18-11-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

मीठे बच्चे - अभी तुम सत्य बाप द्वारा सत्य देवता बन रहे हो, इसलिए सतयुग में सतसंग करने की जरूरत नहीं

प्रश्नः-

सतयुग में देवताओं से कोई भी विकर्म नहीं हो सकता है, क्यों?

उत्तर:-

क्योंकि उन्हें सत्य बाप का वरदान मिला हुआ है।

विकर्म तब होता है जब रावण का श्राप मिलने लगता है।

सतयुग-त्रेता में है ही सद्गति, उस समय दुर्गति का नाम नहीं।

विकार ही नहीं जो विकर्म हो।

द्वापर-कलियुग में सबकी दुर्गति हो जाती इसलिए विकर्म होते रहते हैं।

यह भी समझने की बातें हैं।

  • ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति बाप बैठ समझाते हैं - यह सुप्रीम बाप भी है, सुप्रीम टीचर भी है, सुप्रीम सतगुरू भी है।
    • बाप की ऐसी महिमा बताने से ऑटोमेटिकली सिद्ध हो जाता है कि कृष्ण किसी का बाप हो नहीं सकता।
      • वह तो छोटा बच्चा, सतयुग का प्रिन्स है। वह टीचर भी नहीं हो सकता।
      • खुद ही बैठकर टीचर से पढ़ते हैं।
      • गुरू तो वहाँ होता नहीं क्योंकि वहाँ सब सद्गति में हैं।
  • आधाकल्प है सद्गति, आधाकल्प है दुर्गति।
      • तो वहाँ है सद्गति, इसलिए ज्ञान की वहाँ दरकार नहीं रहती।
    • नाम भी नहीं है क्योंकि ज्ञान से 21 जन्मों के लिए सद्गति मिलती है फिर द्वापर से कलियुग अन्त तक है दुर्गति।
    • तो कृष्ण फिर द्वापर में कैसे आ सकता।
    • यह भी किसको ध्यान में नहीं आता है।
    • एक-एक बात में बहुत ही गुह्य राज़ भरा हुआ है, जो समझाना बहुत जरूरी है।
  • वह सुप्रीम बाप, सुप्रीम टीचर है।
    • अंग्रेजी में सुप्रीम ही कहा जाता है।
    • अंग्रेजी अक्षर कुछ अच्छे होते हैं।
    • जैसे ड्रामा अक्षर है।
    • ड्रामा को नाटक नहीं कहेंगे, नाटक में तो अदली-बदली होती है।
    • यह सृष्टि का चक्र फिरता है-ऐसा कहते भी हैं, परन्तु कैसे फिरता है, हूबहू फिरता है या चेंज होती है, यह किसको भी पता नहीं है।
    • कहते भी हैं बनी-बनाई बन रही......जरूर कोई खेल है जो फिर से चक्र खाता रहता है।
    • इस चक्र में मनुष्यों को ही चक्र लगाना पड़ता है।
    • अच्छा, इस चक्र की आयु क्या है?
    • कैसे रिपीट होता है?
    • इसको फिरने में कितना समय लगता है?
    • यह कोई नहीं जानते।
    • इस्लामी-बौद्धी आदि यह सब हैं घराने, जिनका ड्रामा में पार्ट है।
    • तुम ब्राह्मणों की डिनायस्टी नहीं है, यह है ब्राह्मण कुल।
    • सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल कहा जाता है।
    • देवी-देवताओं का भी कुल है।
    • यह तो समझाना बहुत सहज है।
  • सूक्ष्मवतन में फरिश्ते रहते हैं।
    • वहाँ हड्डी-मांस होता नहीं।
    • देवताओं को तो हड्डी-मांस है ना।
  • ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा।
    • विष्णु की नाभी कमल से ब्रह्मा क्यों दिखाया है?
    • सूक्ष्मवतन में तो यह बातें होती नहीं।
    • न जवाहरात आदि हो सकते, इसलिए ब्रह्मा को सफेद पोशधारी ब्राह्मण दिखाया है।
  • ब्रह्मा साधारण मनुष्य बहुत जन्मों के अन्त में गरीब हुआ ना।
    • इस समय हैं ही खादी के कपड़े।
    • वह बिचारे समझते नहीं सूक्ष्म शरीर क्या होता है।
  • तुमको बाप समझाते हैं - वहाँ हैं ही फरिश्ते, जिनको हड्डी-मांस होता नहीं।
    • सूक्ष्मवतन में तो यह श्रृंगार आदि होना नहीं चाहिए।
    • परन्तु चित्रों में दिखाया है तो बाबा उसका ही साक्षात्कार कराए फिर अर्थ समझाते हैं।
    • जैसे हनूमान का साक्षात्कार कराते हैं।
      • अब हनूमान जैसा कोई मनुष्य होता नहीं।
      • भक्ति मार्ग में अनेक प्रकार के चित्र बनाये हैं, जिनका विश्वास बैठ गया है उनको ऐसा कुछ बोलो तो बिगड़ पड़ते।
  • देवियों आदि की कितनी पूजा करते हैं फिर डुबो देते हैं।
    • यह सब है भक्ति मार्ग।
    • भक्ति मार्ग के दलदल में गले तक डूबे हुए हैं तो फिर निकाल कैसे सकेंगे।
    • निकालना ही मुश्किल हो जाता है।
    • कोई-कोई तो औरों को निकालने निमित्त बन खुद ही डूब जाते हैं।
    • खुद गले तक दुबन में फंसते अर्थात् काम विकार में गिर पड़ते हैं।
    • यह है सबसे बड़ी दुबन (दलदल)।
    • सतयुग में यह बातें होती नहीं।
  • अभी तुम सत्य बाप द्वारा सत्य देवता बन रहे हो।
    • फिर वहाँ सतसंग होते नहीं।
    • सतसंग यहाँ भक्ति मार्ग में करते रहते हैं, समझते हैं सब ईश्वर के रूप हैं।
    • कुछ भी नहीं समझते।
  • बाप बैठ समझाते हैं-कलियुग में हैं सब पाप आत्मायें, सतयुग में होते हैं पुण्य आत्मायें।
    • रात-दिन का फर्क है। तुम अभी संगम पर हो।
    • कलियुग और सतयुग दोनों को जानते हो।
    • मूल बात है इस पार से उस पार जाने की।
    • क्षीरसागर और विषय सागर का गायन भी है परन्तु अर्थ कुछ नहीं समझते।
  • अभी बाप बैठ कर्म-अकर्म का राज़ समझाते हैं।
    • कर्म तो मनुष्य करते ही हैं फिर कोई कर्म अकर्म होते हैं, कोई विकर्म होते हैं।
    • रावण राज्य में सब कर्म विकर्म हो जाते हैं, सतयुग में विकर्म होता नहीं क्योंकि वहाँ है रामराज्य।
    • बाप से वरदान पाये हुए हैं।
    • रावण देते हैं श्राप।
  • यह सुख और दु:ख का खेल है ना।
    • दु:ख में सब बाप को याद करते हैं।
    • सुख में कोई याद नहीं करते।
    • वहाँ विकार होते नहीं।
  • बच्चों को समझाया है-सैपलिंग लगाते हैं।
    • यह सैपलिग लगाने की रसम भी अभी पड़ी है।
    • बाप ने सैपलिंग लगाना शुरू किया है।
    • आगे जब ब्रिटिश गवर्मेन्ट थी तो कभी अखबार में नहीं पड़ता था कि झाड़ों का सैपलिंग लगाते हैं।
    • अब बाप बैठ देवी-देवता धर्म का सैपलिंग लगाते हैं, और कोई सैपलिंग नहीं लगाते।
  • बहुत धर्म हैं, देवी-देवता धर्म प्राय: लोप है।
    • धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट होने के कारण नाम ही उल्टा-सुल्टा रख दिया है।
    • जो देवता धर्म के हैं उन्हों को फिर उसी देवी-देवता धर्म में आना है।
    • हर एक को अपने धर्म में ही जाना है।
    • क्रिश्चियन धर्म का निकलकर फिर देवी-देवता धर्म में आ नहीं सकेंगे।
    • मुक्ति तो हो न सके।
    • हाँ, कोई देवी-देवता धर्म का कनवर्ट होकर क्रिश्चियन धर्म में चला गया होगा तो वह फिर लौटकर अपने देवी-देवता धर्म में आ जायेगा।
    • उनको यह ज्ञान और योग बहुत अच्छा लगेगा, इससे सिद्ध होता है कि यह अपने धर्म का है।
    • इसमें बड़ी विशालबुद्धि चाहिए समझने और समझाने की।
  • धारणा करनी है, किताब पढ़कर नहीं सुनानी है।
    • जैसे कोई गीता सुनाते हैं, मनुष्य बैठकर सुनते हैं।
    • कोई तो गीता के श्लोक एकदम कण्ठ कर लेते हैं।
    • बाकी तो इनका अर्थ हर एक अपना-अपना बैठ निकालते हैं।
    • श्लोक सारे संस्कृत में हैं।
    • यहाँ तो गायन है कि सागर को स्याही बना दो, सारा जंगल कलम बना दो तो भी ज्ञान का अन्त नहीं होता।
  • गीता तो बहुत छोटी है।
    • 18 अध्याय हैं।
    • इतनी छोटी गीता बनाकर गले में पहनते हैं।
    • बहुत पतले अक्षर होते हैं।
    • गले में पहनने की भी आदत होती है।
    • कितना छोटा लॉकेट बनता है।
    • वास्तव में है तो सेकण्ड की बात।
  • बाप का बना जैसेकि विश्व का मालिक बना।
    • बाबा हम आपका एक दिन का बच्चा हूँ, ऐसे भी लिखने शुरू करेंगे।
    • एक दिन में निश्चय हुआ और फट से पत्र लिखेंगे।
    • बच्चा बना तो विश्व का मालिक हुआ।
    • यह भी कोई की बुद्धि में मुश्किल बैठता है।
  • तुम विश्व का मालिक बनते हो ना।
    • वहाँ और कोई खण्ड नहीं रहता है, नाम-निशान गुम हो जाता है।
    • कोई को मालूम भी नहीं रहता कि यह खण्ड थे।
    • अगर थे तो जरूर उनकी हिस्ट्री-जॉग्राफी चाहिए।
    • वहाँ यह होते ही नहीं इसलिए कहा जाता है तुम विश्व के मालिक बनने वाले हो।
  • बाबा ने समझाया है - मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, ज्ञान का सागर हूँ।
    • यह तो बहुत ऊंच ते ऊंच ज्ञान है जिससे हम विश्व के मालिक बनते हैं।
    • हमारा बाप सुप्रीम है, सत्य बाप, सत्य टीचर है, सत्य सुनाते हैं।
    • बेहद की शिक्षा देते हैं।
    • बेहद का गुरू है, सबकी सद्गति करते हैं।
  • एक की महिमा की तो वह महिमा फिर दूसरे की हो नहीं सकती।
    • फिर वह आप समान बनाये तब हो सकते।
    • तो तुम भी पतित-पावन ठहरे।
    • सत नाम लिखते हैं।
    • पतित-पावनी गंगायें यह मातायें हैं।
  • शिव शक्ति कहो शिव वंशी कहो।
    • शिव वंशी ब्रह्माकुमार-कुमारियां।
    • शिव वंशी तो सब हैं।
    • बाकी ब्रह्मा द्वारा रचना रचते हैं तो संगम पर ही ब्रह्माकुमार-कुमारियां होते हैं।
    • ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट करते हैं।
    • पहले-पहले होते हैं ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ।
    • कोई भी एतराज उठाते हैं तो उसको बोलो, यह प्रजापिता है, इनमें प्रवेश करते हैं।
  • बाप कहते हैं बहुत जन्मों के अन्त में मैं प्रवेश करता हूँ।
    • दिखाते हैं विष्णु की नाभी से ब्रह्मा निकला।
    • अच्छा विष्णु फिर किसकी नाभी से निकला?
    • उसमें एरो का निशान दे सकते हो कि दोनों ओत-प्रोत हैं।
    • ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा।
    • यह उनसे, वह उनसे पैदा हुआ है।
    • इनको लगता है एक सेकेण्ड, उनको लगता है 5 हज़ार वर्ष।
    • यह वन्डरफुल बातें हैं ना।
    • तुम बैठ समझायेंगे।
  • बाप कहते हैं लक्ष्मी-नारायण 84 जन्म लेते हैं फिर उनके ही बहुत जन्मों के अन्त में मैं प्रवेश कर यह बनाता हूँ।
    • समझने की बात है ना।
    • बैठो तो समझायें कि इनको ब्रह्मा क्यों कहते हैं।
    • सारी दुनिया को दिखाने के लिए यह चित्र बनाये हैं।
    • हम समझा सकते हैं, समझने वाले ही समझेंगे।
    • नहीं समझने वाले के लिए कहेंगे यह हमारे कुल का नहीं है।
    • बिचारा भल वहाँ आयेगा परन्तु प्रजा में।
    • हमारे लिए तो सब बिचारे हैं ना-गरीब को बिचारा कहा जाता है।
  • कितनी प्वाइंट्स बच्चों को धारण करनी हैं।
    • भाषण करना होता है टॉपिक्स पर।
    • यह टॉपिक कोई कम है क्या।
  • प्रजापिता ब्रह्मा और सरस्वती, 4 भुजाएं दिखाते हैं।
    • तो 2 भुजा बेटी की हो जाती हैं।
    • युगल तो है नहीं।
    • युगल तो वास्तव में बस विष्णु ही है।
    • ब्रह्मा की बेटी है सरस्वती।
    • शंकर को भी युगल नहीं है, इस कारण शिव-शंकर कह देते हैं।
  • अब शंकर क्या करते हैं?
    • विनाश तो एटॉमिक बाम्ब्स से होता है।
    • बाप कैसे बैठ बच्चों का मौत करायेंगे, यह तो पाप हो जाए।
    • बाप तो और ही सबको शान्तिधाम वापिस ले जाते हैं, बिगर मेहनत।
    • हिसाब-किताब चुक्तू कर सब घर जाते हैं क्योंकि कयामत का समय है।
  • बाप आते ही हैं सर्विस पर।
    • सबको सद्गति दे देते हैं।
    • तुम भी पहले गति में फिर सद्गति में आयेंगे।
    • यह बातें समझने की हैं।
    • इन बातों को ज़रा भी कोई नहीं जानते।
    • तुम देखते हो कोई तो बहुत माथा खपाते, बिल्कुल समझते नहीं।
  • जो कुछ अच्छा समझने वाले होंगे, वह आकर समझेंगे।
    • बोलो, एक-एक बात पर समझना है तो टाइम दो।
    • यहाँ तो सिर्फ हुक्म है, सबको बाप का परिचय दो।
  • यह है ही कांटों का जंगल क्योंकि एक-दो को दु:ख देते रहते हैं, इसको दु:खधाम कहा जाता है।
    • सतयुग है सुखधाम।
    • दु:खधाम से सुखधाम कैसे बनता है यह तुमको समझायें।
    • लक्ष्मी-नारायण सुखधाम में थे फिर यह 84 जन्म ले दु:खधाम में आते हैं।
  • यह ब्रह्मा का नाम भी कैसे रखा।
    • बाप कहते हैं मैं इसमें प्रवेश कर बेहद का संन्यास कराता हूँ।
    • फट से संन्यास करा देते हैं क्योंकि बाप को सर्विस करानी है, वही कराते हैं।
    • इनके पिछाड़ी बहुत निकले जिसका नाम बैठ रखा।
    • वह लोग फिर बिल्ली के पूंगरे बैठ दिखाते हैं।
    • यह सब हैं दन्त कथायें।
    • बिल्ली के पूंगरे हो कैसे सकते।
    • बिल्ली थोड़ेही बैठ ज्ञान सुनेगी।
    • बाबा युक्तियां बहुत बतलाते रहते हैं।
  • कोई बात किसको समझ में न आये तो उनको बोलो-जब तक अल्फ को नहीं समझा है तो और कुछ समझ नहीं सकेंगे।
  • एक बात निश्चय करो और लिखो, नहीं तो भूल जायेंगे।
    • माया भुला देगी।
    • मुख्य बात है बाप के परिचय की।
    • हमारा बाप सुप्रीम बाप, सुप्रीम टीचर है जो सारे विश्व के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं, जिसका कोई को पता नहीं है।
    • इस समझाने में टाइम चाहिए।
    • जब तक बाप को नहीं समझा है तब तक प्रश्न उठते ही जायेंगे।
    • अल्फ नहीं समझा है तो बे को कुछ नहीं समझेंगे।
    • मुफ्त संशय उठाते रहेंगे-ऐसे क्यों, शास्त्र में तो ऐसे कहते हैं इसलिए पहले सबको बाप का परिचय दो।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) कर्म, अकर्म और विकर्म की गुह्य गति को बुद्धि में रख अब कोई विकर्म नहीं करने हैं, ज्ञान और योग की धारणा करके दूसरों को सुनाना है।
  • 2) सत्य बाप की सत्य नॉलेज देकर मनुष्यों को देवता बनाने की सेवा करनी है। विकारों के दलदल से सबको निकालना है।
  • वरदान:-
  • अपनी पावरफुल स्थिति द्वारा मन्सा सेवा का सर्टीफिकेट प्राप्त करने वाले स्व अभ्यासी भव
  • विश्व को लाइट और माइट का वरदान देने के लिए अमृतवेले याद के स्व अभ्यास द्वारा पावरफुल वायुमण्डल बनाओ तब मन्सा सेवा का सर्टीफिकेट प्राप्त होगा।
  • लास्ट समय में मन्सा द्वारा ही नज़र से निहाल करने की, अपनी वृत्ति द्वारा उनकी वृत्तियों को बदलने की सेवा करनी है।
  • अपनी श्रेष्ठ स्मृति से सबको समर्थ बनाना है।
  • जब ऐसा लाइट माइट देने का अभ्यास होगा तब निर्विघ्न वायुमण्डल बनेगा और यह किला मजबूत होगा।
  • स्लोगन:-
  • समझदार वह है जो मन्सा-वाचा-कर्मणा तीनों सेवायें साथ-साथ करते हैं।