04-12-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

मीठे बच्चे - बेहद का बाबा आया है तुम बच्चों का ज्ञान से श्रृंगार करने, ऊंच पद पाना है तो सदा श्रृंगारे हुए रहो

प्रश्नः-

किन बच्चों को देखकर बेहद का बाप बहुत खुश होते हैं?

उत्तर:-

जो बच्चे सर्विस के लिए एवररेडी रहते हैं,

अलौकिक और पारलौकिक दोनों बाप को पूरा फालो करते हैं,

ज्ञान-योग से आत्मा को श्रृंगारते हैं,

पतितों को पावन बनाने की सेवा करते हैं,

ऐसे बच्चों को देख बेहद के बाप को बहुत खुशी होती है।

बाप की चाहना हैं मेरे बच्चे मेहनत कर ऊंच पद पायें।

  • ओम् शान्ति। रूहानी बाप रूहानी बच्चों प्रति कहते हैं - मीठे-मीठे बच्चों, जैसे लौकिक बाप को बच्चे प्यारे लगते हैं वैसे बेहद के बाप को भी बेहद के बच्चे प्यारे लगते हैं।
    • बाप बच्चों को शिक्षा, सावधानी देते हैं कि बच्चे ऊंच पद पायें।
    • यही बाप की चाहना होती है।
    • तो बेहद के बाप की भी यह इच्छा रहती है।
    • बच्चों को ज्ञान और योग के गहनों से श्रृंगारते हैं।
    • तुमको दोनों बाप बहुत अच्छी रीति श्रृंगारते हैं कि बच्चे ऊंच पद पायें।
  • अलौकिक बाप भी खुश होते हैं तो पारलौकिक बाप भी खुश होते हैं, जो अच्छी रीति पुरुषार्थ करते हैं, उन्हों को देखकर गाया भी जाता है फालो फादर।
    • तो दोनों को फालो करना है।
    • एक है रूहानी बाप, दूसरा फिर यह है अलौकिक फादर।
    • तो पुरुषार्थ कर ऊंच पद पाना है।
  • तुम जब भट्ठी में थे तो सबका ताज सहित फोटो निकाला गया था।
    • बाप ने तो समझाया है लाइट का ताज कोई होता नहीं।
    • यह एक निशानी है पवित्रता की, जो सबको देते हैं।
    • ऐसे नहीं कोई सफेद लाइट का ताज होता है।
    • यह पवित्रता की निशानी समझाई जाती है।
  • पहले-पहले तुम रहते हो सतयुग में।
      • तुम ही थे ना।
    • बाप भी कहते हैं, आत्मायें और परमात्मा अलग रहे बहुकाल..... तुम बच्चे ही पहले-पहले आते हो फिर पहले तुमको ही जाना है।
    • मुक्तिधाम के गेट्स भी तुमको खोलने हैं।
  • तुम बच्चों को बाप श्रृंगारते हैं।
    • पियरघर में वनवाह में रहते हैं।
    • इस समय तुमको भी साधारण रहना है।
      • न ऊंच, न नींच।
  • बाप भी कहते हैं साधारण तन में प्रवेश करता हूँ।
    • कोई भी देहधारी को भगवान कह नहीं सकते।
  • मनुष्य, मनुष्य की सद्गति कर नहीं सकते।
    • सद्गति तो गुरू ही करते हैं।
    • मनुष्य 60 वर्ष के बाद वानप्रस्थ लेते हैं फिर गुरू करते हैं।
      • यह भी रस्म अभी की है जो फिर भक्तिमार्ग में चलती है।
    • आजकल तो छोटे बच्चे को भी गुरू करा देते हैं।
      • भल वानप्रस्थ अवस्था नहीं है परन्तु अचानक मौत तो आ जाता है ना इसलिए बच्चों को भी गुरू करा देते हैं।
  • जैसे बाप कहते हैं तुम सभी आत्मायें हो, हक है वर्सा पाने का।
    • वह कह देते हैं गुरू बिगर ठौर नहीं पायेंगे अर्थात् ब्रह्म में लीन नहीं होंगे।
      • तुमको तो लीन नहीं होना है।
      • यह भक्ति मार्ग के अक्षर हैं।
  • आत्मा तो स्टॉर मिसल, बिन्दी है।
    • बाप भी बिन्दी ही है।
    • उस बिन्दी को ही ज्ञान सागर कहा जाता है।
    • तुम भी छोटी आत्मा हो।
      • उसमें सारा ज्ञान भरा जाता है।
  • तुम फुल ज्ञान लेते हो।
    • पास विद् ऑनर होते हैं ना।
    • ऐसे नहीं कि शिवलिंग कोई बड़ा है।
    • जितनी बड़ी आत्मा है, उतना ही परम आत्मा है।
  • आत्मा परमधाम से आती है पार्ट बजाने।
    • बाप कहते हैं मैं भी वहाँ से आता हूँ।
    • परन्तु मुझे अपना शरीर नहीं है।
    • मै रूप भी हूँ, बसन्त भी हूँ।
    • परम आत्मा रूप है, उनमें सारा ज्ञान भरा हुआ है।
  • ज्ञान की वर्षा बरसाते हैं तो सभी मनुष्य पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बन जाते हैं।
    • बाप गति सद्गति दोनों देते हैं।
    • तुम सद्गति में जाते हो बाकी सब गति में अर्थात् अपने घर में जाते हैं।
      • वह है स्वीट होम।
    • आत्मा ही इन कानों द्वारा सुनती है।
  • अब बाप कहते हैं मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों वापस जाना है, उसके लिए पवित्र जरूर बनना है।
    • पवित्र बनने बिगर कोई भी वापिस जा न सके।
    • मैं सबको ले जाने आया हूँ।
    • आत्माओं को शिव की बारात कहते हैं।
  • अब शिवबाबा शिवालय की स्थापना कर रहे हैं।
    • फिर रावण आकर वेश्यालय स्थापन करते हैं।
    • वाम मार्ग को वेश्यालय कहा जाता है।
  • बाबा के पास बहुत बच्चे हैं जो शादी करके भी पवित्र रहते हैं।
    • संन्यासी तो कहते हैं - यह हो नहीं सकता, जो दोनों इकट्ठे रह सकें।
    • यहाँ समझाया जाता है इसमें आमदनी बहुत है।
    • पवित्र रहने से 21 जन्मों की राजधानी मिलती है तो एक जन्म पवित्र रहना कोई बड़ी बात थोड़ेही है।
  • बाप कहते हैं तुम काम चिता पर बैठ बिल्कुल ही काले बन गये हो।
    • कृष्ण के लिए भी कहते हैं गोरा और सांवरा, श्याम सुन्दर।
    • यह समझानी इस समय की है।
    • काम चिता पर बैठने से सांवरे बन गये, फिर उनको गांव का छोरा भी कहा जाता है।
      • बरोबर था ना।
      • कृष्ण तो हो न सके।
  • इनके ही बहुत जन्मों के अन्त में बाप प्रवेश कर गोरा बनाते हैं।
    • अभी तुमको एक बाप को ही याद करना है।
    • बाबा आप कितने मीठे हैं, कितना मीठा वर्सा आप देते हैं।
  • हमको मनुष्य से देवता, मन्दिर लायक बनाते हो।
    • ऐसे-ऐसे अपने से बातें करनी हैं।
    • मुख से कुछ बोलना नहीं है।
    • भक्ति मार्ग में आप माशूक को कितना याद करते आये हैं।
    • अभी आप आकर मिले हो, बाबा आप तो सबसे मीठे हो।
    • आपको हम क्यों नहीं याद करेंगे।
    • आपको प्रेम का, शान्ति का सागर कहा जाता है, आप ही वर्सा देते हो, बाकी प्रेरणा से कुछ भी मिलता नहीं है।
  • बाप तो सम्मुख आकर तुम बच्चों को पढ़ाते हैं।
    • यह पाठशाला है ना।
    • बाप कहते हैं मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ।
      • यह राजयोग है।
  • अभी तुम मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन को जान गये हो।
    • इतनी छोटी आत्मा कैसे पार्ट बजाती है।
    • है भी बना-बनाया।
    • इनको कहा जाता है अनादि-अविनाशी वर्ल्ड ड्रामा।
    • ड्रामा फिरता रहता है, इसमें संशय की कोई बात नहीं।
    • बाप सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं, तुम स्वदर्शन चक्रधारी हो।
    • तुम्हारी बुद्धि में सारा चक्र फिरता रहता है।
    • तो उससे तुम्हारे पाप कट जाते हैं।
  • बाकी कृष्ण ने कोई स्वदर्शन चक्र चलाकर हिंसा नहीं की।
    • वहाँ तो न लड़ाई की हिंसा होती, न काम कटारी चलती है।
    • डबल अहिंसक होते हैं।
    • इस समय तुम्हारी 5 विकारों से युद्ध चलती है।
    • बाकी और कोई युद्ध की बात ही नहीं।
  • अब बाप है ऊंच ते ऊंच, फिर ऊंच ते ऊंच यह वर्सा लक्ष्मी-नारायण, इन जैसा ऊंच बनना है।
    • जितना तुम पुरुषार्थ करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।
    • कल्प-कल्प वही तुम्हारी पढ़ाई रहेगी।
    • अभी अच्छा पुरुषार्थ किया तो कल्प-कल्प करते रहेंगे।
    • जिस्मानी पढ़ाई से इतना पद नहीं मिल सकता जितना रूहानी पढ़ाई से मिलता है।
      • ऊंच ते ऊंच यह लक्ष्मी-नारायण बनते हैं।
      • यह भी हैं तो मनुष्य परन्तु दैवीगुण धारण करते हैं इसलिए देवता कहा जाता है।
        • बाकी 8-10 भुजाओं वाले कोई है नहीं।
  • भक्ति में दीदार होता है तो बहुत रोते हैं, दु:ख में आकर बहुत आंसू बहाते हैं।
    • यहाँ तो बाप कहते हैं आंसू आया तो फेल।
    • अम्मा मरे तो हलुआ खाओ.... आजकल तो बाम्बे में भी कोई बीमार पड़ते वा मरते हैं तो बी.के. को बुलाते हैं कि आकर शान्ति दो।
    • तुम समझाते हो आत्मा ने एक शरीर छोड़ दूसरा लिया, इसमें तुम्हारा क्या जाता।
    • रोने से क्या फायदा।
  • कहते हैं, इनको काल खा गया.. ऐसी कोई चीज़ है नहीं।
    • यह तो आत्मा आपेही एक शरीर छोड़ जाती है।
    • अपने समय पर शरीर छोड़ भागती है।
    • बाकी काल कोई चीज़ नहीं है।
  • सतयुग में गर्भ महल होता है, सज़ा की बात ही नहीं।
    • वहाँ तुम्हारे कर्म अकर्म हो जाते हैं।
    • माया ही नहीं जो विकर्म हो।
    • तुम विकर्माजीत बनते हो।
    • पहले-पहले विकर्माजीत संवत चलता है फिर भक्ति मार्ग शुरू होता है तो राजा विक्रम संवत शुरू होता है।
    • इस समय जो विकर्म किये हैं उन पर जीत पाते हो, नाम रखा जाता है विकर्माजीत।
    • फिर द्वापर में विक्रम राजा हो जाता, विकर्म करते रहते हैं।
  • सुई पर अगर कट चढ़ी हुई होगी तो चुम्बक खींचेगा नहीं।
    • जितना पापों की कट उतरती जायेगी तो चुम्बक खीचेगा।
    • बाप तो पूरा प्योर है।
    • तुमको भी पवित्र बनाते हैं योगबल से।
  • जैसे लौकिक बाप भी बच्चों को देख खुश होते हैं ना।
    • बेहद का बाप भी खुश होता है बच्चों की सर्विस पर।
    • बच्चे बहुत मेहनत भी कर रहे हैं।
    • सर्विस पर तो हमेशा एवररेडी रहना है।
  • तुम बच्चे हो पतितों को पावन बनाने वाले ईश्वरीय मिशन।
    • अभी तुम ईश्वरीय सन्तान हो, बेहद का बाप है और तुम सब बहन-भाई हो।
    • बस और कोई संबंध नहीं।
    • मुक्तिधाम में है ही बाप और तुम आत्मायें भाई-भाई फिर तुम सतयुग में जाते हो तो वहाँ एक बच्चा, एक बच्ची बस, यहाँ तो बहुत संबंध होते हैं - चाचा, काका, मामा...आदि।
  • मूलवतन तो है ही स्वीट होम, मुक्तिधाम।
    • उसके लिए मनुष्य कितना यज्ञ तप आदि करते हैं परन्तु वापिस तो कोई भी जा न सके। गपोड़े बहुत मारते रहते हैं।
    • सर्व का सद्गति दाता तो है ही एक।
    • दूसरा न कोई।
  • अभी तुम हो संगमयुग पर।
    • यहाँ हैं ढेर मनुष्य।
    • सतयुग में तो बहुत थोड़े होते हैं।
    • स्थापना फिर विनाश होता है।
      • अभी अनेक धर्म होने कारण कितना हंगामा है।
  • तुम 100 परसेन्ट सालवेन्ट थे।
    • फिर 84 जन्मों के बाद 100 परसेन्ट इनसालवेन्ट बन पड़े हो।
    • अब बाप आकर सबको जगाते हैं।
    • अब जागो, सतयुग आ रहा है।
    • सत्य बाप ही तुमको 21जन्मों का वर्सा देते हैं।
  • भारत ही सचखण्ड बनता है।
    • बाप सचखण्ड बनाते हैं, झूठ खण्ड फिर कौन बनाते हैं?
    • 5 विकारों रूपी रावण।
    • रावण का कितना बड़ा बुत बनाते हैं फिर उसको जलाते हैं क्योंकि यह है नम्बरवन दुश्मन।
    • मनुष्यों को यह पता नहीं है कि कब से रावण का राज्य हुआ है।
    • बाप समझाते हैं आधाकल्प है रामराज्य, आधाकल्प है रावण राज्य।
    • बाकी रावण कोई मनुष्य नहीं है, जिसको मारना है।
    • इस समय सारी दुनिया पर रावण राज्य है,
      • बाप आकर राम राज्य स्थापन करते हैं,
      • फिर जय-जयकार हो जाती है।
  • वहाँ सदैव खुशी रहती है।
    • वह है ही सुखधाम।
    • इनको कहा जाता है पुरुषोत्तम संगमयुग।
    • बाप कहते हैं इस पुरुषार्थ से तुम यह बनने वाले हो।
    • तुम्हारे चित्र भी बनाये थे, बहुत आये फिर सुनन्ती, कथन्ती भागन्ती हो गये।
  • बाप आकर तुम बच्चों को बहुत प्यार से समझाते हैं।
    • बाप, टीचर प्यार करते हैं, गुरू भी प्यार करते हैं।
      • सतगुरू का निंदक ठौर न पाये।
  • तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट सामने खड़ी है।
    • उन गुरूओं के पास तो एम आब्जेक्ट कोई होती नहीं।
    • वह कोई पढ़ाई नहीं है, यह तो पढ़ाई है।
    • इनको कहा जाता है युनिवर्सिटी कम हॉस्पिटल, जिससे तुम एवरहेल्दी, वेल्दी बनते हो।
      • यहाँ तो है ही झूठ, गाते भी हैं झूठी काया... सतयुग है सचखण्ड।
  • वहाँ तो हीरे जवाहरातों के महल होते हैं।
    • सोमनाथ का मन्दिर भी भक्तिमार्ग में बनाया है।
    • कितना धन था जो फिर मुसलमानों ने आकर लूटा।
    • बड़ी-बड़ी मस्जिदें बनाई।
  • बाप तुमको कारून का खजाना देते हैं।
    • शुरू से ही तुमको सब साक्षात्कार कराते आये हैं।
  • अल्लाह अवलदीन बाबा है ना।
    • पहला-पहला धर्म स्थापन करते हैं।
    • वह है डिटीज्म।
    • जो धर्म नहीं है वह फिर से स्थापन होता है।
    • सब जानते हैं प्राचीन सतयुग में इन्हों का ही राज्य था, उनके ऊपर कोई नहीं।
    • डीटी राज्य को ही पैराडाइज कहा जाता है।
  • अभी तुम जानते हो फिर औरों को बताना है।
    • सबको कैसे पता पड़े जो फिर ऐसा कोई उल्हना न दे कि हमको पता नहीं पड़ा।
    • तुम सबको बतलाते हो फिर भी बाप को छोड़कर चले जाते हैं।
  • यह हिस्ट्री मस्ट रिपीट।
    • बाबा के पास आते हैं तो बाबा पूछते हैं - आगे कभी मिले हो?
    • कहते हैं हाँ बाबा 5 हज़ार वर्ष पहले हम मिलने आये थे।
    • बेहद का वर्सा लेने आये थे, कोई आकर सुनते हैं, कोई को साक्षात्कार होता है ब्रह्मा का तो वह याद आता है।
    • फिर कहते हैं हमने तो यही रूप देखा था।
    • बाप भी बच्चों को देख खुश होते हैं।
    • तुम्हारी अविनाशी ज्ञान रत्नों से झोली भरती है ना।
  • यह पढ़ाई है।
    • 7 दिन का कोर्स लेकर फिर भल कहाँ भी रह मुरली के आधार पर चल सकते हैं, 7 दिन में इतना समझायेंगे जो फिर मुरली को समझ सकेंगे।
    • बाप तो बच्चों को सब राज़ अच्छी रीति समझाते रहते हैं।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) स्वदर्शन चक्र फिराते पापों को भस्म करना है, रूहानी पढ़ाई से अपना पद श्रेष्ठ बनाना है।
    • किसी भी परिस्थिति में आंसू नहीं बहाने हैं।
  • 2) यह वानप्रस्थ अवस्था में रहने का समय है, इसलिए वनवाह में बहुत साधारण रहना है।
    • न बहुत ऊंच, न बहुत नींच।
    • वापस जाने के लिए आत्मा को सम्पूर्ण पावन बनाना है।
  • वरदान:-
  • मनन शक्ति द्वारा बुद्धि को शक्तिशाली बनाने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान भव
  • मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुराक है।
  • जैसे भक्ति में सिमरण करने के अभ्यासी हैं, ऐसे ज्ञान में स्मृति की शक्ति है।
  • इस शक्ति द्वारा मास्टर सर्वशक्तिमान बनो।
  • रोज़ अमृतवेले अपने एक टाइटल को स्मृति में लाओ और मनन करते रहो तो मनन शक्ति से बुद्धि शक्तिशाली रहेगी।
  • शक्तिशाली बुद्धि के ऊपर माया का वार नहीं हो सकता, परवश नहीं हो सकते क्योंकि माया सबसे पहले व्यर्थ संकल्प रूपी वाण द्वारा दिव्यबुद्धि को ही कमजोर बनाती है, इस कमजोरी से बचने का साधन ही है मनन शक्ति।।
  • स्लोगन:-
  • आज्ञाकारी बच्चे ही दुआओं के पात्र हैं, दुआओं का प्रभाव दिल को सदा सन्तुष्ट रखता है।