26-11-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

मीठे बच्चे - अपने कैरेक्टर्स सुधारने के लिए याद की यात्रा में रहना है, बाप की याद ही तुम्हें सदा सौभाग्यशाली बनायेगी

प्रश्नः-

अवस्था की परख किस समय होती है? अच्छी अवस्था किसकी कहेंगे?

उत्तर:-

अवस्था की परख बीमारी के समय होती है।

बीमारी में भी खुशी बनी रहे और खुशमिज़ाज़ चेहरे से सबको बाप की याद दिलाते रहो, यही है अच्छी अवस्था।

अगर खुद रोयेंगे, उदास होंगे तो दूसरों को खुशमिज़ाज़ कैसे बनायेंगे?

कुछ भी हो जाए - रोना नहीं है।

  • ओम् शान्ति।
  • दो अक्षर गाये जाते हैं - दुर्भाग्यशाली और सौभाग्यशाली।
    • सौभाग्य चला जाता है तो दुर्भाग्य कहा जाता है।
    • स्त्री का पति मर जाता है तो वह भी दुर्भाग्य कहा जाता है।
      • अकेली हो जाती है।
    • अभी तुम जानते हो हम सदा के लिए सौभाग्यशाली बनते हैं।
    • वहाँ दु:ख की बात नहीं।
    • मृत्यु का नाम नहीं होता है।
    • विधवा नाम ही नहीं होता।
      • विधवा को दु:ख होता है, रोती रहती है।
    • भल साधू-सन्त हैं, ऐसा नहीं कि उन्हें कोई दु:ख नहीं होता है।
    • कोई पागल बन पड़ते हैं, बीमार रोगी भी होते हैं।
  • यह है ही रोगी दुनिया।
    • सतयुग है निरोगी दुनिया।
    • तुम बच्चे समझते हो हम भारत को फिर से श्रीमत पर निरोगी बनाते हैं।
  • इस समय मनुष्यों के कैरेक्टर्स बहुत खराब हैं।
    • अब कैरेक्टर्स सुधारने की भी जरूर डिपार्टमेंट होगी।
    • स्कूलों में भी स्टूडेण्ट्स का रजिस्टर रखा जाता है।
    • उनके कैरेक्टर्स का पता चलता है इसलिए बाबा ने भी रजिस्टर रखवाया था।
    • हर एक अपना रजिस्टर रखो।
    • कैरेक्टर देखना है कि हम कोई भूल तो नहीं करते हैं।
    • पहली बात तो बाप को याद करना है।
    • उनसे ही तुम्हारा कैरेक्टर्स सुधरता है।
    • आयु भी बड़ी होती है एक की याद से।
    • यह तो हैं ज्ञान रत्न।
    • याद को रत्न नहीं कहा जाता।
    • याद से ही तुम्हारे कैरेक्टर सुधरते हैं।
  • यह 84 जन्मों का चक्र तुम्हारे सिवाए और कोई समझा न सके।
    • इस पर ही समझाना है - विष्णु और ब्रह्मा।
    • शंकर के तो कैरेक्टर नहीं कहेंगे।
    • तुम बच्चे जानते हो ब्रह्मा और विष्णु का आपस में क्या कनेक्शन है।
    • विष्णु के दो रूप हैं यह लक्ष्मी-नारायण।
    • वही फिर 84 जन्म लेते हैं।
    • 84 जन्मों में आपेही पूज्य और आपेही पुजारी बनते हैं।
    • प्रजापिता ब्रह्मा तो जरूर यहाँ ही चाहिए ना।
    • साधारण तन चाहिए।
    • बहुत करके इसमें ही मूँझते हैं।
  • ब्रह्मा तो है ही पतित-पावन बाप का रथ।
    • कहते भी हैं - दूरदेश का रहने वाला आया देश पराये........ पावन दुनिया बनाने वाला पतित-पावन बाप पतित दुनिया में आया।
    • पतित दुनिया में एक भी पावन नहीं हो सकता।
  • अभी तुम बच्चों ने समझा है कि 84 जन्म हम कैसे लेते हैं।
    • कोई तो लेते होंगे ना।
    • जो पहले-पहले आते होंगे उनके ही 84 जन्म होंगे।
    • सतयुग में देवी-देवता ही आते हैं।
    • मनुष्यों का ज़रा भी ख्याल नहीं चलता, 84 जन्म कौन लेंगे।
    • समझ की बात है।
    • पुनर्जन्म तो सब मानते हैं।
    • 84 पुनर्जन्म हुए यह बड़ी युक्ति से समझाना है।
    • 84 जन्म तो सभी नहीं लेंगे ना।
    • एक साथ सब थोड़ेही आयेंगे और शरीर छोड़ेंगे।
    • भगवानुवाच भी है कि तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, भगवान ही बैठ समझाते हैं।
    • तुम आत्मायें 84 जन्म लेती हो।
    • यह 84 की कहानी बाप तुम बच्चों को बैठ सुनाते हैं।
    • यह भी एक पढ़ाई है।
    • 84 का चक्र तो जानना बहुत सहज है।
    • दूसरे धर्म वाले इन बातों को समझेंगे नहीं।
    • तुम्हारे में भी कोई सभी 84 जन्म नहीं लेते हैं।
    • सभी के 84 जन्म हों तो सब इकट्ठे आ जाएं।
      • यह भी नहीं होता है।
  • सारा मदार पढ़ाई और याद पर है।
    • उसमें भी नम्बरवन है याद।
    • डिफीकल्ट सब्जेक्ट पर मार्क्स जास्ती मिलती हैं।
    • उनका प्रभाव भी होता है।
    • उत्तम, मध्यम, कनिष्ट सब्जेक्ट होती हैं ना।
    • इनमें हैं दो मुख्य।
    • बाप कहते हैं मुझे याद करो तो सम्पूर्ण निर्विकारी बन जायेंगे और फिर विजय माला में पिरो जायेंगे।
    • यह है रेस।
    • पहले तो खुद को देखना है कि मैं कहाँ तक धारणा करता हूँ?
    • कितना याद करता हूँ?
  • मेरे कैरेक्टर्स कैसे हैं?
    • अगर मेरे में ही रोने की आदत है तो दूसरे को खुशमिज़ाज़ कैसे बना सकता हूँ?
    • बाबा कहते हैं जो रोते हैं सो खोते हैं।
    • कुछ भी हो जाए लेकिन रोने की दरकार नहीं है।
    • बीमारी में भी खुशी से इतना तो कह सकते हो अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो।
    • बीमारी में ही अवस्था की परख होती है।
    • तकलीफ में थोड़ा कुड़कने की आवाज़ भल निकलती है परन्तु अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है।
  • बाप ने पैगाम दिया है।
    • पैगम्बर-मैसेन्जर एक शिवबाबा है, दूसरा कोई है नहीं।
    • बाकी जो भी सुनाते हैं, सारी भक्ति मार्ग की बातें।
  • इस दुनिया की जो भी चीज़ें हैं सब विनाशी हैं, अभी तुमको वहाँ ले जाते हैं जहाँ टूट-फूट नहीं।
    • वहाँ तो चीज़ें ही ऐसी अच्छी बनेंगी जो टूटने का नाम ही नहीं होगा।
    • यहाँ साइन्स से कितनी चीज़ें बनती हैं, वहाँ भी तो साइंस जरूर होगी क्योंकि तुम्हारे लिए बहुत सुख चाहिए।
    • बाप कहते हैं तुम बच्चों को कुछ भी पता नहीं था।
  • भक्ति मार्ग कब शुरू हुआ, कितना तुमने दु:ख देखा - यह सब बातें अभी तुम्हारी बुद्धि में हैं।
    • देवताओं को कहा ही जाता है - सर्वगुण सम्पन्न....... फिर वह कलायें कैसे कम हुई?
    • अभी तो कोई कला नहीं रही है।
    • चन्द्रमा की भी धीरे-धीरे कला कम होती है ना।
    • तुम जानते हो कि यह दुनिया भी पहले नई है तो वहाँ हर चीज़ सतोप्रधान फर्स्टक्लास होती है।
    • फिर पुरानी होते कलायें कम होती जाती हैं।
  • सर्वगुण सम्पन्न यह लक्ष्मी-नारायण हैं ना।
    • अभी बाप तुमको सच्ची-सच्ची सत्य नारायण की कथा सुना रहे हैं।
    • अभी है रात फिर दिन होता है।
    • तुम सम्पूर्ण बनते हो तो तुम्हारे लिए फिर सृष्टि भी ऐसी ही चाहिए।
    • 5 तत्व भी सतोप्रधान (16 कला सम्पूर्ण) बन जाते हैं इसलिए शरीर भी तुम्हारे नेचुरल ब्युटीफुल होते हैं। सतोप्रधान होते हैं।
    • यह सारी दुनिया 16 कला सम्पूर्ण बन जाती है।
  • अभी तो कोई कला नहीं है, जो भी बड़े से बड़े लोग हैं अथवा महात्मा आदि हैं, यह बाप की नॉलेज उनकी तकदीर में ही नहीं है।
    • उन्हों को अपना ही घमण्ड है।
    • बहुत करके है ही गरीबों की तकदीर में।
    • कोई कहते हैं इतना ऊंच बाप है, उनको तो कोई बड़े राजा अथवा पवित्र ऋषि आदि के तन में आना चाहिए।
    • पवित्र होते ही हैं संन्यासी।
    • पवित्र कन्या के तन में आये।
    • बाप बैठ समझाते हैं मैं किसमें आता हूँ।
    • मैं आता ही उसमें हूँ जो पूरे 84 जन्म लेते हैं।
    • एक दिन भी कम नहीं।
  • कृष्ण पैदा हुआ उस समय से 16 कला सम्पूर्ण ठहरा।
    • फिर सतो, रजो, तमो में आते हैं।
    • हर चीज़ पहले सतोप्रधान फिर सतो, रजो, तमो में आती है।
    • सतयुग में भी ऐसा होता है।
    • बच्चा सतोप्रधान है फिर बड़ा होगा तो कहेगा अब हम यह शरीर छोड़ सतोप्रधान बच्चा बनता हूँ।
  • तुम बच्चों को इतना नशा नहीं है।
    • खुशी का पारा नहीं चढ़ता है।
    • जो अच्छी मेहनत करते हैं, खुशी का पारा चढ़ता रहता है।
    • शक्ल भी खुशनुम: रहती है।
    • आगे चल तुमको साक्षात्कार होते रहेंगे।
    • जैसे घर के नज़दीक आकर पहुँचते हैं तो फिर वह घरबार मकान आदि याद आता है ना।
    • यह भी ऐसे है।
    • पुरूषार्थ करते-करते तुम्हारी प्रालब्ध जब नज़दीक होगी तो फिर बहुत साक्षात्कार होते रहेंगे।
    • खुशी में रहेंगे।
  • जो नापास होते हैं तो शर्म के मारे डूब मरते हैं।
    • तुमको भी बाबा बता देते हैं फिर बहुत पछताना पड़ेगा।
    • अपने भविष्य का साक्षात्कार करेंगे, हम क्या बनेंगे?
    • बाबा दिखलायेंगे यह-यह विकर्म आदि किये हैं।
    • पूरा पढ़े नहीं, ट्रेटर बनें, इसलिए यह सज़ा मिलती है।
    • सब साक्षात्कार होगा।
    • बिगर साक्षात्कार सज़ा कैसे देंगे?
    • कोर्ट में भी बताते हैं - तुमने यह-यह किया है, उसकी सज़ा है।
  • जब तक कर्मातीत अवस्था हो जाए तब तक कुछ न कुछ निशानी रहेगी।
    • आत्मा पवित्र हो जाती है फिर तो शरीर छोड़ना पड़े।
    • यहाँ रह न सकें।
    • वह अवस्था तुमको धारण करनी है।
    • अभी तुम वापिस जाए फिर नई दुनिया में आने के लिए तैयारी करते हो।
    • तुम्हारा पुरूषार्थ ही यह है कि हम जल्दी-जल्दी जायें, फिर जल्दी-जल्दी आयें।
    • जैसे बच्चों को खेल में दौड़ाते हैं ना।
    • निशान तक जाकर फिर लौट आना है।
    • तुमको भी जल्दी-जल्दी जाना है, फिर पहले नम्बर में नई दुनिया में आना है।
  • तो तुम्हारी रेस है यह।
    • स्कूल में भी रेस कराते हैं ना।
  • तुम्हारा है यह प्रवृत्ति मार्ग।
    • तुम्हारा पहले-पहले पवित्र गृहस्थ धर्म था।
  • अभी है विशश फिर वाइसलेस वर्ल्ड बनेगा।
    • इन बातों को तुम सिमरण करते रहो तो भी बहुत खुशी रहेगी।
    • हम ही राज्य लेते हैं फिर गॅवाते हैं।
    • हीरो-हीरोइन कहते हैं ना।
    • हीरे जैसा जन्म लेकर फिर कौड़ी जैसे जन्म में आते हैं।
    • अभी बाप कहते हैं - तुम कौड़ियों पिछाड़ी टाइम वेस्ट मत करो।
  • यह कहते हैं हम भी टाइम वेस्ट करते थे।
    • तो हमको भी कहा अब तो तुम मेरा बनकर यह रूहानी धंधा करो।
    • तो झट सब कुछ छोड़ दिया।
    • पैसे कोई फेंक तो नहीं देंगे।
    • पैसे तो काम में आते हैं।
    • पैसे बिना कोई मकान आदि थोड़ेही मिल सकता।
  • आगे चल बड़े-बड़े धनवान आयेंगे।
    • तुमको मदद देते रहेंगे।
  • एक दिन तुमको बड़े-बड़े कॉलेज, युनिवर्सिटी में भी जाकर भाषण करना होगा कि यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है।
    • हिस्ट्री रिपीट होती है आदि से अन्त तक।
    • गोल्डन एज से आइरन एज तक सृष्टि की हिस्ट्री-जॉग्राफी हम बता सकते हैं।
    • कैरेक्टर्स के ऊपर तो तुम बहुत समझा सकते हो।
    • इन लक्ष्मी-नारायण की महिमा करो।
    • भारत कितना पावन था, दैवी कैरेक्टर्स थे।
    • अब तो विशश कैरेक्टर्स हैं।
    • जरूर फिर चक्र रिपीट होगा।
    • हम वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी सुना सकते हैं।
    • वहाँ जाना भी अच्छे-अच्छे को चाहिए।
    • जैसे थियोसोफिकल सोसायटी है, वहाँ तुम भाषण करो।
  • कृष्ण तो देवता था, सतयुग में था।
    • पहले-पहले है श्रीकृष्ण जो फिर नारायण बनते हैं।
    • हम आपको श्रीकृष्ण के 84 जन्मों की कहानी सुनायें, जो और कोई सुना न सके।
    • यह टॉपिक कितनी बड़ी है।
    • होशियार को भाषण करना चाहिए।
  • अभी तुम्हारे दिल में आता है, हम विश्व के मालिक बनेंगे, कितनी खुशी होनी चाहिए।
    • अन्दर बैठ यह जाप जपो फिर तुमको इस दुनिया में कुछ भासेगा नहीं।
    • यहाँ तुम आते ही हो - विश्व का मालिक बनने - परमपिता परमात्मा द्वारा।
    • विश्व तो इस दुनिया को ही कहा जाता है।
    • ब्रह्मलोक वा सूक्ष्मवतन को विश्व नहीं कहेंगे।
    • बाप कहते हैं मैं विश्व का मालिक नहीं बनता हूँ।
    • इस विश्व का मालिक तुम बच्चों को बनाता हूँ।
    • कितनी गुह्य बातें हैं।
    • तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ।
    • फिर तुम माया के दास बन जाते हो।
  • यहाँ जब सामने योग में बिठाते हो तो भी याद दिलानी है - आत्म-अभिमानी हो बैठो, बाप को याद करो।
    • 5 मिनट बाद फिर बोलो।
    • तुम्हारे योग के प्रोग्राम चलते हैं ना।
    • बहुतों की बुद्धि बाहर चली जाती है इसलिए 5-10 मिनट बाद फिर सावधान करना चाहिए।
    • अपने को आत्मा समझ बैठे हो?
    • बाप को याद करते हो?
    • तो खुद का भी अटेन्शन रहेगा।
    • बाबा यह सब युक्तियां बतलाते हैं।
    • घड़ी-घड़ी सावधान करो।
    • अपने को आत्मा समझ शिवाबाबा की याद में बैठे हो?
    • तो जिनका बुद्धियोग भटकता होगा वह खड़े हो जायेंगे।
    • घड़ी-घड़ी यह याद दिलाना चाहिए।
    • बाबा की याद से ही तुम उस पार चले जायेंगे।
    • गाते भी हैं खिवैया, नईया मेरी पार लगाओ।
    • परन्तु अर्थ को नहीं जानते।
  • मुक्तिधाम में जाने के लिए आधाकल्प भक्ति की है।
    • अब बाप कहते हैं मुझे याद करो तो मुक्तिधाम में चले जायेंगे।
    • तुम बैठते ही हो पाप कटने लिए तो फिर पाप करने थोड़ेही चाहिए।
    • नहीं तो फिर पाप रह जायेंगे।
  • नम्बरवन यह पुरूषार्थ है - अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो।
    • ऐसे सावधान करते रहने से अपना भी अटेन्शन रहेगा।
    • खुद को भी सावधान करना है।
    • खुद भी याद में बैठे तब औरों को बिठायें।
    • हम आत्मा हैं, जाते हैं अपने घर।
    • फिर आकर राज्य करेंगे।
  • अपने को शरीर समझना-यह भी एक कड़ी बीमारी है इसलिए ही सब रसातल में चले गये हैं।
    • उनको फिर सैलवेज करना है।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) अपना टाइम रूहानी धन्धे में सफल करना है।
    • हीरे जैसा जीवन बनाना है।
    • अपने को सावधान करते रहना है।
    • शरीर समझने की कड़ी बीमारी से बचने का पुरुषार्थ करना है।
  • 2) कभी भी माया का दास नहीं बनना है, अन्दर में बैठ जाप जपना है कि हम आत्मा हैं।
    • खुशी रहे हम बेगर से प्रिन्स बन रहे है।
  • वरदान:-
  • वाइसलेस की शक्ति द्वारा सूक्ष्मवतन वा तीनों लोकों का अनुभव करने वाले श्रेष्ठ भाग्यवान भव
    • जिन बच्चों के पास वाइसलेस की शक्ति है, बुद्धियोग बिल्कुल रिफाइन है-ऐसे भाग्यवान बच्चे सहज ही तीनों लोकों का सैर कर सकते हैं।
    • सूक्ष्मवतन तक अपने संकल्प पहुंचाने के लिए सर्व सम्बन्धों के सार वाली महीन याद चाहिए।
    • यही सबसे पावरफुल तार है, इसके बीच में माया इन्टरफियर नहीं कर सकती है।
    • तो सूक्ष्मवतन की रौनक का अनुभव करने के लिए स्वयं को वाइसलेस की शक्ति से सम्पन्न बनाओ।
  • स्लोगन:-
  • किसी व्यक्ति, वस्तु व वैभव के प्रति आकर्षित होना ही कम्पैनियन बाप को संकल्प से तलाक देना है।