09-12-2020
प्रात:मुरली
बापदादा
मधुबन
मीठे बच्चे - जो संकल्प ईश्वरीय सेवा अर्थ चलता है, उसे शुद्ध संकल्प वा निरसंकल्प ही कहेंगे, व्यर्थ नहीं
प्रश्नः-
विकर्मो से बचने के लिए कौन सी फ़र्ज-अदाई पालन करते भी अनासक्त रहो?
उत्तर:-
मित्र सम्बन्धियों की सर्विस भले करो लेकिन अलौकिक ईश्वरीय दृष्टि रखकरके करो, उनमें मोह की रग नहीं जानी चाहिए।
अगर किसी विकारी संबंध से संकल्प भी चलता है तो वह विकर्म बन जाता है इसलिए अनासक्त होकर फ़र्जअदाई पालन करो।
जितना हो सके देही-अभिमानी रहने का पुरुषार्थ करो।
-
ओम् शान्ति। आज तुम बच्चों को संकल्प, विकल्प, निरसंकल्प अथवा कर्म, अकर्म और विकर्म पर समझाया जाता है।
- जब तक तुम यहाँ हो तब तक तुम्हारे संकल्प जरूर चलेंगे।
- संकल्प धारण किये बिना कोई मनुष्य एक क्षण भी रह नहीं सकता है।
- अब यह संकल्प यहाँ भी चलेंगे, सतयुग में भी चलेंगे और अज्ञानकाल में भी चलते हैं परन्तु ज्ञान में आने से संकल्प, संकल्प नहीं, क्योंकि तुम परमात्मा की सेवा अर्थ निमित्त बने हो तो जो यज्ञ अर्थ संकल्प चलता वह संकल्प, संकल्प नहीं वह निरसंकल्प ही है।
- बाकी जो फालतू संकल्प चलते हैं अर्थात् कलियुगी संसार और कलियुगी मित्र सम्बन्धियों के प्रति चलते हैं वह विकल्प कहे जाते हैं जिससे ही विकर्म बनते हैं और विकर्मो से दु:ख प्राप्त होता है।
- बाकी जो यज्ञ प्रति अथवा ईश्वरीय सेवा प्रति संकल्प चलता है वह गोया निरसंकल्प हो गया।
- शुद्ध संकल्प सर्विस प्रति भले चलें। देखो, बाबा यहाँ बैठा है तुम बच्चों को सम्भालने अर्थ।
- उसकी सर्विस करने अर्थ माँ बाप का संकल्प जरूर चलता है।
- परन्तु यह संकल्प, संकल्प नहीं इससे विकर्म नहीं बनता है परन्तु यदि किसी का विकारी संबंध प्रति संकल्प चलता है तो उनका विकर्म अवश्य ही बनता है।
- बाबा तुम बच्चों को कहते हैं कि मित्र सम्बन्धियों की सर्विस भले करो परन्तु अलौकिक ईश्वरीय दृष्टि से।
- वह मोह की रग नहीं आनी चाहिए।
- अनासक्त होकर अपनी फ़र्ज-अदाई पालन करनी चाहिए।
- परन्तु जो कोई यहाँ होते हुए कर्म सम्बन्ध में होते हुए उनको नहीं काट सकते तो भी उनको परमात्मा को नहीं छोड़ना चाहिए।
- हाथ पकड़ा होगा तो कुछ न कुछ पद प्राप्त कर लेंगे।
- अब यह तो हर एक अपने को जानते हैं कि मेरे में कौन सा विकार है।
- अगर किसी में एक भी विकार है तो वह देह-अभिमानी जरूर ठहरा, जिसमें विकार नहीं वह ठहरा देही-अभिमानी।
- किसी में कोई भी विकार है तो वो सजायें जरूर खायेंगे और जो विकारों से रहित हैं, वे सजाओं से मुक्त हो जायेंगे।
- जैसे देखो कोई-कोई बच्चे हैं, जिनमें न काम है, न क्रोध है, न लोभ है, न मोह है..., वो सर्विस बहुत अच्छी कर सकते हैं।
- अब उन्हों की बहुत ज्ञान विज्ञानमय अवस्था है।
- वह तो तुम सब भी वोट देंगे।
- अब यह तो जैसे मैं जानता हूँ वैसे तुम बच्चे भी जानते हो, अच्छे को सब अच्छा कहेंगे, जिसमें कुछ खामी होगी उनको सभी वही वोट देंगे।
- अब यह निश्चय करना जिनमें कोई विकार है वो सर्विस नहीं कर सकते।
- जो विकार प्रूफ हैं वो सर्विस कर औरों को आप समान बना सकेंगे इसलिए विकारों पर पूर्ण जीत चाहिए, विकल्प पर पूर्ण जीत चाहिए।
- ईश्वर अर्थ संकल्प को निरसंकल्प रखा जायेगा।
- वास्तव में निरसंकल्पता उसी को कहा जाता है जो संकल्प चले ही नहीं, दु:ख सुख से न्यारा हो जाए, वह तो अन्त में जब तुम हिसाब-किताब चुक्तू कर चले जाते हो, वहाँ दु:ख सुख से न्यारी अवस्था में, तब कोई संकल्प नहीं चलता।
- उस समय कर्म अकर्म दोनों से परे अकर्मी अवस्था में रहते हो।
- यहाँ तुम्हारा संकल्प जरूर चलेगा क्योंकि तुम सारी दुनिया को शुद्ध बनाने अर्थ निमित्त बने हुए हो तो उसके लिए तुम्हारे शुद्ध संकल्प जरूर चलेंगे।
- सतयुग में शुद्ध संकल्प चलने के कारण संकल्प, संकल्प नहीं, कर्म करते भी कर्मबन्धन नहीं बनता। समझा।
- अब कर्म, अकर्म और विकर्म की गति तो परमात्मा ही समझा सकता है।
- वही विकर्मो से छुड़ाने वाला है जो इस संगम पर तुमको पढ़ा रहे हैं इसलिए बच्चे अपने ऊपर बहुत ही सावधानी रखो।
- अपने हिसाब-किताब को भी देखते रहो।
- तुम यहाँ आये हो हिसाब-किताब चुक्तू करने।
- ऐसे तो नहीं यहाँ आकर भी हिसाब-किताब बनाते जाओ तो सजा खानी पड़े।
- यह गर्भ जेल की सजा कोई कम नहीं है।
- इस कारण बहुत ही पुरुषार्थ करना है।
- यह मंजिल बहुत भारी है इसलिए सावधानी से चलना चाहिए।
- विकल्पों के ऊपर जीत पानी है जरूर।
- अब कितने तक तुमने विकल्पों पर जीत पाई है, कितने तक इस निरसंकल्प अर्थात् दु:ख सुख से न्यारी अवस्था में रहते हो, यह तुम अपने को जानते रहो।
- जो खुद को नहीं समझ सकते हैं वह मम्मा, बाबा से पूछ सकते हैं क्योंकि तुम तो उनके वारिस हो, तो वह बता सकते हैं।
- निरसंकल्प अवस्था में रहने से तुम अपने तो क्या, किसी भी विकारी के विकर्मो को दबा सकते हो, कोई भी कामी पुरुष तुम्हारे सामने आयेगा, तो उसका विकारी संकल्प नहीं चलेगा।
- जैसे कोई देवताओं के पास जाता है तो उनके सामने वह शान्त हो जाता है, वैसे तुम भी गुप्त रूप में देवतायें हो।
- तुम्हारे आगे भी किसी का विकारी संकल्प नहीं चल सकता है, परन्तु ऐसे बहुत कामी पुरुष हैं जिनका कुछ संकल्प अगर चलेगा तो भी वार नहीं कर सकेगा, अगर तुम योगयुक्त होकर खड़े रहेंगे तो।
- देखो, बच्चे तुम यहाँ आये हो परमात्मा को विकारों की आहुति देने
- परन्तु कोई-कोई ने अभी कायदेसिर आहुति नहीं दी है।
- उन्हों का योग परमपिता से जुटा हुआ नहीं है।
- सारा दिन बुद्धियोग भटकता रहता है अर्थात् देही-अभिमानी नहीं बने हैं।
- देह-अभिमानी होने के कारण किसी के स्वभाव में आ जाते हैं, जिस कारण परमात्मा से प्रीत निभा नहीं सकते हैं अर्थात् परमात्मा अर्थ सर्विस करने के अधिकारी नहीं बन सकते हैं।
- तो जो परमात्मा से सर्विस ले फिर सर्विस कर रहे हैं अर्थात् पतितों को पावन कर रहे हैं वही मेरे सच्चे पक्के बच्चे हैं।
- उन्हें बहुत भारी पद मिलता है।
- अभी परमात्मा खुद आकर तुम्हारा बाप बना है।
- उस बाप को साधारण रूप में न जानकर कोई भी प्रकार का संकल्प उत्पन्न करना गोया विनाश को प्राप्त होना।
- अभी वह समय आयेगा जो 108 ज्ञान गंगायें पूर्ण अवस्था को प्राप्त करेंगी।
- बाकी जो पढ़े हुए नहीं होंगे वे तो अपनी ही बरबादी करेंगे।
- यह निश्चय जानना जो कोई इस ईश्वरीय यज्ञ में छिपकर काम करता है तो उनको जानी जाननहार बाबा देख लेता है, वह फिर अपने साकार स्वरूप बाबा को टच करता है, सावधानी देने अर्थ।
- तो कोई भी बात छिपानी नहीं चाहिए।
- भल भूलें होती हैं परन्तु उनको बताने से ही आगे के लिए बच सकते हैं इसलिए बच्चे सावधान रहना।
- बच्चों को पहले अपने को समझना चाहिए कि मैं हूँ कौन, व्हाट एम आई।
- “मैं'' शरीर को नहीं कहते, मैं कहते हैं आत्मा को।
- मैं आत्मा कहाँ से आया हूँ?
- किसकी सन्तान हूँ?
- आत्मा को जब यह मालूम पड़ जाए कि मैं आत्मा परमपिता परमात्मा की सन्तान हूँ तब अपने बाप को याद करने से खुशी आ जाए।
- बच्चे को खुशी तब आती है जब बाप के आक्यूपेशन को जानता है।
- जब तक छोटा है, बाप के आक्यूपेशन को नहीं जानता तब तक इतनी खुशी नहीं रहती।
- जैसे बड़ा होता जाता, बाप के आक्यूपेशन का पता पड़ता जाता तो वो नशा, वह खुशी चढ़ती जाती है।
- तो पहले उनके आक्यूपेशन को जानना है कि हमारा बाबा कौन है?
- वह कहाँ रहता है?
- अगर कहें आत्मा उसमें मर्ज हो जायेगी तो आत्मा विनाशी हो गई तो खुशी किसको आयेगी।
- तुम्हारे पास जो नये जिज्ञासु आते हैं उनको पूछना चाहिए कि तुम यहाँ क्या पढ़ते हो?
- इससे क्या स्टेट्स मिलती है?
- उस कालेज में तो पढ़ने वाले बताते हैं कि हम डाक्टर बन रहे हैं, इन्जीनियर बन रहे हैं... तो उन पर विश्वास करेंगे ना कि यह बरोबर पढ़ रहे हैं।
- यहाँ भी स्टूडेन्टस बताते हैं कि यह है दु:ख की दुनिया जिसको नर्क, हेल अथवा डेवल वर्ल्ड कहते हैं।
- उनके अगेन्स्ट है हेविन अथवा डीटी वर्ल्ड, जिसको स्वर्ग कहते हैं।
- यह तो सभी जानते हैं, समझ भी सकते हैं कि यह वह स्वर्ग नहीं है, यह नर्क है अथवा दु:ख की दुनिया है, पाप आत्माओं की दुनिया है तब तो उसको पुकारते हैं कि हमको पुण्य की दुनिया में ले चलो।
- तो यह बच्चे जो पढ़ रहे हैं वह जानते हैं कि हमको बाबा उस पुण्य की दुनिया में ले चल रहे हैं।
- तो जो नये स्टूडेन्ट आते हैं उनको बच्चों से पूछना चाहिए, बच्चों से पढ़ना चाहिए।
- वह अपने टीचर का अथवा बाप का आक्यूपेशन बता सकते हैं।
- बाप थोड़ेही अपनी सराहना खुद बैठ करेंगे, टीचर अपनी महिमा खुद सुनायेगा क्या!
- वह तो स्टूडेन्ट सुनायेंगे कि यह ऐसा टीचर है, तब कहते हैं स्टूडेन्टस शोज़ मास्टर।
- तुम बच्चे जो इतना कोर्स पढ़कर आये हो, तुम्हारा काम है नयों को बैठ समझाना।
- बाकी टीचर जो बी.ए. एम.ए. पढ़ा रहे हैं वह बैठ नये स्टूडेन्ट को ए.बी.सी. सिखलायेंगे क्या!
- कोई-कोई स्टूडेन्ट अच्छे होशियार होते हैं, वह दूसरों को भी पढ़ाते हैं।
- उसमें माता गुरू तो मशहूर है।
- यह है डीटी धर्म की पहली माता, जिसको जगदम्बा कहते हैं।
- माता की बहुत महिमा है।
- बंगाल में काली, दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी इन चार देवियों की बहुत पूजा करते हैं।
- अब उन चार का आक्यूपेशन तो मालूम होना चाहिए।
- जैसे लक्ष्मी है तो वह है गॉडेज आफ वेल्थ।
- वह तो यहाँ ही राज्य करके गई है।
- बाकी काली, दुर्गा आदि यह तो सब इस पर नाम पड़े हैं।
- अगर चार मातायें हैं तो उनके चार पति भी होने चाहिए।
- अब लक्ष्मी का तो नारायण पति प्रसिद्ध है।
- काली का पति कौन है?
- (शंकर) लेकिन शंकर को तो पार्वती का पति बताते हैं।
- पार्वती कोई काली नहीं है।
- बहुत हैं जो काली को पूजते हैं, माता को याद करते हैं लेकिन पिता का पता नहीं है।
- काली का या तो पति होना चाहिए या पिता होना चाहिए लेकिन यह कोई को पता नहीं है।
- तुमको समझाना है कि दुनिया यह एक ही है, जो कोई समय दु:ख की दुनिया अथवा दोज़क बन जाती है वही फिर सतयुग में बहिश्त अथवा स्वर्ग बन जाती है।
- लक्ष्मी-नारायण भी इस ही सृष्टि पर सतयुग के समय राज्य करते थे।
- बाकी सूक्ष्म में तो कोई वैकुण्ठ है नहीं जहाँ सूक्ष्म लक्ष्मी-नारायण हैं।
- उनके चित्र यहाँ ही हैं तो जरूर यहाँ ही राज्य करके गये हैं।
- खेल सारा इस कारपोरियल वर्ल्ड में चलता है।
- हिस्ट्री जॉग्राफी इस कारपोरियल वर्ल्ड की है।
- सूक्ष्म-वतन की कोई हिस्ट्री-जॉग्राफी होती नहीं।
- लेकिन सभी बातों को छोड़ तुमको नये जिज्ञासु को पहले अल्फ सिखलाना है फिर बे समझाना है।
- अल्फ है गाड, वह सुप्रीम सोल है।
- जब तक यह पूरा समझा नहीं है तब तक परमपिता के लिए वह लव नहीं जागता, वह खुशी नहीं आती क्योंकि पहले जब बाप को जानें तब उनके आक्यूपेशन को भी जानकर खुशी में आवें।
- तो खुशी है इस पहली बात को समझने में।
- गाड तो एवरहैपी है, आनंद स्वरूप है।
- उनके हम बच्चे हैं तो क्यों न वह खुशी आनी चाहिए!
- वह गुदगुदी क्यों नहीं होती!
- आई एम सन आफ गाड, आई एम एवरहैपी मास्टर गाड।
- वह खुशी नहीं आती तो सिद्ध है अपने को सन (बच्चा) नहीं समझते हैं।
- गाड इज़ एवरहैपी बट आई एम नाट हैप्पी क्योंकि फादर को नहीं जानते हैं।
- बात तो सहज है।
- कोई-कोई को यह ज्ञान सुनने के बदले शान्ति अच्छी लगती है क्योंकि बहुत हैं जो ज्ञान उठा भी नहीं सकेंगे।
- इतना समय कहाँ है।
- बस इस अल्फ को भी जानकर साइलेन्स में रहें तो वह भी अच्छा है।
- जैसे संन्यासी भी पहाड़ों की कन्दराओं में जाकर परमात्मा की याद में बैठते हैं।
- वैसे परमपिता परमात्मा की, उस सुप्रीम लाइट की याद में रहें तो भी अच्छा है।
- उसकी याद से संन्यासी भी निर्विकारी बन सकते हैं।
- परन्तु घर बैठे तो याद कर नहीं सकते।
- वहाँ तो बाल बच्चों में मोह जाता रहेगा, इसलिए तो संन्यास करते हैं।
- होली बन जाते तो उसमें सुख तो है ना। संन्यासी सबसे अच्छे हैं।
- आदि देव भी संन्यासी बना है ना।
- यह सामने उनका (आदि देव का) मन्दिर खड़ा है, जहाँ तपस्या कर रहे हैं।
- गीता में भी कहते हैं देह के सभी धर्मो का संन्यास करो।
- वह संन्यास कर जाते तो महात्मा बन जाते।
- गृहस्थी को महात्मा कहना बेकायदे है।
- तुमको तो परमात्मा ने आकर संन्यास कराया है।
- संन्यास करते ही हैं सुख के लिए।
- महात्मा कभी दु:खी नहीं होते।
- राजायें भी संन्यास करते हैं तो ताज आदि फेंक देते हैं।
- जैसे गोपीचन्द ने संन्यास किया, तो जरूर इसमें सुख है।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) कोई भी उल्टा कर्म छिपकर नहीं करना है।
- बापदादा से कोई भी बात छिपानी नहीं है।
- बहुत-बहुत सावधान रहना है।
- 2) स्टूडेन्ट शोज़ मास्टर, जो पढ़ा है वह दूसरों को पढ़ाना है।
- एवरहैपी गाड के बच्चे हैं, इस स्मृति से अपार खुशी में रहना है।
- वरदान:-
- हर आत्मा को ऊंच उठाने की भावना से रिगार्ड देने वाले शुभचिंतक भव
- हर आत्मा के प्रति श्रेष्ठ भावना अर्थात् ऊंच उठाने की वा आगे बढ़ाने की भावना रखना अर्थात् शुभ चिंतक बनना।
- अपनी शुभ वृत्ति से, शुभ चिंतक स्थिति से अन्य के अवगुण को भी परिवर्तन करना, किसी की भी कमजोरी वा अवगुण को अपनी कमजोरी समझ वर्णन करने के बजाए वा फैलाने के बजाए समाना और परिवर्तन करना यह है रिगार्ड।
- बड़ी बात को छोटा बनाना, दिलशिकस्त को शक्तिवान बनाना, उनके संग के रंग में नहीं आना, सदा उन्हें भी उमंग उत्साह में लाना - यह है रिगार्ड।
- ऐसे रिगार्ड देने वाले ही शुभचिंतक हैं।
- स्लोगन:-
- त्याग का भाग्य समाप्त करने वाला पुराना स्वभाव-संस्कार है, इसलिए इसका भी त्याग करो।
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