मीठे बच्चे - तुम्हें पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है, इसमें आशीर्वाद की बात नहीं, तुम सबको यही बताओ कि बाप को याद करो तो सब दु:ख दूर हो जायेंगे
प्रश्नः-
मनुष्यों को कौन-कौन सी फिकराते हैं?
तुम बच्चों को कोई भी फिकरात नहीं - क्यों?
उत्तर:-
मनुष्यों को इस समय फिकरात ही फिकरात है - बच्चा बीमार हुआ तो फिकरात, बच्चा मरा तो फिकरात, किसी को बच्चा न हुआ तो फिकरात, कोई ने अनाज जास्ती रखा, पुलिस वा इनकम टैक्स वाले आये तो फिकरात..... यह है ही डर्टी दुनिया, दु:ख देने वाली।
तुम बच्चों को कोई फिकरात नहीं, क्योंकि तुम्हें सतगुरू बाबा मिला है।
कहते भी हैं फिक्र से फारिग कींदा स्वामी सद्गुरू...।
अभी तुम ऐसी दुनिया में जाते हो जहाँ कोई फिकरात नहीं।
गीत:- तू प्यार का सागर है...
ओम् शान्ति। मीठे-मीठे बच्चों ने गीत सुना।
अर्थ भी समझते हैं, हमको भी मास्टर प्यार का सागर बनना है।
आत्मायें सभी हैं ब्रदर्स।
तो बाप आप ब्रदर्स को कहते हैं, जैसे हम प्यार के सागर हैं, तुमको भी बहुत प्यार से चलना है।
देवताओं में बहुत प्यार है, कितना उनको प्यार करते हैं, भोग लगाते हैं।
अब तुमको पवित्र बनना है, बड़ी बात तो है नहीं।
यह बहुत ही छी-छी दुनिया है।
हर बात की फिकरात रहती है।
दु:ख पिछाड़ी दु:ख ही है।
इनको कहा जाता है दु:खधाम।
पुलिस या इनकमटैक्स वाले आते हैं, कितना मनुष्यों को ह्रास हो जाता है, बात मत पूछो!
कोई ने अनाज जास्ती रखा, आई पुलिस, पीले हो जाते हैं।
यह कैसी डर्टी दुनिया है।
नर्क है ना।
स्वर्ग को याद भी करते हैं।
नर्क के बाद स्वर्ग, स्वर्ग के बाद नर्क - यह चक्र फिरता रहता है।
बच्चे जानते हैं अभी बाप आये हैं स्वर्गवासी बनाने।
नर्कवासी से स्वर्गवासी बनाते हैं।
वहाँ विकार होते नहीं क्योंकि रावण ही नहीं।
वह है ही सम्पूर्ण निर्विकारी शिवालय।
यह है वेश्यालय।
अभी थोड़ा ठहरो, सबको मालूम पड़ जायेगा - इस दुनिया में सुख है वा दु:ख है।
थोड़ी ही अर्थक्वेक आदि होती है तो मनुष्यों की क्या हालत हो जाती है।
सतयुग में फिकरात की ज़रा भी बात नहीं।
यहाँ तो फिकरात बहुत है - बच्चा बीमार हुआ फिकरात, बच्चा मरा फिकरात।
फिकरात ही फिकरात है।
फिकर से फारिग कींदा स्वामी..... सबका स्वामी तो एक ही है ना।
तुम शिवबाबा के आगे बैठे हो।
यह ब्रह्मा कोई गुरू नहीं।
यह तो भाग्यशाली रथ है।
बाप इस भागीरथ द्वारा तुमको पढ़ाते हैं।
वो ज्ञान का सागर है।
तुमको भी सारी नॉलेज मिली है।
ऐसा कोई देवता नहीं जिसको तुम न जानो।
सच और झूठ की परख तुमको है।
दुनिया में कोई भी नहीं जानते।
सचखण्ड था, अभी है झूठ खण्ड।
यह किसको पता नहीं - सचखण्ड कब और किसने स्थापन किया।
यह है अज्ञान की अन्धियारी रात।
बाप आकर रोशनी देते हैं।
गाते भी हैं तुम्हारी गत-मत तुम ही जानो।
ऊंच ते ऊंच वह एक ही है, बाकी सारी है रचना।
वह है रचता बेहद का बाप।
वह हैं हद के बाप जो 2-4 बच्चों को रचते हैं।
बच्चा नहीं हुआ तो फिकरात हो जाती है।
वहाँ तो ऐसी बात नहीं रहती।
आयुश्वान भव, धनवान भव .... तुम रहते हो।
तुम कोई आशीर्वाद नहीं देते हो।
यह तो पढ़ाई है ना।
तुम हो टीचर।
तुम तो सिर्फ कहते हो शिवबाबा को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे।
यह भी टीचिंग हुई ना।
इसको कहा जाता है सहज योग वा याद।
आत्मा अविनाशी है, शरीर विनाशी है।
बाप कहते हैं मैं भी अविनाशी हूँ।
तुम मुझे बुलाते हो कि आकर हम पतितों को पावन बनाओ।
आत्मा ही कहती है ना।
पतित आत्मा, महान् आत्मा कहा जाता है।
पवित्रता है तो सुख-शान्ति भी है।
यह है होलीएस्ट ऑफ होली चर्च।
यहाँ विकारी को आने का हुक्म नहीं है।
एक कहानी भी है ना - इन्द्रसभा में कोई परी किसको छुपाकर ले गई, उनको मालूम पड़ गया तो फिर उनको श्राप मिला पत्थर बन जाओ।
यहाँ श्राप आदि की कोई बात नहीं।
यहाँ तो ज्ञान वर्षा होती है।
पतित कोई भी इस होली-पैलेस में आ न सके।
एक दिन यह भी होगा, हाल भी बहुत बड़ा बन जायेगा।
यह होलीएस्ट ऑफ होली पैलेस है।
तुम भी होली बनते हो।
मनुष्य समझते हैं विकार बिगर सृष्टि कैसे चलेगी?
यह कैसे होगा?
अपनी नॉलेज रहती है। देवताओं के आगे कहते भी हैं आप सर्वगुण सम्पन्न हैं, हम पापी हैं।
तो स्वर्ग है होलीएस्ट ऑफ होली।
वही फिर 84 जन्म लेते होलीएस्ट ऑफ होली बनते हैं।
वह है पावन दुनिया, यह है पतित दुनिया।
बच्चा आया तो खुशी मनाते, बीमार हुआ तो मुंह पीला हो जाता, मर गया तो एकदम पागल बन पड़ते।
ऐसे भी कोई-कोई हो जाते हैं।
ऐसे को भी ले आते हैं, बाबा इनका बच्चा मर जाने से माथा खराब हो गया है, यह दु:ख की दुनिया है ना।
अब बाप सुख की दुनिया में ले जाते हैं।
तो श्रीमत पर चलना चाहिए।
गुण भी बहुत अच्छे चाहिए।
जो करेगा सो पायेगा।
दैवी कैरेक्टर्स भी चाहिए।
स्कूल में रजिस्टर में कैरेक्टर भी लिखते हैं।
कोई तो बाहर में धक्के खाते रहते हैं।
माँ-बाप के नाक में दम कर देते हैं।
अब बाप शान्तिधाम-सुखधाम में ले जाते हैं।
इनको कहा जाता है टॉवर ऑफ साइलेन्स अर्थात् साइलेन्स की ऊंचाई, जहाँ आत्मायें निवास करती हैं वह है टॉवर ऑफ साइलेन्स।
सूक्ष्मवतन है मूवी, उसका सिर्फ तुम साक्षात्कार करते हो, बाकी उनमें कुछ भी है नहीं।
यह भी बच्चों को साक्षात्कार हुआ है।
सतयुग में बूढ़े होते हैं तो खुशी से खाल छोड़ देते हैं।
यह है 84 जन्मों की पुरानी खाल।
बाप कहते हैं - तुम पावन थे, अब पतित बने हो।
अब बाप आये हैं तुमको पावन बनाने।
तुमने मुझे बुलाया है ना।
जीवात्मा ही पतित बनी है फिर वही पावन बनेगी।
तुम इस देवी-देवता घराने के थे ना।
अब आसुरी घराने के हो।
आसुरी और ईश्वरीय अथवा दैवी घराने में कितना फ़र्क है।
यह है तुम्हारा ब्राह्मण कुल।
घराना डिनायस्टी को कहा जाता है, जहाँ राज्य होता है।
यहाँ राज्य नहीं है।
गीता में पाण्डव और कौरवों का राज्य लिखा है परन्तु ऐसे है नहीं।
तुम तो हो रूहानी बच्चे।
बाप कहते हैं - मीठे बच्चे, बहुत-बहुत मीठा बन जाओ।
प्यार के सागर बन जाओ।
देह-अभिमान के कारण ही प्यार के सागर नहीं बनते हैं इसलिए फिर बहुत सज़ायें खानी पड़ती हैं।
फिर मोचरा और मानी।
स्वर्ग में तो चलेंगे परन्तु मोचरा बहुत खायेंगे।
सज़ायें कैसे मिलती हैं, वह भी तुम बच्चों ने साक्षात्कार किया है।
बाबा तो समझाते हैं बहुत प्यार से चलो, नहीं तो क्रोध का अंश हो जाता है।
Thanks करो - बाप मिला है जो हमको नर्क से निकाल स्वर्ग में ले जाते हैं।
सज़ायें खाना तो बहुत खराब है।
तुम जानते हो सतयुग में है प्यार की राजधानी।
प्यार के सिवाए कुछ भी नहीं है।
यहाँ तो थोड़ी बात में शक्ल बदल जाती है।
बाप कहते हैं मैं पतित दुनिया में आया हूँ, मुझे निमंत्रण ही पतित दुनिया में देते हो।
बाप फिर सबको निमंत्रण देते हैं - अमृत पियो।
विष और अमृत का एक किताब निकला है।
किताब लिखने वाले को इनाम मिला है, नामीग्रामी है।
देखना चाहिए क्या लिखा है।
बाप तो कहते हैं तुमको ज्ञान अमृत पिलाता हूँ, तुम फिर विष क्यों खाते हो?
रक्षाबंधन भी इस समय का यादगार है ना।
बाप सबको कहते हैं प्रतिज्ञा करो, पवित्र बनने की, यह अन्तिम जन्म है।
पवित्र बनेंगे, योग में रहेंगे तो पाप कट जायेंगे।
अपनी दिल से पूछना है, हम याद में रहते हैं वा नहीं?
बच्चे को याद कर खुश होते हैं ना।
स्त्री-पुरुष को याद कर खुश होती है ना।
यह कौन है?
भगवानुवाच, निराकार।
बाप कहते हैं मैं इनके (श्रीकृष्ण के) 84 वें जन्म बाद फिर से स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ।
अभी झाड़ छोटा है।
माया के तूफान बहुत लगते हैं।
यह सब बड़ी गुप्त बातें हैं।
बाप तो कहते हैं बच्चे याद की यात्रा में रहो और पवित्र रहो।
यहाँ ही पूरी राजधानी स्थापन हो जानी है।
गीता में लड़ाई दिखाते हैं।
पाण्डव पहाड़ों में गल मरे।
बस रिजल्ट कुछ नहीं।
अभी तुम बच्चे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो।
बाप ज्ञान का सागर है ना।
वह है सुप्रीम सोल।
आत्मा का रूप क्या है, यह भी किसको पता नहीं।
तुम्हारी बुद्धि में वह बिन्दी है।
तुम्हारे में भी यथार्थ रीति कोई समझते नहीं हैं।
फिर कहते हैं बिन्दी को कैसे याद करें।
कुछ भी नहीं समझते हैं।
फिर भी बाप कहते हैं थोड़ा भी सुनते हैं तो ज्ञान का विनाश नहीं होता।
ज्ञान में आकर फिर चले जाते हैं,
परन्तु थोड़ा भी सुनते हैं तो स्वर्ग में जरूर आयेंगे।
जो बहुत सुनेंगे, धारणा करेंगे तो राजाई में आ जायेंगे।
थोड़ा सुनने वाले प्रजा में आयेंगे।
राजधानी में तो राजा-रानी आदि सब होते हैं ना।
वहाँ वजीर होता नहीं, यहाँ विकारी राजाओं को वजीर रखना पड़ता है।
बाप तुम्हारी बहुत विशाल बुद्धि बनाते हैं।
वहाँ वजीर की दरकार ही नहीं रहती।
शेर-बकरी इकट्ठे जल पीते हैं।
तो बाप समझाते हैं तुम भी लून-पानी मत बनो, क्षीरखण्ड बनो।
क्षीर (दूध) और खण्ड (चीनी) दोनों अच्छी चीज़ है ना।
मतभेद आदि कुछ भी नहीं रखो।
यहाँ तो मनुष्य कितना लड़ते-झगड़ते हैं।
यह है ही रौरव नर्क।
नर्क में गोते खाते रहते हैं।
बाप आकर निकालते हैं।
निकलते-निकलते फिर फंस पड़ते हैं।
कोई तो औरों को निकालने जाते हैं तो खुद भी चले जाते हैं।
शुरू में बहुतों को माया रूपी ग्राह ने पकड़ लिया।
एकदम सारा हप कर लिया।
ज़रा निशान भी नहीं है।
कोई-कोई की निशानी है जो फिर लौट आते हैं।
कोई एकदम खत्म।
यहाँ प्रैक्टिकल सब कुछ हो रहा है।
तुम हिस्ट्री सुनो तो वण्डर खाओ।
गायन है तुम प्यार करो या ठुकराओ।
हम आपके दर से बाहर नहीं निकलेंगे।
बाबा तो कभी जबान से भी ऐसा कुछ नहीं कहते हैं।
कितना प्यार से पढ़ाते हैं।
सामने एम ऑब्जेक्ट खड़ा है।
ऊंच ते ऊंच बाप यह (विष्णु) बनाते हैं।
वही विष्णु सो फिर ब्रह्मा बनते हैं।
सेकण्ड में जीवनमुक्ति मिली फिर 84 जन्म ले यह बना।
ततत्वम्।
तुम्हारे भी फोटो निकालते थे ना।
तुम ब्रह्मा के बच्चे ब्राह्मण हो।
तुमको ताज अभी तो है नहीं, भविष्य में मिलना है इसलिए तुम्हारी वह फोटो भी रखी है।
बाप आकर बच्चों को डबल सिरताज बनाते हैं।
तुम फील करते हो बरोबर पहले हमारे में 5 विकार थे।
(नारद का मिसाल) पहले-पहले भक्त भी तुम बने हो।
अब बाप कितना ऊंच बनाते हैं।
एकदम पतित से पावन।
बाप कुछ भी लेता नहीं है।
शिवबाबा फिर क्या लेंगे!
तुम शिवबाबा की भण्डारी में डालते हो।
मैं तो ट्रस्टी हूँ।
लेन-देन का हिसाब सारा शिवबाबा से है।
मैं पढ़ता हूँ, पढ़ाता हूँ।
जिसने अपना ही सब कुछ दे दिया वह फिर लेगा क्या।
कोई भी चीज़ में ममत्व नहीं रहता है।
गाते भी हैं फलाना स्वर्ग पधारा।
फिर उनको नर्क का खान-पान आदि क्यों खिलाते हो।
अज्ञान है ना।
नर्क में है तो पुनर्जन्म भी नर्क में ही होगा ना।
अभी तुम चलते हो अमरलोक में।
यह बाजोली है।
तुम ब्राह्मण चोटी हो फिर देवता क्षत्रिय बनेंगे इसलिए बाप समझाते हैं बहुत मीठे बनो।
फिर भी नहीं सुधरते तो कहेंगे उनकी तकदीर।
अपने को ही नुकसान पहुँचाते हैं।
सुधरते ही नहीं तो ईश्वर की तदबीर भी क्या करे।
बाप कहते हैं मैं आत्माओं से बात कर रहा हूँ।
अविनाशी आत्माओं को अविनाशी परमात्मा बाप ज्ञान दे रहे हैं।
आत्मा कानों से सुनती है।
बेहद का बाप यह नॉलेज सुना रहे हैं।
तुमको मनुष्य से देवता बनाते हैं।
रास्ता दिखलाने वाला सुप्रीम पण्डा बैठा है।
श्रीमत कहती है - पवित्र बनो, मेरे को याद करो तो तुम्हारे पाप भस्म हो जायेंगे।
तुम ही सतोप्रधान थे।
84 जन्म भी तुमने लिये हैं।
बाप इनको ही समझाते हैं तुम सतोप्रधान से अब तमोप्रधान बने हो, अब फिर मुझे याद करो।
इसको योग अग्नि कहा जाता है।
यह ज्ञान भी अभी तुमको है।
सतयुग में मुझे कोई याद नहीं करते।
इस समय ही मैं कहता हूँ - मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप कट जायें और कोई रास्ता नहीं।
यह स्कूल है ना।
इसको कहा जाता है विश्व विद्यालय, वर्ल्ड युनिवर्सिटी।
रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान और कोई जानते नहीं।
शिवबाबा कहते हैं इन लक्ष्मी-नारायण में भी यह ज्ञान नहीं।
यह तो प्रालब्ध है ना।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) प्यार की राजधानी में चलना है, इसलिए आपस में क्षीरखण्ड होकर रहना है।
कभी भी लूनपानी बन मतभेद में नहीं आना है।
अपने आपको आपेही सुधारना है।
2) देह-अभिमान को छोड़ मास्टर प्यार का सागर बनना है।
अपने दैवी कैरेक्टर बनाने हैं।
बहुत-बहुत मीठा होकर चलना है।
वरदान:-
मगन अवस्था के अनुभव द्वारा माया को अपना भक्त बनाने वाले मायाजीत भव
मगन अवस्था का अनुभव करने के लिए अपने अनेक टाइटल वा स्वरूप, अनेक गुणों के श्रृंगार, अनेक प्रकार के खुशी की, रूहानी नशे की, रचता और रचना के विस्तार की पाइंटस, प्राप्तियों की पाइंटस स्मृति में रखो।
जो आपकी पसन्दी हो उस पर मनन करो तो मगन अवस्था सहज अनुभव होगी।
फिर कभी परवश नहीं होंगे, माया सदा के लिए नमस्कार करेगी।
संगमयुग का पहला भक्त माया बन जायेगी।
जब आप मायाजीत मास्टर भगवान बनेंगे तब माया भक्त बनेगी।
स्लोगन:-
आपका उच्चारण और आचरण ब्रह्मा बाप के समान हो तब कहेंगे सच्चे ब्राह्मण।