिलाने में बंधन डालते हैं। लेकिन जब बुद्धि सर्व आकर्षणों से मुक्त हो एक ठिकाने पर टिक जाती है, हलचल समाप्त हो जाती है तब एकरस अवस्था बनने से अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति होती है। 05.11.2021 नॉलेज की लाइट माइट द्वारा विघ्न-विनाशक बनने वाले मास्टर नॉलेजफुल भव भक्ति मार्ग में गणेश को विघ्न-विनाशक कहकर पूजते हैं, साथ-साथ उन्हें मास्टर नॉलेजफुल अर्थात् विद्यापति भी मानते हैं। तो जो बच्चे मास्टर नॉलेजफुल बनते हैं वे कभी विघ्नों से हार नहीं खा सकते क्योंकि नॉलेज को लाइट-माइट कहा जाता है, जिससे मंजिल पर पहुंचना सहज हो जाता है। ऐसे जो विघ्न-विनाशक हैं, बाप के साथ सदा कम्बाइन्ड रहते हुए नॉलेज का सिमरण करते रहते हैं वे कभी विघ्न हार नहीं बन सकते। 04.11.2021 दिव्य गुणों के आह्वान द्वारा अवगुणों को समाप्त करने वाले दिव्यगुणधारी भव जैसे दीपावली पर श्रीलक्ष्मी का आह्वान करते हैं, ऐसे आप बच्चे स्वयं में दिव्यगुणों का आह्वान करो तो अवगुण आहुति रूप में खत्म होते जायेंगे। फिर नये संस्कारों रूपी नये वस्त्र धारण करेंगे। अब पुराने वस्त्रों से जरा भी प्रीत न हो। जो भी कमजोरियां, कमियां, निर्बलता, कोमलता रही हुई है - वो सब पुराने खाते आज से सदाकाल के लिए समाप्त करो तब दिव्यगुणधारी बनेंगे और भविष्य में ताजपोशी होगी। उसी का ही यादगार यह दीपावली है। 03.11.2021 स्वयं के संकल्पों की उलझन अथवा सजाओं से भी परे रहने वाले पास विद आनर भव पास विद आनर अर्थात् मन में भी संकल्पों से सजा न खायें। धर्मराज के सजाओं की बात तो पीछे है परन्तु अपने संकल्पों की भी उलझन अथवा सजाओं से परे रहना - यह पास विद आनर होने वालों की निशानी है। वाणी, कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क की बात तो मोटी है लेकिन संकल्पों में भी उलझन पैदा न हो, ऐसी प्रतिज्ञा करो तब पास विद आनर बनेंगे। 02.11.2021 पावरफुल स्थिति द्वारा रचना की सर्व आकर्षणों से दूर रहने वाले मास्टर रचयिता भव जब मास्टर रचयिता, मास्टर नॉलेजफुल की पावरफुल स्थिति वा नशे में स्थित रहेंगे तब रचना की सर्व आकर्षणों से परे रह सकेंगे क्योंकि अभी रचना और भी भिन्न-भिन्न रंग-ढंग, रूप रचेगी इसलिए अभी बचपन की भूलें, अलबेलेपन की भूलें, आलस्य की भूलें, बेपरवाही की भूलें जो रही हुई हैं - उन्हें भूल कर अपने पावरफुल, शक्ति-स्वरूप, शस्त्रधारी स्वरूप, सदा जागती ज्योति स्वरूप को प्रत्यक्ष करो तब कहेंगे मास्टर रचयिता। 01.11.2021 सर्वशक्तिमान् के साथ की स्मृति द्वारा समस्याओं को दूर भगाने वाले परमात्म स्नेही भव जो बच्चे परमात्म स्नेही हैं वे स्नेही को सदा साथ रखते हैं इसलिए कोई भी समस्या सामने नहीं आती। जिनके साथ स्वयं सर्वशक्तिमान् बाप है उनके सामने समस्या ठहर नहीं सकती। समस्या पैदा हो और वहाँ ही खत्म कर दो तो वृद्धि नहीं होगी। अब समस्याओं का बर्थ कन्ट्रोल करो। सदा याद रखो कि सम्पूर्णता को समीप लाना है और समस्याओं को दूर भगाना है। 31.10.2021 सदा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करने वाले अटल अखण्ड स्वराज्य अधिकारी भव जो बच्चे संगमयुग पर अतीन्द्रिय सुख का वर्सा सदाकाल के लिए प्राप्त कर लेते हैं अर्थात् जिनका बाप के विल पर पूरा अधिकार होता है वे विल पावर वाले होते हैं। उन्हें अटूट अटल अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति होती है। ऐसे वारिस अर्थात् सम्पूर्ण वर्से के अधिकारी ही भविष्य में अटल-अखण्ड स्वराज्य का अधिकार प्राप्त करते हैं। 30.10.2021 ईश्वरीय कुल की स्मृति द्वारा माया का सामना करने वाले सदा समर्थ स्वरूप भव किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करनी है तो पहले स्मृति द्वारा समर्थी स्वरूप बनो। समर्थी आने से माया का सामना करना सहज हो जायेगा। जैसी स्मृति होती है वैसा स्वरूप बन जाता है इसलिए सदा पावरफुल स्मृति रहे - कि जब तक यह ईश्वरीय जन्म है तब तक हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर कार्य ईश्वरीय सेवा पर हूँ। हमारा यह ईश्वरीय कुल है, यह स्मृति की सीट सर्व कमजोरियों को समाप्त कर देगी। 29.10.2021 मनन द्वारा बाप की प्रापर्टी को अपनी प्रापर्टी बनाने वाले दिव्य बुद्धिवान भव बाप द्वारा जो भी खजाना मिलता है, उसे मनन करो तो अन्दर समाता जायेगा। प्रापर्टी तो सबको एक जैसी मिली हुई है लेकिन जो मनन करके उसे अपना बनाते हैं, उन्हें उसका नशा और खुशी रहती है इसलिए कहा जाता है - अपनी घोट तो नशा चढ़े। जो मनन की मस्ती में सदा मस्त रहते हैं उन्हें दुनिया की कोई भी चीज़, उलझन आकर्षित नहीं कर सकती। उन्हें दिव्य बुद्धि का वरदान स्वत: मिल जाता है। 28.10.2021 हर कर्म करते हुए कमल आसन पर विराजमान रहने वाले सहज वा निरन्तर योगी भव निरन्तर योगयुक्त रहने के लिए कमल पुष्प के आसन पर सदा विराजमान रहो लेकिन कमल आसन पर वही स्थित रह सकते हैं जो लाइट हैं। किसी भी प्रकार का बोझ अर्थात् बंधन न हो। मन के संकल्पों का बोझ, संस्कारों का बोझ, दुनिया के विनाशी चीज़ों की आकर्षण का बोझ, लौकिक सम्बन्धियों की ममता का बोझ - जब यह सब बोझ खत्म हों तब कमल आसन पर विराजमान निरन्तर योगी बन सकेंगे। 27.10.2021 शक्तियों को करामत के बजाए कर्तव्य समझकर प्रयोग करने वाले पूजन वा गायन योग्य भव याद द्वारा जो शक्तियों की प्राप्ति होती है उन्हें करामत समझकर प्रयोग नहीं करना लेकिन कर्तव्य समझकर कार्य में लगाना। उन मनुष्यों के पास रिद्धि सिद्धि की करामत होती है लेकिन आपके पास है श्रीमत। श्रीमत से शक्तियां जरूर आती हैं इसीलिए संकल्प से कर्तव्य सिद्ध होते हैं। संकल्प से किसको कार्य की प्रेरणा दे सकते हो, यह भी शक्ति है लेकिन श्रीमत में जब अपनी मनमत मिक्स न हो तब गायन और पूजन योग्य बनेंगे। 26.10.2021 सहनशीलता के गुण द्वारा कठोर संस्कार को भी शीतल बनाने वाले सन्तुष्टमणी भव जिसमें सहनशीलता का गुण होता है वह सूरत से सदैव सन्तुष्ट दिखाई देता है, जो स्वयं सन्तुष्ट मूर्त रहते हैं वह औरों को भी सन्तुष्ट बना देते हैं। सन्तुष्ट होना माना सफलता पाना। जो सहनशील होते हैं वह अपनी सहनशीलता की शक्ति से कठोर संस्कार वा कठिन कार्य को शीतल और सहज बना देते हैं। उनका चेहरा ही गुणमूर्त दिखाई देता है। वही ड्रामा की ढाल पर ठहर सकते हैं। 25.10.2021 ईश्वरीय शान में स्थित रह हर कर्म शानदार बनाने वाले सर्व परेशानियों से मुक्त भव सदा इसी ईश्वरीय शान में रहो कि मैं बापदादा का नूरे रत्न हूँ, हमारे नयनों वा नज़रों में कोई भी चीज़ समा नहीं सकती। इस शान में रहने से भिन्न-भिन्न प्रकार की परेशानियां स्वत: समाप्त हो जायेंगी। कोई भी प्रकार की कम्पलेन नहीं रह सकती। जितना जो अपनी ऊंची शान में स्थित रहते हैं उन्हें मान भी स्वत: प्राप्त होता है और उनके हर कर्म शानदार होते हैं।
24.10.2021 सदा एकरस स्थिति के तख्त पर विराजमान रहने वाले बापदादा के दिलतख्त नशीन भव सभी से श्रेष्ठ तख्त बापदादा के दिलतख्त नशीन बनना है। लेकिन इस तख्त पर बैठने के लिए अचल, अडोल, एकरस स्थिति का तख्त चाहिए। अगर इस स्थिति के तख्त पर स्थित नहीं हो पाते तो बापदादा के दिल रूपी तख्त पर स्थित नहीं हो सकते। इसके लिए अपने भृकुटी के तख्त पर अकालमूर्त बन स्थित हो जाओ, इस तख्त से बार-बार डगमग न हो तो बापदादा के दिल तख्त पर विराजमान हो सकेंगे। 23.10.2021 सर्विस वा पुरूषार्थ में सफलता प्राप्त करने वाले डबल ताजधारी भव संगमयुग पर सदा स्वयं को डबल ताजधारी समझकर चलो - एक लाइट अर्थात् प्युरिटी का ताज और दूसरा - जिम्मेवारियों का ताज। प्युरिटी और पावर - लाइट और माइट का क्राउन धारण करने वालों में डबल फोर्स सदा कायम रहता है। ऐसी डबल फोर्स वाली आत्मायें सदा शक्तिशाली रहती हैं। उन्हें सर्विस वा पुरूषार्थ में सदा सफलता प्राप्त होती है। 22.10.2021 योगयुक्त स्थिति द्वारा सूक्ष्म व कड़े बंधनों को क्रास करने वाले बन्धनमुक्त भव योगयुक्त की निशानी है - बन्धनमुक्त। योगयुक्त बनने में सबसे बड़ा अन्तिम बंधन है - स्वयं को समझदार समझकर श्रीमत को अपने बुद्धि की कमाल समझना अर्थात् श्रीमत में अपनी बुद्धि मिक्स करना, जिसे बुद्धि का अभिमान कहा जाता है। 2-जब कभी कोई कमजोरी का इशारा देता है अथवा बुराई करता है - यदि उस समय जरा भी व्यर्थ संकल्प चला तो भी बंधन है। जब इन बंधनों को क्रास कर हार-जीत, निंदा-स्तुति में समान स्थिति बनाओ तब कहेंगे सम्पूर्ण बन्धनमुक्त। 21.10.2021 सतोप्रधान स्थिति में स्थित रह सदा सुख शान्ति की अनुभूति करने वाले डबल अहिंसक भव सदा अपने सतोप्रधान संस्कारों में स्थित रह सुख-शान्ति की अनुभूति करना - यह सच्ची अहिंसा है। हिंसा अर्थात् जिससे दु:ख-अशान्ति की प्राप्ति हो। तो चेक करो कि सारे दिन में किसी भी प्रकार की हिंसा तो नहीं करते! यदि कोई शब्द द्वारा किसकी स्थिति को डगमग कर देते हो तो यह भी हिंसा है। 2-यदि अपने सतोप्रधान संस्कारों को दबाकर दूसरे संस्कारों को प्रैक्टिकल में लाते हो तो यह भी हिंसा है इसलिए महीनता में जाकर महान आत्मा की स्मृति से डबल अहिंसक बनो। 20.10.2021 अपने श्रेष्ठ व्यवहार द्वारा सर्व आत्माओं को सुख देने वाली महान आत्मा भव जो महान आत्मायें होती हैं उनके हर व्यवहार से सर्व आत्माओं को सुख का दान मिलता है। वह सुख देते और सुख लेते हैं। तो चेक करो कि महान आत्मा के हिसाब से सारे दिन में सबको सुख दिया, पुण्य का काम किया। पुण्य अर्थात् किसको ऐसी चीज़ देना जिससे उस आत्मा से आशीर्वाद निकले। तो चेक करो कि हर आत्मा से आशीर्वाद मिल रही है। किसी को भी दु:ख दिया वा लिया तो नहीं! तब कहेंगे महान आत्मा। 19.10.2021 विधाता के साथ - साथ वरदाता बन सर्व आत्माओं में बल भरने वाले रहमदिल भव यदि कोई आत्मा इच्छुक है लेकिन हिम्मत न होने के कारण चाहना होते भी प्राप्ति नहीं कर सकती तो ऐसी आत्माओं के लिए विधाता अर्थात् ज्ञान दाता बनने के साथ-साथ रहमदिल बन वरदाता बनो, उन्हें अपनी शुभ भावना का एक्स्ट्रा बल दो। लेकिन ऐसे वरदानी मूर्त तभी बन सकते, जब आपका हर संकल्प बाप के प्रति कुर्बान हो। हर समय, हर संकल्प, हर कर्म में वारी जाऊं का जो वचन लिया है, उसे पालन करो। 18.10.2021 सर्व खजानों से भरपूर बन अपने चेहरे द्वारा सेवा करने वाले सच्चे सेवाधारी भव जो बच्चे सर्व खजानों से सदा सम्पन्न वा भरपूर रहते हैं उनके नयनों वा मस्तक द्वारा ईश्वरीय नशा दिखाई देता है। उनका चेहरा ही सेवा करता है। जिसके पास जास्ती अथवा कम जमा होता है तो वह भी उनके चेहरे से दिखाई देता है। जैसे कोई ऊंच कुल का होता है तो उनके चेहरे से वह झलक और फलक दिखाई देती है। ऐसे आपकी सूरत हर संकल्प हर कर्म को स्पष्ट करे तब कहेंगे सच्चे सेवाधारी। 17.10.2021 अपनी सतोगुणी दृष्टि द्वारा अन्य आत्माओं की दृष्टि, वृत्ति का परिवर्तन करने वाले साक्षात्कार मूर्त भव कहावत है दृष्टि से सृष्टि बदलती है। तो आपकी दृष्टि ऐसी सतोगुणी हो जो कैसी भी तमोगुणी वा रजोगुणी आत्मा की दृष्टि, वृत्ति और उनकी स्थिति बदल जाये। जो भी आपके सामने आये उन्हें दृष्टि द्वारा तीनों लोकों का, अपनी पूरी जीवन कहानी का मालूम पड़ जाये - यही है नज़र से निहाल करना। अन्त में जब ज्ञान की सर्विस नहीं होगी तब यह सर्विस चलेगी। 16.10.2021 अपने सर्वश्रेष्ठ पोजीशन की खुमारी द्वारा अनेक आत्माओं का कल्याण करने वाले अथॉरिटी स्वरूप भव हम आलमाइटी अथॉरिटी के बच्चे हैं - यह है सर्वश्रेष्ठ पोजीशन, इस पोजीशन की खुमारी में रहो तो माया की अधीनता समाप्त हो जायेगी। इसी अथॉरिटी का स्वरूप बनने से किसी भी आत्मा का कल्याण कर सकते हो। जो सदा इस खुमारी में रहते हैं वो सदाकाल का राज्य भाग्य प्राप्त करते हैं। यही अथॉरिटी सदा कायम रखो तो विश्व आपके आगे झुकेगी, आप किसी के आगे झुक नहीं सकते। 15.10.2021 करन-करावनहार की स्मृति द्वारा सहजयोग का अनुभव करने वाले सफलतामूर्त भव कोई भी कार्य करते यही स्मृति रहे कि इस कार्य के निमित्त बनाने वाला बैकबोन कौन है। बिना बैकबोन के कोई भी कर्म में सफलता नहीं मिल सकती, इसलिए कोई भी कार्य करते सिर्फ यह सोचो मैं निमित्त हूँ, कराने वाला स्वयं सर्व समर्थ बाप है। यह स्मृति में रख कर्म करो तो सहज योग की अनुभूति होती रहेगी। फिर यह सहजयोग वहाँ सहज राज्य करायेगा। यहाँ के संस्कार वहाँ ले जायेंगे। 14.10.2021 सेवा की लगन द्वारा लौकिक को अलौकिक प्रवृत्ति में परिवर्तन करने वाले निरन्तर सेवाधारी भव सेवाधारी का कर्तव्य है निरन्तर सेवा में रहना - चाहे मंसा सेवा हो, चाहे वाचा वा कर्मणा सेवा हो। सेवाधारी कभी भी सेवा को अपने से अलग नहीं समझते। जिनकी बुद्धि में सदा सेवा की लगन रहती है उनकी लौकिक प्रवृत्ति बदलकर ईश्वरीय प्रवृत्ति हो जाती है। सेवाधारी घर को घर नहीं समझते लेकिन सेवास्थान समझकर चलते हैं। सेवाधारी का मुख्य गुण है त्याग। त्याग वृत्ति वाले प्रवृत्ति में तपस्वीमूर्त होकर रहते हैं जिससे सेवा स्वत: होती है। 13.10.2021 संगठन में सहयोग की शक्ति द्वारा विजयी बनने वाले सर्व के शुभचिंतक भव यदि संगठन में हर एक, एक दो के मददगार, शुभचिंतक बनकर रहें तो सहयोग की शक्ति का घेराव बहुत कमाल कर सकता है। आपस में एक दो के शुभचिंतक सहयोगी बनकर रहो तो माया की हिम्मत नहीं जो इस घेराव के अन्दर आ सके। लेकिन संगठन में सहयोग की शक्ति तब आयेगी जब यह दृढ़ संकल्प करेंगे कि चाहे कितनी भी बातें सहन करना पड़े लेकिन सामना करके दिखायेंगे, विजयी बनकर दिखायेंगे। 12.10.2021 शरीर को ईश्वरीय सेवा के लिए अमानत समझकर कार्य में लगाने वाले नष्टोमोहा भव जैसे कोई की अमानत होती है तो अमानत में अपनापन नहीं होता, ममता भी नहीं होती है। तो यह शरीर भी ईश्वरीय सेवा के लिए एक अमानत है। यह अमानत रूहानी बाप ने दी है तो जरूर रूहानी बाप की याद रहेगी। अमानत समझने से रुहानियत आयेगी, अपने पन की ममता नहीं रहेगी। यही सहज उपाय है निरन्तर योगी, नष्टोमोहा बनने का। तो अब रूहानयित की स्थिति को प्रत्यक्ष करो। 11.10.2021 अपने बुद्धि रूपी नेत्र को क्लीयर और केयरफुल रखने वाले मास्टर नॉलेजफुल, पावरफुल भव जैसे ज्योतिषी अपने ज्योतिष की नॉलेज से, ग्रहों की नॉलेज से आने वाली आपदाओं को जान लेते हैं, ऐसे आप बच्चे इनएडवांस माया द्वारा आने वाले पेपर्स को परखकर पास विद आनर बनने के लिए अपने बुद्धि रूपी नेत्र को क्लीयर बनाओ और केयरफुल रहो। दिन प्रतिदिन याद की वा साइलेन्स की शक्ति को बढ़ाओ तो पहले से ही मालूम पड़ेगा कि आज कुछ होने वाला है। मास्टर नॉलेजफुल, पावरफुल बनो तो कभी हार नहीं हो सकती। 10.10.2021 विकारों के वंश के अंश को भी समाप्त करने वाले सर्व समर्पण वा ट्रस्टी भव जो आईवेल के लिए पुराने संस्कारों की प्रापर्टी किनारे कर रख लेते हैं। तो माया किसी न किसी रीति से पकड़ लेती है। पुराने रजिस्टर की छोटी सी टुकड़ी से भी पकड़ जायेंगे, माया बड़ी तेज है, उनकी कैचिंग पावर कोई कम नहीं है इसलिए विकारों के वंश के अंश को भी समाप्त करो। जरा भी किसी कोने में पुराने खजाने की निशानी न हो - इसको कहा जाता है सर्व समर्पण, ट्रस्टी वा यज्ञ के स्नेही सहयोगी। 09.10.2021 नये जीवन की स्मृति से कर्मेन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने वाले मरजीवा भव जो बच्चे पूरा मरजीवा बन गये उन्हें कर्मेन्द्रियों की आकर्षण हो नहीं सकती। मरजीवा बने अर्थात् सब तरफ से मर चुके, पुरानी आयु समाप्त हुई। जब नया जन्म हुआ, तो नये जन्म, नई जीवन में कर्मेन्द्रियों के वश हो कैसे सकते। ब्रह्माकुमार-कुमारी के नये जीवन में कर्मेन्द्रियों के वश होना क्या चीज़ होती है - इस नॉलेज से भी परे। शूद्र पन का जरा भी सांस अर्थात् संस्कार कहाँ अटका हुआ न हो। 08.10.2021 दाता बन हर सेकण्ड, हर संकल्प में दान देने वाले उदारचित, महादानी भव आप दाता के बच्चे लेने वाले नहीं लेकिन देने वाले हो। हर सेकण्ड हर संकल्प में देना है, जब ऐसे दाता बन जायेंगे तब कहेंगे उदारचित, महादानी। ऐसे महादानी बनने से महान् शक्ति की प्राप्ति स्वत: होती है। लेकिन देने के लिए स्वयं का भण्डारा भरपूर चाहिए। जो लेना था वह सब कुछ ले लिया, बाकी रह गया देना। तो देते जाओ देने से और भी भण्डारा भरता जायेगा। 07.10.2021 बाप के हाथ और साथ की स्मृति से मुश्किल को सहज बनाने वाले बेफिक्र वा निश्चिंत भव जैसे किसी बड़े के हाथ में हाथ होता है तो स्थिति बेफिक्र वा निश्चिंत रहती है। ऐसे हर कर्म में यही समझना चाहिए कि बापदादा मेरे साथ भी हैं और हमारे इस अलौकिक जीवन का हाथ उनके हाथ में है अर्थात् जीवन उनके हवाले है, तो जिम्मेवारी भी उनकी हो जाती है। सभी बोझ बाप के ऊपर रख अपने को हल्का कर दो। बोझ उतारने वा मुश्किल को सहज करने का साधन ही है - बाप का हाथ और साथ। 06.10.2021 एक ही रास्ता और एक से रिश्ता रखने वाले सम्पूर्ण फरिश्ता भव निराकार वा साकार रूप से बुद्धि का संग वा रिश्ता एक बाप से पक्का हो तो फरिश्ता बन जायेंगे। जिनके सर्व सम्बन्ध वा सर्व रिश्ते एक के साथ हैं वही सदा फरिश्ते हैं।
जैसे गवर्मेन्ट रास्ते में बोर्ड लगा देती है कि यह रास्ता ब्लाक है, ऐसे सब रास्ते ब्लाक (बन्द) कर दो तो बुद्धि का भटकना छूट जायेगा। बापदादा का यही फरमान है - कि पहले सब रास्ते बन्द करो। इससे सहज फरिश्ता बन जायेंगे। 05.10.2021 बापदादा को अपना साथी समझकर डबल फोर्स से कार्य करने वाले सहजयोगी भव कोई भी कार्य करते बापदादा को अपना साथी बना लो तो डबल फोर्स से कार्य होगा और स्मृति भी बहुत सहज रहेगी क्योंकि जो सदा साथ रहता है उसकी याद स्वत: बनी रहती है। तो ऐसे साथी रहने से वा बुद्धि द्वारा निरन्तर सत का संग करने से सहजयोगी बन जायेंगे और पावरफुल संग होने के कारण हर कर्तव्य में आपका डबल फोर्स रहेगा, जिससे हर कार्य में सफलता की अनुभूति होगी। 04.10.2021 स्वयं को सेवाधारी समझकर झुकने और सर्व को झुकाने वाले निमित्त और नम्रचित भव निमित्त उसे कहा जाता - जो अपने हर संकल्प वा हर कर्म को बाप के आगे अर्पण कर देता है। निमित्त बनना अर्थात् अर्पण होना और नम्रचित वह है जो झुकता है, जितना संस्कारों में, संकल्पों में झुकेंगे उतना विश्व आपके आगे झुकेगी। झुकना अर्थात् झुकाना। यह संकल्प भी न हो कि दूसरे भी हमारे आगे कुछ तो झुकें। जो सच्चे सेवाधारी होते हैं - वह सदैव झुकते हैं। कभी अपना रोब नहीं दिखाते। 03.10.2021 कल्याण की भावना द्वारा हर आत्मा के संस्कारों को परिवर्तन करने वाले निश्चयबुद्धि भव जैसे बाप में 100 प्रतिशत निश्चयबुद्धि हो, कोई कितना भी डगमग करने की कोशिश करे लेकिन हो नहीं सकते, ऐसे दैवी परिवार वा संसारी आत्माओं द्वारा भल कोई कैसा भी पेपर ले, क्रोधी बन सामना करे वा कोई इनसल्ट कर दे, गाली दे - उसमें भी डगमग हो नहीं सकते, इसमें सिर्फ हर आत्मा प्रति कल्याण की भावना हो, यह भावना उनके संस्कारों को परिवर्तन कर देगी। इसमें सिर्फ अधीर्य नहीं होना है, समय प्रमाण फल अवश्य निकलेगा - यह ड्रामा की नूंध है। 02.10.2021 निमित्तपन की स्मृति द्वारा अपने हर संकल्प पर अटेन्शन रखने वाले निवारण स्वरूप भव निमित्त बनी हुई आत्माओं पर सभी की नज़र होती है इसलिए निमित्त बनने वालों को विशेष अपने हर संकल्प पर अटेन्शन रखना पड़े। अगर निमित्त बने हुए बच्चे भी कोई कारण सुनाते हैं तो उनको फालो करने वाले भी अनेक कारण सुना देते हैं। अगर निमित्त बनने वालों में कोई कमी है तो वह छिप नहीं सकती इसलिए विशेष अपने संकल्प, वाणी और कर्म पर अटेन्शन दे निवारण स्वरूप बनो। 01.10.2021 अपनी दृष्टि और वृत्ति के परिवर्तन द्वारा सृष्टि को बदलने वाले साक्षात्कारमूर्त भव अपनी वृत्ति के परिवर्तन से दृष्टि को दिव्य बनाओ तो दृष्टि द्वारा अनेक आत्मायें अपने यथार्थ रूप, यथार्थ घर तथा यथार्थ राजधानी देखेंगी। ऐसा यथार्थ साक्षात्कार कराने के लिए वृत्ति में जरा भी देह-अभिमान की चंचलता न हो। तो वृत्ति के सुधार से दृष्टि दिव्य बनाओ तब यह सृष्टि परिवर्तन होगी। देखने वाले अनुभव करेंगे कि यह नैन नहीं लेकिन यह एक जादू की डिब्बिया हैं। यह नैन साक्षात्कार के साधन बन जायेंगे। 30.09.2021 ताज और तिलक को धारण कर बापदादा के मददगार बनने वाले दिलतख्तनशीन भव जब कोई तख्त पर बैठते हैं तो तिलक और ताज उनकी निशानी होती है। ऐसे जो दिल तख्तनशीन हैं उनके मस्तक पर सदैव अविनाशी आत्मा की स्थिति का तिलक दूर से ही चमकता हुआ नज़र आता है। सर्व आत्माओं के कल्याण की शुभ भावना उनके नयनों से वा मुखड़े से दिखाई देती है। उनका हर संकल्प, वचन और कर्म बाप के समान होता है।
29.09.2021 विश्व परिवर्तन के श्रेष्ठ कार्य में अपनी अंगुली देने वाले महान सो निर्माण भव जैसे कोई स्थूल चीज़ बनाते हैं तो उसमें सब चीजें डालते हैं, कोई साधारण मीठा या नमक भी कम हो तो बढ़िया चीज़ भी खाने योग्य नहीं बन सकती। ऐसे ही विश्व परिवर्तन के इस श्रेष्ठ कार्य के लिए हर एक रत्न की आवश्यकता है। सबकी अंगुली चाहिए। सब अपनी-अपनी रीति से बहुत-बहुत आवश्यक, श्रेष्ठ महारथी हैं इसलिए अपने कार्य की श्रेष्ठता के मूल्य को जानो, सब महान आत्मायें हो। लेकिन जितने महान हो उतने निर्माण भी बनो। 28.09.2021 बालक सो मालिकपन की स्मृति से सर्व खजानों के अधिकारी, प्राप्ति सम्पन्न भव हम बाप के सर्व खजानों के बालक सो मालिक हैं, नेचरल योगी, नेचरल स्वराज्य अधिकारी हैं। इस स्मृति से सर्व प्राप्ति सम्पन्न बनो। यही गीत सदा गाते रहो कि “पाना था सो पा लिया।'' खोया-पाया, खोया-पाया यह खेल नहीं करो। पा रहा हूँ, पा रहा हूँ - यह अधिकारी के बोल नहीं। जो सम्पन्न बाप के बालक, सागर के बच्चे हैं वह नौकर के समान मेहनत कर नहीं सकते। 27.09.2021 मैं पन के बोझ को समाप्त कर प्रत्यक्षफल का अनुभव करने वाले बालक सो मालिक भव जब किसी भी प्रकार का मैं पन आता है तो बोझ सिर पर आ जाता है। लेकिन जब बाप आफर कर रहे हैं कि सब बोझ मुझे दे दो आप सिर्फ नाचों, उड़ो...फिर यह क्वेश्चन क्यों - कि सर्विस कैसे होगी, भाषण कैसे करेंगे - आप सिर्फ निमित्त समझकर कनेक्शन पावर हाउस से जोड़कर बैठ जाओ, दिलशिकस्त नहीं बनो तो बापदादा सब कुछ स्वत: करा देंगे। बालक सो मालिक समझकर श्रेष्ठ स्टेज पर स्थित रहो तो प्रत्यक्ष फल की अनुभूति करते रहेंगे। 26.09.2021 सदा एकरस सम्पन्न मूड में रहने वाले पुरूषार्थी सो प्रालब्धी स्वरूप भव बापदादा वतन से देखते हैं कि कई बच्चों के मूड बहुत बदलते हैं, कभी आश्चर्यवत की मूड, कभी क्वेश्चन मार्क की मूड, कभी कनफ्यूज़ की मूड, कभी टेन्शन, कभी अटेन्शन का झूला....लेकिन संगमयुग प्रालब्धी युग है न कि पुरूषार्थी इसलिए जो बाप के गुण वही बच्चों के, जो बाप की स्टेज वही बच्चों की - यही है संगमयुग की प्रालब्ध। तो सदा एकरस एक ही सम्पन्न मूड में रहो तब कहेंगे बाप समान अर्थात् प्रालब्धी स्वरूप वाले।
25.09.2021 रिगार्ड देने का रिकार्ड ठीक रख, खुशी का महादान करने वाले पुण्य आत्मा भव वर्तमान समय चारों ओर रिगार्ड देने का रिकार्ड ठीक करने की आवश्यकता है। यही रिकार्ड फिर चारों ओर बजेगा। रिगार्ड देना और रिगार्ड लेना, छोटे को भी रिगार्ड दो, बड़े को भी रिगार्ड दो। यह रिगार्ड का रिकार्ड अभी निकलना चाहिए, तब खुशी का दान करने वाले महादानी पुण्य आत्मा बनेंगे। किसी को रिगार्ड देकर खुश कर देना - यह बड़े से बड़ा पुण्य का काम है, सेवा है।
24.09.2021 पुराने संस्कारों वा विघ्नों से मुक्ति प्राप्त करने वाले सदा शक्ति सम्पन्न भव किसी भी प्रकार के विघ्नों से, कमजोरियों से या पुराने संस्कारों से मुक्ति चाहते हो तो शक्ति धारण करो अर्थात् अंलकारी रूप होकर रहो। जो अलंकारों से सदा सजे सजाये रहते हैं वह भविष्य में विष्णुवंशी बनते हैं लेकिन अभी वैष्णव बन जाते हैं। उन्हें कोई भी तमोगुणी संकल्प वा संस्कार टच नहीं कर सकता। वे पुरानी दुनिया अथवा दुनिया की कोई भी वस्तु और व्यक्तियों से सहज ही किनारा कर लेते हैं, उन्हें कारणे अकारणे भी कोई टच नहीं कर सकता।
23.09.2021 विस्तार को सार में समाकर अपनी श्रेष्ठ स्थिति बनाने वाले बाप समान लाइट माइट हाउस भव बाप समान लाइट, माइट हाउस बनने के लिए कोई भी बात देखते वा सुनते हो तो उसके सार को जानकर एक सेकण्ड में समा देने वा परिवर्तन करने का अभ्यास करो। क्यों, क्या के विस्तार में नहीं जाओ क्योंकि किसी भी बात के विस्तार में जाने से समय और शक्तियां व्यर्थ जाती हैं। तो विस्तार को समाकर सार में स्थित होने का अभ्यास करो - इससे अन्य आत्माओं को भी एक सेकण्ड में सारे ज्ञान का सार अनुभव करा सकेंगे। 22.09.2021 मास्टर त्रिकालदर्शी बन हर कर्म युक्तियुक्त करने वाले कर्मबन्धन मुक्त भव जो भी संकल्प, बोल वा कर्म करते हो - वह मास्टर त्रिकालदर्शी बनकर करो तो कोई भी कर्म व्यर्थ वा अनर्थ नहीं हो सकता। त्रिकालदर्शी अर्थात् साक्षीपन की स्थिति में स्थित होकर, कर्मों की गुह्य गति को जानकर इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराओ तो कभी भी कर्म के बन्धन में नहीं बंधेंगे। हर कर्म करते कर्मबन्धन मुक्त, कर्मातीत स्थिति का अनुभव करते रहेंगे।
21.09.2021 एक सेकण्ड के दृढ़ संकल्प से स्वयं का वा विश्व का परिवर्तन करने वाले रूहानी जादूगर भव जैसे जादूगर थोड़े समय में बहुत विचित्र खेल दिखाते हैं, वैसे आप रूहानी जादूगर अपनी रूहानियत की शक्ति से सारे विश्व को परिवर्तन में लाने वाले हो, कंगाल को डबल ताजधारी बनाने वाले हो। स्वयं को बदलने के लिए सिर्फ एक सेकण्ड का दृढ़ संकल्प धारण करते हो कि मैं आत्मा हूँ और विश्व को बदलने के लिए स्वयं को विश्व के आधार मूर्त, उद्धार मूर्त समझकर विश्व परिवर्तन के कार्य में सदा तत्पर रहते हो इसलिए सबसे बड़े रूहानी जादूगर आप हो। 20.09.2021 नॉलेजफुल, पावरफुल और लवफुल स्वरूप द्वारा हर कर्म में सिद्धि प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव जब वाणी द्वारा सर्विस करते हो तो मन्सा पावरफुल हो। मन्सा द्वारा दूसरों की मन्सा को चेंज करो, अर्थात् मन्सा द्वारा मन्सा को कन्ट्रोल करो और वाणी द्वारा लाइट-माइट देकर नॉलेजफुल बनाओ और कर्मणा अर्थात् सम्पर्क वा अपनी रमणीक एक्टिविटी से उन्हें असली फैमली का अनुभव कराओ। ऐसे जब तीनों स्वरूप में रहकर हर कर्म करेंगे तो सिद्धि स्वरूप स्वत: बन जायेंगे।
19.09.2021 रूहानियत की खुशबू के आधार पर सर्व को परमात्म सन्देश देने वाले विश्व कल्याणकारी भव रूहानियत की सर्वशक्तियां स्वयं में धारण कर लो तो रूहानियत की खुशबू सहज ही अनेक आत्माओं को अपने तरफ आकर्षित करेगी। जैसे मन्सा शक्ति से प्रकृति को तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाते हो वैसे अन्य विश्व की आत्मायें जो आप लोगों के आगे नहीं आ सकेंगी उनको दूर रहते हुए भी आप रूहानियत की शक्ति से बाप का परिचय वा मुख्य सन्देश दे सकेंगे। यह सूक्ष्म मशीनरी जब तेज करो तब अनेक तड़फती हुई आत्माओं को अंचली मिलेगी और आप विश्व कल्याणकारी कहलायेंगे।
18.09.2021 तीनों कालों को सामने रख हर कार्य में सफल होने वाले सदा विजयी भव लौकिक रीति में भी जो समझदार होते हैं वह आगे पीछे सोच-समझकर फिर कदम उठाते हैं। ऐसे यहाँ भी आप बच्चे जब कोई कार्य करते हो तो पहले तीनों कालों को सामने रखकर फिर करो, सिर्फ वर्तमान को नहीं देखो, बेहद की समझ धारण करो और विजयीपन के निश्चय के आधार पर वा त्रिकालदर्शी पन के आधार पर हर कर्म करो वा हर बोल बोलो तब कहेंगे अलौकिक वा असाधारण।
17.09.2021 अपनी श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा शुद्ध वायुमण्डल बनाने वाले सदा शक्तिशाली आत्मा भव जो सदा अपनी श्रेष्ठ वृत्ति में स्थित रहते हैं वे किसी भी वायुमण्डल, वायब्रेशन में डगमग नहीं हो सकते। वृत्ति से ही वायुमण्डल बनता है, यदि आपकी वृत्ति श्रेष्ठ है तो वायुमण्डल शुद्ध बन जायेगा। कई वर्णन करते हैं कि क्या करें वायुमण्डल ही ऐसा है, वायुमण्डल के कारण मेरी वृत्ति चंचल हुई - तो उस समय शक्तिशाली आत्मा के बजाए कमजोर आत्मा बन जाते हैं। लेकिन व्रत (प्रतिज्ञा) की स्मृति से वृत्ति को श्रेष्ठ बना दो तो शक्तिशाली बन जायेंगे।
16.09.2021 अपनी श्रेष्ठता द्वारा नवीनता का झण्डा लहराने वाले शक्ति स्वरूप भव अभी समय प्रमाण, समीपता के प्रमाण शक्ति रूप का प्रभाव जब दूसरों पर डालेंगे तब अन्तिम प्रत्यक्षता समीप ला सकेंगे। जैसे स्नेह और सहयोग को प्रत्यक्ष किया है ऐसे सर्विस के आइने में शक्ति रूप का अनुभव कराओ। जब अपनी श्रेष्ठता द्वारा शक्ति रूप की नवीनता का झण्डा लहरायेंगे तब प्रत्यक्षता होगी। अपने शक्ति स्वरूप से सर्वशक्तिमान् बाप का साक्षात्कार कराओ। 15.09.2021 विनाश के समय पेपर में पास होने वाले आकारी लाइट रूपधारी भव विनाश के समय पेपर में पास होने वा सर्व परिस्थितियों का सामना करने के लिए आकारी लाइट रूपधारी बनो। जब चलते फिरते लाइट हाउस हो जायेंगे तो आपका यह रूप (शरीर) दिखाई नहीं देगा। जैसे पार्ट बजाने समय चोला धारण करते हो, कार्य समाप्त हुआ चोला उतारा। एक सेकण्ड में धारण करो और एक सेकण्ड में न्यारे हो जाओ - जब यह अभ्यास होगा तो देखने वाले अनुभव करेंगे कि यह लाइट के वस्त्रधारी हैं, लाइट ही इन्हों का श्रंगार है।
14.09.2021 संकल्प के इशारों से सारी कारोबार चलाने वाले सदा लाइट के ताजधारी भव जो बच्चे सदा लाइट रहते हैं उनका संकल्प वा समय कभी व्यर्थ नहीं जाता। वही संकल्प उठता है जो होने वाला है। जैसे बोलने से बात को स्पष्ट करते हैं वैसे ही संकल्प से सारी कारोबार चलती है। जब ऐसी विधि अपनाओ तब यह साकार वतन सूक्ष्मवतन बनें। इसके लिए साइलेन्स की शक्ति जमा करो और लाइट के ताजधारी रहो। 13.09.2021 समस्याओं को चढ़ती कला का साधन अनुभव कर सदा सन्तुष्ट रहने वाले शक्तिशाली भव जो शक्तिशाली आत्मायें हैं वह समस्याओं को ऐसे पार कर लेती हैं जैसे कोई सीधा रास्ता सहज ही पार कर लेते हैं। समस्यायें उनके लिए चढ़ती कला का साधन बन जाती हैं। हर समस्या जानी पहचानी अनुभव होती है। वे कभी भी आश्चर्यवत नहीं होते बल्कि सदा सन्तुष्ट रहते हैं। मुख से कभी कारण शब्द नहीं निकलता लेकिन उसी समय कारण को निवारण में बदल देते हैं। 12.09.2021 सेकण्ड में देह रूपी चोले से न्यारा बन कर्मभोग पर विजय प्राप्त करने वाले सर्व शक्ति सम्पन्न भव जब कर्मभोग का जोर होता है, कर्मेन्द्रियां कर्मभोग के वश अपनी तरफ आकर्षित करती हैं अर्थात् जिस समय बहुत दर्द हो रहा हो, ऐसे समय पर कर्मभोग को कर्मयोग में परिवर्तन करने वाले, साक्षी हो कर्मेन्द्रियों से भोगवाने वाले ही सर्व शक्ति सम्पन्न अष्ट रत्न विजयी कहलाते हैं। इसके लिए बहुत समय का देह रूपी चोले से न्यारा बनने का अभ्यास हो। यह वस्त्र, दुनिया की वा माया की आकर्षण में टाइट अर्थात् खींचा हुआ न हो तब सहज उतरेगा। 11.09.2021 मनमत, परमत को समाप्त कर श्रीमत पर पदमों की कमाई जमा करने वाले पदमापदम भाग्यशाली भव श्रीमत पर चलने वाले एक संकल्प भी मनमत वा परमत पर नहीं कर सकते। स्थिति की स्पीड यदि तेज नहीं होती है तो जरूर कुछ न कुछ श्रीमत में मनमत वा परमत मिक्स है। मनमत अर्थात् अल्पज्ञ आत्मा के संस्कार अनुसार जो संकल्प उत्पन्न होता है वह स्थिति को डगमग करता है इसलिए चेक करो और कराओ, एक कदम भी श्रीमत के बिना न हो तब पदमों की कमाई जमा कर पदमापदम भाग्यशाली बन सकेंगे। 10.09.2021 कर्म करते हुए कर्म के बन्धन से मुक्त रहने वाले सहजयोगी स्वत: योगी भव जो महावीर बच्चे हैं उन्हें साकारी दुनिया की कोई भी आकर्षण अपनी तरफ आकर्षित नहीं कर सकती। वे स्वयं को एक सेकण्ड में न्यारा और बाप का प्यारा बना सकते हैं। डायरेक्शन मिलते ही शरीर से परे अशरीरी, आत्म-अभिमानी, बन्धन-मुक्त, योगयुक्त स्थिति का अनुभव करने वाले ही सहजयोगी, स्वत: योगी, सदा योगी, कर्मयोगी और श्रेष्ठ योगी हैं। वह जब चाहें, जितना समय चाहें अपने संकल्प, श्वांस को एक प्राणेश्वर बाप की याद में स्थित कर सकते हैं।
09.09.2021 बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनने वाले अचल-अडोल भव जो सदा बेहद की वैराग्य वृत्ति में रहते हैं वह कभी किसी भी दृश्य को देख घबराते वा हिलते नहीं, सदा अचल-अडोल रहते हैं क्योंकि बेहद की वैराग्य वृत्ति से नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बन जाते हैं। अगर थोड़ा बहुत कुछ देखकर अंश मात्र भी हलचल होती है या मोह उत्पन्न होता है तो अंगद के समान अचल-अडोल नहीं कहेंगे। बेहद की वैराग्य वृत्ति में गम्भीरता के साथ रमणीकता भी समाई हुई है। 08.09.2021 एक बाप की याद में सदा मगन रह एकरस अवस्था बनाने वाले साक्षी दृष्टा भव अभी ऐसे पेपर आने हैं जो संकल्प, स्वप्न में भी नहीं होंगे। परन्तु आपकी प्रैक्टिस ऐसी होनी चाहिए जैसे हद का ड्रामा साक्षी होकर देखा जाता है फिर चाहे दर्दनाक हो या हंसी का हो, अन्तर नहीं होता। ऐसे चाहे कोई का रमणीक पार्ट हो, चाहे स्नेही आत्मा का गम्भीर पार्ट हो.....हर पार्ट साक्षी दृष्टा होकर देखो, एकरस अवस्था हो। परन्तु ऐसी अवस्था तब रहेगी जब सदा एक बाप की याद में मगन होंगे।
07.09.2021 पावरफुल दर्पण द्वारा सभी को स्वयं का साक्षात्कार कराने वाले साक्षात्कारमूर्त भव जैसे दर्पण के आगे जो भी जाता है, उसे स्वयं का स्पष्ट साक्षात्कार हो जाता है। लेकिन अगर दर्पण पावरफुल नहीं तो रीयल रूप के बजाए और रूप दिखाई देता है। होगा पतला दिखाई देगा मोटा, इसलिए आप ऐसे पावरफुल दर्पण बन जाओ, जो सभी को स्वयं का साक्षात्कार करा सको अर्थात् आपके सामने आते ही देह को भूल अपने देही रूप में स्थित हो जायें - वास्तविक सर्विस यह है, इसी से जय-जयकार होगी।
06.09.2021 सदा पुण्य का खाता जमा करने और कराने वाले मास्टर शिक्षक भव हम मास्टर शिक्षक हैं, मास्टर कहने से बाप स्वत: याद आता है। बनाने वाले की याद आने से स्वयं निमित्त हूँ - यह स्वत: स्मृति में आ जाता है। विशेष स्मृति रहे कि हम पुण्य आत्मा हैं, पुण्य का खाता जमा करना और कराना - यही विशेष सेवा है। पुण्य आत्मा कभी पाप का एक परसेन्ट संकल्प मात्र भी नहीं कर सकती। मास्टर शिक्षक माना सदा पुण्य का खाता जमा करने और कराने वाले, बाप समान। 05.09.2021 एक बाप के लव में लवलीन रह सदा चढ़ती कला का अनुभव करने वाले सफलतामूर्त भव सेवा में वा स्वयं की चढ़ती कला में सफलता का मुख्य आधार है - एक बाप से अटूट प्यार। बाप के सिवाए और कुछ दिखाई न दे। संकल्प में भी बाबा, बोल में भी बाबा, कर्म में भी बाप का साथ। ऐसी लवलीन आत्मा एक शब्द भी बोलती है तो उसके स्नेह के बोल दूसरी आत्मा को भी स्नेह में बांध देते हैं। ऐसी लवलीन आत्मा का एक बाबा शब्द ही जादू का काम करता है। वह रूहानी जादूगर बन जाती है।
04.09.2021 सूक्ष्म संकल्पों के बंधन से भी मुक्त बन ऊंची स्टेज का अनुभव करने वाले निर्बन्धन भव जो बच्चे जितना निर्बन्धन हैं उतना ऊंची स्टेज पर स्थित रह सकते हैं, इसलिए चेक करो कि मन्सा-वाचा व कर्मणा में कोई सूक्ष्म में भी धागा जुटा हुआ तो नहीं है! एक बाप के सिवाए और कोई याद न आये। अपनी देह भी याद आई तो देह के साथ देह के संबंध, पदार्थ, दुनिया सब एक के पीछे आ जायेंगे। मैं निर्बन्धन हूँ - इस वरदान को स्मृति में रख सारी दुनिया को माया की जाल से मुक्त करने की सेवा करो।
03.09.2021 साक्षीपन की सीट द्वारा परेशानी शब्द को समाप्त करने वाले मास्टर त्रिकालदर्शी भव इस ड्रामा में जो कुछ भी होता है उसमें कल्याण भरा हुआ है, क्यों, क्या का क्वेश्चन समझदार के अन्दर उठ नहीं सकता। नुकसान में भी कल्याण समाया हुआ है, बाप का साथ और हाथ है तो अकल्याण हो नहीं सकता। ऐसे शान की शीट पर रहो तो कभी परेशान नहीं हो सकते। साक्षीपन की शीट परेशानी शब्द को खत्म कर देती है, इसलिए त्रिकालदर्शी बन प्रतिज्ञा करो कि न परेशान होंगे, न परेशान करेंगे। 02.09.2021 लाइट हाउस की स्थिति द्वारा पाप कर्मो को समाप्त करने वाले पुण्य आत्मा भव जहाँ लाइट होती है वहाँ कोई भी पाप का कर्म नहीं होता है। तो सदा लाइट हाउस स्थिति में रहने से माया कोई पाप कर्म नहीं करा सकती, सदा पुण्य आत्मा बन जायेंगे। पुण्य आत्मा संकल्प में भी कोई पाप कर्म नहीं कर सकती। जहाँ पाप होता है वहाँ बाप की याद नहीं होती। तो दृढ़ संकल्प करो कि मैं पुण्य आत्मा हूँ, पाप मेरे सामने आ नहीं सकता। स्वप्न वा संकल्प में भी पाप को आने न दो।
01.09.2021 सदा कम्बाइण्ड स्वरूप की स्मृति द्वारा मुश्किल कार्य को सहज बनाने वाले डबल लाइट भव जो बच्चे निरन्तर याद में रहते हैं वे सदा साथ का अनुभव करते हैं। उनके सामने कोई भी समस्या आयेगी तो अपने को कम्बाइंड अनुभव करेंगे, घबरायेंगे नहीं। ये कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति कोई भी मुश्किल कार्य को सहज बना देती है। कभी कोई बड़ी बात सामने आये तो अपना बोझ बाप के ऊपर रख स्वयं डबल लाइट हो जाओ। तो फरिश्ते समान दिन-रात खुशी में मन से डांस करते रहेंगे।
31.08.2021 अपने भाग्य और भाग्य विधाता के गुण गाने वाले सदा प्रसन्नचित भव सभी ब्राह्मण बच्चों को जन्म से ही ताज, तख्त, तिलक जन्म सिद्ध अधिकार के रूप में प्राप्त होता है। तो इस भाग्य के चमकते हुए सितारे को देखते हुए अपने भाग्य और भाग्य विधाता के गुण गाते रहो तो गुण सम्पन्न बन जायेंगे। अपनी कमजोरियों के गुण नहीं गाओ, भाग्य के गुण गाते रहो, प्रश्नों से पार रहो तब सदा प्रसन्नचित रहने का वरदान प्राप्त होगा। फिर दूसरों को भी सहज ही प्रसन्न कर सकेंगे।
30.08.2021 नॉलेज द्वारा रावण के बहु रूपों को जानकर उसकी अट्रैक्शन से मुक्त रहने वाले हिम्मतवान भव जो बच्चे नॉलेज द्वारा रावण के बहु रूपों को अच्छी तरह से जान गये हैं, उनके आगे वह नजदीक भी नहीं आ सकता। चाहे सोने का, चाहे हीरे का रूप धारण करे लेकिन उसकी अट्रैक्शन में नहीं आयेंगे। ऐसी सच्ची सीतायें बन लकीर के अन्दर रहने का लक्ष्य रख, हिम्मतवान बनो। फिर यह रावण की बहु सेना वार करने के बजाए आपकी सहयोगी बन जायेगी। प्रकृति के 5 तत्व और 5 विकार ट्रांसफर होकर आपकी सेवा के लिए आयेंगे।
29.08.2021 मनन शक्ति द्वारा वेस्ट के वेट को समाप्त करने वाले सदा शक्तिशाली भव आत्मा पर वेस्ट का ही वेट है। वेस्ट संकल्प, वेस्ट वाणी, वेस्ट कर्म इससे आत्मा भारी हो जाती है। अब इस वेट को खत्म करो। इस वेट को समाप्त करने के लिए सदा सेवा में बिजी रहो, मनन शक्ति को बढ़ाओ। मनन शक्ति से आत्मा शक्तिशाली बन जायेगी। जैसे भोजन हज़म करने से खून बनता है फिर वह शक्ति का काम करता, ऐसे मनन करने से आत्मा की शक्ति बढ़ती है। 28.08.2021 निंदा-स्तुति, जय-पराजय में समान स्थिति रखने वाले बाप समान सम्पन्न व सम्पूर्ण भव जब आत्मा की सम्पूर्ण व सम्पन्न स्थिति बन जाती है तो निंदा-स्तुति, जय-पराजय, सुख-दु:ख सभी में समानता रहती है। दु:ख में भी सूरत व मस्तक पर दु:ख की लहर के बजाए सुख वा हर्ष की लहर दिखाई दे, निंदा सुनते भी अनुभव हो कि यह निंदा नहीं, सम्पूर्ण स्थिति को परिपक्व करने के लिए यह महिमा योग्य शब्द हैं - ऐसी समानता रहे तब कहेंगे बाप समान। जरा भी वृत्ति में यह न आये कि यह दुश्मन है, गाली देने वाला है और यह महिमा करने वाला है।
27.08.2021 सर्व आत्माओं के प्रति स्नेह और शुभचिंतक की भावना रखने वाले देही-अभिमानी भव जैसे महिमा करने वाली आत्मा के प्रति स्नेह की भावना रहती है, ऐसे ही जब कोई शिक्षा का इशारा देता है तो उसमें भी उस आत्मा के प्रति ऐसे ही स्नेह की, शुभचिंतन की भावना रहे - कि यह मेरे लिए बड़े से बड़े शुभचिंतक हैं - ऐसी स्थिति को कहा जाता है देही-अभिमानी। अगर देही-अभिमानी नहीं हैं तो जरूर अभिमान है। अभिमान वाला कभी अपना अपमान सहन नहीं कर सकता।
26.08.2021 अपने शिक्षा स्वरूप द्वारा शिक्षा देने वाले शिक्षा सम्पन्न योग्य शिक्षक भव योग्य शिक्षक उसे कहा जाता है जो अपने शिक्षा स्वरूप द्वारा शिक्षा दे। उनका स्वरूप ही शिक्षा सम्पन्न होगा। उनका देखना-चलना भी किसको शिक्षा देगा। जैसे साकार रूप में कदम-कदम हर कर्म शिक्षक के रूप में प्रैक्टिकल में देखा, जिसको दूसरे शब्दों में चरित्र कहते हैं। किसी को वाणी द्वारा शिक्षा देना तो कामन बात है लेकिन सभी अनुभव चाहते हैं। तो अपने श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति से अनुभव कराओ।
25.08.2021 साकार और निराकार बाप के साथ द्वारा हर संकल्प में विजयी बनने वाले सदा सफलमूर्त भव जैसे निराकार आत्मा और साकार शरीर दोनों के सम्बन्ध से हर कार्य कर सकते हो, ऐसे ही निराकार और साकार बाप दोनों को साथ वा सामने रखते हुए हर कर्म वा संकल्प करो तो सफलमूर्त बन जायेंगे क्योंकि जब बापदादा सम्मुख हैं तो जरूर उनसे वेरीफाय करा करके निश्चय और निर्भयता से करेंगे। इससे समय और संकल्प की बचत होगी। कुछ भी व्यर्थ नहीं जायेगा, हर कर्म स्वत: सफल होगा।
24.08.2021 अपने असली संस्कारों को इमर्ज कर सदा हर्षित रहने वाले ज्ञान स्वरूप भव जो बच्चे ज्ञान का सिमरण कर उसका स्वरूप बनते हैं वह सदा हर्षित रहते हैं। सदा हर्षित रहना - यह ब्राह्मण जीवन का असली संस्कार है। दिव्य गुण अपनी चीज़ है, अवगुण माया की चीज़ है जो संगदोष से आ गये हैं। अब उसे पीठ दे दो और अपने आलमाइटी अथॉरिटी की पोजीशन पर रहो तो सदा हर्षित रहेंगे। कोई भी आसुरी वा व्यर्थ संस्कार सामने आने की हिम्मत भी नहीं रख सकेंगे।
23.08.2021 अमृतवेले की मदद वा श्रीमत की पालना द्वारा स्मृति को समर्थवान बनाने वाले स्मृति स्वरूप भव अपनी स्मृति को समर्थवान बनाना है वा स्वत: स्मृति स्वरूप बनना है तो अमृतवेले के समय की वैल्यु को जानो। जैसी श्रीमत है उसी प्रमाण समय को पहचान कर समय प्रमाण चलो तो सहज सर्व प्राप्ति कर सकेंगे और मेहनत से छूट जायेंगे। अमृतवेले के महत्व को समझकर चलने से हर कर्म महत्व प्रमाण होंगे। उस समय विशेष साइलेन्स रहती है इसलिए सहज स्मृति को समर्थवान बना सकते हो।
22.08.2021 तमोगुणी वायुमण्डल में अपनी स्थिति एकरस, अचल-अडोल रखने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव दिन-प्रतिदिन परिस्थितियां अति तमोप्रधान बननी हैं, वायुमण्डल और भी बिगड़ने वाला है। ऐसे वायुमण्डल में कमल पुष्प समान न्यारे रहना, अपनी स्थिति सतोप्रधान बनाना - इसके लिए इतनी हिम्मत वा शक्ति की आवश्यकता है। जब यह वरदान स्मृति में रहता कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान् हूँ तो चाहे प्रकृति द्वारा, चाहे लौकिक सम्बन्ध द्वारा, चाहे दैवी परिवार द्वारा कोई भी परीक्षा आ जाए - उसमें सदा एकरस, अचल-अडोल रहेंगे।
21.08.2021 सन्तुष्टता के त्रिमूर्ति सर्टीफिकेट द्वारा सदा सफलता प्राप्त करने वाले ऊंच पद के अधिकारी भव सदा सफल होने के लिए बाप और परिवार से ठीक कनेक्शन चाहिए। हर एक को तीन सर्टीफिकेट लेने हैं - बाप, आप और परिवार। परिवार को सन्तुष्ट करने के लिए छोटी सी बात याद रखो - कि रिगार्ड देने का रिकार्ड निरन्तर चलता रहे, इसमें निष्काम बनो। बाप को सन्तुष्ट करने के लिए सच्चे बनो। और स्वयं से सन्तुष्ट रहने के लिए सदा श्रीमत की लकीर के अन्दर रहो। ये तीन सर्टीफिकेट ऊंच पद का अधिकारी बना देंगे।
20.08.2021 फरियाद को याद में परिवर्तन करने वाले स्वत: और निरन्तर योगी भव संगमयुग की विशेषता है - अभी-अभी पुरूषार्थ, अभी-अभी प्रत्यक्षफल। अभी स्मृति स्वरूप अभी प्राप्ति का अनुभव। भविष्य की गॉरन्टी तो है ही लेकिन भविष्य से श्रेष्ठ भाग्य अभी का है। इस भाग्य के नशे में रहो तो स्वत: याद रहेगी। जहाँ याद है वहाँ फरियाद नहीं। क्या करें, कैसे करें, यह होता नहीं है, थोड़ी मदद दे दो - यह है फ़रियाद। तो फरियाद को छोड़कर स्वत: योगी निरन्तर योगी बनो।
19.08.2021 “पहले आप'' के पाठ द्वारा ताजधारी बनने वाले चतुरसुजान भव जैसे बापदादा अपने को ओबीडियन्ट सर्वेन्ट कहते हैं, सर्वेन्ट कहने से ताजधारी स्वत: बन जाते हैं, ऐसे आप बच्चे भी स्वयं नम्रचित बन दूसरे को श्रेष्ठ सीट दे दो, उनको सीट पर बिठायेंगे तो वह उतरकर आपको स्वत: ही बिठा देगा। अगर आप बैठने की कोशिश करेंगे तो वह बैठने नहीं देगा इसलिए बिठाना ही बैठना है। तो “पहले आप'' का पाठ पक्का करो, फिर संस्कार भी सहज ही मिल जायेंगे, ताजधारी भी बन जायेंगे - यही चतुरसुजान बनने का तरीका है, इसमें मेहनत भी नहीं प्राप्ति भी ज्यादा है।
18.08.2021 मेहमानपन की वृत्ति द्वारा प्रवृत्ति को श्रेष्ठ, स्टेज को ऊंचा बनाने वाले सदा उपराम भव जो स्वयं को मेहमान समझकर चलते हैं वे अपने देह रूपी मकान से भी निर्मोही हो जाते हैं। मेहमान का अपना कुछ नहीं होता, कार्य में सब वस्तुएं लगायेंगे लेकिन अपनेपन का भाव नहीं होगा। वे सब साधनों को अपनाते हुए भी जितना न्यारे उतना बाप के प्यारे रहते हैं। देह, देह के संबंध और वैभवों से सहज उपराम हो जाते हैं। जितना मेहमानपन की वृत्ति रहती उतनी प्रवृत्ति श्रेष्ठ और स्टेज ऊंची रहती है।
17.08.2021 विस्तार की रंग-बिरंगी बातों से किनारा कर मुश्किल को सहज बनाने वाले सहजयोगी भव जब बाप को देखने के बजाए बातों को देखने लग जाते हो तो कई क्वेश्चन उत्पन्न होते हैं और सहज बात भी मुश्किल अनुभव होने लगती है क्योंकि बातें हैं वृक्ष और बाप है बीज। जो विस्तार वाले वृक्ष को हाथ में उठाते हैं वह बाप को किनारे कर देते हैं, फिर विस्तार एक जाल बन जाता है जिसमें फंसते जाते हैं। बातों के विस्तार में रंग-बिरंगी बातें होती हैं जो अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं, इसलिए बीजरूप बाप की याद से बिन्दी लगाकर उससे किनारा कर लो तो सहज योगी बन जायेंगे। 16.08.2021 कर्मातीत स्टेज पर स्थित हो चारों ओर की सेवाओं को हैण्डल करने वाले सिद्धि स्वरूप भव आगे चलकर चारों ओर की सेवाओं के विस्तार को हैण्डल करने के लिए भिन्न-भिन्न साधन अपनाने पड़ेंगे क्योंकि उस समय पत्र व्यवहार या टेलीग्राम, टेलीफोन आदि काम नहीं करेंगे। ऐसे समय पर वायरलेस सेट चाहिए, इसके लिए अभी-अभी कर्मयोगी, अभी-अभी कर्मातीत स्टेज में स्थित रहने का अभ्यास करो तब चारों ओर संकल्प की सिद्धि द्वारा सेवा में सहयोगी बन सकेंगे। 15.08.2021 अपनी अलौकिक रूहानी वृत्ति द्वारा सर्व आत्माओं पर अपना प्रभाव डालने वाले मास्टर ज्ञान सूर्य भव जैसे कोई आकर्षण करने वाली चीज़ आस-पास वालों को अपनी तरफ आकर्षित करती है, सभी का अटेन्शन जाता है। वैसे जब आपकी वृत्ति अलौकिक, रूहानियत वाली होगी तो आपका प्रभाव अनेक आत्माओं पर स्वत: पड़ेगा। अलौकिक वृत्ति अर्थात् न्यारे और प्यारे पन की स्थिति स्वत: अनेक आत्माओं को आकर्षित करती है। ऐसी अलौकिक शक्तिशाली आत्मायें मास्टर ज्ञान सूर्य बन अपना प्रकाश चारों ओर फैलाती हैं।
14.08.2021 एवररेडी बन हर परिस्थिति रूपी पेपर में फुल पास होने वाले एवरहैपी भव जो एवररेडी हैं उन्हों का प्रैक्टिकल स्वरूप एवर हैपी होगा। कोई भी परिस्थिति रूपी पेपर वा प्राकृतिक आपदा द्वारा आया हुआ पेपर वा कोई भी शारीरिक कर्मभोग रूपी पेपर आ जाये - इन सब प्रकार के पेपर्स में फुल पास होने वाले को ही एवररेडी कहेंगे। जैसे समय किसके लिए रूकता नहीं, ऐसे कभी कोई भी रूकावट रोक न सके, माया के सूक्ष्म वा स्थूल विघ्न एक सेकण्ड में समाप्त हो जाएं तब एवरहैपी रह सकेंगे। 13.08.2021 कल्याण की वृत्ति और शुभचिंतक भाव द्वारा विश्व कल्याण के निमित्त बनने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव तीव्र पुरूषार्थी वह हैं जो सभी के प्रति कल्याण की वृत्ति और शुभचिंतक भाव रखे। भल कोई बार-बार गिराने की कोशिश करे, मन को डगमग करे, विघ्न रूप बने फिर भी आपका उसके प्रति सदा शुभचिंतक का अडोल भाव हो, बात के कारण भाव न बदले। हर परिस्थिति में वृत्ति और भाव यथार्थ हो तो आपके ऊपर उसका प्रभाव नहीं पड़ेगा। फिर कोई भी व्यर्थ बातें देखने में ही नहीं आयेंगी, टाइम बच जायेगा। यही है विश्व कल्याणकारी स्टेज।
12.08.2021 आपस में एक दो की विशेषता देखने और वर्णन करने वाले श्रेष्ठता सम्पन्न होलीहंस भव संगमयुग पर हर बच्चे को नॉलेज द्वारा कोई न कोई विशेष गुण अवश्य प्राप्त है, इसलिए होलीहंस बन हर एक की विशेषता को देखो और वर्णन करो। जिस समय किसी की कमजोरी देखते या सुनते हो तो समझना चाहिए कि यह कमजोरी इनकी नहीं, मेरी है क्योंकि हम सब एक ही बाप के, एक ही परिवार के, एक ही माला के मणके हैं। जैसे अपनी कमजोरी को प्रसिद्ध नहीं करना चाहते ऐसे दूसरे की कमजोरी का भी वर्णन नहीं करो। होलीहंस माना विशेषताओं को ग्रहण करना और कमजोरियों को मिटाना।
11.08.2021 हर एक की राय को रिगार्ड दे विश्व द्वारा रिगार्ड प्राप्त करने वाले बालक सो मालिक भव चाहे कोई छोटा हो या बड़ा - आप हर एक की राय को रिगार्ड जरूर दो क्योंकि कोई की भी राय को ठुकराना गोया अपने आपको ठुकराना है इसलिए यदि किसी के व्यर्थ को कट भी करना है तो पहले उसे रिगार्ड दो, स्वमान दे फिर शिक्षा दो। यह भी तरीका है। जब ऐसे रिगार्ड देने के संस्कार भर जायेंगे तो विश्व से आपको रिगार्ड मिलेगा, इसके लिए बालक सो मालिक, मालिक सो बालक बनो। बुद्धि बेहद में शुभ कल्याण की भावना से सम्पन्न हो।
10.08.2021 सत्यता की महानता द्वारा सदा खुशी के झूले में झूलने वाले अथॉरिटी स्वरूप भव सत्यता की अथॉरिटी स्वरूप बच्चों का गायन है - सच तो बिठो नच। सत्य की नांव हिलेगी लेकिन डूब नहीं सकती। आपको भी कोई कितना भी हिलाने की कोशिश करे लेकिन आप सत्यता की महानता से और ही खुशी के झूले में झूलते हो। वह आपको नहीं हिलाते लेकिन झूले को हिलाते हैं। यह हिलाना नहीं लेकिन झुलाना है इसलिए आप उन्हें धन्यवाद दो कि आप झुलाओ और हम बाप के साथ झूलें।
09.08.2021 दिल में सदा एक राम को बसाकर सच्ची सेवा करने वाले मायाजीत, विजयी भव हनूमान की विशेषता दिखाते हैं कि वह सदा सेवाधारी, महावीर था, इसलिए खुद नहीं जला लेकिन पूंछ द्वारा लंका जला दी। तो यहाँ भी जो सदा सेवाधारी हैं वही माया के अधिकार को खत्म कर सकते हैं, जो सेवाधारी नहीं वह माया के राज्य को जला नहीं सकते। हनूमान के दिल में सदा एक राम बसता था, तो बाप के सिवाए और कोई दिल में न हो, अपने देह की स्मृति भी न हो तब माया-जीत, विजयी बनेंगे।
08.08.2021 मनन शक्ति द्वारा हर प्वाइंट के अनुभवी बनने वाले सदा शक्तिशाली मायाप्रूफ, विघ्नप्रूफ भव जैसे शरीर की शक्ति के लिए पाचन शक्ति वा हजम करने की शक्ति आवश्यक है ऐसे आत्मा को शक्तिशाली बनाने के लिए मनन शक्ति चाहिए। मनन शक्ति द्वारा अनुभव स्वरूप हो जाना - यही सबसे बड़े से बड़ी शक्ति है। ऐसे अनुभवी कभी धोखा नहीं खा सकते, सुनी सुनाई बातों में विचलित नहीं हो सकते। अनुभवी सदा सम्पन्न रहते हैं। वह सदा शक्तिशाली, मायाप्रूफ, विघ्न प्रूफ बन जाते हैं।
07.08.2021 डबल लाइट बन कर्मातीत अवस्था का अनुभव करने वाले कर्मयोगी भव जैसे कर्म में आना स्वाभाविक हो गया है वैसे कर्मातीत होना भी स्वाभाविक हो जाए, इसके लिए डबल लाइट रहो। डबल लाइट रहने के लिए कर्म करते हुए स्वयं को ट्रस्टी समझो और आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, इन्हीं दो बातों का अटेन्शन रखने से सेकण्ड में कर्मातीत, सेकेण्ड में कर्मयोगी बन जायेंगे। निमित्त मात्र कर्म करने के लिए कर्मयोगी बनो फिर कर्मातीत अवस्था का अनुभव करो।
06.08.2021 सहन शक्ति की विशेषता द्वारा दूसरे के संस्कारों को परिवर्तन करने वाले दृढ़ संकल्पधारी भव जैसे ब्रह्मा बाप ने ज्ञानी और अज्ञानी आत्माओं द्वारा इनसल्ट सहन कर उसे परिवर्तन किया तो फालो फादर करो, इसके लिए अपने संकल्पों में सिर्फ दृढ़ता को धारण करो। यह नहीं सोचो कि कहाँ तक होगा। सिर्फ थोड़ा पहले लगता है कैसे होगा, कहाँ तक सहन करेंगे। लेकिन अगर आपके लिए कोई कुछ बोलता भी है तो आप चुप रहो, सहन कर लो तो वह भी बदल जायेगा। सिर्फ दिलशिकस्त नहीं बनो।
05.08.2021 रहम की दृष्टि द्वारा घृणा दृष्टि को समाप्त करने वाले नॉलेजफुल भव जो बच्चे एक दो के संस्कारों को जानकर संस्कार परिवर्तन की लगन में रहते हैं, कभी यह नहीं सोचते कि यह तो हैं ही ऐसे, उन्हें कहेंगे नॉलेजफुल। वे स्वयं को देखते और निर्विघ्न रहते हैं। उनके संस्कार बाप के समान रहमदिल के होते हैं। रहम की दृष्टि, घृणा दृष्टि को समाप्त कर देती है। ऐसे रहमदिल बच्चे कभी आपस में खिट-खिट नहीं करते। वे सपूत बनकर सबूत देते हैं।
04.08.2021 पवित्रता के आधार पर सुख-शान्ति का अनुभव करने वाले नम्बरवन अधिकारी भव जो बच्चे “पवित्रता'' की प्रतिज्ञा को सदा स्मृति में रखते हैं, उन्हें सुख-शान्ति की अनुभूति स्वत: होती है। पवित्रता का अधिकार लेने में नम्बरवन रहना अर्थात् सर्व प्राप्तियों में नम्बरवन बनना इसलिए पवित्रता के फाउण्डेशन को कभी कमजोर नहीं करना तब ही लास्ट सो फास्ट जायेंगे। इसी धर्म में सदा स्थित रहना-कुछ भी हो जाए - चाहे व्यक्ति, चाहे प्रकृति, चाहे परिस्थिति कितना भी हिलाये, लेकिन धरत परिये धर्म न छोड़िये।
03.08.2021 बाप के संस्कारों को अपना निजी संस्कार बनाने वाले व्यर्थ वा पुराने संस्कारों से मुक्त भव कोई भी व्यर्थ संकल्प वा पुराने संस्कार देह-अभिमान के संबंध से हैं, आत्मिक स्वरूप के संस्कार बाप समान होंगे। जैसे बाप सदा विश्व कल्याणकारी, परोपकारी, रहमदिल, वरदाता....है, ऐसे स्वयं के संस्कार नेचुरल बन जाएं। संस्कार बनना अर्थात् संकल्प, बोल और कर्म स्वत: उसी प्रमाण चलना। जीवन में संस्कार एक चाबी हैं जिससे स्वत: चलते रहते हैं। फिर मेहनत करने की जरूरत नहीं रहती।
02.08.2021 “मैं पन'' का त्याग कर सेवा में सदा खोये रहने वाले त्यागमूर्त, सेवाधारी भव सेवाधारी सेवा में सफलता की अनुभूति तभी कर सकते हैं जब “मैं पन'' का त्याग हो। मैं सेवा कर रही हूँ, मैंने सेवा की - इस सेवा भाव का त्याग। मैंने नहीं की लेकिन मैं करनहार हूँ, करावनहार बाप है। “मैं पन'' बाबा के लव में लीन हो जाए - इसको कहा जाता है सेवा में सदा खोये रहने वाले त्याग-मूर्त सच्चे सेवाधारी। कराने वाला करा रहा है, हम निमित्त हैं। सेवा में “मैं पन'' मिक्स होना अर्थात् मोहताज बनना। सच्चे सेवाधारी में यह संस्कार हो नहीं सकते।
01.08.2021 हद की जिम्मेवारियों को बेहद में परिवर्तन करने वाले स्मृति स्वरूप नष्टोमोहा भव नष्टोमोहा बनने के लिए सिर्फ अपने स्मृति स्वरूप को परिवर्तन करो। मोह तब आता है जब यह स्मृति रहती है कि हम गृहस्थी हैं, हमारा घर, हमारा सम्बन्ध है। अब इस हद की जिम्मेवारी को बेहद की जिम्मेवारी में परिवर्तन कर दो। बेहद की जिम्मेवारी निभायेंगे तो हद की स्वत: पूरी हो जायेगी। लेकिन यदि बेहद की जिम्मेवारी को भूल सिर्फ हद की जिम्मेवारी निभाते हो तो उसे और ही बिगाड़ते हो क्योंकि वह फर्ज, मोह का मर्ज हो जाता है इसलिए अपने स्मृति स्वरूप को परिवर्तन कर नष्टोमोहा बनो।
31.07.2021 अपने शान्त स्वरूप स्टेज द्वारा शान्ति की किरणें फैलाने वाले मास्टर शान्ति सागर भव वर्तमान समय विश्व के मैजारिटी आत्माओं को सबसे ज्यादा आवश्यकता है - सच्चे शान्ति की। अशान्ति के अनेक कारण दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं और बढ़ते जायेंगे। अगर स्वयं अशान्त नहीं भी होंगे तो औरों के अशान्ति का वायुमण्डल, वातावरण शान्त अवस्था में बैठने नहीं देगा। अशान्ति के तनाव का अनुभव बढ़ेगा। ऐसे समय पर आप मास्टर शान्ति के सागर बच्चे अशान्ति के संकल्पों को मर्ज कर विशेष शान्ति के वायब्रेशन फैलाओ।
30.07.2021 निरन्तर बाप के साथ की अनुभूति द्वारा हर सेकण्ड, हर संकल्प में सहयोगी बनने वाले सहजयोगी भव जैसे शरीर और आत्मा का जब तक पार्ट है तब तक अलग नहीं हो पाती है, ऐसे बाप की याद बुद्धि से अलग न हो, सदा बाप का साथ हो, दूसरी कोई भी स्मृति अपने तरफ आकर्षित न करे - इसको ही सहज और स्वत: योगी कहा जाता है। ऐसा योगी हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर वचन, हर कर्म में सहयोगी होता है। सहयोगी अर्थात् जिसका एक संकल्प भी सहयोग के बिना न हो। ऐसे योगी और सहयोगी शक्तिशाली बन जाते हैं।
29.07.2021 उपराम और एवररेडी बन बुद्धि द्वारा अशरीरी पन का अभ्यास करने वाले सर्व कलाओं में सम्पन्न भव जैसे सर्कस में कला दिखाने वाले कलाबाज का हर कर्म कला बन जाता है। वे कलाबाज शरीर के कोई भी अंग को जैसे चाहें, जहाँ चाहें, जितना समय चाहें मोल्ड कर सकते हैं, यही कला है। आप बच्चे बुद्धि को जब चाहो जितना समय, जहाँ स्थित करने चाहो वहाँ स्थित कर लो - यही सबसे बड़ी कला है। इस एक कला से 16 कला सम्पन्न बन जायेंगे। इसके लिए ऐसे उपराम और एवररेडी बनो जो आर्डर प्रमाण एक सेकण्ड में अशरीरी बन जाओ। युद्ध में समय न जाये।
28.07.2021 आलमाइटी बाप की अथॉरिटी से हर कार्य को सहज करने वाले सदा अटल निश्चयबुद्धि भव हम सबसे श्रेष्ठ आलमाइटी बाप की अथॉरिटी से सब कार्य करने वाले हैं, यह इतना अटल निश्चय हो जो कोई टाल ना सके, इससे कितना भी कोई बड़ा कार्य करते अति सहज अनुभव करेंगे। जैसे आजकल साइंस ने ऐसी मशीनरी तैयार की है जो कोई भी प्रश्न का उत्तर सहज ही मिल जाता है, दिमाग चलाने से छूट जाते हैं। ऐसे आलमाइटी अथॉरिटी को सामने रखेंगे तो सब प्रश्नों का उत्तर सहज मिल जायेगा और सहज मार्ग की अनुभूति होगी।
27.07.2021 अपनी सम्पूर्णता के आधार पर समय को समीप लाने वाले मास्टर रचयिता भव समय आपकी रचना है, आप मास्टर रचयिता हो। रचयिता रचना के आधार पर नहीं होते। रचयिता रचना को अधीन करते हैं इसलिए यह कभी नहीं सोचो कि समय आपेही सम्पूर्ण बना देगा। आपको सम्पूर्ण बन समय को समीप लाना है। वैसे कोई भी विघ्न आता है तो समय प्रमाण जायेगा जरूर लेकिन समय से पहले परिवर्तन शक्ति द्वारा उसे परिवर्तन कर दो - तो उसकी प्राप्ति आपको हो जायेगी। समय के आधार पर परिवर्तन किया तो उसकी प्राप्ति आपको नहीं होगी।
26.07.2021 परिवर्तन शक्ति द्वारा सर्व की शुक्रिया के पात्र बनने वाले विघ्न जीत भव यदि आपका कोई अपकार करे तो आप एक सेकण्ड में अपकार को उपकार में परिवर्तित कर दो, कोई अपने संस्कार-स्वभाव के रूप में परीक्षा बनकर सामने आये तो आप एक की स्मृति से ऐसी आत्मा के प्रति भी रहमदिल के श्रेष्ठ संस्कार-स्वभाव धारण कर लो, कोई देहधारी दृष्टि से सामने आये तो उनकी दृष्टि को आत्मिक दृष्टि में परिवर्तित कर लो, ऐसे परिवर्तन करने की युक्ति आ जाए तो विघ्न जीत बन जायेंगे। फिर सम्पर्क में आने वाली सर्व आत्मायें आपका शुक्रिया मानेंगी।
25.07.2021 श्रेष्ठ तकदीर की स्मृति द्वारा अपने समर्थ स्वरूप में रहने वाले सूर्यवंशी पद के अधिकारी भव जो अपनी श्रेष्ठ तकदीर को सदा स्मृति में रखते हैं वह समर्थ स्वरूप में रहते हैं। उन्हें सदा अपना अनादि असली स्वरूप स्मृति में रहता है। कभी नकली फेस धारण नहीं करते। कई बार माया नकली गुण और कर्तव्य का स्वरूप बना देती है। किसको क्रोधी, किसको लोभी, किसको दु:खी, किसको अशान्त बना देती है - लेकिन असली स्वरूप इन सब बातों से परे है। जो बच्चे अपने असली स्वरूप में स्थित रहते हैं वह सूर्यवंशी पद के अधिकारी बन जाते हैं।
24.07.2021 त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित रह सदा अचल और साक्षी रहने वाले नम्बरवन तकदीरवान भव त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित होकर हर संकल्प, हर कर्म करो और हर बात को देखो, यह क्यों, यह क्या - यह क्वेश्चन मार्क न हो, सदा फुलस्टॉप। नथिंगन्यु। हर आत्मा के पार्ट को अच्छी तरह से जानकर पार्ट में आओ। आत्माओं के सम्बन्ध-सम्पर्क में आते न्यारे और प्यारे पन की समानता रहे तो हलचल समाप्त हो जायेगी। ऐसे सदा अचल और साक्षी रहना - यही है नम्बरवन तकदीरवान आत्मा की निशानी।
23.07.2021 कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति और पोजीशन के नशे द्वारा कल्प-कल्प के अधिकारी भव “मैं और मेरा बाबा'' - इस स्मृति में कम्बाइन्ड रहो तथा यह श्रेष्ठ पोजीशन सदा स्मृति में रहे कि हम आज ब्राह्मण हैं कल देवता बनेंगे। हम सो, सो हम का मन्त्र सदा याद रहे तो इस नशे और खुशी में पुरानी दुनिया सहज भूल जायेगी। सदा यही खुमारी रहेगी कि हम ही कल्प-कल्प की अधिकारी आत्मा हैं। हम ही थे, हम ही हैं और हम ही कल्प-कल्प होंगे।
22.07.2021 पहली श्रीमत पर विशेष अटेन्शन दे फाउण्डेशन को मजबूत बनाने वाले सहजयोगी भव
बापदादा की नम्बरवन श्रीमत है कि अपने को आत्मा समझकर बाप को याद करो। यदि आत्मा के बजाए अपने को साधारण शरीरधारी समझते हो तो याद टिक नहीं सकती। वैसे भी कोई दो चीजों को जब जोड़ा जाता है तो पहले समान बनाते हैं, ऐसे ही आत्मा समझकर याद करो तो याद सहज हो जायेगी। यह श्रीमत ही मुख्य फाउण्डेशन है। इस बात पर बार-बार अटेन्शन दो तो सहजयोगी बन जायेंगे।
21.07.2021 सत्यता की शक्ति द्वारा प्रकृति वा विश्व को सतोप्रधान बनाने वाले मास्टर विधि-विधाता भव जब आप बच्चे सत्यता की शक्ति को धारण कर मास्टर विधि विधाता बनते हो तो प्रकृति सतोप्रधान बन जाती है, युग सतयुग बन जाता है। सर्व आत्मायें सद्गति की तकदीर बना लेती है। आपकी सत्यता पारस के समान है। जैसे पारस लोहे को पारस बना देता है, ऐसे सत्यता की शक्ति आत्मा को, प्रकृति को, समय को, सर्व सामग्री को, सर्व सम्बन्ध को, संस्कारों को, आहार-व्यवहार को सतोप्रधान बना देती है। 20.07.2021 सदा मनन द्वारा मगन अवस्था के सागर में समाने का अनुभव करने वाले अनुभवी मूर्त भव अनुभवों को बढ़ाने का आधार है मनन शक्ति। मनन वाला स्वत: मगन रहता है। मगन अवस्था में योग लगाना नहीं पड़ता लेकिन निरन्तर लगा रहता है, मेहनत नहीं करनी पड़ती। मगन अर्थात् मुहब्बत के सागर में समाया हुआ, ऐसा समाया हुआ जो कोई अलग कर नहीं सकता। तो मेहनत से छूटो, सागर के बच्चे हो तो अनुभवों के तलाब में नहीं नहाओ लेकिन सागर में समा जाओ तब कहेंगे अनुभवी मूर्त।
19.07.2021 अपने अनादि आदि स्वरूप की स्मृति से निर्बन्धन बनने और बनाने वाले मरजीवा भव जैसे बाप लोन लेता है, बंधन में नहीं आता, ऐसे आप मरजीवा जन्म वाले बच्चे शरीर के, संस्कारों के, स्वभाव के बंधनों से मुक्त बनो, जब चाहें जैसे चाहें वैसे संस्कार अपने बना लो। जैसे बाप निर्बन्धन है ऐसे निर्बन्धन बनो। मूलवतन की स्थिति में स्थित होकर फिर नीचे आओ। अपने अनादि आदि स्वरूप की स्मृति में रहो, अवतरित हुई आत्मा समझकर कर्म करो तो और भी आपको फालो करेंगे।
18.07.2021 किसी की कमी, कमजोरी को न देख अपने गुण व शक्तियों का सहयोग देने वाले मास्टर दाता भव मास्टर दाता वह है जो सदा इसी रूहानी भावना में रहते कि सर्व रूहें हमारे समान वर्से के अधिकारी बन जायें। किसी की भी कमी कमजोरी को न देख, वे अपने धारण किये हुए गुणों का, शक्तियों का सहयोग देते हैं। यह ऐसा है ही - इस भावना के बजाए मैं इसको भी बाप समान बनाऊं, यह शुभ भावना हो। साथ-साथ यही श्रेष्ठ कामना हो कि यह सर्व आत्मायें कंगाल, दु:खी, अशान्त से सदा शान्त, सुख-रूप माला-माल बन जाएं - तब कहेंगे मास्टर दाता।
17.07.2021 रूहे गुलाब बन दूर-दूर तक रूहानी खुशबू फैलाने वाले रूहानी सेवाधारी भव रूहानी रूहे गुलाब अपनी रूहानी वृत्ति द्वारा रूहानियत की खुशबू दूर-दूर तक फैलाते हैं। उनकी दृष्टि में सदा सुप्रीम रूह समाया हुआ रहता है। वे सदा रूह को देखते, रूह से बोलते। मैं रूह हूँ, सदा सुप्रीम रूह की छत्रछाया में चल रहा हूँ, मुझ रूह का करावनहार सुप्रीम रूह है, ऐसे हर सेकेण्ड हजूर को हाजिर अनुभव करने वाले सदा रूहानी खुशबू में अविनाशी और एकरस रहते हैं। यही है रूहानी सेवाधारी की नम्बरवन विशेषता।
फालो फादर और सी फादर के महामन्त्र द्वारा एकरस स्थिति बनाने वाले श्रेष्ठ पुरूषार्थी भव “सी फादर-फालो फादर'' इस मंत्र को सदा सामने रखते हुए चढ़ती कला में चलते चलो, उड़ते चलो। कभी भी आत्माओं को नहीं देखना क्योंकि आत्मायें सब पुरूषार्थी हैं, पुरूषार्थी में अच्छाई भी होती और कुछ कमी भी होती है, सम्पन्न नहीं, इसलिए फालो फादर न कि ब्रदर सिस्टर। तो जैसे फादर एकरस है ऐसे फालो करने वाले एकरस स्वत: हो जायेंगे।
15.07.2021 संगठन में एकमत और एकरस स्थिति द्वारा सफलता प्राप्त करने वाले सच्चे स्नेही भव संगठन में एक ने कहा दूसरे ने माना - यह है सच्चे स्नेह का रेसपान्ड। ऐसे स्नेही बच्चों का एग्जाम्पल देख और भी सम्पर्क में आने के लिए हिम्मत रखते हैं। संगठन भी सेवा का साधन बन जाता है। जहाँ माया देखती है कि इनकी युनिटी अच्छी है, घेराव है तो वहाँ आने की हिम्मत नहीं रखती। एकमत और एक-रस स्थिति के संस्कार ही सतयुग में एक राज्य की स्थापना करते हैं।
14.07.2021 याद के आधार द्वारा माया की कीचड़ से परे रहने वाले सदा चियरफुल भव कोई कैसी भी बात सामने आये सिर्फ बाप के ऊपर छोड़ दो। जिगर से कहो - “बाबा''। तो बात खत्म हो जायेगी। यह बाबा शब्द दिल से कहना ही जादू है। माया पहले-पहले बाप को ही भुलाती है इसलिए सिर्फ इस बात पर अटेन्शन दो तो कमल पुष्प के समान अपने को अनुभव करेंगे। याद के आधार पर माया के समस्याओं की कीचड़ से सदा परे रहेंगे। कभी किसी भी बात में हलचल में नहीं आयेंगे, सदा एक ही मूड होगी चियरफुल।
13.07.2021 ज्ञान की प्वाइन्ट्स को हर रोज़ रिवाइज कर समाधान स्वरूप बनने वाले बेगमपुर के बादशाह भव ज्ञान की प्वॉइन्ट्स जो डायरियों में अथवा बुद्धि में रहती हैं उन्हें हर रोज़ रिवाइज़ करो और उन्हें अनुभव में लाओ तो किसी भी प्रकार की समस्या का सहज ही समाधान कर सकेंगे। कभी भी व्यर्थ संकल्पों के हेमर से समस्या के पत्थर को तोड़ने में समय नहीं गंवाओ। “ड्रामा'' शब्द की स्मृति से हाई जम्प दे आगे बढ़ो। फिर ये पुराने संस्कार आपके दास बन जायेंगे, लेकिन पहले बादशाह बनो, तख्तनशीन बनो।
12.07.2021 व्यक्त में रहते अव्यक्त फरिश्ते रूप का साक्षात्कार कराने वाले सफेद वस्त्रधारी और सफेद लाइटधारी भव जैसे अभी चारों ओर यह आवाज फैल रहा है कि यह सफेद वस्त्रधारी कौन हैं और कहाँ से आये हैं! ऐसे अब चारों ओर फरिश्ते रूप का साक्षात्कार कराओ - इसको कहा जाता है डबल सेवा का रूप। जैसे बादल चारों ओर छा जाते हैं, ऐसे चारों ओर फरिश्ते रूप से प्रगट हो जाओ, जहाँ भी देखें तो फरिश्ते ही नज़र आयें। लेकिन यह तब होगा जब शरीर से डिटैच होकर अन्त:वाहक शरीर से चक्र लगाने के अभ्यासी होंगे। मन्सा पावरफुल होगी।
11.07.2021 ड्रामा की प्वाइंट के अनुभव द्वारा सदा साक्षीपन की स्टेज पर रहने वाले अचल अडोल भव ड्रामा की प्वाइंट के जो अनुभवी हैं वे सदा साक्षीपन की स्टेज पर स्थित रह एकरस, अचल-अडोल स्थिति का अनुभव करते हैं। ड्रामा के प्वाइंट की अनुभवी आत्मा कभी भी बुरे में बुराई को न देख अच्छाई ही देखेगी अर्थात् स्व-कल्याण का रास्ता दिखाई देगा। अकल्याण का खाता खत्म हुआ। कल्याणकारी बाप के बच्चे हैं, कल्याणकारी युग है - इस नॉलेज और अनुभव की अथॉरिटी से अचल-अडोल बनो।
10.07.2021 स्वयं को जिम्मेवार समझकर हर कर्म यथार्थ विधि से करने वाले सम्पूर्ण सिद्धि स्वरूप भव इस समय आप संगमयुगी श्रेष्ठ आत्माओं का हर श्रेष्ठ कर्म सारे कल्प के लिए विधान बन रहा है। तो स्वयं को विधान के रचयिता समझकर हर कर्म करो, इससे अलबेलापन स्वत: समाप्त हो जायेगा। संगमयुग पर हम विधान के रचयिता, जिम्मेवार आत्मा हैं - इस निश्चय से हर कर्म करो तो यथार्थ विधि से किये हुए कर्म की सम्पूर्ण सिद्धि अवश्य प्राप्त होगी।
09.07.2021 सदा साथीपन की स्मृति और साक्षी स्टेज का अनुभव करने वाले शिवमई शक्ति स्वरूप कम्बाइन्ड भव जैसे आत्मा और शरीर दोनों का साथ है, जब तक इस सृष्टि पर पार्ट है तब तक अलग नहीं हो सकते, ऐसे ही शिव और शक्ति दोनों का इतना ही गहरा सम्बन्ध है। जो सदा शिव मई शक्ति स्वरूप में स्थित होकर चलते हैं तो उनकी लगन में माया विघ्न डाल नहीं सकती। वे सदा साथीपन का और साक्षी स्टेज का अनुभव करते हैं। ऐसे अनुभव होता है जैसे कोई साकार में साथ हो।
08.07.2021 गम की दुनिया सामने होते हुए भी बेगमपुर की बादशाही का अनुभव करने वाले अष्ट शक्ति स्वरूप भव गम और बेगम की अभी ही नॉलेज है, गम की दुनिया सामने होते भी सदा बेगमपुर के बादशाही का अनुभव करना - यही अष्ट शक्ति स्वरूप, कर्मेन्द्रिय जीत बच्चों की निशानी है। अभी ही बाप द्वारा सर्वशक्तियों की प्राप्ति होती है लेकिन अगर कोई न कोई संगदोष वा कोई कर्मेन्द्रिय के वशीभूत हो अपनी शक्ति खो लेते हो तो जो बेगमपुर का नशा वा खुशी प्राप्त है वह स्वत: ही खो जाती है। बेगमपुर के बादशाह भी कंगाल बन जाते हैं।
07.07.2021 धर्म और कर्म दोनों का ठीक बैलेन्स रखने वाले दिव्य वा श्रेष्ठ बुद्धिवान भव कर्म करते समय धर्म अर्थात् धारणा भी सम्पूर्ण हो तो धर्म और कर्म दोनों का बैलेन्स ठीक होने से प्रभाव बढ़ेगा। ऐसे नहीं जब कर्म समाप्त हो तब धारणा स्मृति में आये। बुद्धि में दोनों बातों का बैलेन्स ठीक हो तब कहेंगे श्रेष्ठ वा दिव्य बुद्धिवान। नहीं तो साधारण बुद्धि, कर्म भी साधारण, धारणायें भी साधारण होती हैं। तो साधारणता में समानता नहीं लानी है लेकिन श्रेष्ठता में समानता हो। जैसे कर्म श्रेष्ठ वैसे धारणा भी श्रेष्ठ हो।
06.07.2021 साकार रूप में बापदादा को सम्मुख अनुभव करने वाले कम्बाइन्ड रूपधारी भव जैसे शिवशक्ति कम्बाइन्ड है, ऐसे पाण्डवपति और पाण्डव कम्बाइन्ड हैं। जो ऐसे कम्बाइन्ड रूप में रहते हैं उनके आगे बापदादा साकार में सर्व सम्बन्धों से सामने होते हैं। अभी दिनप्रतिदिन और भी अनुभव करेंगे कि जैसे बापदादा सामने आये, हाथ पकड़ा, बुद्धि से नहीं आंखों से देखेंगे, अनुभव होगा। लेकिन सिर्फ एक बाप दूसरा न कोई, यह पाठ पक्का हो फिर तो जैसे परछाई घूमती है ऐसे बापदादा आंखों से हट नहीं सकते, सदा सम्मुख की अनुभूति होगी।
05.07.2021 घबराने की डांस छोड़ सदा खुशी की डांस करने वाले मास्टर नॉलेजफुल भव जो बच्चे मास्टर नॉलेजफुल हैं वह कभी घबराने की डांस नहीं कर सकते। सेकण्ड में सीढ़ी नीचे, सेकण्ड में ऊपर अब यह संस्कार चेंज करो तो बहुत फास्ट जायेंगे। सिर्फ मिली हुई अथॉरिटी को, नॉलेज को, परिवार के सहयोग को यूज़ करो, बाप के हाथ में हाथ देकर चलते रहो तो खुशी की डांस करते रहेंगे, घबराने की डांस हो नहीं सकती। लेकिन जब माया का हाथ पकड़ लेते हो तो वह डांस होती है।
04.07.2021 कनफ्यूज़ होने के बजाए लूज़ कनेक्शन को ठीक करने वाले समस्या मुक्त भव सभी समस्याओं का मूल कारण कनेक्शन लूज़ होना है। सिर्फ कनेक्शन को ठीक कर दो तो सर्व शक्तियां आपके आगे घूमेंगी। यदि कनेक्शन जोड़ने में एक दो मिनट लग भी जाते हैं तो हिम्मत हारकर कनफ्यूज न हो जाओ। निश्चय के फाउन्डेशन को हिलाओ नहीं। मैं बाबा का, बाबा मेरा - इस आधार से फाउण्डेशन को पक्का करो तो समस्या मुक्त बन जायेंगे।
03.07.2021 “एक बाप दूसरा न कोई'' इस पाठ की स्मृति से एकरस स्थिति बनाने वाली श्रेष्ठ आत्मा भव “एक बाप दूसरा न कोई'' यह पाठ निरन्तर याद हो तो स्थिति एकरस बन जायेगी क्योंकि नॉलेज तो सब मिल गई है, अनेक प्वाइंट्स हैं, लेकिन प्वाइंट्स होते हुए प्वाइंट रूप में रहें - यह है उस समय की कमाल जिस समय कोई नीचे खींच रहा हो।
कभी बात नीचे खीचेंगी, कभी कोई व्यक्ति, कभी कोई चीज़, कभी वायुमण्डल.....यह तो होगा ही। लेकिन सेकण्ड में यह सब विस्तार समाप्त हो एकरस स्थिति रहे - तब कहेंगे श्रेष्ठ आत्मा भव के वरदानी।
02.07.2021 चेकिंग करने की विशेषता को अपना निजी संस्कार बनाने वाले महान आत्मा भव जो भी संकल्प करो, बोल बोलो, कर्म करो, सम्बन्ध वा सम्पर्क में आओ सिर्फ यह चेकिंग करो कि यह बाप समान है! पहले मिलाओ फिर प्रैक्टिकल में लाओ। जैसे स्थूल में भी कई आत्माओं के संस्कार होते हैं, पहले चेक करेंगे फिर स्वीकार करेंगे। ऐसे आप महान पवित्र आत्मायें हो, तो चेकिंग की मशीनरी तेज करो। इसे अपना निजी संस्कार बना दो - यही सबसे बड़ी महानता है।
01.07.2021 अपने अनादि-आदि रीयल रूप को रियलाइज करने वाले सम्पूर्ण पवित्र भव आत्मा के अनादि और आदि दोनों काल का ओरीज्नल स्वरूप पवित्र है। अपवित्रता आर्टीफिशल, शूद्रों की देन है। शूद्रों की चीज़ ब्राह्मण यूज़ नहीं कर सकते इसलिए सिर्फ यही संकल्प करो कि अनादि-आदि रीयल रूप में मैं पवित्र आत्मा हूँ, किसी को भी देखो तो उसके रीयल रूप को देखो, रीयल को रियलाइज करो, तो सम्पूर्ण पवित्र बन फर्स्टक्लास वा एयरकन्डीशन की टिकेट के अधिकारी बन जायेंगे।
30.06.2021 सम्पूर्ण स्टेज और स्टेटस की स्मृति से सदा ऊंच कर्तव्य करने वाले बाप समान भव सदैव यह स्मृति में रहे कि मैं हर समय, हर सेकण्ड, हर कर्म करते हुए स्टेज पर हूँ तो हर कर्म पर अटेन्शन रहने से सम्पूर्ण स्टेज के नजदीक आ जायेंगे। साथ-साथ वर्तमान और भविष्य स्टेटस की स्मृति रहने से हर कर्म श्रेष्ठ होगा। यही दो स्मृतियां बाप समान बना देंगी। समानता में आने से एक दो के मन के संकल्पों को सहज ही कैच कर लेंगे। इसके लिए सिर्फ संकल्पों पर कन्ट्रोलिंग पावर चाहिए। अपने संकल्पों की मिक्सचर्टी न हो।
29.06.2021 न्यारे और प्यारे पन की योग्यता द्वारा लगावमुक्त बनने वाले सहजयोगी भव सहजयोगी जीवन का अनुभव करने के लिए ज्ञान सहित न्यारे बनो, सिर्फ बाहर से न्यारा नहीं बनना लेकिन मन का लगाव न हो। जितना जो न्यारा बनता उतना प्यारा अवश्य बन जाता है। न्यारी अवस्था प्यारी लगती है। जो बाहर के लगाव से न्यारे नहीं वह प्यारे बनने के बजाए परेशान होते हैं इसलिए सहजयोगी अर्थात् न्यारे और प्यारे पन की योग्यता वाले, सर्व लगावों से मुक्त।
28.06.2021 माया की नॉलेज से इनोसेंट और ज्ञान में सेंट बनने वाले सम्पूर्ण पवित्र भव जैसे सतयुगी आत्मायें विकारों की बातों की नॉलेज से इनोसेंट होती हैं, वही संस्कार स्पष्ट स्मृति में रहें तो माया की नॉलेज से इनोसेंट बन जायेंगे। लेकिन भविष्य संस्कार स्मृति में स्पष्ट तभी रहेंगे जब आत्मिक स्वरूप की स्मृति सदाकाल और स्पष्ट होगी। जैसे देह स्पष्ट दिखाई देती है वैसे अपनी आत्मा का स्वरूप स्पष्ट दिखाई दे अर्थात् अनुभव में आये तब कहेंगे माया से इनोसेंट और ज्ञान में सेंट अर्थात् सम्पूर्ण पवित्र।
27.06.2021 साथी और साक्षीपन की स्मृति द्वारा सब बन्धनों से मुक्त होने वाले सर्व शक्ति सम्पन्न भव सर्व शक्तियों से सम्पन्न बन अधीनता से परे होने के लिए दो शब्द सदा याद रहें - एक साक्षी दूसरा-साथी। इससे बन्धनमुक्त अवस्था जल्दी बन जायेगी। सर्वशक्तिवान बाप का साथ है तो सर्व शक्तियां स्वत: प्राप्त हो जाती हैं और साक्षी बनकर चलने से कोई भी बन्धन में फंसेंगे नहीं। निमित्त मात्र इस शरीर में रहकर कर्तव्य किया और साक्षी हो गये - इसका विशेष अभ्यास बढ़ाओ।
26.06.2021 एक बाप से योग रख सर्व का सहयोग प्राप्त करने वाले सच्चे योगी व सहयोगी भव जो जितना योगी है उतना उसे सर्व का सहयोग अवश्य प्राप्त होता है। योगी का कनेक्शन अथवा स्नेह बीज से होने के कारण स्नेह का रिटर्न सबका सहयोग प्राप्त हो जाता है। तो बीज से योग लगाने वाला, बीज को स्नेह का पानी देने वाला सर्व आत्माओं द्वारा सहयोग रूपी फल प्राप्त कर लेता है क्योंकि बीज से योग होने के कारण पूरे वृक्ष के साथ कनेक्शन हो जाता है।
25.06.2021 देह के भान को अर्पण कर समर्पण होने वाले योगयुक्त, बंधनमुक्त भव जो देह-अभिमान को अर्पण करता है उनका हर कर्म दर्पण बन जाता है। जैसे कोई चीज़ अर्पण की जाती है तो वह अर्पण की हुई चीज़ अपनी नहीं समझी जाती है। तो देह के भान को भी अर्पण करने से जब अपनापन मिट जाता है तो लगाव भी मिट जाता है। उन्हें ही सम्पूर्ण समर्पण कहा जाता है। ऐसे समर्पण होने वाले सदा योगयुक्त और बन्धनमुक्त होते हैं। उनका हर संकल्प, हर कर्म युक्तियुक्त होता है।
24.06.2021 अपने श्रेष्ठ स्वरूप वा श्रेष्ठ नशे में स्थित रह अलौकिकता का अनुभव कराने वाले अन्तर्मुखी भव जैसे सितारों के संगठन में विशेष सितारों की चमक दूर से ही न्यारी प्यारी लगती है, ऐसे आप सितारे साधारण आत्माओं के बीच में एक विशेष आत्मा दिखाई दो, साधारण रूप में होते असाधारण वा अलौकिक स्थिति हो तो संगठन के बीच में अल्लाह लोग दिखाई पड़ेंगे, इसके लिए अन्तर्मुखी बनकर फिर बाहरमुखता में आने का अभ्यास हो। सदैव अपने श्रेष्ठ स्वरूप वा नशे में स्थित होकर, नॉलेजफुल के साथ पावरफुल बनकर नॉलेज दो तब अनेक आत्माओं को अनुभवी बना सकेंगे।
23.06.2021 सोचना, बोलना और करना तीनों को समान बनाने वाले सर्वोत्तम पुरूषार्थी भव सभी शिक्षाओं का सार है - कि कोई भी कर्म से देखने, उठने, बैठने-चलने सोने से फरिश्ता-पन दिखाई दे, हर कर्म में अलौकिकता हो। कोई भी लौकिकता कर्म वा संस्कारों में न हो। सोचना, करना, बोलना सब समान हो। ऐसे नहीं कि सोचते तो थे कि यह न करें लेकिन कर लिया। जब तीनों ही एक समान और बाप समान हो तब कहेंगे श्रेष्ठ वा सर्वोत्तम पुरूषार्थी।
22.06.2021 त्रिकालदर्शी बन व्यर्थ संकल्प व संस्कारों का परिवर्तन करने वाले विश्व कल्याण-कारी भव जब मास्टर त्रिकालदर्शी बन संकल्प को कर्म में लायेंगे, तो कोई भी कर्म व्यर्थ नहीं होगा। इस व्यर्थ को बदलकर समर्थ संकल्प और समर्थ कार्य करना - इसको कहते हैं सम्पूर्ण स्टेज। सिर्फ अपने व्यर्थ संकल्पों वा विकर्मो को भस्म नहीं करना है लेकिन शक्ति रूप बन सारे विश्व के विकर्मो का बोझ हल्का करने व अनेक आत्माओं के व्यर्थ संकल्पों को मिटाने की मशीनरी तेज करो तब कहेंगे विश्व कल्याणकारी।
21.06.2021 वाचा द्वारा ज्ञान रत्नों का दान करने वाले मास्टर नॉलेजफुल भव जो वाचा द्वारा ज्ञान रत्नों का दान करते हैं उन्हें मास्टर नॉलेजफुल का वरदान प्राप्त होता है। उनके एक-एक शब्द की बहुत वैल्यु होती है। उनका एक-एक वचन सुनने के लिए अनेक आत्मायें प्यासी होती हैं। उनके हर शब्द में सेन्स (सार) भरा होता है। उन्हें विशेष खुशी की प्राप्ति होती है। उनके पास खजाना भरपूर रहता है इसलिए वे सदा सन्तुष्ट और हर्षित रहते हैं। उनके बोल प्रभावशाली होते जाते हैं। वाणी का दान करने से वाणी में बहुत गुण आ जाते हैं।
20.06.2021 सर्व रूपों से, सर्व सम्बन्धों से अपना सब कुछ बाप के आगे अर्पण करने वाले सच्चे स्नेही भव
जिससे अति स्नेह होता है, तो उस स्नेह के लिए सभी को किनारे कर सब कुछ उनके आगे अर्पण कर देते हैं, जैसे बाप का बच्चों से स्नेह है इसलिए सदाकाल के सुखों की प्राप्ति स्नेही बच्चों को कराते हैं, बाकी सबको मुक्तिधाम में बिठा देते हैं, ऐसे बच्चों के स्नेह का सबूत है सर्व रूपों, सर्व संबंधों से अपना सब कुछ बाप के आगे अर्पण करना। जहाँ स्नेह है वहाँ योग है और योग है तो सहयोग है। एक भी खजाने को मनमत से व्यर्थ नहीं गंवा सकते।
19.06.2021 सर्व आत्माओं पर स्नेह का राज्य करने वाले विश्व राज्य अधिकारी भव जो बच्चे वर्तमान समय सर्व आत्माओं के दिल पर स्नेह का राज्य करते हैं वही भविष्य में विश्व के राज्य का अधिकार प्राप्त करते हैं। अभी किसी पर आर्डर नहीं चलाना है। अभी से विश्व महाराजन नहीं बनना है, अभी विश्व सेवाधारी बनना है, स्नेह देना है। देखना है कि अपने भविष्य के खाते में स्नेह कितना जमा किया है। विश्व महाराजन बनने के लिए सिर्फ ज्ञान दाता नहीं बनना है इसके लिए सबको स्नेह अर्थात् सहयोग दो।
18.06.2021 हर शिक्षा को स्वरूप में लाकर सबूत देने वाले सपूत वा साक्षात्कार मूर्त भव जो बच्चे शिक्षाओं को सिर्फ शिक्षा की रीति से बुद्धि में नहीं रखते, लेकिन उन्हें स्वरूप में लाते हैं वह ज्ञान स्वरूप, प्रेम स्वरूप, आनंद स्वरूप स्थिति में स्थित रहते हैं। जो हर प्वाइंट को स्वरूप में लायेंगे वही प्वाइंट रूप में स्थित हो सकेंगे। प्वाइंट का मनन अथवा वर्णन करना सहज है लेकिन स्वरूप बन अन्य आत्माओं को भी स्वरूप का अनुभव कराना - यही है सबूत देना अर्थात् सपूत वा साक्षात्कार मूर्त बनना।
17.06.2021 अन्तर्मुखी बन अपने समय और संकल्पों की बचत करने वाले विघ्न जीत भव कोई भी नई पावरफुल इन्वेन्शन करते हैं तो अन्डरग्राउण्ड करते हैं। आप भी जितना अन्तर्मुखी अर्थात् अन्डरग्राउण्ड रहेंगे उतना वायुमण्डल से बचाव हो जायेगा, मनन शक्ति बढ़ेगी और माया के विघ्नों से भी सेफ हो जायेंगे। बाहरमुखता में आते भी अन्तर्मुख, हर्षितमुख, आकर्षणमूर्त रहो, कर्म करते भी यह प्रैक्टिस करो तो समय की बचत होगी और सफलता भी अधिक अनुभव करेंगे।
16.06.2021 सारे वृक्ष की नॉलेज को स्मृति में रख तपस्या करने वाले सच्चे तपस्वी व सेवाधारी भव भक्ति मार्ग में दिखाते हैं कि तपस्वी वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करते हैं। इसका भी रहस्य है। आप बच्चों का निवास इस सृष्टि रूपी कल्प वृक्ष की जड़ में है। वृक्ष के नीचे बैठने से सारे वृक्ष की नॉलेज बुद्धि में स्वत: रहती है। तो सारे वृक्ष की नॉलेज स्मृति में रख साक्षी होकर इस वृक्ष को देखो। तो यह नशा, खुशी दिलायेगा और इससे बैटरी चार्ज हो जायेगी। फिर सेवा करते भी तपस्या साथ-साथ रहेगी।
15.06.2021 नॉलेज की लाइट माइट द्वारा कमजोर संस्कारों को समाप्त करने वाले शक्ति सम्पन्न भव नॉलेज से अपने कमजोर संस्कारों का मालूम तो पड़ जाता है और जब उस बात की समझानी मिलती है तो वे संस्कार थोड़े समय के लिए अन्दर दब जाते हैं लेकिन कमजोर संस्कार समाप्त करने के लिए लाइट और माइट के एकस्ट्रा फोर्स की आवश्यकता है। इसके लिए मास्टर सर्वशक्तिवान, मास्टर नॉलेजफुल के साथ-साथ चेकिंग मास्टर बनो। नॉलेज द्वारा स्वयं में शक्ति भरो, मनन शक्ति को बढ़ाओ तो शक्ति सम्पन्न बन जायेंगे।
14.06.2021 स्वमान में स्थित रह देह-अभिमान को समाप्त करने वाले सफलतामूर्त भव जो बच्चे स्वमान में स्थित रहते हैं वही बाप के हर फरमान का सहज ही पालन कर सकते हैं। स्वमान भिन्न-भिन्न प्रकार के देह-अभिमान को समाप्त कर देता है। लेकिन जब स्वमान से स्व शब्द भूल जाता है और मान-शान में आ जाते हो तो एक शब्द की गलती से अनेक गलतियां होने लगती हैं इसलिए मेहनत ज्यादा और प्रत्यक्षफल कम मिलता है। लेकिन सदा स्वमान में स्थित रहो तो पुरूषार्थ वा सेवा में सहज ही सफलता-मूर्त बन जायेंगे।
13.06.2021 स्नेही बनने के गुह्य रहस्य को समझ सर्व को राज़ी करने वाले राज़युक्त, योगयुक्त भव जो बच्चे एक सर्वशक्तिमान् बाप के स्नेही बनकर रहते हैं वे सर्व आत्माओं के स्नेही स्वत: बन जाते हैं। इस गुह्य रहस्य को जो समझ लेते वह राजयुक्त, योगयुक्त वा दिव्यगुणों से युक्तियुक्त बन जाते हैं। ऐसी राज़युक्त आत्मा सर्व आत्माओं को सहज ही राज़ी कर लेती है। जो इस राज़ को नहीं जानते वे कभी अन्य को नाराज़ करते और कभी स्वयं नाराज रहते हैं इसलिए सदा स्नेही के राज़ को जान राजयुक्त बनो।
12.06.2021 सेकण्ड में सर्व कमजोरियों से मुक्ति प्राप्त कर मर्यादा पुरूषोत्तम बनने वाले सदा स्नेही भव जैसे स्नेही स्नेह में आकर अपना सब कुछ न्यौछावर वा अर्पण कर देते हैं। स्नेही को कुछ भी समर्पण करने के लिए सोचना नहीं पड़ता। तो जो भी मर्यादायें वा नियम सुनते हो उन्हें प्रैक्टिकल में लाने अथवा सर्व कमजोरियों से मुक्ति प्राप्त करने की सहज युक्ति है - सदा एक बाप के स्नेही बनो। जिसके स्नेही हो, निरन्तर उसके संग में रहो तो रूहानियत का रंग लग जायेगा और एक सेकण्ड में मर्यादा पुरूषोत्तम बन जायेंगे क्योंकि स्नेही को बाप का सहयोग स्वत: मिल जाता है।
11.06.2021 हर संकल्प, समय, शब्द और कर्म द्वारा ईश्वरीय सेवा करने वाले सम्पूर्ण वफादार भव सम्पूर्ण वफादार उन्हें कहा जाता है जो हर वस्तु की पूरी-पूरी सम्भाल करते हैं। कोई भी चीज़ व्यर्थ नहीं जाने देते। जब से जन्म हुआ तब से संकल्प, समय और कर्म सब ईश्वरीय सेवा अर्थ हो। यदि ईश्वरीय सेवा के बजाए कहाँ भी संकल्प वा समय जाता है, व्यर्थ बोल निकलते हैं या तन द्वारा व्यर्थ कार्य होता है तो उनको सम्पूर्ण वफादार नहीं कहेंगे। ऐसे नहीं कि एक सेकण्ड वा एक पैसा व्यर्थ गया - तो क्या बड़ी बात है। नहीं। सम्पूर्ण वफादार अर्थात् सब कुछ सफल करने वाले।
10.06.2021 मनमनाभव की विधि द्वारा मनरस की स्थिति का अनुभव करने और कराने वाले सर्व बन्धनमुक्त भव जो बच्चे लोहे की जंजीरे और महीन धागों के बंधन को तोड़ बन्धनमुक्त स्थिति में रहते हैं वे कलियुगी स्थूल वस्तुओं की रसना वा मन के लगाव से मुक्त हो जाते हैं। उन्हें देह-अभिमान वा देह के पुरानी दुनिया की कोई भी वस्तु जरा भी आकर्षित नहीं करती। जब कोई भी इन्द्रियों के रस अर्थात् विनाशी रस के तरफ आकर्षण न हो तब अलौकिक अतीन्द्रिय सुख वा मनरस स्थिति का अनुभव होता है। इसके लिए निरन्तर मनमनाभव की स्थिति चाहिए।
09.06.2021 सर्व आत्माओं के पतित संकल्प वा वृत्तियों को भस्म करने वाले मास्टर ज्ञान सूर्य भव जैसे सूर्य अपनी किरणों से किचड़ा, गंदगी के कीटाणु भस्म कर देता है। ऐसे जब आप मास्टर ज्ञान सूर्य बनकर कोई भी पतित आत्मा को देखेंगे तो उनका पतित संकल्प, पतित वृत्ति वा दृष्टि भस्म हो जायेगी। पतित-पावनी आत्मा पर पतित संकल्प वार नहीं कर सकता। पतित आत्मायें पतित-पावनियों पर बलिहार जायेंगी। इसके लिए माइट हाउस अर्थात् मास्टर ज्ञान सूर्य स्थिति में सदा स्थित रहो।
08.06.2021 फरमान की पालना द्वारा सर्व अरमानों को खत्म करने वाले माया प्रूफ भव अमृतवेले से लेकर रात तक दिनचर्या में जो भी फरमान मिले हुए हैं, उसी प्रमाण अपनी वृत्ति, दृष्टि, संकल्प, स्मृति, सर्विस और सम्बन्ध को चेक करो। जो हर संकल्प हर कदम फरमान को पालन करते हैं उनके सब अरमान खत्म हो जाते हैं। अगर अन्दर में पुरूषार्थ का वा सफलता का अरमान भी रह जाता है तो जरूर कहाँ न कहाँ कोई न कोई फरमान पालन नहीं हो रहा है। तो जब भी कोई उलझन आये तो चारों ओर से चेक करो - इससे मायाप्रूफ स्वत: बन जायेंगे।
07.06.2021 निष्काम सेवा द्वारा विश्व का राज्य प्राप्त करने वाले विश्व कल्याणी, रहमदिल भव जो निष्काम सेवाधारी हैं उन्हें कभी यह संकल्प नहीं आ सकता कि मैंने इतना किया, मुझे इससे कुछ शान-मान वा महिमा मिलनी चाहिए...यह भी लेना हुआ। दाता के बच्चे अगर लेने का संकल्प भी करते हैं तो दाता नहीं हुए। यह लेना भी देने वाले के आगे शोभता नहीं। जब यह संकल्प समाप्त हो तब विश्व महाराज़न का स्टेटस प्राप्त हो। ऐसा निष्काम सेवाधारी, बेहद का वैरागी ही विश्व कल्याणी, रहमदिल बनता है।
06.06.2021 थकी वा तड़पती हुई आत्माओं को सिद्धि देने वाले खुदाई खिदमतगार भव आत्माओं की बहुत समय से इच्छा वा आशा है - निर्वाण वा मुक्तिधाम में जाने की। इसके लिए ही अनेक जन्मों से अनेक प्रकार की साधना करते-करते थक चुकी हैं। अभी हर एक सिद्धि चाहते हैं न कि साधना। सिद्धि अर्थात् सद्गति - तो ऐसी तड़फती हुई, थकी हुई प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाने के लिए आप श्रेष्ठ आत्मायें अपने साइलेन्स की शक्ति वा सर्व शक्तियों से एक सेकण्ड में सिद्धि दो तब कहेंगे खुदाई खिदमतगार।
05.06.2021 श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा प्रवृत्ति को प्रगति का साधन बनाने वाले सदा समर्थवान भव प्रवृत्ति में पहले वृत्ति से पवित्र वा अपवित्र बनते हो। यदि वृत्ति को सदा एक बाप के साथ लगा दो, एक बाप दूसरा न कोई - ऐसी ऊंची वृत्ति रहे तो प्रवृत्ति प्रगति का साधन बन जायेगी। वृत्ति ऊंची और श्रेष्ठ है तो चंचल नहीं हो सकती। ऐसी श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा प्रगति करते हुए गति-सद्गति को सहज ही पा लेंगे। फिर सब कम्पलेन कम्पलीट हो जायेंगी।
04.06.2021 कम शब्दों द्वारा ज्ञान के सर्व राज़ों को स्पष्ट करने वाले यथार्थ और शक्तिशाली भव कोई भी चीज़ जितनी अधिक शक्तिशाली होती है उतनी उसकी क्वान्टिटी कम होती है। ऐसे ही जब आप अपनी निर्वाण स्थिति में स्थित हो वाणी में आयेंगे तो शब्द कम लेकिन यथार्थ और शक्तिशाली होंगे। एक शब्द में हजारों शब्दों का रहस्य समाया हुआ होगा, जिससे व्यर्थ वाणी आटोमेटिक समाप्त हो जायेगी। एक शब्द से ज्ञान के सर्व राज़ों को स्पष्ट कर सकेंगे, विस्तार समाप्त हो जायेगा।
03.06.2021 अपनी चंचल वृत्ति को परिवर्तन कर सतोप्रधान वायुमण्डल बनाने के जवाबदार श्रेष्ठ आत्मा भव
जो बच्चे अपनी चंचल वृत्तियों को परिवर्तन कर लेते हैं वही सतोप्रधान वायुमण्डल बना सकते हैं क्योंकि वृत्ति से वायुमण्डल बनता है। वृत्ति चंचल तब होती है जब वृत्ति में इतने बड़े कार्य की स्मृति नहीं रहती। अगर कोई अति चंचल बच्चा बिजी होते भी चंचलता नहीं छोड़ता है तो उसे बांध देते हैं। ऐसे ही यदि ज्ञान-योग में बिजी होते भी वृत्ति चंचल हो तो एक बाप के साथ सर्व सम्बन्धों के बंधन में वृत्ति को बांध दो तो चंचलता सहज समाप्त हो जायेगी।
02.06.2021 ज्ञान-योग की पावरफुल किरणों द्वारा पुराने संस्कार रूपी कीटाणुओं को भस्म करने वाले मास्टर ज्ञान सूर्य भव कैसे भी पतित वातावरण को बदलने के लिए अथवा पुराने संस्कारों रूपी कीटाणुओं को भस्म करने के लिए यही स्मृति रहे कि मैं मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ। सूर्य का कर्तव्य है रोशनी देना और किचड़े को खत्म करना। तो ज्ञान-योग की शक्ति वा श्रेष्ठ चलन द्वारा यही कर्तव्य करते रहो। यदि पावर कम है तो ज्ञान सिर्फ रोशनी देगा परन्तु पुराने संस्कार रूपी कीटाणु खत्म नहीं होंगे इसलिए पहले योग तपस्या द्वारा पावरफुल बनो।
01.06.2021 निमित्त बनी हुई आत्माओं द्वारा कर्मयोगी बनने का वरदान प्राप्त करने वाले मास्टर वरदाता भव जब कोई भी चीज साकार में देखी जाती है तो उसे जल्दी ग्रहण किया जा सकता है इसलिए निमित्त बनी हुई जो श्रेष्ठ आत्मायें हैं उन्हों की सर्विस, त्याग, स्नेह, सर्व के सहयोगीपन का प्रैक्टिकल कर्म देखकर जो प्रेरणा मिलती है वही वरदान बन जाता है। जब निमित्त बनी हुई आत्माओं को कर्म करते हुए इन गुणों की धारणा में देखते हो तो सहज कर्मयोगी बनने का जैसे वरदान मिल जाता है। जो ऐसे वरदान प्राप्त करते रहते वह स्वयं भी मास्टर वरदाता बन जाते हैं।
31.05.2021 नशे और निशाने की स्मृति से सर्व कर्मेन्द्रियों को आर्डर प्रमाण चलाने वाले ताज व तख्तनशीन भव संगमयुग पर बापदादा द्वारा सभी बच्चों को ताज और तख्त प्राप्त होता है। प्योरिटी का भी ताज है तो जिम्मेवारियों का भी ताज है, अकाल तख्त भी है तो दिलतख्तनशीन भी हो। जब ऐसे डबल ताज और तख्तनशीन बनते हो तो नशा और निशाना स्वत: याद रहता है। फिर यह कर्मेन्द्रियां जी हजूर करती हैं। जो ताज व तख्त छोड़ देते हैं उनका आर्डर कोई भी कारोबारी नहीं मानते।
30.05.2021 तोड़ना, मोड़ना और जोड़ना - इन तीन शब्दों की स्मृति द्वारा सदा विजयी भव सारी पढ़ाई और शिक्षाओं का सार यह तीन शब्द हैं:- 1-कर्मबन्धन तोड़ने हैं। 2-अपने संस्कार-स्वभाव को मोड़ना है और 3- एक बाप से सर्व सम्बन्ध जोड़ने हैं - यही तीन शब्द सम्पूर्ण विजयी बना देंगे, इसके लिए सदा यही स्मृति रहे कि जो भी इन नयनों से विनाशी चीज़े देखते हैं वह सब विनाश हुई पड़ी हैं। उन्हें देखते भी अपने नये सम्बन्ध, नई सृष्टि को देखते रहो तो कभी हार हो नहीं सकती।
29.05.2021 हर संकल्प और कर्म में सिद्धि अर्थात् सफलता प्राप्त करने वाले सम्पूर्ण मूर्त भव संकल्पों की सिद्धि तब प्राप्त होगी जब समर्थ संकल्पों की रचना करेंगे। जो अधिक संकल्पों की रचना करते हैं वह उनकी पालना नहीं कर पाते इसलिए जितनी रचना ज्यादा उतनी शक्तिहीन होती है। तो पहले व्यर्थ रचना बन्द करो तब सफलता प्राप्त होगी और कर्मों में सफलता प्राप्त करने की युक्ति है - कर्म करने से पहले आदि-मध्य और अन्त को जानकर फिर कर्म करो। इससे ही सम्पूर्ण मूर्त बन जायेंगे।
28.05.2021 अपने सम्पूर्ण स्वरूप के आह्वान द्वारा आवागमन के चक्र से छूटने वाले लक्की सितारे भव अब अपनी सम्पूर्ण स्थिति व सम्पूर्ण स्वरूप का आह्वान करो तो वही स्वरूप सदा स्मृति में रहेगा फिर जो कभी ऊंची स्थिति, कभी नीची स्थिति में आने-जाने का (आवागमन का) चक्र चलता है, बार-बार स्मृति और विस्मृति के चक्र में आते हो, इस चक्र से मुक्त हो जायेंगे। वे लोग जन्म-मरण के चक्र से छूटने चाहते हैं और आप लोग व्यर्थ बातों से छूट चमकते हुए लक्की सितारे बन जाते हो।
27.05.2021 स्वार्थ शब्द के अर्थ को जान सदा एकरस स्थिति में स्थित होने वाले सहज पुरुषार्थी भव आजकल एक दो में जो लगाव है वह स्नेह से नहीं लेकिन स्वार्थ से है। स्वार्थ के कारण लगाव है और लगाव के कारण न्यारे नहीं बन सकते इसलिए स्वार्थ शब्द के अर्थ में स्थित हो जाओ अर्थात् पहले स्व के रथ को स्वाहा करो। यह स्वार्थ गया तो न्यारे बन ही जायेंगे। इस एक शब्द के अर्थ को जानने से सदा एक के और एकरस बन जायेंगे, यही सहज पुरूषार्थ है।
26.05.2021 सदा मर्यादाओं की लकीर के अन्दर रहने की केयर करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भव जो बच्चे अपने आपको एक ही बाप अर्थात् राम की सच्ची सीता समझकर सदा मर्यादाओं तो सवेरे से रात तक के लिए जो भी मर्यादायें मिली हुई हैं उनकी स्पष्ट नॉलेज बुद्धि में रख, स्वयं को सच्ची सीता समझकर मर्यादाओं की लकीर के अन्दर रहो तब कहेंगे मर्यादा पुरुषोत्तम।
25.05.2021 निराकारी स्थिति के अभ्यास द्वारा मैं पन को समाप्त करने वाले निरहंकारी भव वर्तमान समय सबसे महीन और सुन्दर धागा - यह मैं पन है। यह मैं शब्द ही देह-अभिमान से पार ले जाने वाला भी है तो देह-अभिमान में लाने वाला भी है। जब मैं पन उल्टे रूप में आता है तो बाप का प्यारा बनाने के बजाए कोई न कोई आत्मा का, नाम-मान-शान का प्यारा बना देता है। इस बंधन से मुक्त बनने के लिए निरन्तर निराकारी स्थिति में स्थित होकर साकार में आओ - इस अभ्यास को नेचुरल नेचर बना दो तो निरहंकारी बन जायेंगे।
24.05.2021
करना और कहना - इन दो को समान बनाकर क्वालिटी की सेवा करने वाले सच्चे सेवाधारी भव सदा अटेन्शन रहे कि पहले करना है फिर कहना है। कहना सहज होता है, करने में मेहनत है, मेहनत का फल अच्छा होता है। लेकिन यदि दूसरों को कहते हो स्वयं करते नहीं, तो सर्विस के साथ-साथ डिससर्विस भी प्रत्यक्ष होती है। जैसे अमृत के बीच विष की एक बूंद भी पड़ने से सारा अमृत विष बन जाता है, ऐसे कितनी भी सर्विस करो लेकिन एक छोटी सी गलती सर्विस को समाप्त कर देती है। इसलिए पहले अपने ऊपर अटेन्शन दो तब कहेंगे सच्चे सेवाधारी।
23.05.2021 संकल्प, वृत्ति और स्मृति से व्यर्थ को समाप्त करने वाले सच्चे ब्राह्मण सम्पूर्ण पवित्र भव अपने संकल्प, वृत्ति और स्मृति को चेक करो - ऐसे नहीं कुछ गलत हो गया, पश्चाताप कर लिया, माफी मांग ली, छुट्टी हो गई। कितना भी कोई माफी ले लेकिन जो पाप वा व्यर्थ कर्म हुआ उसका निशान नहीं मिटता। रजिस्टर साफ स्वच्छ नहीं होता। सिर्फ इस रीति-रसम को नहीं अपनाओ, लेकिन स्मृति रहे कि मैं सम्पूर्ण पवित्र ब्राह्मण हूँ - अपवित्रता - संकल्प, वृत्ति वा स्मृति को भी टच नहीं कर सकती, इसके लिए कदम-कदम पर सावधान रहो।
22.05.2021 मनन शक्ति द्वारा शक्तिशाली बन विघ्नों के फोर्स को समाप्त करने वाले सर्व आकर्षण मुक्त भव वर्तमान समय मनन शक्ति द्वारा आत्मा में सर्व शक्तियां भरने की आवश्यकता है। इसके लिए अन्तर्मुखी बन हर प्वाइंट पर मनन करो तो मक्खन निकलेगा और शक्तिशाली बन जायेंगे। ऐसी शक्तिशाली आत्मायें अतीन्द्रिय सुख की प्राप्ति का अनुभव करती हैं, उन्हें अल्पकाल की कोई भी वस्तु अपने तरफ आकर्षित नहीं कर सकती। उनकी मगन अवस्था द्वारा जो रूहानियत की शक्तिशाली स्थिति बनती है उससे विघ्नों का फोर्स समाप्त हो जाता है।
21.05.2021 न्यारे पन के अभ्यास द्वारा फरिश्ते रूप का साक्षात्कार कराने वाले निरन्तर सहजयोगी भव जैसे कोई भी वस्त्र धारण करना वा न करना अपने हाथ में होता है, ऐसा अनुभव इस शरीर रूपी वस्त्र में हो। जैसे वस्त्र को धारण करके कार्य किया और कार्य पूरा होते ही वस्त्र से न्यारे हुए। शरीर और आत्मा दोनों का न्यारापन चलते-फिरते अनुभव हो - तब कहेंगे निरन्तर सहजयोगी। ऐसे डिटैच रहने वाले बच्चों द्वारा अनेक आत्माओं को फरिश्ते रूप और भविष्य राज्य पद के साक्षात्कार होंगे। अन्त में इस सर्विस से ही प्रभाव निकलेगा।
20.05.2021 सदा ज्ञान सूर्य के सम्मुख रहने वाले अन्तर्मुखी, स्वमानधारी भव जैसे सूर्य के सामने देखने से सूर्य की किरणें अवश्य आती हैं, ऐसे जो बच्चे ज्ञान सूर्य बाप के सदा सम्मुख रहते हैं वो ज्ञान सूर्य के सर्व गुणों की किरणें स्वयं में अनुभव करते हैं। उनकी सूरत पर अन्तर्मुखता की झलक और संगमयुग के वा भविष्य के सर्व स्वमान की फलक दिखाई देती है। इसके लिए सदा स्मृति में रहे कि यह अन्तिम घड़ी है। किसी भी घड़ी इस तन का विनाश हो सकता है इसलिए सदा प्रीत बुद्धि बन ज्ञान सूर्य के सम्मुख रह अन्तर्मुखता वा स्वमान की अनुभूति में रहना है।
19.05.2021 बुद्धि की प्रीत एक प्रीतम से लगाकर सदा सम्मुख की अनुभूति करने वाले विजयी रत्न भव प्रीत बुद्धि अर्थात् बुद्धि की लगन एक प्रीतम के साथ लगी हुई हो। जिसकी एक के साथ प्रीत है उनकी अन्य किसी भी व्यक्ति वा वैभव के साथ प्रीत जुट नहीं सकती। वे सदा बापदादा को अपने सम्मुख अनुभव करेंगे। उन्हें मन्सा में भी श्रीमत के विपरीत व्यर्थ संकल्प वा विकल्प नहीं आ सकते। उनके मुख से वा दिल से यही बोल निकलते - तुम्हीं से खाऊं, तुम्हीं से बैठूँ....तुम्हीं से सर्व संबंध निभाऊं..ऐसे सदा प्रीत बुद्धि रहने वाले ही विजयी रत्न बनते हैं।
18.05.2021 आवाज से परे की स्थिति में स्थित हो सर्व गुणों का अनुभव करने वाले मा. बीजरूप भव जैसे बीज में सारा वृक्ष समाया हुआ होता है वैसे ही आवाज से परे की स्थिति में संगमयुग के सर्व विशेष गुण अनुभव में आते हैं। मास्टर बीजरूप बनना अर्थात् सिर्फ शान्ति नहीं लेकिन शान्ति के साथ ज्ञान, अतीन्द्रिय सुख, प्रेम, आनंद, शक्ति आदि-आदि सर्व गुख्य गुणों का अनुभव करना। यह अनुभव सिर्फ स्वयं को नहीं होता लेकिन अन्य आत्मायें भी उनके चेहरे से सर्वगुणों का अनुभव करती हैं। एक गुण में सर्वगुण समाये हुए रहते हैं।
17.05.2021 आसक्ति को अनासक्ति में परिवर्तन करने वाले शक्ति स्वरूप भव शक्ति स्वरूप बनने के लिए आसक्ति को अनासक्ति में बदली करो। अपनी देह में, सम्बन्धों में, कोई भी पदार्थ में यदि कहाँ भी आसक्ति है तो माया भी आ सकती है और शक्ति रूप नहीं बन सकते इसलिए पहले अनासक्त बनो तब माया के विघ्नों का सामना कर सकेंगे। विघ्नों के आने पर चिल्लाने वा घबराने के बजाए शक्ति रूप धारण कर लो तो विघ्न-विनाशक बन जायेंगे
16.05.2021 संशय के संकल्पों को समाप्त कर मायाजीत बनने वाले विजयी रत्न भव कभी भी पहले से यह संशय का संकल्प उत्पन्न न हो कि ना मालूम हम फेल हो जायें, संशयबुद्धि होने से ही हार होती है इसलिए सदा यही संकल्प हो कि हम विजय प्राप्त करके ही दिखायेंगे। विजय तो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, ऐसे अधिकारी बनकर कर्म करने से विजय अर्थात् सफलता का अधिकार अवश्य प्राप्त होता है, इसी से विजयी रत्न बन जायेंगे इसलिए मास्टर नॉलेजफुल के मुख से नामालूम शब्द कभी नहीं निकलना चाहिए।
15.05.2021 मन्सा के महादान द्वारा हर संकल्प की सिद्धि प्राप्त करने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान भव
जो बच्चे मन्सा द्वारा शक्तियों का दान करते हैं उन्हें मास्टर सर्वशक्तिमान् का वरदान प्राप्त हो जाता है क्योंकि मन्सा द्वारा शक्तियों का दान करने से संकल्प में इतनी शक्ति जमा हो जाती है जो हर संकल्प की सिद्धि प्राप्त होती है। वे अपने संकल्पों को जहाँ चाहें वहाँ एक सेकण्ड में टिका सकते हैं, संकल्प उनके वश होते हैं। वे अपने संकल्पों पर विजयी होने के कारण चंचल संकल्प वाले को भी थोड़े समय के लिए अचल वा शान्त बना सकते हैं।
14.05.2021 अपनी सम्पूर्ण स्टेज द्वारा सर्व प्रकार की अधीनता समाप्त करने वाले प्रकृति जीत भव
जब आप अपनी सम्पूर्ण स्टेज पर स्थित होंगे तो प्रकृति पर भी विजय अर्थात् अधिकार का अनुभव होगा। सम्पूर्ण स्टेज में किसी भी प्रकार की अधीनता नहीं रहती है।
लेकिन ऐसी सम्पूर्ण स्टेज बनाने के लिए तीन बातें साथ-साथ चाहिए:- 1-रूहानियत, 2-रूहाब और 3-रहमदिल का गुण। जब यह तीनों बातें प्रत्यक्ष रूप में, स्थिति में, चेहरे वा कर्म में दिखाई दें तब कहेंगे अधिकारी वा प्रकृति जीत आत्मा।
13.05.2021 सम्पूर्ण समर्पण की विधि द्वारा सर्वगुण सम्पन्न बनने के पुरुषार्थ में सदा विजयी भव सम्पूर्ण समर्पण उसे कहा जाता है जिसके संकल्प में भी बॉडी कानसेस न हो। अपने देह का भान भी अर्पण कर देना, मैं फलानी हूँ - यह संकल्प भी अर्पण कर सम्पूर्ण समर्पण होने वाले सर्वगुणों में सम्पन्न बनते हैं। उनमें कोई भी गुण की कमी नहीं रहती। जो सर्व समर्पण कर सर्वगुण सम्पन्न वा सम्पूर्ण बनने का लक्ष्य रखते हैं तो ऐसे पुरुषार्थियों को बापदादा सदा विजयी भव का वरदान देते हैं।
12.05.2021 आलस्य के भिन्न-भिन्न रूपों को समाप्त कर सदा हुल्लास में रहने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव वर्तमान समय माया का वार आलस्य के रूप में भिन्न-भिन्न तरीके से होता है।
ये आलस्य भी विशेष विकार है, इसे खत्म करने के लिए सदा हुल्लास में रहो। जब कमाई करने का हुल्लास होता है तो आलस्य खत्म हो जाता है इसलिए कभी भी हुल्लास को कम नहीं करना। सोचेंगे, करेंगे, कर ही लेंगे, हो जायेगा...यह सब आलस्य की निशानी है। ऐसे आलस्य वाले निर्बल संकल्पों को समाप्त कर यही सोचो कि जो करना है, जितना करना है अभी करना है - तब कहेंगे तीव्र पुरुषार्थी।
11.05.2021 अपनी स्मृति, वृत्ति और दृष्टि को अलौकिक बनाने वाले सर्व आकर्षणों से मुक्त भव कहा जाता है -"जैसे संकल्प वैसी सृष्टि'' जो नई सृष्टि रचने के निमित्त विशेष आत्मायें हैं उनका एक-एक संकल्प श्रेष्ठ अर्थात् अलौकिक होना चाहिए। जब स्मृति-वृत्ति और दृष्टि सब अलौकिक हो जाती है तो इस लोक का कोई भी व्यक्ति वा कोई भी वस्तु अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकती। अगर आकर्षित करती है तो जरूर अलौकिकता में कमी है। अलौकिक आत्मायें सर्व आकर्षणों से मुक्त होंगी।
10.05.2021 अधिकारीपन की स्मृति द्वारा सर्व शक्तियों का अनुभव करने वाले प्राप्ति स्वरूप भव यदि बुद्धि का संबंध सदा एक बाप से लगा हुआ रहे तो सर्व शक्तियों का वर्सा अधिकार के रूप में प्राप्त होता है। जो अधिकारी समझकर हर कर्म करते हैं उन्हें कहने वा संकल्प में भी मांगने की आवश्यकता नहीं रहती। यह अधिकारी पन की स्मृति ही सर्व शक्तियों के प्राप्ति का अनुभव कराती है। तो नशा रहे कि सर्व शक्तियां हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार हैं। अधिकारी बन करके चलो तो अधीनता समाप्त हो जायेगी।
09.05.2021 व्यर्थ की लीकेज को समाप्त कर समर्थ बनने वाले कम खर्च बालानशीन भव संगमयुग पर बापदादा द्वारा जो भी खजाने मिले हैं उन सर्व खजानों को व्यर्थ जाने से बचाओ तो कम खर्च बालानशीन बन जायेंगे।
व्यर्थ से बचाव करना अर्थात् समर्थ बनना।
जहाँ समर्थी है वहाँ व्यर्थ जाये - यह हो नहीं सकता। अगर व्यर्थ की लीकेज है तो कितना भी पुरुषार्थ करो, मेहनत करो लेकिन शक्तिशाली बन नहीं सकते इसलिए लीकेज़ को चेक कर समाप्त करो तो व्यर्थ से समर्थ हो जायेंगे।
08.05.2021 देह-अभिमान के त्याग द्वारा श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले सर्व सिद्धि स्वरूप भव देह-अभिमान का त्याग करने अर्थात् देही-अभिमानी बनने से बाप के सर्व संबंध का, सर्व शक्तियों का अनुभव होता है, यह अनुभव ही संगमयुग का सर्वश्रेष्ठ भाग्य है।
विधाता द्वारा मिली हुई इस विधि को अपनाने से वृद्धि भी होगी और सर्व सिद्धियां भी प्राप्त होंगी। देहधारी के संबंध वा स्नेह में तो अपना ताज, तख्त और अपना असली स्वरूप सब छोड़ दिया तो क्या बाप के स्नेह में देह-अभिमान का त्याग नहीं कर सकते!
इसी एक त्याग से सर्व भाग्य प्राप्त हो जायेंगे।
07.05.2021 सहयोग की शक्ति से, असहयोगियों को सहयोगी बनाने वाले बाप समान परोपकारी भव सहयोगियों के साथ सहयोगी बनना - यह कोई महावीरता नहीं है लेकिन जैसे बाप अपकारियों पर उपकार करते हैं ऐसे आप बच्चे भी बाप समान बनो। कोई कितना भी असहयोगी बने, आप अपने सहयोग की शक्ति से असहयोगी को सहयोगी बना दो, ऐसे नहीं सोचो कि इस कारण से यह आगे नहीं बढ़ता है। कमजोर को कमजोर समझकर छोड़ न दो लेकिन उसे बल देकर बलवान बनाओ। इस बात पर अटेन्शन दो तो सर्विस के प्लैन्स रूपी जेवरों पर हीरे चमक जायेंगे अर्थात् सहज प्रत्यक्षता हो जायेगी।
06.05.2021 मनमनाभव की स्थिति द्वारा मन के भावों को जानने वाले सफलता स्वरूप भव
जो बच्चे मनमनाभव की स्थिति में स्थित रहते हैं वह औरों के मन के भाव को जान सकते हैं।
बोल भल क्या भी हो लेकिन उसका भाव क्या है, उसे जानने का अभ्यास करते जाओ।
हर एक के मन के भाव को समझने से उनकी जो चाहना वा प्राप्ति की इच्छा है, वह पूरी कर सकेंगे।
इससे वे अविनाशी पुरूषार्थी बन जायेंगे फिर सर्विस की सफलता थोड़े समय में बहुत दिखाई देगी और आप पुरूषार्थी स्वरूप के बजाए सफलता स्वरूप बन जायेंगे।
05.05.2021 स्वयं की स्मृति में रह अपने हर कर्म को संयम (नियम) बनाने वाले अथॉरिटी स्वरूप भव
जैसे साकार में स्वयं की स्मृति में रहने से जो कर्म किया वही ब्राह्मण परिवार का संयम बन गया।
स्वयं के नशे में रहने के कारण अथॉरिटी से कह सकते थे कि अगर साकार द्वारा कोई उल्टा कर्म भी हो गया तो सुल्टा कर देंगे।
स्वयं के स्वरूप की स्मृति में रहने से यह नशा रहता है कि कोई कर्म उल्टा हो ही नहीं सकता।
आप बच्चे भी जब स्वयं की स्थिति में स्थित रहो तो जो संकल्प चलेगा, जो बोल बोलेंगे वा कर्म करेंगे, वही संयम (नियम) बन जायेगा।
04.05.2021 अलौकिक खेल और खिलौनों से खेलते हुए सदा शक्तिशाली बनने वाले अचल-अडोल भव
अलौकिक जीवन में माया के विघ्न आना भी अलौकिक खेल है, जैसे शारीरिक शक्ति के लिए खेल कराया जाता है, ऐसे अलौकिक युग में परिस्थितियों को खिलौना समझकर यह अलौकिक खेल खेलो।
इनसे डरो वा घबराओ नहीं। सर्व संकल्पों सहित स्वयं को बापदादा पर बलिहार कर दो तो माया कभी वार नहीं कर सकती।
रोज़ अमृतवेले साक्षी बन स्वयं का सर्व शक्तियों से श्रंगार करो तो अचल-अडोल रहेंगे।
03.05.2021 बुद्धि रूपी पांव मर्यादा की लकीर के अन्दर रखने वाले सर्व प्राप्ति सम्पन्न शक्तिशाली भव
जो बच्चे बुद्धि रूपी पांव जरा भी मर्यादा की लकीर से बाहर नहीं निकालते वे लक्की और लवली बन जाते हैं। उन्हें कभी कोई भी विघ्न अथवा तूफान, परेशानी, उदासी आ नहीं सकती।
यदि आती है तो समझना चाहिए कि जरूर बुद्धि रूपी पांव मर्यादा की लकीर से बाहर निकाला है।
लकीर से बाहर निकलना अर्थात् फकीर बनना इसलिए कभी फकीर अर्थात् मांगने वाले नहीं, सर्व प्राप्ति सम्पन्न शक्तिशाली बनो।
02.05.2021 अपनी विजय वा सफलता को निश्चित समझकर सदा निश्चिंत रहने वाले निश्चयबुद्धि भव जो बच्चे सदा बाप में, स्वयं के पार्ट में और ड्रामा की हर सेकण्ड की एक्ट में 100 प्रतिशत निश्चयबुद्धि हैं उनकी विजय वा सफलता निश्चित है।
निश्चित विजय होने के कारण वे सदा निश्चिंत रहते हैं। उनके चेहरे से चिंता की कोई भी रेखा दिखाई नहीं देगी।
उन्हें सदा निश्चय रहता है कि यह कार्य वा यह संकल्प सिद्ध हुआ ही पड़ा है।
उन्हें कभी किसी बात में क्वेश्चन नहीं उठ सकता।
01.05.2021 शक्ति रूप की स्मृति द्वारा पतित संस्कारों का नाश करने वाले काली रूप भव सदा अपना यह स्वरूप स्मृति में रहे कि मैं सर्व शस्त्रधारी शक्ति हूँ, मुझ पतित-पावनी पर कोई पतित आत्मा के नज़र की परछाई भी नहीं पड़ सकती।
पतित आत्मा के पतित संकल्प भी न चल सकें - ऐसी अपनी ब्रेक पावरफुल चाहिए।
यदि किसी पतित आत्मा का प्रभाव पड़ता है - तो इसका अर्थ है कि प्रभावशाली नहीं हो। जो स्वयं संघारी हैं वह कभी किसका शिकार नहीं बन सकते।
तो ऐसा काली रूप बनो जो कोई भी आपके सामने ऐसा संकल्प भी करे तो उनका संकल्प मूर्छित हो जाए।
30.04.2021 एक लगन, एक भरोसा, एकरस अवस्था द्वारा सदा निर्विघ्न बनने वाले निवारण स्वरूप भव
सदा एक बाप की लगन, बाप के कर्तव्य की लगन में ऐसे मगन रहो जो संसार में कोई भी वस्तु या व्यक्ति है भी - यह अनुभव ही न हो। ऐसे एक लगन, एक भरोसे में, एकरस अवस्था में रहने वाले बच्चे सदा निर्विघ्न बन चढ़ती कला का अनुभव करते हैं।
वे कारण को परिवर्तन कर निवारण रूप बना देते हैं। कारण को देख कमजोर नहीं बनते, निवारण स्वरूप बन जाते हैं।
29.04.2021 मास्टर नॉलेजफुल बन अनजानपने को समाप्त करने वाले ज्ञान स्वरूप, योगयुक्त भव
मास्टर नॉलेजफुल बनने वालों में किसी भी प्रकार का अनजानपन नहीं रहता, वह ऐसा कहकर अपने को छुड़ा नहीं सकते कि इस बात का हमें पता ही नहीं था।
ज्ञान स्वरूप बच्चों में कोई भी बात का अज्ञान नहीं रह सकता और जो योगयुक्त हैं उन्हें अनुभव होता जैसेकि पहले से सब कुछ जानते हैं।
वो यह जानते हैं कि माया की छम-छम, रिमझिम कम नहीं है, माया भी बड़ी रौनकदार है, इसलिए उससे बचकर रहना है।
जो सभी रूपों से माया की नॉलेज को समझ गये उनके लिए हार खाना असम्भव है।
28.04.2021 पास विद आनर बनने के लिए सर्व द्वारा सन्तुष्टता का पासपोर्ट प्राप्त करने वाले सन्तुष्टमणि भव जो बच्चे अपने आपसे, अपने पुरुषार्थ वा सर्विस से, ब्राह्मण परिवार के सम्पर्क से सदा सन्तुष्ट रहते हैं उन्हें ही सन्तुष्टमणि कहा जाता है।
सर्व आत्माओं के सम्पर्क में अपने को सन्तुष्ट रखना वा सर्व को सन्तुष्ट करना - इसमें जो विजयी बनते हैं वही विजयमाला में आते हैं।
पास विद आनर बनने के लिए सर्व द्वारा सन्तुष्टता का पासपोर्ट मिलना चाहिए।
यह पासपोर्ट लेने के लिए सिर्फ सहन करने वा समाने की शक्ति धारण करो।
27.04.2021 महान् और मेहमान - इन दो स्मृतियों द्वारा सर्व आकर्षणों से मुक्त बनने वाले उपराम व साक्षी भव उपराम वा साक्षीपन की अवस्था बनाने के लिए दो बातें ध्यान पर रहें - एक तो मैं आत्मा महान् आत्मा हूँ, दूसरा मैं आत्मा अब इस पुरानी सृष्टि में वा इस पुराने शरीर में मेहमान हूँ।
इस स्मृति में रहने से स्वत: और सहज ही सर्व कमजोरियां वा लगाव की आकर्षण समाप्त हो जायेगी। महान् समझने से जो साधारण कर्म वा संकल्प संस्कारों के वश चलते हैं, वह परिवर्तित हो जायेंगे।
महान् और मेहमान समझकर चलने से महिमा योग्य भी बन जायेंगे।
26.04.2021 नॉलेज की लाइट-माइट द्वारा अपने लक को जगाने वाले सदा सफलतामूर्त भव जो बच्चे नॉलेज की लाइट और माइट से आदि-मध्य-अन्त को जानकर पुरूषार्थ करते हैं, उन्हें सफलता अवश्य प्राप्त होती है।
सफलता प्राप्त होना भी लक की निशानी है। नॉलेजफुल बनना ही लक को जगाने का साधन है। नॉलेज सिर्फ रचयिता और रचना की नहीं लेकिन नॉलेजफुल अर्थात् हर संकल्प, हर शब्द और हर कर्म में ज्ञान स्वरूप हो तब सफलतामूर्त बनेंगे।
अगर पुरूषार्थ सही होते भी सफलता नहीं दिखाई देती है तो यही समझना चाहिए कि यह असफलता नहीं, परिपक्वता का साधन है।
25.04.2021 कदम-कदम पर सावधानी रखते हुए पदमों की कमाई जमा करने वाले पदमपति भव बाप बच्चों को बहुत ऊंची स्टेज पर रहने की सावधानी दे रहे हैं इसलिए अभी जरा भी गफलत करने का समय नहीं है, अब तो कदम-कदम पर सावधानी रखते हुए, कदम में पदमों की कमाई करते पदमपति बनो।
जैसे नाम है पदमापदम भाग्यशाली, ऐसे कर्म भी हों। एक कदम भी पदम की कमाई के बिगर न जाए।
तो बहुत सोच-समझकर श्रीमत प्रमाण हर कदम उठाओ। श्रीमत में मनमत मिक्स नहीं करो।
24.04.2021 पुरुषार्थ शब्द को यथार्थ रीति से यूज़ कर सदा आगे बढ़ने वाले श्रेष्ठ पुरूषार्थी भव कई बार पुरुषार्थी शब्द भी हार खाने में वा असफलता प्राप्त होने में अच्छी ढाल बन जाता है, जब कोई भी गलती होती है तो कह देते हो हम तो अभी पुरुषार्थी हैं।
लेकिन यथार्थ पुरुषार्थी कभी हार नहीं खा सकते क्योंकि पुरुषार्थ शब्द का यथार्थ अर्थ है स्वयं को पुरूष अर्थात् आत्मा समझकर चलना।
ऐसे आत्मिक स्थिति में रहने वाले पुरुषार्थी तो सदैव मंजिल को सामने रखते हुए चलते हैं, वे कभी रुकते नहीं, हिम्मत उल्लास छोड़ते नहीं।
23.04.2021 अपने प्रति वा सर्व आत्माओं के प्रति लॉ फुल बनने वाले लॉ मेकर सो न्यु वर्ल्ड मेकर भव जो स्वयं प्रति लॉ फुल बनते हैं वही दूसरों के प्रति भी लॉ फुल बन सकते हैं।
जो स्वयं लॉ को ब्रेक करते हैं वह दूसरों के ऊपर लॉ नहीं चला सकते इसलिए अपने आपको देखो कि सवेरे से रात तक मन्सा संकल्प में, वाणी में, कर्म में, सम्पर्क वा एक दो को सहयोग देने में वा सेवा में कहाँ भी लॉ ब्रेक तो नहीं होता है! जो लॉ मेकर हैं वह लॉ ब्रेकर नहीं बन सकते।
जो इस समय लॉ मेकर बनते हैं वही पीस मेकर, न्यु वर्ल्ड मेकर बन जाते हैं।
22.04.2021 अपने हाइएस्ट पोजीशन में स्थित रहकर हर संकल्प, बोल और कर्म करने वाले सम्पूर्ण निर्विकारी भव सम्पूर्ण निर्विकारी अर्थात् किसी भी परसेन्ट में कोई भी विकार तरफ आकर्षण न जाए, कभी उनके वशीभूत न हों।
हाइएस्ट पोजीशन वाली आत्मायें कोई साधारण संकल्प भी नहीं कर सकती। तो जब कोई भी संकल्प वा कर्म करते हो तो चेक करो कि जैसा ऊंचा नाम वैसा ऊंचा काम है?
अगर नाम ऊंचा, काम नीचा तो नाम बदनाम करते हो इसलिए लक्ष्य प्रमाण लक्षण धारण करो तब कहेंगे सम्पूर्ण निर्विकारी अर्थात् होलीएस्ट आत्मा।
21.04.2021 अपनी श्रेष्ठ स्थिति द्वारा माया को स्वयं के आगे झुकाने वाले हाइएस्ट पद के अधिकारी भव
जैसे महान आत्मायें कभी किसी के आगे झुकती नहीं हैं, उनके आगे सभी झुकते हैं।
ऐसे आप बाप की चुनी हुई सर्वश्रेष्ठ आत्मायें कहाँ भी, कोई भी परिस्थिति में वा माया के भिन्न-भिन्न आकर्षण करने वाले रूपों में अपने को झुका नहीं सकती।
जब अभी से सदा झुकाने की स्थिति में स्थित रहेंगे तब हाइएस्ट पद का अधिकार प्राप्त होगा।
ऐसी आत्माओं के आगे सतयुग में प्रजा स्वमान से झुकेगी और द्वापर में आप लोगों के यादगार के आगे भक्त झुकते रहेंगे।
20.04.2021
अपनी पावरफुल वृत्ति द्वारा पतित वायुमण्डल को परिवर्तन करने वाले मास्टर पतित-पावनी भव कैसा भी वायुमण्डल हो लेकिन स्वयं की शक्तिशाली वृत्ति वायुमण्डल को बदल सकती है। वायुमण्डल विकारी हो लेकिन स्वयं की वृत्ति निर्विकारी हो।
जो पतितों को पावन बनाने वाले हैं वो पतित वायुमण्डल के वशीभूत नहीं हो सकते। मास्टर पतित-पावनी बन स्वयं की पावरफुल वृत्ति से अपवित्र वा कमजोरी का वायुमण्डल मिटाओ,
उसका वर्णन कर वायुमण्डल नहीं बनाओ। कमजोर वा पतित वायुमण्डल का वर्णन करना भी पाप है।
19.04.2021 भोलेपन के साथ ऑलमाइटी अथॉरिटी बन माया का सामना करने वाले शक्ति स्वरूप भव कभी-कभी भोलापन बहुत भारी नुकसान कर देता है। सरलता, भोला रूप धारण कर लेती है। लेकिन ऐसा भोला नहीं बनो जो सामना नहीं कर सको।
सरलता के साथ समाने और सहन करने की शक्ति चाहिए। जैसे बाप भोलानाथ के साथ आलमाइटी अथॉर्टी है, ऐसे आप भी भोलेपन के साथ-साथ शक्ति स्वरूप भी बनो तो माया का गोला नहीं लगेगा, माया सामना करने के बजाए नमस्कार कर लेगी।
18.04.2021 खुशी के साथ शक्ति को धारण कर विघ्नों को पार करने वाले विघ्न जीत भव जो बच्चे जमा करना जानते हैं वह शक्तिशाली बनते हैं। यदि अभी-अभी कमाया, अभी-अभी बांटा, स्वयं में समाया नहीं तो शक्ति नहीं रहती।
सिर्फ बांटने वा दान करने की खुशी रहती है। खुशी के साथ शक्ति हो तो सहज ही विघ्नों को पार कर विघ्न जीत बन जायेंगे।
फिर कोई भी विघ्न लगन को डिस्टर्ब नहीं करेंगे इसलिए जैसे चेहरे से खुशी की झलक दिखाई देती है ऐसे शक्ति की झलक भी दिखाई दे।
17.04.2021 स्वयं के टेन्शन पर अटेन्शन देकर विश्व का टेन्शन समाप्त करने वाले विश्व कल्याणकारी भव जब दूसरों के प्रति जास्ती अटेन्शन देते हो तो अपने अन्दर टेन्शन चलता है, इसलिए विस्तार करने के बजाए सार स्वरूप में स्थित हो जाओ, क्वान्टिटी के संकल्पों को समाकर क्वालिटी वाले संकल्प करो।
पहले अपने टेन्शन पर अटेन्शन दो तब विश्व में जो अनेक प्रकार के टेन्शन हैं उनको समाप्त कर विश्व कल्याणकारी बन सकेंगे।
पहले अपने आपको देखो, अपनी सर्विस फर्स्ट, अपनी सर्विस की तो दूसरों की सर्विस स्वत: हो जायेगी।
16.04.2021 याद की सर्चलाइट द्वारा वायुमण्डल बनाने वाले विजयी रत्न भव सर्विसएबुल आत्माओं के मस्तक पर विजय का तिलक लगा हुआ है ही लेकिन जिस स्थान की सर्विस करनी है, उस स्थान पर पहले से ही सर्च लाइट की रोशनी डालनी चाहिए।
याद की सर्चलाइट से ऐसा वायुमण्डल बन जायेगा जो अनेक आत्मायें सहज समीप आ जायेंगी। फिर कम समय में सफलता हजार गुणा होगी।
इसके लिए दृढ़ संकल्प करो कि हम विजयी रत्न हैं तो हर कर्म में विजय समाई हुई है।
15.04.2021 अन्य आत्माओं की सेवा के साथ-साथ स्वयं की भी सेवा करने वाले सफलतामूर्त भव
सेवा में सफलतामूर्त बनना है तो दूसरों की सर्विस के साथ-साथ अपनी भी सर्विस करो। जब कोई भी सर्विस पर जाते हो तो ऐसे समझो कि सर्विस के साथ-साथ अपने भी पुराने संस्कारों का अन्तिम संस्कार करते हैं।
जितना संस्कारों का संस्कार करेंगे उतना ही सत्कार मिलेगा। सभी आत्मायें आपके आगे मन से नमस्कार करेंगी।
लेकिन बाहर से नमस्कार करने वाले नहीं बनाना, मानसिक नमस्कार करने वाले बनाना।
14.04.2021 स्नेह और शक्ति रूप के बैलेन्स द्वारा सेवा करने वाले सफलतामूर्त भव जैसे एक आंख में बाप का स्नेह और दूसरी आंख में बाप द्वारा मिला हुआ कर्तव्य (सेवा) सदा स्मृति में रहता है।
ऐसे स्नेही-मूर्त के साथ-साथ अभी शक्ति रूप भी बनो। स्नेह के साथ-साथ शब्दों में ऐसा जौहर हो जो किसी का भी हृदय विदीरण कर दे। जैसे माँ बच्चों को कैसे भी शब्दों में शिक्षा देती है तो माँ के स्नेह कारण वह शब्द तेज वा कडुवे महसूस नहीं होते।
ऐसे ही ज्ञान की जो भी सत्य बातें हैं उन्हें स्पष्ट शब्दों में दोöलेकिन शब्दों में स्नेह समाया हुआ हो तो सफलतामूर्त बन जायेंगे।
13.04.2021 स्थूल कार्य करते भी मन्सा द्वारा विश्व परिवर्तन की सेवा करने वाली जिम्मेवार आत्मा भव कोई भी स्थूल कार्य करते सदा यह स्मृति रहे कि मैं विश्व की स्टेज पर विश्व कल्याण की सेवा अर्थ निमित्त हूँ।
मुझे अपनी श्रेष्ठ मन्सा द्वारा विश्व परिवर्तन के कार्य की बहुत बड़ी जिम्मेवारी मिली हुई है। इस स्मृति से अलबेलापन समाप्त हो जायेगा और समय भी व्यर्थ जाने से बच जायेगा।
एक-एक सेकण्ड अमूल्य समझते हुए विश्व कल्याण के वा जड़-चैतन्य को परिवर्तन करने के कार्य में सफल करते रहेंगे।
12.04.2021 माया के विघ्नों को खेल के समान अनुभव करने वाले मास्टर विश्व-निर्माता भव जैसे कोई बुजुर्ग के आगे छोटे बच्चे अपने बचपन के अलबेलेपन के कारण कुछ भी बोल दें, कोई ऐसा कर्तव्य भी कर लें तो बुजुर्ग लोग समझते हैं कि यह निर्दोष, अन्जान, छोटे बच्चे हैं।
कोई असर नहीं होता है। ऐसे ही जब आप अपने को मास्टर विश्व-निर्माता समझेंगे तो यह माया के विघ्न बच्चों के खेल समान लगेंगे।
माया किसी भी आत्मा द्वारा समस्या, विघ्न वा परीक्षा पेपर बनकर आ जाए तो उसमें घबरायेंगे नहीं लेकिन उन्हें निर्दोष समझेंगे।
11.04.2021 संगमयुग पर हर कर्म कला के रूप में करने वाले 16 कला सम्पन्न भव
संगमयुग विशेष कर्म रूपी कला दिखाने का युग है।
जिनका हर कर्म कला के रूप में होता है उनके हर कर्म का वा गुणों का गायन होता है।
16 कला सम्पन्न अर्थात् हर चलन सम्पूर्ण कला के रूप में दिखाई देöयही सम्पूर्ण स्टेज की निशानी है।
जैसे साकार के बोलने, चलने ...सभी में विशेषता देखी, तो यह कला हुई।
उठने बैठने की कला, देखने की कला, चलने की कला थी।
सभी में न्यारापन और विशेषता थी। तो ऐसे फालो फादर कर 16 कला सम्पन्न बनो।
10.04.2021 निर्बल आत्माओं में शक्तियों का फोर्स भरने वाले ज्ञान-दाता सो वरदाता भव वर्तमान समय निर्बल आत्माओं में इतनी शक्ति नहीं है जो जम्प दे सकें, उन्हें एक्स्ट्रा फोर्स चाहिए।
तो आप विशेष आत्माओं को स्वयं में विशेष शक्ति भरकरके उन्हें हाई जम्प दिलाना है।
इसके लिए ज्ञान दाता के साथ-साथ शक्तियों के वरदाता बनो।
रचता का प्रभाव रचना पर पड़ता है इसलिए वरदानी बनकर अपनी रचना को सर्व शक्तियों का वरदान दो। अभी इसी सर्विस की आवश्यकता है।
09.04.2021 सच्चाई-सफाई की धारणा द्वारा समीपता का अनुभव करने वाले सम्पूर्णमूर्त भव सभी धारणाओं में मुख्य धारणा है सच्चाई और सफाई। एक दो के प्रति दिल में बिल्कुल सफाई हो।
जैसे साफ चीज़ में सब कुछ स्पष्ट दिखाई देता है। वैसे एक दो की भावना, भाव-स्वभाव स्पष्ट दिखाई दे।
जहाँ सच्चाई-सफाई है वहाँ समीपता है। जैसे बापदादा के समीप हो ऐसे आपस में भी दिल की समीपता हो।
स्वभाव की भिन्नता समाप्त हो जाए। इसके लिए मन के भाव और स्वभाव को मिलाना है।
जब स्वभाव में फ़र्क दिखाई न दे तब कहेंगे सम्पूर्णमूर्त।
08.04.2021 सदा पावरफुल वृत्ति द्वारा बेहद की सेवा में तत्पर रहने वाले हद की बातों से मुक्त भव जैसे साकार बाप को सेवा के सिवाए कुछ भी दिखाई नहीं देता था, ऐसे आप बच्चे भी अपने पावरफुल वृत्ति द्वारा बेहद की सेवा पर सदा तत्पर रहो तो हद की बातें स्वत: खत्म हो जायेंगी।
हद की बातों में समय देना - यह भी गुडियों का खेल है जिसमें समय और एनर्जी वेस्ट जाती है, इसलिए छोटी-छोटी बातों में समय वा जमा की हुई शक्तियां व्यर्थ नहीं गंवाओ।
07.04.2021 सहजयोग को नेचर और नैचुरल बनाने वाले हर सबजेक्ट में परफेक्ट भव जैसे बाप के बच्चे हो - इसमें कोई परसेन्टेज़ नहीं है, ऐसे निरन्तर सहजयोगी वा योगी बनने की स्टेज में अब परसेन्टेज खत्म होनी चाहिए। नैचुरल और नेचर हो जानी चाहिए।
जैसे कोई की विशेष नेचर होती है, उस नेचर के वश न चाहते भी चलते रहते हैं।
ऐसे यह भी नेचर बन जाए। क्या करूं, कैसे योग लगाऊं - यह बातें खत्म हो जाएं तो हर सबजेक्ट में परफेक्ट बन जायेंगे।
परफेक्ट अर्थात् इफेक्ट और डिफेक्ट से परे।
06.04.2021 सहयोग द्वारा स्वयं को सहज योगी बनाने वाले निरन्तर योगी भव
संगमयुग पर बाप का सहयोगी बन जाना - यही सहजयोगी बनने की विधि है।
जिनका हर संकल्प, शब्द और कर्म बाप की वा अपने राज्य की स्थापना के कर्तव्य में सहयोगी रहने का है, उसको ज्ञानी, योगी तू आत्मा निरन्तर सच्चा सेवाधारी कहा जाता है।
मन से नहीं तो तन से, तन से नहीं तो धन से, धन से भी नहीं तो जिसमें सहयोगी बन सकते हो उसमें सहयोगी बनो तो यह भी योग है।
जब हो ही बाप के, तो बाप और आप - तीसरा कोई न हो - इससे निरन्तर योगी बन जायेंगे।
05.04.2021 स्वमान में स्थित रह विश्व द्वारा सम्मान प्राप्त करने वाले, देह-अभिमान मुक्त भव
पढ़ाई का मूल लक्ष्य है - देह-अभिमान से न्यारे हो देही-अभिमानी बनना।
इस देह-अभिमान से न्यारे अथवा मुक्त होने की विधि ही है - सदा स्वमान में स्थित रहना।
संगमयुग के और भविष्य के जो अनेक प्रकार के स्वमान हैं उनमें किसी एक भी स्वमान में स्थित रहने से देह-अभिमान मिटता जायेगा।
जो स्वमान में स्थित रहता है उन्हें स्वत: मान प्राप्त होता है।
सदा स्वमान में रहने वाले ही विश्व महाराजन बनते हैं और विश्व उन्हें सम्मान देती है।
04.04.2021 मालिकपन की स्मृति द्वारा हाइएस्ट अथॉरिटी का अनुभव करने वाले कम्बाइन्ड स्वरूपधारी भव पहले अपने शरीर और आत्मा के कम्बाइंड रूप को स्मृति में रखो। शरीर रचना है, आत्मा रचता है।
इससे मालिकपन स्वत: स्मृति में रहेगा। मालिकपन की स्मृति से स्वयं को हाइएस्ट अथॉरिटी अनुभव करेंगे।
शरीर को चलाने वाले होंगे। दूसरा - बाप और बच्चा (शिवशक्ति) के कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति से माया के विघ्नों को अथॉरिटी से पार कर लेंगे।
03.04.2021 एक बाप में सारे संसार का अनुभव करने वाले बेहद के वैरागी भव बेहद के वैरागी वही बन सकते जो बाप को ही अपना संसार समझते हैं।
जिनका बाप ही संसार है वह अपने संसार में ही रहेंगे, दूसरे में जायेंगे ही नहीं तो किनारा स्वत: हो जायेगा।
संसार में व्यक्ति और वैभव सब आ जाता है। बाप की सम्पत्ति सो अपनी सम्पत्ति - इसी स्मृति में रहने से बेहद के वैरागी हो जायेंगे।
कोई को देखते हुए भी नहीं देखेंगे। दिखाई ही नहीं देंगे।
02.04.2021
ईश्वरीय भाग्य में लाइट का क्राउन प्राप्त करने वाले सर्व प्राप्ति स्वरूप भव
दुनिया में भाग्य की निशानी राजाई होती है और राजाई की निशानी ताज होता है।
ऐसे ईश्वरीय भाग्य की निशानी लाइट का क्राउन है। और इस क्राउन की प्राप्ति का आधार है प्युरिटी।
सम्पूर्ण पवित्र आत्मायें लाइट के ताजधारी होने के साथ-साथ सर्व प्राप्तियों से भी सम्पन्न होती हैं।
अगर कोई भी प्राप्ति की कमी है तो लाइट का क्राउन स्पष्ट दिखाई नहीं देगा।
01.04.2021 एक बाप की स्मृति से सच्चे सुहाग का अनुभव करने वाले भाग्यवान आत्मा भव
जो किसी भी आत्मा के बोल सुनते हुए नहीं सुनते, किसी अन्य आत्मा की स्मृति संकल्प वा स्वप्न में भी नहीं लाते अर्थात्
किसी भी देहधारी के झुकाव में नहीं आते, एक बाप दूसरा न कोई इस स्मृति में रहते हैं उन्हें अविनाशी सुहाग का तिलक लग जाता है।
ऐसे सच्चे सुहाग वाले ही भाग्यवान हैं।
31.03.2021 अटूट कनेक्शन द्वारा करेन्ट का अनुभव करने वाले सदा मायाजीत, विजयी भव
जैसे बिजली की शक्ति ऐसा करेन्ट लगाती है जो मनुष्य दूर जाकर गिरता है, शॉक आ जाता है।
ऐसे ईश्वरीय शक्ति माया को दूर फेंक दे, ऐसी करेन्ट होनी चाहिए लेकिन करेन्ट का आधार कनेक्शन है।
चलते फिरते हर सेकण्ड बाप के साथ कनेक्शन जुटा हुआ हो।
ऐसा अटूट कनेक्शन हो तो करेन्ट आयेगी और मायाजीत, विजयी बन जायेंगे।
30.03.2021 अपने स्मृति की ज्योति से ब्राह्मण कुल का नाम रोशन करने वाले कुल दीपक भव यह ब्राह्मण कुल सबसे बड़े से बड़ा है, इस कुल के आप सब दीपक हो।
कुल दीपक अर्थात् सदा अपनें स्मृति की ज्योति से ब्राह्मण कुल का नाम रोशन करने वाले।
अखण्ड ज्योति अर्थात् सदा स्मृति स्वरूप और समर्थी स्वरूप।
यदि स्मृति रहे कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ तो समर्थ स्वरूप स्वत: रहेंगे।
इस अखण्ड़ ज्योति का यादगार आपके जड़ चित्रों के आगे अखण्ड ज्योति जगाते हैं।
29.03.2021 परतन्त्रता के बंधन को समाप्त कर सच्ची स्वतन्त्रता का अनुभव करने वाले मास्टर सर्वशक्तिवान भव
विश्व को सर्व शक्तियों का दान देने के लिए स्वतन्त्र आत्मा बनो। सबसे पहली स्वतन्त्रता पुरानी देह के अन्दर के संबंध से हो क्योंकि देह की परतंत्रता अनेक बंधनों में न चाहते भी बांध देती है।
परतंत्रता सदैव नीचे की ओर ले जाती है। परेशानी वा नीरस स्थिति का अनुभव कराती है।
उन्हें कोई भी सहारा स्पष्ट दिखाई नहीं देता। न गमी का अनुभव, न खुशी का अनुभव, बीच भंवर में होते हैं।
इसलिए मास्टर सर्वशक्तिवान बन सर्व बंधनों से मुक्त बनो, अपना सच्चा स्वतन्त्रता दिवस मनाओ।
28.03.2021 अपने पूजन को स्मृति में रख हर कर्म पूज्यनीय बनाने वाले परमपूज्य भव
आप बच्चों की हर शक्ति का पूजन देवी- देवताओं के रूप में होता है।
सूर्य देवता, वायु देवता, पृथ्वी देवी... ऐसे ही निर्भयता की शक्ति का पूजन काली देवी के रूप में है, सामना करने की शक्ति का पूजन दुर्गा के रूप में है।
सन्तुष्ट रहने और करने की शक्ति का पूजन सन्तोषी माता के रूप में है।
वायु समान हल्के बनने की शक्ति का पूजन पवनपुत्र के रूप में है।
तो अपने इस पूजन को स्मृति में रख हर कर्म पूज्यनीय बनाओ तब परमपूज्य बनेंगे।
27.03.2021 शक्तियों की किरणों द्वारा कमी, कमजोरी रूपी किचड़े को भस्म करने वाले मास्टर ज्ञान सूर्य भव जो बच्चे ज्ञान सूर्य समान मास्टर सूर्य हैं वे अपने शक्तियों की किरणों द्वारा किसी भी प्रकार का किचड़ा अर्थात् कमी वा कमजोरी, सेकण्ड में भस्म कर देते हैं।
सूर्य का काम है किचड़े को ऐसा भस्म कर देना जो नाम, रूप, रंग सदा के लिए समाप्त हो जाए।
मास्टर ज्ञान सूर्य की हर शक्ति बहुत कमाल कर सकती है लेकिन समय पर यूज़ करना आता हो।
जिस समय जिस शक्ति की आवश्यकता हो उस समय उसी शक्ति से काम लो और सर्व की कमजोरियों को भस्म करो तब कहेंगे मास्टर ज्ञान सूर्य।
26.03.2021 समय के श्रेष्ठ खजाने को सफल कर सदा और सर्व सफलतामूर्त भव
जो बच्चे समय के खजाने को स्वयं के वा सर्व के कल्याण प्रति लगाते हैं उनके सर्व खजानें स्वत: जमा हो जाते हैं।
समय के महत्व को जानकर उसे सफल करने वाले संकल्प का खजाना, खुशी का खजाना, शक्तियों का खजाना, ज्ञान का खजाना और श्वासों का खजाना... यह सब खजाने स्वत: जमा कर लेते हैं।
सिर्फ अलबेले पन को छोड़ समय के खजाने को सफल करो तो सदा और सर्व सफलतामूर्त बन जायेंगे।
25.03.2021 हर कर्म रूपी बीज को फलदायक बनाने वाले योग्य शिक्षक भव योग्य शिक्षक उसे कहा जाता है - जो स्वयं शिक्षा स्वरूप हो क्योंकि शिक्षा देने का सबसे सहज साधन है स्वरूप द्वारा शिक्षा देना।
वे अपने हर कदम द्वारा शिक्षा देते हैं, उनके हर बोल वाक्य नहीं लेकिन महावाक्य कहे जाते हैं।
उनका हर कर्म रूपी बीज फलदायक होता है, निष्फल नहीं।
ऐसे योग्य शिक्षक का संकल्प आत्माओं को नई सृष्टि का अधिकारी बना देता है।
24.03.2021 एकाग्रता के अभ्यास द्वारा अनेक आत्माओं की चाहनाओं को पूर्ण करने वाले विश्व कल्याणकारी भव
सर्व आत्माओं की चाहना है कि भटकती हुई बुद्धि वा मन चंचलता से एकाग्र हो जाए।
तो उनकी इस चाहना को पूर्ण करने के लिए पहले आप स्वयं अपने संकल्पों को एकाग्र करने का अभ्यास बढ़ाओ, निरन्तर एकरस स्थिति में वा एक बाप दूसरा न कोई.... इस स्थिति में स्थित रहो, व्यर्थ संकल्पों को शुद्ध संकल्पों में परिवर्तन करो तब विश्व कल्याणकारी भव का वरदान प्राप्त होगा।
23.03.2021 मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्मृति द्वारा मायाजीत सो जगतजीत, विजयी भव जो बच्चे बहुत सोचते हैं कि पता नहीं माया क्यों आ गई, तो माया भी घबराया हुआ देख और वार कर लेती है इसलिए सोचने के बजाए सदा मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्मृति में रहो - तो विजयी बन जायेंगे।
विजयी रत्न बनाने के निमित्त ही यह माया के छोटे-छोटे रूप हैं इसलिए स्वयं को मायाजीत, जगतजीत समझ माया पर विजय प्राप्त करो, कमजोर मत बनो।
चैलेन्ज करने वाले बनो।
22.03.2021 साधारणता को समाप्त कर महानता का अनुभव करने वाले श्रेष्ठ पुरूषार्थी भव
जो श्रेष्ठ पुरूषार्थी बच्चे हैं उनका हर संकल्प महान होगा क्योंकि उनके हर संकल्प, श्वांस में स्वत: बाप की याद होगी।
जैसे भक्ति में कहते हैं अनहद शब्द सुनाई दे, अजपाजाप चलता रहे, ऐसा पुरूषार्थ निरन्तर हो इसको कहा जाता है श्रेष्ठ पुरूषार्थ।
याद करना नहीं, स्वत: याद आता रहे तब साधारणता खत्म होती जायेगी और महानता आती जायेगी - यही है आगे बढ़ने की निशानी।
21.03.2021 बाप समान अपने हर बोल व कर्म का यादगार बनाने वाले दिलतख्तनशीन सो राज्य तख्तनशीन भव जैसे बाप द्वारा जो भी बोल निकलते हैं वह यादगार बन जाते हैं, ऐसे जो बाप समान हैं वो जो भी बोलते हैं वह सबके दिलों में समा जाता है अर्थात् यादगार रह जाता है। वो जिस आत्मा के प्रति संकल्प करते तो उनके दिल को लगता है। उनके दो शब्द भी दिल को राहत देने वाले होते हैं, उनसे समीपता का अनुभव होता है इसलिए उन्हें सब अपना समझते हैं। ऐसे समान बच्चे ही दिलतख्तनशीन सो राज्य तख्तनशीन बनते हैं।
20.03.2021 समर्पणता द्वारा बुद्धि को स्वच्छ बनाने वाले सर्व खजानों से सम्पन्न भव ज्ञान का, श्रेष्ठ समय का खजाना जमा करना वा स्थूल खजाने को एक से लाख गुणा बनाना अर्थात् जमा करना... इन सब खजानों में सम्पन्न बनने का आधार है स्वच्छ बुद्धि और सच्ची दिल।
लेकिन बुद्धि स्वच्छ तब बनती है जब बुद्धि द्वारा बाप को जानकर, उसे बाप के आगे समर्पण कर दो।
शूद्र बुद्धि को समर्पण करना अर्थात् देना ही दिव्य बुद्धि लेना है।
19.03.2021 ब्राह्मण जीवन की नीति और रीति प्रमाण सदा चलने वाले व्यर्थ संकल्प मुक्त भव
जो ब्राह्मण जीवन की नीति, रीति प्रमाण चलते हुए सदा श्रीमत की आज्ञायें स्मृति में रखते हैं और सारा दिन शुद्ध प्रवृत्ति में बिजी रहते हैं उन पर व्यर्थ संकल्प रूपी रावण वार नहीं कर सकता।
बुद्धि की प्रवृत्ति है शुद्ध संकल्प करना, वाणी की प्रवृत्ति है बाप द्वारा जो सुना वह सुनाना,
कर्म की प्रवृत्ति है कर्मयोगी बन हर कर्म करना - इसी प्रवृत्ति में बिजी रहने वाले व्यर्थ संकल्पों से निवृत्ति प्राप्त कर लेते हैं।
18.03.2021 याद और सेवा के डबल लॉक द्वारा सदा सेफ, सदा खुश और सदा सन्तुष्ट भव
सारा दिन संकल्प, बोल और कर्म बाप की याद और सेवा में लगा रहे।
हर संकल्प में बाप की याद हो, बोल द्वारा बाप का दिया हुआ खजाना दूसरों को दो, कर्म द्वारा बाप के चरित्रों को सिद्ध करो।
अगर ऐसे याद और सेवा में सदा बिजी रहो तो डबल लॉक लग जायेगा फिर माया कभी आ नहीं सकती।
जो इस स्मृति से पक्का लॉक लगाते हैं वो सदा सेफ, सदा खुश और सदा सन्तुष्ट रहते हैं।
17.03.2021 श्रीमत द्वारा सदा खुशी वा हल्केपन का अनुभव करने वाले मनमत और परमत से मुक्त भव
जिन बच्चों का हर कदम श्रीमत प्रमाण है उनका मन सदा सन्तुष्ट होगा,
मन में किसी भी प्रकार की हलचल नहीं होगी,
श्रीमत पर चलने से नैचुरल खुशी रहेगी,
हल्केपन का अनुभव होगा,
इसलिए जब भी मन में हलचल हो, जरा सी खुशी की परसेन्टेज कम हो तो चेक करो - जरूर श्रीमत की अवज्ञा होगी इसलिए सूक्ष्म चेकिंग कर मनमत वा परमत से स्वयं को मुक्त कर लो।
16.03.2021 कारण को निवारण में परिवर्तन कर सदा आगे बढ़ने वाले समर्थी स्वरूप भव
ज्ञान मार्ग में जितना आगे बढ़ेंगे उतना माया भिन्न-भिन्न रूप से परीक्षा लेने आयेगी क्योंकि यह परीक्षायें ही आगे बढ़ाने का साधन है न कि गिराने का।
लेकिन निवारण के बजाए कारण सोचते हो तो समय और शक्ति व्यर्थ जाती है।
कारण के बजाए निवारण सोचो और एक बाप के याद की लगन में मगन रहो तो समर्थी स्वरूप बन निर्विघ्न हो जायेंगे।
15.03.2021 अपने सहयोग से निर्बल आत्माओं को वर्से का अधिकारी बनाने वाले वरदानी मूर्त भव
अब वरदानी मूर्त द्वारा संकल्प शक्ति की सेवा कर निर्बल आत्माओं को बाप के समीप लाओ।
मैजारिटी आत्माओं में शुभ इच्छा उत्पन्न हो रही है कि आध्यात्मिक शक्ति जो कुछ कर सकती है वह और कोई नहीं कर सकता।
लेकिन आध्यात्मिकता की ओर चलने के लिए अपने को हिम्मतहीन समझते हैं।
उन्हें अपने शक्ति से हिम्मत की टांग दो तब बाप के समीप चलकर आयेंगे।
अब वरदानी मूर्त बन अपने सहयोग से उन्हें वर्से के अधिकारी बनाओ।
14.03.2021 पावरफुल ब्रेक द्वारा वरदानी रूप से सेवा करने वाले लाइट माइट हाउस भव वरदानी रूप से सेवा करने के लिए पहले स्वयं में शुद्ध संकल्प चाहिए तथा अन्य संकल्पों को सेकण्ड में कन्ट्रोल करने का विशेष अभ्यास चाहिए।
सारा दिन शुद्ध संकल्पों के सागर में लहराते रहो और जिस समय चाहे शुद्ध संकल्पों के सागर के तले में जाकर साइलेन्स स्वरूप हो जाओ,
इसके लिए ब्रेक पावरफुल हो, संकल्पों पर पूरा कन्ट्रोल हो और बुद्धि व संस्कार पर पूरा अधिकार हो तब लाइट माइट हाउस बन वरदानी रूप से सेवा कर सकेंगे।
13.03.2021 इस हीरे तुल्य युग में हीरा देखने और हीरो पार्ट बजाने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव जैसे जौहरी की नज़र सदा हीरे पर रहती है, आप सब भी ज्वेलर्स हो, आपकी नज़र पत्थर की तरफ न जाये, हीरे को देखो।
हर एक की विशेषता पर ही नज़र जाये।
संगमयुग है भी हीरे तुल्य युग।
पार्ट भी हीरो, युग भी हीरे तुल्य, तो हीरा ही देखो तब अपने शुभ भावना की किरणें सब तरफ फैला सकेंगे। वर्तमान समय इसी बात का विशेष अटेन्शन चाहिए।
ऐसे पुरूषार्थी को ही तीव्र पुरूषार्थी कहा जाता है।
12.03.2021 निश्चय के आधार पर सदा एकरस अचल स्थिति में स्थित रहने वाले निश्चिंत भव
निश्चयबुद्धि की निशानी है ही सदा निश्चिंत।
वह किसी भी बात में डगमग नहीं हो सकते, सदा अचल रहेंगे इसलिए कुछ भी हो सोचो नहीं, क्या क्यों में कभी नहीं जाओ,
त्रिकालदर्शी बन निश्चिंत रहो क्योंकि हर कदम में कल्याण है।
जब कल्याणकारी बाप का हाथ पकड़ा है तो वह अकल्याण को भी कल्याण में बदल देगा इसलिए सदा निश्चिंत रहो।
11.03.2021 हर संकल्प बाप के आगे अर्पण कर कमजोरियों को दूर करने वाले सदा स्वतन्त्र भव
कमजोरियों को दूर करने का सहज साधन है - जो भी कुछ संकल्प में आता है वह बाप को अर्पण कर दो।
सब जिम्मेवारी बाप को दे दो तो स्वयं स्वतंत्र हो जायेंगे।
सिर्फ एक दृढ़ संकल्प रखो कि मैं बाप का और बाप मेरा।
जब इस अधिकारी स्वरूप में स्थित होंगे तो अधीनता आटोमेटिक निकल जायेगी।
हर सेकेण्ड यह चेक करो कि मैं बाप समान सर्व शक्तियों का अधिकारी मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ!
10.03.2021 दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा विश्व की देख-रेख करने वाले मास्टर रचयिता भव
जिसकी बुद्धि जितनी दिव्य है, दिव्यता के आधार पर उतनी स्पीड तेज है।
तो दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा एक सेकेण्ड में स्पष्ट रूप से विश्व परिक्रमा कर सर्व आत्माओं की देख रेख करो।
उन्हें सन्तुष्ट करो।
जितना आप चक्रवर्ती बनकर चक्र लगायेंगे उतना चारों ओर का आवाज निकलेगा कि हम लोगों ने ज्योति देखी, चलते हुए फरिश्ते देखे।
इसके लिए स्वयं कल्याणी के साथ विश्व कल्याणी मास्टर रचता बनो।
09.03.2021 अपने स्व-स्वरूप और स्वदेश के स्वमान में स्थित रहने वाले मास्टर लिबरेटर भव आजकल के वातावरण में हर आत्मा किसी न किसी बात के बंधन वश है।
कोई तन के दु:ख के वशीभूत है, कोई सम्बन्ध के, कोई इच्छाओं के, कोई अपने दुखदाई संस्कार-स्वभाव के, कोई प्रभू प्राप्ति न मिलने के कारण, पुकारने चिल्लाने के दु:ख के वशीभूत...ऐसी दुख-अशान्ति के वश आत्मायें अपने को लिबरेट करना चाहती हैं तो उन्हें दु:खमय जीवन से लिबरेट करने के लिए अपने स्व-स्वरूप और स्वदेश के स्वमान में स्थित रह, रहमदिल बन मास्टर लिबरेटर बनो।
08.03.2021 सदा उमंग, उत्साह में रह चढ़ती कला का अनुभव करने वाले महावीर भव
महावीर बच्चे हर सेकेण्ड, हर संकल्प में चढ़ती कला का अनुभव करते हैं।
उनकी चढ़ती कला सर्व के प्रति भला अर्थात् कल्याण करने के निमित्त बना देती है।
उन्हें रूकने वा थकने की अनुभूति नहीं होती, वे सदा अथक, सदा उमंग-उत्साह में रहने वाले होते हैं।
रूकने वाले को घोड़ेसवार, थकने वाले को प्यादा और जो सदा चलने वाले हैं उनको महावीर कहा जाता है।
उनकी माया के किसी भी रूप में आंख नहीं डूबेगी।
07.03.2021 युद्ध में डरने वा पीछे हटने के बजाए बाप के साथ द्वारा सदा विजयी भव सेना में युद्ध करने वाले जो योद्धे होते हैं उन्हों का स्लोगन होता कि हारना वा पीछे लौटना कमजोरों का काम है, योद्धा अर्थात् मरना और मारना।
आप भी रूहानी योद्धे डरने वा पीछे हटने वाले नहीं, सदा आगे बढ़ते विजयी बनने वाले हो।
ऐसे कभी नहीं सोचना कि कहाँ तक युद्ध करें, यह तो सारे जिंदगी की बात है लेकिन 5000 वर्ष की प्रारब्ध के हिसाब से यह सेकेण्ड की बात है, सिर्फ विशाल बुद्धि बनकर बेहद के हिसाब से देखो और बाप की याद वा साथ की अनुभूति द्वारा विजयी बनो।
06.03.2021 आश्चर्यजनक दृश्य देखते हुए पहाड़ को राई बनाने वाले साक्षीदृष्टा भव सम्पन्न बनने में अनेक नये-नये वा आश्चर्यजनक दृश्य सामने आयेंगे, लेकिन वह दृश्य साक्षीदृष्टा बनावें, हिलायें नहीं।
साक्षी दृष्टा के स्थिति की सीट पर बैठकर देखने वा निर्णय करने से बहुत मजा आता है। भय नहीं लगता।
जैसेकि अनेक बार देखी हुई सीन फिर से देख रहे हैं।
वह राजयुक्त, योगयुक्त बन वायुमण्डल को डबल लाइट बनायेंगे।
उन्हें पहाड़ समान पेपर भी राई के समान अनुभव होगा।
05.03.2021 सदा पश्चाताप से परे, प्राप्ति स्वरूप स्थिति का अनुभव करने वाले सद्-बुद्धिवान भव
जो बच्चे बाप को अपने जीवन की नैया देकर मैं पन को मिटा देते हैं।
श्रीमत में मनमत मिक्स नहीं करते वह सदा पश्चाताप से परे प्राप्ति स्वरूप स्थिति का अनुभव करते हैं।
उन्हें ही सद्-बुद्धिवान कहा जाता है।
ऐसे सद्-बुद्धि वाले तूफानों को तोफा समझ, स्वभाव-संस्कार की टक्कर को आगे बढ़ने का आधार समझ, सदा बाप को साथी बनाते हुए, साक्षी हो हर पार्ट देखते सदा हर्षित होकर चलते हैं।
04.03.2021 सेकण्ड में संकल्पों को स्टॉप कर अपने फाउन्डेशन को मजबूत बनाने वाले पास विद आनर भव
कोई भी पेपर परिपक्व बनाने के लिए, फाउण्डेशन को मजबूत करने के लिए आते हैं, उसमें घबराओ नहीं।
बाहर की हलचल में एक सेकेण्ड में स्टॉप करने का अभ्यास करो, कितना भी विस्तार हो एक सकेण्ड में समेट लो।
भूख प्यास, सर्दी गर्मी सब कुछ होते हुए संस्कार प्रकट न हों, समेटने की शक्ति द्वारा स्टॉप लगा दो।
यही बहुत समय का अभ्यास पास विद आनर बना देगा।
03.03.2021 कम्पन्नी और कम्पैनियन को समझकर साथ निभाने वाले श्रेष्ठ भाग्यवान भव
ड्रामा के भाग्य प्रमाण आप थोड़ी सी आत्मायें हो जिन्हें सर्व प्राप्ति कराने वाली श्रेष्ठ ब्राह्मणों की कम्पनी मिली है।
सच्चे ब्राह्मणों की कम्पनी चढ़ती कला वाली होती है, वे कभी ऐसी कम्पनी (संग) नहीं करेंगे जो हरती कला में ले जाए।
जो सदा श्रेष्ठ कम्पन्नी में रहते और एक बाप को अपना कम्पैनियन बनाकर उनसे ही प्रीति की रीति निभाते हैं वही श्रेष्ठ भाग्यवान हैं।
02.03.2021
अपने दिव्य, अलौकिक जन्म की स्मृति द्वारा मर्यादा की लकीर के अन्दर रहने वाले मर्यादा पुरूषोत्तम भव जैसे हर कुल के मर्यादा की लकीर होती है ऐसे ब्राह्मण कुल के मर्यादाओं की लकीर है, ब्राह्मण अर्थात् दिव्य और अलौकिक जन्म वाले मर्यादा पुरूषोत्तम।
वे संकल्प में भी किसी आकर्षण वश मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं कर सकते।
जो मर्यादा की लकीर का संकल्प में भी उल्लंघन करते हैं वो बाप के सहारे का अनुभव नहीं कर पाते।
बच्चे के बजाए मांगने वाले भक्त बन जाते हैं।
ब्राह्मण अर्थात् पुकारना, मांगना बंद, कभी भी प्रकृति वा माया के मोहताज नहीं, वे सदा बाप के सिरताज रहते हैं।
01.03.2021 सदा साथ के अनुभव द्वारा मेहनत की अविद्या करने वाले अतीन्द्रिय सुख वा आनंद स्वरूप भव
जैसे बच्चा अगर बाप की गोदी में है तो उसे थकावट नहीं होती।
अपने पांव से चले तो थकेगा भी, रोयेगा भी।
यहाँ भी आप बच्चे बाप की गोदी में बैठे हुए चल रहे हो।
जरा भी मेहनत वा मुश्किल का अनुभव नहीं।
संगमयुग पर जो ऐसे सदा साथ रहने वाली आत्मायें हैं उनके लिए मेहनत अविद्या मात्रम् होती है।
पुरूषार्थ भी एक नेचरल कर्म हो जाता है, इसलिए सदा अतीन्द्रिय सुख वा आनंद स्वरूप स्वत: बन जाते हैं।
28.02.2021 सर्व आत्माओं को शक्तियों का दान देने वाले मास्टर बीजरूप भव
अनेक भक्त आत्मा रूपी पत्ते जो सूख गये हैं, मुरझा गये हैं उनको फिर से अपने बीजरूप स्थिति द्वारा शक्तियों का दान दो।
उन्हें सर्व प्राप्ति कराने का आधार है आपकी "इच्छा मात्रम् अविद्या'' स्थिति।
जब स्वयं इच्छा मात्रम् अविद्या होंगे तब अन्य आत्माओं की सर्व इच्छायें पूर्ण कर सकेंगे।
इच्छा मात्रम् अविद्या अर्थात् सम्पूर्ण शक्तिशाली बीजरूप स्थिति।
तो मास्टर बीजरूप बन भक्तों की पुकार सुनो, प्राप्ति कराओ।
27.02.2021 सदा अपने रॉयल कुल की स्मृति द्वारा ऊंची स्टेज पर रहने वाले गुणमूर्त भव
जो रॉयल कुल वाले होते हैं वह कभी धरती पर, मिट्टी पर पांव नहीं रखते।
यहाँ देह-अभिमान मिट्टी है, इसमें नीचे नहीं आओ, इस मिट्टी से सदा दूर रहो।
सदा स्मृति रहे कि ऊंचे से ऊंचे बाप के रॉयल फैमिली के, ऊंची स्टेज वाले बच्चे हैं तो नीचे नज़र नहीं आयेगी।
सदैव अपने को गुणमूर्त देखते हुए ऊंची स्टेज पर स्थित रहो।
कमी को देखते खत्म करते जाओ। उसे बार-बार सोचेंगे तो कमी रह जायेगी।
26.02.2021 सदा देह-अभिमान व देह की बदबू से दूर रहने वाले इन्द्रप्रस्थ निवासी भव
कहते हैं इन्द्रप्रस्थ में सिवाए परियों के और कोई भी मनुष्य निवास नहीं कर सकते।
मनुष्य अर्थात् जो अपने को आत्मा न समझ देह समझते हैं।
तो देह-अभिमान और देह की पुरानी दुनिया, पुराने संबंधों से सदा ऊपर उड़ते रहते।
जरा भी मनुष्य-पन की बदबू न हो।
देही-अभिमानी स्थिति में रहो, ज्ञान और योग के पंख मजबूत हों तब कहेंगे इन्द्रप्रस्थ निवासी।
25.02.2021 सर्व जिम्मेवारियों के बोझ बाप को देकर सदा अपनी उन्नति करने वाले सहजयोगी भव
जो बच्चे बाप के कार्य को सम्पन्न करने की जिम्मेवारी का संकल्प लेते हैं उन्हें बाप भी इतना ही सहयोग देते हैं।
सिर्फ जो भी व्यर्थ का बोझ है वह बाप के ऊपर छोड़ दो।
बाप का बनकर बाप के ऊपर जिम्मेवारियों का बोझ छोड़ने से सफलता भी ज्यादा और उन्नति भी सहज होगी।
क्यों और क्या के क्वेश्चन से मुक्त रहो, विशेष फुल-स्टॉप की स्थिति रहे तो सहजयोगी बन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करते रहेंगे।
24.02.2021 सोचने और करने के अन्तर को मिटाने वाले स्व-परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक भव
कोई भी संस्कार, स्वभाव, बोल व सम्पर्क जो यथार्थ नहीं व्यर्थ है,
उस व्यर्थ को परिवर्तन करने की मशीनरी फास्ट करो।
सोचा और किया.. तब विश्व परिवर्तन की मशीनरी तेज होगी।
अभी स्थापना के निमित्त बनी हुई आत्माओं के सोचने और करने में अन्तर दिखाई देता है, इस अन्तर को मिटाओ।
तब स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक बन सकेंगे।
23.02.2021 "निराकार सो साकार'' - इस मन्त्र की स्मृति से सेवा का पार्ट बजाने वाले रूहानी सेवाधारी भव
जैसे बाप निराकार सो साकार बन सेवा का पार्ट बजाते हैं ऐसे बच्चों को भी इस मन्त्र का यन्त्र स्मृति में रख सेवा का पार्ट बजाना है।
यह साकार सृष्टि, साकार शरीर स्टेज है।
स्टेज आधार है, पार्टधारी आधारमूर्त हैं, मालिक हैं।
इस स्मृति से न्यारे बनकर पार्ट बजाओ तो सेन्स के साथ इसेंसफुल, रूहानी सेवाधारी बन जायेंगे।
22.02.2021 एक साथ तीन रूपों से सेवा करने वाले मास्टर त्रिमूर्ति भव जैसे बाप सदा तीन स्वरूपों से सेवा पर उपस्थित हैं बाप, शिक्षक और सतगुरू, ऐसे आप बच्चे भी हर सेकण्ड मन, वाणी और कर्म तीनों द्वारा साथ-साथ सर्विस करो तब कहेंगे मास्टर त्रिमूर्ति।
मास्टर त्रिमूर्ति बन जो हर सेकण्ड तीनों रूपों से सेवा पर उपस्थित रहते हैं वही विश्व कल्याण कर सकेंगे
क्योंकि
इतने बड़े विश्व का कल्याण करने के लिए जब एक ही समय पर तीनों रूप से सेवा हो तब यह सेवा का कार्य समाप्त हो।
21.02.2021 सन्तुष्टता की विशेषता वा श्रेष्ठता द्वारा सर्व के इष्ट बनने वाले वरदानी मूर्त भव
जो सदा स्वयं से और सर्व से सन्तुष्ट रहते हैं वही अनेक आत्माओं के इष्ट व अष्ट देवता बन सकते हैं।
सबसे बड़े से बड़ा गुण कहो, दान कहो या विशेषता वा श्रेष्ठता कहो - वह सन्तुष्टता ही है।
सन्तुष्ट आत्मा ही प्रभूप्रिय, लोकप्रिय और स्वयं प्रिय होती है।
ऐसी सन्तुष्ट आत्मा ही वरदानी रूप में प्रसिद्ध होगी।
अभी अन्त के समय में महादानी से भी ज्यादा वरदानी रूप द्वारा सेवा होगी।
20.02.2021 अपनी श्रेष्ठ धारणाओं प्रति त्याग में भाग्य का अनुभव करने वाले सच्चे त्यागी भव
ब्राह्मणों की श्रेष्ठ धारणा है सम्पूर्ण पवित्रता।
इसी धारणा के लिए गायन है "प्राण जाएं पर धर्म न जाये।''
किसी भी प्रकार की परिस्थिति में अपनी इस धारणा के प्रति कुछ भी त्याग करना पड़े, सहन करना पड़े, सामना करना पड़े, साहस रखना पड़े तो खुशी-खुशी से करो - इसमें त्याग को त्याग न समझ भाग्य का अनुभव करो तब कहेंगे सच्चे त्यागी।
ऐसी धारणा वाले ही सच्चे ब्राह्मण कहे जाते हैं।
19.02.2021 संगमयुग के श्रेष्ठ चित्र को सामने रख भविष्य का दर्शन करने वाले त्रिकालदर्शी भव भविष्य के पहले सर्व प्राप्तियों का अनुभव आप संगमयुगी ब्राह्मण करते हो।
अभी डबल ताज, तख्त, तिलकधारी, सर्व अधिकारी मूर्त बनते हो।
भविष्य में तो गोल्डन स्पून होगा लेकिन अभी हीरे तुल्य बन जाते हो।
जीवन ही हीरा बन जाता है।
वहाँ सोने, हीरे के झूले में झूलेंगे यहाँ बापदादा की गोदी में, अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते हो।
तो त्रिकालदर्शी बन वर्तमान और भविष्य के श्रेष्ठ चित्र को देखते हुए सर्व प्राप्तियों का अनुभव करो।
18.02.2021 ज्ञानी तू आत्मा बन ज्ञान सागर और ज्ञान में समाने वाले सर्व प्राप्ति स्वरूप भव
जो ज्ञानी तू आत्मायें हैं वह सदा ज्ञान सागर और ज्ञान में समाई रहती हैं,
सर्व प्राप्ति स्वरूप होने के कारण इच्छा मात्रम् अविद्या की स्टेज स्वत: रहती है।
जो अंश मात्र भी किसी स्वभाव-संस्कार के अधीन हैं, नाम-मान-शान के मंगता हैं।
क्या, क्यों के क्वेश्चन में चिल्लाने वाले, पुकारने वाले, अन्दर एक बाहर दूसरा रूप है - उन्हें ज्ञानी तू आत्मा नहीं कहा जा सकता।
17.02.2021 अमृतवेले के महत्व को समझकर यथार्थ रीति यूज़ करने वाले सदा शक्ति सम्पन्न भव
स्वयं को शक्ति सम्पन्न बनाने के लिए रोज़ अमृतवेले तन की और मन की सैर करो।
जैसे अमृतवेले समय का भी सहयोग है, बुद्धि सतोप्रधान स्टेज का भी सहयोग है,
तो ऐसे वरदानी समय पर मन की स्थिति भी सबसे पावरफुल स्टेज की चाहिए।
पावरफुल स्टेज अर्थात् बाप समान बीजरूप स्थिति।
साधारण स्थिति में तो कर्म करते भी रह सकते हो लेकिन वरदान के समय को यथार्थ रीति यूज़ करो तो कमजोरी समाप्त हो जायेगी।
16.02.2021 सर्व खजानों को विश्व कल्याण प्रति यूज़ करने वाले सिद्धि स्वरूप भव
जैसे अपने हद की प्रवृत्ति में, अपने हद के स्वभाव-संस्कारों की प्रवृत्ति में बहुत समय लगा देते हो, लेकिन अपनी-अपनी प्रवृत्ति से परे अर्थात् उपराम रहो और हर संकल्प, बोल, कर्म और सम्बन्ध-सम्पर्क में बैलेन्स रखो तो सर्व खजानों की इकॉनामी द्वारा कम खर्च बाला नशीन बन जायेंगे।
अभी समय रूपी खजाना, एनर्जी का खजाना और स्थूल खजाने में कम खर्च बाला नशीन बनो, इन्हें स्वयं के बजाए विश्व कल्याण प्रति यूज़ करो तो सिद्धि स्वरूप बन जायेंगे।
15.02.2021 अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति द्वारा अनेक आत्माओं का आह्वान करने वाले विश्व कल्याणकारी भव
जितना लास्ट कर्मातीत स्टेज समीप आती जायेगी उतना आवाज से परे शान्त स्वरूप की स्थिति अधिक प्रिय लगेगी -
इस स्थिति में सदा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति होगी और इसी अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति द्वारा अनेक आत्माओं का सहज आह्वान कर सकेंगे।
यह पावरफुल स्थिति ही विश्व कल्याणकारी स्थिति है।
इस स्थिति द्वारा कितनी भी दूर रहने वाली आत्मा को सन्देश पहुंचा सकते हो।
14.02.2021 सेवा की स्टेज पर समाने की शक्ति द्वारा सफलता मूर्त बनने वाले मास्टर सागर भव जब सेवा की स्टेज पर आते हो तो अनेक प्रकार की बातें सामने आती हैं, उन बातों को स्वयं में समा लो तो सफलतामूर्त बन जायेंगे।
समाना अर्थात् संकल्प रूप में भी किसी की व्यक्त बातों और भाव का आंशिक रूप समाया हुआ न हो।
अकल्याणकारी बोल कल्याण की भावना में ऐसे बदल दो जैसे अकल्याण का बोल था ही नहीं।
अवगुण को गुण में, निंदा को स्तुति में बदल दो - तब कहेंगे मास्टर सागर।
13.02.2021 सदा स्वमान में स्थित रह निर्मान स्थिति द्वारा सर्व को सम्मान देने वाले माननीय, पूज्यनीय भव
जो बाप की महिमा है वही आपका स्वमान है, स्वमान में स्थित रहो तो निर्मान बन जायेंगे,
फिर सर्व द्वारा स्वत: ही मान मिलता रहेगा।
मान मांगने से नहीं मिलता लेकिन सम्मान देने से, स्वमान में स्थित होने से, मान का त्याग करने से सर्व के माननीय वा पूज्यनीय बनने का भाग्य प्राप्त हो जाता है क्योंकि सम्मान देना, देना नहीं लेना है।
12.02.2021 हर कदम फरमान पर चलकर माया को कुर्बान कराने वाले सहजयोगी भव
जो बच्चे हर कदम फरमान पर चलते हैं उनके आगे सारी विश्व कुर्बान जाती है,
साथ-साथ माया भी अपने वंश सहित कुर्बान हो जाती है।
पहले आप बाप पर कुर्बान हो जाओ तो माया आप पर कुर्बान जायेगी और अपने श्रेष्ठ स्वमान में रहते हुए हर फरमान पर चलते रहो तो जन्म-जन्मान्तर की मुश्किल से छूट जायेंगे।
अभी सहजयोगी और भविष्य में सहज जीवन होगी।
तो ऐसी सहज जीवन बनाओ।
11.02.2021 अपने भाग्य और भाग्य विधाता की स्मृति द्वारा सर्व उलझनों से मुक्त रहने वाले मा. रचयिता भव
सदा वाह मेरा भाग्य और वाह भाग्य विधाता! इस मन के सूक्ष्म आवाज को सुनते रहो और खुशी में नाचते रहो।
जानना था वो जान लिया, पाना था वो पा लिया - इसी अनुभवों में रहो तो सर्व उलझनों से मुक्त हो जायेंगे।
अब उलझी हुई आत्माओं को निकालने का समय है इसलिए मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ, मास्टर रचयिता हूँ - इस स्मृति से बचपन की छोटी-छोटी बातों में समय नहीं गंवाओ।
10.02.2021 बर्थ राईट के नशे द्वारा लक्ष्य और लक्षण को समान बनाने वाले श्रेष्ठ तकदीरवान भव
जैसे लौकिक जन्म में स्थूल सम्पत्ति बर्थ राईट होती है, वैसे ब्राह्मण जन्म में दिव्यगुण रूपी सम्पत्ति, ईश्वरीय सुख और शक्ति बर्थ राईट है।
बर्थ राईट का नशा नेचुरल रूप में रहे तो मेहनत करने की आवश्यकता नहीं।
इस नशे में रहने से लक्ष्य और लक्षण समान हो जायेंगे।
स्वयं को जो हूँ, जैसा हूँ, जिस श्रेष्ठ बाप और परिवार का हूँ वैसा जानते और मानते हुए श्रेष्ठ तकदीरवान बनो।
09.02.2021
त्याग और तपस्या द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले सच्चे सेवाधारी भव
सेवा में सफलता का मुख्य साधन है त्याग और तपस्या। त्याग अर्थात् किसी परिस्थिति के कारण, मर्यादा के कारण, मजबूरी से त्याग करना यह त्याग नहीं है लेकिन ज्ञान स्वरूप से, संकल्प से भी त्यागी बनो
और तपस्वी अर्थात् सदा बाप की लगन में लवलीन, ज्ञान, प्रेम, आनंद, सुख, शान्ति के सागर में समाये हुए।
ऐसे त्यागी, तपस्वी ही सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले सच्चे सेवाधारी हैं।
08.02.2021 फुलस्टॉप द्वारा श्रेष्ठ स्थिति रूपी मैडल प्राप्त करने वाले महावीर भव
इस अनादि ड्रामा में रूहानी सेना के सेनानियों को कोई मैडल देता नहीं है लेकिन ड्रामानुसार उन्हें श्रेष्ठ स्थिति रूपी मैडल स्वत: प्राप्त हो जाता है।
यह मैडल उन्हें ही प्राप्त होता है जो हर आत्मा का पार्ट साक्षी होकर देखते हुए फुलस्टाप की मात्रा सहज लगा देते हैं।
ऐसी आत्माओं का फाउण्डेशन अनुभव के आधार पर होता है इसलिए कोई भी समस्या रूपी दीवार उन्हें रोक नहीं सकती।
07.02.2021 स्वयं के आराम का भी त्याग कर सेवा करने वाले सदा सन्तुष्ट, सदा हर्षित भव
सेवाधारी स्वयं के रात-दिन के आराम को भी त्यागकर सेवा में ही आराम महसूस करते हैं,
उनके सम्पर्क में रहने वाले वा सम्बन्ध में आने वाले समीपता का ऐसे अनुभव करते हैं जैसे शीतलता वा शक्ति, शान्ति के झरने के नीचे बैठे हैं।
श्रेष्ठ चरित्रवान सेवाधारी कामधेनु बन सदाकाल के लिए सर्व की मनोकामनायें पूर्ण कर देते हैं।
ऐसे सेवाधारी को सदा हर्षित और सदा सन्तुष्ट रहने का वरदान स्वत: प्राप्त हो जाता है।
06.02.2021
सदा रहम और कल्याण की दृष्टि से विश्व की सेवा करने वाले विश्व परिवर्तक भव
विश्व परिवर्तक वा विश्व सेवाधारी आत्माओं का मुख्य लक्षण है अपने रहम और कल्याण की दृष्टि द्वारा विश्व को सम्पन्न व सुखी बनाना।
जो अप्राप्त वस्तु है, ईश्वरीय सुख, शान्ति और ज्ञान के धन से, सर्व शक्तियों से सर्व आत्माओं को भिखारी से अधिकारी बनाना।
ऐसे सेवाधारी अपना हर सेकण्ड, बोल और कर्म, सम्बन्ध, सम्पर्क सेवा में ही लगाते हैं।
उनके देखने, चलने, खाने सबमें सेवा समाई हुई रहती है।
05.02.2021 त्रिकालदर्शी स्थिति द्वारा माया के वार से सेफ रहने वाले अतीन्द्रिय सुख के अधिकारी भव
संगमयुग का विशेष वरदान वा ब्राह्मण जीवन की विशेषता है - अतीन्द्रिय सुख।
यह अनुभव और किसी भी युग में नहीं होता।
लेकिन इस सुख की अनुभूति के लिए त्रिकालदर्शी स्थिति द्वारा माया के वार से सेफ रहो।
अगर बार-बार माया का वार होता रहेगा तो चाहते हुए भी अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर नहीं पायेंगे।
जो अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कर लेते हैं उन्हें इन्द्रियों का सुख आकर्षित कर नहीं सकता,
नॉलेजफुल होने के कारण उनके सामने वह तुच्छ दिखाई देगा।
04.02.2021 ड्रामा की ढाल को सामने रख खुशी की खुराक खाने वाले सदा शक्तिशाली भव
खुशी रूपी भोजन आत्मा को शक्तिशाली बना देता है, कहते भी हैं - खुशी जैसी खुराक नहीं।
इसके लिए ड्रामा की ढाल को अच्छी तरह से कार्य में लगाओ।
यदि सदा ड्रामा की स्मृति रहे तो कभी भी मुरझा नहीं सकते, खुशी गायब हो नहीं सकती क्योंकि यह ड्रामा कल्याणकारी है इसलिए अकल्याणकारी दृश्य में भी कल्याण समाया हुआ है, ऐसा समझ सदा खुश रहेंगे।
03.02.2021 सदा कल्याणकारी भावना द्वारा गुणग्राही बनने वाले अचल अडोल भव
अपनी स्थिति अचल अडोल बनाने के लिए सदा गुणग्राही बनो।
अगर हर बात में गुणग्राही होंगे तो हलचल में नहीं आयेंगे।
गुणग्राही अर्थात् कल्याण की भावना।
अवगुण में गुण देखना इसको कहते हैं गुणग्राही, इसलिए अवगुण वाले से भी गुण उठाओ।
जैसे वह अवगुण में दृढ़ है ऐसे आप गुण में दृढ़ रहो।
गुण का ग्राहक बनो, अवगुण का नहीं।
02.02.2021 अधिकारी पन की स्थिति द्वारा बाप को अपना साथी बनाने वाले सदा विजयी भव
बाप को साथी बनाने का सहज तरीका है - अधिकारी पन की स्थिति।
जब अधिकारी पन की स्थिति में स्थित रहते हो तब व्यर्थ संकल्प वा अशुद्ध संकल्पों की हलचल में वा अनेक रसों में बुद्धि डगमग नहीं होती।
बुद्धि की एकाग्रता द्वारा सामना करने, परखने व निर्णय करने की शक्ति आ जाती है, जो सहज ही माया के अनेक प्रकार के वार से विजयी बना देती है।
01.02.2021 स्वयं पर बापदादा को कुर्बान कराने वाले त्यागमूर्त, निश्चयबुद्धि भव
"बाप मिला सब कुछ मिला'' इस खुमारी वा नशे में सब कुछ त्याग करने वाले ज्ञान स्वरूप, निश्चयबुद्धि बच्चे बाप द्वारा जब खुशी, शान्ति, शक्ति वा सुख की अनुभूति करते हैं तो लोकलाज की भी परवाह न कर, सदा कदम आगे बढ़ाते रहते हैं।
उन्हें दुनिया का सब कुछ तुच्छ, असार अनुभव होता है।
ऐसे त्याग मूर्त, निश्चयबुद्धि बच्चों पर बापदादा अपनी सर्व सम्पत्ति सहित कुर्बान जाते हैं।
जैसे बच्चे संकल्प करते बाबा हम आपके हैं तो बाबा भी कहते कि जो बाप का सो आपका।
28.01.2021 सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य के नशे और खुशी में रहने वाले पदमापदम भाग्यशाली भव
सारे विश्व में जो भी धर्म पितायें वा जगद्गुरू कहलाने वाले बने हैं किसी को भी मात-पिता के सम्बन्ध से अलौकिक जन्म और पालना प्राप्त नहीं होती है।
वे अलौकिक मात-पिता का अनुभव स्वप्न में भी नहीं कर सकते और आप पदमापदमपति श्रेष्ठ आत्मायें हर रोज़ मात-पिता की वा सर्व सम्बन्धों की यादप्यार लेने के पात्र हो।
स्वयं सर्वशक्तिमान बाप आप बच्चों का सेवक बन हर कदम में साथ निभाता है - तो इसी श्रेष्ठ भाग्य के नशे और खुशी में रहो।
27.01.2021 देह-अभिमान के मैं पन की सम्पूर्ण आहुति डालने वाले धारणा स्वरूप भव
जब संकल्प और स्वप्न में भी देह-अभिमान का मैं पन न हो, अनादि आत्मिक स्वरूप की स्मृति हो।
बाबा-बाबा का अनहद शब्द निकलता रहे तब कहेंगे धारणा स्वरूप, सच्चे ब्राह्मण।
मैं पन अर्थात् पुराने स्वभाव, संस्कार रूपी सृष्टि को जब आप ब्राह्मण इस महायज्ञ में स्वाहा करेंगे तब इस पुरानी सृष्टि की आहुति पड़ेगी।
तो जैसे यज्ञ रचने के निमित्त बने हो, ऐसे अब अन्तिम आहुति डाल समाप्ति के भी निमित्त बनो।
26.01.2021 मेहनत और महानता के साथ रूहानियत का अनुभव कराने वाले शक्तिशाली सेवाधारी भव
जो भी आत्मायें आपके सम्पर्क में आती हैं उन्हें रूहानी शक्ति का अनुभव कराओ।
ऐसी स्थूल और सूक्ष्म स्टेज बनाओ जिससे आने वाली आत्मायें अपने स्वरूप का और रूहानियत का अनुभव करें।
ऐसी शक्तिशाली सेवा करने के लिए सेवाधारी बच्चों को व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म की हलचल से परे एकाग्रता अर्थात् रूहानियत में रहने का व्रत लेना पड़े।
इसी व्रत से ज्ञान सूर्य का चमत्कार दिखला सकेंगे।
25.01.2021 जिम्मेवारी सम्भालते हुए आकारी और निराकारी स्थिति के अभ्यास द्वारा साक्षात्कारमूर्त भव
जैसे साकार रूप में इतनी बड़ी जिम्मेवारी होते हुए भी आकारी और निराकारी स्थिति का अनुभव कराते रहे
ऐसे फालो फादर करो।
साकार रूप में फरिश्ते पन की अनुभूति कराओ।
कोई कितना भी अशान्त वा बेचैन घबराया हुआ आपके सामने आये लेकिन आपकी एक दृष्टि, वृत्ति और स्मृति की शक्ति उनको बिल्कुल शान्त कर दे।
व्यक्त भाव में आये और अव्यक्त स्थिति का अनुभव करे तब कहेंगे साक्षात्कारमूर्त।
24.01.2021 कर्म द्वारा गुणों का दान करने वाले डबल लाइट फरिश्ता भव
जो बच्चे कर्मणा द्वारा गुणों का दान करते हैं उनकी चलन और चेहरा दोनों ही फरिश्ते की तरह दिखाई देते हैं।
वे डबल लाइट अर्थात् प्रकाशमय और हल्केपन की अनुभूति करते हैं।
उन्हें कोई भी बोझ महसूस नहीं होता है।
हर कर्म में मदद की महसूसता होती है।
जैसे कोई शक्ति चला रही है।
हर कर्म द्वारा महादानी बनने के कारण उन्हें सर्व की आशीर्वाद वा सर्व के वरदानों की प्राप्ति का अनुभव होता है।
23.01.2021 अपने प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करने वाले श्रेष्ठ तकदीरवान भव
कोई भी बात को स्पष्ट करने के लिए अनेक प्रकार के प्रमाण दिये जाते हैं।
लेकिन सबसे श्रेष्ठ प्रमाण प्रत्यक्ष प्रमाण है। प्रत्यक्ष प्रमाण अर्थात् जो हो, जिसके हो उसकी स्मृति में रहना।
जो बच्चे अपने यथार्थ वा अनादि स्वरूप में स्थित रहते हैं वही बाप को प्रत्यक्ष करने के निमित्त हैं।
उनके भाग्य को देखकर भाग्य बनाने वाले की याद स्वत: आती है।
22.01.2021 सदा बाप के सम्मुख रह खुशी का अनुभव करने वाले अथक और आलस्य रहित भव
कोई भी प्रकार के संस्कार या स्वभाव को परिवर्तन करने में दिलशिकस्त होना या अलबेलापन आना भी थकना है, इससे अथक बनो।
अथक का अर्थ है जिसमें आलस्य न हो।
जो बच्चे ऐसे आलस्य रहित हैं वे सदा बाप के सम्मुख रहते और खुशी का अनुभव करते हैं।
उनके मन में कभी दु:ख की लहर नहीं आ सकती इसलिए सदा सम्मुख रहो और खुशी का अनुभव करो।
21.01.2021 श्रीमत के आधार पर खुशी, शक्ति और सफलता का अनुभव करने वाले सर्व प्राप्ति सम्पन्न भव जो बच्चे स्वयं को ट्रस्टी समझकर श्रीमत प्रमाण चलते हैं, श्रीमत में जरा भी मनमत या परमत मिक्स नहीं करते उन्हें निरन्तर खुशी, शक्ति और सफलता की अनुभूति होती है। पुरूषार्थ वा मेहनत कम होते भी प्राप्ति ज्यादा हो तब कहेंगे यथार्थ श्रीमत पर चलने वाले। परन्तु माया, ईश्वरीय मत में मनमत वा परमत को रायॅल रूप से मिक्स कर देती है इसलिए सर्व प्राप्तियों का अनुभव नहीं होता। इसके लिए परखने और निर्णय करने की शक्ति धारण करो तो धोखा नहीं खायेंगे।
20.01.2021 देही-अभिमानी स्थिति में स्थित हो सदा विशेष पार्ट बजाने वाले सन्तुष्टमणि भव
जो बच्चे विशेष पार्टधारी हैं उनकी हर एक्ट विशेष होती, कोई भी कर्म साधारण नहीं होता।
साधारण आत्मा कोई भी कर्म देह-अभिमानी होकर करेगी और विशेष आत्मा देही-अभिमानी बनकर करेगी।
जो देही-अभिमानी स्थिति में स्थित रहकर कर्म करते हैं वे स्वयं भी सदा सन्तुष्ट रहते हैं और दूसरों को भी सन्तुष्ट करते हैं इसलिए उन्हें सन्तुष्टमणि का वरदान स्वत: प्राप्त हो जाता है।
19.01.2021 एक बल एक भरोसे के आधार पर मंजिल को समीप अनुभव करने वाले हिम्मतवान भव
ऊंची मंजिल पर पहुंचने से पहले आंधी तूफान लगते ही हैं, स्टीमर को पार जाने के लिए बीच भंवर से क्रास करना ही पड़ता है इसलिए जल्दी में घबराओ मत, थको वा रूको मत।
साथी को साथ रखो तो हर मुश्किल सहज हो जायेगी, हिम्मतवान बन बाप की मदद के पात्र बनो।
एक बल एक भरोसा - इस पाठ को सदा पक्का रखो तो बीच भंवर से सहज निकल आयेंगे और मंजिल समीप अनुभव होगी।
18.01.2021 स्नेह के पीछे सर्व कमजोरियों को कुर्बान करने वाले समर्थी स्वरूप भव
स्नेह की निशानी है कुर्बानी। स्नेह के पीछे कुर्बान करने में कोई मुश्किल वा असम्भव बात भी सम्भव और सहज अनुभव होती है।
तो समर्थी स्वरूप के वरदान द्वारा सर्व कमजोरियों को मजबूरी से नहीं दिल से कुर्बान करो क्योंकि सत्य बाप के पास सत्य ही स्वीकार होता है।
तो सिर्फ बाप के स्नेह के गीत नहीं गाओ लेकिन स्वयं बाप समान अव्यक्त स्थिति स्वरूप बनो जो सब आपके गीत गायें।
17.01.2021 संगमयुग पर एक का सौगुणा प्रत्यक्षफल प्राप्त करने वाले पदमापदम भाग्यशाली भव
संगमयुग ही एक का सौगुणा प्रत्यक्षफल देने वाला है,
सिर्फ एक बार संकल्प किया कि मैं बाप का हूँ, मैं मास्टर सर्वशक्तिमान् हूँ तो मायाजीत बनने का, विजयी बनने के नशे का अनुभव होता है।
श्रेष्ठ संकल्प करना - यही है बीज और उसका सबसे बड़ा फल है जो स्वयं परमात्मा बाप भी साकार मनुष्य रूप में मिलने आता, इस फल में सब फल आ जाते हैं।
16.01.2021 स्वमान की सीट पर स्थित रह माया को सरेण्डर कराने वाले श्रेष्ठ स्वमानधारी भव
संगमयुग का सबसे श्रेष्ठ स्वमान है मास्टर सर्वशक्तिमान की स्मृति में रहना।
जैसे कोई बड़ा आफीसर वा राजा जब स्वमान की सीट पर स्थित होता है तो दूसरे भी उसे सम्मान देते हैं,
अगर स्वयं सीट पर नहीं तो उसका आर्डर कोई नहीं मानेंगे,
ऐसे आप भी स्वमानधारी बन अपने श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट रहो तो माया आपके आगे सरेण्डर हो जायेगी।
15.01.2021 साइलेन्स की शक्ति द्वारा सेकण्ड में हर समस्या का हल करने वाले एकान्तवासी भव
जब कोई भी नई वा शक्तिशाली इन्वेन्शन करते हैं तो अन्डरग्राउण्ड करते हैं।
यहाँ एकान्तवासी बनना ही अन्डरग्राउण्ड है।
जो भी समय मिले, कारोबार करते भी, सुनते-सुनाते, डायरेक्शन देते भी इस देह की दुनिया और देह के भान से परे साइलेन्स में चले जाओ।
यह अभ्यास वा अनुभव करने कराने की स्टेज हर समस्या का हल कर देगी, इससे एक सेकण्ड में किसी को भी शान्ति वा शक्ति की अनुभूति करा देंगे।
जो भी सामने आयेगा वह इसी स्टेज में साक्षात्कार का अनुभव करेगा।
14.01.2021 समय पर हर गुण वा शक्ति को यूज़ करने वाले अनुभवी मूर्त भव
ब्राह्मण जीवन की विशेषता है अनुभव।
अगर एक भी गुण वा शक्ति की अनुभूति नहीं तो कभी न कभी विघ्न के वश हो जायेंगे।
अभी अनुभूति का कोर्स शुरू करो।
हर गुण वा शक्ति रूपी खजाने को यूज करो।
जिस समय जिस गुण की आवश्यकता है उस समय उसका स्वरूप बन जाओ।
नॉलेज की रीति से बुद्धि के लाकर में खजाने को रख नहीं दो, यूज़ करो तब विजयी बन सकेंगे और वाह रे मैं का गीत
सदा गाते रहेंगे।
13.01.2021
स्नेह के रिटर्न में समानता का अनुभव करने वाले सर्वशक्ति सम्पन्न भव जो बच्चे बाप के स्नेह में सदा समाये हुए रहते हैं उन्हें स्नेह के रेसपॉन्स में बाप समान बनने का वरदान प्राप्त हो जाता है।
जो सदा स्नेहयुक्त और योगयुक्त हैं वह सर्व शक्तियों से सम्पन्न स्वत: बन जाते हैं।
सर्व शक्तियां सदा साथ हैं तो विजय हुई पड़ी है।
जिन्हें स्मृति रहती कि सर्वशक्तिमान् बाप हमारा साथी है, वह कभी किसी भी बात से विचलित नहीं हो सकते।
12.01.2021
अपने अव्यक्त शान्त स्वरूप द्वारा वातावरण को अव्यक्त बनाने वाले साक्षात मूर्त भव जैसे सेवाओं के और प्रोग्राम बनाते हो ऐसे सवेरे से रात तक याद की यात्रा में कैसे और कब रहेंगे यह भी प्रोग्राम बनाओ और बीच-बीच में दो तीन मिनट के लिए संकल्पों की ट्रैफिक को स्टॉप कर लो,
जब कोई व्यक्त भाव में ज्यादा दिखाई दे तो उनको बिना कहे अपना अव्यक्ति शान्त रूप ऐसा धारण करो जो वह भी इशारे से समझ जाये,
इससे वातावरण अव्यक्त रहेगा। अनोखापन दिखाई देगा और आप साक्षात्कार कराने वाले साक्षात मूर्त बन जायेंगे।
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11.01.2021
अव्यक्त वतन का सैर करने वाले उड़ता पंछी भव
अव्यक्त वतन व मूलवतन का सैर करने के लिए उड़ता पंछी बनो।
जहाँ चाहो पहुंच जाओ। बिल्कुल इस लोक के लगाव से परे रहेंगे। इस असार संसार से जब कोई काम नहीं, कोई प्राप्ति नहीं तो बुद्धि द्वारा भी जाना बन्द करो।
इसमें जाने का संकल्प और स्वप्न भी न आये। 10.01.2021
वाले शुभचिंतक भव
चाहे सतोगुणी, चाहे तमोगुणी सम्पर्क में आये लेकिन सभी के प्रति शुभचिंतक अर्थात् अपकारी पर भी उपकार करने वाले। जानते हो यह अज्ञान के वशीभूत है, बेसमझ है। किया लेकिन इस आत्मा का कल्याण कैसे हो - यही है शुभचिंतक स्टेज। 09.01.2021
एक बाप से रखने वाले डबल लाइट फरिश्ता भव
देह के भान से भी परे रहो क्योंकि देह भान मिट्टी है, यदि इसका भी बोझ है तो भारीपन है।
अपनी देह के साथ भी रिश्ता नहीं।
बाप को दे दिया। अपना रिश्ता खत्म हुआ।
सब लेन-देन बाप से बाकी सब पिछले खाते और रिश्ते खत्म - ऐसे सम्पूर्ण बेगर ही डबल लाइट फरिश्ते हैं। 08.01.2021
रूहानी एक्सरसाइज और सेल्फ कन्ट्रोल द्वारा महीनता का अनुभव करने वाले फरिश्ता भव
हल्कापन ब्राह्मण जीवन की पर्सनेलिटी है।
रोज़ अमृतवेले अशरीरीपन की रूहानी एक्सरसाइज करो और व्यर्थ संकल्पों के भोजन की परहेज रखो।
स्वीकार करना हो उस समय वही करो।
एकस्ट्रा भोजन नहीं करो तब महीन बुद्धि बन फरिश्ता स्वरूप के लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे।
07.01.2021
श्रेष्ठ कार्य की जिम्मेवारी निभाते हुए डबल लाइट रहने वाले आधारमूर्त भव
उनके ऊपर ही सारी जिम्मेवारी रहती है।
जहाँ भी कदम उठायेंगे वैसे अनेक आत्मायें आपको फालो करेंगी, यह जिम्मेवारी है।
अवस्था को बनाने में बहुत मदद करती है क्योंकि इससे अनेक आत्माओं की आशीर्वाद मिलती है,
जिस कारण जिम्मेवारी हल्की हो जाती है, यह जिम्मेवारी थकावट मिटाने वाली है।
06.01.2021
रूहानी रंग लगाने वाले सदा हर्षित और डबल लाइट भव
दिल का सच्चा साथी बना लेते हैं उन्हें संग का रूहानी रंग सदा लगा रहता है।
सत शिक्षक और सतगुरू का संग करना - यही सतसंग है।
वो सदा हर्षित और डबल लाइट रहते हैं।
बोझ अनुभव नहीं होता।
भरपूर हैं, खुशियों की खान मेरे साथ है, जो भी बाप का है वह सब अपना हो गया।
05.01.2021
फुलस्टाप देकर अपने सम्पन्न स्वरूप को प्रख्यात करने वाले साक्षात्कारमूर्त भव
सम्पन्न स्वरूप, पूज्य स्वरूप का सिमरण कर रही है इसलिए अब अपने सम्पन्न स्वरूप को प्रैक्टिकल में प्रख्यात करो।
बीती हुई कमजोरियों को फुलस्टाप लगाओ, दृढ़ संकल्प द्वारा पुराने संस्कार-स्वभाव को समाप्त करो,
दूसरों की कमजोरी की नकल मत करो, अवगुण धारण करने वाली बुद्धि का नाश करो, दिव्य गुण धारण करने वाली सतोप्रधान बुद्धि धारण करो तब साक्षात्कार मूर्त बनेंगे।
04.01.2021
भक्तों को लाइट के क्राउन का साक्षात्कार कराने वाले इष्ट देव भव
पवित्रता की प्रतिज्ञा की तो रिटर्न में लाइट का ताज प्राप्त हो गया।
रत्न जड़ित ताज कुछ भी नहीं है।
बोल और कर्म में प्योरिटी को धारण करते जायेंगे
उतना यह लाइट का क्राउन स्पष्ट होता जायेगा और इष्ट देव के रूप में भक्तों के आगे प्रत्यक्ष होते जायेंगे।
03.01.2021
इस पांच तत्वों की आकर्षण से परे रहने वाले फरिश्ता स्वरूप भव
प्रकाश की काया दिखाते हैं। इस देह की स्मृति से भी परे रहते हैं।
इस पांच तत्व की आकर्षण से ऊंचे अर्थात् परे होते हैं।
माया व कोई भी मायावी टच नहीं कर सकते।
जब कभी किसी के अधीन नहीं होंगे।
माया के भी अधिकारी बनना, लौकिक वा अलौकिक संबंध की भी अधीनता में नहीं आना।
02.01.2021
मन्सा शक्ति के प्रत्यक्ष प्रमाण देखने वाले सूक्ष्म सेवाधारी भव
वा कर्म की शक्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाई देता है वैसे सबसे पावरफुल साइलेन्स शक्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण देखने के लिए बापदादा के साथ निरन्तर क्लीयर कनेक्शन और रिलेशन हो, इसे ही योगबल कहा जाता है।
स्थूल में दूर रहने वाली आत्मा को सम्मुख का अनुभव करा सकती हैं।
उन्हें परिवर्तन कर सकती हैं।
इसके लिए एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाओ।
01.01.2021
सूक्ष्म शक्ति की लीलाओं का अनुभव करने वाले अन्तर्मुखी भव
अन्तर्मुखता है।
वे अन्दर ही अन्दर सूक्ष्म शक्ति की लीलाओं का अनुभव करते हैं।
आत्माओं से रूहरिहान करना, आत्माओं के संस्कार स्वभाव को परिवर्तन करना, ऐसे रूहों की दुनिया में रूहानी सेवा करने के लिए एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाओ,
इससे सर्व प्रकार के विघ्न स्वत: समाप्त हो जायेंगे।
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