19-11-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन
मीठे बच्चे - यह सारी दुनिया रोगियों की बड़ी हॉस्पिटल है , बाबा आये हैं सारी दुनिया को निरोगी बनाने

प्रश्नः-

कौन-सी स्मृति रहे तो कभी भी मुरझाइस वा दु:ख की लहर नहीं आ सकती है?

उत्तर:-

अभी हम इस पुरानी दुनिया, पुराने शरीर को छोड़ घर में जायेंगे फिर नई दुनिया में पुनर्जन्म लेंगे।

हम अभी राजयोग सीख रहे हैं - राजाई में जाने के लिए।

बाप हम बच्चों के लिए रूहानी राजस्थान स्थापन कर रहे हैं, यही स्मृति रहे तो दु:ख की लहर नहीं आ सकती।

गीत:- तुम्हीं हो माता...Listen

  • ओम् शान्ति।
  • गीत कोई तुम बच्चों के लिए नहीं हैं,
    • नये-नये को समझाने के लिए हैं।
    • ऐसे भी नहीं कि यहाँ सब समझदार ही हैं।
    • नहीं, बेसमझ को समझदार बनाया जाता है।
    • बच्चे समझते हैं हम कितने बेसमझ बन गये थे, अब बाप हमको समझदार बनाते हैं।
    • जैसे स्कूल में पढ़कर बच्चे कितना समझदार बन जाते हैं।
    • हर एक अपनी-अपनी समझ से बैरिस्टर, इन्जीनियर आदि बनते हैं।
    • यह तो आत्मा को समझदार बनाना है।
    • पढ़ती भी आत्मा है शरीर द्वारा।
    • परन्तु बाहर में जो भी शिक्षा मिलती है, वह है अल्पकाल के लिए शरीर निर्वाह अर्थ।
    • भल कोई कनवर्ट भी करते हैं, हिन्दुओं को क्रिश्चियन बना देते हैं - किसलिए?
    • थोड़ा सुख पाने के लिए।
    • पैसे नौकरी आदि सहज मिलने के लिए, आजीविका के लिए।
      • अब तुम बच्चे जानते हो हमको पहले-पहले तो आत्म-अभिमानी बनना पड़े।
  • यह है मुख्य बात क्योंकि यह है ही रोगी दुनिया।
    • ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो रोगी नहीं बनता हो।
    • कुछ न कुछ होता जरूर है।
    • यह सारी दुनिया बड़े ते बड़ी हॉस्पिटल है, जिसमें सब मनुष्य पतित रोगी हैं।
    • आयु भी बहुत कम होती है।
    • अचानक मृत्यु को पा लेते हैं।
      • काल के चम्बे में आ जाते हैं।
    • यह भी तुम बच्चे जानते हो।
  • तुम बच्चे सिर्फ भारत की ही नहीं, सारे विश्व की सर्विस करते हो गुप्त रीति।
    • मूल बात है कि बाप को कोई नहीं जानते।
    • मनुष्य होकर और पारलौकिक बाप को नहीं जानते, उनसे प्यार नहीं रखते।
    • अब बाप कहते हैं मेरे साथ प्यार रखो।
      • मेरे साथ प्यार रखते-रखते तुमको मेरे साथ ही वापिस चलना है।
    • जब तक वापिस चलो तब तक इस छी-छी दुनिया में रहना पड़ता है।
  • पहले-पहले तो देह-अभिमानी से देही-अभिमानी बनो तब तुम धारणा कर सकते हो और बाप को याद कर सकते हो।
    • अगर देही-अभिमानी नहीं बनते तो कोई काम के नहीं।
    • देह-अभिमानी तो सब हैं।
    • तुम समझते भी हो कि हम आत्म-अभिमानी नहीं बनते, बाप को याद नहीं करते तो हम वही हैं जो पहले थे।
    • मूल बात ही है देही-अभिमानी बनने की।
    • न कि रचना को जानने की।
  • गाया भी जाता है रचता और रचना का ज्ञान।
    • ऐसे नहीं कि पहले रचना फिर रचता का ज्ञान कहेंगे।
    • नहीं, पहले रचता, वही बाप है।
    • कहा भी जाता है-हे गॉड फादर।
    • वह आकर तुम बच्चों को आपसमान बनाते हैं।
  • बाप तो सदैव आत्म-अभिमानी है ही इसलिए वह सुप्रीम है।
    • बाप कहते हैं मैं तो आत्म-अभिमानी हूँ।
    • जिसमें प्रवेश किया है उनको भी आत्म-अभिमानी बनाता हूँ।
    • इनमें प्रवेश करता हूँ इनको कनवर्ट करने क्योंकि यह भी देह-अभिमानी थे, इनको भी कहता हूँ अपने को आत्मा समझ मुझे यथार्थ रीति याद करो।
  • ऐसे बहुत मनुष्य हैं जो समझते हैं आत्मा अलग है, जीव अलग है।
    • आत्मा देह से निकल जाती है तो दो चीज़ हुई ना।
    • बाप समझाते हैं तुम आत्मा हो।
    • आत्मा ही पुनर्जन्म लेती है।
    • आत्मा ही शरीर लेकर पार्ट बजाती है।
    • बाबा बार-बार समझाते हैं अपने को आत्मा समझो, इसमें बड़ी मेहनत चाहिए।
    • जैसे स्टूडेण्ट पढ़ने के लिए एकान्त में, बगीचे आदि में जाकर पढ़ते हैं।
  • पादरी लोग भी घूमने जाते हैं तो एकदम शान्त रहते हैं।
      • वह कोई आत्म-अभिमानी नहीं रहते।
        • क्राइस्ट की याद में रहते हैं।
    • घर में रहकर भी याद तो कर सकते हैं परन्तु खास एकान्त में जाते हैं क्राइस्ट को याद करने और कोई तरफ देखते भी नहीं।
    • जो अच्छे-अच्छे होते हैं, समझते हैं हम क्राइस्ट को याद करते-करते उनके पास चले जायेंगे।
    • क्राइस्ट हेविन में बैठा है, हम भी हेविन में चले जायेंगे।
    • यह भी समझते हैं क्राइस्ट हेविनली गॉड फादर के पास गया।
      • हम भी याद करते-करते उनके पास जायेंगे।
    • सब क्रिश्चियन उस एक के बच्चे ठहरे।
      • उनमें कुछ ज्ञान ठीक है।
    • क्योंकि क्राइस्ट की आत्मा तो ऊपर गई ही नहीं।
    • क्राइस्ट नाम तो शरीर का है, जिसको फाँसी पर चढ़ाया।
    • आत्मा तो फाँसी पर नहीं चढ़ती है।
    • अब क्राइस्ट की आत्मा गॉड फादर के पास गई, यह कहना भी रांग हो जाता है।
    • वापिस कोई कैसे जायेंगे?
    • हर एक को स्थापना फिर पालना जरूर करनी होती है।
      • मकान को पोताई आदि कराई जाती है, यह भी पालना है ना।
  • अब बेहद के बाप को तुम याद करो।
    • यह नॉलेज बेहद के बाप के सिवाए कोई दे न सके।
    • अपना ही कल्याण करना है।
  • रोगी से निरोगी बनना है।
    • यह रोगियों की बड़ी हॉस्पिटल है।
    • सारी विश्व रोगियों की हॉस्पिटल है।
    • रोगी जरूर जल्दी मर जायेंगे, बाप आकर इस सारे विश्व को निरोगी बनाते हैं।
    • ऐसे नहीं कि यहाँ ही निरोगी बनेंगे। बाप कहते हैं - निरोगी होते ही हैं नई दुनिया में।
    • पुरानी दुनिया में निरोगी हो न सकें।
    • यह लक्ष्मी-नारायण निरोगी, एवरहेल्दी हैं।
    • वहाँ आयु भी बड़ी होती है, रोगी विशश होते हैं।
    • वाइसलेस रोगी नहीं होते।
    • वह है ही सम्पूर्ण निर्विकारी।
    • बाप खुद कहते हैं इस समय सारी विश्व, खास भारत रोगी है।
    • तुम बच्चे पहले-पहले निरोगी दुनिया में आते हो, निरोगी बनते हो याद की यात्रा से।
  • याद से तुम चले जायेंगे अपने स्वीट होम। यह भी एक यात्रा है।
    • आत्मा की यात्रा है, बाप परमात्मा के पास जाने की।
    • यह है स्प्रीचुअल यात्रा।
    • यह अक्षर कोई समझ नहीं सकेंगे।
    • तुम भी नम्बरवार जानते हो, परन्तु भूल जाते हो।
    • मूल बात है यह, समझाना भी बहुत सहज है।
    • परन्तु समझाये वह जो खुद भी रूहानी यात्रा पर हो।
    • खुद होगा नहीं, दूसरे को बतायेंगे तो तीर नहीं लगेगा।
    • सच्चाई का जौहर चाहिए।
    • हम बाबा को इतना याद करते हैं जो बस।
    • स्त्री पति को कितना याद करती है।
    • यह है पतियों का पति, बापों का बाप, गुरूओं का गुरू।
    • गुरू लोग भी उस बाप को ही याद करते हैं।
    • क्राइस्ट भी बाप को ही याद करते थे।
    • परन्तु उनको कोई जानते नहीं हैं।
  • बाप जब आये तब आकर अपनी पहचान देवे।
    • भारतवासियों को ही बाप का पता नहीं है तो औरों को कहाँ से मिल सकता। विलायत से भी यहाँ आते हैं, योग सीखने के लिए।
    • समझते हैं प्राचीन योग भगवान ने सिखाया।
    • यह है भावना।
    • बाप समझाते हैं सच्चा-सच्चा योग तो मैं ही कल्प-कल्प आकर सिखलाता हूँ, एक ही बार।
    • मुख्य बात है अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, इसको ही रूहानी योग कहा जाता है।
    • बाकी सबका है जिस्मानी योग।
  • ब्रह्म से योग रखते हैं।
    • वह भी बाप तो नहीं है।
    • वह तो महतत्व है, रहने का स्थान।
    • तो राइट एक ही बाप है।
  • एक बाप को ही सत्य कहा जाता है।
    • यह भी भारतवासियों को पता नहीं कि बाप ही सत्य कैसे है।
    • वही सचखण्ड की स्थापना करते हैं।
    • सचखण्ड और झूठ खण्ड।
    • तुम जब सचखण्ड में रहते हो तो वहाँ रावण राज्य ही नहीं होता।
    • आधाकल्प बाद रावण राज्य झूठ खण्ड शुरू होता है।
  • सच खण्ड पूरा सतयुग को कहेंगे।
    • फिर झूठ खण्ड पूरा कलियुग का अन्त।
    • अभी तुम संगम पर बैठे हो।
    • न इधर हो, न उधर हो।
    • तुम ट्रेवल (यात्रा) कर रहे हो। आत्मा ट्रेवल कर रही है, शरीर नहीं।
    • बाप आ करके यात्रा करना सिखलाते हैं।
      • यहाँ से वहाँ जाना है।
      • तुमको यह सिखलाते हैं।
    • वो लोग फिर स्टॉर्स मून आदि तरफ जाने की ट्रेवल करते हैं।
    • अभी तुम जानते हो उनमें कोई फायदा नहीं।
    • इन चीज़ों से ही सारा विनाश होना है।
    • बाकी जो भी इतनी मेहनत करते हैं सब व्यर्थ।
  • तुम जानते हो यह सब चीज़ें जो साइंस से बनती हैं वह भविष्य में तुम्हारे ही काम आयेंगी।
    • यह ड्रामा बना हुआ है।
  • बेहद का बाप आकर पढ़ाते हैं तो कितना रिगार्ड रखना चाहिए।
    • टीचर का वैसे भी बहुत रिगार्ड रखते हैं।
    • टीचर फरमान करते हैं - अच्छी रीति पढ़कर पास हो जाओ।
    • अगर फरमान को नहीं मानेंगे तो नापास हो जायेंगे।
    • बाप भी कहते हैं तुमको पढ़ाते हैं विश्व का मालिक बनाने।
    • यह लक्ष्मी-नारायण मालिक हैं।
    • भल प्रजा भी मालिक है, परन्तु दर्जे तो बहुत हैं ना।
  • भारतवासी भी सब कहते हैं ना - हम मालिक हैं।
    • गरीब भी भारत का मालिक अपने को समझेगा।
    • परन्तु राजा और उनमें फ़र्क कितना है।
    • नॉलेज से मर्तबे का फर्क हो जाता है।
  • नॉलेज में भी होशियारी चाहिए।
    • पवित्रता भी जरूरी है तो हेल्थ-वेल्थ भी चाहिए।
    • स्वर्ग में सब हैं ना।
    • बाप एम ऑब्जेक्ट समझाते हैं।
    • दुनिया में और कोई की बुद्धि में यह एम आब्जेक्ट होगी नहीं।
    • तुम फट से कहेंगे हम यह बनते हैं।
    • सारे विश्व में हमारी राजधानी होगी।
  • यह तो अभी पंचायती राज्य है।
    • पहले थे डबल ताजधारी फिर एक ताज अभी नो ताज।
    • बाबा ने मुरली में कहा था - यह भी चित्र हो - डबल सिरताज राजाओं के आगे सिंगल ताज वाले माथा झुकाते हैं।
    • अभी बाप कहते हैं मैं तुमको राजाओं का राजा डबल सिरताज बनाता हूँ।
    • वह है अल्पकाल के लिए, यह है 21 जन्मों की बात।
  • पहली मुख्य बात है पावन बनने की।
    • बुलाते भी हैं कि आकर पतित से पावन बनाओ।
    • ऐसे नहीं कहते कि राजा बनाओ।
    • अभी तुम बच्चों का है बेहद का संन्यास।
    • इस दुनिया से ही चले जायेंगे अपने घर।
    • फिर हेविन में आयेंगे।
  • अन्दर में खुशी रहनी चाहिए जबकि समझते हैं हम घर जायेंगे फिर राजाई में आयेंगे फिर मुरझाइस दु:ख आदि यह सब क्यों होना चाहिए।
    • हम आत्मा घर जायेंगी फिर पुनर्जन्म नई दुनिया में लेंगी।
    • बच्चों को स्थाई खुशी क्यों नहीं रहती है?
    • माया का आपोजीशन बहुत है इसलिए खुशी कम हो जाती है।
    • पतित-पावन खुद कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप भस्म हो जायेंगे।
    • तुम स्वदर्शन चक्रधारी बनते हो।
    • जानते हो फिर हम अपने राजस्थान में चले जायेंगे।
    • यहाँ भिन्न-भिन्न प्रकार के राजायें हुए हैं, अब फिर रूहानी राजस्थान बनना है।
    • स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे।
  • क्रिश्चियन लोग हेविन का अर्थ नहीं समझते हैं।
    • वह मुक्तिधाम को हेविन कह देते हैं।
    • ऐसे नहीं कि हेविनली गॉड फादर कोई हेविन में रहते हैं।
    • वह तो रहते ही हैं शान्तिधाम में।
    • अभी तुम पुरूषार्थ करते हो पैराडाइज में जाने के लिए।
    • यह फ़र्क बताना है।
    • गॉड फादर है मुक्तिधाम में रहने वाला।
  • हेविन नई दुनिया को कहा जाता है।
    • फादर ही आकर पैराडाइज स्थापन करते हैं।
    • तुम जिसको शान्तिधाम कहते हो उनको वो लोग हेविन समझते हैं।
      • यह सब समझने की बातें हैं।
  • बाप कहते हैं नॉलेज तो बहुत सहज है।
      • यह है पवित्र बनने की नॉलेज, मुक्ति-जीवनमुक्ति में जाने की नॉलेज, जो बाप ही दे सकते हैं।
  • जब किसको फाँसी दी जाती है तो अन्दर में यही रहता है हम भगवान पास जाते हैं।
    • फाँसी देने वाले भी कहते हैं गॉड को याद करो।
    • गॉड को जानते दोनों नहीं हैं।
    • उनको तो उस समय मित्र-सम्बन्धी आदि जाकर याद पड़ते हैं।
    • गायन भी है अन्तकाल जो स्त्री सिमरे...... कोई न कोई याद जरूर रहता है।
  • सतयुग में ही मोहजीत रहते हैं।
    • वहाँ जानते हैं एक खाल छोड़ दूसरी ले लेंगे।
    • वहाँ याद करने की दरकार नहीं इसलिए कहते हैं दु:ख में सिमरण सब करें....... यहाँ दु:ख है इसलिए याद करते हैं भगवान से कुछ मिले।
    • वहाँ तो सब कुछ मिला ही हुआ है।
  • तुम कह सकते हो हमारा उद्देश्य है मनुष्य को आस्तिक बनाना, धणी का बनाना।
    • अभी सब निधन के हैं।
    • हम धणका बनते हैं।
    • सुख, शान्ति, सम्पत्ति का वर्सा देने वाला बाप ही है।
    • इन लक्ष्मी-नारायण की कितनी बड़ी आयु थी।
  • यह भी जानते हैं भारतवासियों की पहले-पहले आयु बहुत बड़ी रहती थी।
    • अब छोटी है।
      • क्यों छोटी हुई है-यह कोई भी नहीं जानते।
    • तुम्हारे लिए तो बहुत सहज हो गया है समझना और समझाना।
    • सो भी नम्बरवार हैं।
    • समझानी हर एक की अपनी-अपनी है, जो जैसी धारण करते हैं ऐसे समझाते हैं।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) जैसे बाप सदैव आत्म-अभिमानी हैं, ऐसे आत्म-अभिमानी रहने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करना है।
    • एक बाप को दिल से प्यार करते-करते बाप के साथ घर चलना है।
  • 2) बेहद के बाप का पूरा-पूरा रिगार्ड रखना है अर्थात् बाप के फरमान पर चलना है।
    • बाप का पहला फरमान है - बच्चे अच्छी रीति पढ़कर पास हो जाओ।
    • इस फरमान को पालन करना है।
  • वरदान:-
  • सेन्स और इसेन्स के बैलेन्स द्वारा अपनेपन को स्वाहा करने वाले विश्व परिवर्तक भव
  • सेन्स अर्थात् ज्ञान की पाइंटस, समझ और इसेन्स अर्थात् सर्व शक्ति स्वरूप स्मृति और समर्थ स्वरूप।
  • इन दोनों का बैलेन्स हो तो अपनापन वा पुरानापन स्वाहा हो जायेगा।
  • हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर बोल और हर कर्म विश्व परिवर्तन की सेवा प्रति स्वाहा होने से विश्व परिवर्तक स्वत:बन जायेंगे।
  • जो अपनी देह की स्मृति सहित स्वाहा हो जाते हैं उनके श्रेष्ठ वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल का परिवर्तन सहज होता है।
  • स्लोगन:-
  • प्राप्तियों को याद करो तो दुख व परेशानी की बातें भूल जायेंगी।

19-11-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन मीठे बच्चे - यह सारी दुनिया रोगियों की बड़ी हॉस्पिटल है , बाबा आये हैं सारी दुनिया को निरोगी बनाने

प्रश्नः-

कौन-सी स्मृति रहे तो कभी भी मुरझाइस वा दु:ख की लहर नहीं आ सकती है?

उत्तर:-

अभी हम इस पुरानी दुनिया, पुराने शरीर को छोड़ घर में जायेंगे फिर नई दुनिया में पुनर्जन्म लेंगे।

हम अभी राजयोग सीख रहे हैं - राजाई में जाने के लिए।

बाप हम बच्चों के लिए रूहानी राजस्थान स्थापन कर रहे हैं, यही स्मृति रहे तो दु:ख की लहर नहीं आ सकती।

गीत:- तुम्हीं हो माता...Listen

  • ओम् शान्ति।
  • गीत कोई तुम बच्चों के लिए नहीं हैं,
    • नये-नये को समझाने के लिए हैं।
    • ऐसे भी नहीं कि यहाँ सब समझदार ही हैं।
    • नहीं, बेसमझ को समझदार बनाया जाता है।
    • बच्चे समझते हैं हम कितने बेसमझ बन गये थे, अब बाप हमको समझदार बनाते हैं।
    • जैसे स्कूल में पढ़कर बच्चे कितना समझदार बन जाते हैं।
    • हर एक अपनी-अपनी समझ से बैरिस्टर, इन्जीनियर आदि बनते हैं।
    • यह तो आत्मा को समझदार बनाना है।
    • पढ़ती भी आत्मा है शरीर द्वारा।
    • परन्तु बाहर में जो भी शिक्षा मिलती है, वह है अल्पकाल के लिए शरीर निर्वाह अर्थ।
    • भल कोई कनवर्ट भी करते हैं, हिन्दुओं को क्रिश्चियन बना देते हैं - किसलिए?
    • थोड़ा सुख पाने के लिए।
    • पैसे नौकरी आदि सहज मिलने के लिए, आजीविका के लिए।
      • अब तुम बच्चे जानते हो हमको पहले-पहले तो आत्म-अभिमानी बनना पड़े।
  • यह है मुख्य बात क्योंकि यह है ही रोगी दुनिया।
    • ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो रोगी नहीं बनता हो।
    • कुछ न कुछ होता जरूर है।
    • यह सारी दुनिया बड़े ते बड़ी हॉस्पिटल है, जिसमें सब मनुष्य पतित रोगी हैं।
    • आयु भी बहुत कम होती है।
    • अचानक मृत्यु को पा लेते हैं।
      • काल के चम्बे में आ जाते हैं।
    • यह भी तुम बच्चे जानते हो।
  • तुम बच्चे सिर्फ भारत की ही नहीं, सारे विश्व की सर्विस करते हो गुप्त रीति।
    • मूल बात है कि बाप को कोई नहीं जानते।
    • मनुष्य होकर और पारलौकिक बाप को नहीं जानते, उनसे प्यार नहीं रखते।
    • अब बाप कहते हैं मेरे साथ प्यार रखो।
      • मेरे साथ प्यार रखते-रखते तुमको मेरे साथ ही वापिस चलना है।
    • जब तक वापिस चलो तब तक इस छी-छी दुनिया में रहना पड़ता है।
  • पहले-पहले तो देह-अभिमानी से देही-अभिमानी बनो तब तुम धारणा कर सकते हो और बाप को याद कर सकते हो।
    • अगर देही-अभिमानी नहीं बनते तो कोई काम के नहीं।
    • देह-अभिमानी तो सब हैं।
    • तुम समझते भी हो कि हम आत्म-अभिमानी नहीं बनते, बाप को याद नहीं करते तो हम वही हैं जो पहले थे।
    • मूल बात ही है देही-अभिमानी बनने की।
    • न कि रचना को जानने की।
  • गाया भी जाता है रचता और रचना का ज्ञान।
    • ऐसे नहीं कि पहले रचना फिर रचता का ज्ञान कहेंगे।
    • नहीं, पहले रचता, वही बाप है।
    • कहा भी जाता है-हे गॉड फादर।
    • वह आकर तुम बच्चों को आपसमान बनाते हैं।
  • बाप तो सदैव आत्म-अभिमानी है ही इसलिए वह सुप्रीम है।
    • बाप कहते हैं मैं तो आत्म-अभिमानी हूँ।
    • जिसमें प्रवेश किया है उनको भी आत्म-अभिमानी बनाता हूँ।
    • इनमें प्रवेश करता हूँ इनको कनवर्ट करने क्योंकि यह भी देह-अभिमानी थे, इनको भी कहता हूँ अपने को आत्मा समझ मुझे यथार्थ रीति याद करो।
  • ऐसे बहुत मनुष्य हैं जो समझते हैं आत्मा अलग है, जीव अलग है।
    • आत्मा देह से निकल जाती है तो दो चीज़ हुई ना।
    • बाप समझाते हैं तुम आत्मा हो।
    • आत्मा ही पुनर्जन्म लेती है।
    • आत्मा ही शरीर लेकर पार्ट बजाती है।
    • बाबा बार-बार समझाते हैं अपने को आत्मा समझो, इसमें बड़ी मेहनत चाहिए।
    • जैसे स्टूडेण्ट पढ़ने के लिए एकान्त में, बगीचे आदि में जाकर पढ़ते हैं।
  • पादरी लोग भी घूमने जाते हैं तो एकदम शान्त रहते हैं।
      • वह कोई आत्म-अभिमानी नहीं रहते।
        • क्राइस्ट की याद में रहते हैं।
    • घर में रहकर भी याद तो कर सकते हैं परन्तु खास एकान्त में जाते हैं क्राइस्ट को याद करने और कोई तरफ देखते भी नहीं।
    • जो अच्छे-अच्छे होते हैं, समझते हैं हम क्राइस्ट को याद करते-करते उनके पास चले जायेंगे।
    • क्राइस्ट हेविन में बैठा है, हम भी हेविन में चले जायेंगे।
    • यह भी समझते हैं क्राइस्ट हेविनली गॉड फादर के पास गया।
      • हम भी याद करते-करते उनके पास जायेंगे।
    • सब क्रिश्चियन उस एक के बच्चे ठहरे।
      • उनमें कुछ ज्ञान ठीक है।
    • क्योंकि क्राइस्ट की आत्मा तो ऊपर गई ही नहीं।
    • क्राइस्ट नाम तो शरीर का है, जिसको फाँसी पर चढ़ाया।
    • आत्मा तो फाँसी पर नहीं चढ़ती है।
    • अब क्राइस्ट की आत्मा गॉड फादर के पास गई, यह कहना भी रांग हो जाता है।
    • वापिस कोई कैसे जायेंगे?
    • हर एक को स्थापना फिर पालना जरूर करनी होती है।
      • मकान को पोताई आदि कराई जाती है, यह भी पालना है ना।
  • अब बेहद के बाप को तुम याद करो।
    • यह नॉलेज बेहद के बाप के सिवाए कोई दे न सके।
    • अपना ही कल्याण करना है।
  • रोगी से निरोगी बनना है।
    • यह रोगियों की बड़ी हॉस्पिटल है।
    • सारी विश्व रोगियों की हॉस्पिटल है।
    • रोगी जरूर जल्दी मर जायेंगे, बाप आकर इस सारे विश्व को निरोगी बनाते हैं।
    • ऐसे नहीं कि यहाँ ही निरोगी बनेंगे। बाप कहते हैं - निरोगी होते ही हैं नई दुनिया में।
    • पुरानी दुनिया में निरोगी हो न सकें।
    • यह लक्ष्मी-नारायण निरोगी, एवरहेल्दी हैं।
    • वहाँ आयु भी बड़ी होती है, रोगी विशश होते हैं।
    • वाइसलेस रोगी नहीं होते।
    • वह है ही सम्पूर्ण निर्विकारी।
    • बाप खुद कहते हैं इस समय सारी विश्व, खास भारत रोगी है।
    • तुम बच्चे पहले-पहले निरोगी दुनिया में आते हो, निरोगी बनते हो याद की यात्रा से।
  • याद से तुम चले जायेंगे अपने स्वीट होम। यह भी एक यात्रा है।
    • आत्मा की यात्रा है, बाप परमात्मा के पास जाने की।
    • यह है स्प्रीचुअल यात्रा।
    • यह अक्षर कोई समझ नहीं सकेंगे।
    • तुम भी नम्बरवार जानते हो, परन्तु भूल जाते हो।
    • मूल बात है यह, समझाना भी बहुत सहज है।
    • परन्तु समझाये वह जो खुद भी रूहानी यात्रा पर हो।
    • खुद होगा नहीं, दूसरे को बतायेंगे तो तीर नहीं लगेगा।
    • सच्चाई का जौहर चाहिए।
    • हम बाबा को इतना याद करते हैं जो बस।
    • स्त्री पति को कितना याद करती है।
    • यह है पतियों का पति, बापों का बाप, गुरूओं का गुरू।
    • गुरू लोग भी उस बाप को ही याद करते हैं।
    • क्राइस्ट भी बाप को ही याद करते थे।
    • परन्तु उनको कोई जानते नहीं हैं।
  • बाप जब आये तब आकर अपनी पहचान देवे।
    • भारतवासियों को ही बाप का पता नहीं है तो औरों को कहाँ से मिल सकता। विलायत से भी यहाँ आते हैं, योग सीखने के लिए।
    • समझते हैं प्राचीन योग भगवान ने सिखाया।
    • यह है भावना।
    • बाप समझाते हैं सच्चा-सच्चा योग तो मैं ही कल्प-कल्प आकर सिखलाता हूँ, एक ही बार।
    • मुख्य बात है अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, इसको ही रूहानी योग कहा जाता है।
    • बाकी सबका है जिस्मानी योग।
  • ब्रह्म से योग रखते हैं।
    • वह भी बाप तो नहीं है।
    • वह तो महतत्व है, रहने का स्थान।
    • तो राइट एक ही बाप है।
  • एक बाप को ही सत्य कहा जाता है।
    • यह भी भारतवासियों को पता नहीं कि बाप ही सत्य कैसे है।
    • वही सचखण्ड की स्थापना करते हैं।
    • सचखण्ड और झूठ खण्ड।
    • तुम जब सचखण्ड में रहते हो तो वहाँ रावण राज्य ही नहीं होता।
    • आधाकल्प बाद रावण राज्य झूठ खण्ड शुरू होता है।
  • सच खण्ड पूरा सतयुग को कहेंगे।
    • फिर झूठ खण्ड पूरा कलियुग का अन्त।
    • अभी तुम संगम पर बैठे हो।
    • न इधर हो, न उधर हो।
    • तुम ट्रेवल (यात्रा) कर रहे हो। आत्मा ट्रेवल कर रही है, शरीर नहीं।
    • बाप आ करके यात्रा करना सिखलाते हैं।
      • यहाँ से वहाँ जाना है।
      • तुमको यह सिखलाते हैं।
    • वो लोग फिर स्टॉर्स मून आदि तरफ जाने की ट्रेवल करते हैं।
    • अभी तुम जानते हो उनमें कोई फायदा नहीं।
    • इन चीज़ों से ही सारा विनाश होना है।
    • बाकी जो भी इतनी मेहनत करते हैं सब व्यर्थ।
  • तुम जानते हो यह सब चीज़ें जो साइंस से बनती हैं वह भविष्य में तुम्हारे ही काम आयेंगी।
    • यह ड्रामा बना हुआ है।
  • बेहद का बाप आकर पढ़ाते हैं तो कितना रिगार्ड रखना चाहिए।
    • टीचर का वैसे भी बहुत रिगार्ड रखते हैं।
    • टीचर फरमान करते हैं - अच्छी रीति पढ़कर पास हो जाओ।
    • अगर फरमान को नहीं मानेंगे तो नापास हो जायेंगे।
    • बाप भी कहते हैं तुमको पढ़ाते हैं विश्व का मालिक बनाने।
    • यह लक्ष्मी-नारायण मालिक हैं।
    • भल प्रजा भी मालिक है, परन्तु दर्जे तो बहुत हैं ना।
  • भारतवासी भी सब कहते हैं ना - हम मालिक हैं।
    • गरीब भी भारत का मालिक अपने को समझेगा।
    • परन्तु राजा और उनमें फ़र्क कितना है।
    • नॉलेज से मर्तबे का फर्क हो जाता है।
  • नॉलेज में भी होशियारी चाहिए।
    • पवित्रता भी जरूरी है तो हेल्थ-वेल्थ भी चाहिए।
    • स्वर्ग में सब हैं ना।
    • बाप एम ऑब्जेक्ट समझाते हैं।
    • दुनिया में और कोई की बुद्धि में यह एम आब्जेक्ट होगी नहीं।
    • तुम फट से कहेंगे हम यह बनते हैं।
    • सारे विश्व में हमारी राजधानी होगी।
  • यह तो अभी पंचायती राज्य है।
    • पहले थे डबल ताजधारी फिर एक ताज अभी नो ताज।
    • बाबा ने मुरली में कहा था - यह भी चित्र हो - डबल सिरताज राजाओं के आगे सिंगल ताज वाले माथा झुकाते हैं।
    • अभी बाप कहते हैं मैं तुमको राजाओं का राजा डबल सिरताज बनाता हूँ।
    • वह है अल्पकाल के लिए, यह है 21 जन्मों की बात।
  • पहली मुख्य बात है पावन बनने की।
    • बुलाते भी हैं कि आकर पतित से पावन बनाओ।
    • ऐसे नहीं कहते कि राजा बनाओ।
    • अभी तुम बच्चों का है बेहद का संन्यास।
    • इस दुनिया से ही चले जायेंगे अपने घर।
    • फिर हेविन में आयेंगे।
  • अन्दर में खुशी रहनी चाहिए जबकि समझते हैं हम घर जायेंगे फिर राजाई में आयेंगे फिर मुरझाइस दु:ख आदि यह सब क्यों होना चाहिए।
    • हम आत्मा घर जायेंगी फिर पुनर्जन्म नई दुनिया में लेंगी।
    • बच्चों को स्थाई खुशी क्यों नहीं रहती है?
    • माया का आपोजीशन बहुत है इसलिए खुशी कम हो जाती है।
    • पतित-पावन खुद कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप भस्म हो जायेंगे।
    • तुम स्वदर्शन चक्रधारी बनते हो।
    • जानते हो फिर हम अपने राजस्थान में चले जायेंगे।
    • यहाँ भिन्न-भिन्न प्रकार के राजायें हुए हैं, अब फिर रूहानी राजस्थान बनना है।
    • स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे।
  • क्रिश्चियन लोग हेविन का अर्थ नहीं समझते हैं।
    • वह मुक्तिधाम को हेविन कह देते हैं।
    • ऐसे नहीं कि हेविनली गॉड फादर कोई हेविन में रहते हैं।
    • वह तो रहते ही हैं शान्तिधाम में।
    • अभी तुम पुरूषार्थ करते हो पैराडाइज में जाने के लिए।
    • यह फ़र्क बताना है।
    • गॉड फादर है मुक्तिधाम में रहने वाला।
  • हेविन नई दुनिया को कहा जाता है।
    • फादर ही आकर पैराडाइज स्थापन करते हैं।
    • तुम जिसको शान्तिधाम कहते हो उनको वो लोग हेविन समझते हैं।
      • यह सब समझने की बातें हैं।
  • बाप कहते हैं नॉलेज तो बहुत सहज है।
      • यह है पवित्र बनने की नॉलेज, मुक्ति-जीवनमुक्ति में जाने की नॉलेज, जो बाप ही दे सकते हैं।
  • जब किसको फाँसी दी जाती है तो अन्दर में यही रहता है हम भगवान पास जाते हैं।
    • फाँसी देने वाले भी कहते हैं गॉड को याद करो।
    • गॉड को जानते दोनों नहीं हैं।
    • उनको तो उस समय मित्र-सम्बन्धी आदि जाकर याद पड़ते हैं।
    • गायन भी है अन्तकाल जो स्त्री सिमरे...... कोई न कोई याद जरूर रहता है।
  • सतयुग में ही मोहजीत रहते हैं।
    • वहाँ जानते हैं एक खाल छोड़ दूसरी ले लेंगे।
    • वहाँ याद करने की दरकार नहीं इसलिए कहते हैं दु:ख में सिमरण सब करें....... यहाँ दु:ख है इसलिए याद करते हैं भगवान से कुछ मिले।
    • वहाँ तो सब कुछ मिला ही हुआ है।
  • तुम कह सकते हो हमारा उद्देश्य है मनुष्य को आस्तिक बनाना, धणी का बनाना।
    • अभी सब निधन के हैं।
    • हम धणका बनते हैं।
    • सुख, शान्ति, सम्पत्ति का वर्सा देने वाला बाप ही है।
    • इन लक्ष्मी-नारायण की कितनी बड़ी आयु थी।
  • यह भी जानते हैं भारतवासियों की पहले-पहले आयु बहुत बड़ी रहती थी।
    • अब छोटी है।
      • क्यों छोटी हुई है-यह कोई भी नहीं जानते।
    • तुम्हारे लिए तो बहुत सहज हो गया है समझना और समझाना।
    • सो भी नम्बरवार हैं।
    • समझानी हर एक की अपनी-अपनी है, जो जैसी धारण करते हैं ऐसे समझाते हैं।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) जैसे बाप सदैव आत्म-अभिमानी हैं, ऐसे आत्म-अभिमानी रहने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करना है।
    • एक बाप को दिल से प्यार करते-करते बाप के साथ घर चलना है।
  • 2) बेहद के बाप का पूरा-पूरा रिगार्ड रखना है अर्थात् बाप के फरमान पर चलना है।
    • बाप का पहला फरमान है - बच्चे अच्छी रीति पढ़कर पास हो जाओ।
    • इस फरमान को पालन करना है।
  • वरदान:-
  • सेन्स और इसेन्स के बैलेन्स द्वारा अपनेपन को स्वाहा करने वाले विश्व परिवर्तक भव
  • सेन्स अर्थात् ज्ञान की पाइंटस, समझ और इसेन्स अर्थात् सर्व शक्ति स्वरूप स्मृति और समर्थ स्वरूप।
  • इन दोनों का बैलेन्स हो तो अपनापन वा पुरानापन स्वाहा हो जायेगा।
  • हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर बोल और हर कर्म विश्व परिवर्तन की सेवा प्रति स्वाहा होने से विश्व परिवर्तक स्वत:बन जायेंगे।
  • जो अपनी देह की स्मृति सहित स्वाहा हो जाते हैं उनके श्रेष्ठ वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल का परिवर्तन सहज होता है।
  • स्लोगन:-
  • प्राप्तियों को याद करो तो दुख व परेशानी की बातें भूल जायेंगी।