मीठे बच्चे - तुम ड्रामा के खेल को जानते हो इसलिए शुक्रिया मानने की भी
बात नहीं है
प्रश्नः-
सर्विसएबुल बच्चों में कौन-सी आदत बिल्कुल नहीं होनी चाहिए?
उत्तर:-
मांगने की।
तुम्हें बाप से आशीर्वाद या कृपा आदि मांगने की
जरूरत नहीं है।
तुम किसी से पैसा भी नहीं मांग सकते। मांगने से मरना भला।
तुम जानते हो ड्रामा अनुसार कल्प पहले जिन्होंने बीज बोया होगा वह बोयेंगे,
जिनको अपना भविष्य पद ऊंच बनाना होगा वह जरूर सहयोगी बनेंगे।
तुम्हारा
काम है सर्विस करना।
तुम किसी से कुछ मांग नहीं सकते।
भक्ति में मांगना
होता, ज्ञान में नहीं।
गीत:- मुझको सहारा देने वाले...
ओम् शान्ति।
यह बच्चों के अन्दर से शुक्रिया अक्षर बाप-टीचर-गुरू के लिए नहीं
निकल सकता क्योंकि बच्चे जानते हैं यह खेल बना हुआ है।
शुक्रिया आदि की
बात नहीं है।
यह भी बच्चे जानते हैं ड्रामा अनुसार।
ड्रामा अक्षर भी तुम बच्चों की
बुद्धि में आता है।
खेल अक्षर कहने से ही सारा खेल तुम्हारी बुद्धि में आ जाता है।
गोया स्वदर्शन चक्रधारी तुम आपेही बन जाते हो।
तीनों लोक भी तुम्हारी बुद्धि में
आ जाते हैं।
मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन।
यह भी जानते हो अब खेल पूरा
होता है।
बाप आकर तुमको त्रिकालदर्शी बनाते हैं।
तीनों कालों, तीनों लोकों,
आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं।
काल समय को कहा जाता है।
यह सब
बातें नोट करने बिगर याद नहीं रह सकती।
तुम बच्चे तो बहुत प्वाइंट्स भूल
जाते हो।
ड्रामा के ड्यूरेशन को भी तुम जानते हो।
तुम त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी बनते
हो, ज्ञान का तीसरा नेत्र मिल जाता है।
सबसे बड़ी बात है कि तुम आस्तिक बन
जाते हो, नहीं तो निधनके थे।
यह ज्ञान तुम बच्चों को मिल रहा है।
स्टूडेण्ट की
बुद्धि में सदैव नॉलेज मंथन होती है।
यह भी नॉलेज है ना।
ऊंच ते ऊंच बाप ही
नॉलेज देते हैं, ड्रामा अनुसार।
ड्रामा अक्षर भी तुम्हारे मुख से निकल सकता है।
सो भी जो बच्चे सर्विस में तत्पर रहते हैं।
अभी तुम जानते हो - हम आरफन थे।
अब बेहद का बाप धणी मिला है तो धणके बने हैं।
पहले तुम बेहद के आरफन
थे, बेहद का बाप बेहद का सुख देने वाला है और कोई बाप नहीं जो ऐसा सुख
देता हो।
नई दुनिया और पुरानी दुनिया यह सब तुम बच्चों की बुद्धि में है।
परन्तु
औरों को भी यथार्थ रीति समझायें, इस ईश्वरीय धन्धे में लग जाएं।
हर एक के
सरकमस्टांश अपने-अपने होते हैं।
समझा भी वह सकेंगे जो याद की यात्रा में
होंगे।
याद से बल मिलता है ना।
बाप है ही - जौहरदार तलवार।
तुम बच्चों को
जौहर भरना है।
योगबल से विश्व की बादशाही पाते हो।
योग से बल मिलता है,
ज्ञान से नहीं।
बच्चों को समझाया है - नॉलेज सोर्स ऑफ इनकम है।
योग को
बल कहा जाता है।
रात-दिन का फ़र्क है।
अब योग अच्छा या ज्ञान अच्छा?
योग
ही नामीग्रामी है।
योग अर्थात् बाप की याद।
बाप कहते हैं इस याद से ही तुम्हारे
पाप कट जायेंगे।
इस पर ही बाप ज़ोर देते हैं।
ज्ञान तो सहज है।
भगवानुवाच -
मैं तुमको सहज ज्ञान सुनाता हूँ।
84 के चक्र का ज्ञान सुनाता हूँ।
उसमें सब आ
जाता है।
हिस्ट्री-जॉग्राफी है ना।
ज्ञान और योग दोनों है सेकण्ड का काम।
बस हम
आत्मा हैं, हमको बाप को याद करना है।
इसमें मेहनत है।
याद की यात्रा में रहने
से शरीर की जैसे विस्मृति होती जाती।
घण्टा भर भी ऐसे अशरीरी होकर बैठो तो
कितने पावन हो जाएं।
मनुष्य रात को कोई 6, कोई 8 घण्टा नींद करते हैं तो
अशरीरी हो जाते हैं ना।
उस समय में कोई विकर्म नहीं होता है। आत्मा थक कर
सो जाती है।
ऐसे भी नहीं कोई पाप विनाश होते हैं।
नहीं, वह है नींद।
विकर्म
कोई होता नहीं है।
नींद न करे तो पाप ही करते रहेंगे।
तो नींद भी एक बचाव है।
सारा दिन सर्विस कर आत्मा कहती है मैं अब सोता हूँ, अशरीरी बन जाता हूँ।
तुमको शरीर होते अशरीरी बनना है।
हम आत्मा इस शरीर से न्यारी, शान्त
स्वरूप हैं।
आत्मा की महिमा कभी नहीं सुनी होगी।
आत्मा सत् चित आनन्द
स्वरूप है। परमात्मा की महिमा गाते हैं कि सत है, चैतन्य है।
सुख-शान्ति का
सागर है।
अब तुमको फिर कहेंगे मास्टर, बच्चे को मास्टर भी कहते हैं।
तो बाप
युक्तियां भी बतलाते रहते हैं।
ऐसे भी नहीं सारा दिन नींद करनी है। नहीं, तुमको
तो याद में रह पापों का विनाश करना है।
जितना हो सके बाप को याद करना है।
ऐसे भी नहीं बाप हमारे ऊपर रहम वा कृपा करते हैं।
नहीं, यह उनका गायन है -
रहमदिल बादशाह।
यह भी उनका पार्ट है, तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाना।
भक्त
लोग महिमा गाते हैं - तुम्हें सिर्फ महिमा नहीं गानी है।
यह गीत आदि भी
दिनप्रतिदिन बंद होते जाते हैं।
स्कूल में कभी गीत होते हैं क्या?
बच्चे शान्ति में
बैठे रहते हैं।
टीचर आता है तो उठकर खड़े होते हैं, फिर बैठते हैं।
यह बाप कहते
हैं मुझे तो पार्ट मिला हुआ है पढ़ाने का, सो तो पढ़ाना ही है।
तुम बच्चों को उठने
की दरकार नहीं।
आत्मा को बैठ सुनना है।
तुम्हारी बात ही सारी दुनिया से न्यारी
है।
बच्चों को कहेंगे क्या तुम उठो।
नहीं, वह तो भक्ति मार्ग में करते, यहाँ नहीं।
बाप तो खुद उठकर नमस्ते करते हैं। स्कूल में अगर बच्चे देरी से आते हैं तो
टीचर या तो रूल लगायेंगे या बाहर में खड़ा कर देंगे इसलिए डर रहता है टाइम
पर पहुँचने का।
यहाँ तो डर की बात नहीं।
बाप समझाते रहते हैं - मुरलियां
मिलती रहती हैं।
वह रेग्युलर पढ़नी है।
मुरली पढ़ो तो तुम्हारी प्रेजेन्ट मार्क पड़े।
नहीं तो अबसेन्ट पड़ जायेगी क्योंकि बाप कहते हैं तुमको गुह्य-गुह्य बातें सुनाता
हूँ।
तुम अगर मुरली मिस करेंगे तो वह प्वाइंट्स मिस हो जायेंगी।
यह हैं नई
बातें, जो दुनिया में कोई नहीं जानते।
तुम्हारे चित्र देखकर ही चक्रित हो जाते हैं।
कोई शास्त्रों में भी नहीं है।
भगवान ने चित्र बनाये थे।
तुम्हारी यह चित्रशाला है
नई।
ब्राह्मण कुल के जो देवता बनने वाले होंगे उनकी बुद्धि में ही बैठेगा।
कहेंगे
यह तो ठीक है।
कल्प पहले भी हमने पढ़ा था, जरूर भगवान पढ़ाते हैं।
भक्ति मार्ग के शास्त्रों में पहले नम्बर में गीता ही है क्योंकि पहला धर्म ही यह
है।
फिर आधाकल्प के बाद उसके भी बहुत पीछे दूसरे शास्त्र बनते हैं।
पहले
इब्राहम आया तो अकेला था।
फिर एक से दो, दो से चार हुए।
जब धर्म की वृद्धि
होते-होते लाख डेढ़ हो जाते तो शास्त्र आदि बनते हैं।
उनके भी आधा समय बाद
ही बनते होंगे, हिसाब किया जाता है ना।
बच्चों को तो बहुत खुशी होनी चाहिए।
बाप से हमको वर्सा मिलता है।
तुम जानते हो बाप हमको सारा ज्ञान सृष्टि चक्र
का समझाते हैं।
यह है बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी।
सबको बोलो यहाँ वर्ल्ड की
हिस्ट्री-जॉग्राफी समझाई जाती है जो और कोई सिखला न सके।
भल वर्ल्ड का
नक्शा निकालते हैं।
परन्तु उसमें यह कहाँ दिखलाते कि लक्ष्मी-नारायण का राज्य
कब था, कितना समय चला।
वर्ल्ड तो एक ही है।
भारत में ही राज्य करके गये
हैं, अब नहीं हैं।
यह बातें किसकी भी बुद्धि में नहीं हैं।
वह तो कल्प की आयु ही
लम्बी लाखों वर्ष कह देते।
तुम मीठे-मीठे बच्चों को कोई जास्ती तकलीफ नहीं
देते।
बाप कहते हैं पावन बनना है।
पावन बनने के लिए तुम भक्ति मार्ग में
कितने धक्के खाते हो।
अब समझते हो धक्के खाते-खाते 2500 वर्ष गुजर गये।
अब फिर बाबा आया है फिर से राज्य-भाग्य देने।
तुमको यही याद है।
पुरानी से
नयी और नयी से पुरानी दुनिया जरूर होती है।
अभी तुम पुराने भारत के मालिक
हो ना।
फिर नये के मालिक बनेंगे।
एक तरफ भारत की बहुत महिमा गाते रहते,
दूसरे तरफ फिर बहुत ग्लानि करते रहते।
वह भी तुम्हारे पास गीत है।
तुम
समझाते हो - अब क्या-क्या हो रहा है।
यह दोनों गीत भी सुनाने चाहिए।
तुम
बता सकते हो - कहाँ रामराज्य, कहाँ यह!
बाप है गरीब निवाज़।
गरीबों की ही बच्चियां मिलेंगी।
साहूकारों को तो अपना
नशा रहता है।
कल्प पहले जो आये होंगे वही आयेंगे।
फिकरात की कोई बात
नहीं।
शिवबाबा को कभी कोई फिकरात नहीं होती, दादा को होगी।
इनको अपना
भी फिकर है, हमको नम्बरवन पावन बनना है।
इसमें है गुप्त पुरूषार्थ।
चार्ट रखने
से समझ में आता है, इनका पुरूषार्थ जास्ती है।
बाप हमेशा समझाते रहते हैं
डायरी रखो।
बहुत बच्चे लिखते भी हैं, चार्ट लिखने से सुधार बहुत हुआ है।
यह
युक्ति बहुत अच्छी है, तो सबको करना चाहिए।
डायरी रखने से तुमको बहुत
फायदा होगा।
डायरी रखना माना बाप को याद करना।
उसमें बाप की याद लिखनी
है।
डायरी भी मददगार बनेगी, पुरूषार्थ होगा।
डायरियां कितनी लाखों, करोड़ों
बनती हैं, नोट आदि करने लिए।
सबसे मुख्य बात तो यह है नोट करने की।
यह
कभी भूलना नहीं चाहिए।
उसी समय डायरी में लिखना चाहिए।
रात को
हिसाब-किताब लिखना चाहिए।
फिर मालूम पड़ेगा यह तो हमको घाटा पड़ रहा है
क्योंकि जन्म-जन्मान्तर के विकर्म भस्म करने हैं।
बाप रास्ता बताते हैं - अपने ऊपर रहम वा कृपा करनी है।
टीचर तो पढ़ाते हैं,
आशीर्वाद तो नहीं करेंगे।
आशीर्वाद, कृपा, रहम आदि मांगने से मरना भला।
कोई
से पैसा भी नहीं मांगना चाहिए।
बच्चों को सख्त मना है।
बाप कहते हैं ड्रामा
अनुसार जिन्होंने कल्प पहले बीज बोया है, वर्सा पाया है वह आपेही करेंगे।
तुम
कोई काम के लिए मांगो नहीं।
नहीं करेगा तो नहीं पायेगा।
मनुष्य दान-पुण्य
करते हैं तो रिटर्न में मिलता है ना।
राजा के घर वा साहूकार के पास जन्म होता
है।
जिनको करना होगा वह आपेही करेंगे, तुमको मांगना नहीं है।
कल्प पहले
जिन्होंने जितना किया है, ड्रामा उनसे करायेगा।
मांगने की क्या दरकार है।
बाबा
तो कहते रहते हैं हुण्डी भरती रहती है, सर्विस के लिए।
हम बच्चों को थोड़ेही
कहेंगे पैसा दो।
भक्ति मार्ग की बात ज्ञान मार्ग में नहीं होती।
जिन्होंने कल्प
पहले मदद की है, वह करते रहेंगे, आपेही कभी मांगना नहीं है।
बाबा कहते बच्चे
चन्दाचीरा तुम इकट्ठा नहीं कर सकते।
यह तो संन्यासी लोग करते हैं।
भक्ति मार्ग
में थोड़ा भी देते हैं, उसका रिटर्न में एक जन्म लिए मिलता है।
यह फिर है
जन्म-जन्मान्तर के लिए।
तो जन्म-जन्मान्तर के लिए सब कुछ दे देना अच्छा है
ना।
इनका तो नाम भोला भण्डारी है।
तुम पुरूषार्थ करो तो विजय माला में पिरोये
जा सकते हो, भण्डारा भरपूर काल कंटक दूर है।
वहाँ कभी अकाले मृत्यु नहीं
होती।
यहाँ मनुष्य काल से कितना डरते हैं।
थोड़ा कुछ होता है तो मौत याद आ
जाता।
वहाँ यह ख्याल ही नहीं, तुम अमरपुरी में चलते हो।
यह छी-छी मृत्युलोक
है।
भारत ही अमरलोक था, अब मृत्युलोक है।
तुम्हारा आधाकल्प बहुत छी-छी पास हुआ है।
नीचे गिरते आये हो।
जगन्नाथ पुरी
में बहुत गन्दे-गन्दे चित्र हैं।
बाबा तो अनुभवी है ना।
चारों तरफ घूमा हुआ है।
गोरे से सांवरा बना है।
गांव में रहने वाला था।
वास्तव में यह सारा भारत गांव है।
तुम गांव के छोरे हो।
अब तुम समझते हो हम विश्व के मालिक बनते हैं।
ऐसे
मत समझना हम तो बाम्बे में रहने वाले हैं।
बाम्बे भी स्वर्ग के आगे क्या है!
कुछ भी नहीं।
एक पत्थर भी नहीं।
हम गांव के छोरे निधणके बन गये हैं अब
फिर हम स्वर्ग के मालिक बन रहे हैं तो खुशी रहनी चाहिए।
नाम ही है स्वर्ग।
कितने हीरे-जवाहरात महलों में लगे रहते हैं।
सोमनाथ का मन्दिर ही कितना
हीरे-जवाहरातों से भरा हुआ था।
पहले-पहले शिव का मन्दिर ही बनाते हैं।
कितना
साहूकार था।
अभी तो भारत गांव है।
सतयुग में बहुत मालामाल था।
यह बातें
दुनिया में तुम्हारे सिवाए कोई भी नहीं जानते।
तुम कहेंगे कल हम बादशाह थे,
आज फकीर हैं।
फिर विश्व के मालिक बनते हैं।
तुम बच्चों को अपने भाग्य पर
शुक्रिया मानना चाहिए।
हम पदमापदम भाग्यशाली हैं।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विकर्मों से बचने के लिए इस शरीर में रहते अशरीरी बनने का पुरुषार्थ करना
है।
याद की यात्रा ऐसी हो जो शरीर की विस्मृति होती जाए।
2) ज्ञान का मंथन कर आस्तिक बनना है।
मुरली कभी भी मिस नहीं करनी है।
अपनी उन्नति के लिए डायरी में याद का चार्ट नोट करना है।
वरदान:-
नॉलेज रूपी चाबी द्वारा भाग्य का अखुट खजाना प्राप्त करने वाले
मालामाल भव
संगमयुग पर सभी बच्चों को भाग्य बनाने के लिए नॉलेज रूपी चाबी मिलती है।
ये चाबी लगाओ और जितना चाहे उतना भाग्य का खजाना लो।
चाबी मिली और
मालामाल बन गये।
जो जितना मालामाल बनते हैं उतना खुशी स्वत: रहती है।
ऐसे अनुभव होता है जैसे खुशी का झरना अखुट अविनाशी बहता ही रहता है।
वे
सर्व खजानों से भरपूर मालामाल दिखाई देते हैं।
उनके पास किसी भी प्रकार की
अप्राप्ति नहीं रहती।
स्लोगन:-
बाप से कनेक्शन ठीक रखो तो सर्व शक्तियों की करेन्ट आती
रहेगी।