आज तकदीर बनाने वाले बापदादा सभी बच्चों की श्रेष्ठ तकदीर की तस्वीर देख रहे हैं।
तकदीरवान सभी बने हैं, लेकिन हर एक के तकदीर के तस्वीर की झलक अपनी-अपनी है।
जैसे कोई भी तस्वीर बनाने वाले तस्वीर बनाते हैं तो कोई तस्वीर हजारों रुपयों के दाम की अमूल्य होती है, कोई साधारण भी होती है।
यहाँ बापदादा द्वारा मिले हुए भाग्य को, तकदीर को तस्वीर में लाना अर्थात् प्रैक्टिकल जीवन में लाना है।
इसमें अन्तर हो जाता है।
प्यारे बाबा तस्वीर तेरी दिल में...
तकदीर बनाने वाले ने एक ही समय और एक ने ही सभी को तकदीर बांटी।
लेकिन तकदीर को तस्वीर में लाने वाली हर आत्मा भिन्न-भिन्न होने के कारण जो तस्वीर बनाई है उसमें नम्बरवार दिखाई दे रहे हैं।
कोई भी तस्वीर की विशेषता नयन और मुस्कराहट होती है।
इन दो विशेषताओं से ही तस्वीर का मूल्य होता है।
तो यहाँ भी तकदीर के तस्वीर की यही दो विशेषताये हैं।
नयन अर्थात् रूहानी विश्व कल्याणी, रहम दिल, पर-उपकारी दृष्टि।
अगर दृष्टि में यह विशेषताये हैं तो भाग्य की तस्वीर श्रेष्ठ है।
मूल बात है दृष्टि और मुस्कराहट, चेहरे की चमक।
यह है सदा सन्तुष्ट रहने की, सन्तुष्टता और प्रसन्नता की झलक।
इसी विशेषताओं से सदा चेहरे पर रूहानी चमक आती है।
रूहानी मुस्कान अनुभव होती है।
यह दो विशेषतायें ही तस्वीर का मूल्य बढ़ा देती हैं।
तो आज यही देख रहे थे।
तकदीर की तस्वीर तो सभी ने बनाई है।
तस्वीर बनाने की कलम बाप ने सबको दी है।
वह कलम है - श्रेष्ठ स्मृति, श्रेष्ठ कर्मों का ज्ञान।
श्रेष्ठ कर्म और श्रेष्ठ संकल्प अर्थात् स्मृति।
इस ज्ञान की कलम द्वारा हर आत्मा अपने तकदीर की तस्वीर बना रही है, और बना भी ली है।
तस्वीर तो बन गई है।
नैन चैन भी बन गये हैं।
अब लास्ट टचिंग है “सम्पूर्णता'' की।
बाप समान बनने की।
डबल विदेशी चित्र बनाना ज्यादा पसन्द करते हैं ना।
तो बापदादा भी आज सभी की तस्वीर देख रहे हैं।
हरेक अपनी तस्वीर देख सकते हैं ना कि कहाँ तक तस्वीर मूल्यवान बनी है।
सदा अपनी इस रूहानी तस्वीर को देख इसमें सम्पूर्णता लाते रहो।
विश्व की आत्माओं से तो श्रेष्ठ भाग्यवान कोटों में कोई, कोई में भी कोई अमूल्य वा श्रेष्ठ भाग्यवान तो हो ही, लेकिन एक हैं श्रेष्ठ, दूसरे हैं श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ।
तो श्रेष्ठ बने हैं वा श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बने हैं?
यह चेक करना है। अच्छा!
अब डबल विदेशी रेस करेंगे ना!
आगे नम्बर लेना है वा आगे वालों को देख खुश होना है।
देख-देख खुश होना भी आवश्यक है, लेकिन स्वयं पीछे होकर नहीं देखो, साथ-साथ होते दूसरों को भी देख हर्षित हो चलो।
स्वयं भी आगे बढ़ो और पीछे वालों को भी आगे बढ़ाओ।
इसी को ही कहते हैं पर-उपकारी।
यह पर-उपकारी बनना इसकी विशेषता है - स्वार्थ भाव से सदा मुक्त रहना।
हर परिस्थिति में, हर कार्य में हर सहयोगी संगठन में जितना नि:स्वार्थ पन होगा, उतना ही पर-उपकारी होगा। स्वयं सदा भरपूर अनुभव करेगा।
सदा प्राप्ति स्वरूप की स्थिति में होगा।
तब पर-उपकारी की लास्ट स्टेज अनुभव कर और दूसरों को करा सकेंगे।
जैसे ब्रह्मा बाप को देखा लास्ट समय की स्थिति में “उपराम'' और “पर-उपकार'' यह विशेषता सदा देखी।
स्व के प्रति कुछ भी स्वीकार नहीं किया।
न महिमा स्वीकार की, न वस्तु स्वीकार की।
न रहने का स्थान स्वीकार किया।
स्थूल और सूक्ष्म सदा “पहले बच्चे''।
इसको कहते हैं पर-उपकारी।
यही सम्पन्नता की, सम्पूर्णता की निशानी है।
समझा!
मुरलियां तो बहुत सुनी।
अब मुरलीधर बन सदा नाचते और नचाते रहना है।
मुरली से साँप के विष को भी समाप्त कर लेते हैं।
तो ऐसा मुरलीधर हो जो किसी का कितना भी कडुवा स्वभाव-संस्कार हो उसको भी वश कर दे अर्थात् उससे मुक्त कर नचा दे।
हर्षित बना दे।
अभी यह रिजल्ट देखेंगे कि कौन-कौन ऐसे योग्य मुरलीधर बनते हैं।
मुरली से भी प्यार है, मुरलीधर से भी प्यार है लेकिन प्यार का सबूत है, जो मुरलीधर की हर बच्चे प्रति शुभ आशा है - वह प्रैक्टिकल में दिखाना।
प्यार की निशानी है जो कहा वह करके दिखाना।
ऐसे मास्टर मुरलीधर हो ना।
बनना ही है, अब नहीं बनेंगे तो कब बनेंगे।
करेंगे, यह ख्याल नहीं करो।
करना ही है।
हर एक यही सोंचे कि हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा।
हमको करना ही है।
बनना ही है।
कल्प की बाजी जीतनी ही है।
पूरे कल्प की बात है।
तो फर्स्ट डिवीजन मे आना है, यह दृढ़ता धारण करनी है।
कोई नई बात कर रहे हो क्या?
कितना बार की हुई बात को सिर्फ लकीर के ऊपर लकीर खींच रहे हो।
ड्रामा की लकीर खींची हुई है।
नई लकीर भी नहीं लगा रहे हो, जो सोचो कि पता नहीं सीधी होगी वा नहीं।
कल्प-कल्प की बनी हुई प्रारब्ध को सिर्फ बनाते हो क्योंकि कर्मों के फल का हिसाब है।
बाकी नई बात क्या है?
यह तो बहुत पुरानी है, हुई पड़ी है।
यह है अटल निश्चय।
इसको दृढ़ता कहते हैं, इसको तपस्वी मूर्त कहते हैं।
हर संकल्प में दृढ़ता माना तपस्या। अच्छा!
बापदादा हाइएस्ट होस्ट भी है और गोल्डन गेस्ट भी है।
होस्ट बनकर भी मिलते हैं, गेस्ट बनकर आते हैं।
लेकिन गोल्डन गेस्ट है।
चमकीला है ना।
गेस्ट तो बहुत देखे- लेकिन गोल्डन गेस्ट नहीं देखा।
जैसे चीफ गेस्ट को बुलाते हो तो वह थैंक्स देते हैं।
तो ब्रह्मा बाप ने भी होस्ट बन इशारे दिये और गेस्ट बन सबको मुबारक दे रहे हैं।
जिन्होंने पूरी सीजन में सेवा की उन सबको गोल्डन गेस्ट के रूप में बधाई दे रहे हैं।
सबसे पहली मुबारक किसको?
निमित्त दादियों को।
बापदादा, निर्विघ्न सेवा के समाप्ति की मुबारक दे रहे हैं।
मधुबन निवासियों को भी निर्विघ्न हर्षित बन मेहमान-निवाज़ी करने की विशेष मुबारक दे रहे हैं।
भगवान भी मेहमान बन आया तो बच्चे भी।
जिसके घर में भगवान मेहमान बनकर आवे वह कितने भाग्यशाली हैं।
रथ को भी मुबारक हैं क्योंकि यह पार्ट बजाना भी कोई कम बात नहीं।
इतनी शक्तियों को इतना समय प्रवेश होने पर धारण करना यह भी विशेष पार्ट है।
लेकिन यह समाने की शक्ति का फल आप सबको मिल रहा है।
तो समाने की शक्ति की विशेषता से बापदादा की शक्तियों को समाना यह भी विशेष पार्ट कहो वा गुण कहो।
तो सभी सेवधारियों में यह भी सेवा का पार्ट बजाने वाली निर्विघ्न रही।
इसके लिए मुबारक हो और पदमापदम थैंक्स।
डबल विदेशियों को भी डबल थैंक्स क्योंकि डबल विदेशियों ने मधुबन की शोभा कितनी अच्छी कर दी।
ब्राह्मण परिवार के श्रृंगार डबल विदेशी हैं।
ब्राह्मण परिवार में देश वालों के साथ विदेशी भी हैं तो पुरुषार्थ की भी मुबारक और ब्राह्मण परिवार का श्रृंगार बनने की भी मुबारक।
मधुबन परिवार की विशेष सौगात हो इसलिए डबल विदेशियों को डबल मुबारक दे रहे हैं।
चाहे कहाँ भी हैं।
सामने तो थोड़े है लेकिन चारों ओर के भारतवासी बच्चों को और डबल विदेशी बच्चों को बड़ी दिल से मुबारक दे रहे हैं।
हर एक ने बहुत अच्छा पार्ट बजाया।
अब सिर्फ एक बात रही है “समान और सम्पूर्णता की।''
दादियां भी अच्छी मेहनत करती।
बापदादा, दोनों का पार्ट साकार में बजा रही हैं इसलिए बापदादा दिल से स्नेह के साथ मुबारक देते हैं।
सबने बहुत अच्छा पार्ट बजाया।
आलराउण्ड सब सेवाधारी चाहे छोटी-सी साधारण सेवा है लेकिन वह भी महान है।
हर एक ने अपना भी जमा किया और पुण्य भी किया।
सभी देश-विदेश के बच्चों के पहुँचने की भी विशेषता मुबारक योग्य है।
सब महारथियों ने मिलकर सेवा का श्रेष्ठ संकल्प प्रैक्टिकल में लाया और लाते ही रहेंगे।
सेवा में जो निमित्त है उन्हों को भी तकलीफ नहीं देनी चाहिए।
अपने अलबेलेपन से किसको मेहनत नहीं करानी चाहिए।
अपनी वस्तुओं को सम्भालना यह भी नॉलेज है।
याद है ना ब्रह्मा बाप क्या कहते थे?
रुमाल खोया तो कभी खुद को भी खो देगा।
हर कर्म में श्रेष्ठ और सफल रहना इसको कहते नॉलेजफुल।
शरीर की भी नॉलेज, आत्मा की भी नॉलेज।
दोनों नॉलेज हर कर्म में चाहिए, शरीर के बीमारी की भी नॉलेज चाहिए।
मेरा शरीर किस विधि से ठीक चल सकता है।
ऐसे नहीं आत्मा तो शक्तिशाली है, शरीर कैसा भी है।
शरीर ठीक नहीं होगा तो योग भी नहीं लगेगा।
फिर शरीर अपनी तरफ खींचता है इसलिए नॉलेजफुल में यह सब नॉलेज आ जाती है। अच्छा।
कुछ कुमारियों का समर्पण समारोह बाप-दादा के सामने हुआ
बापदादा सभी विशेष आत्माओं को बहुत सुन्दर सजा-सजाया देख रहे हैं।
दिव्य गुणों का श्रृंगार कितना बढ़िया, सभी को शोभनिक बना रहा है।
लाइट का ताज कितना सुन्दर चमक रहा है।
बापदादा अविनाशी श्रृंगारी हुई सूरतों को देख रहे हैं।
बापदादा को बच्चों का यह उमंग-उत्साह का संकल्प देख खुशी होती है।
बापदादा ने सभी को सदा के लिए पसन्द कर लिया।
आपने भी पक्का पसन्द कर लिया है ना!
दृढ़ संकल्प का हथियाला बंध गया।
बाप-दादा के पास हरेक के दिल के स्नेह का संकल्प सबसे जल्दी पहुंचता है।
अभी संकल्प में भी यह श्रेष्ठ बन्धन ढीला नहीं होगा।
इतना पक्का बांधा है ना।
कितने जन्मों का वायदा किया?
यह ब्रह्मा बाप के साथ सदा सम्बन्ध में आने का पक्का वायदा है और गैरन्टी है कि सदा भिन्न नाम, रूप, सम्बन्ध में 21 जन्म तक तो साथ रहेंगे ही।
तो कितनी खुशी है, हिसाब कर सकती हो?
इसका हिसाब निकालने वाला कोई नहीं निकला है।
अभी ऐसे ही सदा सजे सजाये रहना, सदा ताजधारी रहना और सदा खुशी में हंसते-गाते रूहानी मौज में रहना।
आज सभी ने दृढ़ संकल्प किया ना - कि कदम, कदम पर रखने वाले बनेंगे।
वह तो स्थूल पांव के ऊपर पांव रखती है लेकिन आप सभी संकल्प रूपी कदम पर कदम रखने वाले।
जो बाप का संकल्प वह बच्चों का संकल्प- ऐसा संकल्प किया?
एक कदम भी बाप के कदम के सिवाए यहाँ वहाँ का न हो।
हर संकल्प समर्थ करना अर्थात् बाप के समान कदम के पीछे कदम रखना। अच्छा!
विदेशी भाई-बहनों से-
जैसे विमान में उड़ते-उड़ते आये ऐसे बुद्धि रूपी विमान भी इतना ही फास्ट उड़ता रहता है ना क्योंकि वह विमान सरकमस्टॉन्स के कारण नहीं भी मिले लेकिन बुद्धि रूपी विमान सदा साथ है और सदा शक्तिशाली है तो सेकेण्ड में जहाँ चाहें वहाँ पहुच जाएं।
तो इस विमान के मालिक हो ना।
सदा यह बुद्धि का विमान एवररेडी हो अर्थात् सदा बुद्धि की लाइन क्लीयर हो।
बुद्धि सदा ही बाप के साथ शक्तिशाली हो तो जब चाहेंगे तब सेकेण्ड में पहुंच जायेंगे।
जिसका बुद्धि का विमान पहुंचता है, उसका वह भी विमान चलता है।
बुद्धि का विमान ठीक नहीं तो वह विमान भी नहीं चलता । अच्छा!
पार्टियों से-
1.
सदा अपने को राजयोगी श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो?
राजयोगी अर्थात् सर्व कर्मेन्द्रिय के राजा। राजा बन कर्मेन्द्रियों को चलाने वाले, न कि कर्मेन्द्रियों के वश चलने वाले।
जो कर्मेन्द्रियों के वश चलने वाले हैं उनको प्रजायोगी कहेंगे, राजयोगी नहीं।
जब ज्ञान मिल गया कि यह कर्मेन्द्रियां मेरे कर्मचारी हैं, मैं मालिक हूँ, तो मालिक कभी सेवाधारियों के वश नहीं हो सकता।
कितना भी कोई प्रयत्न करे लेकिन राजयोगी आत्मायें सदा श्रेष्ठ रहेंगी।
सदा राज्य करने के संस्कार अभी राजयोगी जीवन में भरने हैं।
कुछ भी हो जाए - यह टाइटिल अपना सदा याद रखना कि मैं राजयोगी हूँ।
सर्वशक्तिवान का बल है, भरोसा है तो सफलता अधिकार रूप में मिल जाती है।
अधिकार सहज प्राप्त होता है, मुश्किल नहीं होता।
सर्व शक्तियों के आधार से हर कार्य सफल हुआ ही पड़ा है।
सदा फखुर रहे कि मैं दिलतख्तनीशन आत्मा हूँ।
यह फ़खुर अनेक फिकरों से पार करा देता है।
फ़खुर नहीं तो फिकर ही फिकर है।
तो सदा फ़खुर में रह वरदानी बन वरदान बांटते चलो।
स्वयं सम्पन्न बन औरों को सम्पन्न बनाना है।
औरों को बनाना अर्थात् स्वर्ग के सीट का सर्टीफिकेट देते हो।
कागज का सर्टीफिकेट नहीं, अधिकार का। अच्छा!
2.
हर कदम में पदमों की कमाई जमा करने वाले, अखुट खजाने के मालिक बन गये।
ऐसे खुशी का अनुभव करते हो!
क्योंकि आजकल की दुनिया है ही ‘धोखेबाज'।
धोखेबाज दुनिया से किनारा कर लिया।
धोखे वाली दुनिया से लगाव तो नहीं!
सेवा अर्थ कनेक्शन दूसरी बात है लेकिन मन का लगाव नहीं होना चाहिए।
तो सदा अपने को तुच्छ नहीं, साधारण नहीं लेकिन श्रेष्ठ आत्मा हैं, सदा बाप के प्यारे हैं, इस नशे में रहो।
जैसा बाप वैसे बच्चा - कदम पर कदम रखते अर्थात् फालो करते चलो तो बाप समान बन जायेंगे।
समान बनना अर्थात् सम्पन्न बनना।
ब्राह्मण जीवन का यही तो कार्य है।
3.
सदा अपने को बाप के रूहानी बगीचे के रूहानी गुलाब समझते हो!
सबसे खुश्बू वाला पुष्प गुलाब होता है। गुलाब का जल कितने कार्यों में लगाते हैं, रंग-रूप में भी गुलाब सर्व प्रिय है।
तो आप सभी रूहानी गुलाब हो।
आपकी रूहानी खुशबू औरों को भी स्वत: आकर्षण करती है।
कहाँ भी कोई खुशबू की चीज होती है तो सबका अटेन्शन स्वत: ही जाता है तो आप रूहानी गुलाबों की खुशबू विश्व को आकर्षित करने वाली है, क्योंकि विश्व को इस रूहानी खुशबू की आवश्यकता है इसलिए सदा स्मृति में रहे कि मैं अविनाशी बगीचे का अविनाशी गुलाब हूँ।
कभी मुरझाने वाला नहीं, सदा खिला हुआ।
ऐसे खिले हुए रूहानी गुलाब सदा सेवा में स्वत: ही निमित्त बन जाते हैं।
याद की, शक्तियों की, गुणों की यह सब खुशबू सबको देते रहो।
स्वयं बाप ने आकर आप फूलों को तैयार किया है तो कितने सिकीलधे हो! अच्छा।
वरदान:-
न्यारे और प्यारे बनने का राज़ जानकर राज़ी रहने वाले राज़युक्त भव
जो बच्चे प्रवृत्ति में रहते न्यारे और प्यारे बनने का राज़ जानते हैं वह सदा स्वयं भी स्वयं से राज़ी रहते हैं, प्रवृत्ति को भी राज़ी रखते हैं।
साथ-साथ सच्ची दिल होने के कारण साहेब भी सदैव उन पर राज़ी रहता है।
ऐसे राज़ी रहने वाले राजयुक्त बच्चों को अपने प्रति व अन्य किसी के प्रति किसी को क़ाज़ी बनाने की जरूरत नहीं रहती क्योंकि वह अपना फैंसला अपने आप कर लेते हैं इसलिए उन्हें किसी को काज़ी, वकील या जज बनाने की जरूरत ही नहीं।
स्लोगन:-
सेवा से जो दुआयें मिलती हैं-वह दुआयें ही तन्दरूस्ती का आधार हैं।